Class 12

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. ईसा के जन्म के समय विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 20 करोड़
(B) 30 करोड़
(C) 40 करोड़
(D) 80 लाख
उत्तर:
(B) 30 करोड़

2. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 1 अरब
(B) 1.4 अरब
(C) 1.6 अरब
(D) 2 अरब
उत्तर:
(C) 3.

3. इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 5 अरब
(B) 6. अरब
(C) 7 अरब
(D) 5.5 अरब
उत्तर:
(B) 6. अरब

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

4. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक विश्व की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी?
(A) दो गुना
(B) तीन गुना
(C) चार गुना
(D) पांच गुना
उत्तर:
(C) चार गुना

5. विश्व के दस सर्वाधिक आबाद देशों में विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(A) लगभग 20 प्रतिशत
(B) लगभग 50 प्रतिशत
(C) लगभग 60 प्रतिशत
(D) लगभग 90 प्रतिशत
उत्तर:
(C) लगभग 60 प्रतिशत

6. मानव बसाव के लिए अनुपयुक्त स्थान कौन-सा है?
(A) आर्द्र जलवायु प्रदेश
(B) लंबे वर्धनकाल वाले प्रदेश
(C) पर्वतीय तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश
(D) मैदानी प्रदेश
उत्तर:
(C) पर्वतीय तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश

7. प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाने वाली जनसंख्या को कहा जाता है-
(A) जनसंख्या वितरण
(B) जनगणना
(C) जनसंख्या घनत्व
(D) जनसंख्या विस्फोट
उत्तर:
(C) जनसंख्या घनत्व

8. निम्नलिखित में से उच्च जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र कौन-सा है?
(A) सहारा मरुस्थल
(B) अमेजन तथा जायरे बेसिन
(C) पूर्व एशिया
(D) पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया
उत्तर:
(C) पूर्व एशिया

9. अशोधित जन्म दर से तात्पर्य है-
(A) एक वर्ष में 1000 जनसंख्या के अनुपात में पैदा होने वाले व्यक्तियों की संख्या
(B) एक वर्ष में 1000 जनसंख्या के अनुपात में मरने वालों की संख्या
(C) एक वर्ष में एक स्थान पर आने वाले व्यक्तियों की संख्या
(D) एक वर्ष में बाहर जाने वाले व्यक्तियों की संख्या
उत्तर:
(C) एक वर्ष में एक स्थान पर आने वाले व्यक्तियों की संख्या

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

10. कुल जनसंख्या और कुल कृषि क्षेत्र के अनुपात को कहा जाता है
(A) अंकगणितीय घनत्व
(B) कायिक घनत्व
(C) जन घनत्व
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कायिक घनत्व

11. विश्व जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान दर क्या है?
(A) 1 प्रतिशत
(B) 1.8 प्रतिशत
(C) 1.2 प्रतिशत
(D) 2.1 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 1.2 प्रतिशत

12. विश्व का हर पाँचवां व्यक्ति है
(A) भारतीय
(B) चीनी
(C) रूसी
(D) अमेरिकी
उत्तर:
(B) चीनी

13. विश्व का हर छठा व्यक्ति है
(A) भारतीय
(B) चीनी
(C) रूसी
(D) अमेरिकी
उत्तर:
(A) भारतीय

14. किस महाद्वीप में ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि-दर पाई जाती है?
(A) अफ्रीका
(B) उत्तर अमेरिका
(C) यूरोप
(D) एशिया
उत्तर:
(C) यूरोप

15. निम्न जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र हैं-
(A) उष्ण आर्द्र अक्षांश
(B) शुष्क भूमि
(C) ठंडी भूमि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) ठंडी भूमि

16. पहली शताब्दी में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 20 करोड़
(B) 25 करोड़
(C) 15 करोड़
(D) 40 करोड़
उत्तर:
(B) 25 करोड़

17. विश्व में सबसे कम जनसंख्या वृद्धि-दर किस महाद्वीप में पाई जाती है?
(A) एशिया
(B) यूरोप
(C) उत्तरी अमेरिका
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(B) यूरोप

18. विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि-दर किस देश में है?
(A) भारत में
(B) चीन में
(C) नाइजीरिया में
(D) बांग्लादेश में
उत्तर:
(C) नाइजीरिया में

19. श्रीलंका की जनसंख्या को दो गुनी होने में कितना समय लगेगा?
(A) 25 वर्ष
(B) 36 वर्ष
(C) 46 वर्ष
(D) 58 वर्ष
उत्तर:
(C) 46 वर्ष

20. भारत में विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(A) 16.87 प्रतिशत
(B) 18.01 प्रतिशत
(C) 19.20 प्रतिशत
(D) 17.5 प्रतिशत
उत्तर:
(D) 17.5 प्रतिशत

21. नाइजीरिया में विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है?
(A) 1.84 प्रतिशत
(B) 2.09 प्रतिशत
(C) 2.13 प्रतिशत
(D) 2.43 प्रतिशत
उत्तर:
(D) 2.43 प्रतिशत

22. भारत की जनसंख्या को दो गुनी होने में कितने वर्ष लगेंगे?
(A) 25 वर्ष
(B) 30 वर्ष
(C) 36 वर्ष
(D) 46 वर्ष
उत्तर:
(C) 36 वर्ष

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
ईसा के जन्म के समय विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
30 करोड़।

प्रश्न 2.
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
1.6 अरब।

प्रश्न 3.
इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
लगभग 6 अरब से अधिक।

प्रश्न 4.
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ से इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक विश्व की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी?
उत्तर:
चार गुना।

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प्रश्न 5.
मानव बसाव के लिए अनुपयुक्त स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
पर्वतीय तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश।

प्रश्न 6.
प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाने वाली जनसंख्या को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 7.
कुल जनसंख्या और कुल कृषि क्षेत्र के अनुपात को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
कायिक घनत्व।

प्रश्न 8.
विश्व में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत कितना है? (वर्ष, 2001)
उत्तर:
48 प्रतिशत।

प्रश्न 9.
विश्व में उच्चतम जनसंख्या वृद्धि दर (2%+) वाले एक महाद्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर:
अफ्रीका।

प्रश्न 10.
विश्व में मध्यम जनसंख्या वृद्धि दर (1.1-1.9%) वाले एक महाद्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण अमेरिका।

प्रश्न 11.
विश्व में न्यूनतम जनसंख्या वृद्धि दर (0-1%) वाले एक महाद्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर:
यूरोप।

प्रश्न 12.
पहली शताब्दी में विश्व की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
लगभग 25 करोड़।

प्रश्न 13.
विश्व की जनसंख्या में प्रति वर्ष कितने लोग जुड़ रहे हैं?
उत्तर:
लगभग 8.2 करोड़।

प्रश्न 14.
विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या का संकेंद्रण कहाँ पर होता है?
उत्तर:
मैदानी क्षेत्रों पर।

प्रश्न 15.
विश्व में जनसंख्या वितरण का प्रारूप कैसा है?
उत्तर:
असमान।

प्रश्न 16.
किन्हीं दो प्रतिकर्ष कारकों के नाम लिखिए जो लोगों को उनके रहने के मूल स्थान से प्रवास करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदा
  2. सामाजिक तनाव।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या घनत्व क्या है?
उत्तर:
किसी स्थान में प्रति वर्ग कि०मी० में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या जनसंख्या घनत्व कहलाती है।

प्रश्न 2.
अशोधित जन्म-दर क्या हैं?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष हजार व्यक्तियों में जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को अशोधित जन्म-दर कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अशोधित मृत्यु-दर क्या हैं?
उत्तर:
एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को अशोधित मृत्यु-दर कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
प्रजननशीलता के चार निर्धारक तत्त्व कौन-से है?
उत्तर:

  1. जैव कारक
  2. जनांकिकीय कारक
  3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक
  4. आर्थिक कारक।

प्रश्न 5.
उद्गम स्थान किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब लोग एक-स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो वह स्थान जहाँ से लोग गमन करते हैं, उद्गम स्थान कहलाता है।

प्रश्न 6.
गंतव्य स्थान किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस स्थान पर लोग आगमन करते हैं वह गंतव्य स्थान कहलाता है।

प्रश्न 7.
विश्व के उच्च जनसंख्या घनत्व वाले दो क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. पश्चिमी यूरोप
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के पूर्वी भाग।

प्रश्न 8.
जनसंख्या वृद्धि किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष में लोगों की संख्या में, एक निश्चित समय के भीतर होने वाले परिवर्तन वृद्धि को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 9.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारक बताएँ।
उत्तर:
धरातलीय स्वरूप, जलवायु, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति।

प्रश्न 10.
जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि कब होती है?
उत्तर:
जब जन्म-दर, मृत्यु-दर से कम हो या लोग विदेशों में जाकर बस जाते हैं तो जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि होती है।

प्रश्न 11.
अशोधित मृत्यु-दर की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
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प्रश्न 12.
जनसंख्या स्थानान्तरण क्या है?
उत्तर:
जनसंख्या के एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवसन होने को स्थानान्तरण कहते हैं। जन्म-दर तथा मृत्यु-दर की भाँति स्थानान्तरण भी जनसंख्या परिवर्तनशीलता का मुख्य निर्धारक है। स्थानान्तरण से किसी क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ती या कम होती है।

प्रश्न 13.
जनांकिकीय संक्रमण क्या है?
उत्तर:
मनुष्य के साथ जनसंख्या से होने वाले कृत्रिम परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं। यह जनसंख्या के विकास की अवस्था है। जनसंख्या के इस विकास चक्र में सामान्यतया पाँच अवस्थाएँ होती हैं। इन अवस्थाओं को जनसंख्या चक्र भी कहते हैं।

प्रश्न 14.
मानसून एशिया में सघन जनसंख्या पाए जाने के कारण बताइए।
उत्तर:
मानसून एशिया में नदी-घाटियों, उपजाऊ मैदानों, अनुकूल जलवायु व लम्बे वर्धनकाल के कारण कृषि अधिक होती है; जैसे यहाँ पर चावल की तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं। नगरीकरण तथा औद्योगिकीकरण से यहाँ पर सघन जनसंख्या पाई जाती है।

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प्रश्न 15.
विश्व में उच्च अथवा सघन जनसंख्या वाले मुख्य क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है, वे क्षेत्र उच्च घनत्व वाले क्षेत्र अथवा प्रदेश कहलाते हैं; जैसे-

  1. मानसून एशिया
  2. पश्चिमी यूरोप
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के पूर्वी भाग।

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प्रश्न 16.
उत्प्रवास किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्प्रवास के द्वारा मनुष्य अपने प्रदेश से दूसरे स्थान को जाते हैं; जैसे यूरोप के मनुष्य उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया आदि गए। जिन प्रदेशों में कोई भौतिक प्रकार का कष्ट; जैसे जलवायु, बाढ़, सूखा अथवा जीवन निर्वाह की अन्य कठिनाइयाँ अथवा सामाजिक या आर्थिक कठिनाई उत्पन्न होती हों, उन स्थानों से मनुष्य बाहर की ओर स्थानान्तरण करने लगते हैं।

प्रश्न 17.
जन्म-दर और जनसंख्या की वृद्धि दर में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
जन्म-दर और जनसंख्या की वृद्धि दर में निम्नलिखित अंतर हैं-

जन्म-दरजनसंख्या वृद्धि दर
1. किसी देश में एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों पर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या जन्म-दर कहलाती है।1. दो समयावधियों के बीच होने वाले जनसंख्या परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि दर कहा जाता है।
2. यह दर प्रति हजार व्यक्ति होती है।2. यह दर प्रतिशत में होती है।

प्रश्न 18.
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि तथा वास्तविक वृद्धि में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि तथा वास्तविक वृद्धि में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्राकृतिक वृद्धिवास्तबिक वृद्धि
दो समय बिंदुओं के बीच प्राकृतिक तौर पर होने वाले जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि कहते हैं।वास्तविक वृद्धि में जन्म-दर व मृत्यु-दर के साथ-साथ प्रवास व आप्रवास की भी गणना की जाती है।

प्रश्न 19.
जनसंख्या की प्राकृतिक तथा प्रवासी वृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर:
जनसंख्या की प्राकृतिक तथा प्रवासी वृद्धि में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्राकृतिक वृद्धिप्रवासी वृद्धि
1. जन्म-दर में से मृत्यु-दर घटाने से प्राकृतिक वृद्धि प्राप्त होती है।1. जब किसी देश से लोग आकर बस जाएँ तो यह प्रवासी वृद्धि होती है.।
2. इसका देश की कुल जनसंख्या पर प्रभाव पड़ता है।2. इसका देश की कुल जनसंख्या पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 20.
प्रवास एवं दिक् परिवर्तन में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रवास एवं दिक् परिवर्तन में निम्नलिखित अंतर हैं-

प्रवासदिक् परिवर्तन
1. जनसंख्या के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर बसने को प्रवास कहते हैं।1. किसी नगर तथा उसके पृष्ठ प्रदेश में स्थित गांवों के लोगों का स्थानांतरण दिक परिवर्तन कहलाता है।
2. यह स्थायी होता है।2. यह अस्थायी होता है।

प्रश्न 21.
अंतःराज्यीय प्रवास तथा अंतर्राज्यीय प्रवास में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
अंतःराज्यीय प्रवास तथा अंतर्राज्यीय प्रवास में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतःराज्यीय प्रवासअंतर्राज्यीय प्रवास
1. अपने ही राज्य में व्यक्तियों के स्थानांतरण को अंतःराज्यीय प्रवास कहते हैं।1. एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यक्तियों के स्थानांतरण को अंतर्राज्यीय प्रवास कहते हैं।
2. यह स्थानांतरण अधिक होता है।2. यह अपेक्षाकृत कम होता है।

प्रश्न 22.
उत्प्रवास तथा आप्रवास में क्या अंतर है?
उत्तर:
उत्प्रवास तथा आप्रवास में निम्नलिखित अंतर हैं-

उत्प्रवासआप्रवास
1. जब किसी प्रदेश के निवासी दूसरे प्रदेश में जाते हैं तो उसे उत्प्रवास कहते हैं।1. जब दूसरे प्रदेशों के निवासी किसी प्रदेश में आकर निवास करते हैं तो उसे आप्रवास कहते हैं।
2. इससे मूल प्रदेश की जनसंख्या घटती है।2. इससे किसी प्रदेश की जनसंख्या में वृद्धि होती है।
3. अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों से उत्प्रवास होता है।3. कम जनसंख्या के क्षेत्रों की ओर आप्रवास होता है।

प्रश्न 23.
विश्व के विरल जनसंख्या वाले तथा जन विहीन प्रदेशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. उष्ण मरुस्थल-सहारा, कालाहारी, अटाकामा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, अरब तथा थार।
  2. अति शीत क्षेत्र-कनाडा, साइबेरिया का उत्तरी भाग, ग्रीनलैंड तथा अंटार्कटिक महाद्वीप।
  3. ठंडे मरुस्थल व उच्च पर्वतीय प्रदेश मध्य एशिया, गोबी मरुस्थल, राकीज, एंडीज व हिमालय पर्वत।
  4. विषुवत् रेखीय क्षेत्र-अमेजन तथा जायरे बेसिन।

प्रश्न 24.
प्रवास को प्रभावित करने वाले अपकर्ष व प्रतिकर्ष कारक क्या हैं?
उत्तर:
अपकर्ष कारक-नगरीय सुविधाओं तथा आर्थिक परिस्थितियों के कारण जब. लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं तो इसे अपकर्ष कारक (Pull Factors) कहा जाता है। अपकर्ष कारक के कारण लोग गन्तव्य स्थान को आकर्षक बनाते हैं।

प्रतिकर्ष कारक-जब लोग जीविका के साधन उपलब्ध न होने के कारण गरीबी तथा बेरोज़गारी के कारण नगरों की ओर प्रवास करते हैं तो इसे प्रतिकर्ष कारक (Push Factors) कहा जाता है। प्रतिकर्ष कारक के कारण लोग अपने उद्गम स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रवास क्या होता है? अस्थायी प्रवास के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या का एक निवास स्थल से दूसरे निवास स्थल तक किसी भी कारणवश संचलन या गतिशीलता प्रवास कहलाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के अनुसार, “प्रवास आवास परिवर्तन युक्त जनसंख्या की गतिशीलता को इंगित करता है।”

स्थानांतरण विभिन्न प्रकार का होता है। प्रवास को दूरी, अवधि, मात्रा, दिशा आदि के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रवास स्थायी और अस्थायी भी हो सकता है।
अस्थायी प्रवास के विभिन्न रूप-अस्थायी प्रवास को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। कुछ महत्त्वपूर्ण अस्थायी प्रवास निम्नलिखित हैं-
1. दैनिक प्रवास-नगरों में विविध प्रकार की सुविधाओं के उपलब्ध होने के कारण लोग प्रायः प्रतिदिन गांवों से नगरों में आते हैं और सायंकाल लौट जाते हैं। यदि व्यक्ति एक सप्ताह तक नगर में रुककर वापस लौट आता है तो इसे दैनिक या साप्ताहिक प्रवास कहते हैं।

2. मौसमी प्रवास-शीत ऋतु में पर्वतीय लोग सर्दी से बचने के लिए घाटियों में आ जाते हैं। इसी प्रकार गन्ने की पेराई के काल में मजदूर चीनी मिलों में काम करते हैं और पेराई बंद होने पर घरों में वापस चले जाते हैं। यह प्रवास मौसमी होता है। टुंड्रा, टैगा व स्टैप्स प्रदेश के निवासी मौसमी प्रवास करते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए (क) विश्व जनसंख्या की दुगुना होने की अवधि, (ख) जनांकिकीय संक्रमण।।
उत्तर:
(क) विश्व जनसंख्या की दुगुना होने की अवधि किसी भी देश की जनसंख्या के दुगुना होने की अवधि का संबंध जनसंख्या की प्रति वर्ष प्रतिशत वृद्धि दर से है। वृद्धि दर जितनी कम होगी जनसंख्या के दुगुना होने का समय उतना ही अधिक होगा। इसके विपरीत यदि वृद्धि दर अधिक है तो जनसंख्या के दुगुना होने में कम समय लगेगा। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 2
विकसित देशों में जनसंख्या के दुगुना होने का समय अधिक है जबकि विकासशील देशों की जनसंख्या के दुगुना होने का समय अपेक्षाकृत बहुत कम है।

(ख) जनांकिकीय संक्रमण जनसंख्या का विकास कुछ क्रमिक अवस्थाओं में होता है। जैसे-जैसे किसी देश का आर्थिक विकास होता जाता है उसमें जनसंख्या परिवर्तन भी होते रहते हैं। आर्थिक विकास की अवस्था में स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार से पहले मृत्यु-दर में कमी आती है। तत्पश्चात् जन्म-दर भी घटनी प्रारंभ हो जाती है जिसके फलस्वरूप जनसंख्या वृद्धि दर कम हो जाती है। इस प्रकार की कमी पहले मृत्यु-दर में जिसके कारण वृद्धि दरें बढ़ीं। फिर जन्म-दरों में जिससे जन्म-दरें और मृत्यु-दरें लगभग बराबर हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप बहुत कम या शून्य वृद्धि दर हुई। इस स्थिति को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं।

प्रश्न 3.
जनसंख्या परिवर्तन तथा आर्थिक विकास में क्या सम्बन्ध है? व्याख्या कीजिए। अथवा “विकास सबसे उत्तम गर्भ निरोधक है।” वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व जनसंख्या का विकास बढ़ती हुई जनसंख्या के विकास दर का प्रतिपादक है। विकसित देशों में पहले मृत्यु-दर में कमी हुई। फिर जन्म-दर में भी कमी हुई जिससे जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी आई। यह प्रक्रिया जनसंख्या परिवर्तन कहलाती है। जनसंख्या के बढ़ने के साथ उनकी माँगें और आवश्यकताएँ भी बढ़ जाती हैं। जनसंख्या बढ़ने से राष्ट्रीय आय बढ़ जाती है। राष्ट्रीय आय के घटने-बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय और उसी के अनुरूप जीवन स्तर घटता-बढ़ता है।

कम आय से वस्तुओं की माँग पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जिससे विकास अवरुद्ध हो जाता है। यदि जनसंख्या इष्टतम (Optimum) है तो संसाधनों का उचित उपयोग होगा और जीवन स्तर बढ़ेगा। विकासशील देशों की बढ़ती जनसंख्या के कारण आज वे गरीबी, कुपोषण और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। आर्थिक विकास के साथ जनसंख्या की वृद्धि कम होती चली जाती है। इसलिए कहा गया है कि विकास सबसे उत्तम गर्भ निरोधक है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 4.
जनसंख्या के अंकगणितीय घनत्व और कायिक घनत्व में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जनसंख्या के अंकगणितीय घनत्व और कायिक घनत्व में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंकगणितीय घनत्वकायिक घनत्व
1. किसी देश की कुल जनसंख्या तथा कुल क्षेत्रफल के अनुपात को अंकगणितीय घनत्व कहते हैं।1. किसी देश की कुल जनसंख्या तथा कुल कृषि-भूमि के अनुपात को कायिक घनत्व कहते हैं।
2. बेशक भूगोलवेत्ता इसका प्रयोग करते हैं, फिर भी इस ढंग की अपनी त्रुटि है- ऋणात्मक क्षेत्र भी इस ढंग में धनात्मक दर्शाए जाते हैं।2. इस ढंग में कृषि अयोग्य भूमि को कुल भूमि में से घटा देते हैं। अतः इस ढंग द्वारा कृषि भूमि पर जन-दबाव का ठीक अनुमान लगता है।
3. इस ढंग से लोगों की संपन्नता का कोई पता नहीं लगता।3. इस ढंग से लोगों क् संपन्नता का कुछ अनुमान लगाया जा सकता है।

प्रश्न 5.
ईसा से 8000 वर्ष पूर्व से वर्तमान तक विश्व की जनसंख्या किस प्रकार बढ़ी है?
उत्तर:
ईसा से 8000 वर्ष पूर्व विश्व की जनसंख्या लगभग 0.8 करोड़ थी। लगभग 2000 वर्ष पूर्व ईसा मसीह के समय में जनसंख्या 30 करोड़ के लगभग थी। वर्ष 1830 तक यह 100 करोड़ तक पहुँच गई और तब से यह बहुत तेजी से बढ़ती आ रही है जो लगभग 160 वर्षों में 700 करोड़ से भी अधिक हो गई है। निम्नलिखित तालिका में विश्व की जनसंख्या वृद्धि को दर्शाया गया है
तालिका : विश्व की जनसंख्या में वृद्धि

इन वर्षों के दौरानविश्व जनसंख्याइस संख्या तक पहुँचने के लिए लिया गया समय
आदिमानव से ईसा30 करोड़संपूर्ण मानव इतिहास के दौरान
0-1500 ई०50 करोड़1500 वर्ष
1500-1850 ई०100 करोड़350 वर्ष
1850-1930 ई०200 करोड़100 वर्ष
1930-1960 ईం300 करोड़30 वर्ष
1960-1974 ई400 करोड़14 वर्ष
1974-1987 ई०500 करोड़13 वर्ष
1987-1999 ई०600 करोड़ से अधिक12 वर्ष
1999-2011 ई०लगभग 700 करोड़12. वर्ष

प्रश्न 6.
विश्व के अधिक घनत्व वाले प्रदेश कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
वे क्षेत्र जहाँ जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है। इनके प्रमुख क्षेत्र हैं-

  • पूर्वी एशिया तथा दक्षिणी एशिया।
  • पश्चिमी यूरोप तथा उत्तर पूर्वी अमेरिका।

कारण-

  • ऊष्ण आर्द्र व समशीतोष्ण जलवायु जनसंख्या को आकर्षित करती है।
  • नदी घाटियों की उपजाऊ मिट्टी, जल-सिंचाई, समतल भूमि और चावल का अधिक उत्पादन, अधिक घनत्व में सहायक हैं।
  • निर्माण उद्योगों का अधिक होना तथा समुद्री मार्गों के कारण व्यापार का अधिक उन्नत होना भी जनसंख्या के उच्च घनत्व का कारण है।
  • मिश्रित कृषि का विकास, नगरीकरण के कारण बड़े-बड़े नगरों का विकास जनसंख्या को आकर्षित करता है।
  • वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान में अधिक वृद्धि जनसंख्या के उच्च घनत्व का प्रमुख कारक है।

प्रश्न 7.
विश्व के मध्यम घनत्व वाले प्रदेश कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
वे क्षेत्र जहाँ 25 से 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० तक घनत्व मिलता है। इसमें निम्नलिखित क्षेत्र हैं

  • उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज का मध्य मैदान
  • अफ्रीका का पश्चिमी भाग
  • पूर्वी यूरोप और पूर्वी रूस
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलिया
  • दक्षिणी अमेरिका में उत्तर:पूर्वी ब्राजील, मध्य चिली, मैक्सिको का पठार।

कारण –

  • विस्तृत खेती-बाड़ी में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है।
  • पर्वतीय व पठारी क्षेत्र के कारण जनसंख्या कम है।

प्रश्न 8.
विश्व में जनसंख्या का घनत्व असमान क्यों है?
उत्तर:
विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देशों में विश्व की 60% से अधिक जनसंख्या रहती है और यह जनसंख्या विश्व के कुल क्षेत्रफल के लगभग 20% भाग पर रहती है। विश्व की 40% से भी कम जनसंख्या विश्व के लगभग 80% क्षेत्रफल पर निवास करती है। इस कारण विश्व में जनसंख्या का घनत्व असमान है। जनसंख्या की विशालता और इसके अत्याधिक ग्रामीण स्वरूप के अतिरिक्त नृ-जातीय विविधता, तीव्र वृद्धि दर और जनसंख्या का असमान वितरण अन्य पक्ष हैं जो देश की सामाजिक, आर्थिक विकास की प्रक्रिया और गति को धीमा कर रहे हैं।

प्रश्न 9.
विश्व में जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले राजनीतिक कारक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक कारक भी कुछ सीमा तक जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। सरकार की जनसंख्या नीति मानव के बसाव को अनुकूल तथा प्रतिकूल बना सकती है। रूस सरकार साइबेरिया में जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करके उनको पारितोषिक देती है। फ्रांस में जनसंख्या वृद्धि के लिए करों में रियायतें दी जाती हैं, जबकि चीन व भारत में जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति है। चीन में एक बच्चा होने के बाद सरकार ने दूसरे बच्चे के जन्म देने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। भारत में भी जनसंख्या को नियन्त्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन पिछले एक दशक से चीन की जनसंख्या में वृद्धि-दर निरन्तर अधिक है। वह दिन निकट ही है जब भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक हो जाएगी।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 10.
प्रवास कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
प्रवास मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

  • उत्प्रवास
  • अप्रवास।

1. उत्प्रवास (Emigration) – उत्प्रवास के द्वारा मनुष्य अपने प्रदेश से दूसरे स्थान को जाते हैं। जैसे यूरोप के मनुष्य उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया आदि गए। जिन प्रदेशों में कोई भौतिक प्रकार का कष्ट; जैसे जलवायु, बाढ़, सूखा अथवा जीवन निर्वाह की अन्य कठिनाइयाँ अथवा सामाजिक या आर्थिक कठिनाई उत्पन्न होती हों, उन स्थानों से मनुष्य बाहर की ओर स्थानान्तरण करने लगते हैं।

2. अप्रवास (Immigration)-अप्रवास के द्वारा बाहरी स्थानों से मनुष्य किसी प्रदेश या स्थान के अन्दर आते हैं। उदाहरण उत्तरी अमेरिका में ब्रिटेन, इटली, फ्रांस आदि देशों से मनुष्यों का प्रवास होता है। जिन देशों में जीविका निर्वाह की सुविधाएँ प्रचुर मात्रा में होती हैं, वे बाहर से मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कभी-कभी आर्थिक या सामाजिक आवश्यकताओं के कारण भी बाहरी क्षेत्रों से प्रवास होता है।

प्रश्न 11.
जनसंख्या की वृद्धि-दर की प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
विश्व में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या की वृद्धि-दर की प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक वृद्धि-दर (Natural Growth Rate) – दो समय बिन्दुओं में जन्म-दर और मृत्यु-दर में अन्तर से बढ़ने वाली जनसंख्या को उस क्षेत्र की प्राकृतिक वृद्धि-दर कहते हैं अर्थात् प्राकृतिक वृद्धि-दर = जन्म-दर – मृत्यु-दर।

2. वास्तविक वृद्धि-दर (Real Growth Rate) – इसमें जनसंख्या की जन्म-दर व मृत्यु-दर के साथ-साथ आप्रवास व अप्रवास की भी गणना की जाती है अर्थात् वास्तविक वृद्धि-दर = जन्म-दर – मृत्यु-दर + आप्रवासी – उत्प्रवासी।

3. धनात्मक वृद्धि-दर (Positive Growth Rate) – धनात्मक वृद्धि-दर तब होती है जब दो समय बिन्दुओं के बीच जन्म-दर, मृत्यु-दर से अधिक हो या अन्य देशों के लोग स्थायी रूप से उस देश में प्रवास कर जाएँ।

4. ऋणात्मक वृद्धि-दर (Negative Growth Rate) – यदि दो समय बिन्दुओं के बीच जनसंख्या कम हो जाए तो उसे ऋणात्मक वृद्धि-दर कहते हैं। यह तब होती है जब जन्म-दर मृत्यु-दर से कम हो जाए या लोग अन्य देशों में प्रवास कर जाएँ।

प्रश्न 12.
विश्व में न्यून (विरल) जनसंख्या वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जिन क्षेत्रों में 1 से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर रहते हैं, उन्हें विरल जनसंख्या वाले प्रदेश कहते हैं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित प्रदेश सम्मिलित हैं-
1. उष्ण मरुस्थल-सहारा, कालाहारी, अटाकामा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, अरब, थार तथा सोनोरैन मरुस्थल । इन क्षेत्रों में न्यून . वर्षा के कारण जल की कमी है और जनसंख्या विरल है।

2. अति-शीत क्षेत्र-ये ध्रुवीय क्षेत्र हैं, जिनमें कनाडा का उत्तरी भाग, ग्रीनलैंड, साइबेरिया का उत्तरी भाग तथा दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर फैला हुआ अंटार्कटिक महाद्वीप सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में तापमान कम है तथा फसलों के लिए वर्धनकाल छोटा है। अंटार्कटिक महाद्वीप तो बिल्कुल ही जनविहीन है।

3. विषुवत् रेखीय क्षेत्र इसमें दक्षिणी अमेरिका का अमेजन बेसिन तथा अफ्रीका का जायरे बेसिन सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा तथा तापमान दोनों ही अधिक हैं, जिससे घने वन उगते हैं, जिन्हें पार करना कठिन है। यह जलवायु मरुस्थल के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।

प्रश्न 13.
विकसित तथा विकासशील देशों की जनांकिकीय प्रवृत्तियों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकसित और विकासशील देशों की जनांकिकीय प्रवृत्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं-

अभिलक्षणविकसित देशविकासशील देश
(1) वृद्धि दरनिम्न (0.6 प्रतिशत)उच्च (2.1 प्रतिशत)
(2) द्विगुणन अवधिउच्च (116 वर्ष)निम्न (35 वर्ष)
(3) शिशु मृत्यु-दरनिम्न (5-25)उच्च (50 – 100)
(4) साक्षरताउच्च 95 प्रतिशतनिम्न 35-75 प्रतिशत
(5) औद्योगीकरणउच्चनिम्न
(6) मुख्य जनसंख्यानगरीय 75 प्रतिशतग्रामीण 54 प्रतिशत
(7) जीवन स्तरउच्चनिम्न

प्रश्न 14.
जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या वितरण में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या वितरण में निम्नलिखित अंतर हैं-

जनसंख्या घनत्वजनसंख्या वितरण
1. किसी स्थान में प्रति वर्ग कि०मी० में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या है।1. किसी स्थान की कुल जनसंख्या ही वहाँ का वितरण है।
2. जनसंख्या घनत्व एक अनुपात है।2. जनसंख्या वितरण की प्रकृति स्थितिगत है।
3. जनसंख्या वितरण को उसके घनत्व द्वारा अधिक सुचारु ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।3. जनसंख्या वितरण का प्रारूप क्षेत्रीय होता है।
4. घनत्व को प्रति वर्ग कि०मी० में व्यक्त करते हैं; जैसे भारत की जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है।4. वितरण को व्यक्त करने के लिए कोई इकाई नहीं है।

प्रश्न 15.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक कारक-किसी भी देश अथवा प्रदेश की जनसंख्या के वितरण को निम्नलिखित भौतिक कारक प्रभावित करते हैं-
1. धरातल-जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने में धरातल की विभिन्नता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊबड़-खाबड़ तथा ऊँचे पर्वतीय प्रदेशों में जनसंख्या कम आकर्षित होती है। इन प्रदेशों में जनसंख्या विरल पाई जाती है, क्योंकि यहाँ पर मानव निवास की अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध नहीं होती, कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का अभाव होता है, यातायात के साधनों का विकास आसानी से नहीं हो पाता, कृषि फसलों के लिए वर्धनकाल (Growing Period) छोटा होता है तथा जलवायु कठोर होती है।

2. जलवायु अनुकूल तथा आरामदेय जलवायु में कृषि, उद्योग तथा परिवहन एवं व्यापार का विकास अधिक आसानी से होता है। विश्व में मध्य अक्षांश का क्षेत्र (शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र) जलवायु की दृष्टि से अनुकूल है। इसलिए विश्व की अधिकांश जनसंख्या इन्हीं प्रदेशों में निवास करती है। इसके विपरीत अत्यधिक शीत प्रदेशों में जनसंख्या विरल पाई जाती है। इसी प्रकार शुष्क मरुस्थली प्रदेशों की जलवायु ग्रीष्म ऋतु में झुलसाने वाली तथा शीत ऋतु में ठिठुराने वाली होती है। यही कारण है कि विश्व के मरुस्थलों; जैसे सहारा, थार, कालाहारी, अटाकामा तथा अरब के मरुस्थलों में जनसंख्या विरल है।

3. मृदा मनुष्य की पहली आवश्यकता है भोजन। भोजन हमें मिट्टी से मिलता है। मिट्टी में ही विभिन्न कृषि उपजें पैदा होती विश्व के जिन क्षेत्रों में उपजाऊ मिट्टी है, वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है। भारत में गंगा-सतलुज के मैदान, संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसीसिपी के मैदान, पाकिस्तान में सिन्धु के मैदान, मिस्र में नील नदी के मैदान आदि में उपजाऊ मिट्टी की परतें हैं, जिससे अधिक लोग वहाँ आकर बस गए हैं।

4. वनस्पति-वनस्पति भी जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है। उदाहरणार्थ, भूमध्य-रेखीय क्षेत्रों में सघन वनस्पति (सदाबहारी वनों) के कारण यातायात के साधनों का विकास कम हुआ है। आर्द्र जलवायु के कारण मानव-जीवन अनेक रोगों से ग्रसित रहता है, इसलिए यहाँ की जनसंख्या विरल है। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वनस्पति आर्थिक उपयोग वाली होती है, वहाँ मानव लकड़ी से सम्बन्धित अनेक व्यवसाय आरम्भ हो जाते हैं; जैसे टैगा के वनों का आर्थिक महत्त्व है इसलिए वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है। वनस्पति विहीन क्षेत्रों (मरुस्थलों) में भी जनसंख्या विरल है।

5. खनिज सम्पदा-जिन क्षेत्रों में खनिज पदार्थों के भण्डार मिलते हैं, वहाँ खनन व्यवसाय तथा उद्योगों की स्थापना के कारण बेत होती है। ब्रिटेन में पेनाइन क्षेत्र, जर्मनी में रूर क्षेत्र, संयुक्त राज्य अमेरिका में आप्लेशियन क्षेत्र, रूस के डोलेत्स बेसिन तथा भारत के छोटा नागपुर के पठार में जनसंख्या का केन्द्रीयकरण वहाँ की खनिज सम्पदा की ही देन है।

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प्रश्न 16.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले मानवीय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले मानवीय कारक निम्नलिखित हैं-
1. कृषि विश्व में जो क्षेत्र कृषि की दृष्टि से अनुकूल हैं, वहाँ जनसंख्या का अधिक आकर्षण होता है। वहाँ लोग प्राचीन समय से ही अधिक संख्या में निवास करते आ रहे हैं। प्रेयरीज तथा स्टेपीज प्रदेश कृषि के लिए उपयुक्त हैं, इसलिए वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

2. नगरीकरण-बीसवीं शताब्दी में नगरीकरण की प्रवृत्ति के कारण नगरों की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। नगरों में रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, व्यापार आदि की अधिक सुविधाएँ सुलभ हैं इसलिए जनसंख्या का जमघट नगरों में अधिक देखने को मिलता है। न्यूयॉर्क, लन्दन, मास्को, बीजिंग, शंघाई, सिडनी, दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई आदि नगरों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है।

3. औद्योगिकीकरण-जिन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास तीव्र हुआ है, वहाँ जनसंख्या का आकर्षण बढ़ा है। जापान, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका का उत्तर:पूर्वी भाग, जर्मनी का रूर क्षेत्र, यूरोपीय देशों तथा भारत में पिछले दो दशकों से दिल्ली, मुम्बई तथा हुगली क्षेत्र में औद्योगिक विकास के कारण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है।

4. परिवहन-परिवहन की सुविधाओं का भी जनसंख्या के वितरण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जिन क्षेत्रों में यातायात की अधिक सुविधाएँ हैं, वहाँ जनसंख्या का अधिक आकर्षण होता है। महासागरीय यातायात के विकास के कारण कई बन्दरगाह विश्व के बड़े नगर बन चुके हैं। सिंगापुर, शंघाई, सिडनी, न्यूयॉर्क आदि नगर बन्दरगाहों के रूप में विकसित हुए थे, लेकिन आज इन नगरों में रेल, सड़क तथा वायु यातायात की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या घनत्व क्या है? विश्व में जनसंख्या घनत्व के वितरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्व में न्यून या विरल जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्व में सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संसार के सघन और विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किसी भी प्रदेश की जनसंख्या और उस प्रदेश की भूमि के क्षेत्रफल के पारस्परिक अनुपात को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं। इससे किसी प्रदेश के लोगों की सघनता का पता चलता है। यह जनसंख्या के विश्लेषणात्मक अध्ययन करने का महत्त्वपूर्ण माप है। इसे प्रति इकाई क्षेत्रफल पर व्यक्तियों की संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। घनत्व इस प्रदेश की उन्नति और भावी विकास का अनुमान लगाने का मुख्य आधार होता है। इसका मुख्य लक्ष्य किसी क्षेत्र के संसाधनों पर जनसंख्या दबाव ज्ञात करना होता है। इसे निम्नलिखित रूपों में परिभाषित किया जाता है
1. गणितीय घनत्व (Arithmetic Density) किसी देश अथवा प्रदेश की कुल जनसंख्या तथा उसके कुल क्षेत्रफल के अनुपात को वहाँ की जनसंख्या का गणितीय घनत्व कहा जाता है। यह जनसंख्या तथा क्षेत्रफल के बीच एक साधारण अनुपात है। इसे निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाता है
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उदाहरण के लिए, जनसंख्या 376.80 करोड़ व क्षेत्रफल 440 लाख वर्ग कि०मी० है, तो जनसंख्या का घनत्व निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है
गणितीय घनत्व = \(\frac { 37680 }{ 440 }\)
= 85.64 या 86 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
यह जनसंख्या घनत्व का सबसे सरल रूप है, परन्तु इसमें कई त्रुटियाँ हैं। जैसे इससे जनसंख्या निवास तथा जीवन-स्तर का सही अनुमान नहीं लग पाता। लेकिन उपरोक्त त्रुटियों के बावजूद यह विभिन्न देशों की जनसंख्या विशेषताओं की तुलना करने की एक अच्छी विधि है।

2. कायिक घनत्व (Physiological Density)-इसे प्रति वर्ग किलोमीटर कृषि भूमि (Cultivated Land) पर कुल निवास करने वाली जनसंख्या के अनुपात में व्यक्त किया जाता है। किसी देश या प्रदेश की कुल जनसंख्या वहाँ की कुल कृषि भूमि (Cultivated Land) के अनुपात को कायिक घनत्व कहते हैं। इसे निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाता है-
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उदाहरण के लिए, यदि कुल कृषि भूमि 14.26 लाख वर्ग कि०मी० व जनसंख्या 10270 लाख है तो जनसंख्या का कायिक घनत्व निम्नलिखित प्रकार से होगा
कायिक घनत्व = \(\frac { 10270 }{ 14.26 }\) = 720 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
कायिक घनत्व द्वारा यह पता चलता है कि कृषि भूमि के प्रति वर्ग कि०मी० पर कितने व्यक्ति निर्भर हैं। कृषि प्रधान विकासशील देशों के लिए इस घनत्व का विशेष महत्त्व है।

3. आर्थिक घनत्व (Economic Density) इससे उस देश या प्रदेश के साधनों की उत्पादन क्षमता (Productive Capacity) तथा उस प्रदेश में निवास करने वाली जनसंख्या के अनुपात को लिया जाता है।
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4. कृषि घनत्व (Agriculture Density) इसमें उस देश या प्रदेश की कृषि की जाने वाली भूमि के क्षेत्रफल (Cultivated Area) तथा उसमें निवास करने वाली कृषक जनसंख्या (Agricultural Population) के अनुपात को लिया जाता है।
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5. पोषण घनत्व (Nutrition Density)-इसमें खेती की भोज्य फसलों (Food Crops) का क्षेत्रफल तथा उस प्रदेश की कुल जनसंख्या (Total Population) को लिया जाता है।
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जनसंख्या का विश्व वितरण-विश्व की जनसंख्या के वितरण पर यदि नजर डालें तो इसके आँकड़े चौंकाने वाले हैं। जनसंख्या का वितरण अत्यधिक असमान एवं विषम है। विश्व की लगभग 90 प्रतिशत आबादी केवल एक चौथाई भू-भाग पर निवास करती है और शेष 10 प्रतिशत जनसंख्या तीन-चौथाई क्षेत्रफल घेरे हुए है। सन् 2001 में विश्व की अनुमानित जनसंख्या 605 करोड़ थी, जोकि सन् 2011 में बढ़कर 693 करोड़ से अधिक हो चुकी है। उत्तरी गोलार्द्ध में विश्व की 90% जनसंख्या रहती है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 10% से भी कम जनसंख्या रहती है। विश्व का लगभग 33% भाग जनविहीन है।

जनसंख्या के वितरण के आधार पर विश्व को तीन प्रदेशों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. विरल जनसंख्या अथवा निम्न घनत्व वाले क्षेत्र-विश्व में कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ जनसंख्या का घनत्व 1 से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। ऐसे क्षेत्रों को विरल जनसंख्या के क्षेत्र कहते हैं। विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में कुल विश्व के क्षेत्रफल का तीन-चौथाई भाग आता है। इस प्रकार के प्रदेश निम्नलिखित हैं-
(1) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र-उष्ण मरुस्थलीय भू-भाग अधिकांश महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में स्थित हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व 1 व्यक्ति से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। ऐसे क्षेत्रों में वर्षा की न्यूनता तथा जल का अभाव है। यहाँ वर्षा के अभाव में केवल काँटेदार झाड़ियाँ ही उगती हैं। इन क्षेत्रों में कृषि बहुत कम होती है। यहाँ निवास करने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय भेड़-बकरी तथा ऊँट पालना है। इस प्रकार के मरुस्थलों में सहारा, कालाहारी, अटाकामा, थार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा अरब का मरुस्थल प्रमुख हैं।

(2) अति-शीत प्रदेश-इन प्रदेशों में ध्रुवीय प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ की जलवायु अत्यन्त शीतल होती है और हर समय अधिकतर बर्फ जमी रहती है। यहाँ वर्धनकाल इतना छोटा होता है कि कोई भी फसल उगाना कठिन है। इस प्रकार के प्रदेशों में लोगों का मुख्य व्यवसाय आखेट करना तथा मछली पकड़ना है। इनमें ग्रीनलैण्ड, साइबेरिया का उत्तरी भाग, कनाडा का उत्तरी भाग, अलास्का तथा दक्षिणी ध्रुव का अंटार्कटिक महाद्वीप निर्जन हैं। ऐसे क्षेत्रों में 10 महीने तापमान हिमांक बिन्दु से नीचे ही रहता है। अधिकांश चलवासी चरवाहे हैं जो रेडियर पालते हैं और सील तथा व्हेल का शिकार करते हैं।

(3) उच्च पर्वतीय प्रदेश मध्य एशिया चारों ओर से सागरीय प्रभाव से वंचित शुष्क तथा अनाकर्षक प्रदेश हैं। पर्वतीय एवं पठारी होने के कारण मिट्टी की गहराई कम है तथा कृषि फसलें न के बराबर हैं या कहीं-कहीं साल-भर में केवल एक ही फसल उगाई जाती है। 4000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पवर्तीय भागों में तो वायु का दबाव कम हो जाता है, जिससे साँस लेना भी कठिन हो जाता है। उत्तरी अमेरिका में रॉकीज पर्वत, दक्षिणी अमेरिका में एण्डीज़ तथा भारत में महान हिमालय तथा चीन के दक्षिण-पश्चिमी भाग में इस प्रकार के उच्च पर्वतीय प्रदेश हैं।

(4) विषुवत रेखीय क्षेत्र-यह प्रदेश अत्यधिक वर्षा तथा साल-भर ऊँचा तापक्रम होने के कारण मानवं बसाव की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। यहाँ जनसंख्या विरल है। चारों ओर घने जंगल तथा वन्य प्राणियों का साम्राज्य है। यहाँ जलवायु उमस वाली है तथा विभिन्न प्रकार के कीटाणु तथा जहरीले कीड़े-मकौड़े यहाँ देखने को मिलते हैं। इनमें दक्षिणी अमेरिका का अमेज़न बेसिन, अफ्रीका का जायरे बेसिन आदि सम्मिलित हैं।

2. मध्यम जनसंख्या और घनत्व वाले क्षेत्र-विश्व के जिन भागों में जनसंख्या का घनत्व 11 से 50 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है, उन्हें मध्यम या साधारण जनसंख्या वाले क्षेत्र में रखा जा सकता है। ये प्रदेश सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं।

  • एशिया-म्यांमार, दक्षिणी भारत, पश्चिमी चीन, थाईलैण्ड, कम्बोडिया आदि हैं।
  • यूरोप डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, लिथुआनिया, बाल्टिक गणराज्य तथा रूस के उत्तर-पश्चिमी भाग।
  • अमेरिका-संयुक्त राज्य अमेरिका का पश्चिमी तथा मध्यवर्ती भाग, कनाडा का दक्षिण-पश्चिमी भाग।
  • अफ्रीका-अफ्रीका के तटीय भाग, नील नदी का डेल्टा, नाइजीरिया तथा दक्षिणी अफ्रीका के कुछ क्षेत्र।
  • दक्षिण अमेरिका-वेनेजुएला, उत्तरी-पूर्वी ब्राजील, मध्यवर्ती चिली आदि।
  • ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रेलिया का तटवर्ती भाग तथा मरे-डार्लिंग, नदियों का बेसिन।

3. सघन जनसंख्या अथवा उच्च घनत्व के क्षेत्र-जिन प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है, उन्हें सघन जनसंख्या वाले प्रदेश कहते हैं। उच्च घनत्व वाले प्रदेश विश्व में निम्नलिखित हैं
(1) मानसून एशिया – इस प्रदेश की जलवायु मानव तथा कृषि दोनों के लिए अनुकूल है। कृषि फसलों के लिए वर्धनकाल लम्बा है। जलवायु विभिन्नता के कारण अनेक ऋतुएँ तथा उनमें विभिन्न प्रकार की कृषि फसलें उगाई जाती हैं। वर्ष में 2 से 3 फसलें उगाई जाती हैं। यहाँ की जनसंख्या अधिकांशतः कृषि पर निर्भर करती है। इन क्षेत्रों में समतल मैदानी भू-भाग हैं, जिनमें कहीं-कहीं जनसंख्या का घनत्व 700 से 1000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० तक है। इस क्षेत्र में चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया, जापान, सिंगापुर आदि आते हैं। नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण के कारण कई क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 2000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से भी अधिक है। सिंगापुर में जनसंख्या का घनत्व 5000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है।

(2) पश्चिमी यूरोप – पश्चिमी यूरोप में औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी से ही चल रही है। लोग उद्योग, व्यापार तथा वाणिज्य को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। यहाँ सघन जनसंख्या दक्षिणी तथा पश्चिमी भाग में है। उत्तर में जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है। सघन जनसंख्या वाला क्षेत्र इंग्लिश चैनल से पूर्व में नीपर नदी तक है। इसमें स्पेन, पुर्तगाल, दक्षिणी फ्राँस, ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैण्ड और बेल्जियम आदि सम्मिलित हैं।

(3) संयुक्त राज्य अमेरिका का मध्य – पूर्वी भाग संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य-पूर्वी भाग में यूरोपीय लोग आकर बसे और उसके बाद इस क्षेत्र में औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण की गति भी तीव्र रही, जिसके कारण जनसंख्या का घनत्व वर्तमान समय में अधिक हो गया है। जीवन की सभी सुविधाएँ सुलभ हैं। कृषि, उद्योग, व्यापार, वाणिज्य आदि सभी व्यवसायों का विकास द्रुतगति से हुआ है। दक्षिणी-पूर्वी कनाडा भी जनसंख्या की दृष्टि से सघन क्षेत्र हैं। देश की राजधानी तथा अन्य व्यापारिक नगर इसी क्षेत्र में हैं।
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प्रश्न 2.
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
अथवा जनांकिकीय
संक्रमण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संसार में जनसंख्या की वृद्धि के इतिहास पर दृष्टिपात करने से जनसंख्या के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ (Stages) दिखाई देती हैं। समय के साथ-साथ जनसंख्या में होने वाले क्रमिक परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं। जैसे-जैसे कोई देश विकास करता है, उसकी जन्म-दर और मृत्यु-दर में परिवर्तन होने लगता है। उस देश की जनसंख्या का विकास होने लगता है, जो कुछ क्रमिक अवस्थाओं में होता है। जनसंख्या के विकास चक्र में सामान्यतः पाँच अवस्थाएँ होती हैं। इन अवस्थाओं को जनसंख्या चक्र (Population Cycle) कहते हैं। बर्गडौरफर (Burgdorfer), ब्लेकर (Blaker), साइमन (Simon), संयुक्त राष्ट्र (United Nations) आदि ने जनसंख्या चक्र की विभिन्न अवस्थाओं पर अपने विचार दिए हैं। जनांकिकीय संक्रमण की प्रायः पाँच अवस्थाएँ देखने को मिलती हैं
1. प्रथम अवस्था (First Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की यह पहली अवस्था होती है। इसमें उच्च जन्म-दर और उच्च मृत्यु-दर दोनों होते हैं। अतः जनसंख्या धीमी गति से बढ़ती है। यह 40 से 50 तक जन्म तथा मृत्यु प्रति हजार होती है। जन्म-दर तथा मृत्यु-दर बराबर होने के कारण इन देशों में जनसंख्या वृद्धि-दर बहुत मन्द होती है। यहाँ लोगों की मान्यता होती है कि “बहुत सारे बच्चों में से कुछ तो जिएँगे।” इसमें जनसंख्या की शुद्ध वृद्धि-दर लगभग 1 प्रतिशत होती है। इसे उच्च स्थिरता की अवस्था भी कहा जाता है।

2. द्वितीय अवस्था (Second Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में आर्थिक विकास होते हैं। अकाल तथा सूखे पर नियंत्रण, खान-पान में सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं के विकास की प्रक्रिया के आरम्भ होने से मृत्यु-दर कम हो जाती है। परन्तु जन्म-दर ऊँची बनी रहती है। अतः इस अवस्था में जनसंख्या तेजी से बढ़ती है। विकासशील देश इसी अवस्था से गुजर रहे हैं। एशिया में पूर्वी दक्षिणी और मध्य एशिया के देश इसी अवस्था में हैं।

3. तृतीय अवस्था (Third Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की इस अवस्था में जन्म-दर में कमी आने से जनसंख्या वृद्धि-दर कम हो जाती है। यह अवस्था उच्च जन्म-दर (High Fertility) तथा मध्यम मृत्यु-दर (Moderate Mortality) वाली होती है। अमेरिका, ब्राजील, इक्वाडोर तथा पेरू इसी अवस्था में है। आधुनिक खेती, नगरीकरण, औद्योगिकीकरण इस अवस्था की पहचान हैं। इस अवस्था को विलम्ब से वृद्धि वाली अवस्था कहा जाता है।

4. चौथी अवस्था (Fourth Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की इस अवस्था में जन्म-दर एवं मृत्यु-दर दोनों ही कम हो जाती है। यह अवस्था मध्यम जन्म-दर (Moderate Fertility) तथा निम्न मृत्यु-दर (Low Mortality) वाली होती है। फलस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि-दर बहुत ही कम हो जाती है। कुछ देशों में तो वृद्धि-दर शून्य हो जाती है। इसे न्यून स्थिरता की अवस्था कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड आज इसी अवस्था में हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 9

5. पाँचवीं अवस्था (Fifth Stage)-जनांकिकीय संक्रमण की यह अन्तिम अवस्था मानी जाती है। इस अवस्था में जन्म-दर कम होकर प्रायः शून्य त है। मृत्यु-दर जन्म-दर से अधिक हो जाती है, जिससे जनसंख्या घटने लगती है। इस अवस्था में आर्थिक विकास अपने उच्चतम स्तर पर होता है। लोगों में बच्चे पैदा करने की चाहत नहीं रहती है और न ही उनके पास समय होता है। इस अवस्था को जनांकिकीय संक्रमण की ह्रासमान अवस्था कहा जाता है। पश्चिमी यूरोप के प्रायः सभी देश और जापान इसी अवस्था में हैं। रूस, यूक्रेन, फ्रांस व इटली में भी लगभग यही अवस्था है। यहाँ जनसंख्या बढ़ने की बजाय कम हो रही है।

प्रश्न 3.
प्रवास से आपका क्या अभिप्राय है? इसे निर्धारित करने वाले कारकों का विस्तृत वर्णन करें। अथवा प्रवास को प्रभावित करने वाले कारकों/तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रवास का अर्थ एवं परिभाषाएँ-युगों से ही मानव वर्गों (Human Groups) का प्रवास होता रहा है। मानव जातियाँ (Human Races) आदिकाल से ही अपने उद्गम प्रदेश के बाहर प्रवास करती रही हैं। ऐतिहासिक काल में भी, पृथ्वी के विभिन्न भागों, एक स्थान से दूसरे स्थान पर, मानव वर्गों का प्रवसन होता रहा है, इसे जनसंख्या का स्थानान्तरण या प्रवास कहते हैं। स्थानान्तरण या प्रवास मात्र स्थान परिवर्तन ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय तत्त्वों को समझने का आधार भी है। यह सामाजिक और आर्थिक पक्षों से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण घटना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के जनांकिकीय शब्दकोष के अनुसार, “प्रवास/प्रवसन एक प्रकार की भौगोलिक अथवा स्थानिक प्रवासिता है जो एक भौगोलिक इकाई के बीच देखने को मिलती है, जिनमें रहने का मूल स्थान अथवा पहुँचने का स्थान दोनों भिन्न होते हैं। यह प्रवास स्थायी होता है, क्योंकि इसमें मानव का निवास स्थान स्थायी रूप से परिवर्तित हो जाता है।” इसी प्रकार डेविड हीर के अनुसार, “अपने सामान्य निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसना स्थानान्तरण (प्रवसन) कहलाता है।”

स्थानान्तरण या प्रवास को निर्धारित करने वाले कारक-प्रवास को निर्धारित करने वाले अनेक कारक हैं। प्रवास के कारणों का कोई सामान्य नियम नहीं है, क्योंकि प्रवास की प्रक्रिया व्यक्ति के अपने निर्णय से जुड़ी होती है। बड़े पैमाने पर प्रवास के कई कारण हैं, जिन्हें मुख्य रूप से निम्न भागों में बाँटा जा सकता है आर्थिक कारक, भौतिक कारक, धार्मिक या सांस्कृतिक कारक, राजनीतिक कारक और जनसांख्यिकीय कारक आदि। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
1. आजीविका (Earning) – सीमित संसाधन तथा बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में एक निश्चित जनसंख्या को ही रोजगार मिलता है। इस कारण जनसंख्या का एक बड़ा भाग आजीविका की खोज में गाँवों से नगरों की ओर प्रवास होता है। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र में जनसंख्या का दबाव बढ़ने से जनसंख्या-संसाधन सन्तुलन बिगड़ने के कारण लोग आजीविका के लिए विकसित और सिंचाई समृद्ध कृषि क्षेत्रों में जाना पसन्द करते हैं। उत्तरी अमेरिका, लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी अफ्रीका में उपलब्ध विस्तृत कृषि योग्य भूमि ने यूरोप, चीन और जापान में लोगों को आकर्षित किया है।

2. विवाह (Marriage) – सामाजिक रीति के अनुसार लड़कियों को विवाह के पश्चात् ससुराल में रहना पड़ता है। यही कारण है कि भारत में स्त्रियों की प्रवास दर काफी ऊँची है। यह प्रवास गाँव या नगरों से नगरों की ओर होता है। नगरों से गाँव की ओर प्रवास कम होता है।

3. शिक्षा (Education) – प्रायः गाँवों में उच्च शिक्षा की सुविधाएँ नहीं होतीं। उच्च शिक्षा व योग्यता में वृद्धि हेतु लोग शहरों में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की उच्च तथा तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहरों में प्रवास करते हैं। सुशिक्षित, निपुण, कलाकार, वैज्ञानिक तथा अन्य क्षेत्रों में योग्य लोग शहरों में अपनी उन्नति के अवसरों की तलाश में प्रवास करते हैं। इसके अतिरिक्त आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार अपने बच्चों की शिक्षा के लिए गाँवों से शहरों व छोटे शहरों से बड़े शहरों में, जहाँ शिक्षा की अच्छी सुविधाएँ होती हैं, प्रवास करते हैं।

4. सामाजिक असुरक्षा (Social Unsecurity) – जिस किसी देश या प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता एवं गड़बड़ी, जातीय दंगे, वर्ग-संघर्ष आदि की सम्भावनाएँ अधिक होती हैं तो ऐसे क्षेत्रों की जनसंख्या क्षेत्र को छोड़कर अन्य शांत क्षेत्रों को प्रवास कर जाते हैं। उदाहरण के लिए, कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता व अशान्ति के कारण कश्मीरी पंडित कश्मीर प्रवास कर गए। इसी प्रकार सन् 1947 के देश विभाजन में भारत व पाकिस्तान से लोगों का प्रवास हुआ।

5. प्राकृतिक प्रकोप (Natural Destroy) – प्राकृतिक प्रकोप भी जनसंख्या को प्रवास करने पर मजबूर करते हैं। भयंकर बाढ़ें, सूखा, बीमारियाँ आदि प्राकृतिक प्रकोपों से लोग भयभीत व मजबूर होकर प्रवास करते हैं। ज्वालामुखी के आकस्मिक विस्फोट के कारण भी मानव को अपने निवास स्थान को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ता है। सिसली, फिलीपीन और हवाई द्वीपों से इसी कारण लोग अन्य देशों में जाकर बस गए हैं। भूकम्प भी प्रवास का एक मुख्य कारण है। सन् 1934 में बिहार के भूकम्प के समय हजारों लोग पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में जाकर स्थाई रूप से बस गए थे।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 4.
मर्त्यता से क्या तात्पर्य है? इसे निर्धारित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मर्त्यता का अर्थ (Meaning of Mortality) जन्म की तरह मृत्यु भी एक निश्चित घटित होने वाली महत्त्वपूर्ण जैविक घटना है। सन् 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा मर्त्यता की दी गई परिभाषा के अनुसार “जन्म के बाद जीवन के सभी लक्षणों का स्थायी रूप से समाप्त हो जाना मर्त्यता कहलाता है।”

मर्त्यता की माप (Measures of Mortality)-जनसंख्या वृद्धि के निर्धारण में मर्त्यता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मर्त्यता में कमी आने के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो जाती है। मर्त्यता को मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों द्वारा मापा जाता है

  1. अशोधित मृत्यु-दर
  2. शिशु मृत्यु-दर
  3. मातृ मृत्यु-दर
  4. आयु विशिष्ट मृत्यु-दर।

इन विधियों में अशोधित मृत्यु-दर अधिक सर्वमान्य है जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
अशोधित मृत्यु-दर (Crude Death Rate)-एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को अशोधित मृत्यु-दर कहा जाता है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है-
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 10
मर्त्यता के निर्धारक कारक (Determinants of Mortality)-अधिक जन्म-दर और अधिक मृत्यु-दर किसी देश के पिछड़ेपन का सूचक है जबकि कम जन्म-दर और कम मृत्यु-दर किसी देश की आर्थिक उन्नति के सूचक हैं। मृत्यु-दर किसी देश की जनसांख्यिकी संरचना सामाजिक प्रगति तथा आर्थिक विकास की सूचक है। मर्त्यता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. आयु संरचना (Age Structure) युवाओं की अपेक्षा प्रौढ़ों में मृत्यु की संभावना अधिक होती है। अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के कारण मृत्यु को कुछ समय के लिए रोका जा सकता है तथा जीवन प्रत्याशा को बढ़ाया जा सकता है। इसी कारण विकसित देशों में प्रौढ़ों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी प्रतीत हो रही है।

2. लिंग संरचना (Sex Structure) स्त्रियों और पुरुषों की मृत्यु-दर भी अलग-अलग होती है। स्त्रियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। इसलिए प्रत्येक आयु वर्ग में स्त्रियों की मर्त्यता भी कम है और उनकी जीवन प्रत्याशा भी पुरुषों की अपेक्षा अधिक है, परंतु विकासशील और पिछड़े देशों में स्थिति बिल्कुल विपरीत है। इन देशों में स्त्रियों की मृत्यु-दर पुरुषों से अधिक है। इसका प्रमुख कारण इन देशों में लड़कियों और स्त्रियों के प्रति भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण का होना है।

3. नगरीकरण (Urbanization)-नगर में होने वाली दुर्घटनाएँ, प्रदूषित वातावरण तथा वहाँ की तनावपूर्ण जिंदगी भी उच्च मृत्यु-दर के लिए उत्तरदायी है।

4. सामाजिक कारक (Social Factors)-भ्रूण हत्या, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, साक्षरता दर तथा धार्मिक विश्वास आदि सामाजिक कारक भी मर्त्यता को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 5.
प्रजननशीलता क्या है? प्रजननशीलता को निर्धारित या प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रजननशीलता का अर्थ (Meaning of Fertility)-प्रजननशीलता से तात्पर्य स्त्री द्वारा पूरे समय बाद किसी समय विशेष में जीवित जन्म देने वाले बच्चों की संख्या से है। कुछ स्त्रियों में गर्भ धारण करने की क्षमता तो होती है परंतु प्रजननशीलता नहीं होती। किसी देश की जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करने में प्रजननशीलता महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि प्रजननशीलता मृत्यु-दर से अधिक है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी। इसके विपरीत प्रजननशीलता से मृत्यु-दर अधिक होने पर जनसंख्या में कमी होगी।

प्रजनन दर मापने की विधियाँ (Methods of Measuring Fertile Rate)-प्रजनन दर को निम्नलिखित दो विधियों द्वारा व्यक्त किया जाता है-
1. अशोधित जन्म-दर (Crude Birth Rate)-किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष हजार व्यक्तियों में जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को जन्म-दर कहा जाता है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या में जन्म-दर को निम्नांकित प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
B = \(\frac{\mathbf{N}_{\mathbf{n}}}{\mathbf{P}}\) x 100
B = जन्म-दर, Nn = एक वर्ष में जन्मे नवजात शिशुओं की संख्या।
P = उस वर्ष के मध्य की जनसंख्या
यद्यपि इस विधि का प्रचलन अधिक है, फिर भी यह दोषयुक्त है, क्योंकि इसमें संपूर्ण जनसंख्या से भाग दिया जाता है कि संपूर्ण जनसंख्या कभी भी प्रजनन क्षमता की परिधि में नहीं आती।

2. सामान्य प्रजनन दर (General Fertile Rate)-प्रजनन आयु वर्ग (15-49 वर्ष) की 1000 स्त्रियों के पीछे जन्मे जीवित बच्चों की संख्या को सामान्य प्रजनन दर कहते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से निकाला जा सकता है-
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 11

प्रजननशीलता/प्रजननता को निर्धारित या प्रभावित करने वाले कारक (Factor-Effecting of Fertility)-प्रजननशीलता को निर्धारित करने वाले कारकों को निम्नलिखित दो वर्गों में रखा गया है-
(क) जैव कारक (Biological Factors) – जैव कारकों में लोगों की प्रजातियाँ, प्रजनन क्षमता तथा उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव आता है। विश्व में विभिन्न प्रजातियों के लोगों का जनसंख्या स्तर एक जैसा नहीं पाया जाता जबकि वे एक समान पर्यावरण में रहते हैं। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रजननशीलता को प्रभावित करता है। अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की दशा में प्रजनन दर ऊँची पाई जाती है जबकि अस्वस्थ शारीरिक और मानसिक वातावरण में मर्त्यता (Mortality) ऊँची पाई जाती है। स्त्रियों की प्रजनन क्षमता भी प्रजननशीलता को प्रभावित करती है। प्रजनन क्षमता या संतानोत्पादकता स्त्रियों में सामान्यतया 14 से 44 वर्ष की आयु तक पाई जाती है, लेकिन यह अवधि विभिन्न स्त्रियों में अलग-अलग पाई जाती है। भारत में यह आयु 15 से 49 वर्ष की है जबकि ठंडे देशों में यह आयु वर्ग कुछ भिन्न होती है।

(ख) प्रजननता को प्रभावित करने वाले अन्य कारक (Other factor-Effecting of Fertility) प्रजननता को अन्य निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं
1. शिक्षा का स्तर (Stage of Education) – शिक्षा का उच्च स्तर प्रजननता को निश्चित रूप से प्रभावित करता है। शिक्षित पति-पत्नी की अपेक्षा अशिक्षित पति-पत्नियों में प्रजननता अधिक पाई जाती है। अतः शिक्षा का प्रजननता से सीधा संबंध है।

2. विवाह की आयु (Age of Marriage) – 15 से 49 वर्ष के वर्ग की स्त्रियाँ सामान्य रूप से बच्चे पैदा करने में सक्षम होती हैं। यदि 15 वर्ष की आयु में विवाह किया जाए तो 34 वर्ष बच्चे पैदा करने के लिए मिलते हैं। इस अवधि में नारी लगभग 14-15 बच्चे पैदा कर सकती है। यदि 21 वर्ष की आयु के बाद कन्या का विवाह किया जाए तो अपेक्षाकृत कम बच्चे पैदा करने का अवसर मिलता है। अतः विवाह की आयु प्रजननता को प्रभावित करती है। इसलिए सरकार ने जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए लड़कियों की विवाह आयु 18 वर्ष तथा लड़कों की 21 वर्ष निर्धारित की है।

3. आर्थिक स्तर (Economic Stage) – गरीबी और जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध है। यहाँ विभिन्न आय वर्ग के लोगों में प्रजननता दर में भिन्नता पाई जाती है। सामान्यतया निम्न आय वर्ग या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों में उच्च प्रजननता दर मिलती है, जबकि उच्च आय वर्ग के लोगों में कम प्रजननता मिलती है।

4. व्यवसाय (Business) – प्रत्येक व्यवसाय के लोगों में प्रजननता दर समान नहीं पाई जाती। किसान और मजदूरों में प्रजनन दर सामान्य से अधिक होती है, जबकि अन्य सेवाओं में लगे लोगों की प्रजननता दर कुछ कम होती है।

5. धार्मिक मान्यताएँ (Realistic Assumptions) – धर्म के अनुसार भी प्रजननता की दर में भिन्नता पाई जाती है। प्रायः सभी धर्म जनसंख्या नियंत्रण का विरोध करते हैं, फिर भी यह नियंत्रण भिन्न-भिन्न धर्मों में भिन्न-भिन्न है। जिन धर्मों में परिवार कल्याण के साधनों का उपयोग नहीं किया जा रहा है, उस धर्म के लोगों की प्रजनन दर अधिक है। हिंदुओं की प्रजननता दर मुसलमानों की प्रजननता दर से कम है।

प्रश्न 6.
विश्व में जनसंख्या वृद्धि के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं-
1. उच्च जन्म-दर तथा निम्न मृत्यु-दर (High Birth Rates and Low Death Rates)-जनसंख्या की वृद्धि-दर जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अन्तर से ज्ञात की जाती है। जब मृत्यु-दर कम तथा जन्म-दर अधिक होती है, तब जनसंख्या में वृद्धि होती है। प्राकृतिक तौर पर होने वाले जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अन्तर को प्राकृतिक वृद्धि-दर कहते हैं तथा दो समयावधियों के बीच होने वाले जनसंख्या सम्बन्धी परिवर्तन को वृद्धि-दर कहते हैं। जब जन्म-दर अधिक तथा मृत्यु-दर कम हो या किसी अन्य देश से आकर जनंसख्या में बढ़ोत्तरी हो जाए तो इसे धनात्मक वृद्धि कहते हैं। जब दो समयावधियों के बीच जनसंख्या में कमी आए तो इसे ऋणात्मक वृद्धि कहते हैं। ऐसा तब होता है, जब मृत्यु-दर अधिक तथा जन्म-दर कम हो या जनसंख्या बाहर प्रवास कर जाए।

2. प्रवास (Migration)-किसी स्थान पर धनात्मक कारकों के कारण दूसरे स्थान से लोग प्रवासित होते हैं तो भी जनसंख्या में वृद्धि होगी। शहरों तथा कस्बों में उच्च शिक्षा, रोजगार की सुविधा, सुरक्षा, यातायात के साधन, चिकित्सा सुविधाएँ आदि विकसित अवस्था में होते हैं तो आस-पास के क्षेत्र से लोग यहाँ पर आकर रहने लगते हैं। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जर्मनी में जनसंख्या वृद्धि इसी कारण से हुई है।

3. खनिज संसाधनों का आकर्षण (Attraction of Minerals)-संसार में जिन भागों में खनिज संसाधन अधिक हैं, वे क्षेत्र मानव को बसाव के लिए आकर्षित करते हैं। मानव उन क्षेत्रों में श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं। चाहे वहाँ की जलवायु सम हो या विषम। स्वीडन में लौह-अयस्क के कारण गेलिवारे नगर में जनसंख्या बढ़ी है। कनाडा की यक्रेन में केपर बैंक नगर, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में कालगुर्ली, भारत में दामोदर घाटी, जर्मनी में रूस घाटी, रूस का डोनेट्स बेसिन, अल्लेशिन क्षेत्र आदि कई उदाहरण हैं, जहाँ खनिजों के कारण ही उन क्षेत्रों में जनसंख्या आकर्षित हुई।

4. उद्योगों का प्रभाव (Effect of Industries)-किसी भी क्षेत्र में यदि उद्योग विकसित होते हैं, तब वहाँ पर जनसंख्या में वृद्धि होने लगती है, क्योंकि उद्योगों में काम करने के लिए उन क्षेत्रों में अन्य देशों से श्रमिक आते हैं और वहाँ बसते हैं। आबादी श्रम के रूप में आती है और उस क्षेत्र में इस प्रकार उद्योगों के साथ-साथ जनसंख्या भी बढ़ती जाती है; जैसे पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका तट, पश्चिमी यूरोप का तटीय भाग, भारत में छोटा नागपुर पठार आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ उद्योगों के विकास के साथ-साथ जनसंख्या भी बढ़ती गई।

5. निम्न जीवन-स्तर (Low Life Standard)-जिन क्षेत्रों में लोगों का जीवन-स्तर निम्न होगा, वहाँ अज्ञानता की बढ़ोतरी होगी, इसलिए वहाँ पर जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होगी, क्योंकि वहाँ के लोगों को वहाँ के संसाधनों को प्रयोग करने का पूर्ण ज्ञान नहीं होता। वहाँ प्रति व्यक्ति आय कम होने से जनसंख्या में बढ़ोतरी होती है।

6. आर्थिक विकास (Economic Development)-जनसंख्या वृद्धि का मुख्य प्रभाव क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। प्राथमिक अर्थव्यवस्था वाले विकासशील देशों में वृद्धि-दर दो प्रतिशत से चार प्रतिशत के बीच होती है; जैसे एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका आदि। विकसित अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि-दर 1.7% से भी कम पाई जाती है। इस प्रकार आर्थिक विकास तथा जनसंख्या वृद्धि-दर व सह-सम्बन्ध स्पष्ट देखने को मिलता है। आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में जन्म-दर अधिक पाई जाती है। आर्थिक पिछड़ेपन के कारण मृत्यु-दर भी अधिक होती है; जैसे कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन।

7. स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services)-विकसित देशों में स्वास्थ्य सेवाओं के कारण मृत्यु-दर पर अंकुश लग जाता है, लेकिन जन्म-दर बढ़ती जाती है, जिससे जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगती है; जैसे दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में ऐसी स्थिति बनी हुई है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या : वितरण, घनत्व और वृद्धि

प्रश्न 7.
जनसंख्या परिवर्तन के घटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक होते हैं-

  • प्रजननशीलता या जन्म दर
  • मृत्यु दर या मर्त्यता
  • प्रवास।

1. प्रजननशीलता-प्रजननशीलता से तात्पर्य स्त्री द्वारा पूरे समय बाद किसी समय विशेष में जीवित जन्म देने वाले बच्चों की संख्या से है। कुछ स्त्रियों में गर्भ धारण करने की क्षमता तो होती है परंतु प्रजननशीलता नहीं होती। किसी देश की जनसंख्या वृद्धि ननशीलता महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि प्रजननशीलता मृत्यु-दर से अधिक है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी। इसके विपरीत प्रजननशीलता से मृत्यु-दर अधिक होने पर जनसंख्या में कमी होगी।

प्रजनन दर मापने की विधियाँ – प्रजनन दर को निम्नलिखित दो विधियों द्वारा व्यक्त किया जाता है-
(1) अशोधित जन्म-दर-किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष हजार व्यक्तियों में जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या को जन्म-दर कहा जाता है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या में जन्म-दर को निम्नांकित प्रकार से दर्शाया जा सकता है
B = \(\frac{\mathbf{N}_{\mathbf{n}}}{\mathbf{P}}\) x 100
B = जन्म-दर, Nn = एक वर्ष में जन्मे नवजात शिशुओं की संख्या।
P = उस वर्ष के मध्य की जनसंख्या
यद्यपि इस विधि का प्रचलन अधिक है, फिर भी यह दोषयुक्त है, क्योंकि इसमें संपूर्ण जनसंख्या से भाग दिया जाता है कि संपूर्ण जनसंख्या कभी भी प्रजनन क्षमता की परिधि में नहीं आती।

(2) सामान्य प्रजनन दर-प्रजनन आयु वर्ग (15-49 वर्ष) की 1000 स्त्रियों के पीछे जन्मे जीवित बच्चों की संख्या को सामान्य प्रजनन दर कहते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से निकाला जा सकता है-
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 12

2. मर्त्यता-जन्म की तरह मृत्यु भी एक निश्चित घटित होने वाली महत्त्वपूर्ण जैविक घटना है। सन् 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा मर्त्यता की दी गई परिभाषा के अनुसार “जन्म के बाद जीवन के सभी लक्षणों का स्थायी रूप से समाप्त हो जाना मयंता कहलाता है।”

मर्त्यता की माप – जनसंख्या वृद्धि के निर्धारण में मर्त्यता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मर्त्यता में कमी आने के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो जाती है। मर्त्यता को मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों द्वारा मापा जाता है

  • अशोधित मृत्यु-दर
  • शिशु मृत्यु-दर
  • मातृ मृत्यु-दर
  • आयु विशिष्ट मृत्यु-दर।

इन विधियों में अशोधित मृत्यु-दर अधिक सर्वमान्य है जिसका उल्लेख निम्नलिखित है

अशोधित मृत्यु-दर – एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के अनुपात में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को अशोधित मृत्यु-दर कहा जाता है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 2 विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि 13

3. प्रवास-युगों से ही मानव वर्गों (Human Groups) का प्रवास होता रहा है। मानव जातियाँ (Human Races) आदिकाल से ही अपने उद्गम प्रदेश के बाहर प्रवास करती रही हैं। ऐतिहासिक काल में भी, पृथ्वी के विभिन्न भागों, एक स्थान से दूसरे स्थान पर, मानव वर्गों का प्रवसन होता रहा है, इसे जनसंख्या का स्थानान्तरण या प्रवास कहते हैं। स्थानान्तरण या प्रवास मात्र स्थान परिवर्तन ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय तत्त्वों को समझने का आधार भी है। यह सामाजिक और आर्थिक पक्षों से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण घटना है।

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. भूगोल की प्रकृति निम्नलिखित में से किस प्रकार की है?
(A) अंतर्विषयक
(B) समन्वय
(C) आंतरिक एवं समन्वय
(D) गत्यात्मक
उत्तर:
(C) आंतरिक एवं समन्वय

2. भूगोल की दो मुख्य शाखाएँ हैं-
(A) भौतिक भूगोल और मानव भूगोल
(B) क्रमबद्ध भूगोल और प्रादेशिक भूगोल
(C) जनसंख्या भूगोल और नगरीय भूगोल
(D) आर्थिक भूगोल और मानव भूगोल
उत्तर:
(A) भौतिक भूगोल और मानव भूगोल

3. ‘यूनिवर्सल ज्यॉग्राफी’ पुस्तक किसने लिखी?
(A) हंबोल्ट
(B) वेरेनियस
(C) बॅकल
(D) क्लूवेरियस
उत्तर:
(D) क्लूवेरियस

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

4. ‘ज्यॉग्राफिया जनरेलिस’ (सामान्य भूगोल) किसने लिखा?
(A) बर्नार्ड वेरेनियस
(B) हंबोल्ट
(C) चार्ल्स डार्विन
(D) कार्ल रिटर
उत्तर:
(A) बर्नार्ड वेरेनियस

5. ‘ज्यॉग्राफिया जनरेलिस’ नामक पुस्तक के दो प्रमुख भाग थे-
(A) भौतिक भूगोल और प्राकृतिक भूगोल
(B) सामान्य और विशिष्ट भूगोल
(C) क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल
(D) भौतिक भूगोल और मानव भूगोल
उत्तर:
(B) सामान्य और विशिष्ट भूगोल

6. ‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ पुस्तक, जो डार्विन की प्रमुख रचना है, कब प्रकाशित हुई?
(A) सन् 1870 में
(B) सन् 1859 में
(C) सन् 1856 में
(D) सन् 1854 में
उत्तर:
(B) सन् 1859 में

7. ‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ (Origin of Species) नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) बॅकल
(B) चार्ल्स डार्विन
(C) डिमांज़िया
(D) ब्लाश
उत्तर:
(B) चार्ल्स डार्विन

8. ‘हिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन ऑफ इंग्लैंड’ (History of Civilization of England) नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) बॅकल
(B) डार्विन
(C) डिमांज़िया
(D) ब्लाश
उत्तर:
(A) बॅकल

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

9. ‘किताब-अल-हिन्द’ नामक ग्रंथ किसने लिखा?
(A) अलबेरूनी
(B) कार्ल रिटर
(C) जीन बूंश
(D) विडाल-डी-ला ब्लाश
उत्तर:
(A) अलबेरूनी

10. आधुनिक मानव भूगोल का जनक किसे कहा जाता है?
(A) कार्ल रिटर
(B) रेटज़ेल
(C) जीन बूंश
(D) विडाल-डी-ला ब्लाश
उत्तर:
(B) रेटज़ेल

11. अर्ड-कुडे (Erd Kunde) नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) रेटजेल
(B) डिमांज़िया
(C) कार्ल रिटर
(D) क्लूवेरियस
उत्तर:
(C) कार्ल रिटर

12. ‘प्रिंसिपल्स डी ज्यॉग्राफी हयूमन’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक किसने लिखी?
(A) बर्नार्ड वेरेनियस
(B) विडाल-डी-ला ब्लाश
(C) जीन बूंश
(D) एलन सेंपल
उत्तर:
(B) विडाल-डी-ला ब्लाश

13. भूगोल के अध्ययन के लिए ‘मानव भूगोल’ कब एक विशेष शाखा के रूप में उभरा?
(A) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
(B) उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में
(C) पन्द्रहवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी तक
(D) इक्कीसवीं शताब्दी में
उत्तर:
(B) उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में

14. ‘मानव भूगोल, क्रियाशील मानव और अस्थिर पृथ्वी के परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।’ यह किसने कहा?
(A) रेटजेल
(B) हंटिग्टन
(C) कुमारी सेंपल
(D) कार्ल रिटर
उत्तर:
(C) कुमारी सेंपल

15. मानव भूगोल का उद्भव कब भौगोलिक अध्ययन की एक विशेष शाखा के रूप में हुआ? …
(A) पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
(B) प्रारंभिक काल में
(C) बीसवीं शताब्दी में
(D) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में
उत्तर:
(D) उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में

16. निम्नलिखित में से कौन-सा मानव भूगोल का उपक्षेत्र नहीं है?
(A) व्यावहारिक भूगोल
(B) सामाजिक भूगोल
(C) राजनीतिक भूगोल
(D) भौतिक भूगोल
उत्तर:
(D) भौतिक भूगोल

17. मानव भूगोल एक मुख्य शाखा है-
(A) क्रमबद्ध भूगोल की
(B) प्रादेशिक भूगोल की
(C) भौतिक भूगोल की
(D) पर्यावरण भूगोल की
उत्तर:
(A) क्रमबद्ध भूगोल की

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

18. “मनुष्य प्रकृति का दास है” यह कथन भूगोल की किस विचारधारा से संबंधित है?
(A) निश्चयवाद
(B) संभावनावाद
(C) संभववाद
(D) व्यवहारदाद
उत्तर:
(A) निश्चयवाद

19. निश्चयवाद के प्रबल समर्थक थे-
(A) जर्मन भूगोलवेत्ता
(B) फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता
(C) अमेरिकन भूगोलवेत्ता
(D) रोमन भूगोलवेत्ता
उत्तर:
(A) जर्मन भूगोलवेत्ता

20. नव नियतिवाद के प्रवर्तक थे-
(A) हंबोल्ट
(B) विडाल-डी-ला ब्लाश
(C) ग्रिफिथ टेलर
(D) रेटजेल
उत्तर:
(C) ग्रिफिथ टेलर

21. मानव भूगोल का अध्ययन करने के लिए लूसियन फ्रेबने और विडाल-डी-ला ब्लाश ने किस विचारधारा का अनुसरण किया था?
(A) निश्चयवाद
(B) संभावनावाद
(C) संभववाद
(D) प्रत्यक्षवाद
उत्तर:
(C) संभववाद

22. किस तत्त्व को ‘माता प्रकृति’ कहते हैं?
(A) भौतिक पर्यावरण
(B) सांस्कृतिक पर्यावरण
(C) राजनीतिक पर्यावरण
(D) औद्योगिक पर्यावरण
उत्तर:
(A) भौतिक पर्यावरण

23. व्यवहारवाद किसने प्रतिपादित किया?
(A) ग्रिफिथ टेलर
(B) जीन बूंश
(C) गेस्टाल्ट संप्रदाय
(D) डिमांज़िया
उत्तर:
(C) गेस्टाल्ट संप्रदाय

24. निम्नलिखित में से कौन प्रत्यक्षवाद के समर्थक नहीं थे?
(A) बी. जे. एल. बैरी
(B) विलियम बंग
(C) हंटिंग्टन
(D) डेविड हार्वे
उत्तर:
(C) हंटिंग्टन

25. कल्याणपरक विचारधारा के समर्थक थे-
(A) बैरी, विलियम बंग
(B) गेस्टाल्ट संप्रदाय
(C) डी. एम. स्मिथ, डेविड हार्वे
(D) ईसा बोमेन
उत्तर:
(C) डी. एम. स्मिथ, डेविड हार्वे

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26. ‘कौन, कहाँ, क्या पाता है और कैसे?’ यह वाक्य किस विचारधारा का मूलबिंदु है?
(A) निश्चयवाद
(B) प्रत्यक्षवाद
(C) कल्याणपरक
(D) व्यवहारवाद
उत्तर:
(C) कल्याणपरक

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
‘यूनिवर्सल ज्यॉग्राफी’ पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
क्लूवेरियस ने।

प्रश्न 2.
‘ओरिजन ऑफ स्पीशीज’ पुस्तक, जो डार्विन की प्रमुख रचना है, कब प्रकाशित हुई?
उत्तर:
वर्ष 1859 में।

प्रश्न 3.
‘एंथ्रोपोज्यॉग्राफी’ नामक ग्रंथ किसने लिखा?
उत्तर:
जर्मनी के रेटजेल ने।

प्रश्न 4.
निश्चयवाद के प्रबल समर्थक कौन थे?
उत्तर:
फ्रेडरिक रेटज़ेल।

प्रश्न 5.
‘Principles de Geographie Humaine’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
विडाल-डी-ला ब्लाश ने।

प्रश्न 6.
मानव भूगोल किसकी मुख्य शाखा है?
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल।

प्रश्न 7.
व्यवहारवाद किसने प्रतिपादित किया?
उत्तर:
गेस्टाल्ट संप्रदाय ने।

प्रश्न 8.
‘कौन, कहाँ, क्या पाता है और कैसे?’ यह वाक्य किस विचारधारा का मूल-बिंदु है?
उत्तर:
कल्याणपरक विचारधारा का।

प्रश्न 9.
“मनुष्य प्रकृति का दास है।” यह कथन भूगोल की किस विचारधारा से संबंधित है?
उत्तर:
निश्चयवाद विचारधारा से।

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प्रश्न 10.
आधुनिक मानव भूगोल का जनक अथवा संस्थापक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
फ्रेडरिक रेटज़ेल को।

प्रश्न 11.
नव-निश्चयवाद के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर:
ग्रिफ़िथ टेलर।

प्रश्न 12.
रेटज़ेल कहाँ के भूगोलवेत्ता थे?
उत्तर:
जर्मनी के।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव भूगोल क्या है?
अथवा
रेटज़ेल द्वारा दी गई मानव भूगोल की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
मानव भूगोल वह विषय है जो प्राकृतिक, भौतिक एवं मानवीय जगत् के बीच संबंध, मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का अध्ययन करता है। रेटज़ेल के अनुसार, “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।”

प्रश्न 2.
कुमारी एलन चर्चिल सेम्पल के अनुसार मानव भूगोल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कुमारी एलन चर्चिल सेम्पल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।”

प्रश्न 3.
आर्थिक भूगोल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आर्थिक भूगोल में मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा प्राकृतिक वातावरण आदि के साथ मनुष्य के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव समुदाय जीवन-यापन के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाता है; जैसे लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, आखेट, कृषि, खनन, भोज्य पदार्थ, व्यवसाय आदि।

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प्रश्न 4.
फ्रेडरिक रेटजेल की पुस्तक एंथ्रोपोज्यॉग्राफी का प्रकाशन एक युगांतकारी घटना क्यों कहलाती है?
उत्तर:
इस पुस्तक ने भूगोल में मानव केन्द्रित विचारधारा को स्थापित किया। रेटज़ेल ने मानव भूगोल को मानव समाज और पृथ्वी के धरातल के पारस्परिक संबंधों के संश्लेषणात्मक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया।

प्रश्न 5.
प्रौद्योगिक स्तर मनुष्य व प्रकृति के आपसी संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
जब मनुष्य उपकरणों व तकनीकों की सहायता से निर्माण कार्य करता है तो वह प्रौद्योगिकी कहलाती है। प्रकृति के नियमों को ठीक प्रकार से समझकर व प्रौद्योगिकी का विकास करके मानव निर्माण का कार्य करता है; जैसे तेज गति से चलने वाले यान वायुगति के नियमों पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है अर्थात् इसमें स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 7.
प्रौद्योगिकी को विकसित करने में प्रकृति का ज्ञान क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
क्योंकि सभी उपकरणों की कार्यविधि और तकनीकों को हम प्रकृति से सीखते हैं।

प्रश्न 8.
मानव का प्रकृतिकरण अथवा प्राकृतिक मानव से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रौद्योगिकी-विहीन आदिम लोगों द्वारा जीवन जीने के लिए प्रकृति पर प्रत्यक्ष एवं पूर्ण निर्भरता मानव का प्रकृतिकरण कहलाती है।

प्रश्न 9.
प्रकृति के मानवीकरण अथवा मानवकृत प्रकृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अपनी बुद्धि और कौशल इत्यादि के बल पर विकसित प्रौद्योगिकी के द्वारा मनुष्य का प्रकृति पर छाप छोड़ना प्रकृति का मानवीकरण कहलाता है।

प्रश्न 10.
अध्ययन की विधि के आधार पर भूगोल की कौन-सी दो शाखाएँ हैं?
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography)
  2. प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)।

प्रश्न 11.
फ्रांस के किन्हीं चार मानव भूगोलवेत्ताओं के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. विडाल-डी-ला ब्लाश
  2. जीन बूंश
  3. हम्बोल्ट
  4. कार्ल रिटर।

प्रश्न 12.
भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:
भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व-मृदा, जलवायु, भू-आकृति, जल, प्राकृतिक वनस्पति, विविध प्राणी-जातियाँ तथा वनस्पति-जातियाँ आदि हैं।

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प्रश्न 13.
राजनीतिक भूगोल के उपक्षेत्र बताइए।
उत्तर:

  1. निर्वाचन भूगोल
  2. सैन्य भूगोल।

प्रश्न 14.
आर्थिक भूगोल के उपक्षेत्र बताइए।
उत्तर:

  1. संसाधन भूगोल
  2. कृषि भूगोल
  3. उद्योग भूगोल
  4. विपणन भूगोल
  5. पर्यटन भूगोल
  6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का भूगोल।

प्रश्न 15.
समायोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र की प्राकृतिक दशाओं और संसाधनों के अनुसार मानव द्वारा चयनित व्यवसाय को प्रकृति के साथ समायोजन कहते हैं।

प्रश्न 16.
पर्यावरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्यावरण शब्द हिन्दी के दो पदों परि + आवरण के मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ है-‘चारों ओर से’ तथा आवरण का अर्थ है-‘ढके हुए’ अर्थात् पर्यावरण वह सब कुछ है जो हमें चारों ओर से ढके हुए है।

प्रश्न 17.
पर्यावरणीय निश्चयवाद क्या है?
उत्तर:
पर्यावरणीय निश्चयवाद के अनुसार प्रकृति अथवा पर्यावरण सर्वशक्तिमान है और प्राकृतिक शक्तियों के सामने मनुष्य तुच्छ, शक्तिहीन एवं निष्क्रिय होता है।

प्रश्न 18.
निश्चयवाद क्या है?
उत्तर:
मानव-शक्तियों की अपेक्षा प्राकृतिक शक्तियों की प्रधानता स्वीकार करने वाला दर्शन निश्चयवाद कहलाता है। इस विचारधारा के अनुसार मानव-जीवन और उसके व्यवहार को विशेष रूप से भौतिक वातावरण के तत्त्व प्रभावित और यहाँ तक कि निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 19.
मानव-पर्यावरण सम्बन्धों की व्याख्या करने वाली तीन अवधारणाओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. नियतिवाद या पर्यावरणीय निश्चयवाद
  2. सम्भववाद
  3. नव-निश्चयवाद।

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प्रश्न 20.
मानव भूगोल के दो प्रमुख उद्देश्य कौन-से हैं?
उत्तर:
मानव भूगोल यह जानने का प्रयत्न करता है कि-

  1. मानव ने किन-किन प्रदेशों में क्या-क्या विकास किया है-रचनात्मक या विध्वंसात्मक।
  2. मानव और वातावरण के बीच ऐसे कौन-से संबंध हैं जिनके फलस्वरूप समस्त विश्व एक पार्थिव एकता के रूप में दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 21.
भूगोल पृथ्वी तल पर विस्तृत किन दो प्रकार के तत्त्वों का अध्ययन करता है?
उत्तर:
भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले सभी तत्त्वों को दो वर्गों में बाँटता है-

  • भौतिक तत्त्व
  • मानवीय तत्त्व।

भौतिक तत्त्वों की रचना प्रकृति करती है। इनकी रचना में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। मानवीय तत्त्वों का निर्माण स्वयं मनुष्य करता है, लेकिन उनका आधार भौतिक तत्त्व ही होते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव भूगोल एक गत्यात्मक विषय कैसे है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल एक गत्यात्मक विषय है। जिस प्रकार तकनीक के विकास के साथ मनुष्य और पर्यावरण का सम्बन्ध बदलता जा रहा है, उसी प्रकार मानव भूगोल की विषय-वस्तु में भी समय के साथ विस्तार होता जा रहा है। उदाहरणतया बीसवीं सदी के आरंभ में मानव भूगोल में सांस्कृतिक और आर्थिक पक्षों पर विशेष ध्यान दिया जाता था किंतु बाद में नई समस्याओं और चुनौतियों के आने पर उन्हें भी विषय-वस्तु का अंग बना लिया गया। वर्तमान में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में राजनीतिक आयाम, सामाजिक संबद्धता, लिंग असमानता, जन-नीति, नगरीकरण तथा नगर प्रणाली, स्वास्थ्य व सामाजिक सुविधाएँ इत्यादि प्रकरणों को शामिल किया गया।

प्रश्न 2.
जीन बूंश द्वारा बताए गए मानव भूगोल के आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जीन बूंश ने मानव भूगोल की विषय-वस्तु को पाँच प्रकार के आवश्यक तथ्यों के अध्ययन के रूप में विभाजित किया है जो इस प्रकार हैं-

  1. मृदा के अनुत्पादक व्यवसाय से संबंधित तथ्य; जैसे मकान और सड़कें
  2. वनस्पति और जीव-जगत् पर मानव विजय से संबंधित तथ्य; जैसे कृषि
  3. पशुपालन
  4. पशुपालन और मृदा के विनाशकारी उपयोग से संबंधित तथ्य; जैसे पौधों और पशुओं का विनाश
  5. खनिजों का अवशोषण।

प्रश्न 3.
मानव भूगोल की विषय-वस्तु अथवा अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित किन्हीं चार प्रमुख तथ्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल की विषय-वस्तु के अंतर्गत मोटे तौर पर निम्नलिखित चार तथ्यों का अध्ययन किया जाता है-

  1. मानव का उद्गम, उसकी प्रजातियाँ तथा भूमंडल पर मानव प्रजातियों का देशकालीन (Spatio-temporal) स्थापन।
  2. जनसंख्या का वितरण, वृद्धि, घनत्व, जनांकिकीय विशेषताएँ तथा प्रवास एवं मिश्रण।
  3. मानव की नितांत आवश्यकताएँ-भोजन, वस्त्र और मकान।
  4. भू-आकारों, जलवायु, मृदा, वनस्पति, जल, जीवों व खनिजों से संबंध व समायोजन।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 4.
निश्चयवाद का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मानव-शक्तियों की अपेक्षा प्राकृतिक शक्तियों की प्रधानता स्वीकार करने वाला दर्शन निश्चयवाद कहलाता है। इस विचारधारा के अनुसार मानव-जीवन और उसके व्यवहार को विशेष रूप से भौतिक वातावरण के तत्त्व प्रभावित व निर्धारित करते हैं अर्थात मानवीय क्रियाओं पर वातावरण का नियन्त्रण होता है। इसके अनुसार किसी सामाजिक वर्ग की सभ्यता, इतिहास, संस्कृति, रहन-सहन तथा विकासात्मक पक्ष भौतिक कारकों द्वारा नियन्त्रित होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि मानव एक क्रियाशील कारक नहीं है। इस विचारधारा को यूनानी तथा रोमन विद्वानों हिप्पोक्रेटस, अरस्तु, हेरोडोटस तथा स्ट्रेबो ने प्रस्तुत किया। इसके बाद अल-मसूदी, अल-अदरीसी, काण्ट, हम्बोल्ट तथा रेटज़ेल आदि ने इस पर विशेष कार्य किया। अमेरिका में कुमारी एलन चर्चिल सेम्पल तथा ए० हंटिंग्टन ने इस विचारधारा को लोकप्रिय बनाया।

प्रश्न 5.
क्रमबद्ध भूगोल और प्रादेशिक भूगोल में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल और प्रादेशिक भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं-

क्रमबद्ध भूगोलप्रादेशिक भूगोल
1. क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्त्व का अध्ययन होता है।1. प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्त्चों के संदर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।
2. क्रमबद्ध भूगोल अध्ययन का एकाकी (Isolated) रूप प्रस्तुत करता है।2. प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का समाकलित (Integrated) रूप प्रस्तुत करता है।
3. क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होता है।3. प्रादेशिक भूगोल में अध्ययन भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है।
4. क्रमबद्ध भूगोल किसी तत्च विशेष के क्षेत्रीय वितरण, उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा करता है।4. प्रादेशिक भूगोल किसी प्रदेश विशेष के सभीं भौगोलिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
5. क्रमबद्ध भूगोल में किसी घटक; जैसे जलवायु, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति या वर्षा की मात्रा के आधार पर विभिन्न प्रकार और उप-प्रकार निर्धारित किए जाते हैं।5. ‘प्रादेशिक भूगोल में प्राकृतिक तत्त्चों के आधार पर प्रदेशों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारण की यह प्रक्रिया प्रादेशीकरण (Regionalisation) कहलाती है।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं

भौतिक भूगोलमानव भूगोल
1. भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है।1. मानव भूगोल पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों का अध्ययन करता है।
2. भौतिक भूगोल में स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल का अध्ययन किया जाता है।2. मानव भूगोल में मनुष्य के सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 7.
सांस्कृतिक भूगोल से आप क्या समझते हैं?
अथवा
सामाजिक भूगोल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूगोल के अन्तर्गत मनुष्य के सांस्कृतिक पहलुओं; जैसे मानव का आवास, सुरक्षा, भोजन, रहन-सहन, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, पहनावा आदि का अध्ययन किया जाता है। भिन्न-भिन्न मानव समुदायों की कला, तकनीकी उन्नति और विज्ञान के विभिन्न स्तरों पर अवस्थित होना मोटे तौर पर उनके भौगोलिक पर्यावरण की देन है। कुछ भूगोलवेत्ता सांस्कृतिक भूगोल को सामाजिक भूगोल भी कहते हैं। सामाजिक भूगोल में मानव को एकाकी रूप में न लेते हुए मानव समूहों और पर्यावरण के सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। सांस्कृतिक भूगोल में भिन्न-भिन्न मानव समुदायों के सांस्कृतिक विकास तथा उसके पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है।

प्रश्न 8.
निश्चयवाद और संभववाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
निश्चयवाद और संभववाद में निम्नलिखित अंतर हैं-

निश्चयवादसंभववाद
1. निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य के समस्त कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं।1. संभववाद के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने का सामर्थ्य रखता है।
2. इस विचारधारा के समर्थक रेटज़ेल, हम्बोल्ट व हंटिंग्टन थे।2. इस विचारधारा के समर्थक विडाल-डी-ला ब्लाश और फ्रैबवे थे।
3. यह एक जर्मन विचारधारा है।3. यह एक फ्रांसीसी विचारधारा है।

प्रश्न 9.
कृषि भूगोल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानव भूगोल की इस शाखा या उपक्षेत्र में कृषि सम्बन्धी सभी तत्त्वों; जैसे कृषि भूमि, सिंचाई, कृषि उत्पादन तथा पशुपालन व पशु उत्पादों का अध्ययन किया जाता है। कृषि से मनुष्य की मूलभूत जरूरत ‘भोजन’ की आपूर्ति होती है। इसलिए मानव भूगोल की यह शाखा या उपक्षेत्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इन शाखाओं के अतिरिक्त मानव भूगोल की कई अन्य उपशाखाएँ; जैसे नगरीय भूगोल (Urban Geography), अधिवास भूगोल (Settlement Geography), चिकित्सा भूगोल (Medical Geography), व्यापारिक भूगोल (Commercial Geography), ग्रामीण भूगोल (Rural Geography), औद्योगिक भूगोल (Industrial Geography) तथा व्यावहारिक भूगोल (Applied Geography) आदि हैं।

प्रश्न 10.
संभववाद से आप क्या समझते हैं?
अथवा
संभववाद का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
सम्भववाद की विचारधारा का जन्म और विकास फ्रांस में हुआ था। इसलिए इसे फ्रांसीसी विचारधारा भी कहते हैं। इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादक पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश थे। उनके पश्चात् अन्य भूगोलवेत्ताओं ब्रूश, डिमांजियां आदि ने भी इस विचारधारा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सम्भववाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रैबवे ने किया था जो ब्लाश के दृष्टिकोण पर आधारित था।

इस विचारधारा के अनुसार, प्रकृति के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं जिनके अन्दर मानव की छाँट द्वारा किसी क्षेत्र के साथ मानव समाज अपना सामंजस्य स्थापित करता है। इन भूगोलवेत्ताओं ने प्रादेशिक अध्ययन के द्वारा फ्रांस में तथा संसार के अन्य देशों में भी मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्य का वर्णन करते हुए दर्शाया कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति के लिए मानवीय छाँट ही महत्त्वपूर्ण होती है। किसी प्रदेश की स्थिति और जलवायु से अधिक महत्त्वपूर्ण मानव होता है और मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई सम्भावनाओं का स्वामी होता है तथा उनके प्रयोग का निर्णायक भी होता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 11.
नव-निश्चयवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ग्रिफिथ टेलर ने नव-निश्चयवाद को समझाने के लिए “रुको तथा जाओ” वाक्यांश का प्रयोग किया। उनके अनुसार, मनष्य पर प्रकति का प्रभाव पड़ता है परन्त मनुष्य में भी अपने बद्धि-कौशल तथा प्रौद्योगिकी के दम पर प्रकृति को बदलने की क्षमता होती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मनुष्य अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रकृति का उपयोग भी कर सकता है। इसी विचारधारा को नव-निश्चयवाद कहा जाता है।

प्रश्न 12.
नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
नियतिवाद के सिद्धांत का जन्म और विकास जर्मनी में हुआ। हम्बोल्ट, रिटर और रेटजेल इस विचारधारा के मुख्य प्रतिपादक थे। इस सिद्धांत के अनुसार, मानव का विकास उसके वातावरण के द्वारा होता है। रेटजेल के अनुसार, मानव अपने वातावरण की उपज है। वातावरण ही मानव के जीवन-यापन के ढंग अर्थात् भोजन, वस्त्र, मकान और सांस्कृतिक स्वरूप को निर्धारित करता है। मनुष्य केवल वातावरण के साथ समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

टुंड्रा के एस्किमो, जायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन आदि कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को स्वीकार कर भौतिक परिवेश में समायोजित हो गए। हम्बोल्ट के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कॉसमॉस’ में वातावरण के प्रभावों का स्पष्ट आभास मिलता है। उन्होंने प्राकृतिक शक्तियों के प्रभावों को मानव जातियों के शारीरिक लक्षणों पर और मनुष्यों के रहन-सहन पर स्पष्टतः प्रदर्शित किया था।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए इसकी प्रकृति का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है? मानव भूगोल की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Human Geography)-विभिन्न विद्वानों ने मानव भूगोल को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। मानव भूगोल की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
1. फ्रेडरिक रेटजेल के अनुसार, “मानव भूगोल मानव समाज और धरातल के बीच सम्बन्धों का संश्लेषित अध्ययन है।”

2. कुमारी सेम्पल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।”

3. पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश के अनुसार, “हमारी पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य सम्बन्धों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना को मानव भूगोल कहते हैं।”

4. एल्सवर्थ हंटिंग्टन के अनुसार, “मानव भूगोल भौगोलिक वातावरण और मानव के क्रियाकलापों एवं गुणों के सम्बन्ध . के स्वरूप और वितरण का अध्ययन है।”

5. जीन बूंश के अनुसार, “मानव भूगोल उन सभी वस्तुओं का अध्ययन है जो मानव क्रियाकलाप द्वारा प्रभावित है और जो हमारी पृथ्वी के धरातलीय पदार्थों की एक विशेष श्रेणी के अन्तर्गत रखे जा सकते हैं।”

6. कैकिले वैलो के अनुसार, “मानव भूगोल वह विज्ञान है जो विस्तृत अर्थों में प्राकृतिक पर्यावरण के साथ मानव समूहों के अनुकूलन का अध्ययन करता है।”

7. ए० डिमांजियां के अनुसार, “मानव भूगोल समुदायों तथा समाज के भौतिक वातावरण से सम्बन्धों का अध्ययन है।”
अतः मानव भूगोल के अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि अलग-अलग क्षेत्रों में बसा मानव अपने वातावरण से किस प्रकार अनुकूलन और सामंजस्य स्थापित कर उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन करता है। मानव भूगोल एक दर्शनशास्त्र के समान है। मनुष्य की विचारधारा और जीवन-दर्शन पर किसी स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। मानव भूगोल मनुष्य तथा उस पर वातावरण के प्रभाव का अध्ययन नहीं है। इस प्रकार निष्कर्ष तौर पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल वह विज्ञान है, जिसमें भूतल के विभिन्न भागों के रहने वाले मानव समूहों तथा उनसे उत्पन्न तथ्यों या भू-दृश्यों का अध्ययन किया जाता है।

मानव भूगोल की प्रकृति (Nature of Human Geography):
मानव भूगोल वह विज्ञान है जिसमें मनुष्य तथा वातावरण के बीच पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों (Functional Relations) का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल की प्रकृति को उसके अर्थ तथा परिभाषाओं के द्वारा जाना जाता है। पिछले कुछ वर्षों से मानव भूगोल का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। मानव भूगोल में भौतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में पृथ्वी पर फैली मानव सभ्यता द्वारा निर्मित परिस्थितियों तथा लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। घर, खेत, गाँव, नहरें, पुल, सड़कें, नगर, कारखाने, बाँध व स्कूल इत्यादि मानवीय लक्षणों के उदाहरण हैं।

वास्तव में, फ्रांस के पॉल विडाल-डी-ला ब्लाश (Paul Vidal-de-la Blache) तथा जीन बूंश (Jean Brunches) ने मानव भूगोल को अत्यधिक महत्त्व देकर उसे उच्च शिखर पर बिठा दिया है। प्राकृतिक दशाओं के आधार पर मानव भूगोल के तत्त्वों को आसानी से समझा भी जा सकता है। मानव भूगोल मानव वर्गों और उनके वातावरण की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों का प्रादेशिक आधार पर किया जाने वाला अध्ययन है। मानव भूगोल में मानव और प्रकृति के बीच सतत् परिवर्तनशील क्रिया से उत्पन्न सांस्कृतिक लक्षणों की स्थिति एवं वितरण की विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
भूगोल का मानव एवं वातावरण के साथ संबंध का दो प्रमुख उपागमों के अंतर्गत वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव भूगोल के अध्ययन के दो प्रमुख उपागमों-नियतिवाद और संभववाद का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौगोलिक अध्ययन के कई पक्ष होते हैं, परंतु भूगोल में मानव और वातावरण के संबंधों को लेकर दो पृथक विचारधाराएँ विकसित हुईं। 19वीं शताब्दी में जर्मनी में मानव और वातावरण के सम्बन्धों का विस्तृत अध्ययन किया गया जिसमें वातावरण को सर्वप्रमुख माना गया। तत्पश्चात् इस विचारधारा में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने मानवीय पक्ष को प्रधानता दी। ये विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं
1. नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism) – नियतिवाद के सिद्धांत का जन्म और विकास जर्मनी में हुआ। हम्बोल्ट, रिटर और रेटज़ेल इस विचारधारा के मुख्य प्रतिपादक थे। इस सिद्धांत के अनुसार, मानव का विकास उसके वातावरण के द्वारा होता है। रेटजेल के अनुसार, मानव अपने वातावरण की उपज है। वातावरण ही मानव के जीवन-यापन के ढंग अर्थात् भोजन, वस्त्र, मकान और सांस्कृतिक स्वरूप को निर्धारित करता है। मनुष्य केवल वातावरण के साथ समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है। टुंड्रा के एस्किमो, जायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन आदि कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को स्वीकार कर भौतिक परिवेश में समायोजित हो गए। हम्बोल्ट के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कॉसमॉस’ में वातावरण के प्रभावों का स्पष्ट आभास मिलता है। उन्होंने प्राकृतिक शक्तियों के प्रभावों को मानव जातियों के शारीरिक लक्षणों पर और मनुष्यों के रहन-सहन पर स्पष्टतः प्रदर्शित किया था।

आलोचना (Criticism) – यह बात सत्य है कि वातावरण मनुष्य को प्रभावित करता है परंतु मनुष्य भी वातावरण में परिवर्तन कर सकता है। यह पारस्परिक क्रिया इतनी गहन है कि यह जानना कठिन होता है कि किस समय एक क्रिया का प्रभाव बंद होता है और दूसरी क्रिया का प्रभाव आरंभ होता है। समान भौतिक परिवेश वाले क्षेत्रों में विकास के स्तर में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। पृथ्वी तल पर जनसंख्या के वितरण में जो विषमताएँ पाई जाती हैं उनका कारण केवल वातावरण ही नहीं है। बहुत-से भू-दृश्य जो हमें प्राकृतिक प्रतीत होते हैं वे वास्तव में मानव द्वारा निर्मित होते हैं। अतः नियतिवाद की इस आधार पर आलोचना की गई कि जहाँ पर्यावरण मानव को प्रभावित करता है, वहाँ मानव भी पर्यावरण को परिवर्तित करने में सक्षम है।

2. संभववाद (Possibilism)-संभववाद की विचारधारा का जन्म और विकास फ्रांस में हुआ था। इसलिए इसे फ्रांसीसी विचारधारा भी कहते हैं। इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादक विडाल-डी-ला ब्लाश थे। उनके पश्चात् अन्य भूगोलवेत्ताओं जीन ब्रश, डिमांजियां आदि ने भी इस विचारधारा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। संभववाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रॅबवे ने किया
था जो ब्लाश के दृष्टिकोण पर आधारित था।

इस विचारधारा के अनुसार, प्रकृति के द्वारा कुछ संभावनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं जिनके अंदर मानव की छाँट (Human Choice) द्वारा किसी क्षेत्र के साथ मानव समाज अपना सामंजस्य स्थापित करता है। इन भूगोलवेत्ताओं ने प्रादेशिक अध्ययन के द्वारा फ्रांस में तथा संसार के अन्य देशों में भी मानव द्वारा निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्य का वर्णन करते हुए दर्शाया कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ते के लिए मानवीय छाँट ही महत्त्वपूर्ण होती है। किसी प्रदेश की स्थिति और जलवायु से अधिक महत्त्वपूर्ण मानव होता है और मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई संभावनाओं का स्वामी होता है तथा उनके प्रयोग का निर्णायक होता है।

निष्कर्ष (Conclusion) – यद्यपि प्रकृति का मनुष्य पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है फिर भी प्रभाव अवश्य है और मानव उस प्रकृति की सीमाओं के अंदर ही विकास कर सकता है। वास्तव में, न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूरा नियंत्रण है और न ही मनुष्य प्रकृति का विजेता है। दोनों का एक-दूसरे से क्रियात्मक सम्बन्ध है। मानव उन्नति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य प्रकृति के साथ सहयोगी बनकर रहे।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 1 मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

प्रश्न 3.
“द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात, मानव भूगोल ने मानव समाज की समकालीन समस्याओं और चुनौतियों के समाधान प्रस्तुत किए।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
मानव भूगोल के अध्ययन की विभिन्न विधियों या उपागमों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् भूगोल में विशेषीकरण की प्रवृत्ति आ गई। इस समय भूगोल के अंतर्गत बस्तियाँ, नगर, बाजार, मनोरंजन, सैन्य भूगोल, प्रादेशिक असमानता, गरीबी, लिंग भेद, निरक्षरता आदि संवेदनशील उपविषय पढ़े जा रहे हैं। ये सभी विषय मूल रूप से मानव भूगोल के अंतर्गत आते हैं लेकिन समकालीन मुद्दों और समस्याओं को समझने तथा उनका समाधान ढूँढने में पारंपरिक विधियां असमर्थ हैं। फलस्वरूप मानव भूगोल ने समय-समय पर अनेक नई विधियों को अपनाया जो समकालीन समस्याओं और चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती हैं। इस उद्देश्य के लिए मानव भूगोल में अपनाई गई विधियाँ अग्रलिखित हैं-
1. प्रत्यक्षवाद (Positivism) इसमें मात्रात्मक विधियों पर अधिक बल दिया गया जिससे भौगोलिक विश्लेषण वस्तुनिष्ठ बनाया जा सके। इस विचारधारा की प्रमुख कमी यह थी कि इसमें मानवीय गुणों; जैसे धैर्य, क्षमता, विश्वास आदि का विश्लेषण नहीं किया जा सकता।

2. व्यवहारवाद (Behaviouralism)-इस विचारधारा के अनुसार, संपूर्ण अपने अंश अथवा अवयवों से महत्त्वपूर्ण होता है। अतः परिस्थिति का समग्र रूप में प्रत्यक्षीकरण किया जाना चाहिए। इस विधि में मानव अपनी शक्तियों का उचित उपयोग करके समस्याओं का बौद्धिक हल ढूँढ सकता है।

3. कल्याणपरक विचारधारा (Welfare Approach) विश्व में व्याप्त विभिन्न प्रकार की असमानताओं की प्रतिक्रियास्वरूप मानव भूगोल में कल्याणपरक प्रतिक्रिया का जन्म हुआ। इसमें निर्धनता, बेरोज़गारी, प्रादेशिक असंतुलन, नगरीय झुग्गी-झोंपड़ियाँ तथा आर्थिक असमानता जैसे विषयों को मुख्य रूप से सम्मिलित किया गया।

4. मानवतावाद (Humanism)-मानवतावाद मनुष्य की सूजन शक्ति पर आधारित मानव भूगोल की एक नवीन विचारधारा है। इसमें मानव जागृति, मानव संसाधन तथा उसकी सृजनात्मकता के संदर्भ में मनुष्य की सक्रिय भूमिका का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
मानव भूगोल की विभिन्न शाखाओं या उपक्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल का अध्ययन क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। मानव भूगोल की शाखाएँ या उपक्षेत्र निम्नलिखित हैं-
1. आर्थिक भूगोल (Economic Geography) – आर्थिक भूगोल मानव भूगोल की सबसे प्रमुख शाखा है। आर्थिक भूगोल में मानव की आर्थिक क्रियाओं तथा प्राकृतिक वातावरण आदि के साथ मनुष्य के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव समुदाय जीवन-यापन के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाता है; जैसे लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, आखेट, कृषि, खनन, भोज्य पदार्थ, व्यवसाय आदि। आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं का अध्ययन करता है। आर्थिक क्रियाओं पर वातावरण के विभिन्न तत्त्वों; जैसे मिट्टी, भूमि, प्राकृतिक वनस्पति,. खनिज संसाधन, जनसंख्या तथा घनत्व आदि का प्रभाव पड़ता है।

2. सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा के अन्तर्गत मनुष्य के सांस्कृतिक पहलुओं; जैसे मानव का आवास, सुरक्षा, भोजन, रहन-सहन, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, पहनावा आदि का अध्ययन किया जाता है। भिन्न-भिन्न मानव समुदायों की कला, तकनीकी उन्नति और विज्ञान के विभिन्न स्तरों पर अवस्थित होना मोटे तौर पर उनके भौगोलिक पर्यावरण
की देन है। कुछ भूगोलवेत्ता सांस्कृतिक भूगोल को सामाजिक भूगोल भी कहते हैं। सामाजिक भूगोल में मानव को एकाकी रूप न लेते हुए मानव समूहों और पर्यावरण के सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। सांस्कृतिक भूगोल में भिन्न-भिन्न मानव समुदायों के सांस्कृतिक विकास तथा उसके पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है।

3. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा में ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। किसी क्षेत्र में एक समय से दूसरे समय में होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों के अध्ययन को ऐतिहासिक भूगोल कहते हैं। ऐतिहासिक भूगोल विश्लेषण करता है कि किस प्रकार धरातल, स्थिति, भौगोलिक एकान्तता, प्राकृतिक बाधाएँ तथा राज्य का विस्तार
आदि किसी राष्ट्र का भाग्य निर्धारित करती है। हार्टशान के अनुसार, “ऐतिहासिक भूगोल भूतकाल का भूगोल है।”

4. राजनीतिक भूगोल (Political Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा के अन्तर्गत राष्ट्रों या राज्यों की सीमाएँ, विस्तार, स्थानीय प्रशासन, प्रादेशिक नियोजन आदि आते हैं। राजनीतिक भूगोल में प्रादेशिक व राष्ट्रीय नियोजन का अध्ययन किया जाता है। राजनीतिक भूगोल मानवीय समूहों की राजनीतिक परिस्थितियों, समस्याओं व क्रियाओं से भूगोल के महत्त्व को प्रदर्शित करता है। राजनीतिक भूगोल राज्यों का भूगोल है और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की भौगोलिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

5. सैन्य भूगोल (Military Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा के अन्तर्गत स्थल तथा समुद्र के भौगोलिक चरित्र का युद्ध की घटनाओं पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर करना है। इस भूगोल में युद्ध के स्थानों के निर्धारण के लिए सम्बन्धित क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं, स्थिति, जलाशयों, उच्चावच, जंगली भूमि आदि की जानकारी आवश्यक होती है। इस भूगोल में अध्ययन के लिए मानचित्रों तथा स्थलाकृतिक मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है।

6. कृषि भूगोल (Agricultural Geography) – मानव भूगोल की इस शाखा या उपक्षेत्र में कृषि सम्बन्धी सभी तत्त्वों; जैसे कृषि भूमि, सिंचाई, कृषि उत्पादन तथा पशुपालन व पशु उत्पादों का अध्ययन किया जाता है। कृषि से मनुष्य की मूलभूत जरूरत ‘भोजन’ की आपूर्ति होती है। इसलिए मानव भूगोल की यह शाखा या उपक्षेत्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इन शाखाओं के अतिरिक्त मानव भूगोल की कई अन्य उपशाखाएँ; जैसे नगरीय भूगोल, अधिवास भूगोल, चिकित्सा भूगोल, व्यापारिक भूगोल, ग्रामीण भूगोल, औद्योगिक भूगोल तथा व्यावहारिक भूगोल आदि हैं।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से सर्वाधिक प्रदूषित नदी कौन-सी है?
(A) ब्रह्मपुत्र
(B) यमुना
(C) सतलुज
(D) गोदावरी
उत्तर:
(B) यमुना

2. निम्नलिखित में से कौन-सा रोग जल जन्य है?
(A) नेत्रश्लेष्मला शोथ
(B) श्वसन संक्रमण
(C) अतिसार
(D) श्वासनली शोथ
उत्तर:
(C) अतिसार

3. निम्नलिखित में से कौन-सा अम्ल वर्षा का एक कारण है?
(A) जल प्रदूषण
(B) शोर प्रदूषण
(C) भूमि प्रदूषण
(D) वायु प्रदूषण
उत्तर:
(B) शोर प्रदूषण

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

4. प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक उत्तरदायी है-
(A) प्रवास के लिए
(B) गंदी बस्तियाँ
(C) भू-निम्नीकरण के लिए
(D) वायु प्रदूषण
उत्तर:
(A) प्रवास के लिए

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
प्रदूषण और प्रदूषकों में क्या भेद है?
उत्तर:
प्रदूषण और प्रदूषक में भेद निम्नलिखित है-

प्रदूषण (Pollution)प्रदूषक (Pollutant)
मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों से कुछ पदार्थ और ऊर्जा निकलती है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण में कुछ हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसे प्रदूषण कहा जाता है।पारितंत्र में विद्यमान प्राकृतिक संतुलन में ह्नास और प्रदूषण उत्पन्न करने वाली ऊर्जा या पदार्थ के किसी रूप को प्रदूषक कहा जाता है।

प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु-प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1. प्राकृतिक स्रोत-ज्वालामुखी जन्य पदार्थ, धूलभरी आँधियाँ व तूफान, दावानल आदि।
  2. मानवीय स्रोत-औद्योगिक प्रक्रम, ठोस कचरा निपटान, वाहित जल निपटान, परिवहन के साधन, रेडियोधर्मी पदार्थ, पेट्रोल व डीजल का दहन, रसायनों का उपयोग आदि।

प्रश्न 3.
भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  1. नगरीय वातावरण का दूषित होना
  2. कूड़ा-कचरा संग्रहण सेवाओं की अपर्याप्त व्यवस्था
  3. औद्योगिक अपशिष्टों का जल स्रोतों में प्रवाहित करना
  4. मानव मल के सुरक्षित निपटान का अभाव।

प्रश्न 4.
मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
प्रदूषित वायु का सेवन करने से हमारे फेफड़े नष्ट हो जाते हैं। यही गैस तथा प्रदूषित कण रक्त में मिलकर हमारे शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचकर उन अंगों को नष्ट करने लगते हैं। वायु प्रदूषण के कारण हमें श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्रीय और रक्त संचारतंत्र संबंधी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। औद्योगिक भट्टियों में जलने वाले कोयले के धुएँ से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी भी हो सकती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
भारत में जल प्रदूषण की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु की तरह जल भी प्राकृतिक रूप से तथा मनुष्यों के क्रियाकलापों से प्रदूषित होता है। जल प्रदूषण जल की गुणवत्ता में हास लाता है। जल प्रदूषण के प्राकतिक कारण हैं अपरदन, भस्खलन, पेड-पौधों और मत जीव-जंतओं जबकि मनुष्य द्वारा जल को घरेलू बहिस्राव, नगरीय बहिस्राव, औद्योगिक तथा कृषि एवं सिंचाई के कार्यों आदि के माध्यम से प्रदूषित किया जाता है। प्रदूषित जल में बैक्टीरिया तथा कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है।

औद्योगिक बहिस्रावों में अपशिष्ट पदार्थ, विषैली गैसें, रासायनिक अपशिष्ट तथा अनेक विपत्तिजनक पदार्थ प्रवाहित जल में बहा दिए जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप विषैले तत्त्व जलाशयों, नदियों तथा अन्य जल भंडारों में पहुँचकर जल की गुणवत्ता का ह्रास करते हैं और इसके जैव तंत्र को नष्ट कर देते हैं। जल को प्रदूषित करने वाले प्रमुख उद्योग हैं-चमड़ा उद्योग, लुगदी और कागज उद्योग, वस्त्र तथा रसायन उद्योग। गंगा और यमुना नदी के किनारों पर स्थित प्रमुख नगरों में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ नदियों में बहाया जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार इन नदियों का 75 प्रतिशत जल प्रदूषित हो चुका है।

उदाहरण के लिए, भारत में गंगा और यमुना नदियों में प्रदूषण के स्रोत का निम्नलिखित तालिका द्वारा वर्णन किया गया है-

नदी और राज्यप्रदूषित भागप्रदूषण का स्वरूप या प्रकृतिअतिशोषण द्वारा प्रमुख प्रदूषक
गंगा (उत्तर प्रदेश,(i) कानपुर के नीचे का भाग(i) कानपुर जैसे नगरों से औद्योगिक प्रदूषणकानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना और कोलकाता जैसे नगरों से घरेलू अपशिष्ट नदी में बहा दिए जाते हैं।
बिहार और पश्चिमी बंगाल)(ii) वाराणसी के नीचे(ii) नगरीय केंद्रों से घरेलू अपशिष्ट और नदी में मृत जीव-जंतुओं का विसर्जन।
यमुना (उत्तर प्रदेश, और दिल्ली)(iii) फरक्का बाँध से इलाहाबाद तक
(a) दिल्ली से चंबल के संगम तक
(b) मथुरा और आगरा
(iii) नदी में लाशों का प्रवाह
(a) हरियाणा और उत्तर प्रदेश द्वारा सिंचाई के लिए जल की निकासी
(b) कृषीय अपवाह के परिणामस्वरूप यमुना में सूक्ष्म प्रदूषकों का उच्च स्तर
(c) दिल्ली के घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों का नदी में प्रवाह करना।
दिल्ली नगर अपना घरेलू अपशिष्ट यमुना में प्रवाहित करता है।

इनके अतिरिक्त वर्तमान में उच्च नस्ल के अन्न की पैदावार के लिए खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। अधिक उर्वरक और कीटनाशकों के प्रयोग से इनके रसायन रिसकर भूतल में या सिंचाई जल वर्षा या बाढ़ द्वारा बहकर भूमिगत जल में ही मिल जाते हैं, इससे जल प्रदूषित हो जाता है। भारत में पृष्ठीय जल के लगभग सभी स्रोत संदूषित तथा मानव के उपयोग के अयोग्य हैं।

संदूषित जल से अनेक भयानक बीमारियाँ फैलती हैं। भारत में एक-चौथाई संक्रामक रोग प्रदूषित जल से ही पैदा होते हैं। दूषित जल से उत्पन्न होने वाली प्रमुख बीमारियाँ हैं-अतिसार, रोहा तथा पीलिया आदि।

प्रश्न 2.
भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि के कारण भारत जैसे विकासशील देश में रोजगार व औद्योगीकरण के कारण लोग गाँव से नगरों में प्रवास करते हैं, जिससे वहाँ कई प्रकार की सामाजिक व आर्थिक समस्याएँ पैदा होती हैं। नगरीकरण और औद्योगीकरण से नगरों में मलिन या गंदी बस्तियों व झोंपड़-पट्टी का विस्तार होता है। भारत के महानगरों में एक तरफ तो अच्छी सुविधाओं से युक्त बस्तियाँ हैं तो वहीं दूसरी ओर झुग्गी-झोंपड़ी और मलिन बस्तियाँ हैं। इनमें वे लोग रहते हैं जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में आजीविका की खोज में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि वे ऊँचे किराए और जमीन की महँगी कीमत होने के कारण अच्छे घरों में नहीं रह पाते।

इसलिए वे लोग पर्यावरण की दृष्टि से बेमेल और निम्नीकृत क्षेत्रों पर कब्जा करते रहते हैं। मलिन बस्तियाँ न्यूनतम वांछित आवासीय क्षेत्र होते हैं, जहाँ जीर्ण-शीर्ण मकान, स्वास्थ्य की निम्न सुविधाएँ, खुली हवा का अभाव, पेयजल, प्रकाश तथा शौच जैसी आवश्यक सुविधाओं का अभाव पाया जाता है। संक्षेप में, मलिन बस्तियों की समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(i) मलिन बस्तियों में अधिक जनसंख्या रहती है और यहाँ निम्न आय वाले लोग रहते हैं, जो रोजगार की तलाश में गाँवों से नगरों में आते हैं। यहाँ इन्हें अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इन बस्तियों के आस-पास गंदगी का विशाल ढेर फैला होता है।

(ii) ये बस्तियाँ निम्नीकृत क्षेत्रों पर बसी हुई हैं। ये क्षेत्र बहुत-ही भीड़-भाड़, पतली-संकरी गलियों तथा आग जैसे गंभीर खतरों के जोखिम से युक्त होते हैं।

(iii) इन बस्तियों में मकान जीर्ण-शीर्ण, स्वास्थ्य की निम्न सुविधाएँ, पीने के पानी की कमी, प्रकाश और शौच जैसी सुविधाओं का अभाव पाया जाता है।

(iv) ये लोग अल्प-पोषित होते हैं। इनमें विभिन्न रोग होने की संभावना बनी रहती है।

(v) गरीबी, बेरोज़गारी व अभावग्रस्त वातावरण में रहने के कारण ये लोग नशीली दवाओं, शराब, अपराध, गुडांगर्दी आदि की ओर उन्मुख हो जाते हैं। नगरों के अधिकांश अपराध यहीं पनपते हैं।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 3.
भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:
भू-निम्नीकरण से अभिप्राय स्थायी या अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता की कमी है। भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. मृदा को क्षरण, लवणीकरण और अन्य प्रकार के क्षरण से बचाने के लिए भूमि व जल प्रबंधन को एकीकृत करना।
  2. ठोस कचरे के उत्पादन में कमी लाना और उसको पुनः प्रयोग में लाना। ठोस कचरे का उचित प्रबंध करना।
  3. उद्योगों से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थों को खाली भूमि पर न फेंकना।
  4. बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण या वनीकरण व चराई का उचित प्रबंधन।।
  5. बंजर भूमि का उचित प्रबंधन।
  6. औद्योगिक अपशिष्ट का पूर्ण निरावेशन व नष्ट करना।
  7. खनन प्रक्रिया और अति सिंचाई नियंत्रित करना।
  8. चरागाहों पर बढ़ते दबाव का प्रबंधन।
  9. कृषि में नई प्रौद्योगिकी एवं तकनीक का प्रयोग करना।
  10. रेतीली, मरुस्थलीय, तटीय भूमि को उर्वरकों एवं कम्पोस्ट और सिंचाई की सुविधाओं से योग्य बनाना आदि।

भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ HBSE 12th Class Geography Notes

→ प्रदूषण (Pollution) : मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों से कुछ पदार्थ और ऊर्जा निकलती है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण में कुछ हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसे प्रदूषण कहा जाता है।

→ प्रदूषक (Pollutant) : पारितंत्र में विद्यमान प्राकृतिक संतुलन में ह्रास और प्रदूषण उत्पन्न करने वाली ऊर्जा या पदार्थ के किसी रूप को प्रदूषक कहा जाता है।

→ पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) : पर्यावरण का ह्रास होना पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।

→ जल प्रदूषण (Water Pollution) : सारे जीव-जंतुओं के जीवित रहने के लिए जल का साफ-सुथरा और लगातार मिलते रहना बहुत आवश्यक है। जल में घुलनशील व अघुलनशील अशुद्धियों या चीजों के मिल जाने से जल का दूषित होना जल-प्रदूषण (Water Pollution) कहलाता है।

→ वाय प्रदूषण (Air Pollution): जब वायु में निश्चित मात्रा में अधिक विषैली और हानिकारक गैसें तथा धूलकण मिल जाते हैं, तो उसे वायु-प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।

→ ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) : जब ध्वनि अवांछनीय हो या कानों और मस्तिष्क में हलचल करे, तो उसे . ध्वनि-प्रदूषण कहते हैं। यह एक ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव के जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

→ भू निम्नीकरण (Land Degradation): भू-निम्नीकरण का अभिप्राय स्थायी या अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता की कमी है। कृषि योग्य भूमि पर दबाव का कारण केवल सीमित उपलब्धता ही नहीं, बल्कि इसकी गुणवत्ता में कमी भी इसका कारण है। मृदा अपरदन, लवणता तथा भू-क्षारता से भू-निम्नीकरण होता है।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है-
(A) अंतर्देशीय व्यापार
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
(C) बाह्य व्यापार
(D) स्थानीय व्यापार
उत्तर:
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

2. निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलबद्ध पोताश्रय है?
(A) विशाखापट्टनम
(B) एन्नौर
(C) मुंबई
(D) हल्दिया
उत्तर:
(A) विशाखापट्टनम

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

3. भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार वहन होता है-
(A) स्थल और समुद्र द्वारा
(B) स्थल और वायु द्वारा
(C) समुद्र और वायु द्वारा
(D) समुद्र द्वारा
उत्तर:
(C) समुद्र और वायु द्वारा

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. भारत का विदेशी व्यापार प्रतिकूल रहना।
  2. विभिन्न प्रकार की निर्मित वस्तुओं का निर्यात करना।
  3. विश्व के लगभग सभी देशों के साथ व्यापारिक संबंध।
  4. आयात में विभिन्नता। आयात व्यापार में पेट्रोलियम का आयात अधिक होना।
  5. अधिकांश व्यापार समुद्री मार्गों से होना।

प्रश्न 2.
पत्तन और पोताश्रय में अंतर बताइए।
उत्तर:
पत्तन और पोताश्रय में निम्नलिखित अंतर हैं-

पोताश्नय (Harbour)पत्तन (Port)
1. सागर में जहाज़ों के प्रवेश करने के प्राकृतिक स्थान को पोताश्रय कहते हैं।1. ये सागरीय तट पर जहाज़ों के ठहरने के स्थान होते हैं।
2. यहाँ जहाज़ सागरीय लहरों तथा तूफानों से सुरक्षित रहते हैं।2. यहाँ जहाज़ों पर सामान लादा तथा उतारा जाता है।
3. ज्वारनद मुख तथा कटे-फटे तट पर आदर्श प्राकृतिक पोताश्रय मिलती हैं, उदाहरण के लिए मुंबई पोताश्रय।3. यहाँ बस्तियों तथा गोदामों की सुविधाएँ होती हैं।
4. जलतोड़ दीवारों का निर्माण करके कृत्रिम पोताश्रय बनाई जा सकती हैं; जैसे चेन्नई पोताश्रय।4. इसमें जल तथा थल दोनों क्षेत्र होते हैं। ये व्यापार के द्वार कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
पृष्ठप्रदेश के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पत्तन के आस-पास का क्षेत्र पृष्ठप्रदेश कहलाता है। पृष्ठप्रदेश की सीमाओं का चिह्नांकन करना मुश्किल होता है क्योंकि यह क्षेत्र पर सुस्थिर नहीं होता। अधिकतर एक पत्तन का पृष्ठप्रदेश दूसरे पत्तन के पृष्ठप्रदेश का अतिव्यापन कर सकता है।

प्रश्न 4.
उन महत्त्वपूर्ण मदों के नाम बताइए जिन्हें भारत विभिन्न देशों से आयात करता है?
उत्तर:
भारत निम्नलिखित वस्तुओं का विभिन्न देशों से आयात करता है

  1. पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद
  2. कच्चा माल एवं खनिज
  3. उर्वरक
  4. मशीनें अथवा पूंजीगत माल
  5. खाद्य पदार्थ
  6. अन्य वस्तुएँ आदि।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 5.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तनों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तन निम्नलिखित हैं-

  1. तूतीकोरिन
  2. चेन्नई
  3. विशाखापट्टनम
  4. पारादीप
  5. हल्दिया
  6. कोलकाता।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निर्यात और आयात के संयोजन से बनता है। जब कोई देश अपनी वस्तु या सेवा को अन्य देशों को बेचता है तो इसे निर्यात कहते हैं। इसके विपरीत जब कोई देश अन्य देशों से वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदता है तो उसे आयात कहते हैं।

भारत का आयात संघटन/संयोजन (Composition of India’s Import)-भारत विश्व का एक प्रमुख आयातक देश है। पिछले 30-40 वर्षों में भारत में 20-25 गुना आयात बढ़ा है। अप्रैल, 2019 में 41.40 अरब अमेरिकी डॉलर (287432.9 करोड़) का आयात हुआ, जो अप्रैल 2018 के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 4.48% अधिक है और रुपए की लिहाज से 10.52% अधिक है। हम स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले निर्मित वस्तुओं का आयात करते थे। इसके बाद इन वस्तुओं के आयात में कमी आने लगी। हमारे परिवहन तथा औद्योगिक विकास के लिए पेट्रोलियम के आयात की आवश्यकता बढ़ी है। अन्य आयातक वस्तुओं में खाद्यान्न, मशीनें, उर्वरक, दवाइयाँ, खाने के तेल, कागज़ आदि पदार्थ हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

1. पेट्रोलियम तथा संबंधित उत्पाद सन् 1950-51 में 55 करोड़ रुपए का पेट्रोलियम उत्पाद का आयात किया गया था, जो बढ़कर सन् 1984-85 में 534 करोड़ रुपए हो गया। सन् 2016-17 में 5,82,762 करोड़ रुपए के पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया गया था। भारत मध्य-पूर्व देशों से तेल का आयात करता है।

2. मशीनें-अपने औद्योगिक विकास के लिए भारत को स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद मशीनों की बहुत आवश्यकता हुई तथा बड़े पैमाने पर इनका आयात किया गया। इनमें कपड़ा बनाने की मशीनें, कृषि मशीनें तथा खनिज उद्योग की मशीनें शामिल हैं।

3. लोहा-इस्पात भारत में लोहे का उत्पादन खपत से कम है। सन् 1950-51 में केवल 16 करोड़ रुपए का लोहा-इस्पात का आयात किया गया था, जो बढ़कर सन् 2012-13 में लगभग 59 करोड़ रुपए का लोहा-इस्पात आयात किया गया। हम जापान, बेल्जियम, ब्रिटेन, जर्मनी तथा दक्षिणी कोरिया से लोहा मंगवाते रहे हैं। 2016-2017 में लोहा-इस्पात के आयात में कुछ कमी आई।

4. उर्वरक देश में कृषि को बढ़ावा देने के लिए भारी उर्वरकों की जरूरत पड़ी। सन् 1985-86 में लगभग 1,436 करोड़ रुपए तथा 2012-13 में 49,433 करोड़ रुपए के उर्वरक बाहर से मंगवाए गए थे, परंतु अब इनका आयात घट रहा है। हम इनको संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि देशों से मंगवाते हैं। उर्वरक के आयात में 2015-2016 के दौरान 2.1% की वृद्धि हई। . 2016-2017 में इसमें 1.3% की वृद्धि दर दर्ज की गई।

5. हीरे तथा कीमती पत्थर-भारत इनका निर्यातक भी है। भारत बिना कटे हीरे बाहर से मंगवाता है तथा इन्हें काटकर, पॉलिश करके निर्यात करता है। हमने सन् 1986-87 में 1495.48 करोड़ रुपए के हीरों का तथा 2012-13 में 1,23,071 करोड़ रुपए के हीरों तथा कीमती पत्थरों का आयात किया था। 2016-2017 में 1,59,464 करोड़ रुपए के आभूषणों व रत्नों का आयात किया गया।

6. खाद्य तेल-भारत को भारी मात्रा में इन्हें आयात करना पड़ता है। सन् 1955-56 में केवल 7 करोड़ रुपए के मूल्य के ख के तेलों का आयात किया गया था, जो बढ़कर सन् 1986-87 में 611 करोड़ रुपए तथा 2012-13 में 61,106 करोड़ रुपए हो गया। 2016-2017 में 73,048 करोड़ रुपए तेल का आयात हुआ। भारत के लिए इनका मुख्य स्रोत संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील तथा मलेशिया हैं।

7. दवाइयाँ हमारी दवाइयों की मांग में बहुत वृद्धि हो रही है। सन् 1985-86 में 84.4 करोड़ रुपए के मूल्य की दवाइयों का आयात किया गया था। यही आयात बढ़कर 2016-17 में 33504 करोड़ रुपए हो गया। हमारी दवाइयों के मुख्य स्रोत जर्मनी, इटली, चीन, स्पेन, बेल्जियम तथा पोलैंड आदि हैं। वर्तमान में भारत में आयात व्यापार के संघटन में काफी बदलाव हुआ है। सोने का आयात मार्च, 2019 में 31.22 प्रतिशत से बढ़कर 3.27 अरब डॉलर पर पहुँच गया। कच्चे तेल का आयात 5.55 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 11.75 अरब डॉलर रहा। पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में निर्यात 9 प्रतिशत बढ़कर 331 अरब डॉलर पर पहुंच गया। वित्त वर्ष के दौरान व्यापार घाटा बढ़कर 176.42 अरब डॉलर रहा, जो 2017-2018 में 162 अरब डॉलर था।

भारत का निर्यात संघटन/संयोजन (Composition of India’s Export)-स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश के निर्यात व्यापार में भी वृद्धि और विविधता आई
1. कृषि और समवर्गी उत्पाद-पिछले कुछ वर्षों में भारत के निर्यात में कृषि एवं समवर्गी उत्पादों का हिस्सा घटा है। कृषि उत्पादों के अंतर्गत कॉफ़ी, मसाले, चाय व दालों आदि परम्परागत वस्तुओं का निर्यात अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण घटा है।

2. विनिर्मित वस्तुएँ वर्ष 2011-12 में विनिर्माण क्षेत्र ने भारत के कुल निर्यात मूल्य में अकेले 68.6 प्रतिशत की भागीदारी अंकित की थी। निर्यात सूची में इंजीनियरी के सामान, विशेषतः मशीनों और उपकरणों ने महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाई है। 2012-13 में देश के कुल निर्यात में इंजीनियरी सामान का हिस्सा 21.68 प्रतिशत था।

3. पेट्रोलियम एवं अपरिष्कृत उत्पाद-यद्यपि भारत कच्चे तेल का आयातक है, लेकिन यह पेट्रोलियम उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्यात भी करता है। इसका कारण यह है कि भारत ने 21 तेल-शोधनशालाएँ लगाकर तेल-शोधन की क्षमता बढ़ा ली है। पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात में 1997-98 में हिस्सा लगभग 1 प्रतिशत था जो बढ़कर 2011-12 में 15.6 प्रतिशत हो गया है। पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात हिस्से में वृद्धि का कारण इनके मूल्य में वृद्धि है।

4. अयस्क एवं खनिज-भारत के निर्यात व्यापार में अयस्कों एवं खनिजों का महत्त्व बढ़ने लगा है। 1999-2000 में इनके कुल निर्यात में हिस्सा 2.5 प्रतिशत था जो 2014-15 में बढ़कर लगभग 12.76 प्रतिशत हो गया। 2016-2017 में 35,947 करोड़ रुपए अयस्क एवं खनिज का निर्यात हुआ।

देश का निर्यात मार्च, 2019 में 11 प्रतिशत से बढ़कर 32.55 अरब डॉलर पर पहुँच गया। फार्मा, रसायन और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में ऊंची वृद्धि की वजह से कुल निर्यात बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मार्च, 2019 में आयात भी 1.44 प्रतिशत बढ़कर 43.44 अरब डॉलर रहा। हालांकि इस दौरान व्यापार घाटा घटकर 10.89 अरब डॉलर पर आ गया, जो मार्च, 2018 में 13.51 अरब डॉलर था।

प्रश्न 2.
भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सभी देशों के लिए परस्पर लाभदायक होता है, क्योंकि कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है। हाल ही के वर्षों में भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की मात्रा (Volume), उसके संघटन (Compositions) और व्यापार की दिशा में आमूल परिवर्तन (Sea Changes) देखे गए। यद्यपि विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कुल मात्रा का केवल 1.6 प्रतिशत है, फिर भी विश्व की अर्थव्यवस्था में इसकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति या प्रारूप (Changing Nature or Pattern of International Trade)-समय के साथ भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़े परिवर्तन हुए हैं
(1) भारत का विदेशी व्यापार 1950-51 में 1,214 करोड़ रु० मूल्य का था जो 2012-2013 में बढ़कर 43,04,513 करोड़ रु० मूल्य का हो गया था। यह वृद्धि 1707 गुणी थी। विदेशी व्यापार में इस तीव्र वृद्धि के तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • विनिर्माण के क्षेत्र में तेज़ तरक्की (Rapid Growth in the field of manufacturing)
  • सरकार की उदार नीतियाँ (Liberal Policies of Government),
  • बाज़ारों की विविधरूपता (Diversification of Markets)।

(2) समय के साथ विदेशी व्यापार की प्रकृति में भी बदलाव आया है। भारत में आयात और निर्यात दोनों की ही मात्रा में वृद्धि हुई है, लेकिन निर्यात की तुलना में आयात का मूल्य अधिक रहा है। 2017 में आयात 344408.90 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2018 में 37813.57 मिलियन डॉलर हो गया तथा निर्यात 2017 में 24726.71 मिलियन डॉलर से 2018 में 25834.36 मिलियन डॉलर हो गया।

(3) अर्थव्यवस्था में विविधता आने के बावजूद आयात तथा निर्यात के मूल्यों में अन्तर बढ़ता रहा और व्यापार सन्तुलन हमारे विपक्ष में होता गया। इसके लिए निम्नलिखित पाँच कारण उत्तरदायी हैं

  • विश्व स्तर पर मूल्यों में वृद्धि।
  • विश्व बाज़ार में भारतीय रुपए का अवमूल्यन।
  • बढ़ती जनसंख्या की घरेलू उत्पादों की बढ़ती मांग और उत्पादन में धीमी प्रगति।
  • घाटे में हुई इस वृद्धि के लिए अपरिष्कृत (Crude) पेट्रोलियम को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह भारत की आयात
  • सूची में एक प्रमुख व महँगा घटक है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

(4) इसी के परिणामस्वरूप विश्व के कुल निर्यात व्यापार में भारत की भागीदारी 2.1 प्रतिशत (सन् 1950) से घटकर सन् 1960 में 1.2 प्रतिशत और सन 2014-15 में मात्र 0.9 प्रतिशत रह गई है।
तालिका : भारत का विदेशी/अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (अरब डॉलर में)

वर्षनिर्यातआयातव्यापार घाटा
200142.554.5-12.0
200244.553.8-9.3
200348.361.6-13.3
200457.2474.15-16.91
200569.1889.33-20.15
200676.23113.1-36.87
2007112.0187.9-75.9
2008176.4305.5-129.1
2009168.2274.3-106.1
2010201.1327.0-125.9
2011299.4461.4-162.0
2012298.4500.4-202.2
2013313.2467.5-154.3
2014318.2462.9-144.7
2015310.3447.9-137.6
2016262.3381.0-118.7
2017275.8384.3-108.5

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार HBSE 12th Class Geography Notes

→ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) : निर्यात एवं आयात के संयोजन से बनता है।

→ व्यापार संतुलन (Balance of Trade) : आयात और निर्यात का अंतर व्यापार संतुलन कहलाता है।

→ निर्यात (Export) : जब कोई देश अपनी वस्तु या सेवा को अन्य देशों को बेचता है तो उसे निर्यात कहते हैं।

→ आयात (Import) : जब कोई देश अन्य देशों से वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदता है तो उसे आयात कहते हैं।

→ पत्तन (Port) : पत्तन गोदी (Dock), घाट तथा सामान उतारने व चढ़ाने की सुविधा से युक्त ऐसा स्थान है जो स्थल मार्गों से जुड़ा होता है।

→ पोताश्रय (Harbour) : सागर में जहाजों के प्रवेश करने के प्राकृतिक स्थान को पोताश्रय कहते हैं।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. भारतीय रेल प्रणाली को कितने मंडलों में विभाजित किया गया है?
(A) 9
(B) 16
(C) 12
(D) 17
उत्तर:
(D) 17

2. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत का सबसे लंबा राष्ट्रीय महामार्ग है?
(A) एन एच-1
(B) एन एच-7
(C) एन एच-6
(D) एन एच-8
उत्तर:
(D) एन एच-8

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

3. राष्ट्रीय जल मार्ग संख्या-1 किस नदी पर तथा किन दो स्थानों के बीच पड़ता है?
(A) ब्रह्मपुत्र-सादिया-धुबरी
(B) गंगा-हल्दिया-इलाहाबाद
(C) पश्चिमी तट नहर-कोट्टापुरम से कोल्लाम
(D) राजपुरम-मालिकपुर-राजहंस
उत्तर:
(B) गंगा-हल्दिया-इलाहाबाद

4. निम्नलिखित में से किस वर्ष में पहला रेडियो कार्यक्रम प्रसारित हुआ था?
(A) 1911
(B) 1927
(C) 1936
(D) 1923
उत्तर:
(D) 1923

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
परिवहन किन क्रियाकलापों को अभिव्यक्त करता है? परिवहन के तीन प्रमुख प्रकारों के नाम बताएँ।
उत्तर:
परिवहन तीन प्रकार के क्रियाकलापों को अभिव्यक्त करता है। परिवहन के तीन प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  1. स्थल परिवहन
  2. जल परिवहन
  3. वायु परिवहन।

प्रश्न 2.
पाइप लाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।
उत्तर:
लाभ-

  • तरल और गैस पदार्थों के लिए पाइप लाइनें सर्वश्रेष्ठ साधन हैं।
  • पाइप लाइनों को ऊबड़-खाबड़ भू-भागों तथा पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।

हानि-

  • एक बार पाइप लाइन बिछ जाने के बाद उसकी क्षमता में वृद्धि नहीं की जा सकती।
  • भूमिगत पाइप लाइन की मरम्मत करना कठिन होता है।

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प्रश्न 3.
‘संचार’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक-स्थान से दूसरे स्थान पर सूचना एवं संदेश भेजने या प्राप्त करने की विस्तृत व्यवस्था को संचार कहा जाता है। रेडियो, दूरदर्शन, दूरभाष, उपग्रह संचार के मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 4.
भारत में वायु परिवहन के क्षेत्र में ‘एयर इंडिया’ तथा ‘इंडियन’ के योगदान की विवेचना करें।
उत्तर:
एयर इण्डिया-एयर इण्डिया विदेशी उड़ानों की व्यवस्था करता है। यह यात्रियों व नौयार यातायात दोनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाएँ उपलब्ध कराता है। यह अपनी सेवाओं द्वारा विश्व के सभी महाद्वीपों को जोड़ता है।

इण्डियन इण्डियन देश में प्रमुख घरेलू उड़ानें भरती है। एयरलाइंस एयर के साथ मिलकर यह देश के 63 स्थानों से अधिक को वायु सेवा उपलब्ध कराती है। 8 दिसंबर, 2005 को इण्डियन एयरलाइंस ने अपने नाम से ‘एयरलाइंस’ शब्द को अलग कर दिया और अब इसे केवल ‘इण्डियन’ के नाम से ही जाना जाता है। अब इसे नए लोगों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं? इनके विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार 1
परिवहन के विभिन्न साधनों के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. भौगोलिक कारक-तकनीकी दृष्टि से रेलमार्गों व सड़क के निर्माण के लिए समतल मैदानी क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ होते हैं। जबकि पठारी क्षेत्रों में असमतल धरातल के कारण रेल की पटरियों को बिछाना व सड़कें बनाना महंगा और कठिन होता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व तथा गुणवता दोनों ही ऊँचे होते हैं। असमतल धरातल के कारण ही उत्तर की ओर हिमालय पर्वत श्रेणियों पर रेलमार्ग नहीं बनाए जा सके।

2. आर्थिक कारक-सड़क व रेलमार्गों के विकास के लिए आर्थिक परिस्थितियों का अनुकूल होना भी आवश्यक है। यही कारण है कि सघन जनसंख्या, विकसित कृषि क्षेत्र तथा औद्योगिक प्रदेशों में परिवहन के साधनों का सबसे अधिक विकास हुआ है।

3. राजनीतिक कारक-स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले अंग्रेजों ने परिवहन के साधनों का विकास अपने शासन को दृढ़ करने, सैनिक शक्ति को बढ़ाने और भारत के कच्चे माल का शोषण करने के उद्देश्य से ही किया था। उन्होंने बंदरगाहों को उनके संपूर्ण पृष्ठ प्रदेश से इसलिए जोड़ा ताकि गाँवों से अधिशेष उत्पाद छोटे नगरों, वहाँ से बड़े नगरों और फिर बंदरगाहों तक लाया जा सके। रेलमार्गों के विकास ने अंतर्देशीय जल परिवहन का महत्त्व कम किया है। भारी और कम मूल्य के पदार्थों की पूर्ति के लिए जलमार्ग सस्ते व उपयुक्त साधन हैं।

विशाल दूरियों और विभिन्न भू-आकारों वाले देश में वायुयान जैसे परिवहन के आधुनिक साधन का महत्त्व दिनो-दिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 2.
पाइप लाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।
उत्तर:
परिवहन के विभिन्न साधनों में से पाइप लाइन परिवहन एक आधुनिक परिवहन का साधन है। यह एक सस्ती एवं सुगम परिवहन प्रणाली है। इस साधन का उपयोग खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस को एक-स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता है। वस्तुतः खनिज तेल और प्राकृतिक गैस जिन स्थानों से निकाले जाते हैं वहाँ उनका उपभोग नहीं हो सकता, इसीलिए इन तरल पदार्थों का परिवहन पाइप लाइनों के द्वारा उपभोग के स्थान पर तथा तेल शोधनशालाओं तक पहुँचाया जाता है। पाइप लाइनों से पूर्व यह कार्य सड़कों तथा रेलों द्वारा किया जाता था जिससे अधिक व्यय के साथ-साथ कठिनाई भी होती थी, लेकिन बाद में पाइप लाइनों का प्रयोग किए जाने से कई समस्याओं का समाधान हो गया।

पाइप लाइन परिवहन के लाभ-पाइप लाइन परिवहन के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • पाइप लाइनों को ऊबड़-खाबड़ भूमि पर बिछाया जा सकता है।
  • पाइप लाइनों को पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।
  • तरल व गैस पदार्थों के परिवहन का सबसे उत्तम माध्यम है।
  • पाइप लाइनों के रख-रखाव में बहुत कम खर्चा होता है।
  • इनमें ऊर्जा का उपयोग भी कम होता है।
  • यह परिवहन पर्यावरण अनुकूलन है।

पाइप लाइन परिवहन की हानियाँ-पाइप लाइन परिवहन की हानियाँ निम्नलिखित हैं-

  • पाइप लाइनों को बिछाने के बाद इसकी क्षमता को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता।
  • लोचशीलता के अभाव के कारण पाइप लाइन परिवहन को निश्चित स्थानों के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है।
  • पाइप लाइनों की सुरक्षा व्यवस्था करना कठिन होता है।
  • पाइप लाइनों के मरम्मत में भी बहुत कठिनाई आती है।

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प्रश्न 3.
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
आदिकाल से ही भारत में स्थल मार्ग परिवहन के अन्तर्गत सड़कों का अधिक महत्त्व रहा है। इसे परिवहन के अन्य सभी प्रकारों का आधार स्तम्भ भी कहा जा सकता है। सड़क परिवहन अपनी लचक, माल की सुरक्षा, समय की बचत, सेवा का व्यापक क्षेत्र तथा सस्ती सेवा के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय साधन माना जाता है। भारत में सड़कों की व्यवस्था बहुत पुरानी है। यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा काल के क्षेत्रों की खुदाई के पश्चात् भी पाई गई थी। भारतीय शासकों ने अपने राज्यों को दूसरे राज्यों से जोड़ने के लिए अनेक सड़कों का निर्माण करवाया। इन पक्की सड़कों पर जल के बहकर चले जाने की व्यवस्था भी रखी गई थी। सम्राट अशोक ने इन राजकीय राजमार्गों को सुधारा तथा उनका विस्तार किया।

मुगल बादशाहों में शेरशाह सूरी का योगदान सड़कें बनाने में अत्यधिक माना जाता है। उन्होंने ढाका से वाराणसी, आगरा, दिल्ली होते हुए लाहौर तक और वहाँ से सिन्धु नदी तक ग्रांड ट्रंक रोड (G.T. Road) बनवाई जो आगरा से जोधपुर, आगरा से इन्दौर, आगरा से चित्तौड़गढ़ तथा लाहौर से मुल्तान तक जाती थी। बाद में अंग्रेजों द्वारा इस ग्रांड ट्रंक रोड की मुरम्मत वर्ष 1880 में करवाई गई। यह राष्ट्रीय राजमार्ग शेरशाह सूरी मार्ग के नाम से जाना जाता है। सन् 1870 के पश्चात् अंग्रेजों का ध्यान रेलमार्गों के विकास की ओर होने के कारण सड़कों का विकास तीव्र गति से नहीं हो पाया। केवल उन्हीं सड़क मार्गों के निर्माणों पर ध्यान दिया गया जिनका आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से अधिक महत्त्व था।

भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका इस प्रकार है
1. राष्ट्रीय राजमार्ग ये राजमार्ग राज्य की राजधानियों, बड़े-बड़े औद्योगिक तथा व्यापारिक नगरों, मुख्य बंदरगाहों, खनन क्षेत्रों तथा राष्ट्रीय महत्त्व के शहरों तथा कस्बों को आपस में जोड़ते हैं जो न केवल आर्थिक दृष्टि से, अपितु सैनिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण, सुधार, रख-रखाव तथा विकास की जिम्मेदारी पूर्णतः केन्द्र सरकार की है। ये भारत को म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, चीन तथा पाकिस्तान से भी जोड़ता है। भारत में कुल सड़क परिवहन का लगभग 40% राष्ट्रीय राजमार्गों से होकर गुजरता है, जबकि कुल सड़क तंत्र में इनका हिस्सा केवल 15% है।

2. प्रांतीय अथवा राजकीय राजमार्ग-ये राज्यों की प्रमुख सड़कें हैं। ये व्यापार, उद्योग तथा सवारी यातायात की दृष्टि से राज्यों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ये सड़कें राज्य के प्रत्येक कस्बे, जिला मुख्यालयों, राज्य के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक-औद्योगिक नगरों तथा राज्य की राजधानी को आपस में जोड़ती हैं। ये राष्ट्रीय राजमार्गों तथा निकटवर्ती राज्यों से मिली होती हैं। इन राजमार्गों के निर्माण तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर होती है।

3. जिला सड़कें-ये सड़कें जिले के बड़े गांवों, विभिन्न कस्बों, प्रमुख नगरों, उत्पादक केन्द्रों और मण्डियों को आपस में तथा जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं। इनमें से अधिकांश सड़कें कच्ची होती हैं जो वर्षा काल में अनुपयुक्त हो जाती हैं। अनेक स्थानों पर ये बड़ी सड़कों से भी जुड़ी होती हैं। इनके निर्माण तथा देखभाल का दायित्व जिला बोर्ड, जिला परिषदों या संबंधित सार्वजनिक निर्माण विभाग का होता है।

4. ग्रामीण सड़कें विभिन्न गांवों को आपस में जोड़ने वाली ये सड़कें गांवों को जिला एवं राज्य सड़कों से भी जोड़ती हैं। ये सड़कें प्रायः कच्ची संकरी तथा पगडण्डियाँ मात्र होती हैं। ग्राम पंचायत इन सड़कों का निर्माण तथा रख-रखाव करती है। जिला प्रशासन भी इन सड़कों के निर्माण में सहायता करता है। आजकल इन्हें पक्का करने की प्राथमिकता दी जा रही है।

5. द्रुत राजमार्ग-देश में व्यापारिक यातायात के त्वरित संचलन के लिए इन राजमार्गों का निर्माण किया जाता है।

प्रमुख द्रुत राजमार्ग हैं-

  • पूर्वी एक्सप्रेस राजमार्ग
  • पश्चिमी एक्सप्रेस राजमार्ग
  • कोलकाता से दमदम हवाई अड्डे के बीच द्रुत राजमार्ग
  • सुकिन्दा खानों से पारा बन्दरगाह के बीच द्रुत राजमार्ग
  • दुर्गा-कोलकाता द्रुत राजमार्ग
  • दिल्ली-आगरा द्रुत राजमार्ग
  • अहमदाबाद-वडोदरा द्रुत राजमार्ग।

6. अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग-ये राजमार्ग एशिया-प्रशान्त आर्थिक एवं सामाजिक आयोग के साथ किए गए करार के अधीन विश्व बैंक की सहायता से बनाए गए हैं। इनका उद्देश्य भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों को इन राजमार्गों से जोड़ना है, जिससे ये पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार तथा बांग्लादेश के साथ जुड़ सकें।

7. सीमा सड़कें देश की सीमाओं पर सीमावर्ती सड़कों के निर्माण व रख-रखाव के लिए सन् 1960 में सीमा सड़कें विकास बोर्ड की स्थापना की गई। इसकी स्थापना का उद्देश्य अल्प-विकसित जंगली, पर्वतीय तथा मरुस्थलीय सीमा क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देने के साथ-साथ रक्षा सैनिकों के लिए अनिवार्य आपूर्ति को भी बनाए रखना था। देश की प्रतिरक्षा तथा सुरक्षा में इन सड़कों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह संगठन हिमालय, पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों तथा राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में सड़कों के निर्माण तथा रख-रखाव के लिए उत्तरदायी है।

परिवहन तथा संचार HBSE 12th Class Geography Notes

→ परिवहन तंत्र (Transport System) : यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें यात्रियों तथा माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाया और ले जाया जाता है।

→ परिवहन के साधन (Sources of Transport) : परिवहन के साधनों को सामान्यतया तीन वर्गों में बाँटा गया है-

  • स्थल परिवहन : स्थल परिवहन के अंतर्गत सड़क और रेल परिवहन आते हैं।
  • जल परिवहन : जल परिवहन के अंतर्गत नदियाँ तथा अंतःस्थलीय परिवहन आता है।
  • वायु परिवहन : वायु परिवहन देश के आधुनिक परिवहन का साधन है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

→ भारत की मुख्य सड़कें (Main Roads of India):

  • स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग : दिल्ली-कोलकाता, चेन्नई-मुंबई व दिल्ली को जोड़ने वाले 6 लेन वाले महामार्ग।
  • राष्ट्रीय राजमार्ग : देश के दूरस्थ भागों को जोड़ने वाले मार्ग; जैसे दिल्ली-अमृतसर मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-1)।
  • राज्य राजमार्ग : राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाले मार्ग।
  • जिला मार्ग : जिले के विभिन्न प्रशासनिक केंद्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाले मार्ग।
  • ग्रामीण सड़कें : ग्रामीण क्षेत्रों तथा गाँवों को शहरों से जोड़ने वाली सड़कें।
  • सीमांत सड़कें : सीमा सड़क संगठन द्वारा देश के सीमावर्ती दुर्गम क्षेत्रों में बनाई गई सड़कें।

→ संचार तंत्र (Communication System): एक-स्थान से दूसरे स्थान पर सूचना एवं संदेश भेजने या प्राप्त करने की विस्तृत व्यवस्था को संचार तंत्र कहा जाता है।

→ संचार के साधन (Sources of Communication) : रेडियो, टी०वी०, दूरभाष, उपग्रह, यंत्र, पोस्टकार्ड, समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ, चलचित्र आदि। नोट : भारतीय रेल प्रणाली में पहले 16 रेल मंडल होते थे, लेकिन वर्तमान में 17 रेल मंडल हो चुके हैं। मैट्रो रेल मण्डल नया मण्डल बना है।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. प्रदेशीय नियोजन का संबंध है
(A) आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का विकास
(B) परिवहन जल तंत्र में क्षेत्रीय अंतर
(C) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(D) ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
उत्तर:
(C) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम

2. आई०टी०डी०पी० निम्नलिखित में से किस संदर्भ में वर्णित है?
(A) समन्वित पर्यटन विकास प्रोग्राम
(B) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(C) समन्वित यात्रा विकास प्रोग्राम
(D) समन्वित परिवहन विकास प्रोग्राम
उत्तर:
(B) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

3. इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है?
(A) कृषि विकास
(B) परिवहन विकास
(C) पारितंत्र-विकास
(D) भूमि उपनिवेशन
उत्तर:
(A) कृषि विकास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या हैं?
उत्तर:
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के निम्नलिखित सामाजिक लाभ हुए-

  1. साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि
  2. लिंग अनुपात में सुधार और
  3. बाल विवाह में कमी।

प्रश्न 2.
सतत पोषणीय विकास की संकल्पना को परिभाषित करें।
उत्तर:
विकास की वह अवधारणा जिसके अंतर्गत संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जाता है कि उसके पुनर्भरण की संभावना भी बनी रहे और पर्यावरण का भी कम-से-कम नुकसान हो, सतत पोषणीय विकास कहलाती है। विश्व पर्यावरण व विकास आयोग के अनुसार, “सतत पोषणीय विकास एक ऐसा विकास है जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।

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प्रश्न 3.
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर निम्नलिखित सकारात्मक प्रभाव पड़ा है-

  1. इंदिरा गाँधी नहर परियोजना से मरुस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है।
  2. इससे मरुभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यों के लिए भी पानी मिलने लगा है।
  3. यह विशेषतौर से गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और नागौर जैसे रेगिस्तानी जिलों के निवासियों को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवा रही है।
  4. नहरी सिंचाई के प्रसार से इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल गई है। इससे बोए गए क्षेत्र का विस्तार हुआ है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
सूखा (प्रवण) संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायक है?
उत्तर:
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई। इसका उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को . रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया। योजना के प्रारंभ में इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है, परंतु बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और ग्रामीण अवसंरचना; जैसे बिजली, सड़क, बाजार, ऋण सुविधा और सेवाओं पर बल दिया गया।

इस कार्यक्रम की समीक्षा में यह पाया गया कि यह कार्यक्रम मुख्यतया कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के विकास तक ही सीमित है और पर्यावरणीय संतुलन पुनः स्थापन पर इसमें विशेष बल दिया गया। सूखा संभावी क्षेत्रों के विकास की रणनीति में जल, मिट्टी, पौधों, मानव तथा पशु जनसंख्या के बीच पारिस्थितिकीय संतुलन, पुनः स्थापन पर बल दिया जाना चाहिए। सन् 1967 में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों की पहचान सूखा संभावी जिलों के रूप में की।

भारत में सखा संभावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आंध्र प्रदेश की रायलसीमा और कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भागों के शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में फैले हुए हैं। सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम से शुष्क कृषि के विकास में सहायता मिलती है। इन क्षेत्रों का विकास करने की अन्य रणनीतियों में सूक्ष्म-स्तर पर समन्वित जल संभर विकास कार्यक्रम अपनाना आवश्यक है।

प्रश्न 2.
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
इंदिरा गांधी नहर, जिसे पहले राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था, भारत के सबसे बड़े नहर तंत्रों में से एक है। यह नहर पंजाब में हरिके बाँध से निकलती है और राजस्थान के थार मरुस्थल पाकिस्तान सीमा के समानांतर 40 कि०मी० की औसत दूरी पर बढ़ती है। बहुत-से विद्वानों ने इंदिरा गांधी नहर परियोजना की पारिस्थितिकीय पोषणता पर प्रश्न उठाए हैं। इस क्षेत्र में विकास के साथ-साथ भौतिक पर्यावरण का निम्नीकरण हुआ है। इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास का लक्ष्य प्राप्त करने भारत के संदर्भ में नियोजन और सतत पोषणीय विकास के लिए मुख्य रूप से पारिस्थितिकीय सतत पोषणता पर बल देना होगा। इसलिए इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले सात उपायों में से पाँच उपाय पारिस्थितिकीय संतुलन पुनः स्थापित करने पर बल देते हैं।

(1) जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन करना। इस नहर परियोजना के चरण-1 में कमान क्षेत्र में फसल रक्षण सिंचाई और चरण-चरण में फसल उगाने और चरागाह विकास के लिए विस्तारित सिंचाई का प्रावधान है।

(2) इस क्षेत्र के शस्य (फसल) प्रतिरूप में सामान्यतया सघन फसलों को नहीं आ चाहिए। किसानों को बागानी कृषि में खट्टे फलों की खेती करनी चाहिए।

(3) कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम; जैसे नालों को पक्का करना, भूमि विकास, समतलन और नहर के जल का समान वितरण प्रभावी रूप से कार्यान्वित किया जाए ताकि बहते जल का नुकसान न हो।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

(4) इस प्रकार जलाक्रांत एवं लवण से प्रभावित भूमि का पुनरुद्धार किया जाएगा।

(5) वनीकरण, वृक्षों की रक्षण मेखला का निर्माण और चरागाह विकास।

(6) निर्धन आर्थिक स्थिति वाले भू-आबंटियों को कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय और संस्थागत सहायता उपलब्ध करवाकर सतत पोषणता का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

(7) कृषि और इससे संबंधित क्रियाकलापों को अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों से जोड़कर ही सतत पोषणीय विकास किया जा सकता है।

भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास HBSE 12th Class Geography Notes

→ नियोजन (Planning) : किसी देश के भविष्य की समस्याओं का समाधान करने के लिए बनाए गए कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं के क्रम को विकसित करने की प्रक्रिया को नियोजन कहा जाता है। ये समस्याएँ मुख्य रूप से आर्थिक और सामाजिक ही होती हैं जो समय के साथ बदलती रहती हैं।

→ नियोजन के उपगमन (Approaches of Planning) : (i) खंडीय नियोजन, (ii) क्षेत्रीय नियोजन।

→ लक्ष्य क्षेत्र नियोजन (Target Area Planning) : आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को रोकने व क्षेत्रीय आर्थिक और सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को काबू में रखने के क्रम में योजना आयोग ने लक्ष्य-क्षेत्र तथा लक्ष्य-समूह योजना उपागमों को प्रस्तुत किया है। लक्ष्य क्षेत्र कार्यक्रमों में कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

→ विकास (Development) : विकास को आधुनिकीकरण का सूचक माना जाता है। विकास ऐसी प्रक्रिया है जो ऐसी संरचनाओं या संस्थाओं का निर्माण करती है, जो समाज की समस्याओं का समाधान निकालने में समर्थ हो।

→ सतत पोषणीय विकास (Continuous Nourished Development) : विकास की वह अवधारणा जिसके अंतर्गत संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जाता है कि उसके पुनर्भरण की संभावना भी बनी रहे और पर्यावरण का भी कम-से-कम नुकसान हो, सतत पोषणीय विकास कहलाती है। यह वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भावी पीढ़ी की जरूरतों का भी ध्यान रखती है।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. कौन-सा औद्योगिक अवस्थापना का एक कारण नहीं है?
(A) बाज़ार
(B) जनसंख्या घनत्व
(C) पूँजी
(D) ऊर्जा
उत्तर:
(B) भारत

2. में सबसे पहले स्थापित की गई लौह-इस्पात कंपनी निम्नलिखित में से कौन-सी है?
(A) भारतीय लौह एवं इस्पात कंपनी (आई.आई.एस.सी.ओ.)
(B) टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टी.आई.एस.सी.ओ.)
(C) विश्वेश्वरैया लौह तथा इस्पात कारखाना
(D) मैसूर लोहा तथा इस्पात कारखाना
उत्तर:
(B) टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टी.आई.एस.सी.ओ.)

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

3. मुंबई में सबसे पहला सूती वस्त्र कारखाना स्थापित किया गया, क्योंकि-
(A) मुंबई एक पत्तन है
(B) मुंबई एक वित्तीय केंद्र था
(C) यह कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. हुगली औद्योगिक प्रदेश का केंद्र है-
(A) कोलकाता-हावड़ा
(B) कोलकाता मेदनीपुर
(C) कोलकाता-रिशरा
(D) कोलकाता-कोन नगर
उत्तर:
(A) कोलकाता-हावड़ा

5. निम्नलिखित में से कौन-सा चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है?
(A) महाराष्ट्र
(B) पंजाब
(C) उत्तर प्रदेश
(D) तमिलनाडु
उत्तर:
(C) उत्तर प्रदेश

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है, ऐसा क्यों?
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगिक और आर्थिक विकास की धुरी बन गया है। यह देश के औद्योगिक विकास की बुनियाद की रचना करता है। इसके उत्पाद से ही अन्य उद्योगों की मशीनों व जन-संरचना का निर्माण होता है। इसी कारण यह उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है। इसलिए इसे अन्य उद्योगों की जननी भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइए। वे किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टर निम्नलिखित हैं-

  1. संगठित सेक्टर
  2. असंगठित सेक्टर

संगठित सेक्टर में मिल क्षेत्र से प्राप्त होने वाले सूती कपड़े के उत्पादन में कमी आई है, जबकि असंगठित सेक्टर के अंतर्गत हैंडलूम व पॉवरलूम क्षेत्र में बनने वाले सूती वस्त्र उत्पादन में वृद्धि हुई है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

प्रश्न 3.
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है?
उत्तर:
भारत में चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है। चीनी की मिलें गन्ने की कटाई के बाद केवल 4-5 महीने अर्थात् नवंबर से अप्रैल तक चलती हैं। वर्ष के बाकी 7-8 महीने ये मिलें बंद रहती हैं। इससे श्रमिकों को रोजगार की समस्या रहती है और चीनी की उत्पादन लागत भी बढ़ती है।

प्रश्न 4.
पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा माल क्या है? इस उद्योग के कुछ उत्पादों के नाम बताइए।
उत्तर:
पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा माल, कच्चा खनिज तेल व प्राकृतिक गैस होता है। इस उद्योग से प्लास्टिक, संश्लेषित रेशा, संश्लेषित रबड़ व संश्लेषित अपमार्जक (Detergent) आदि उत्पाद बनाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?
उत्तर:
सूचना प्रौद्योगिकी एक ज्ञान आधारित उद्योग है। इसके विकास ने न केवल लोगों की जीवन-शैली को बदला है, बल्कि इससे उत्पादन, वितरण और निर्यात की संपूर्ण प्रक्रिया में तेजी और विश्वसनीयता आई है। आज भारत का सॉफ्टवेयर उद्योग अर्थव्यवस्था को तेजी से उभारता हुआ क्षेत्र बन गया है। इसने आर्थिक एवं सामाजिक रूपांतरण के लिए अनेक नई संभावनाएँ उत्पन्न की हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
‘स्वदेशी’ आंदोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को किस प्रकार विशेष प्रोत्साहन दिया?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा प्राचीन उद्योग है। 18वीं शताब्दी तक भारत में सूती वस्त्र निर्माण हथकरघों की सहायता से कुटीर स्तर पर प्रचलित था। यूरोप की औद्योगिक क्रांति से इस उद्योग को बहुत बड़ा धक्का पहुँचा। मशीनी युग ने इस उद्योग को और भी जर्जर बना दिया। भारत में आधुनिक ढंग से सूती वस्त्र बनाने की पहली मिल सन् 1818 में कोलकाता के निकट फोर्ट ग्लॉस्टर नामक स्थान पर लगाई गई, किंतु यह प्रयास असफल रहा। पहली सफल मिल मुंबई में सन् 1854 में लगाई। इस मिल की स्थापना से भारत में आधुनिक सूती वस्त्र उद्योग का सूत्रपात हुआ। अनुकुल भौगोलिक दशाओं के कारण मुंबई व निकटवर्ती क्षेत्रों में कई मिलें स्थापित होने लगीं। अहमदाबाद में सन् 1861 में शाहपुर मिल लगाई गई। स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को बहुत प्रोत्साहन दिया।

इस आंदोलन से विदेशी कपड़ों का बहिष्कार जन-जन द्वारा किया गया व सूती वस्त्रों के प्रयोग पर बल दिया गया। ब्रिटेन में बने वस्त्रों को आम जनता के सामने जलाया गया, ताकि लोग ब्रिटिश वस्त्रों को त्यागकर भारतीय सूती वस्त्रों को अपनाएँ। परिणामस्वरूप सूती वस्त्रों की माँग बढ़ी। दो विश्व युद्धों के कारण भी इस उद्योग को प्रोत्साहन मिला। ब्रिटेन के बने वस्त्रों का बहिष्कार करके भारतीय वस्त्रों को उपयोग में लाने का आह्वान किया गया। सन् 1921 के बाद रेलमार्गों के विकास के साथ सूती वस्त्र केंद्रों का तेजी से विस्तार हुआ। भारत के अनेक भागों में सूती वस्त्रों की मिलें स्थापित की गई। अतः स्पष्ट है कि स्वदेशी आंदोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को विशेष रूप से स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 2.
आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से क्या समझते हैं? इन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है?
उत्तर:
1. उदारीकरण-उदारीकरण से अभिप्राय नियमों व प्रतिबंधों में ढील देने या उनमें उदारता बरतने से है ताकि उद्योगों के विकास में बाधा डाल रहे गैर-जरूरी नियंत्रणों से मुक्ति मिल सके।

औद्योगिक विकास पर प्रभाव-

  • उदारीकरण की नीति से औद्योगिक विकास में तेजी आई है।
  • देश की सुरक्षा तथा पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील छः उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।
  • उद्योगों के विकेंद्रीकरण की सुविधा से दुर्गम और अविकसित क्षेत्रों में उद्योग लगने लगे।

2. निजीकरण-निजीकरण वह सामान्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा निजी लोग किसी सरकारी उद्यम का मालिक बन जाता है या उसका प्रबंध करता है।

औद्योगिक विकास पर प्रभाव-

  • सन् 1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए 17 उद्योगों की सूची बनाई गई थी, लेकिन अब उसमें केवल चार उद्योग रह गए हैं। अन्य उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है।
  • भारतीय सेना के लिए सुरक्षा सामग्री बनाने वाले उद्योगों को भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है।
  • निजीकरण से न केवल सरकार का आर्थिक भार घटता है, बल्कि कार्यकुशलता में भी वृद्धि होती है।
  • नए आविष्कारों के प्रोत्साहन एवं वस्तु की गुणवत्ता बढ़ने से औद्योगिक विकास के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी विकसित होता है।

3. वैश्वीकरण वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

औद्योगिक विकास पर प्रभाव-

  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रतिरक्षा सहित सभी क्षेत्रों में निवेश की अनुमति मिल गई है।
  • लाइसेंस पद्धति को समाप्त करके आयात को बहुत ही उदार बना दिया गया है।
  • भारतीय रुपए को चालू खाते पर पूरी तरह परिवर्तनीय बना दिया गया है।
  • निवेश का मुख्य भाग प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ही लगाया गया है।
  • घरेलू व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का ज्यादातर हिस्सा विकसित राज्यों को मिला है।

निर्माण उद्योग HBSE 12th Class Geography Notes

→ विनिर्माण/निर्माण उद्योग (Manufacturing Industries) : संसाधनों को अति महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया जिन उद्योगों में की जाती है, उन्हें विनिर्माण उद्योग कहते हैं। इनके संचालन में चालक-शक्ति का प्रयोग किया जाता है। ये किसी देश की अर्थव्यवस्था के स्तर का मापदंड होते हैं।

→ उदारीकरण (Liberalisation) : उदारीकरण से अभिप्राय नियमों व प्रतिबंधों में ढील देने या उनमें उदारता बरतने से है ताकि उद्योगों के विकास में बाधा डाल रहे गैर-जरूरी नियंत्रणों से मुक्ति मिल सके।

→ निजीकरण (Privatisation) : निजीकरण वह सामान्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा निजी लोग किसी सरकारी उद्यम का मालिक बन जाता है या उसका प्रबंध करता है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 8 निर्माण उद्योग

→ वैश्वीकरण (Globalisation) : वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

→ उद्योगों का वर्गीकरण-

  • श्रमिकों की संख्या के आधार पर बड़े पैमाने के उद्योग, छोटे पैमाने के उद्योग।
  • स्वामित्व के आधार पर-निजी क्षेत्र के उद्योग, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग, संयुक्त क्षेत्र के उद्योग तथा सहकारी क्षेत्र के उद्योग। प्रमुख भूमिका के आधार पर-आधारभूत उद्योग और उपभोक्ता उद्योग।
  • कच्चे माल के स्रोत के आधार पर-कृषि आधारित उद्योग और खनिज आधारित उद्योग।
  • कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर-हल्के उद्योग और भारी उद्योग।

प्रमुख औद्योगिक प्रदेश (Major Industrial Regions):

  • हुगली औद्योगिक प्रदेश
  • मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश
  • गुजरात औद्योगिक प्रदेश
  • बंगलौर-तमिलनाडु औद्योगिक प्रदेश
  • छोटा नागपुर औद्योगिक प्रदेश
  • गुडगाँव-दिल्ली-मेरठ औद्योगिक प्रदेश

सार्वजनिक उद्योग (Public Industries): इन उद्योगों का संचालन सरकार करती है; जैसे भिलाई लौह-इस्पात केंद्र, नंगल उर्वरक कारखाना, टेलीफोन उद्योग आदि।

निजी उद्योग (Private Industries) : ये उद्योग व्यक्ति-विशेष चलाते हैं; जैसे टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रमुख तेल क्षेत्र स्थित हैं?
(A) असम
(B) राजस्थान
(C) बिहार
(D) तमिलनाडु
उत्तर:
(A) असम

2. निम्नलिखित में से किस स्थान पर पहला परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित किया गया था?
(A) कलपक्कम
(B) राणाप्रताप सागर
(C) नरोरा
(D) तारापुर
उत्तर:
(D) तारापुर

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

3. निम्नलिखित में कौन-सा खनिज ‘भूरा हीरा’ के नाम से जाना जाता है?
(A) लौह
(B) मैंगनीज़
(C) लिग्नाइट
(D) अभ्रक
उत्तर:
(C) लिग्नाइट

4. निम्नलिखित में कौन-सा ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है?
(A) जल
(B) ताप
(C) सौर
(D) पवन
उत्तर:
(B) ताप

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में अभ्रक के वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
अभ्रक (Mica) का मुख्य अयस्क पिग्माटाइट है जो आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है। अभ्रक उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। यहाँ विश्व का लगभग 80% अभ्रक उत्पन्न किया जाता है। इसका उपयोग विद्युतीय उपकरण, वायुयान मोटर और राडार बनाने में किया जाता है। भारत में अभ्रक उत्पादक राज्यों का विवरण इस प्रकार है

  1. आंध्र प्रदेश आंध्र प्रदेश के नैल्लोर व खम्भात क्षेत्र से अभ्रक प्राप्त किया जाता है। नैल्लोर से उत्तम किस्म के अभ्रक का उत्पादन किया जाता है।
  2. राजस्थान-राजस्थान में अभ्रक पेटी जयपुर से उदयपुर तक फैली हुई है। यहाँ अभ्रक के खनन का भविष्य उज्ज्वल है।
  3. झारखंड यहाँ के अभ्रक उत्पादक क्षेत्र हैं-हजारीबाग और सिंहभूम।
  4. बिहार-यहाँ अभ्रक की लंबी पेटी पाई जाती है। इस पेटी को ‘विश्व का अभ्रक भंडार’ कहा जता है। गया, मुंगेर यहाँ के प्रमुख अभ्रक उत्पादक क्षेत्र हैं।
  5. अन्य उत्पादक राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र आदि हैं।

प्रश्न 2.
नाभिकीय ऊर्जा क्या है? भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केंद्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
नियंत्रित परिस्थितियों में अणुओं के टूटने से पैदा होने वाली ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है। यह ऊर्जा के अणु टूटने से बनती है, इसलिए इसे परमाणु ऊर्जा भी कहते हैं।

भारत के प्रमुख नाभिकीय या परमाणु ऊर्जा केंद्र-

  1. तारापुर – महाराष्ट्र
  2. काकरापाड़ा – गुजरात
  3. रावतभाटा – राजस्थान
  4. कैगा – कर्नाटक
  5. कल्पक्कम – तमिलनाडु
  6. नरोरा – उत्तर प्रदेश

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 3.
अलौह धातुओं के नाम बताएँ। उनके स्थानिक वितरण की विवेचना करें।
उत्तर:
बॉक्साइट और ताँबा प्रमुख अलौह धातुएँ हैं।
1. बॉक्साइट-बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य ओडिशा (उड़ीसा) है। यहाँ के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र हैं कालाहांडी और संभलपुर। अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्य हैं-गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि। बॉक्साइट के गौण . उत्पादक राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु व गोवा आदि हैं।

2. ताँबा-ताँबे की प्राप्ति धारवाड़ क्रम की शिष्ट एवं फाइलाइट शैलों की शिराओं से होती है। भारत में ताँबे के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-राजस्थान (खेतड़ी, सिंघाना, झुंझुनु, अलवर), मध्यप्रदेश (बालाघाट), झारखंड (सिंहभूम) आंध्र प्रदेश (गुंटूर, अन्निगुण्डल), कर्नाटक (हासन, चित्रदुर्ग) आदि हैं।

प्रश्न 4.
ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत कौन-से हैं?
उत्तर:
ऊर्जा के वे स्रोत जिनके प्रयोग की पहले से परंपरा न रही हो, वे ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत कहलाते हैं। इसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय तरंगों की ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा तथा बायोगैस सम्मिलित हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत के पेट्रोलियम संसाधनों पर विस्तृत टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
ऊर्जा एवं शक्ति के साधन के रूप में खनिज तेल का प्रचार एवं प्रसार बढ़ रहा है। पेट्रोलियम या खनिज तेल का उपयोग मुख्य रूप से नए प्रकार के इंजनों, जलयानों या वायुयानों में किया जाता है। यह कच्चे रूप में प्राप्त किया जाता है तथा उत्पादक क्षेत्र से तेल शोधन-शालाओं तक पहुंचाया जाता है, जहाँ इसके शोधन से गैसोलिन, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, डीज़ल, मोम तथा मशीनों को चिकना करने का स्नेहक (Lubricant) प्राप्त होता है।

खनिज तेल अवसादी या तलछटी चट्टानों में पाया जाता है, जो भारत में 17 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में फैला है। भारत में ये क्षेत्र या तो समुद्र तटवर्ती भागों में हैं या सतलुज-गंगा के मैदान में, जहाँ पर परतदार चट्टानें अधिक हैं। भारत में वर्तमान समय में तेल क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी भारत तथा राजस्थान, कावेरी, कृष्णा तथा गोदावरी के बेसिन में या बॉम्बे हाई में स्थित है। खनिज तेल उत्पादन की दृष्टि से हमारी स्थिति संतोषजनक नहीं है क्योंकि हमारे तेल-स्रोत अधिकांशतः उत्तरी-पूर्वी राज्यों तक ही सीमित हैं। हमें अपनी घरेलू माँग की पूर्ति के लिए तेल का आयात करना पड़ता है। हम केवल अपनी 40% आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम हैं। उत्तरी-पूर्वी राज्यों में डिगबोई, नहारकटिया, मसीपुर तथा बदरपुर प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।

उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र के अलावा पश्चिमी क्षेत्र जिसमें गुजरात तथा मुंबई (बॉम्बे) हाई से तेल का उत्पादन शुरू हो गया है, जिसका तेल उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खंभात की खाड़ी में अंकलेश्वर प्रमुख तेल क्षेत्र है। मुंबई (बॉम्बे) हाई तथा गुजरात में बड़ी मात्रा में तेल प्राप्ति के कारण काफी हद तक घरेलू माँग की पूर्ति हो रही है। उत्तरी-पूर्वी तेल क्षेत्रों का कच्चा तेल शोधन के लिए गुवाहटी के निकट नूनमती तथा बिहार में बरौनी की तेल शोधन-शालाओं में साफ किया जाता है, जबकि गुजरात के कोयली (बड़ौदा) तथा मुंबई (बॉम्बे) हाई का तेल ट्रॉम्बे की शोधन-शालाओं में परिष्करण हेतु लाया जाता है। भारत में लगभग 22 परिष्करणशालाएँ कार्यरत हैं, जिनकी क्षमता 534 लाख टन प्रतिवर्ष से अधिक तेल शोधन की है।

प्रश्न 2.
भारत में जल विद्युत पर एक निबंध लिखें।
उत्तर:
भारत में जल-शक्ति के विशाल भण्डार हैं। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि यह कोयले से उत्पन्न धुएं तथा उसके हानिकारक प्रभावों से मुक्त रहती है। इसे श्वेत कोयला भी कहा जाता है। कोयला तथा पेट्रोलियम के समाप्त हो जाने पर हमें जल-विधुत पर निर्भर रहना पड़ेगा। हम जल भण्डार का उचित प्रयोग करके जल विद्युत के उत्पादन को बढ़ा सकते हैं।

जल-विद्युत उत्पादन के लिए दशाएँ (Conditions for Production of Water Power)-जल विद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएँ निम्नलिखित हैं
1. लगातार जल प्रवाह (Constant Water Flow)-भारत के जिन क्षेत्रों में स्थाई जल-प्रवाह है, वहां जल-विद्युत का अच्छा विकास देखा गया है। दक्षिणी भारत में दोनों तरफ समुद्र तट होने के कारण तथा उपयुक्त वर्षा के कारण उत्तरी भारत की अपेक्षा ज्यादा जल-विद्युत परियोजनाएं स्थापित की गई हैं।

2. उच्चावच (Relief)-जल-विद्युत का उत्पादन ऊंचाई पर निर्भर करता है क्योंकि इसमें पानी को ऊंचाई से गिराकर बिजली पैदा की जाती है। जल-प्रपात पहाड़ी तथा पठारी भागों में अधिक पाए जाते हैं। नदियों पर कृत्रिम बांध बनाकर भी बिजली तैयार की जाती है। दक्षिणी भारत में अरब सागर के तट के समानांतर सहयाद्रि पर्वत फैले हैं।

3. तापमान (Temperature)-जल-विद्युत के लिए तापमान हिमांक के ऊपर रहना चाहिए। इसके लिए समशीतोष्ण जलवायु कि इसमें न तो जल का अधिक सुखा पड़ता है और न ही जल जमता है। उत्तरी भाग की नदियों का पानी जम जाने के कारण यहां बिजली संयंत्र कई-कई दिनों तक बंद हो जाते हैं।

4. मांग (Demand)-उत्तरी भारत की अपेक्षा दक्षिणी भारत में औद्योगिक विकास अधिक हुआ जिस कारण इस क्षेत्र में बिजली की मांग अधिक रहती है। भाखड़ा नांगल बांध से मुंबई को बिजली सप्लाई नहीं की जा सकती है।

5. ऊर्जा संसाधन (Energy Resources)-दक्षिणी भारत में कोयला कम पाया जाता है। यहां विद्युत, जल द्वारा निर्मित की जाती है। इस क्षेत्र में बहुत तीव्र ढाल और दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से काफी वर्षा होती है। उत्तर:पश्चिमी भारत में जल-विद्युत में कोयले का इस्तेमाल किया जाता है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

वितरण-भारत में जल विद्युत उत्पादन के प्रमुख केंद्र निम्नलिखित हैं
1. महाराष्ट्र (Maharashtra)-इस राज्य के जल-विद्युत केंद्र निम्नलिखित हैं-
(i) टाटा जल-विद्युत योजना (Tata Water Power Project)-पुणे के समीप लोनावला क्षेत्र में नीलामूला, बलट्रान, लोनावला झीलों में जल भण्डारों के आधार पर टाटा कम्पनी ने सन् 1915 में इस शक्ति गृह को स्थापित किया। यहां से पुणे तथा मुम्बई के औद्योगिक क्षेत्र को विद्युत की आपूर्ति की जाती है।

(ii) कोयना परियोजना (Koena Project) यह कृष्णा नदी की सहायक नदी पर मुंबई से 240 किलोमीटर दूर स्थित है। कोयना शक्ति गृह, ट्राम्बे वाष्प शक्ति गृह तथा चोला वाष्प शक्ति गृह को आपस में जोड़कर जल एवं ताप-विद्युत संघटन क्रम (Hydrothermal Grid) बनाया गया है। इन शक्ति गृहों से मुम्बई तथा निकटवर्ती ढाणे, कल्याण तथा पुणे क्षेत्रों को बिजली उपलब्ध करवाई जाती है।

2. कर्नाटक (Karnatka) इस राज्य के जल-विद्युत केंद्र निम्नलिखित हैं
(i) महात्मा गांधी जलविद्युत केंद्र (Mahatama Gandhi Water Power Centre) इसे सन् 1949 में कृष्णा नदी पर जोग जल-प्रपात पर स्थापित किया गया।

(ii) शिवसमुद्रम परियोजना (Shivsamudaram Project) यह बिजली संयंत्र कावेरी नदी पर शिवसमुद्रम नामक स्थान पर स्थित है। यहां से कोलार सोने की खानों तथा बंगलुरू, मैसूर और इसके निकटवर्ती क्षेत्रों को बिजली की आपूर्ति की जाती है।

(iii) शिम्सा परियोजना (Shimsa Project)-इस परियोजना को सन् 1920 में कावेरी नदी की सहायक शिम्सा नदी के जल-प्रपात पर स्थापित किया गया है। इससे कर्नाटक राज्य को बिजली दी जाती है।

3. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)-उत्तर प्रदेश में निम्नलिखित जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित की गई हैं
(i) गंगा विद्युत संगठन क्रम प्रणाली (Ganga Electric Organisation Serial)- हरिद्वार से मेरठ तक इस क्रम प्रणाली का विकास है। इसमें सलावा पलेरा, सुमेरानी गजनी, मुहम्मदपुर विद्युत केंद्र हैं।

(ii) माताटीला बांध (Matatila Dam) इसे बेतवा नदी पर झांसी के निकट स्थापित किया गया है।

(iii) रिहन्द परियोजना (Rihand Project)-मिर्जापुर जिले में पिपरी नामक स्थान पर रिहन्द नदी पर यह विद्युत-गृह स्थापित है।

4. उत्तराखण्ड (Uttarakhand)-उत्तराखण्ड के जल-विद्युत केंद्र निम्नलिखित हैं
(i) शारदा विद्युत संगठन क्रम प्रणाली (Sharda Electricity Organisation Serial System)-यह शारदा नहर पर तीन जल विद्युत केंद्र के साथ स्थापित है। इसे गंगा विद्युत संगठन क्रम से मिलाया गया है। इससे नैनीताल, अल्मोड़ा तथा उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को बिजली दी जाती है।

(ii) राम गंगा परियोजना (Ram Ganga Project) यह उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कालागढ़ स्थान पर रामगंगा नदी पर स्थापित है। यहाँ से कुमाऊं तथा गढ़वाल क्षेत्रों को बिजली दी जाती है।

5. पंजाब (Punjab)-पंजाब की जल-विद्युत परियोजनाएं निम्नलिखित हैं-

  • भाखड़ा नंगल परियोजना यह परियोजना रोपड़ के नजदीक भाखड़ा नामक स्थान पर सतलुज नदी पर बनाई गई है।
  • पोंग बांध परियोजना यह होशियारपुर में तलवाड़ा के निकट पोंग नामक स्थान पर व्यास नदी पर स्थित है।

6. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh)-इस राज्य की जल-विद्युत परियोजनाएं इस प्रकार हैं

  • मण्डी परियोजना यहाँ से मण्डी, कांगड़ा घाटी तथा उत्तरी पंजाब को बिजली दी जाती है।
  • पंडोह परियोजना यह व्यास नदी पर पंडोह नामक स्थान पर स्थित है।

7. तमिलनाडु (Tamilnadu) इस राज्य में निम्नलिखित जल-विद्युत परियोजनाएं स्थापित की गई हैं-

  • मैटर परियोजना
  • पापाकारा परियोजना
  • पापनाशम परियोजना
  • कुण्डा परियोजना आदि।

8. केरल (Kerela) केरल राज्य की जल-विद्युत परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं

  • पल्लीवासन परियोजना
  • सेगुलम परियोजना
  • पेरीगल कोथू परियोजना
  • नेरीयामगलम परियोजना
  • पेरियार परियोजना आदि।

खनिज तथा ऊर्जा संसाधन HBSE 12th Class Geography Notes

→ खनिज (Minerals) : धरातल अथवा भू-गर्भ से खोदकर प्राप्त की जाने वाली वस्तुओं को खनिज कहा जाता है।

→ धात्विक खनिज (Metallic Minerals) : ऐसे खनिज पदार्थों को, जिनके गलाने से विभिन्न प्रकार की धातुएँ प्राप्त होती हैं, धात्विक खनिज कहते हैं।

→ अधात्विक खनिज (Non-metallic Minerals) : ऐसे खनिज, जिनको गलाने से किसी प्रकार की कोई धात प्राप्त नहीं होती, उसे अधात्विक खनिज कहते हैं।

→ जैव ऊर्जा (Bio Energy) : जैविक उत्पादों से प्राप्त की जाने वाली ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं।

→ खनिज अयस्क (Mineral Ore) : भूमि से प्राप्त वह कच्ची धातु जिसमें मिट्टी और अन्य अशुद्धियाँ मिश्रित होती हैं।

→ खनन (Mining) : खनन वह आर्थिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा भूमि से खनिजों का निष्कासन किया जाता है। खनन को घातक उद्योग कहा जाता है।

→ ऊर्जा (Energy) : किसी भी कार्य को करने के लिए बल या शक्ति की जरूरत होती है जिसे ऊर्जा कहते हैं।

→ ऊर्जा संसाधन (Energy Resources) : वे संसाधन जिन्हें ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है, ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं।

→ लौह खनिज (Ferrous Minerals) : वे खनिज जिनमें लौह-अयस्क होते हैं, लौह खनिज कहलाते हैं।

→ अलौह खनिज (Non-Ferrous Minerals) : वे खनिज जिनमें लौह-अयस्क नहीं होते, अलौह खनिज कहलाते हैं।

→ नाभिकीय या परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) : नियंत्रित परिस्थितियों में अणुओं के टूटने से पैदा होने वाली ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है। यह ऊर्जा परमाणु के अणु टूटने से बनती है, इसलिए इसे परमाणु ऊर्जा भी कहते हैं।

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→ सौर ऊर्जा (Solar Energy)-सूर्य की गर्मी से प्राप्त ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं। गुजरात के भुज क्षेत्र में सौर ऊर्जा का एक बड़ा संयंत्र लगा हुआ है।

→ भ-तापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) भमि के गर्भ के ताप से प्राप्त ऊर्जा को भू-तापीय ऊर्जा भी कहते हैं।

→ पवन ऊर्जा (Air/Wind Energy)-भारत को विश्व में अब पवन महाशक्ति का दर्जा प्राप्त है। भारत में पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी तमिलनाडु नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है।

→ पन विद्युत (Hydroelectricity) : पानी से बनाई जाने वाली/ऊर्जा पन विद्युत कहलाती है।

→ जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) : भूमि या समुद्र तल में विभिन्न जीवों के संपीड़न से बना हुआ ईंधन, जीवाश्म ईंधन कहलाता है।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 6 जल संसाधन

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 6 जल संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 6 जल संसाधन

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है?
(A) अजैव संसाधन
(B) जैव संसाधन
(C) अनवीकरणीय संसाधन
(D) चक्रीय संसाधन
उत्तर:
(D) चक्रीय संसाधन

2. निम्नलिखित नदियों में से, देश में किस नदी में सबसे ज़्यादा पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन हैं?
(A) सिंधु
(B) गंगा
(C) ब्रह्मपुत्र
(D) गोदावरी
उत्तर:
(B) गंगा

3. घन कि०मी० में दी गई निम्नलिखित संख्याओं में से कौन-सी संख्या भारत में कुल वार्षिक वर्षा दर्शाती है?
(A) 2,000
(B) 4,000
(C) 3,000
(D) 5,000
उत्तर:
(B) 4,000
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4. निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उपयोग (% में) इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज्यादा है?
(A) तमिलनाडु
(B) आंध्र प्रदेश
(C) कर्नाटक
(D) केरल
उत्तर:
(A) तमिलनाडु

5. देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है?
(A) सिंचाई
(B) घरेलू उपयोग
(C) उद्योग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सिंचाई

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
यह कहा जाता है कि भारत में जल संसाधनों में तेजी से कमी आ रही है। जल संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जल एक आधारभूत प्राकृतिक व चक्रीय संसाधन है। जल के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन शुद्ध जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। जल संसाधनों की कमी में इसका अत्यधिक उपयोग, अधिक जनसंख्या, प्रदूषण और कुप्रबंधन आदि अधिक उत्तरदायी कारक हैं। जल का कोई अन्य विकल्प भी नहीं है। अतः जल एक अनिवार्य किंतु सीमित संसाधन है। इसलिए कहा जा सकता है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण भारत में जल संसाधनों में कमी आ रही है।

प्रश्न 2.
पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
भौम जल वितरण पर अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है; जैसे चट्टानों की संरचना, धरातल तथा जलापूर्ति की मात्रा आदि। पंजाब तथा हरियाणा में भौम जल की अधिकता के कारण यहाँ कोमल एवं प्रवेश्य चट्टानें पाई जाती हैं जिनसे वर्षा एवं बाढ़ का जल रिस-रिसकर भौम जल का रूप लेता रहता है। तमिलनाडु में चावल की खेती के लिए जल की आवश्यकता होती है। इसी कारण भौम जल का अधिक प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 3.
देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की संभावना क्यों है?
उत्तर:
देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की बड़ी संभावना है क्योंकि वर्तमान में औद्योगिक व घरेल क्षेत्रों में जल का उपयोग कृषि की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ रहा है तथा भविष्य में और अधिक जल उपयोग होने की संभावना है।

प्रश्न 4.
लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपभोग के क्या संभव प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर:
प्रदूषित जल के उपभोग से पेट की बीमारियाँ बढ़ती हैं। इससे न केवल मनुष्यों को खतरा है, बल्कि जलीय जीव-जंतुओं का जीवन भी संकट में है। प्रदूषित जल के कारण कई संक्रामक रोग; जैसे हैजा, पीलिया, अतिसार आदि हो जाते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
जल हमारे लिए एक मूल्यवान संपदा है। इसे हम पीने के लिए, कृषि के लिए, विद्युत उत्पादन के लिए तथा उद्योगों और परिवहन के लिए प्रयोग करते हैं। जल हमारे देश में अल्प मात्रा में तथा असमान रूप में मिलता है। अतः इसका प्रयोग बड़ी सूझ-बूझ से करना चाहिए। यह वर्षा ऋतु में तो खूब मिलता है, परंतु शुष्क ऋतु में इसका अभाव रहता है। जल-संसाधन से अधिकतम लाभ उठाने के लिए राष्ट्रीय जल-संसाधन परिषद् ने सन् 2002 में राष्ट्रीय जल-नीति बनाई है।

जल का सबसे बड़ा स्रोत वर्षा है। अंतर्भोम जल भी वर्षा से प्रभावित होता है। बहुत कम वर्षा वाले प्रदेश में अंतर्भीम जल खारा होता है। धरातल पर जल हमें नहरों, तालाबों, नदियों तथा झीलों के रूप में मिलता है। यह जल वर्षा से या ऊँचे पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने से प्राप्त होता है। इस जल के सिंचाई में उचित प्रबंध से हमारे कृषि क्षेत्र को बहुत लाभ हुआ है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों से नदियों पर

बाँध बनाकर इसका सदुपयोग किया जाता है। भारत में क्योंकि वर्षा अनिश्चित है, इसलिए पृष्ठीय जल का उचित दिशा में प्रयोग बहुत जरूरी है। फसलों को उचित समय पर जल प्रदान करने के लिए जल का उचित प्रबंध जरूरी है। एक अनुमान के अनुसार देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जल की मात्रा लगभग 4000 घन कि०मी० है। धरातलीय जल और पुनः पूर्तियोग भौम जल से लगभग 1869 घन कि०मी० जल उपलब्ध होता है। इसमें से केवल 60% जल का ही लाभदायक उपयोग किया जा सकता है।

नदियाँ, झीलें, तालाब आदि धरातलीय जल के मुख्य स्रोत हैं। धरातलीय जल का लगभग 690 घन कि०मी० अर्थात् लगभग 32% जल का ही लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। भारत की प्रमुख नदियों-गंगा, सिन्धु और ब्रह्मपुत्र में लगभग 60% धरातलीय जल बहता है।

देश में भौम जल या भूगर्भिक जल का वितरण असमान है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलन इ आदि राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक हैं और छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल आदि में इसका उपयोग बहुत कम है। भारत के उत्तरी मैदान में भौम जल के विशाल भंडार हैं। यहाँ पर लगभग 40% भौम जल उपलब्ध है। इसके विपरीत प्रायद्वीपीय भाग में भौम जल का अभाव है। इसलिए हमें जल संरक्षण की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

हमें पीने के पानी का उपयोग भी बडी किफायत से करना चाहिए। जल-संसाधन का संरक्षण बहत जरूरी है। इसके दरुपयोग के हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

प्रश्न 2.
जल संसाधनों का हास सामाजिक द्वंदों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
जल हमारे लिए एक मूल्यवान संपदा है। इसे हम पीने के लिए, कृषि के लिए, विद्युत् उत्पादन के लिए, उद्योगों और परिवहन के लिए प्रयोग करते हैं। हमारे देश में जल अल्प मात्रा में तथा असमान रूप.से मिलता है। अतः इसका प्रयोग बड़ी सूझ-बूझ से करना चाहिए। आज अधिक-से-अधिक पानी व्यर्थ गंवाया जा रहा है जितना इतिहास में पृथ्वी पर पहले कभी नहीं था। इसी वजह से 6 में से 1 व्यक्ति को साफ पीने का पानी उपलब्ध नहीं है।

निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण जल की माँग निरंतर बढ़ती जा रही है और उपलब्ध जल की मात्रा कम है। उपलब्ध जल को अनेक सामाजिक एवं औद्योगिक कारण दूषित कर रहे हैं। अप्रबंधन के कारण भी यह दूषित हो रहा है। अनेक सामाजिक द्वंदों और विवादों के कारण जल संसाधनों का ह्रास हुआ है। इनमें से कुछ द्वंद्व व विवाद इस प्रकार हैं

  • हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व हिमाचल में बहने वाली नदियों के जल बंटवारे को लेकर विवाद।
  • महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में नर्मदा नदी के पानी को लेकर विवाद।
  • कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के पानी को लेकर विवाद।
  • घरेलू कूड़े और औद्योगिक इकाई से जल का प्रदूषित होना।
  • शुद्ध जल संसाधनों की उपलब्धता सीमित होना और अधिक जनसंख्या की निर्भरता आदि।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 6 जल संसाधन

प्रश्न 3.
जल-संभर प्रबंधन क्या है? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत् पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है?
उत्तर:
जल-संभर प्रबंधन से तात्पर्य मुख्य रूप से धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों द्वारा भौम-जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल है। जल संभर प्रबंधन के अंतर्गत सभी संसाधन जैसे प्राकृतिक और जल संभर सहित मानवीय संसाधनों के संरक्षण, पुनः उत्पादन और विवेकपूर्ण उपयोग को शामिल किया जाता है। जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच संतुलन लाना है।

भारत में जल संभर विकास कार्यक्रम, कृषि ग्रामीण विकास तथा पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाता है। जल संभर विधि जल संरक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। भारत में अनेक जल संभर विकास कार्यक्रमों के उदाहरण हैं जिनमें प्रमुख है हरियाणा में अंबाला का सुखोमाजरी गाँव। इस गाँव ने वन और जल संसाधनों का विकास कर पूरे देश में प्रसिद्धि प्राप्त की है। गाँव की सामुदायिक सहभागिता से सुखना झील की गाद को निकाला गया।

झील के संग्रहण क्षेत्र में चार रोक बाँध बनाए गए तथा अनेक पेड़-पौधे लगाए गए। इन कार्यों से गाँव का जल-स्तर ऊपर हो गया तथा जीवन-स्तर भी ऊँचा हो गया। अन्य कुछ क्षेत्रों में भी जल संभर विकास योजनाएँ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की काया पलटने में सफल हुई है। आवश्यकता इस योजना के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की है और इस एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन उपागम द्वारा जल उपलब्धता सतत् पोषणीय आधार पर की जा सकती है।

जल संसाधन HBSE 12th Class Geography Notes

→ जल संसाधन (Water Resource) : भारत में विश्व के धरातलीय क्षेत्र का लगभग 4% जल संसाधनों का भाग पाया जाता है। हमें जल की प्राप्ति वर्षा, नदियों, झीलों, तालाबों, नहरों आदि से होती है।

→ सिंचाई (Irrigation) : वर्षा के अभाव में शुष्क खेतों तक मानव द्वारा जल पहुँचाने की व्यवस्था।

→ जलभृत (Aquifer) : पारगम्य शैल की परत, जिसमें जल भरा रहता हो; जैसे चाक और बलुआ पत्थर।

→ जल संभर या जल विभाजक (Watershed) : वह उत्थित सीमा, जो विभिन्न अपवाह-तन्त्रों में बहने वाली सरिताओं के शीर्ष भागों को पृथक करती है।

→ प्रवेश्य चट्टान (Pervious Rock) : वे चट्टानें जिनकी दरारों, संधियों और संस्तरण तल से होकर जल भूपृष्ठ से नीचे जा सकता हो। चाक और चूना पत्थर की शैलें इसके उदाहरण हैं।

→ पश्च जल (Back Water) : किसी नदी से संलग्न वह स्थिर जल क्षेत्र जो नदी की धारा से प्रभावित नहीं होता या उसमें प्रवाह गति अत्यन्त कम होती है। यह क्षेत्र उस स्थान पर तेजी से विकसित होता है जहाँ सरिता दो भागों में बँट जाती है अथवा जहाँ नदी विसर्प बनाती है या गुम्फित (Braided) होती है।

→ लैगून (Lagoon): हिन्दी भाषा में इसे अनूप कहते हैं। यह खारे जल का वह क्षेत्र होता है जो सागर तट पर निम्न रेत के किनारे द्वारा सागर से अलग किया हुआ होता है। इसके अतिरिक्त अटॉल से घिरा झील के समान जल का क्षेत्र भी लैगून कहलाता है।

→ वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) : भूमि तथा वनस्पति से होने वाला वाष्पन। इसमें जलाशयों, मृदाओं, शैलों के पृष्ठों और वर्धमान पौधों से वाष्प के रूप में नमी की क्षति भी शामिल है। चक्रीय संसाधन (Cyclical Resources) : ऐसे संसाधन जिन्हें प्रयोग के बाद शुद्ध करके बार-बार उपयोग में लाया जाता है।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. निम्न में से कौन-सा भू-उपयोग संवर्ग नहीं है?
(A) परती भूमि
(B) निवल बोया क्षेत्र
(C) सीमांत भूमि
(D) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि
उत्तर:
(C) सीमांत भूमि

2. पिछले 40 वर्षों में वनों का अनुपात बढ़ने का निम्नलिखित में से कौन-सा कारण है?
(A) वनीकरण के विस्तृत व सक्षम प्रयास
(B) सामुदायिक वनों के अधीन क्षेत्र में वृद्धि
(C) वन बढ़ोतरी हेतु निर्धारित अधिसूचित क्षेत्र में वृद्धि
(D) वन क्षेत्र प्रंबधन में लोगों की बेहतर भागीदारी
उत्तर:
(C) वन बढ़ोतरी हेतु निर्धारित अधिसूचित क्षेत्र में वृद्धि

3. निम्नलिखित में से कौन-सा सिंचित क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण का मुख्य प्रकार है?
(A) अवनालिका अपरदन
(B) मृदा लवणता
(C) वायु अपरदन
(D) भूमि पर सिल्ट का जमाव
उत्तर:
(B) मृदा लवणता

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

4. शुष्क कृषि में निम्नलिखित में से कौन-सी फसल नहीं बोई जाती?
(A) रागी
(B) मूंगफली
(C) ज्वार
(D) गन्ना
उत्तर:
(D) गन्ना

5. निम्नलिखित में से कौन-से देशों में गेहूँ व चावल की अधिक उत्पादकता की किस्में विकसित की गई थीं?
(A) जापान तथा आस्ट्रेलिया
(B) मैक्सिको तथा फिलीपींस
(C) संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान
(D) मैक्सिको तथा सिंगापुर
उत्तर:
(B) मैक्सिको तथा फिलीपींस

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
बंजर भूमि तथा कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
बंजर भूमि-वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती; जैसे मरुस्थल, बंजर पहाड़ी भू-भाग आदि। कृषि योग्य व्यर्थ भूमि वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षों तक या अधिक समय तक परती या कृषि-रहित है। भूमि उद्धार तकनीक द्वारा सुधार कर इसे कृषि योग्य बनाया जा सकता है।

प्रश्न 2.
निवल बोया गया क्षेत्र तथा सकल बोया गया क्षेत्र में अंतर बताएँ।
उत्तर:
निवल बोया गया क्षेत्र-वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं वह निवल अथवा शुद्ध बोया गया क्षेत्र कहलाता है। सकल बोया गया क्षेत्र इसमें बोया गया शुद्ध क्षेत्र तथा बोए गए शुद्ध क्षेत्र का वह भाग जिसका उपयोग वर्ष में एक से अधिक बार किया गया है दोनों शामिल होते हैं।

प्रश्न 3.
भारत जैसे देश में गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
भारत एक कृषि-प्रधान देश है। भारत की घनी आबादी व निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों की आपूर्ति करना एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इसके लिए गहन कृषि कार्यक्रम को अपनाने की आवश्यकता है ताकि किसानों को कृषि की उन्नत तकनीकों की सुविधा प्राप्त हो व बढ़ती जनसंख्या के लिए उत्पादन में वृद्धि हो सके।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 4.
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में क्या अंतर है?
उत्तर:
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में निम्नलिखित अंतर है-

शुष्क कृषिआर्द्र कृषि
1. यह भारत के पश्चिमी भागों-राजस्थान, गुजरात तथा दक्षिणी हरियाणा में होती है।1. यह भारत के पूर्वी भागों तथा पश्चिमी तटीय भागों में पाई जाती है ।
2. सामान्यतः 75 से०मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क कृषि की जाती है।2. सामान्यतः 75 से०मी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में आर्द्र कृषि की जाती है।
3. इसमें जल संसाधनों का अधिक प्रयोग किया जाता है।2. इसमें जल संसाधनों का कम या न्यूनतम प्रयोग किया जाता है।
4. इस कृषि की मुख्य फसलें-गेह्टू, जौ, बाजरा, चना आदि हैं।3. इस कृषि की मुख्य फसलें-चावल, चाय, रबड़ आदि हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए.

प्रश्न 1.
भारत में भूसंसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी हैं? उनका निदान कैसे किया जाए?
उत्तर:
भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है। यहाँ प्राकृतिक संसाधनों में बहुत ही विविधता पाई जाती है। भू-क्षेत्र के लगभग 43% मैदानी क्षेत्र पर फसलें उगाई जाती हैं। 30% क्षेत्र पर्वतों से घिरा है। 279 पर्वतों और पठारों के बीच नदी घाटियों का विकास हुआ है, जहाँ पर अधिवास की अनुकूल परिसि भारत उष्ण कटिबंधीय जलवायु का देश है। यह कृषि-प्रधान देश है और यहाँ की जलवायु मानसूनी है। भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। भारतीय मानसूनी वर्षा अनियमित व अनिश्चित है, जिससे वर्षा के प्रारंभ का समय निश्चित नहीं है। कहीं पर वर्षा बहुत अधिक व कहीं पर बहुत कम होती है, जिससे बाढ़ व सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

उष्ण जलवायु के कारण उत्पन्न खरपतवार व कीड़े कृषि को हानि पहुँचाते हैं। भूमि के लिए उत्पन्न खतरे; जैसे अधिक सिंचाई के कारण जलाक्रांति की समस्या, उष्ण और शुष्क भागों में लवणता अधिक होने की समस्या बन जाती है। भूमि की बचत करना एवं प्रौद्योगिकी विकसित करना बहुत आवश्यक है। इससे एक तो प्रति इकाई भूमि में फसल विशेष की उत्पादकता बढ़ेगी तथा दूसरा फसलों का उत्पादन भी बढ़ेगा। इस प्रौद्योगिकी का लाभ यह होगा कि इसमें सीमित भूमि से भी कुल उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ श्रमिकों की मांग भी बढ़ेगी। भू-उपयोग के लिए फसलों की सघनता भी आवश्यक है। भू-संसधानों के संरक्षण के लिए भूमि की गुणवत्ता को नष्ट होने से बचाया जाए।

प्रश्न 2.
भारत में स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् कृषि विकास की महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् कृषि विकास की महत्त्वपूर्ण नीतियाँ निम्नलिखित हैं
1. उन्नत बीजों का प्रयोग (Use of High Yielding Varieties) अधिक उपज देने वाली तथा शीघ्र पकने वाली फसलों के बीज तैयार किए गए। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और कई स्थानों पर वर्ष में दो या दो से अधिक फसलें तैयार होने लगीं। गेहूँ की नई किस्में; जैसे कल्याण, सोना आदि तथा चावल की नई किस्में; जैसे विजय, रत्ना, पद्मा आदि के प्रयोग से कृषि के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

2. उर्वरकों का प्रयोग (Use of Fertilizers) नई कृषि नीति के अंतर्गत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया गया जिससे कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। भारत अपनी आवश्यकता के लगभग 55% उर्वरक पैदा करता है तथा शेष का आयात करता है।

3. सिंचाई क्षेत्र का विस्तार (Extent of Irrigation Area)-सिंचाई क्षेत्र के विस्तार से हरित-क्रांति को बहुत सफलता मिली है। भारत जैसे मानसून प्रदेश में सिंचाई का बड़ा महत्त्व है। भारत में नहरें, कुएँ, नलकूप तथा तालाब सिंचाई के महत्त्वपूर्ण कारक हैं।

4. कीटनाशक औषधियों का प्रयोग (Use of Pesticides) अधिक उत्पादन लेने के लिए फसलों को कीड़ों तथा बीमारियों से बचाना अति आवश्यक है। इसके लिए कीटनाशक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। हरित-क्रांति के अंतर्गत इन औषधियों के प्रयोग को बढ़ाया गया है।

5. आधुनिक कृषि-यंत्रों का प्रयोग (Use of Modern Agricultural Machinery) भारतीय कृषि में पुराने, साधारण तथा परंपरागत हाथ के बने औजारों के स्थान पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग अधिक बढ़ गया जिससे हरित-क्रांति को सफलता मिली। आधुनिक कृषि-यंत्रों में ट्रैक्टर, कंबाइन, हारवेस्टर, थ्रेशर, पिकर, ड्रिल, बिजली की मोटरें तथा पंपिंग सेट आदि प्रमुख हैं।

6. भूमि सुधार (Land Reforms) हरित-क्रांति में नवीन विधियों के प्रयोग के साथ-साथ कृषि में भूमि-सुधारों की ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। मूलभूत सुधारों के बिना नवीन कृषि टेक्नालॉजी व्यर्थ सिद्ध होगी।

7. भू-संरक्षण कार्यक्रम (Soil Conservation Programme)-भूमि कटाव को रोकने तथा भूमि की उर्वरता शक्ति को बनाए रखने की दृष्टि से विभिन्न उपाय किए गए हैं। मरुस्थलों के विस्तार को रोकने के लिए शुष्क-कृषि प्रणाली के विस्तार से कार्य अपनाए जा रहे हैं। ‘कल्लर’ (क्षारीन) भूमि तथा कंदरायुक्त भूमि को कृषि योग्य बनाया जा रहा है। इस प्रकार जल प्लावन (Water Logging), क्षारीयता (Salination) तथा भू-क्षरण (Soil Erosion) के कार्यक्रम अपनाए गए हैं।

8. गहन कृषि (Intensive Farming) कई राज्यों में भू-खंडों के स्तर पर गहन कृषि तथा पैकेज प्रोग्राम आरंभ किए गए। कालांतर में इसे गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम में बदल दिया गया। इससे किसानों को कृषि में प्रयोग होने वाले सभी साधनों की सुविधा प्रदान की गई ताकि उत्पादन में वृद्धि हो सके।

भूसंसाधन तथा कृषि HBSE 12th Class Geography Notes

→ संसाधन (Resources) : कोई भी वस्तु अथवा पदार्थ जिसका उपयोग संभव हो और उसके रूपांतरण से उसकी उपयोगिता और मूल्य बढ़ जाए, संसाधन कहलाता है।

→ भू-संरक्षण कार्यक्रम (Soil Conservation Programme) : भूमि कटाव को रोकने तथा भूमि की उर्वरता शक्ति को बनाए रखने की दृष्टि से विभिन्न उपाय किए गए हैं। मरुस्थलों के विस्तार को रोकने के लिए शुष्क-कृषि प्रणाली के विस्तार से कार्य अपनाए जा रहे हैं। ‘कल्लर’ (क्षारीन) भूमि तथा कंदरायुक्त भूमि को कृषि योग्य बनाया जा रहा है। इस प्रकार जल प्लावन (Water Logging), क्षारीयता (Salination) तथा भू-क्षरण (Soil Erosion) के कार्यक्रम अपनाए गए हैं।

→ गहन कृषि (Intensive Farming) : कई राज्यों में भू-खंडों के स्तर पर गहन कृषि तथा पैकेज प्रोग्राम आरंभ किए गए। कालांतर में इसे गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम में बदल दिया गया। इससे किसानों को कृषि में प्रयोग होने वाले सभी साधनों की सुविधा प्रदान की गई ताकि उत्पादन में वृद्धि हो सके।

→ बंजर भूमि (Barren Land) : वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती; जैसे मरुस्थल, बंजर पहाड़ी भू-भाग आदि। बोया गया निवल क्षेत्र (New Area Sown) : वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं वह निवल अथवा शुद्ध बोया गया क्षेत्र कहलाता है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

→ सिंचित कृषि (Irrigated Farming) : कृषि में सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर अंतर पाया जाता है; जैसे-रक्षित व उत्पादक सिंचाई कृषि। रक्षित सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से बचाना है अर्थात् वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा किया जाता है। उत्पादक सिंचाई का उद्देश्य फसलों का पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है।

→ परती भूमि (Fallow Land) : यह वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी, परंतु अब इस भाग पर कृषि नहीं की जाती। इस जमीन पर यदि लगातार खेती की जाए तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और ऐसी जमीन पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता। अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया से जमीन में फिर से उपजाऊ शक्ति आ जाती है और यह कृषि के लिए उपयुक्त हो जाती है।

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