HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख

HBSE 9th Class Hindi वाख Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है ?
उत्तर-
‘रस्सी’ यहाँ जीवन को चलाने के साधन व उपाय के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवयित्री की दृष्टि में वह नाशवान व कमजोर है।

प्रश्न 2.
कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर-
कवयित्री की दृष्टि में जीवन कच्ची मिट्टी के सकोरे के समान है, जो पानी की बूँद लगते ही नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार सांसारिक साधनों से, जो नश्वर एवं क्षणभंगुर हैं, मोक्ष प्राप्त करने के सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
वस्तुतः कवयित्री आत्मा का घर ईश्वर को मानती है। जब आत्मा यह जान लेती है कि संसार उसका वास्तविक घर नहीं है, तब वह संसार को त्यागकर ईश्वर के पास अर्थात अपने घर जाने की इच्छा व्यक्त करती है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री ललद्यद ने बताया कि जब उसने आत्मालोचन किया तो उसने पाया कि उसके जीवन में सत्कर्म रूपी कुछ भी धन नहीं था और न ही उसके जीवन में ईश्वर-भक्ति रूपी पूँजी थी।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने बताया है कि सांसारिक सुखों का भोग करने से तुझे कुछ नहीं मिलेगा। इससे जीवन व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा। दूसरी ओर, यदि कुछ खाएगा नहीं, और केवल धन-दौलत को एकत्रित करेगा तो तुझे धन-दौलत का अहंकार हो जाएगा। अतः सांसारिक साधन या धन-दौलत का भोग करना या उनको जोड़ना, दोनों ही मानव-मुक्ति के मार्ग की बाधाएँ हैं।

प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललघद ने क्या उपाय सुझाया है ?
उत्तर-
कवयित्री ने बताया है कि इंद्रियों का निग्रह करके समभावना रखने से ही बंद द्वार की साँकल खुल सकेगी अर्थात समभावना रखने से चेतना व्यापक होगी और मोक्ष के द्वार खुल सकेंगे।

प्रश्न 6.
ईश्वर-प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है ?
उत्तर-
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

प्रश्न 7.
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ज्ञानी से कवयित्री का अंभिप्राय आत्मज्ञानी है। आत्मज्ञानी व्यक्ति ही ईश्वर को पहचान सकता है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-
(क),आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है ?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर-
(क) आज हमारे समाज में जो भेदभाव दिखाई देता है उसके कारण देश और समाज में अनेक हानियाँ हो रही हैं।
(1) समाज में सांप्रदायिक भेदभाव बढ़ रहा है।
(2) आए दिन धर्म व जाति को लेकर दंगे व झगड़े होते हैं।
(3) इससे देश की एकता कमजोर पड़ रही है।
(4) जनता का ध्यान विकास की अपेक्षा अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने की ओर लग जाता है।
(5) समाज में भाईचारे व सह-अस्तित्व की भावना को भी ठेस पहुंचती है।

(ख) (1) हमें सबको समान समझने की भावना को धारण करना चाहिए।
(2) अन्य धर्मों व धार्मिक ग्रंथों का आदर करना चाहिए। इससे आपसी भेदभाव की भावना कम होगी।
(3) दूसरों के सुख-दुःख व तीज-त्योहारों में भाग लेना चाहिए।
(4) सबको ईश्वर की संतान समझकर समानता का व्यवहार करना चाहिए।

पाठेतर सक्रियता

भक्तिकाल में ललयद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त-कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
ललयद कश्मीरी कवयित्री हैं। कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

HBSE 9th Class Hindi वाख Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवयित्री ने ईश्वर प्राप्ति के लिए कौन-सा मार्ग बताया है ?
उत्तर-
कवयित्री ने बताया है कि आत्मा परमात्मा का ही अभिन्न अंग है। इसलिए परमात्मा की प्राप्ति के लिए दिल में बेचैनी का बना रहना स्वाभाविक है। उनके अनुसार सांसारिक उपाय नश्वर हैं। इनसे ईश्वर की प्राप्ति असंभव है। जीवन में सहज त्याग और भोग में अनासक्ति आवश्यक है। इसके साथ-साथ अपने आप को जानना अर्थात् आत्मज्ञान-प्राप्ति का मार्ग मोक्ष ही ईश्वर-प्राप्ति का उचित मार्ग है। .

प्रश्न 2.
कवयित्री के अनुसार ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में कौन-कौन-सी प्रमुख बाधाएँ हैं ?
उत्तर-
कवयित्री ईश्वर-प्राप्ति के लिए सहज भक्ति मार्ग का समर्थन करती है। इसलिए वह सांसारिक आडंबरों, हठयोग आदि को ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में बाधा बताती है। कवयित्री के अनुसार अहंकार ईश्वर-प्राप्ति की सबसे बड़ी बाधा है। इसी प्रकार सांप्रदायिक भेदभाव में फँसा व्यक्ति भी मोक्ष या ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।

प्रश्न 3.
‘वाख’ कविता का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने स्पष्ट किया है कि सांसारिक जीवन नश्वर है। सांसारिक मोह में लीन रहने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। किन्तु जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचान लेती है अर्थात् जब उसे आत्मज्ञान हो जाता है, तब वह ईश्वर से मिलने के लिए बेचैन हो उठती है। सहज भाव की भक्ति से ही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। योग, त्याग या हठयोग से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ललघद किस भाषा की कवयित्री थी ?
(A) पंजाबी
(B) मराठी
(C) कश्मीरी
(D) हरियाणवी
उत्तर-
(C) कश्मीरी

प्रश्न 2.
ललघद किस काव्यधारा की कवयित्री थी ?
(A) संत काव्यधारा की
(B) सगुण भक्ति काव्यधारा की
(C) आधुनिक काव्यधारा की
(D) छायावादी काव्यधारा की
उत्तर-
(A) संत काव्यधारा की

प्रश्न 3.
कवयित्री ललघद का जन्म कब हुआ ?
(A) सन् 1236 में
(B) सन् 1320 में
(C) सन् 1326 में
(D) सन् 1400 में
उत्तर-
(B) सन् 1320 में

प्रश्न 4.
ललघद का जन्म किस जिले में हुआ था ?
(A) जम्मू में
(B) पापोर जिले में
(C) श्रीनगर में
(D) उधमपुर जिले में
उत्तर-
(B) पांपोर जिले में

प्रश्न 5.
कवयित्री ललघद का देहांत कब हुआ था ?
(A) सन् 1361 में
(B) सन् 1371 में
(C) सन् 1381 में
(D) सन् 1391 में
उत्तर-
(D) सन् 1391 में

प्रश्न 6.
ललयद किस काव्य शैली में लिखती थी ?
(A) दोहा शैली में
(B) चौपाई शैली में
(C) वाख शैली में
(D) मुक्तक शैली में
उत्तर-
(C) वाख शैली में

प्रश्न 7.
ललयद के वाखों का संबंध किससे है ?
(A) धन से
(B) ईश्वर से
(C) जीवन से
(D) प्रकृति से
उत्तर-
(C) जीवन से

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प्रश्न 8.
ललघद ने किसका कड़ा विरोध किया था ?
(A) धार्मिक आडंबरों का
(B) लालची प्रवृत्ति का
(C) झूठ का
(D) रूढ़ियों का
उत्तर-
(A) धार्मिक आडंबरों का

प्रश्न 9.
ललयद ने किस मार्ग पर चलने का उपदेश दिया ?
(A) धर्म के मार्ग पर
(B) भक्ति के मार्ग पर
(C) सांसारिक मार्ग पर
(D) योग के मार्ग पर
उत्तर-
(B) भक्ति के मार्ग पर

प्रश्न 10.
कवयित्री ललबद ने जीवन में सबसे मूल्यवान किसे बताया ?
(A) प्रेम को
(B) त्याग को
(C) वैराग्य को
(D) साधना को
उत्तर-
(A) प्रेम को

प्रश्न 11.
ललघद का काव्य किन तत्त्वों से प्रेरित था ?
(A) जीवन मूल्य
(B) लोक जीवन
(C) सामाजिक मूल्य
(D) वैज्ञानिक
उत्तर-
(B) लोक जीवन

प्रश्न 12.
ललधद का काव्य किस भाषा का स्तंभ माना जाता है ?
(A) पंजाबी भाषा का
(B) आधुनिक कश्मीरी भाषा का
(C) मराठी भाषा का
(D) उड़िया भाषा का
उत्तर-
(B) आधुनिक कश्मीरी भाषा का

प्रश्न 13.
‘खा-खाकर ………………… द्वार की।’ पद्यांश का प्रमुख विषय है-
(A) भक्ति-भावना
(B) बाह्याडंबरों का विरोध
(C) लालच
(D) जातिगत भेदभाव
उत्तर-
(B) बाह्याडंबरों का विरोध

प्रश्न 14.
कवयित्री ने ईश्वर प्राप्ति के अपने प्रयासों की उपमा किससे की है ?
(A) कच्चे सकोरे से
(B) फूलों से
(C) पक्की रस्सी से
(D) सोने के बर्तन से
उत्तर-
(A) कच्चे सकोरे से

प्रश्न 15.
कवयित्री को कौन-सी चाह घेरे हुई थी ?
(A) घर जाने की
(B) बगीचे में जाने की
(C) देहली जाने की
(D) सैर करने की
उत्तर-
(A) घर जाने की

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प्रश्न 16.
कवयित्री ने मनुष्य को किस स्थिति में अहंकारी होने की बात कही है ?
(A) न सोने की
(B) सैर न करने की
(C) न खाने की
(D) न मरने की
उत्तर-
(C) न खाने की

प्रश्न 17.
कवयित्री के अनुसार समभावी कैसे बन सकते हैं ?
(A) सबसे समान व्यवहार करने से
(B) सब कुछ खाने से
(C) समान भाव से सोचने से
(D) समान भाव से सोने से
उत्तर-
(A) सबसे समान व्यवहार करने से

प्रश्न 18.
‘खुलेगी साँकल बंद द्वार की’ में किस द्वार की ओर संकेत किया गया है ?
(A) जेल के द्वार
(B) मन रूपी द्वार
(C) घर के द्वार
(D) पाठशाला के द्वार
उत्तर-
(B) मन रूपी द्वार

प्रश्न 19.
‘खुलेगी साँकल बंद द्वार की’ पंक्ति में साँकल से तात्पर्य है-
(A) मोहमाया के बंधन
(B) प्रेम के बंधन
(C) लालच
(D) भ्रम
उत्तर-
(A) मोहमाया के बंधन

प्रश्न 20.
‘आई सीधी राह से’ में आने से क्या तात्पर्य है ?
(A) जन्म लेना
(B) आकाश से नीचे उतरना
(C) संसार में प्रवेश करना
(D) परमात्मा के घर से आना
उत्तर-
(A) जन्म लेना

प्रश्न 21.
‘आई सीधी राह ………. क्या उतराई’ पद में माँझी किसे कहा गया है ?
(A) नाविक को
(B) मनुष्य को
(C) ईश्वर को
(D) पति को
उत्तर-
(C) ईश्वर को

प्रश्न 22.
‘जेब टटोली, कौड़ी न पाई।’ में ‘कौड़ी’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया गया है ?
(A) एक सिक्के के लिए
(B) धन के लिए
(C) रुपए के लिए
(D) सद्कर्म के लिए
उत्तर-
(D) सद्कर्म के लिए

प्रश्न 23.
ललधद के अनुसार शिव (परमात्मा) कहाँ बसता है ?
(A) आकाश में
(B) हर स्थान में
(C) पर्वत पर
(D) मंदिर में
उत्तर-
(B) हर स्थान में

प्रश्न 24.
कवयित्री ने ज्ञानी किसे कहा है ?
(A) जो ज्ञान रखता हो
(B) जो शास्त्र पढ़ता हो
(C) जो स्वयं को जानता हो
(D) जो दूसरों को जानता हो
उत्तर-
(C) जो स्वयं को जानता हो

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प्रश्न 25.
ललघद ने ईश्वर की पहचान क्या बताई है ?
(A) आत्मा की पहचान
(B) संसार की पहचान
(C) अच्छे-बुरे की पहचान
(D) छोटे-बड़े की पहचान
उत्तर-
(A) आत्मा की पहचान

प्रश्न 26.
‘रस्सी कच्चे धागे की’ कहने के पीछे कवयित्री का क्या आशय है ?
(A) सांसें
(B) धागा कच्चा है
(C) धागा कपास का है
(D) कमजोर साथी
उत्तर-
(A) सांसें

वाख अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे ॥ [पृष्ठ 97]

शब्दार्थ-रस्सी कच्चे धागे = कमजोर व नाशवान सहारे। नाव = जीवन रूपी नाव । भवसागर = संसार रूपी सागर । सकोरा = मिट्टी का बना छोटा कटोरा । हूक = पीड़ा।

प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) प्रस्तुत काव्यांश का भाषा-वैशिष्ट्य स्पष्ट कीजिए।
(6) ‘घर जाने की चाह है घेरे’ में कौन-से ‘घर’ की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद।
कविता-वाख।

(2) व्याख्या कवयित्री का कथन है कि मैं अपनी जीवन रूपी नाव को कच्चे धागों के समान अत्यंत क्षीण एवं कमजोर साधनों से खींच रही हूँ अर्थात संसार रूपी सागर से जीवन रूपी नाव को सांसारिक एवं नश्वर उपायों द्वारा पार ले जाने का प्रयास कर रही हूँ। न जाने ईश्वर कब मेरी प्रार्थना सुनकर मेरी जीवन रूपी नाव को संसार रूपी सागर से पार करेंगे। मेरा यह जीवन मिट्टी के सकोरे के समान नाशवान एवं क्षणभंगुर है। जैसे कच्ची मिट्टी का सकोरा पानी लगने से गलकर टूट जाता है; ऐसा ही मेरा जीवन नश्वर है। इसलिए जीवन की इस नाव को खींचने के मेरे सारे प्रयास व्यर्थ प्रतीत होते हैं। संसार एवं जीवन की नश्वरता को देखकर मेरे हृदय में एक तीव्र पीड़ा उठती रहती है और अपने घर अर्थात ईश्वर के पास जाने की इच्छा सदैव घेरे रहती है।
भावार्थ-कवयित्री के कहने का भाव है कि मानव-जीवन नश्वर एवं क्षणिक है। उसके द्वारा संसार रूपी सागर को तब तक पार नहीं किया जा सकता जब तक ईश्वर की कृपा न हो।

(3) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने मानव-जीवन की तुलना कच्चे धागे एवं कच्ची मिट्टी के सकोरे से करके उसकी नश्वरता एवं क्षणभंगुरता को व्यक्त किया है। साथ ही कवयित्री ने प्रभु से अपनी मुक्ति हेतु प्रार्थना की है। प्रभु-मिलन की आत्मा की व्याकुलता को भी उद्घाटित किया गया है।

(4) (क) प्रस्तुत पद्य ‘वाख’ शैली में रचित है।
(ख). ‘नाव’ तथा ‘भवसागर’ में रूपक अलंकार है।
(ग) ‘रह-रह’ में वीप्सा अलंकार का प्रयोग है।
(घ) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) संपूर्ण पद में संगीतात्मकता है।

(5) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। कवयित्री ने अपने काव्य की भाषा को जहाँ संगीतमय बनाया है, वहीं अलंकारों का उचित प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है। ‘वाख’ शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

(6) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने आत्मा के वास्तविक घर परमात्मा के पास जाने का संकेत किया है।

2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की। [पृष्ठ 97]

शब्दार्थ-अहंकारी = घमंडी। सम (शम) = अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह (इंद्रियों को उनके विषयों से विमुख करके ईश्वर में लगाना)। समभावी = समानता की भावना। खुलेगी साँकल बंद द्वार की = चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होना।

प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
(5) व्यक्ति समभावी कैसे बन सकता है ?
(6) ‘खुलेगी साँकल बंद द्वार की’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद। कविता-वाख।

(2) व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य को चेतावनी देते हुए कहा है कि इस जीवन में सांसारिक सुखों को भोगने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होगा और यदि तू सांसारिक वस्तुओं अर्थात धन-दौलत को जोड़ेगा तो तेरे मन में धन-दौलत का अहंकार उत्पन्न हो जाएगा। कहने का अभिप्राय है कि सांसारिक सुखों को भोगना व धन-दौलत को एकत्रित करना, दोनों ही मनुष्य की मुक्ति के मार्ग में बाधक हैं। कवयित्री ने इनसे बचने के उपाय की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मनुष्य को अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करना चाहिए। सांसारिक साधनों के प्रति समभाव बनाए रखना चाहिए, तभी मनुष्य समभावी बन सकता है। ऐसा करने पर उसकी चेतना का विकास होगा और उसे मुक्ति प्राप्त होगी अर्थात मनुष्य को सांसारिक मोह-माया के बंधनों से मुक्ति मिल सकेगी।
भावार्थ-कवयित्री के कहने का अभिप्राय है कि मानव को सुख-दुख में समभाव बनाए रखना चाहिए। इसमें ही उसकी मुक्ति संभव है।

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(3) मनुष्य को समभाव रखते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके उन्हें ईश्वर की भक्ति में लगाने का प्रयास करना चाहिए, तभी वह मोक्ष को प्राप्त कर सकेगा।

(4) (क) ‘वाख ‘शैली का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) ‘खा-खाकर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(घ) ‘सम’ में यमक अलंकार है।
(ङ) ‘बंद द्वार’ अवरुद्ध चेतना का प्रतीक है।

(5) कवयित्री के अनुसार सम खाने से अर्थात अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करने पर ही व्यक्ति समभावी बन सकता है।

(6) प्रस्तुत पंक्ति में बताया गया है कि समभाव अपनाने से मनुष्य की चेतना का विकास होगा और सांसारिक मोह-माया के बंधन से मुक्ति या मोक्ष प्राप्त होगा।

3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूं, क्या उतराई ? [पृष्ठ 97]

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शब्दार्थ-सुषुम-सेतु = सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल (हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी सुषुम्ना है, जो नासिका के मध्य भाग ब्रह्मरंध्र में स्थित है)। जेब टटोली = आत्मालोचन किया। कौड़ी न पाई = कुछ भी प्राप्त न हुआ। माझी = नाविक, ईश्वर, गुरु। उतराई = सत्कर्म रूपी मेहनताना।

प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) जेब टटोलना का क्या तात्पर्य है ?
(6) प्रस्तुत पद में किस भक्ति-पद्धति का विरोध किया गया है ?
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद। कविता-वाख।

(2) व्याख्या प्रस्तुत पद में कवयित्री ने बताया है कि प्राणी इस संसार में सीधे मार्ग से आता है। उस समय उसके मन में किसी प्रकार की कोई बुराई नहीं होती, किन्तु संसार में आकर वह ईश्वर-विमुख मार्ग पर चलने लगता है और अंत तक उसी मार्ग पर चलता रहता है। कवयित्री पुनः कहती है कि मैं हठयोग आदि विभिन्न उपायों के माध्यम से ईश्वर-प्राप्ति का प्रयास करती रही, किन्तु संपूर्ण जीवन बीत गया, पर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात उसने अपनी जेब टटोली अर्थात आत्मालोचन किया तो पता चला कि मेरे पास तो अपने माझी (गुरु, ईश्वर व नाविक) को देने के लिए कुछ भी नहीं है।
भावार्थ-कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य इस संसार से अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता। इसलिए उसे सांसारिक लोभ अथवा मोह में नहीं बँधना चाहिए।

(3) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने मानव को सीधे मार्ग अर्थात ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। मानव को ईश्वर-प्राप्ति का सहज मार्ग अपनाना चाहिए। आत्मालोचन भी अनिवार्य है, क्योंकि इससे अपने हृदय में विद्यमान गुण-दोषों का बोध हो जाता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद ‘वाख’ शैली में रचित है। (ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। (ग) ‘जेब टटोली’ एवं ‘कौड़ी न पाई’ पदों का लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनता है। (घ) स्वर-मैत्री का प्रयोग है।

(5) ‘जेब टटोलना’ का तात्पर्य आत्मालोचन करना है, क्योंकि आत्मालोचन से ही मनुष्य अपने गुण-दोषों को पहचान सकता है।

(6) इस पद में कवयित्री ने हठयोग-पद्धति का विरोध किया है।

4. थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान ॥ [पृष्ठ 98]

शब्दार्थ-थल-थल = सब जगह। शिव = ईश्वर। साहिब = ईश्वर, स्वामी।

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प्रश्न
(1) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर कहाँ बसता है ? ।
(6) इस पद में ज्ञानी किसे कहा गया है ?
(7) इस पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवयित्री-ललद्यद। कविता-वाख।

(2) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने ईश्वर के सर्वव्यापक रूप को पहचानने का उपदेश दिया है।

(3) व्याख्या कवयित्री का कथन है कि ईश्वर (शिव) हर स्थान में विद्यमान है। प्रत्येक प्राणी के हृदय में उसका निवास है। इसलिए हिंदुओं व मुसलमानों के ईश्वर अलग-अलग नहीं हैं। ईश्वर को लेकर हमें ऐसा भेदभाव नहीं करना चाहिए। जो आत्मालोचन द्वारा स्वयं को जान लेता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। अपने-आपको अर्थात आत्मा को पहचानना ही ईश्वर को पहचानना है।
भावार्थ-कहने का भाव है कि ईश्वर सर्वव्यापक है और आत्मज्ञान से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है।

(4) (क) प्रस्तुत पद ‘वाख’ शैली में रचित है।
(ख) ‘थल-थल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त है।
(घ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर प्रत्येक स्थान पर बसता है। उसे प्रत्येक प्राणी के हृदय में अनुभव किया जा सकता है।

(6) जिसे आत्मज्ञान हो, उसे ही कवयित्री ने ज्ञानी कहा है। आत्मज्ञानी ही ईश्वर को पहचान सकता है।

(7) कवयित्री ने ईश्वर की सर्वव्यापकता को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार ईश्वर जल-थल और हर तीर्थ स्थान में भी रहता है। आत्मज्ञान के द्वारा ईश्वर को जानने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी है। अतः हमें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यही मानव-जीवन का परम लक्ष्य है।

वाख Summary in Hindi

वाख कवयित्री-परिचय

प्रश्न-
संत-कवयित्री ललघद का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संत-कवयित्री ललद्यद का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ललद्यद का नाम कश्मीरी संत कवियों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे अपने युग की कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत-कवयित्री थीं। उनका जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पांपोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके जीवन के विषय में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। अन्य संत कवियों की भाँति ही उनके जीवन के विषय में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। ललधद को लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिफा आदि नामों से भी जाना जाता है। उनकी मृत्यु सन् 1391 के लगभग स्वीकार की गई है।

2. प्रमुख रचनाएँ-ललद्यद की सभी काव्य-रचनाएँ ‘वाख’ शीर्षक के अंतर्गत उपलब्ध हैं। वस्तुतः ‘वाख’ उनकी काव्य-शैली है। जिस प्रकार हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाइयाँ तथा रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं; उसी प्रकार ललद्यद के ‘वाख’ प्रसिद्ध हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-ललद्यद के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह तत्कालीन जीवन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपने वाखों के माध्यम से जाति एवं धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी है। उनके काव्य में समाज में एकता स्थापित करने की भावना पर बल दिया गया है-

“थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।”

उनकी प्रवृत्ति खंडनात्मक न होकर मंडनात्मक थी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उन्होंने लोकमंगल की भावना को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का सर्वत्र विरोध किया है और प्रेम को सबसे बड़ा जीवन-मूल्य घोषित किया है।
संत-कवयित्री ललद्यद ने आत्मज्ञान को प्रमुखता दी है, क्योंकि आत्मज्ञान से ही स्वयं को एवं परमात्मा को जाना जा सकता है-

“ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान”

4. भाषा-शैली-संत-कवयित्री ललद्यद की रचनाएँ लोकजीवन से संबंधित हैं। इसलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फारसी के स्थान पर लोकभाषा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। उनके काव्य की भाषा में लोकजीवन से संबंधित लोकभाषा के अनेक शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है। उन्होंने अपने काव्य की भाषा को जहाँ संगीतमय बनाया है, वहाँ लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करके उसे सारग्राही एवं रोचक भी बनाया है। सदियों से कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में ललद्यद की रचनाएँ जीवित हैं। विद्वान आधुनिक कश्मीरी भाषा के उद्भव एवं विकास का आधार-स्तंभ उनकी वाणी को मानते हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

वाख कविता का सार/काव्य-परिचय

वाख

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘वाख’ शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
ललद्यद की प्रस्तुत काव्य-रचना ‘वाख’ में मानव-जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला गया है। उनकी दृष्टि में मानव-जीवन कच्चे धागे के समान कमजोर है। वह कभी भी टूट सकता है। मानव-जीवन की दशा कच्चे सकोरे की भाँति है, जो पानी लगने से नष्ट हो जाता है। दूसरे पद में कवयित्री ने अंतःकरण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करने पर बल दिया है और जीवन में समभाव बनाए रखना आवश्यक बताया है। इसी से मानव-जीवन का कल्याण संभव है। तीसरे पद में कवयित्री ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए हठयोग जैसी भक्ति-पद्धति की अपेक्षा सहज एवं स्वाभाविक भक्ति-पद्धति पर बल दिया है। अंतिम पद में ललद्यद ने ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ईश्वर कण-कण में बसता है। उसकी दृष्टि में हिंदू और मुसलमान आदि का कोई भेदभाव नहीं है। सब ईश्वर की संतान हैं। आत्मज्ञान से ही हम स्वयं को और ईश्वर को पहचान सकते हैं। अतः स्पष्ट है कि भक्तिकालीन अन्य संत कवियों की भाँति ही ललद्यद का काव्य भी मानव-जीवन से जुड़ा हुआ है।

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