HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

HBSE 9th Class Hindi सवैये Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ? [H.B.S.E. March, 2019]
उत्तर-
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। कवि गोकुल गाँव के ग्वालों के प्रति प्रेम भाव रखता है। इसलिए वह अगले जन्म में वहाँ जन्म लेना चाहता है। वह पशु बनकर वहाँ गायों के बीच रहना चाहता है। वहाँ के पर्वतों के प्रति भी कवि का प्रेम व्यक्त हुआ है। कवि के मन में ब्रज में बहने वाली यमुना नदी और वहाँ पर खड़े कदंब के पेड़ों के प्रति भी अनन्य प्रेम है।

प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर-
वस्तुतः कवि श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखता है, इसलिए उसके मन में उन सभी वस्तुओं के प्रति प्रेम है जिनका संबंध श्रीकृष्ण से था। ब्रज के बागों, जंगलों तथा तालाबों पर श्रीकृष्ण अपनी लीलाएँ रचते थे। इसलिए कवि वन, बाग और तालाब को निहारना चाहता है।

प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर-
वस्तुतः लकुटी और कामरिया वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग श्रीकृष्ण गायों को चराते समय करते थे। कवि को श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु प्रिय है। इसलिए कवि अपने आराध्य देव की प्रिय वस्तुओं के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है।

प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सखी ने गोपी को श्रीकृष्ण की भाँति मोर पंखों से बने मुकुट को सिर पर धारण करने का आग्रह किया था। शरीर पर पीले वस्त्र पहनने और गले में गुंजन की माला धारण करने का भी आग्रह किया था। लाठी और कंबली लेकर ग्वालों का रूप धारण करके गाय चराने के लिए ग्वालों के साथ रहने का भी आग्रह किया था। सखी को मुरलीधर की मुरली को होंठों पर लगाने का आग्रह भी किया था, किंत गोपी ने उसे स्वीकार नहीं किया था।

प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर-
कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य इसलिए प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इन सबसे श्रीकृष्ण को भी प्रगाढ़ प्रेम था। इसलिए कवि भी उनसे संबंधित सभी वस्तुओं को प्राप्त करके श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता हैं।

प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने-आपको क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर-
चौथे सवैये में कवि ने बताया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन से प्रभावित हैं, किंतु जब श्रीकृष्ण मुरली बजाएँगे तो वे अपने कानों पर अंगुली रख लेंगी जिससे उस मधुर ध्वनि को सुन नहीं सकेंगी, किंतु जब श्रीकृष्ण मंद-मंद रूप से मुस्कुराते हैं तो गोपियाँ उनकी मुस्कान से अत्यधिक प्रभावित हो उठती हैं और अपने-आपको सँभाल नहीं पातीं और श्रीकृष्ण के प्रेम की धारा में प्रवाहित होने लगती हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुस्कान के सामने अपने-आपको विवश पाती हैं।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। वह श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु को प्राप्त करने के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहते थे। इसलिए वह करील के वृक्षों के उस समूह, जहाँ श्रीकृष्ण गौओं को चराते थे, के लिए सोने से निर्मित करोड़ों भवनों को त्यागने के लिए तत्पर थे। कहने का भाव है कि श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु कवि को अत्यधिक प्रिय है।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्ति में गोपिका के श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम को अभिव्यक्त किया गया है। गोपिका कहती है कि मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर अपने-आपको संभाल नहीं सकती अर्थात श्रीकृष्ण के प्रेम की धारा में प्रवाहित होने लगेंगी। इस पंक्ति में गोपिका की विवशता को उद्घाटित किया गया है।

प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर-
अनुप्रास।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए“या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।”
उत्तर-
(1) प्रस्तुत पंक्ति ब्रज भाषा में रचित है।
(2) इसमें गोपिका के हृदय की सौतिया भावना का सजीव चित्रण हुआ है।
(3) संपूर्ण पंक्ति में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(4) ‘मुरली मुरलीधर’ में यमक अलंकार है।
(5) भाषा में संगीतात्मकता है।
(6) शब्द-योजना भावानुकूल की गई है।

रचना और अभिव्यक्ति

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प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर-
नोट-ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इसलिए विद्यार्थी इन्हें अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

पाठेतर सक्रियता

सूरदास द्वारा रचित कृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी पदों को पढ़िए।
उत्तर-
रसखान और सूरदास दोनों ही श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त कवि हैं। दोनों श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध हैं और दोनों कवियों ने बालक कृष्ण की छवि के अनेक सुंदर एवं सजीव चित्र अंकित किए हैं। सूरदास द्वारा रचित यह पद देखिए-
(1) घुटुरुनि चलत स्याम मनि-आँगन, मातु-पिता दोउ देखत री।
कबहुँक किलकि तात-मुख हेरत, कबहुँ मातु-मुख पेखत री।
लटकन लटकत ललित भाल पर, काजर-बिंदु ध्रुव ऊपर री।
यह सोभा नैननि भरि देखत, नहि उपमा तिहुँ पर भूरी।
कबहुँक दौरि घुटुरुवनि लपकत, गिरत, उठत पुनि धावै री।
इतरौं नंद बुलाइ लेत हैं, उतरौं जननि बुलावै री।
दंपति होड़ करत आपस मैं, स्याम खिलौना कीन्हौ री।
सूरदास प्रभु ब्रह्म सनातन, सुत हित करि दोउ लीन्हौ री ॥

2. कान्ह चलत पग द्वै द्वै धरनी।
जो मन मैं अभिलाष करति हो, सो देखति नँद घरनी।
रुनुक-झुनुक नूपुर पग बाजत, थुनि अतिहीं मन-हरनी।
बैठि जात पुनि उठत तुरतहीं, सौ छवि जाइ न बरनी।
ब्रज जुबती सब देखि थकित भइँ, सुंदरता की सरनी।
चिरजीवहु जसुदा को नंदन, सूरदास कौं तरनी ॥

HBSE 9th Class Hindi 11 सवैये Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसखान अगले जन्म में क्या बनना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर-
रसखान अगले जन्म में ग्वाला बनना चाहते हैं तथा ब्रज भूमि पर श्रीकृष्ण का बाल सखा बनकर रहना चाहते हैं। रसखान ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति अथाह श्रद्धा एवं भक्ति-भावना है। वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के सान्निध्य में रहना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। पठित सवैये के अध्ययन से पता चलता है कि वे अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति में लगा देना चाहते हैं। ब्रज भूमि से भी उनका गहरा संबंध है। वे श्रीकृष्ण की भूमि, उनकी वस्तुओं आदि सबके लिए अपना जीवन न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे श्रीकृष्ण का सामीप्य प्राप्त करने के लिए स्वाँग भी रचने के लिए तत्पर हैं। वे श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान पर भी मुग्ध हैं। इससे पता चलता है कि रसखान के मन में श्रीकृष्ण के प्रति प्रगाढ़ भक्ति-भावना है।

प्रश्न 3.
गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर-
गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली से ईर्ष्या भाव रखती है क्योंकि जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली बजाने में तल्लीन हो जाते हैं तब वे सभी गोपियों को भूल जाते हैं। वे गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। इसलिए गोपिका अपने मन में श्रीकृष्ण की मुरली के प्रति सौत व ईर्ष्या भाव रखती है। इसलिए वह उसे अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती।

प्रश्न 4.
सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग रचने को तैयार है और क्यों ?
उत्तर-
सखी के कहने पर गोपिका श्रीकृष्ण का स्वाँग रचने को तैयार है। वह श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र पहनने को तत्पर है। वह श्रीकृष्ण के समान सिर पर मोर के पंखों से बना मुकुट भी धारण कर लेना चाहती है। गले में गुंजन की माला भी पहनने के लिए तैयार है। वह श्रीकृष्ण की भाँति हाथ में लाठी लेकर गाय चराने के लिए ग्वालों के साथ वन-वन घूमने को तैयार है। गोपिका यह सब इसलिए करना चाहती है क्योंकि उसके मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व भक्ति-भावना है।

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प्रश्न 5.
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की प्रेम भावना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
रसखान का सारा काव्य प्रेम की भावना पर आधरित है। वे श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे अपने प्रिय की हर वस्तु को, उसके पहनावे, रहन-सहन, उसके हर कार्य को पसंद करते हैं। उनके सामीप्य को प्राप्त करने के लिए वे अपना जीवन तक न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं। वे किसी भी बहाने से प्रिय का संग चाहते हैं। उनके लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हैं। वे प्रिय के साथ अकेला ही जीना चाहते हैं। यहाँ तक कि उन्हें प्रिय की बांसुरी भी सहन नहीं है। अतः स्पष्ट है कि रसखान की प्रेम भावना पवित्र, आवेगमयी एवं अनन्यतामयी है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रसखान किस संप्रदाय से संबंध रखते थे ?
(A) हिंदू
(B) जैन
(C) मुस्लिम
(D) सिक्ख
उत्तर-
(C) मुस्लिम

प्रश्न 2.
रसखान का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1542 में
(B) सन् 1548 में
(C) सन् 1549 में
(D) सन् 1550 में
उत्तर-
(B) सन् 1548 में

प्रश्न 3.
रसखान का जन्म किस परिवार में हुआ था ?
(A) गरीब परिवार में
(B) राज परिवार में
(C) संपन्न पठान परिवार में
(D) किसान परिवार में
उत्तर-
(C) संपन्न पठान परिवार में

प्रश्न 4.
रसखान क्या देखकर दिल्ली से ब्रज चले गए थे ?
(A) भीषण अकाल
(B) राजा का अन्याय
(C) सेना के जुल्म
(D) भीषण गरीबी
उत्तर-
(B) राजा का अन्याय

प्रश्न 5.
ब्रज में रहते हुए रसखान ने किस ग्रंथ का पाठ सुना
(A) महाभारत का
(B) श्रीमद्भगवद्गीता का
(C) रामचरितमानस का
(D) सूरसागर का
उत्तर-
(C) रामचरितमानस का

प्रश्न 6.
रसखान के आराध्य देव कौन हैं ?
(A) शिव
(B) विष्णु
(C) श्रीकृष्ण
(D) श्रीराम
उत्तर-
(C) श्रीकृष्ण

प्रश्न 7.
रसखान की प्रमुख रचना कौन-सी है ?
(A) सतसई
(B) प्रेमवाटिका
(C) सूरसागर
(D) कृष्णवाटिका
उत्तर-
(B) प्रेमवाटिका

प्रश्न 8.
रसखान के काव्य का मूल भाव क्या है ?
(A) शृंगार
(B) विरह
(C) भक्ति -भाव
(D) विद्रोह
उत्तर-
(C) भक्ति -भाव

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प्रश्न 9.
रसखान का निधन कब हुआ था ?
(A) सन् 1608 में
(B) सन् 1618 में
(C) सन् 1628 में
(D) सन् 1638 में
उत्तर-
(C) सन् 1628 में

प्रश्न 10.
कविवर रसखान मनुष्य होने पर कहाँ बसना चाहते थे ?
(A) मथुरा में
(B) काशी में
(C) गोकुल गाँव में
(D) प्रयागराज में
उत्तर-
(C) गोकुल गाँव में

प्रश्न 11.
रसखान पशु की योनि में होने पर कहाँ चरना चाहते थे ?
(A) किसान के खेत में
(B) चरागाह में
(C) घास के मैदान में
(D) नंद की गायों के बीच
उत्तर-
(D) नंद की गायों के बीच

प्रश्न 12.
कवि रसखान किस पहाड़ का पत्थर बनना पसंद करते थे ?
(A) हिमालय पर्वत का
(B) गोवर्धन पर्वत का
(C) सुमेरू पर्वत का
(D) साधारण पहाड़ी का
उत्तर-
(B) गोवर्धन पर्वत का

प्रश्न 13.
रसखान कवि पक्षी बनकर कहाँ बसेरा करना चाहते थे ?
(A) करील के पेड़ पर
(B) आम के पेड़ पर ।
(C) कदंब के पेड़ पर
(D) वट वृक्ष पर
उत्तर-
(C) कदंब के पेड़ पर

प्रश्न 14.
जिस कंद पर श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते थे, वह किस नदी के तट पर था ?
(A) यमुना
(B) गंगा
(C) सरस्वती
(D) घाघर
उत्तर-
(A) यमुना

प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण ने किसे हराने के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था ?
(A) अग्नि देवता को
(B) इंद्र देवता को
(C) विष्णु को
(D) शिव को
उत्तर-
(B) इंद्र देवता को

प्रश्न 16.
गोपिका श्रीकृष्ण की लकुटी और कंबली पर कौन-सा राज्य न्योछावर करने के लिए तत्पर है ?
(A) भारतवर्ष का राज्य
(B) संसार का राज्य
(C) पाताल का राज्य
(D) तीनों लोकों का राज्य
उत्तर-
(D) तीनों लोकों का राज्य

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प्रश्न 17.
कविवर अपनी आँखों से क्या देखने की कामना करते हैं ?
(A) ब्रज के बाग और तालाब को
(B) गोपिकाओं को
(C) कदंब के पेड़ कों
(D) यमुना नदी को
उत्तर-
(A) ब्रज के बाग और तालाब को

प्रश्न 18.
कवि सोने के करोड़ों महलों को किस पर वार देना चाहता है ?
(A) ब्रज की गलियों पर
(B) ब्रज में खड़े वृक्षों के समूह पर
(C) ग्वालों के बच्चों पर
(D) ब्रज के पक्षियों पर
उत्तर-
(B) ब्रज में खड़े वृक्षों के समूह पर

प्रश्न 19.
गोपिका सिर पर क्या धारण करना चाहती थी ?
(A) टोपी
(B) मोर के पंखों का मुकुट
(C) पगड़ी
(D) ताज
उत्तर-
(B) मोर के पंखों का मुकुट

प्रश्न 20.
गोपिका कौन-सी माला गले में धारण करने के लिए तत्पर है ?
(A) सोने की
(B) मोतियों की
(C) गुंजन की
(D) हीरों की
उत्तर-
(C) गुंजन की.

प्रश्न 21.
गोपिका किस रंग के वस्त्र धारण करना चाहती है ?
(A) नीले
(B) लाल
(C) हरे
(D) पीले
उत्तर-
(D) पीले

प्रश्न 22.
गोपिका श्रीकृष्ण की कौन-सी वस्तु धारण नहीं करना चाहती ?
(A) मुकुट
(B) वस्त्र
(C) मुरली
(D) लाठी
उत्तर-
(C) मुरली

प्रश्न 23.
गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती ?
(A) मुरली पुरानी है
(B) मुरली जूठी है
(C) ईर्ष्या भाव के कारण
(D) मुरली सुंदर नहीं है
उत्तर-
(C) ईर्ष्या भाव के कारण

प्रश्न 24.
गोपिका कानों में अँगुली क्यों देना चाहती है ?
(A) उसको मुरली की धुन अच्छी नहीं लगती
(B) उसे कृष्ण के वश में होने का खतरा है
(C) मुरली की ध्वनि अत्यंत कर्कश है
(D) मुरली की धुन बेसुरी है
उत्तर-
(B) उसे कृष्ण के वश में होने का खतरा है

प्रश्न 25.
गोधन से क्या तात्पर्य है ?
(A) एक लोकगीत
(B) गौओं का धन
(C) लोक धुन
(D) ग्वालों द्वारा गाया जाने वाला गीत
उत्तर-
(A) एक लोकगीत

प्रश्न 26.
‘या लकुटी और कामरिया पर’ सवैये में कवि ने किस प्रदेश की प्रशंसा की है?
(A) मगध
(B) ब्रज
(C) मालवा
(D) अवध
उत्तर-
(B) ब्रज

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सवैये अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकल गाँव के ग्वारन।
जौ पस हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कुल कदंब की डारन॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-मानुष हौं = मनुष्य हुआ तो। ग्वारन = ग्वाले। धेनु = गायों। मँझारन = मध्य में। पाहन = पत्थर। हरिछत्र = श्रीकृष्ण ने जिसे धारण किया था। पुरंदर = इंद्र। खग = पक्षी। कालिंदी कूल = यमुना नदी का तट। कदंब की डारन = कदंब वृक्ष की शाखाओं पर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत सवैये का संदर्भ/प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत सवैये का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(5) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) रसखान कवि द्वारा रचित इस सवैये में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति-भावना का उल्लेख हुआ है। इस पद में उन्होंने अगले जन्म में श्रीकृष्ण की ब्रज भूमि में जन्म लेने की अपनी इच्छा प्रकट की है।

(3) व्याख्या-महाकवि रसखान का कथन है कि हे प्रभु! यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज या गोकुल के ग्वालों के साथ हो और यदि मैं पशु बनूँ तो मेरा बस इतना ही कहना है कि मैं नित्य नंद की गायों में चरता रहूँ। हे ईश्वर! यदि मैं पत्थर भी बनें तो उस गोवर्धन पर्वत का बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर धारण करके इंद्र के क्रोध से गोकुल की रक्षा की थी। हे प्रभु! यदि मैं पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना तट के कदंब के पेड़ की शाखाओं पर हो।
भावार्थ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि की ईश्वरीय भक्ति एवं प्रेम व्यक्त हुआ है।

(4) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण के समीप रहना चाहते हैं, जिससे उनके मन में व्याप्त श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम का परिचय मिलता है। कवि हर स्थिति में ईश्वर का सामीप्य चाहता है।

(5) (क) कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना का वर्णन हुआ है।
(ख) ‘गोकुल गाँव के ग्वारन’, ‘मेरो चरौं’ एवं ‘कालिंदी, कूल, कदंब’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(ग) ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
(घ) सवैया छंद है।

(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भावना व्यक्त हुई है। कवि श्रीकृष्ण को हर समय अपने समक्ष देखना चाहता है।

2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं ।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-लकुटी = लाठी। अरु = और। कामरिया = कंबल। तिहूँ पुर = तीनों लोकों (आकाश, पाताल और पृथ्वी) में। तजि = त्यागना। आठहुँ सिद्धि = आठ सिद्धियाँ, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व । नवौ निधि = नौ निधियाँ-पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व । ये सभी कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं। तड़ाग = तालाब। निहारौं = देलूँगा। कोटिक = करोड़ों। कलधौत = महल । करील = काँटेदार झाड़ी। वारौं = न्योछावर करना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि किसके लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है ?
(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए क्या त्यागने के लिए तत्पर है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पद में कवि ने श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपने गहन प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबली पर मैं तीनों लोकों के राज्य के सुख को न्योछावर कर दूँगा। नंद की गायों को चराने के लिए मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भुला दूंगा अर्थात त्याग दूंगा। रसखान कवि कहते हैं कि मैं अपनी आँखों से ब्रज के बाग-बगीचे और तालाबों को देखने के लिए अत्यंत व्याकुल हूँ। मैं ब्रज के वृक्षों के समूहों पर, जहाँ कभी श्रीकृष्ण खेलते व गायों को चराते थे, सोने से निर्मित करोड़ों भवन न्योछावर करता हूँ।
भावार्थ-कहने का भाव है कि उन्हें अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु एवं स्थान अत्यंत प्रिय हैं। इससे उनके श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम व भक्ति का पता चलता है।

(3) श्रीकृष्ण और उनसे संबंधित हर वस्तु व स्थान कवि को अत्यंत प्रिय है। उन्हें प्राप्त करने के लिए वे बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर हैं। इससे श्रीकृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम का बोध होता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद सरल, सहज एवं प्रवाहमयी ब्रज भाषा में रचित है।
(ख) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय बनी हुई है।
(ग) ‘नवौ निधि’, ‘ब्रज बन’, ‘करील के कुंजन’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(घ) सवैया छंद का प्रयोग किया गया है।
(ङ) शब्द-चयन भावानुकूल है।

(5) कवि श्रीकृष्ण की ब्रज-भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है।

(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज्य त्यागने के लिए तत्पर है।

3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी ।
ओढि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ॥ [पृष्ठ 101]

शब्दार्थ-मोरपखा = मोर के पंख। गुंज = घुघची। गरें = गले। पितंबर = पीले वस्त्र। लकुटी = लाठी। गोधन = गायों रूपी धन। ग्वारिन = ग्वालों। स्वाँग = रूप धारण करना। मुरलीधर = श्रीकृष्ण। अधरान = होंठों पर।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(6) सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग भरने को तैयार है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान। कविता-सवैये।

(2) कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निःस्वार्थ प्रेम का मनोरम चित्रण किया है। ये शब्द एक गोपिका अपनी अंतरंग सखी से कहती है।

(3) व्याख्या-एक गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वह श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने के लिए तत्पर है। गोपिका कहती है कि वह श्रीकृष्ण की भाँति ही मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट सिर पर धारण कर लेगी। वह श्रीकृष्ण के गले में सुशोभित होने वाली घुघचों से बनी माला को भी धारण कर लेगी। श्रीकृष्ण की भाँति ही हाथ में लाठी लेकर ग्वालों व ग्वालिनों के साथ जंगल में गायों के पीछे भी घूम लेगी। रसखान ने बताया है कि गोपिका अपनी सखी से पुनः कहती है कि तुम्हारी कसम, मुझे श्रीकृष्ण बहुत ही अच्छे लगते हैं। तेरे कहने पर मैं हर प्रकार से श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लूँगी। किंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहने वाली इस मुरली को अपने होंठों पर नहीं रखूगी। यहाँ गोपिका की सौतिया भावना का चित्रण हुआ है। वह मुरली को अपनी दुश्मन और प्रतिद्वंद्वी समझती है।
भावार्थ कवि के कहने का तात्पर्य है कि एक ओर गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और दूसरी ओर उनकी बांसुरी से सौत का भाव रखती है।

(4) (क) प्रस्तुत पद में कवि ने सरल एवं सहज ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। (ख) ‘या मुरली…न धरौंगी’ में गोपी के सौतिया डाह की अभिव्यक्ति हुई है। (ग). मुरली मुरलीधर’, ‘अधरान धरी अधरा’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। (घ) ‘रसखानि’ का अर्थ रस की खान तथा रसखान कवि होने के कारण यमक अलंकार है।

(5) प्रस्तुत पद. में कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपिका के अनन्य प्रेम का वर्णन किया है, किंतु गोपिका को श्रीकृष्ण की मुरली अच्छी नहीं लगती, क्योंकि जब भी श्रीकृष्ण मुरली को अपने होंठों पर रखकर बजाते हैं तो गोपियों को भूल जाते हैं। इसलिए गोपिका . मुरली के प्रति ईर्ष्या भाव रखती है, जिसे व्यक्त करना कवि का प्रमुख उद्देश्य है।

(6) सखी के कहने पर गोपी श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र, घुघची की माला तथा मोर पंखों से बना मुकुट आदि सब कुछ धारण करने के लिए तैयार है। वह हाथ में लाठी लेकर गायों और ग्वालों के साथ वन-वन घूमने के लिए भी तत्पर है।

4. काननि दै अँगुरी रहिबो जवहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥
[पृष्ठ 102]

शब्दार्थ-काननि = कानों में। अँगुरी = अँगुली। धुनि = धुन। मंद = धीरे। मोहनी = मधुर। अटा = अट्टालिका। गोधन = ब्रज प्रदेश में गाया जाने वाला एक लोक-गीत। टेरि कहौं = पुकारकर कहती हूँ। काल्हि = कल को। वा = उस। मुसकानि = मुस्कान।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) गोपिका अपने कानों में अँगुली क्यों डालना चाहती है ?
(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकारकर क्या कहना चाहती है ?
उत्तर-
(1) कवि-रसखान।। कविता-सवैये।

(2) व्याख्या-एक गोपिका का कथन है, हे सखी! जब श्रीकृष्ण अपनी मुरली मंद-मंद ध्वनि में बजाएंगे, तब मैं अपने कानों में अँगुली डाले रहूँगी ताकि मुरली की ध्वनि मुझे सुनाई ही न दे। फिर भले ही वह रस के सागर (श्रीकृष्ण) अट्टालिका पर चढ़कर मधुर तानों में गोधन राग में गीत गाते हैं तो गाते रहें। मैं तो ब्रज के सभी लोगों को पुकार-पुकारकर कहती हूँ कि कल को कोई कितना ही समझाए, किंतु मैं श्रीकृष्ण के मुख की मधुर मुस्कुराहट को नहीं सँभाल पाऊँगी।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि गोपिका श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान पर अत्यंत मोहित है।

(3) प्रस्तुत सवैये में कवि ने ब्रज की गोपियों पर श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान के प्रभाव का सुंदर उल्लेख किया है। श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर गोपिका अपने-आपको रोक नहीं पाती। वह उससे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण के प्रेम में बह जाती है।

(4) (क) श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान व मंद-मंद मुस्कान का सजीव चित्रांकन किया गया है।
(ख) अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
(ग) ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
(घ) शब्द-चयन अत्यंत सार्थक एवं विषयानुकूल है।
(ङ) सवैया छंद का प्रयोग है।

(5) गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि से अत्यंत प्रभावित है। वह जब भी उसे सुनती है तो अपने-आपको रोक नहीं पाती। इसलिए वह लोक-लाज के कारण अपने कानों में अँगुली रख लेती है। ऐसा करने से उसे न तो मुरली की ध्वनि सुनाई देगी और न ही वह श्रीकृष्ण के पास जाएगी।

(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकार-पुकारकर कहती है कि कल कोई भी मुझे कितना ही क्यों न समझाए, परंतु मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को सँभाल नहीं पाऊँगी अर्थात वह उसकी मुस्कान पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकेगी।

सवैये Summary in Hindi

सवैये कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर रसखान का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कविवर रसखान का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रसखान कृष्णभक्त कवि थे। उनका जन्म सन् 1548 के लगभग दिल्ली के एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। वे मुसलमान होते हुए भी श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। वे अत्यंत प्रेमी स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें वैष्णव भक्तों ने श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य से परिचित करवाया। तभी से वे श्रीकृष्ण के भक्त बन गए थे। वे श्रीकृष्ण की भक्ति में इतने भाव-विभोर हो उठे कि श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए श्रीनाथ के मंदिर में भी गए थे। यह भी कहा जाता है कि उन्हें श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए थे। गोकुल पहुँचकर उन्होंने श्री विठ्ठलनाथ से दीक्षा ली। तब से वे ब्रज-भूमि में रहने लगे थे। उनकी रसमयी भक्ति के कारण उनका नाम रसखान पड़ गया। सन् 1628 के लगभग उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्राप्त हैं(क) सुजान रसखान-इसमें सवैये हैं, (ख) प्रेमवाटिका-इसमें दोहे हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन इनके काव्य का प्रमुख विषय है। इनके काव्य में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का भी बड़ा मनोरम वर्णन किया गया है। निम्नलिखित पंक्तियों में बालक कृष्ण की रूप-छवि देखते ही बनती है

“धूरि भरे अति शोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी ॥”

श्रीकृष्ण के प्रति भक्त-हृदय की निष्ठा का पता रसखान के निम्नलिखित सवैये से भली प्रकार चलता है

“या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ॥”

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

रसखान के काव्य में रस धारा निरंतर प्रवाहित है। उन्होंने अपने काव्य में विभिन्न रसों का वर्णन किया है, किंतु शृंगार रस में राधा-कृष्ण के संयोग श्रृंगार का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधुरी, राधा कृष्ण की प्रेम-लीलाओं और ब्रज-महिमा का वर्णन मिलता है। रस-योजना में रसखान को पूरी सफलता मिली है। इनके द्वारा रचित श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करते हुए वास्तव में ही भक्तजन रस-विभोर हो उठते हैं।

4. भाषा-शैली-रसखान के काव्य की भाषा ब्रज है। उनके काव्य में शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा व्याकरणिक दृष्टि से भी शुद्ध है। उनके दोहे एवं सवैये भी निर्दोष हैं। भाषा और छंदों के सफल प्रयोग से इनके काव्य की सुंदरता में वृद्धि हुई है। भाषा का जैसा शुद्ध एवं निखरा हुआ रूप रसखान के काव्य में मिलता है, ऐसा बहुत कम कवियों के काव्य में दिखाई देता है। इनका काव्य सरल, सरस एवं भावपूर्ण है। इसमें अलंकारों की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी यथास्थान अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है। यह काव्य भारतीय जनता का प्रिय है। लोगों की जुबान से रसखान के दोहे आज भी सुने जाते हैं।

सवैयों का सार/काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित रसखान रचित ‘सवैये’ का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
रसखान कृत प्रथम एवं द्वितीय सवैये में कृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति उनका प्रेम भाव व्यक्त हुआ है। प्रथम सवैये में रसखान ने अपना प्रेम भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि यदि अगले जन्म में मैं मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज-भूमि में हो, यदि मैं पशु बनूँ तो मैं नित्य नंद की गायों के बीच चरता रहूँ। यदि पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने धारण किया था। यदि पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना के तट पर हो। इतना ही नहीं, वे श्रीकृष्ण के द्वारा धारण की हुई लाठी व काली कंबली पर तीनों लोकों के राज को न्योछावर कर देना चाहते हैं। वे उनके साथ गाय चराने के लिए हर प्रकार की संपत्ति व सुख त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे ब्रज के वनों और तालाबों पर करोड़ों सोने के बने महलों को न्योछावर कर देना चाहते हैं। तीसरे सवैये में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य के प्रति गोपियों की उस मुग्धता का चित्रण किया है जिसमें वे स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण का मोर पंखों से युक्त मुकुट, उनकी माला, पीले वस्त्र, लाठी आदि सब धारण कर लेना चाहती हैं, किंतु उनकी मुरली को धारण करना उन्हें स्वीकार नहीं है। चौथे सवैये में श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी मुस्कान के अचूक प्रभाव के सामने गोपियों की विवशता का मार्मिक वर्णन है।

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