Author name: Prasanna

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

I. मेसोपोटामिया से अभिप्राय

मेसोपोटामिया जिसे आजकल इराक कहा जाता है भौगोलिक विविधता का देश है। मेसोपोटामिया नाम यूनानी भाषा के दो शब्दों मेसोस (Mesos) भाव मध्य तथा पोटैमोस (Potamos) भाव नदी से मिलकर बना है। इस प्रकार मेसोपोटामिया का अर्थ है दो नदियों के बीच का प्रदेश। ये नदियाँ हैं दजला (Tigris) एवं फ़रात (Euphrates) । इन नदियों को यदि मेसोपोटामिया सभ्यता की जीका रेखा कह दिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

II. मेसोपोटामिया की भौगोलिक विशेषताएँ

1. दजला एवं फ़रात नदियाँ :
दजला एवं फ़रात नदियों का उद्गम आर्मीनिया के उत्तरी पर्वतों तोरुस (Torus) से होता है। इन पर्वतों की ऊँचाई लगभग 10,000 फुट है। यहाँ लगभग सारा वर्ष बर्फ जमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा भी भरपूर होती है। दजला 1850 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह तीव्र है तथा इसके तट ऊँचे एवं अधिक कटे-फटे हैं।

इसलिए प्राचीनकाल में इस नदी के तटों पर बहुत कम नगरों की स्थापना हुई थी। दूसरी ओर फ़रात नदी ने मेसोपोटामिया के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। यह नदी 2350 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह कम तीव्र है। इसके तट कम ऊँचे एवं कम कटे-फटे हैं। इस कारण प्राचीनकाल में मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध नगरों की स्थापना इस नदी के तटों पर हई।

2. मैदान :
मेसोपोटामिया के पूर्वोत्तर भाग में ऊँचे-नीचे मैदान हैं। ये मैदान बहुत हरे-भरे हैं। यहाँ अनेक प्रकार के जंगली फल पाए जाते हैं। यहाँ के झरने (streams) बहत स्वच्छ हैं। इन मैदानों में कषि के लिए आवश्यक वर्षा हो जाती है। यहाँ 7000 ई० पू० से 6000 ई० पू० के मध्य खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया के उत्तर में ऊँची भूमि (upland) है जिसे स्टेपी (steppe) के मैदान कहा जाता है। इन मैदानों में घास बहुत होती है। अतः यह पशुपालन के लिए अच्छा क्षेत्र है।

पूर्व में मेसोपोटामिया की सीमाएँ ईरान से मिली हुई थीं। दज़ला की सहायक नदियाँ (tributaries) ईरान के पहाड़ी क्षेत्रों में जाने का उत्तम साधन हैं। मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। यहाँ सबसे पहले मेसोपोटामिया के नगरों एवं लेखन कला का विकास हुआ। इन रेगिस्तानों में नगरों के विकास का कारण यह था कि दजला एवं फ़रात नदियाँ उत्तरी पर्वतों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं।

इस उपजाऊ मिट्टी के कारण एवं नदियों से सिंचाई के लिए निकाली गई नहरों के कारण यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था। यद्यपि यहाँ फ़सल उपजाने के लिए आवश्यक वर्षा की कुछ कमी रहती थी इसके बावजूद दक्षिणी मेसोपोटामिया में रोमन साम्राज्य सहित सभी प्राचीन सभ्यताओं में से सर्वाधिक फ़सलों का उत्पादन होता था। यहाँ की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, जौ, मटर (peas) एवं मसूर (lintel) थीं।

3. कृषि संकट :
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से घिर जाती थी। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, दजला एवं फ़रात नदियों में कभी-कभी भयंकर बाढ़ आ जाती थी। इस कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं। दूसरा, कई बार पानी की तीव्र गति के कारण ये नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती थीं। इससे सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाती थी।

मेसोपोटामिया में वर्षा की कमी होती थी। अतः फ़सलें सूख जाती थीं। तीसरा, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग नहरों का प्रवाह अपने खेतों की ओर मोड़ लेते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में बसे हुए गाँवों को खेतों के लिए पानी नहीं मिलता था। चौथा, ऊपरी क्षेत्रों के लोग अपने हिस्से की सरणी में से मिट्टी (silt from their stretch of the channel) नहीं निकालते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में पानी का बहाव रुक जाता था। अत: पानी के लिए गाँववासियों में अनेक बार झगड़े हुआ करते थे।

4. समृद्धि के कारण :
मेसोपोटामिया में पशुपालन का धन्धा काफ़ी विकसित था। मेसोपोटामिया के लोग स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों एवं पहाड़ों की ढालों पर भेड़-बकरियाँ एवं गाएँ पालते थे। इनसे वे दूध एवं माँस प्राप्त करते थे। नदियों से बड़ी संख्या में मछलियाँ प्राप्त की जाती थीं। मेसोपोटामिया में खजूर (date palm) का भी उत्पादन होता था। इन सबके कारण मेसोपोटामिया के लोग समृद्ध हुए। मेसोपोटामिया की समृद्धि के कारण इसे प्राचीन काल में अनेक विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा।

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प्रश्न 2.
नगरीकरण से आपका क्या अभिप्राय है? मेसोपोटामिया में नगरीकरण के प्रमुख कारण क्या थे?
अथवा
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के कारणों तथा महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया नगर की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. नगरीकरण से अभिप्राय

नगर किसे कहते हैं इसकी कोई एक परिभाषा देना अत्यंत कठिन है। साधारणतया नगर उसे कहते हैं जिसके अधीन एक विशाल क्षेत्र हो, जहाँ काफी जनसंख्या हो, जहाँ के लोग पक्के मकानों में रहते हों, जहाँ की सड़कें पक्की हों, जहाँ यातायात एवं संचार के साधन विकसित हों, जहाँ लोगों को प्रत्येक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हों तथा जहाँ लोगों को पूर्ण सुरक्षा प्राप्त हो। विश्व में नगरों का सर्वप्रथम विकास मेसोपोटामिया में हुआ।

यहाँ नगरों का निर्माण 3000 ई० पू० में कांस्य युग में आरंभ हुआ। यहाँ तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ। प्रथम, धार्मिक नगर थे जो मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए। दूसरा, व्यापारिक नगर थे जो प्रसिद्ध व्यापारिक मार्गों एवं बंदरगाहों के निकट स्थापित हुए। तीसरा, शाही नगर थे जहाँ राजा, राज परिवार एवं प्रशासनिक अधिकारी रहते थे। ये नगर ऐसे स्थान पर होते थे जहाँ से संपूर्ण साम्राज्य पर नियंत्रण रखा जा सकता था। इन नगरों का विशेष महत्त्व होता था।

II. नगरीकरण के कारण

मेसोपोटामिया में नगरीकरण के विकास के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. अत्यंत उत्पादक खेती:
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के विकास में सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान अत्यंत उत्पादक खेती ने दिया। यहाँ की भूमि में प्राकृतिक उर्वरता थी। इससे खेती को बहुत प्रोत्साहन मिला। प्राकृतिक उर्वरता के कारण पशुओं को चारे के लिए कोई कमी नहीं थी। अत: पशुपालन को भी बल मिला। खेती एवं पशुपालन के कारण मानव जीवन स्थायी बन गया क्योंकि उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमने की ज़रूरत नहीं थी। इससे नए-नए व्यवसाय आरंभ हो गए। इससे नगरीकरण की प्रक्रिया को बहुत प्रोत्साहन मिला।

2. जल-परिवहन :
नगरीकरण के विकास के लिए कुशल जल-परिवहन का होना अत्यंत आवश्यक है। भारवाही पशुओं तथा बैलगाड़ियों के द्वारा नगरों में अनाज एवं अन्य वस्तुएँ लाना तथा ले जाना बहुत कठिन होता था। इसके तीन कारण थे। प्रथम, इसमें बहुत समय लग जाता था। दूसरा, इस प्रक्रिया में खर्चा बहुत आता था। तीसरा, रास्ते में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था भी करनी पड़ती थी। नगरीय अर्थव्यवस्था इतना खर्च उठाने के योग्य नहीं होती। दूसरी ओर जल-परिवहन सबसे सस्ता साधन होता था।

3. धातु एवं पत्थर की कमी :
किसी भी नगर के विकास में धातुओं एवं पत्थर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। धातुओं का प्रयोग विभिन्न प्रकार के औजार, बर्तन एवं आभूषण बनाने के लिए किया जाता है। औज़ारों से पत्थर को तराशा जाता है। बर्तन सभ्य समाज की निशानी हैं। इनका प्रयोग खाद्य वस्तुएँ बनाने, उन्हें खाने एवं संभालने के लिए किया जाता है।

नगरों की स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनने की शौकीन होती हैं। पत्थरों का प्रयोग भवनों, मंदिरों, मूर्तियों एवं पुलों आदि के निर्माण के लिए किया जाता है। मेसोपोटामिया में धातओं एवं पत्थरों की कमी थी। इसके चलते मेसोपोटामिया ने तर्की, ईरान एवं खाडी पार के देशों से ताँबा, टिन. सोना, चाँदी. सीपी एवं विभिन्न प्रकार के पत्थरों का आयात करके इनकी कमी को दर किया।

4. श्रम विभाजन :
श्रम विभाजन को नगरीय विकास का एक प्रमुख कारक माना जाता है। नगरों के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते। उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा (stone seal) बनाने वाले को पत्थर पर उकेरने के । औजारों (bronze tools) की आवश्यकता होती है। ऐसे औजारों का वह स्वयं निर्माण नहीं करता।

इस प्रकार नगर के लोग अन्य लोगों पर उनकी सेवाओं के लिए अथवा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में श्रम विभाजन को शहरी जीवन का एक प्रमुख आधार माना जाता है।
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5. मुद्राओं का प्रयोग:
मेसोपोटामिया के नगरों से हमें बड़ी संख्या में मुद्राएँ मिली हैं। ये मुद्राएँ पत्थर की होती थीं तथा इनका आकार बेलनाकार (cylinderical) था। इन्हें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर कभी-कभी इसके स्वामी का नाम, उसके देवता का नाम तथा उसके रैंक आदि का वर्णन भी किया जाता था।

इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारियों द्वारा अपना सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित भेजने के लिए किया जाता था। इस प्रकार यह मुद्रा उस सामान की प्रामाणिकता का प्रतीक बन जाती थी। यदि यह मुद्रा टूटी हुई पाई जाती तो पता लग जाता कि रास्ते में सामान के साथ छेड़छाड़ की गई है अन्यथा भेजा गया सामान सुरक्षित है। निस्संदेह मुद्राओं के प्रयोग ने नगरीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

III. नगरीकरण का महत्त्व

मेसोपोटामिया में नगरों के निर्माण ने समाज के विकास में उल्लेखीय भूमिका निभाई। नगरों के निर्माण के कारण लोगों को सुविधाएँ देने के लिए अनेक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। नगरों में सुविधाओं के कारण लोग गाँवों को छोड़कर नगरों में बसने लगे। नगरों में कुशल परिवहन व्यवस्था, शिक्षण संस्थाएँ एवं स्वास्थ्य संबंधी देखभाल केंद्र स्थित थे। नगरों के कारण उद्योगों एवं व्यापार को प्रोत्साहन मिला। नगरों के लोग पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं थे।

उन्हें खाद्यान्न के लिए गाँवों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसलिए उनमें आपसी लेन-देन होता रहता था। नगरों में भव्य मदिरों का निर्माण हुआ। मंदिरों के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। नगरों के निर्माण ने श्रम विभाजन को प्रोत्साहित किया। नगरों के लोग अधिक सुरक्षित महसूस करते थे। नगरों में विभिन्न समुदायों के लोग रहते थे। इससे आपसी एकता एवं विभिन्न संस्कृतियों के विकास को बल मिला।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध नगरों एवं उनके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया सभ्यता में विभिन्न प्रकार के शहरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल मेसोपोटामिया में नगरीकरण की प्रक्रिया 3000 ई० पू० में आरंभ हुई थी। इस काल के कुछ प्रसिद्ध नगरों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. उरुक :
उरुक मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर था। यह नगर आधुनिक इराक की राजधानी बग़दाद से 250 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर फ़रात (Euphrates) नदी के तट पर स्थित था। इसका उत्थान 3000 ई० पू० में हुआ था। इसकी गणना उस समय विश्व के सबसे विशाल नगरों में की जाती थी। यह उस समय 250 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। 2800 ई० पू० के आस-पास इसका आकार बढ़ कर 400 हैक्टेयर हो गया था।

इस नगर की स्थापना सुमेरिया के प्रसिद्ध शासक एनमर्कर (Enmerkar) ने की थी। उसने इस नगर में प्रसिद्ध इन्नाना देवी (Goddess Inanna) के मंदिर का निर्माण किया था। उरुक के एक अन्य प्रसिद्ध शासक गिल्गेमिश (Gilgamesh) ने इसे अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

उसने इस नगर की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर एक विशाल दीवार का निर्माण किया था। इस नगर के उत्खनन (excavation) का वास्तविक कार्य जर्मनी के जूलीयस जोर्डन (Julius Jordan) ने 1913 ई० में आरंभ किया। 3000 ई० पू० के आस-पास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उस समय के लोगों ने अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ कर दिया था।

इसके अतिरिक्त वास्तुविदों (architects) ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था। इससे भवन निर्माण कला के क्षेत्र में एक नयी क्राँति आई। उस समय बड़ी संख्या में लोग चिकनी मिट्टी के शंकु (clay cones) बनाने एवं पकाने का कार्य करते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगा जाता था। इसके पश्चात् इन्हें मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।

इससे मंदिरों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती थी। उरुक नगर के लोगों ने मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की। इसका अनुमान 3000 ई० पू० में उरुक नगर से प्राप्त वार्का शीर्ष (Warka Head) से लगाया जा सकता है। यह एक स्त्री का सिर था। इसे सफ़ेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। कम्हार के चाक (potter’s wheel) के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस कारण बड़ी संख्या में एक जैसे बर्तन बनाना सुगम हो गया।

2. उर:
उर मेसोपोटामिया का एक अन्य प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण नगर था। यह बग़दाद से 300 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित था। यह फ़रात नदी से केवल 15 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित था। इस नगर की सबसे पहले खुदाई एक अंग्रेज़ जे० ई० टेलर (J. E. Taylor) द्वारा 1854-55 ई० में की गई। इस नगर की व्यापक स्तर पर खुदाई का कार्य 1920 एवं 1930 के दशक में की गई।

उर नगर की खुदाई से जो निष्कर्ष सामने आता है उससे यह पता चलता है कि इसमें नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। इसका कारण यह था कि इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं। अतः पहिए वाली गाड़ियों का घरों तक पहुँचना संभव न था। अतः अनाज के बोरों तथा ईंधन के गट्ठों को संभवतः गधों पर लाद कर पहुँचाया जाता था। उर नगर में मोहनजोदड़ो की तरह जल निकासी के लिए गलियों के किनारे नालियाँ नहीं थीं।

ये नालियाँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। अत: वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से आँगन के भीतर बनी हुई हौजों (sumps) में ले जाया जाता था।

ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तीव्र वर्षा के कारण घरों के बाहर बनी कच्ची गलियों में कीचड़ न एकत्र हो जाए। नगर की खुदाई से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय के लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बाहर गलियों में फैंक देते थे। इस कारण गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं। इस कारण कुछ समय बाद घरों के बरामदों को भी ऊँचा करना पड़ता था ताकि वर्षा के दिनों में बाहर से पानी एवं कूड़ा बह कर घरों के अंदर न आ जाए। उर नगर के घरों की एक अन्य विशेषता यह थी कि कमरों के अंदर रोशनी खिड़कियों से नहीं अपितु दरवाज़ों से होकर आती थी।

ये दरवाज़े आँगन में खुला करते थे। इससे घरों में परिवारों की गोपनीयता (privacy) बनी रहती थी। उस समय घरों के बारे में उर के लोगों में अनेक प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे। जैसे यदि घर की दहलीज़ (threshold) ऊँची उठी हुई हो तो धन-दौलत प्राप्त होता है। यदि सामने का दरवाजा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता है। किंतु यदि घर का मुख्य दरवाजा बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति के लिए एक सिरदर्द बनेगी।

उर नगर की खुदाई से जो हमें सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु मिली है वह थी शाही कब्रिस्तान । यहाँ से 16 राजाओं एवं रानियों की कब्र प्राप्त हुई हैं। इन कब्रों में शवों के साथ सोना, चाँदी एवं बहुमूल्य पत्थरों को दफनाया गया है। इसके अतिरिक्त उनके प्रसिद्ध राजदरबारियों, सैनिकों, संगीतकारों, सेवकों एवं खाने-पीने की वस्तुओं को भी उनके शवों के साथ दफनाया गया था।

इससे अनुमान लगाया जाता है कि उर के लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। साधारण लोगों के शवों को वैसे ही दफ़न कर दिया जाता था। कुछ लोगों के शव घरों के फ़र्शों के नीचे भी दफ़न पाए गए थे।

3. मारी:
मारी प्राचीन मेसोपोटामिया का एक अन्य महत्त्वपूर्ण नगर था। यह नगर 2000 ई० पू० के पश्चात् खूब फला-फूला। मारी में लोग खेती एवं पशुपालन का धंधा करते थे। पशुचारकों को जब अनाज एवं धातु 431 के औज़ारों आदि की आवश्यकता पड़ती थी तो वे अपने पशुओं, माँस एवं चमड़े के बदले इन्हें प्राप्त करते थे। पशुओं के गोबर की खाद फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती थी। यद्यपि किसान एवं गड़रिये एक-दूसरे पर निर्भर थे फिर भी उनमें आपसी लड़ाइयाँ होती रहती थीं।

इन लड़ाइयों के मुख्य कारण ये थे-प्रथम. गडरिये अक्सर अपनी भेड-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हए खेतों में से गज़ार कर ले जाते थे। इससे फ़सलों को बहुत नुकसान पहुँचता था। दूसरा, कई बार ये गड़रिये जो खानाबदोश होते थे, किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उनके माल को लूट ले जाते थे। तीसरा, अनेक बार किसान इन पशुचारकों का रास्ता रोक लेते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को जल स्रोतों तक नहीं ले जाने देते थे। गड़रियों के कुछ समूह फ़सल काटने वाले मज़दूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे। समृद्ध होने पर वे यहीं बस जाते थे।

मारी में अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के लोग रहते थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय से संबंधित थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। मारी के राजा मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने डैगन (Dagan) देवता की स्मृति में मारी में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस प्रकार मारी में विभिन्न जातियों एवं समुदायों के मिश्रण से वहाँ एक नई संस्कृति का जन्म हआ।

मारी में क्योंकि विभिन्न जन-जातियों के लोग रहते थे इसलिए वहाँ के राजाओं को सदैव सतर्क रहना पड़ता था। खानाबदोश पशुचारकों की गतिविधियों पर विशेष नज़र रखी जाती थी। मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम (Zimrilim) ने वहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण (1810 1760 ई० पू०) करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था।

इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था। इस राजमहल में लगे भित्ति चित्र (wall paintings) इतने आकर्षक थे कि इसे देखने वाला व्यक्ति चकित रह जाता था। इस राजमहल की भव्यता को अपनी आँखों से देखने सीरिया एवं अलेप्पो (Aleppo) के शासक स्वयं आए थे। मारी नगर व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र भी था। इसके न केवल मेसोपोटामिया के अन्य नगरों अपितु विदेशों, ती. सीरिया. लेबनान.ईरान आदि देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे।

मारी में आने-जाने वाले जहाजों के सामान की अधिकारियों द्वारा जाँच की जाती थी। वे जहाजों में लदे हुए माल की कीमत का लगभग 10% प्रभार (charge) वसूल करते थे। मारी की कुछ पट्टिकाओं (tablets) में साइप्रस के द्वीप अलाशिया (Alashiya) से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला है। यह द्वीप उन दिनों ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए विशेष रूप से जाना जाता था। मारी के व्यापार ने निस्संदेह इस नगर की समृद्धि में उल्लेखनीय योगदान दिया था।

4. निनवै :
निनवै प्राचीन मेसोपोटामिया के महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक था। यह दज़ला नदी के पूर्वी तट पर स्थित था। यह 1800 एकड़ भूमि में फैला हुआ था। इसकी स्थापना 1800 ई० पू० में नीनस (Ninus) ने की थी। असीरियाई शासकों ने निनवै को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया था। सेनाचारिब (Sennacharib) ने अपने शासनकाल (705 ई० पू० से 681 ई० पू०) में निनवै का अद्वितीय विकास किया। उसने यहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण करवाया। यह 210 मीटर लंबा एवं 200 मीटर चौड़ा था। इसमें 80 कमरे थे। इसे अत्यंत सुंदर मूर्तियों एवं चित्रकारी से सुसज्जित किया गया था। इस राजमहल में अनेक फव्वारे एवं उद्यान लगाए गए थे।

इसके अतिरिक्त उसने निनवै में अनेक भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। उसने यातायात के साधनों का विकास किया। उसने कृषि के विकास के लिए अनेक नहरें खुदवाईं। उसने निनवै की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक विशाल दीवार का निर्माण करवाया। निनवै के विकास में दूसरा महत्त्वपूर्ण योगदान असुरबनिपाल (Assurbanipal) ने दिया। उसने 668 ई० पू० से 627 ई० पू० तक शासन किया था। उसे भवन निर्माण कला से विशेष प्यार था।

अतः उसने अपने साम्राज्य से अच्छे कारीगरों एवं कलाकारों को निनवै में एकत्र किया। उन्होंने अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण किया। पुराने भवनों एवं मंदिरों की मुरम्मत भी की गई। अनेक उद्यान स्थापित किए गए। इससे निनवै की सुंदरता में एक नया निखार आ गया। उसे साहित्य से विशेष लगाव था। अतः उसकी साहित्य के विकास में बहुत दिलचस्पी थी। उसने निनवै में नाबू (Nabu) के मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में उसने अनेक प्रसिद्ध लेखकों को बुला कर उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों को रखवाया था।

इस पुस्तकालय में लगभग 1000 मूल ग्रंथ एवं 30,000 पट्टिकाएँ (tablets) थीं। इन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था। इनमें प्रमुख विषय ये थे इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष, दर्शन, विज्ञान एवं कविताएँ। असुरबनिपाल ने स्वयं भी अनेक पट्टिकाएँ लिखीं। असुरबनिपाल के पश्चात् निनवै ने अपना गौरव खो दिया।

5. बेबीलोन :
बेबीलोन दज़ला नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित था। इसकी राजधानी का नाम बेबीलोनिया था। इस नगर ने प्राचीन काल मेसोपोटामिया के इतिहास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस नगर की स्थापना अक्कद (Akkad) के शासक सारगोन (Sargon) ने अपने शासनकाल (2370 ई० पू०-2315 ई० पू०) के दौरान की थी। उसने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण करवाया। उसने देवता मर्दुक (Marduk) की स्मृति में एक विशाल मंदिर का निर्माण भी करवाया। हामूराबी के शासनकाल (1780 ई० पू०-1750 ई० पू०) में बेबीलोन ने उल्लेखनीय विकास किया।

बाद में असीरिया के शासक तुकुती निर्ता (Tukuti Ninarta) ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। 625 ई० पू० में नैबोपोलास्सर (Nabopolassar) ने बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवा लिया था। इस प्रकार नैबोपोलास्सर ने बेबीलोन में कैल्डियन वंश की स्थापना की। उसके एवं उसके उत्तराधिकारियों के अधीन बेबीलोन में एक गौरवपूर्ण युग का आरंभ हुआ। इसकी गणना विश्व के प्रमुख नगरों में की जाने लगी।

उस समय इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था। इसके चारों ओर एक तिहरी दीवार (triple wall) बनाई गई थी। इसमें अनेक विशाल एवं भव्य राजमहलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया था। एक विशाल ज़िगुरात (Ziggurat) भाव सीढ़ीदार मीनार (stepped tower) बेबीलोन के आकर्षण का मुख्य केंद्र था।

बेबीलोन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र भी था। इस नगर ने भाषा, साहित्य, विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। 331 ई० पू० में सिकंदर ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। नैबोनिडस (Nabonidus) स्वतंत्र बेबीलोन का अंतिम शासक था।

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प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया सभ्यता के ‘मारी नगर’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया करके प्रश्न नं० 3 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों के स्वरूप की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया के शहरी जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शहरी जीवन की शुरुआत 3000 ई० पू० में मेसोपोटामिया में हुई थी। उर, उरुक, मारी, निनवै एवं बेबीलोन आदि मेसोपोटामिया के प्रमुख शहर थे। प्रारंभिक शहरी समाजों के स्वरूप के बारे में हम अग्रलिखित तथ्यों से अनुमान लगा सकते हैं

1. नगर योजना:
मेसोपोटामिया के नगर एक वैज्ञानिक योजना के अनुसार बनाए गए थे। नगरों में मज़बूत भवनों का निर्माण किया जाता था। अत: मकानों की नींव में पकाई हुई ईंटों का प्रयोग किया जाता था। उस समय अधिकतर घर एक मंजिला होते थे। इन घरों में एक खुला आँगन होता था। इस आँगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे। गर्मी से बचने के लिए धनी लोग अपने घरों के नीचे तहखाने बनाते थे।

मकानों में प्रकाश के लिए खिड़कियों का प्रबंध होता था। उर नगर के लोग परिवारों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए खिड़कियाँ नहीं बनाते थे। पानी की निकासी के लिए नालियों का प्रबंध किया जाता था। नगरों में यातायात की आवाजाही के लिए सड़कों का उचित प्रबंध किया जाता था। प्रशासन सड़कों की सफाई की ओर विशेष ध्यान देता था। सड़कों पर रोशनी का भी प्रबंध किया जाता था।

2. प्रमुख वर्ग :
उस समय प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता के भेद का प्रचलन हो चुका था। उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग कुलीन लोगों का था। इसमें राजा, राज्य के अधिकारी, उच्च सैनिक अधिकारी, धनी व्यापारी एवं पुरोहित सम्मिलित थे। इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे भव्य महलों एवं भवनों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्रों को पहनते थे।

वे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाते थे। उनकी सेवा में अनेक दास-दासियाँ रहती थीं। दूसरा वर्ग मध्य वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यापारी, शिल्पी, राज्य के अधिकारी एवं बुद्धिजीवी सम्मिलित थे। इनका जीवन स्तर भी काफी अच्छा था। तीसरा वर्ग समाज का सबसे निम्न वर्ग था। इसमें किसान, मजदूर एवं दास सम्मिलित थे। यह समाज का बहुसंख्यक वर्ग था।

इस वर्ग की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उर में मिली शाही कब्रों में राजाओं एवं रानियों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ विशाल मात्रा में मिली हैं। दूसरी ओर साधारण लोगों के शवों के साथ केवल मामूली वस्तुओं को दफनाया जाता था। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय धन-दौलत का अधिकाँश हिस्सा एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

3. परिवार :
परिवार को समाज की आधारशिला माना जाता था। प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार (nuclear family) का प्रचलन अधिक था। इस परिवार में पुरुष, उसकी पत्नी एवं उनके बच्चे सम्मिलित होते थे। पिता परिवार का मुखिया होता था। परिवार के अन्य सदस्यों पर उसका पूर्ण नियंत्रण होता था। अतः परिवार के सभी सदस्य उसके आदेशों का पालन करते थे। उस समय परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। माता-पिता अपने बच्चों को बेच सकते थे। बच्चों का विवाह माता-पिता की सहमति से होता था। उस समय विवाह बहुत हर्षोल्लास के साथ किए जाते थे।

4. स्त्रियों की स्थिति:
प्रारंभिक शहरी समाज में स्त्रियों की स्थिति काफी अच्छी थी। उन्हें अनेक अधिकार प्राप्त थे। वे पुरुषों के साथ धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में समान रूप से भाग लेती थीं। पति की मृत्यु होने पर वह पति की संपत्ति की संरक्षिका मानी जाती थीं। पत्नी को पती से तलाक लेने एवं पुनः विवाह करने का अधिकार प्राप्त था। वे अपना स्वतंत्र व्यापार कर सकती थीं।

वे अपने पथक दास-दासियाँ रख सकती थीं। वे पुरोहित एवं समाज के अन्य उच्च पदों पर नियुक्त हो सकती थी। उस समय समाज में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। उस समय पुरुष एक स्त्री से विवाह करता था किंतु उसे अपनी हैसियत के अनुसार कुछ उप-पत्नियाँ रखने का भी अधिकार प्राप्त था।

5. दासों की स्थिति :
प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति सबसे निम्न थी। उस समय दास तीन प्रकार के थे-(i) युद्धबंदी (ii) माता-पिता द्वारा बेचे गये बच्चे एवं (iii) कर्ज न चुका सकने वाले व्यक्ति । दास बनाए गए व्यक्तियों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। इन दासों को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त न था। उन्हें अपने स्वामी के आदेशों का पालन करना पड़ता था। ऐसा न करने वाले दास अथवा दासी को कठोर दंड दिए जाते थे। यदि कोई दास भागने का प्रयास करते हुए पकड़ा जाता तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था।

स्वामी जब चाहे किसी दास की सेवा से प्रसन्न होकर उसे मुक्त कर सकता था। कोई भी दास अपने स्वामी को धन देकर अपनी मुक्ति प्राप्त कर सकता था। कोई भी स्वतंत्र नागरिक अपनी दासी को उप-पत्नी बना सकता था। दासी से उत्पन्न संतान को स्वतंत्र मान लिया जाता था।

6. मनोरंजन :
प्रारंभिक शहरी समाजों के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। नृत्य गान उनके जीवन का एक अभिन्न अंग था। मंदिरों में भी संगीत एवं नृत्य-गान के विशेष सम्मेलन होते रहते थे। वे शिकार खेलने, पशु-पक्षियों की लड़ाइयाँ देखने एवं कुश्तियाँ देखने के भी बहुत शौकीन थे। वे शतरंज खेलने में भी बहुत रुचि लेते थे। खिलौने बच्चों के मनोरंजन का मुख्य साधन थे।

प्रश्न 6.
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों तथा उनके महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों ने यहाँ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेसोपोटामिया के लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में अनेक मंदिरों का निर्माण करते थे। इनमें प्रमुख मंदिर नन्ना (Nanna) जो चंद्र देव था, अनु (Anu) जो सूर्य देव था, एनकी (Enki) जो वायु एवं जल देव था तथा इन्नाना (Inanna) जो प्रेम एवं युद्ध की देवी थी, के लिए बनाए गए थे। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नगर का अपना देवी-देवता होता था जो अपने नगर की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहते थे।

1. आरंभिक मंदिर :
दक्षिणी मेसोपोटामिया में आरंभिक मंदिर छोटे आकार के थे तथा ये कच्ची ईंटों के बने हुए थे। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इन मंदिरों का महत्त्व बढ़ता गया वैसे-वैसे ये मंदिर विशाल एवं भव्य होते चले गए। इन मंदिरों को पर्वतों के ऊपर बनाया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों की यह धारणा थी कि देवता पर्वतों में निवास करते हैं। ये मंदिर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे।

इन मंदिरों की विशेषता यह थी कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के पश्चात् भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। इन मंदिरों के आँगन खुले होते थे तथा इनके चारों ओर अनेक कमरे बने होते थे। प्रमुख कमरों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। कुछ कमरों में मंदिरों के परोहित निवास करते थे। अन्य कमरे मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए थे।

2. मंदिरों के क्रियाकलाप :
दक्षिणी मेसोपोटामिया के समाज में मंदिरों की उल्लेखनीय भूमिका थी। उस समय मंदिरों को बहुत-सी भूमि दान में दी जाती थी। इस भूमि पर खेती की जाती थी एवं पशु पालन किया जाता था। इनके अतिरिक्त इस भूमि पर उद्योगों की स्थापना की जाती थी एवं बाजार स्थापित किए जाते थे। इस कारण मंदिर बहुत धनी हो गए थे।

मेसोपोटामिया के मंदिरों में प्राय: विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी। शिक्षा का कार्य पुरोहितों द्वारा किया जाता था। अनेक मंदिरों में बड़े-बड़े पुस्तकालय भी स्थापित किए गए थे। मंदिरों द्वारा सामान की खरीद एवं बिक्री भी की जाती थी। मंदिरों द्वारा व्यापारियों को धन सूद पर दिया जाता था। इस कारण मंदिरों ने एक मुख्य शहरी संस्था का रूप धारण कर लिया था।

3. उपासना विधि:
दक्षिणी मेसोपोटामिया के लोग परलोक की अपेक्षा इहलोक की अधिक चिंता करते थे। वे अपने देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए अन्न, दही, खजूर एवं मछली आदि भेंट करते थे। इनके अतिरिक्त वे बैलों, भेड़ों एवं बकरियों आदि की बलियाँ भी देते थे। इन्हें विधिपूर्ण पुरोहितों के सहयोग से देवी-देवताओं को भेंट किया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों के कर्मकांड न तो अधिक जटिल थे एवं न ही अधिक खर्चीले। इसके बदले उपासक यह आशा करते थे कि उनके जीवन में कभी कष्ट न आएँ।

4. मनोरंजन के केंद्र :
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिर केवल उपासना के केंद्र ही नहीं थे अपितु वे मनोरंजन के केंद्र भी थे। इन मंदिरों में स्थानीय गायक अपनी कला से लोगों का मनोरंज करते थे। इन मंदिरों में समूहगान एवं लोक नृत्य भी हुआ करते थे। यहाँ नगाड़े एवं अन्य संगीत यंत्रों को बजाया जाता था। त्योहारों के अवसरों पर यहाँ बड़ी संख्या में लोग आते थे। वे एक-दूसरे के संपर्क में आते थे तथा उनमें एक नया प्रोत्साहन उत्पन्न होता था।

5. लेखन कला के विकास में योगदान :
दक्षिणी मेसोपोटामिया में लेखन कला के विकास में मंदिरों ने उल्लेखनीय योगदान दिया। लेखन कला के अध्ययन एवं अभ्यास के लिए अनेक मंदिरों में पाठशालाएँ स्थापित की गई थीं। यहाँ विद्यार्थियों को सर्वप्रथम संकेतों की नकल करना सिखाया जाता था। धीरे-धीरे वे कठिन शब्दों को लिखने में समर्थ हो जाते थे। क्योंकि उस समय बहत कम लोग लिपिक का कार्य कर सकते थे इसलिए समाज में इस वर्ग की काफी प्रतिष्ठा थी।

प्रश्न 7.
लेखन पद्धति के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
लेखन पद्धति के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव इतिहास पर लेखन कला का क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
लेखन कला की दुनिया को सबसे बड़ी देन क्या है ?
उत्तर:
I. लेखन कला का विकास

किसी भी देश की सभ्यता के बारे में जानने के लिए हमें उस देश की लिपि एवं भाषा का ज्ञात होना अत्यंत आवश्यक है। प्रारंभिक नगरों की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लेखन कला का विकास था। इसे सभ्यता के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पग माना जाता है। मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज सुमेर में 3200 ई० पू० में हुई। इस लिपि का आरंभ वहाँ के मंदिरों के पुरोहितों ने किया। उस समय मंदिर विभिन्न क्रियाकलापों और व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। इन मंदिरों की देखभाल पुरोहितों द्वारा स्वतंत्र रूप से की जाती थी।

पुरोहित मंदिरों की आय-व्यय तथा व्यापार का पूर्ण विवरण एक निराले ढंग से रखते थे। वे मिट्टी की पट्टिकाओं पर मंदिरों को मिलने वाले सामानों एवं जानवरों के चित्रों जैसे चिह्न बनाकर उनकी संख्या भी लिखते थे। हमें मेसोपोटामिया के दक्षिणी नगर उरुक के मंदिरों से संबंधित लगभग 5000 सूचियाँ मिली हैं। इनमें बैलों, मछलियों एवं रोटियाँ आदि के चित्र एवं संख्याएँ दी गई हैं। इससे वस्तुओं को स्मरण रखना सुगम हो जाता था। इस प्रकार मेसोपोटामिया में चित्रलिपि (pictographic script) का जन्म हुआ।

मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं (tablets of clay) पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था। इसके पश्चात् उसे गूंध कर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सुगमता से अपने हाथ में पकड़ सके। इसके बाद वह सरकंडे की तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न (cuneiform) बना देता था। इसे बाएं से दाएँ लिखा जाता था। इस लिपि का प्रचलन 2600 ई० पू० में हुआ था। 1850 ई० पू० में कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। ये पट्टिकाएँ विभिन्न आकारों की होती थीं। जब इन पट्टिकाओं पर लिखने का कार्य पूर्ण हो जाता था तो इन्हें पहले धूप में सुखाया जाता था तथा फिर आग में पका लिया जाता था।

इस कारण वे पत्थर की तरह कठोर हो जाया करती थीं। इसके तीन लाभ थे। प्रथम, वे पेपिरस (pepirus) की तरह जल्दी नष्ट नहीं होती थीं। दूसरा, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित ले जाया जा सकता था। तीसरा, एक बार लिखे जाने पर इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करना संभव नहीं था। इस लिपि का प्रयोग अब मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखने के लिए नहीं अपितु शब्द कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देने तथा राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाने लगा।

मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन (Sumerian) थी। 2400 ई० पू० के आस-पास सुमेरियन भाषा का स्थान अक्कदी (Akkadi) भाषा ने ले लिया। 1400 ई० पू० से धीरे-धीरे अरामाइक (Aramaic) भाषा का प्रचलन आरंभ हुआ। 1000 ई० पू० के पश्चात् अरामाइक भाषा का प्रचलन व्यापक रूप से होने लगा। यद्यपि मेसोपोटामिया में लिपि का प्रचलन हो चुका था किंतु इसके बावजूद यहाँ साक्षरता (literacy) की दर बहुत कम थी।

इसका कारण यह था कि केवल चिह्नों की संख्या 2000 से अधिक थी। इसके अतिरिक्त यह भाषा बहुत पेचीदा थी। अतः इस भाषा को केवल विशेष प्रशिक्षण प्राप्त लोग ही सीख सकते थे। मेसोपोटामिया की लिपि के कारण ही इतिहासकार इस सभ्यता पर विस्तृत प्रकाश डाल सके हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड एल० ग्रीवस का यह कथन ठीक है कि, “सुमेरियनों की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं दीर्घकालीन सफलता उनकी लेखन कला का विकास था।”1

II. लेखन कला की देन

मेसोपोटामिया में लेखन कला के आविष्कार को मानव इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता था। यह मानव सभ्यता के विकास में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। लेखन कला के कारण सम्राट के आदेशों, उनके समझौतों तथा कानूनों को दस्तावेज़ों का रूप देना संभव हुआ। मेसोपोटामिया ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों-गणित, खगोल विद्या तथा औषधि विज्ञान में आश्चर्यजनक उन्नति की थी। उनके लिखित दस्तावेजों के कारण विश्व को उनके अमूल्य ज्ञान का पता चला।

उनके द्वारा दी गई वर्ग, वर्गमूल, चक्रवृद्धि ब्याज, गुणा तथा भाग, वर्ष का 12 महीनों में विभाजन, 1 महीने का 4 हफ्तों में विभाजन, 1 दिन का 24 घंटों में तथा 1 घंटे का 60 मिनटों में विभाजन, सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण, आकाश में तारों तथा तारामंडल की स्थिति को आज पूरे विश्व में मान्यता दी गई है। लेखन कला के विकास के कारण मेसोपोटामिया में शिक्षा एवं साहित्य के विकास में आशातीत विकास हुआ। निनवै से प्राप्त हुआ एक विशाल पुस्तकालय इसकी पुष्टि करता है। इस कारण लोगों में नव-चेतना का संचार हुआ। संक्षेप में इसने मेसोपोटामिया के समाज पर दूरगामी प्रभाव डाले।

क्रम संख्या

क्रम संख्याकालघटना
1.7000-6000 ई० पू०मेसोपोटामिया में कृषि का आरंभ।
2.3200 ई० पू०मेसोपोटामिया में लेखन कला का विकास।
3.3050 ई० पू०लगश के प्रथम शासक उरनिना का सिंहासन पर बैठना।
4.3000 ई० पू०मेसोपोटामिया में नगरों का उत्थान, उरुक नगर का आरंभ, वार्का शीर्ष का प्राप्त होना।
5.2000-1759 ई० पू०मारी नगर का उत्थान।
6.2800-2370 ई० पू०किश नगर का विकास।
7.2670 ई० पू०मेसनीपद का उर के सिंहासन पर बैठना।
8.2600 ई० पू०कीलाकार लिपि का प्रचलन।
9.2400 ई० पू०सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग।
10.2200 ई० पू०एलमाइटों द्वारा उर नगर का विनाश।
11.2000 ई० पू०गिल्गेमिश महाकाव्य को 12 पट्टिकाओं पर लिखवाना।
12.1810-1760 ई० पू०ज़िमरीलिम के मारी स्थित राजमहल का निर्माण।
13.2400 ई० पू०सुमेरियन भाषा का प्रचलन बंद होना।
14.1800 ई० पू०नीनस द्वारा निनवै की स्थापना।
15.1780-1750 ई० पू०हामूराबी का शासनकाल।
16.1759 ई० पू०हामूराबी द्वारा मारी नगर का विनाश।
17.1400 ई० पू०अरामाइक भाषा का प्रचलन।
18.705-681 ई० पू०निनवै में सेनाचारिब का शासनकाल।
19.668-627 ई० पू०असुरबनिपाल का शासनकाल।
20.625 ई० पू०नैबोपोलास्सर द्वारा बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवाना।
21.612 ई० पू०नैबोपोलास्सर द्वारा निमरुद नगर का विनाश।
22.1840 ईमेसोपोटामिया में पुरातत्त्वीय खोजों का आरंभ।
23.1845-1851 ई०हेनरी अस्टेन लैयार्ड द्वारा निमरुद नगर का उत्खनन।
24.1850 ईकीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। जुलीयस जोर्डन द्वारा उरुक नगर की खुदाई।
25.1913 ई०सर लियोनार्ड वूले द्वारा उर नगर की खुदाई।
261920-1930 ई。फ्रांसीसियों द्वारा मारी नगर का उत्खनन।
27.1933 ई०नैबोपोलास्सर द्वारा निमरुद नगर का विनाश।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दजला एवं फ़रात नदियों ने मेसोपोटामिया के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैसे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया से अभिप्राय है दो नदियों के मध्य का प्रदेश। ये नदियाँ हैं दजला एवं फ़रात । इन नदियों को मेसोपोटामिया सभ्यता की जीवन रेखा कहा जाता है। दजला एवं फ़रात नदियों का उद्गम आर्मीनिया के उत्तरी पर्वतों तोरुस से होता है। इन पर्वतों की ऊँचाई लगभग 10,000 फुट है। यहाँ लगभग सारा वर्ष बर्फ जमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा भी पर्याप्त होती है। दजला 1850 किलोमीटर लंबी है।

इसका प्रवाह तीव्र है तथा इसके तट ऊँचे एवं अधिक कटे-फटे हैं। इसलिए प्राचीनकाल में इस नदी के तटों पर बहुत कम नगरों की स्थापना हुई थी। दूसरी ओर फ़रात नदी ने मेसोपोटामिया के इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

यह नदी 2350 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह कम तीव्र है। इसके तट कम ऊँचे एवं कम कटे-फटे हैं। इस कारण प्राचीनकाल के प्रसिद्ध नगरों की स्थापना इस नदी के तटों पर हुई। दजला एवं फ़रात नदियाँ उत्तरी पर्वतों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं। इस उपजाऊ मिट्टी के कारण एवं नहरों के कारण यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन के बावजूद कृषि अनेक बार संकट से घिर जाती थी। क्यों ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से घिर जाती थी। इसके अनेक कारण थे। प्रथम, दजला एवं फ़रात नदियों में कभी-कभी भयंकर बाढ़ आ जाती थी। इस कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं। दूसरा, कई बार पानी की तीव्र गति के कारण ये नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती थीं। इससे सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाती थी। मेसोपोटामिया में वर्षा की कमी होती थी।

अतः फ़सलें सूख जाती थीं। तीसरा, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग नहरों का प्रवाह अपने खेतों की ओर मोड़ लेते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में बसे हुए गाँवों को खेतों के लिए पानी नहीं मिलता था। चौथा, ऊपरी क्षेत्रों के लोग अपने हिस्से की सरणी में से मिट्टी नहीं निकालते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में पानी का बहाव रुक जाता था। इस कारण पानी के लिए गाँववासियों में अनेक बार झगड़े हुआ करते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 3.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में शहरीकरण के विकास में प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर का बहुमूल्य योगदान था। यहाँ की भूमि में प्राकृतिक उर्वरता थी। इससे खेती को बहुत प्रोत्साहन मिला। प्राकृतिक उर्वरता के कारण पशुओं को चारे के लिए कोई कमी नहीं थी। अत: पशुपालन को भी प्रोत्साहन मिला। पशुओं से न केवल दूध, माँस एवं ऊन प्राप्त किया जाता था अपितु उनसे खेती एवं यातायात का कार्य भी लिया जाता था। खेती एवं पशुपालन के कारण मानव जीवन स्थायी बन गया।

अत: उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमने की आवश्यकता नहीं रही। स्थायी जीवन होने के कारण मानव झोंपड़ियाँ बना कर साथ-साथ रहने लगा। इस प्रकार गाँव अस्तित्व में आए। खाद्य उत्पादन के बढ़ने से वस्तु विनिमय की प्रक्रिया आरंभ हो गई। इस कारण नये-नये व्यवसाय आरंभ हो गए। इससे नगरीकरण की प्रक्रिया को बहुत बल मिला।

प्रश्न 4.
नगरीय विकास में श्रम विभाजन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
श्रम विभाजन को नगरीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है। नगरों के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते। उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर पर उकेरने के लिए काँसे के औज़ारों की आवश्यकता होती है। ऐसे औजारों का वह स्वयं निर्माण नहीं करता। इसके अतिरिक्त वह मुद्रा बनाने के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर के लिए भी अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करता है।

वह व्यापार करना भी नहीं जानता। उसकी विशेषज्ञता तो केवल पत्थर उकेरने तक ही सीमित होती है। इस प्रकार नगर के लोग अन्य लोगों पर उनकी सेवाओं के लिए अथवा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में श्रम विभाजन को शहरी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण आधार माना जाता है।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में मुद्राएँ किस प्रकार बनाई जाती थीं तथा इनका क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के नगरों से हमें बड़ी संख्या में मुद्राएँ मिली हैं। ये मुद्राएँ पत्थर की होती थीं तथा इनका आकार बेलनाकार था। ये बीच में आर-पार छिदी होती थीं। इसमें एक तीली लगायी जाती थी। इसे फिर गीली मिट्टी के ऊपर घुमा कर चित्र बनाए जाते थे। इन्हें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर कभी-कभी इसके स्वामी का नाम, उसके देवता का नाम तथा उसके रैंक आदि का वर्णन भी किया जाता था।

इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारियों द्वारा अपना सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित भेजने के लिए किया जाता था। ये व्यापारी अपने सामान को एक गठरी में बाँध कर ऊपर गाँठ लगा लेते थे। इस गाँठ पर वह मुद्रा का ठप्पा लगा देते थे। इस प्रकार यह मुद्रा उस सामान की प्रामाणिकता का प्रतीक बन जाती थी। यदि यह मुद्रा टूटी हुई पाई जाती तो पता लग जाता कि रास्ते में सामान के साथ छेड़छाड़ की गई है अन्यथा भेजा गया सामान सुरक्षित है। निस्संदेह मुद्राओं के प्रयोग ने नगरीकरण के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

प्रश्न 6.
3000 ई० पू० में उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया गया। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
3000 ई० पू० के आस-पास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उस समय के लोगों ने अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ कर दिया था। इसके अतिरिक्त वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था। इससे भवन निर्माण कला के क्षेत्र में एक नयी क्राँति आई।

इसका कारण यह था कि उस समय बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को संभालने के लिए शहतीर बनाने के लिए उपयुक्त लकड़ी उपलब्ध नहीं थी। बड़ी संख्या में लोग चिकनी मिट्टी के शंकु बनाने एवं पकाने का कार्य करते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगा जाता था। इसके पश्चात् इन्हें मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।

इससे मंदिरों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती थी। उरुक नगर के लोगों ने मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की। इसका अनुमान 3000 ई० पू० में उरुक नगर से प्राप्त वार्का शीर्ष से लगाया जा सकता है। यह एक स्त्री का सिर था। इसे सफ़ेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। इसके सिर के ऊपर एक खाँचा बनाया गया था जिसे शायद आभूषण पहनने के लिए बनाया गया था। कुम्हार के चाक के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस कारण बड़ी संख्या में एक जैसे बर्तन बनाना सुगम हो गया।

प्रश्न 7.
उर नगर में नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उर नगर के उत्खनन से जो निष्कर्ष सामने आता है उससे यह ज्ञात होता है कि इसमें नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं। अतः पहिए वाली गाड़ियों का घरों तक पहुँचना संभव न था। अतः अनाज के बोरों तथा ईंधन के गट्ठों को संभवतः गधों पर लाद कर पहुँचाया जाता था।

उर नगर में मोहनजोदड़ो की तरह जल निकासी के लिए गलियों के किनारे नालियाँ नहीं थीं। ये नालियाँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। अत: वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से आँगन के भीतर बनी हुई हौजों में ले जाया जाता था। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तीव्र वर्षा के कारण घरों के बाहर बनी कच्ची गलियों में कीचड़ न एकत्र हो जाए।

उर नगर की खुदाई से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय के लोग अपने घर का सारा कूड़ा कचरा बाहर गलियों में फेंक देते थे। इस कारण गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं। इस कारण कुछ समय बाद घरों के बरामदों को भी ऊँचा करना पड़ता था ताकि वर्षा के दिनों में बाहर से पानी एवं कूड़ा बह कर घरों के अंदर न आ जाए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 8.
मारी नगर क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
1) मारी में अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के लोग रहते थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय से संबंधित थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। मारी के राजा मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं का बहुत सम्मान करते थे। इस प्रकार मारी में विभिन्न जातियों एवं समुदायों के मिश्रण से वहाँ एक नई संस्कृति का जन्म हुआ।

2) मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम ने वहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था। इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था।

3) मारी नगर व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र भी था। इसके न केवल मेसोपोटामिया के अन्य नगरों अपितु विदेशों, तुर्की, सीरिया, लेबनान, ईरान आदि देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे। मारी में आने-जाने वाले जहाजों के सामान की अधिकारियों द्वारा जाँच की जाती थी। वे जहाजों में लदे हुए माल की कीमत का लगभग 10% प्रभार वसूल करते थे।

प्रश्न 9.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ?
उत्तर:
खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए एक ख़तरा थे। इसके निम्नलिखित कारण थे।

  • गड़रिये आमतौर पर अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों में से गुज़ार ले जाते थे। इससे फ़सलों को भारी क्षति पहुँचती थी।
  • कई बार ये गड़रिये जो खानाबदोश होते थे, किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उनके माल को लूट लेते थे। इससे शहरी अर्थव्यवस्था को आघात पहुँचता था।
  • अनेक बार किसान इन पशुचारकों का रास्ता रोक लेते थे तथा उन्हें पशुओं को जल स्रोतों तक नहीं ले जाने देते थे। इस कारण उनमें आपसी झगड़े होते थे।
  • कुछ गड़रिये फ़सल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में शहर आते थे। समृद्ध होने पर वे वहीं बस जाते थे।
  • खानाबदोश समुदायों के पशुओं के अतिचारण से बहुत-ही उपजाऊ जमीन बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 10.
मारी स्थित ज़िमरीलिम के राजमहल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम ने मारी में एक भव्य राजमहल का निर्माण (1810-1760 ई० पू०) करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था। इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था। इस राजमहल में लगे भित्ति चित्र बहुत सुंदर एवं सजीव थे।

इस राजमहल की भव्यता को अपनी आँखों से देखने सीरिया एवं अलेप्पो के शासक स्वयं आए थे। यह राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास स्थान था। यह प्रशासन का मुख्य केंद्र था। यहाँ कीमती धातुओं के आभूषणों का निर्माण भी किया जाता था। इस राजमहल का केवल एक ही द्वार था जो उत्तर की ओर बना हुआ था।

प्रश्न 11.
असुरबनिपाल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
असुरबनिपाल की गणना निनवै के महान् शासकों में की जाती है। उसने 668 ई० पू० से 627 ई० पू० तक शासन किया था। वह महान् भवन निर्माता था। अतः उसने अपने साम्राज्य में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। उसने पुराने भवनों एवं मंदिरों की मुरम्मत भी करवाई। उसने अनेक उद्यान स्थापित किए। इससे निनवै की सुंदरता को चार चाँद लग गए। वह महान् साहित्य प्रेमी भी था।

उसने निनवै में नाबू मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में उसने अनेक प्रसिद्ध लेखकों को बुला कर उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों को रखवाया था। इस पुस्तकालय में लगभग 1000 मूल ग्रंथ एवं 30,000 पट्टिकाएँ थीं। इन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था। इनमें प्रमुख विषय ये थे-इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष, दर्शन, विज्ञान एवं कविताएँ। असुरबनिपाल ने स्वयं भी अनेक पट्टिकाएँ लिखीं।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के नगर बेबीलोन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बेबीलोन दजला नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित था। इसकी राजधानी का नाम बेबीलोनिया था। इस नगर ने प्राचीन काल मेसोपोटामिया के इतिहास में अत्यंत उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। इस नगर की स्थापना अक्कद के शासक सारगोन ने की थी। उसने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण करवाया। हामूराबी के शासनकाल में बेबीलोन ने अद्वितीय विकास किया। बाद में असीरिया ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। 625 ई० पू० में नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवा लिया था। उसके एवं उसके उत्तराधिकारियों के अधीन बेबीलोन में एक गौरवपूर्ण युग का आरंभ हुआ।

इसकी गणना विश्व के प्रमुख नगरों में की जाने लगी। इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था। इसके चारों ओर एक तिहरी दीवार बनाई गई थी। इसमें अनेक विशाल एवं भव्य राजमहलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया था। बेबीलोन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र भी था। इस नगर ने भाषा, साहित्य, विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। नगर में एक ज़िगुरात यानी सीढ़ीदार मीनार थी एवं नगर के मुख्य अनुष्ठान केंद्र तक शोभायात्रा के लिए एक विस्तृत मार्ग बना हुआ था।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो चुका था। कैसे ?
उत्तर:
उस समय प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो चुका था। उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग कुलीन लोगों का था। इसमें राजा, राज्य के अधिकारी, उच्च सैनिक अधिकारी, धनी व्यापारी एवं पुरोहित सम्मिलित थे। इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे सुंदर महलों एवं भवनों में रहते थे।

वे मूल्यवान वस्त्रों को पहनते थे। वे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाते थे। उनकी सेवा में अनेक दास-दासियाँ रहती थीं। दूसरा वर्ग मध्य वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यापारी, शिल्पी, राज्य के अधिकारी एवं बुद्धिजीवी सम्मिलित थे। इनका जीवन स्तर भी काफी अच्छा था। तीसरा वर्ग समाज का सबसे निम्न वर्ग था। इसमें किसान, मजदूर एवं दास सम्मिलित थे।

यह समाज का बहुसंख्यक वर्ग था। इस वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उर में मिली शाही कब्रों में राजाओं एवं रानियों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ जैसे आभूषण, सोने के पात्र, सफेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्य यंत्र, सोने के सजावटी खंजर आदि विशाल मात्रा में मिले हैं। दूसरी ओर साधारण लोगों के शवों के साथ केवल मामूली से बर्तनों को दफनाया जाता था। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय धन-दौलत का अधिकांश हिस्सा एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 14.
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना निम्नलिखित कारणों से ज़रूरी है
1) शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर तथा लकड़ी इत्यादि आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न स्थानों से आती हैं। इसके लिए संगठित व्यापार और भंडारण की आवश्यकता होती है।

2) शहरों में अनाज एवं अन्य खाद्य पदार्थ गाँवों से आते हैं। अतः उनके संग्रहण एवं वितरण के लिए व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

3) अनेक प्रकार के क्रियाकलापों में तालमेल की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए मोहरों को बनाने वालों को केवल पत्थर ही नहीं, अपितु उन्हें तराश्ने के लिए औज़ार भी चाहिए।

4) शहरी अर्थव्यवस्था में अपना हिसाब-किताब भी लिखित रूप में रखना होता है।

5) ऐसी प्रणाली में कुछ लोग आदेश देते हैं एवं दूसरे उनका पालन करते हैं।

प्रश्न 15.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे।
उत्तर:
इसमें कोई संदेह नहीं कि मेसोपोटामिया के कुछ मंदिर घर जैसे ही थे। ये मंदिर छोटे आकार के थे तथा ये कच्ची ईंटों के बने हुए थे। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इन मंदिरों का महत्त्व बढ़ता गया वैसे-वैसे ये मंदिर विशाल एवं भव्य होते चले गए। इन मंदिरों को पर्वतों के ऊपर बनाया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों की यह धारणा थी कि देवता पर्वतों में निवास करते हैं। ये मंदिर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे।

इन मंदिरों की विशेषता यह थी कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के पश्चात् भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। इन मंदिरों के आँगन खुले होते थे तथा इनके चारों ओर अनेक कमरे बने होते थे। प्रमुख कमरों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। कुछ कमरों में मंदिरों के पुरोहित निवास करते थे। अन्य कमरे मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए थे।

प्रश्न 16.
गिल्गेमिश के महाकाव्य के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गिल्गेमिश के महाकाव्य को विश्व साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है। गिलोमिश रुक का एक प्रसिद्ध शासक था जिसने लगभग 2700 ई० पू० वहाँ शासन किया था। उसके महाकाव्य को 2000 ई० पू० में 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। इस महाकाव्य में गिल्गेमिश के बहादुरी भरे कारनामों एवं मृत्यु की मानव पर विजय का बहुत मर्मस्पर्शी वर्णन किया गया है। गिल्गेमिश उरुक का एक प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था।

वह एक महान् योद्धा था। उसने अनेक प्रदेशों को अपने अधीन कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। जहाँ एक ओर गिल्गेमिश बहुत बहादुर था वहीं दूसरी ओर वह बहुत अत्याचारी भी था। उसके अत्याचारों से देवताओं ने उसके अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करवाने के उद्देश्य से एनकीडू को भेजा। दोनों के मध्य एक लंबा युद्ध हुआ।

इस युद्ध में दोनों अविजित रहे। इस कारण दोनों में मित्रता स्थापित हो गई। इसके पश्चात् गिल्गेमिश एवं एनकीडू ने अपना शेष जीवन मानवता की सेवा करने में व्यतीत किया। कुछ समय के पश्चात् एनकोडू एक सुंदर नर्तकी के प्रेम जाल में फंस गया। इस कारण देवता उससे नाराज़ हो गए एवं दंडस्वरूप उसके प्राण ले लिए। एनकीडू की मृत्यु से गिल्गेमिश को गहरा सदमा लगा। वह स्वयं मृत्यु से भयभीत रहने लगा।

इसलिए उसने अमृत्तव की खोज आरंभ की। वह अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ उतनापिष्टिम से मिला। अंतत: गिल्गेमिश के हाथ निराशा लगी। उसे यह स्पष्ट हो गया कि पृथ्वी पर आने वाले प्रत्येक जीव की मृत्यु निश्चित है। अत: वह इस बात से संतोष कर लेता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र एवं उरुक निवासी जीवित रहेंगे।

प्रश्न 17.
मेसोपोटामिया की लेखन प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था। इसके पश्चात् उसे गूंध कर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सुगमता से अपने हाथ में पकड़ सके। इसके बाद वह सरकंडे की तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न बना देता था। इसे बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।

इस लिपि का प्रचलन 2600 ई० पू० में हुआ था। 1850 ई० पू० में कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। ये पट्टिकाएँ विभिन्न आकारों की होती थीं। जब इन पट्टिकाओं पर लिखने का कार्य पूर्ण हो जाता था तो इन्हें पहले धूप में सुखाया जाता था तथा फिर आग में पका लिया जाता था। इस कारण वे पत्थर की तरह कठोर हो जाया करती थीं। इसके तीन लाभ थे।

प्रथम, वे पेपिरस की तरह जल्दी नष्ट नहीं होती थीं। दूसरा, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित ले जाया जा सकता था। तीसरा, एक बार लिखे जाने पर इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करना संभव नहीं था। इस लिपि का प्रयोग अब मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखने के लिए नहीं अपितु शब्द कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देने तथा राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाने लगा।

प्रश्न 18.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
उत्तर:
विश्व को मेसोपोटामिया ने निम्नलिखित क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान दिया

  • उसकी कालगणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परंपरा को आज तार्किक माना जाता है।
  • उसने गुणा और भाग की जो तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्ममूल और चक्रवृद्धि ब्याज की जो सारणियाँ दी हैं उन्हें आज सही माना जाता है।
  • उन्होंने 2 के वर्गमूल का जो मान दिया है वह आज के वर्गमूल के मान के बहुत निकट है।
  • उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों, एक महीने को 4 हफ्तों, एक दिन को 24 घंटों तथा एक घंटे को 60 मिनटों में विभाजित किया है। इसे आज पूर्ण विश्व द्वारा अपनाया गया है।
  • उनके द्वारा सूर्य एवं चंद्र ग्रहण, तारों और तारामंडल की स्थिति को आज तार्किक माना जाता है।
  • उन्होंने आधुनिक विश्व को लेखन कला के अवगत करवाया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ‘मेसोस’ तथा ‘पोटैमोस’ से बना है। मेसोस से भाव है मध्य तथा पोटैमोस का अर्थ है नदी। इस प्रकार मेसोपोटामिया से अभिप्राय है दो नदियों के मध्य स्थित प्रदेश।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया का आधुनिक नाम क्या है ? यह किन दो नदियों के मध्य स्थित है ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया का आधुनिक नाम इराक है।
  • यह दजला एवं फ़रात नदियों के मध्य स्थित है।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के बारे में ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में क्या लिखा हुआ है ?
उत्तर:
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाईबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में मेसोपोटामिया का उल्लेख अनेक संदर्भो में किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ में ‘शिमार’ का उल्लेख हैं जिसका अर्थ सुमेर ईंटों से बने शहरों की भूमि से हैं।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं। यहाँ 7000 ई० पू० से 6000 ई० पू० के मध्य खेती शुरू हो गई थी।
  • मेसोपोटामिया के उत्तर में स्टेपी घास के मैदान हैं। यहाँ पशुपालन का व्यवसाय काफी विकसित हैं।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इसके बावजूद यहाँ नगरों का विकास क्यों हुआ ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में नगरों का विकास इसलिए हुआ क्योंकि यहाँ दजला एवं फ़रात नदियाँ पहाड़ों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती हैं। अतः यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता है। इसे नगरों के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से क्यों घिर जाती थी ? कोई दो कारण बताएँ।
अथवा
मेसोपोटामिया में कृषि संकट के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • दजला एवं फ़रात नदियों में बाढ़ के कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं।
  • कई बार वर्षा की कमी के कारण फ़सलें सूख जाती थीं।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया में नगरों का विकास कब आरंभ हुआ ? किन्हीं दो प्रसिद्ध नगरों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में नगरों का विकास 3000 ई०पू० में आरंभ हुआ।
  • मेसोपोटामिया के दो प्रसिद्ध नगरों के नाम उरुक एवं मारी थे।

प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया में कितने प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ ? इनके नाम क्या थे ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ।
  • इनके नाम थे-धार्मिक नगर, व्यापारिक नगर एवं शाही नगर।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के उत्थान के कोई दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • अत्यंत उत्पादक खेती।।
  • जल-परिवहन की कुशल व्यवस्था।

प्रश्न 10.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे ?
उत्तर:

  • प्राकृतिक उर्वरता के कारण कृषि एवं पशुपालन को प्रोत्साहन मिला।
  • खाद्य उत्पादक बन जाने के कारण मनुष्य का जीवन स्थायी बन गया।
  • प्राकृतिक उर्वरता एवं खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ने नए व्यवसायों को आरंभ किया। ]

प्रश्न 11.
श्रम विभाजन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
श्रम विभाजन से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जब व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं रहता। इसे विभिन्न सेवाओं के लिए विभिन्न व्यक्तियों पर आश्रित होना पड़ता है।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के लोग किन देशों से कौन-सी वस्तुएँ मंगवाते थे ? इन वस्तुओं के बदले वे क्या निर्यात करते थे ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के लोग तुर्की, ईरान एवं खाड़ी पार के देशों से लकड़ी, ताँबा, सोना, चाँदी, टिन एवं पत्थर मँगवाते थे।
  • इन वस्तुओं के बदले वे कपड़ा एवं कृषि उत्पादों का निर्यात करते थे।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया की मुद्राओं की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • ये मुद्राएँ पत्थर की बनी होती थीं।
  • इनका आकार बेलनाकार होता था।

प्रश्न 14.
मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर कौन-सा था ? इसका उत्थान कब हुआ ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर उरुक था।
  • इसका उत्थान 3000 ई० पू० में हुआ था।

प्रश्न 15.
उरुक नगर का संस्थापक कौन था ? इसे किस शासक ने अपनी राजधानी घोषित किया था ?
उत्तर:

  • उरुक नगर का संस्थापक एनमर्कर था।
  • इसे गिल्गेमिश ने अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

प्रश्न 16.
3000 ई० पू० के आसपास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • उरुक में अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ हो गया था।
  • यहाँ के वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था।

प्रश्न 17.
वार्का शीर्ष की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है ? इसकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • वार्का शीर्ष की मूर्ति उरुक नगर से प्राप्त हुई है।
  • इसे सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था।
  • इसके सिर के ऊपर एक खाँचा बनाया गया था।

प्रश्न 18.
उर नगर का संस्थापक कौन था ? इस नगर ने किस राजवंश के अधीन उल्लेखनीय विकास किया ?
उत्तर:

  • उर नगर का संस्थापक मेसनीपद था।
  • इस नगर ने चालदी राजवंश के अधीन उल्लेखनीय विकास किया।

प्रश्न 19.
उर नगर में नियोजन पद्धति का अभाव था। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं।
  • जल निकासी के लिए घरों के बाहर नालियों का प्रबंध नहीं था।

प्रश्न 20.
उर नगर की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उर नगर में नियोजन पद्धति का अभाव था।
  • उर नगर के लोगों में कई प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे।

प्रश्न 21.
उर नगर में घरों के बारे में प्रचलित कोई दो अंध-विश्वास लिखें।
उत्तर:

  • यदि घर की दहलीज ऊँची उठी हुई हो तो वह धन-दौलत लाती है।
  • यदि घर के सामने का दरवाज़ा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता

प्रश्न 22.
उरुक एवं उर नगरों के प्रमुख देवी-देवता का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • उरुक नगर की प्रमुख देवी इन्नाना थी।
  • उर नगर का प्रमुख देवता नन्ना था।

प्रश्न 23.
मेसोपोटामिया के किस नगर से हमें एक कब्रिस्तान मिला है ? यहाँ किनकी समाधियाँ पाई गई
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के उर नगर से हमें एक कब्रिस्तान मिला है।
  • यहाँ शाही लोगों एवं साधारण लोगों की समाधियाँ पाई गई हैं।

प्रश्न 24.
मारी नगर की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मारी शासक एमोराइट वंश से संबंधित थे।
  • मारी लोगों के दो प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन थे।

प्रश्न 25.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ? कोई दो कारण लिखें।
अथवा
क्या खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ?
उत्तर:

  • खानाबदोश पशुचारक अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए गए खेतों से गुज़ार कर ले जाते थे। इससे फ़सलों को क्षति पहुँचती थी।
  • खानाबदोश पशुचारक कई बार आक्रमण कर लोगों का माल लूट लेते थे।

प्रश्न 26.
मारी स्थित ज़िमरीलिम के राजमहल की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह 2.4 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था।
  • यह बहत विशाल था तथा इसके 260 कमरे थे।

प्रश्न 27.
लगश की राजधानी का नाम क्या था ? इसके दो प्रसिद्ध शासक कौन-से थे ?
उत्तर:

  • लगश की राजधानी का नाम गिरसू था।
  • इसके दो प्रसिद्ध शासक इनन्नातुम द्वितीय एवं उरुकगिना थे।

प्रश्न 28.
मेसोपोटामिया में जलप्लावन के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर कौन-सा था ? इसके प्रथम शासक का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में जलप्लावन के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर किश था।
  • इसके प्रथम शासक का नाम उर्तुंग था।

प्रश्न 29.
असुरबनिपाल क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • उसने अपने साम्राज्य में भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • उसने नाबू के मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की।

प्रश्न 30.
बेबीलोन नगर की कोई दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह नगर 850 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला था।
  • इसमें अनेक विशाल राजमहल एवं मंदिर बने हुए थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 31.
मेसोपोटामिया की नगर योजना की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय घरों में एक खुला आँगन होता था जिसके चारों ओर कमरे होते थे।
  • नगरों में यातायात की आवाजाही के लिए सड़कों का उचित प्रबंध किया गया था।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे से वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है ?
उत्तर:
उर में राजाओं एवं रानियों की कुछ कब्रों में शवों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफ़नाई गई थीं जबकि जनसाधारण लोगों के शवों के साथ मामूली सी वस्तुओं को दफनाया गया था। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 33.
एकल परिवार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एकल परिवार से हमारा अभिप्राय ऐसे परिवार से है जिसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते हैं।

प्रश्न 34.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • वे पुरुषों के साथ सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों में समान रूप से भाग लेती थीं।
  • उन्हें पति से तलाक लेने तथा पुनः विवाह करने का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 35.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें पशुओं की तरह खरीदा एवं बेचा जा सकता था। उन्हें किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त न था।

प्रश्न 36.
शहरी जीवन शुरू होने पर कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आईं ? आपके विचार में कौन सी संस्थाएँ राजा के पहल पर निर्भर थीं ?
उत्तर:

  • शहरी जीवन शुरू होने पर व्यापार, मंदिर, लेखन कला, मूर्ति कला एवं मुद्रा कला नामक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं।
  • इनमें व्यापार, मंदिर एवं लेखन कला राजा के पहल पर निर्भर थीं।

प्रश्न 37.
मेसोपोटामिया में युद्ध एवं प्रेम की देवी तथा चंद्र देव कौन था ?
उत्तर:

  • प्राचीनकाल मेसोपोटामिया में युद्ध एवं प्रेम की देवी इन्नाना थी।
  • प्राचीन काल मेसोपोटामिया में चंद्र देव नन्ना था।

प्रश्न 38.
मेसोपोटामिया के लोगों के कोई दो धार्मिक विश्वास बताएँ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • वे मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 39.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:

  • पुराने मंदिर घरों की तरह छोटे आकार के थे।
  • ये कच्ची ईंटों के बने होते थे।
  • इन मंदिरों के आँगन घरों की तरह खुले होते थे तथा इनके चारों ओर कमरे बने होते थे।

प्रश्न 40.
प्राचीन काल मेसोपोटामिया के मंदिरों के कोई दो कार्य बताएँ।
उत्तर:

  • मंदिरों द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी।
  • मंदिरों की भूमि पर खेती की जाती थी।

प्रश्न 41.
प्राचीन काल मेसोपोटामिया में पुरोहितों के शक्तिशाली होने के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • इस काल में मेसोपोटामिया के मंदिर बहुत धनी थे।
  • पुरोहितों ने लोगों से विभिन्न करों को वसलना आरंभ कर दिया था।

प्रश्न 42.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
गिल्गेमिश उरुक का एक प्रसिद्ध शासक था। वह 2700 ई० पू० में सिंहासन पर बैठा था। वह एक महान् योद्धा था तथा उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। उसके महाकाव्य को विश्व साहित्य में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 43.
मेसोपोटामिया की लिपि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह लिपि मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखी जाती थी।
  • इस लिपि को बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।

प्रश्न 44.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी ? 2400 ई० पू० में इसका स्थान किस भाषा ने लिया ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन थी।
  • 2400 ई० पू० में इसका स्थान अक्कदी भाषा ने ले लिया।

प्रश्न 45.
लेखन कला का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • इससे शिक्षा के प्रसार को बल मिला।
  • इससे व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
  • इस कारण मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखा जाने लगा।

प्रश्न 46.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
अथवा
मेसोपोटामिया सभ्यता की विश्व को क्या देन है ?
उत्तर:

  • इसने विश्व को सर्वप्रथम शहर दिए।
  • इसने विश्व को सर्वप्रथम लेखन कला की जानकारी दी।
  • इसने विश्व को सर्वप्रथम कानून संहिता प्रदान की।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में ईराक को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के किन शब्दों से मिलकर बना है ?
उत्तर:
मेसोस व पोटैमोस।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया में नगरों का विकास कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
3000 ई० पू०।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया की दो प्रमुख नदियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
दज़ला एवं फ़रात।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का आरंभ कब किया गया था ?
उत्तर:
1840 ई०।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया का प्रसिद्ध फल कौन-सा है ?
उत्तर:
खजूर।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर कौन-सा था ?
उत्तर:
उरुक।

प्रश्न 8.
बाईबल के किस भाग में मेसोपोटामिया के बारे में उल्लेख किया गया है ?
उत्तर:
ओल्ड टेस्टामेंट।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया के उत्तरी भाग में किस प्रकार की घास के मैदान पाए जाते थे ?
उत्तर:
स्टैपी घास।

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का तथा कांस्य युग के निर्माण का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर:
3000 ई० पू०

प्रश्न 11.
वार्का शीर्ष क्या था ?
उत्तर:
3000 ई० पू० उरुक नगर में जिस स्त्री का सिर संगमरमर को तराशकर बनाया गया था उसे वार्का शीर्ष कहा जाता था।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया में लेखन कार्य पद्धति का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर:
3200 ई० पू०।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया में कीलाकार लिपि का विकास कब हुआ था ?
उत्तर:
2600 ई० पू०।

प्रश्न 14.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे प्राचीन मंदिरों का निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:
5000 ई० पू०।

प्रश्न 15.
चालदी कहाँ का प्रसिद्ध राजवंश था ?
उत्तर:
उर का।

प्रश्न 16.
मारी किस समुदाय के थे ?
उत्तर:
एमोराइट।

प्रश्न 17.
ज़िमरीलियम का राजमहल कहाँ स्थित था ?
उत्तर:
मारी में।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 18.
किश नगर पर शासन करने वाली प्रथम रानी कौन थी ?
उत्तर:
कू-बबा।

प्रश्न 19.
असुरबनिपाल कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
निनवै का।

प्रश्न 20.
बेबीलोन की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर:
बेबीलोनिया।

प्रश्न 21.
बेबीलोनिया का अंतिम राजा कौन था ?
उत्तर:
असुरबनिपाल।

प्रश्न 22.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
उरुक का एक प्रसिद्ध शासक।

प्रश्न 23.
मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज कब हुई थी ?
उत्तर:
3200 ई० पू० में।

प्रश्न 24.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
सुमेरियन।

प्रश्न 25.
मेसोपोटामिया में अक्कदी भाषा का प्रचलन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
2400 ई० पू० में।

प्रश्न 26.
सिकंदर ने बेबीलोन को कब विजित किया था ?
उत्तर:
331 ई० पू०।

प्रश्न 27.
मेसोपोटामिया नगर में हौज़ क्या था ?
उत्तर:
घरों के बरामदे में बना छोटा गड्डा जहाँ गंदा पानी एकत्र होता था।

प्रश्न 28.
स्टेल क्या होते हैं ?
उत्तर:
पट्टलेख।

प्रश्न 29.
मेसोपोटामिया समाज में किस प्रकार के परिवार को आदर्श परिवार माना जाता था ?
उत्तर:
एकल परिवार।

प्रश्न 30.
मारी में स्थित जिमरीलिम के राजमहल की क्या मुख्य विशेषता थी ?
उत्तर:
यह प्रशासन व उत्पादन तथा कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केंद्र था।

प्रश्न 31.
मेसोपिटामिया की संस्कृति का वर्णन किस महाकाव्य से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
गिल्गेमिश।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया की खुदाई के समय अलाशिया द्वीप किन वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
ताँबे व टिन।

रिक्त स्थान भरिए

1. मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ……………. तथा ……………. से मिलकर बना है।
उत्तर:
मेसोस, पोटैमोस

2. मेसोपोटामिया …………….. तथा …………….. नामक दो नदियों के मध्य स्थित है।
उत्तर:
फ़रात, दजला

3. मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का आरंभ ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
1840

4. मेसोपोटामिया में …………….. तथा …………….. की खेती की जाती थी।
उत्तर:
जौ, गेहूँ

5. मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का तथा कांस्य युग के निर्माण का आरंभ …………… में हुआ था।
उत्तर:
3000 ई० पू०

6. मेसोपोटामिया में लेखन कार्य का आरंभ ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
3200

7. मेसोपोटामिया में कीलाकार लिपि का विकास …………… ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
2600

8. मेसोपोटामिया की सबसे प्राचीन भाषा सुमेरियन का स्थान …………….. ई० पू० के पश्चात् अक्कदी भाषा ने ले लिया था।
उत्तर:
2400

9. दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मंदिरों का निर्माण ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
5000

10. उरुक नामक नगर का एक विशाल नगर के रूप में विकास …………….. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
3000

11. मारी नगर ……………. तथा ……………. के निर्माण का मुख्य केंद्र था।
उत्तर:
कीमती धातुओं, आभूषणों

12. गणितीय मूलपाठों की रचना ……….. ई० पू० में की गई थी।
उत्तर:
1800

13. मेसोपोटामिया में असीरियाई राज्य की स्थापना ……………. में हुई थी।
उत्तर:
1100 ई० पू०

14. मेसोपोटामिया में लोहे का प्रयोग ……………. पू० में हुआ था।
उत्तर:
1000 ई०

15. सिकंदर ने बेबीलोन पर ……………. में अधिकार कर लिया था।
उत्तर:
331 ई० पू०

16. बेबीलोनिया का अंतिम राजा …………….. था।
उत्तर:
असुरबनिपाल

17. असुरबनिपाल ने अपनी राजधानी ……………. में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी।
उत्तर:
निनवै

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक काल में मेसोपोटामिया को किस नाम से जाना जाता है?
(क) ईरान
(ख) इराक
(ग) कराकोरम
(घ) पीकिंग।
उत्तर:
(ख) इराक

2. मेसोपोटामिया निम्नलिखित में से किन दो नदियों के मध्य स्थित है?
(क) गंगा एवं यमुना
(ख) दजला एवं फ़रात
(ग) ओनोन एवं सेलेंगा
(घ) हवांग हो एवं दज़ला।
उत्तर:
(ख) दजला एवं फ़रात

3. मेसोपोटामिया की सभ्यता क्यों प्रसिद्ध थी?
(क) अपनी समृद्धि के लिए
(ख) अपने शहरी जीवन के लिए
(ग) अपने साहित्य, गणित एवं खगोलविद्या के लिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

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4. मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से क्यों घिर जाती थी?
(क) दजला एवं फ़रात नदियों में आने वाली बाढ़ के कारण
(ख) वर्षा की कमी हो जाने के कारण
(ग) निचले क्षेत्रों में पानी का अभाव होने के कारण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

5. मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इसके बावजूद यहाँ नगरों का विकास क्यों हुआ?
(क) क्योंकि यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था
(ख) क्योंकि यहाँ के दृश्य बहुत सुंदर थे
(ग) क्योंकि यहाँ बहुत मज़दूर उपलब्ध थे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) क्योंकि यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था

6. मेसोपोटामिया में नगरों का निर्माण कब आरंभ हुआ?
(क) 3000 ई० पू० में
(ख) 3200 ई० पू० में
(ग) 4000 ई० पू० में
(घ) 5000 ई० पू० में।
उत्तर:
(क) 3000 ई० पू० में

7. मेसोपोटामिया सभ्यता थी?
(क) काँस्य युगीन
(ख) ताम्र युगीन
(ग) लौह युगीन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) काँस्य युगीन

8. निम्नलिखित में से कौन-सा मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर था?
(क) उर
(ख) मारी
(ग) उरुक
(घ) लगश।
उत्तर:
(ग) उरुक

9. उरुक नगर का संस्थापक कौन था ?
(क) असुरबनिपाल
(ख) एनमर्कर
(ग) गिल्गेमिश
(घ) सारगोन।
उत्तर:
(ख) एनमर्कर

10. हमें वार्का शीर्ष की मूर्ति मेसोपोटामिया के किस नगर से प्राप्त हुई है?
(क) मारी
(ख) उरुक
(ग) किश
(घ) निनवै।
उत्तर:
(ख) उरुक

11. मारी के राजा किस समुदाय के थे?
(क) अक्कदी
(ख) एमोराइट
(ग) असीरियाई
(घ) आर्मीनियन।
उत्तर:
(ख) एमोराइट

12. मारी नगर के शासकों ने किस देवता की स्मृति में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था?
(क) डैगन
(ख) नन्ना
(ग) इन्नना
(घ) अनु।
उत्तर:
(क) डैगन

13. मारी नगर के किसानों एवं पशुचारकों में लड़ाई का प्रमुख कारण क्या था?
(क) पशुचारक किसानों की फ़सलों को नष्ट कर देते थे
(ख) पशुचारक किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उन्हें लूट लेते थे
(ग) अनेक बार किसान पशुचारकों को जल स्रोतों तक जाने नहीं देते थे
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. साइप्रस का द्वीप अलाशिया (Alashiya) निम्नलिखित में से किस वस्तु के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था?
(क) ताँबा
(ख) लोहा
(ग) सोना
(घ) चाँदी।
उत्तर:
(क) ताँबा

15. जलप्लावन (flood) के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर कौन-सा था?
(क) लगश
(ख) मारी
(ग) किश
(घ) निनवै।
उत्तर:
(ग) किश

16. लगश का सबसे महान् शासक कौन था?
(क) गुडिया
(ख) उरनिना
(ग) उरुकगिना
(घ) इनन्नातुम द्वितीय।
उत्तर:
(क) गुडिया

17. असुरबनिपाल क्यों प्रसिद्ध था?
(क) उसने एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी
(ख) उसने अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया
(ग) उसने अपनी राजधानी निनवै को अनेक भव्य भवनों से सुसज्जित किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

18. मेसोपोटामिया के समाज में कितने प्रमुख वर्ग थे?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

19. उर में मिली शाही कब्रों में निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तु प्राप्त हुई है?
(क) आभूषण
(ख) सोने के सजावटी खंजर
(ग) लाजवर्द
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

20. मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है?
(क) उर में मिली शाही कब्रों से
(ख) ज़िमरीलिम के राजमहल से
(ग) व्यापारी वर्ग से
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) उर में मिली शाही कब्रों से

21. निम्नलिखित में से कौन मेसोपोटामिया की प्रेम एवं युद्ध की देवी थी?
(क) इन्नाना
(ख) नन्ना
(ग) एनकी
(घ) अनु।
उत्तर:
(क) इन्नाना

22. मेसोपोटामिया में चंद्र देवता को किस नाम से पुकारा जाता था?
(क) नन्ना
(ख) अनु
(ग) गिल्गेमिश
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) नन्ना

23.. गिल्गेमिश कौन था?
(क) उर का प्रसिद्ध लेखक
(ख) उरुक का प्रसिद्ध शासक
(ग) अक्कद का प्रमुख अधिकारी
(घ) लगश का महान् शासक।
उत्तर:
(ख) उरुक का प्रसिद्ध शासक

24. मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज कब हुई?
(क) 3200 ई० पू० में
(ख) 3000 ई० पू० में
(ग) 2800 ई० पू० में
(घ) 2500 ई० पू० में
उत्तर:
(क) 3200 ई० पू० में

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25. मेसोपोटामिया की ज्ञात सबसे प्राचीन भाषा कौन-सी थी ?
(क) हिब्रू
(ख) अक्कदी
(ग) सुमेरियन
(घ) अरामाइक
उत्तर:
(ग) सुमेरियन

26. 2400 ई० पू० में मेसोपोटामिया में किस भाषा का प्रचलन आरंभ हुआ?
(क) अक्कदी
(ख) अरामाइक
(ग) अंग्रेजी
(घ) फ्रांसीसी।
उत्तर:
(क) अक्कदी

लेखन कला और शहरी जीवन HBSE 11th Class History Notes

→ आधुनिक इराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के नाम से जाना जाता था। यहाँ की विविध भौगोलिक विशेषताओं ने यहाँ के इतिहास पर गहन प्रभाव डाला है। मेसोपोटामिया की सभ्यता के विकास में यहाँ की दो नदियों दजला एवं फ़रात ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ 3000 ई० प० में मेसोपोटामिया में नगरों का विकास आरंभ हुआ। यहाँ 1840 ई० के दशक में पुरातत्त्वीय खोजों की शुरुआत हुई थी। मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगर धार्मिक नगर, व्यापारिक नगर एवं शाही नगर अस्तित्व में आए थे। इन नगरों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।

→ मेसोपोटामिया में जिन नगरों का उत्थान हुआ उनमें उरुक, उर, मारी, किश, लगश, निनवै, निमरुद एवं बेबीलोन बहुत प्रसिद्ध थे। इन नगरों ने मेसोपोटामिया के इतिहास को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो गया था।

→  उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग जो अभिजात वर्ग कहलाता था बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता था। दूसरा वर्ग जो मध्य वर्ग कहलाता था का भी जीवन सुगम था।

→ तीसरा वर्ग जो निम्न वर्ग कहलाता था में समाज का बहुसंख्यक वर्ग सम्मिलित था। इनकी दशा बहुत दयनीय थी। उस समय मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार प्रचलित थे। परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। उस समय समाज में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। निस्संदेह ऐसे अधिकार आज के देशों के अनेक समाजों में स्त्रियों को प्राप्त नहीं हैं। मेसोपोटामिया के समाज के माथे पर दास प्रथा एक कलंक समान थी। दासों की स्थिति पशुओं से भी बदतर थी।

→ उन्हें अपने स्वामी की आज्ञानुसार काम करना पड़ता था। उस समय के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। मेसोपोटामिया के समाज में मंदिरों की उल्लेखनीय भूमिका थी। ये मंदिर आरंभ में घरों जैसे छोटे आकार एवं कच्ची ईंटों के थे।

→ किंतु धीरे-धीरे ये मंदिर बहुत विशाल एवं भव्य बन गए। ये मंदिर धनी थे तथा उनके क्रियाकलाप बहुत व्यापक थे। अत: इन मंदिरों की देखभाल करने वाले पुरोहित भी बहुत शक्तिशाली हो गए थे। इन मंदिरों ने व्यापार एवं लेखन कला के विकास में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

→ विश्व साहित्य में गिल्गेमिश के महाकाव्य को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे 2000 ई० पू० में 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। गिल्गेमिश उरुक का सबसे प्रसिद्ध शासक था। वह एक महान् एवं बहादुर योद्धा था। दूसरी ओर वह बहुत अत्याचारी था।

→  उसके अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करवाने के उद्देश्य से देवताओं ने एनकीडू को भेजा। दोनों के मध्य एक लंबा युद्ध हुआ जिसके अंत में दोनों मित्र बन गए। इसके पश्चात् गिल्गेमिश एवं एनकीडू ने अपना शेष जीवन लोक भलाई कार्यों में लगा दिया। कुछ समय के पश्चात् एनकीडू एक नर्तकी के प्रेम जाल में फंस गया।

→ इस कारण देवताओं ने रुष्ट होकर उसके प्राण ले लिए। एनकीडू जैसे शक्तिशाली वीर की मृत्यु के बारे में सुन कर गिल्गेमिश स्तब्ध रह गया। अत: उसे अपनी मृत्यु का भय सताने लगा। इसलिए उसने अमरत्व की खोज आरंभ की। वह अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ उतनापिष्टिम से मिला।

→ अंततः गिल्गेमिश के हाथ निराशा लगी। उसने यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी पर आने वाला प्रत्येक जीव मृत्यु के चक्कर से नहीं बच सकता। वह केवल इस बात से संतोष कर लेता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र एवं उरुक निवासी जीवित रहेंगे।

→ मेसोपोटामिया में 3200 ई० पू० में लेखन कला का विकास आरंभ हुआ। इसके विकास का श्रेय मेसोपोटामिया के मंदिरों को दिया जाता है। इन मंदिरों के पुरोहितों को मंदिर की आय-व्यय का ब्यौरा रखने के लिए लेखन कला की आवश्यकता महसूस हुई। आरंभ में मेसोपोटामिया में चित्रलिपि का उदय हुआ।

→ यह लिपि बहुत कठिन थी। इस लिपि को मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा जाता था। इस पर कोलाकार चिह्न बनाए जाते थे जिसे क्यूनीफार्म कहा जाता था। जब इन पट्टिकाओं पर लेखन कार्य पूरा हो जाता था तो उन्हें धूप में सुखा लिया जाता था। मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन थी। 2400 ई० पू० में अक्कदी ने इस भाषा का स्थान ले लिया। 1400 ई० पू० में अरामाइक भाषा का भी प्रचलन आरंभ हो गया।

→ मेसोपोटामिया लिपि की जटिलता के कारण मेसोपोटामिया में साक्षरता की दर बहुत कम रही। यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया का विशेष महत्त्व रहा है। इसका कारण यह था कि बाईबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में मेसोपोटामिया का उल्लेख अनेक संदर्भो में किया गया है। मेसोपोटामिया सभ्यता की जानकारी हमें अनेक स्रोतों से प्राप्त होती है। इनमें से प्रमुख हैं-भवन, मंदिर, मूर्तियाँ, आभूषण, औज़ार, मुद्राएँ, कब्र एवं लिखित दस्तावेज़।

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HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव प्राणियों की उत्पत्ति के संबंध में आप क्या जानते हैं?
अथवा
मानव प्राणियों की उत्पत्ति के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
मानव प्राणियों की उत्पत्ति कब और कैसे हुई यह एक लंबी एवं जटिल कहानी है। इस संबंध में अनेक उत्तर अभी भी खोजे जाने वाले बाकी हैं। नवीनतम खोजों के आधार पर मानव विकास के अनेक घटनाक्रमों को परिवर्तित करना पड़ा है। मानव विकास अनेक चरणों में हुआ है। निम्नलिखित चरण मानव के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं

1. प्राइमेट:
प्राइमेट स्तनपायी (mammals) प्राणियों के एक विशाल समूह के अधीन एक उपसमूह (subgroup) है। इस उपसमूह में बंदर (monkeys), पूँछहीन बंदर (apes) एवं मानव (humans) सम्मिलित थे। उनके जिस्म पर बाल होते थे। उनका बच्चा जन्म लेने से पहले अपेक्षाकृत काफी समय तक माता के गर्भ में पलता था। उनकी माताओं के बच्चों को दूध पिलाने के लिए स्तन होते थे। इन प्राइमेट प्राणियों के दाँत विभिन्न प्रकार के होते थे। ऐसे प्राणी 360 से 240 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका एवं एशिया में पाए जाते थे।

2. होमिनॉइड:
होमिनॉइड समूह 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था। यह प्राइमेट श्रेणी का एक उपसमूह था। इसमें पूँछहीन बंदर सम्मिलित थे। इनका मस्तिष्क छोटा होता था। अतः उनमें सोचने की शक्ति कम थी। उनके चार पैर थे। वे चलते समय चारों पैरों का प्रयोग करते थे। उनके शरीर का अगला हिस्सा और दोनों पैर लचकदार होते थे। वे सीधे खड़े होकर चल नहीं सकते थे। होमिनॉइड बंदरों से कई प्रकार से भिन्न होते थे। उनका शरीर बंदरों से बड़ा होता था। उनकी पूँछ भी नहीं होती थी। उनके बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता था।

3. होमिनिड:
होमिनिड 56 लाख वर्ष पूर्व होमिनॉइड उपसमूह से विकसित हुए। इनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें लेतोली (Laetoli) तंजानिया से एवं हादार (Hadar) इथियोपिया से प्राप्त हुए हैं। दो प्रकार के साक्ष्यों से पता चलता है कि होमिनिडों का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। प्रथम, अफ्रीकी वानरों के समूह का होमिनिडों के साथ बहुत गहरा संबंध है। दूसरा, होमिनिडों के सबसे प्राचीन जीवाश्म (fossils) पूर्वी अफ्रीका में पाए गए हैं।

ये 56 लाख वर्ष पुराने हैं। अफ्रीका से बाहर जो जीवाश्म पाए गए हैं वे 18 लाख वर्ष से पुराने नहीं हैं। होमिनिड, होमिनिडेइ (Hominidae) नामक परिवार के साथ संबंधित हैं। इस परिवार में सभी रूपों के मानव प्राणी (human beings) सम्मिलित हैं। इस समूह की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं-

    • इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
    • वे सीधे खड़े हो सकते थे।
    • वे दो पैरों के बल चल सकते थे।
    • उनके हाथ विशेष प्रकार के होते थे।

वे इन हाथों की सहायता से औज़ार (tools) बना सकते थे और उनका प्रयोग कर सकते थे। होमिनिड आगे अनेक शाखाओं में विभाजित थे। इन्हें जीनस (genus) कहा जाता है। इन शाखाओं में आस्ट्रेलोपिथिकस और होमो सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है …

(क) आस्ट्रेलोपिथिकस:
आस्ट्रेलोपिथिकस के जीवाश्म 56 लाख वर्ष पुराने थे। जीवाश्म हमें तंजानिया के ओल्डवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हए हैं। होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था। उनके जबड़े अधिक भारी थे एवं दाँत भी ज्यादा. बड़े होते थे। आस्ट्रेलोपिथिकस बंदरों की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे दो पैरों पर खड़े हो सकते थे।

उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं थी। इसका कारण यह था कि वे अभी अपना काफ़ी समय पेड़ों पर गुजारते थे। वे अपनी सुरक्षा के लिए औज़ारों का निर्माण करने लगे थे।

(ख) होमो :
होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। होमो लातीनी भाषा का एक शब्द है। इसका भाव है आदमी। इसमें पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों सम्मिलित थे। आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा था, जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे एवं दाँत छोटे थे। वैज्ञानिकों ने होमो को निम्नलिखित तीन प्रमुख प्रजातियों में उनकी विशेषताओं के आधार पर बाँटा है–

1) होमो हैबिलिस :
होमो हैबिलिस औजार बनाने वाले के नाम से जाने जाते हैं । उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे आस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे अपने हाथों का दक्षतापूर्वक प्रयोग कर सकते थे। वे प्रथम होमिनिड थे जिन्होंने पत्थर के औजार बनाए।

2) होमो एरेक्टस :
होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औजारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

3) होमो सैपियंस :
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष पूर्व से 1.60 लाख वर्ष के दौरान हुआ। आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं, जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। उस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था।

अत: वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हए उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 1

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 2.
होमो से आपका क्या अभिप्राय है? होमो हैबिलिस, होमो एरेक्टस तथा होमो सैपियंस के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
होमो से अभिप्राय (Meaning of Homo) होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। होमो लातीनी (Latin) भाषा का एक शब्द है। इसका भाव है आदमी। इसमें पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों सम्मिलित थे। आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा था, जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे एवं दाँत छोटे थे। वैज्ञानिकों ने होमो को अनेक प्रजातियों (species) में उनकी विशेषताओं के आधार पर बाँटा है। इनमें से प्रमुख प्रजातियों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. होमो हैबिलिस :
होमो हैबिलिस औज़ार बनाने वाले (the tool makers) के नाम से जाने जाते हैं। उनके प्राचीनतम जीवाश्म 22 लाख वर्ष पूर्व से 18 लाख वर्ष पूर्व तक हैं। ये जीवाश्म हमें इथियोपिया में ओमो (Omo) एवं तंज़ानिया में ओल्डुवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हुए हैं। उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे आस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे अपने हाथों का दक्षता पूर्वक प्रयोग कर सकते थे।

वे प्रथम होमिनिड थे जिन्होंने पत्थर के औज़ार बनाए। ये औज़ार उनके लिए शिकार के लिए बहुत उपयोगी प्रमाणित हुए। शिकार करते समय उन्हें आपसी सहयोग की आवश्यकता होती थी। इससे भाषा का विकास संभव हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार एडवर्ड मैक्नल बर्नस के अनुसार, “होमो हैबिलिस को स्पष्ट रूप से मानव जाति का मुखिया कहना उचित है।”

2. होमो एरेक्टस:
होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खडे होकर पैरों के बल चलना जानते थे। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। होमो एरेक्टस के प्राचीनतम जीवाश्म 18 लाख वर्ष पूर्व के हैं। ये जीवाश्म हमें अफ्रीका एवं एशिया दोनों महाद्वीपों से प्राप्त हुए हैं। इसके प्रसिद्ध केंद्र कूबी फ़ोरा (Koobi Fora), पश्चिमी तुर्काना (West Turkana), केन्या (Kenya), मोड़ जोकर्तो (Mod Jokerto), संगीरन (Sangiran) एवं जावा (Java) थे। अफ्रीका में पाए गए जीवाश्म एशिया में पाए गए जीवाश्मों की तुलना में अधिक प्राचीनकाल के हैं।

अत: संभव है कि होमो एरेक्टस पूर्वी अफ्रीका से चल कर दक्षिणी एवं उत्तरी अफ्रीका, दक्षिणी एवं पूर्वोत्तर एशिया एवं संभवतः यूरोप में गए। होमो एरेक्टस का मस्तिष्क होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक बड़ा था। अत: वे अधिक समझदार थे। उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औज़ारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था।

उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। आग के संबंध में हमें प्रथम साक्ष्य केन्या के चेसोवांजा (Chesowanja) से प्राप्त हुआ है। निस्संदेह होमो एरेक्टस मानव विकास की कड़ी में एक मील पत्थर सिद्ध हुए। उनका लोप 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ।

3. होमो सैपियंस :
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव (the wise man)। मानव (modern humans) के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष से 1.60 लाख वर्ष पूर्व के दौरान हुआ। इस मानव के प्राचीनतम साक्ष्य हमें अफ्रीका के विभिन्न भागों में मिले हैं। इनमें इथियोपिया का ओमो किबिश (Omo Kibish), दक्षिण अफ्रीका के बॉर्डर गुफ़ा (Border Cave), डाई केल्डर्स (Die Kelders) एवं कलासीज नदी का मुहाना (Klasies River Mouth) एवं मोरक्को का दार-एस सोल्तन (Dar-es-Solton) बहुत प्रसिद्ध हैं। इससे प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आधुनिक मानव का उद्भव कहाँ हुआ? इस प्रश्न पर विद्वानों में दो मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान् प्रतिस्थापन मॉडल (replacement model) का समर्थन करते हैं।

उनके अनुसार आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक (anatomical) एवं जननिक (genetic) समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे अन्य स्थानों को गए।

दूसरी ओर कुछ अन्य विद्वान् क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल (regional continuity model) का समर्थन करते हैं। उनके विचारानुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ। इस अंतर को स्पष्टतः आज भी देखा जा सकता है।
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आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। इस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था। अतः वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी। इससे उसे भोजन की तलाश में भटकना नहीं पड़ा। उसने अब खाना पकाने की विधि की जानकारी प्राप्त कर ली थी।

उसने अब किसी प्राकृतिक संकट के समय भोजन का भंडारण (store) करना सीख लिया था। उसके हथियार बहुत उत्तम थे। उसने अनेक नए हथियारों का निर्माण भी कर लिया था। इससे वह जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा अधिक अच्छे ढंग से कर सका। उसने सूई का आविष्कार कर लिया था। अतः उसने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे। उसने कला एवं भाषा के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति कर ली थी। निस्संदेह आधुनिक मानव की उपलब्धियाँ महान् थीं। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० एस० फ्राई का यह कहना ठीक है कि, “नए मानव की ये उपलब्धियाँ स्पष्ट करती हैं कि वह अपने पूर्वजों में सर्वश्रेष्ठ था।”

(क) होमो हाइडलवर्गेसिस :
उन्हें हाइडलबर्ग मानव के नाम से भी जाना जाता है। उनका यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि उनके प्राचीनतम जीवाश्म जर्मनी के शहर हाइडलबर्ग से प्राप्त हुए हैं। ये जीवाश्म यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका में पाए गए हैं। हाइडलबर्ग मानव का मस्तिष्क काफ़ी बड़ा था। उसके अंग तथा हाथ बहुत भारी भरकम थे। उसके जबड़े बहुत भारी थे। उसके शरीर पर काफी बाल थे। वह संभवतः बोल सकता था किंतु भाषा का विकास नहीं कर पाया था। वे गुफ़ाओं में निवास करते थे।
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(ख) होमो निअंडरथलैंसिस:
उन्हें निअंडरथल मानव के नाम से भी जाना जाता है। उनका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उनके प्राचीनतम जीवाश्म जर्मनी की निअंडर घाटी से प्राप्त हुए हैं। उनके जीवाश्म हमें यूरोप एवं पश्चिमी तथा मध्य एशिया के अनेक देशों से प्राप्त हुए हैं। यह मानव कद में छोटा था। उसका सिर बड़ा था। उसकी नाक चौड़ी थी। उसके कंधे चौड़े थे।

उसका मस्तिष्क कोष काफी बड़ा किंतु निम्नकोटि का था। वह गुफ़ाओं में रहता था। उसे अग्नि की जानकारी थी। उसके प्रमुख भोजन जंगली फल एवं शिकार थे। वे अपने शवों को बहत सम्मान के साथ दफनाते थे।

प्रश्न 3.
प्रारंभिक समाज में मानव के भोजन प्राप्त करने के तरीके क्या थे?
अथवा
आदिकालीन मानव के भोजन प्राप्त करने के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदिकालीन मानव अनेक तरीकों से अपना भोजन जुटाते थे। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण तरीके निम्नलिखित थे

1. संग्रहण :
आदिकालीन मानव पूर्ण रूप से प्रकृति जीवी थे। वे कृषि से अपरिचित थे। इसके अतिरिक्त वे पशुपालन भी नहीं करते थे। अतः आरंभ में आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वे पेड-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे-बीज, गुठलियाँ (nuts), फल एवं कंदमूल (tubers) एकत्र करते थे। संग्रहण के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

इस संबंध में हमें प्रत्यक्ष प्रमाण बहुत कम मिले हैं। इसका कारण यह है कि हमें हड्डियों के जीवाश्म (fossil bones) तो काफी संख्या में प्राप्त हुए हैं जबकि पौधों के जीवाश्म (fossilised plant remains) बहुत कम प्राप्त हुए हैं। संग्रहण द्वारा भोजन जुटाने का मुख्य कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था। पुरुष मुख्य रूप से शिकार के लिए बाहर जाते थे।

2. अपमार्जन:
 (आदिकालीन मानव अपमार्जन द्वारा अथवा रसदखोरी द्वारा भी अपना भोजन जुटाता था। अपमार्जन (scavenging) से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। रसदखोरी (foraging) से अभिप्राय भोजन की तलाश करना है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस (meat) एवं मज्जा (marrow) प्राप्त करते थे। इनके अतिरिक्त वे छोटे-छोटे पक्षियों एवं उनके अंडों, सरीसृपों (reptiles), चूहों एवं अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़ों (insects) को खाते थे।

3. शिकार:
शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करना आदिकालीन मानव का एक प्रमुख स्रोत रहा है। शिकार प्रमुख तौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता था। वे शिकार का पीछा करते हुए अपने निवास स्थान से काफी दूर तक निकल जाते थे। वे छोटे-मोटे पशुओं का शिकार स्वयं कर लेते थे। वे बड़े पशुओं का शिकार सम्मिलित रूप से करते थे। इसका कारण यह था कि बड़े पशुओं का अकेले शिकार करने में उनके स्वयं के मारे जाने की संभावना अधिक रहती थी।

वे जंगली घोड़ों, जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन कहा जाता था, गैंडों, रीछों एवं विशालकाय जानवरों जिन्हें मैमथ कहा जाता था का शिकार करते थे। वे शिकार के लिए भालों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे। बाद में आदिमानव ने शिकार के लिए कुत्तों का सहयोग लेना आरंभ कर दिया था।

योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों का शिकार एवं उनका वध करने की सबसे पुरानी उदाहरण हमें दो स्थलों है। दूसरी उदाहरण 4 लाख वर्ष पूर्व की है। यह जर्मनी में शोनिंजन (Schoningen) से संबंधित है। लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व आदिमानव द्वारा योजनाबद्ध ढंग से शिकार करने के कुछ साक्ष्य हमें कुछ यूरोपीय खोज स्थलों से प्राप्त हुए हैं। ऐसा ही एक स्थल चेक गणराज्य में नदी के पास स्थित दोलनी वेस्तोनाइस (Dolni Vestonice) था।

इस स्थान को बहुत सोच-समझकर चुना गया था। यहाँ अनेक जानवर पानी पीने के लिए आते थे। इसके अतिरिक्त घोड़े एवं रेडियर आदि जानवरों के झुंड पतझड़ एवं वसंत के मौसम में नदी के उस पार जाते थे। इस अवसर पर इन जानवरों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता था। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि उस समय के लोगों को जानवरों की आवाजाही की पूर्ण जानकारी होती थी।

आदिमानव द्वारा जिन जानवरों का शिकार करना होता था उन्हें घेरे में ले लेते थे। जब कोई विशालकाय पशु बीमार अथवा घायल अवस्था में मिल जाता था तो उसे पानी अथवा बर्फ में फंसा कर सुगमता से मार डालते थे। यदि जिस जानवर का शिकार किया गया हो वह छोटा हो तो उसे गुफ़ा में लाकर खाया जाता था। दूसरी ओर यदि वह जानवर विशालकाय हो तो उसके धड़ को वहीं खा लिया जाता था जबकि शेष भाग को काट कर गुफ़ा में लाया जाता था।

इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि हमें मृत पशुओं के लघु अंगों की हड्डियाँ गुफ़ाओं से प्रचुर मात्रा में मिली हैं जबकि उनकी रीढ़ की हड्डियाँ एवं पसलियाँ कम प्राप्त हुई हैं। आदिकालीन मानव मारे गए पशुओं की खाल को साफ करके धूप में सुखा लेता था तथा उससे पहनने एवं बिछाने का काम लेता था।

4. मछली पकड़ना (Fishing) मछली पकड़ना भी आदिकालीन मानव का भोजन जुटाने का एक महत्त्वपूर्ण ढंग था। वे नदियों एवं तालाबों से हाथ द्वारा ही मछली पकड़ लिया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छोटी मछली पकड़ने के लिए काँटे का एवं बड़ी मछली पकड़ने के लिए हार्पून का प्रयोग भी करते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 4.
आदिमानव के निवास स्थान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदिमानव कहाँ निवास करता था? वह पेड़ों से गुफ़ाओं तक तथा फिर खुले स्थलों पर कैसे पहुँचा? इस संबंध में हम साक्ष्यों के आधार पर पुनर्निर्माण करने का प्रयास करेंगे। इसका एक ढंग यह है कि उनके द्वारा निर्मित शिल्पकृतियों के फैलाव की जाँच करना (plotting the distribution of artefacts)। शिल्पकृतियाँ मानव निर्मित वस्तुएँ होती हैं।

इसमें अनेक प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं जैसे-औजार, चित्रकारियाँ, मूर्तियाँ, उत्कीर्ण चित्र आदि। उदाहरण के तौर पर हमें केन्या में किलोंबे (Kilombe) तथा ओलोर्जेसाइली (Olorgesailie) नामक स्थलों से बड़ी संख्या में शल्क उपकरण (flake tools) एवं हस्त कुठार (hand axes) मिले हैं।

ये वस्तुएँ 7 लाख वर्ष पूर्व से 5 लाख वर्ष पूर्व पुरानी हैं। इतने सारे औज़ार एक स्थान पर किस प्रकार इकट्ठे हुए। यह अनुमान लगाया जाता है कि जिन स्थानों पर खाद्य प्राप्ति के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे वहाँ लोग बार-बार आते रहे होंगे। ऐसे क्षेत्रों में वे अपनी शिल्पकृतियाँ छोड़ जाते रहे होंगे। जिन स्थानों में उनका आवागमन कम था वहाँ ऐसी शिल्पकृतियाँ हमें बहुत कम प्राप्त हुई हैं।

1. पेड़:
प्रारंभ में आदि मानव पेड़ों पर रहते थे। वे अपना अधिकाँश समय पेड़ों पर ही बिताते थे। इसका कारण यह था कि पेड़ों पर वे अपना भोजन सुगमता से जटा सकते थे। यहाँ उसे फल, कंदमल, पक्षी एवं उनके अंडे बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते थे। अतः उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान भटकने की आवश्यकता नहीं थी।

उस समय पेड़ों पर ही बंदर, लंगूर एवं तेंदुए (leopards) आदि निवास करते थे। इन जानवरों से अपनी सुरक्षा करना आदिमानव के लिए एक भारी समस्या थी। इसके अतिरिक्त भयंकर तूफ़ान एवं भयंकर शीत से बचाव करना एक अन्य समस्या थी।

2. गुफ़ाएँ :
आज से 4 लाख वर्ष पूर्व आदिमानव ने गुफ़ाओं को अपना निवास स्थान बना लिया था। गुफ़ाओं में रहने के उसे अनेक लाभ हुए। प्रथम, वे भयंकर जानवरों से अपने को सुरक्षित रख सके। दूसरा, गुफ़ाओं में रहने के कारण उन्हें भयंकर तूफ़ानों के समय अथवा शीत के समय किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता था।

तीसरा, गुफ़ाओं की दीवारों से पानी रिसता रहता था। अतः उन्हें पानी पीने के लिए किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाना पड़ता था। हमें आदिमानव के गुफ़ाओं में निवास करने के जो साक्ष्य प्राप्त हुए हैं उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध दक्षिण फ्राँस में स्थित लेज़रेट गुफ़ा (Lazaret cave) है। इस गुफ़ा का आकार 12 x 4 मीटर है।

इस गुफा के अंदर से हमें दो चूल्हों (hearths), अनेक प्रकार के फलों, सब्जियों, बीजों, काष्ठफलों (nuts), पक्षियों के अंडों एवं मछलियों जैसे ट्राउट (trout), पर्च (perch) एवं कार्प (carp) आदि के साक्ष्य (evidence) मिले हैं।

3. झोंपड़ियाँ :
आदिमानव ने 1.25 लाख वर्ष पूर्व झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। यह आदिमानव द्वारा प्रगति की दिशा में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पग था। उसने अब कृषि आरंभ कर दी थी। इसलिए उसे स्थायी निवास की आवश्यकता हुई।

अतः उसने झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ किया। आदिमानव के झोंपड़ियों के निर्माण संबंधी हमें जो साक्ष्य मिले हैं उनमें दक्षिणी फ्रांस में स्थित टेरा अमाटा (TerraAmata) नामक झं बहुत प्रसिद्ध है। यह झोंपड़ी घास-फूस से बनाई गई थी। इसकी छत लकड़ी की थी। इस झोंपड़ी के किनारों को सहारा देने के लिए बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया था।

फ़र्श पर जो पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े बिखरे हुए हैं वे उन स्थानों को दर्शाते हैं जहाँ बैठ कर लोग पत्थर के औजार बनाते थे। यहाँ से हमें चूल्हे को दर्शाने के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं।

4. अग्नि (Fire)-अग्नि के आविष्कार के कारण आदिमानव के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। इसका आविष्कार कब हुआ इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसके प्रथम साक्ष्य हमें केन्या में चेसोवांजा (Chesowanja) एवं दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रांस (Swartkrans) से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से पत्थर के औज़ारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी और जली हुई हड्डियों के अंश प्राप्त हुए हैं। ये 14 लाख वर्ष पूर्व के हैं। इन वस्तुओं को किस प्रकार आग लगी इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

अग्नि का आविष्कार मानव के लिए अनेक पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुआ। प्रथम, आग से जंगली जानवरों को डर लगता था। अतः आदिमानव अग्नि से गुफ़ाओं को प्रज्वलित रखने लगा। इस कारण उसे जंगली जानवरों से सुरक्षा प्राप्त हुई। दूसरा, अग्नि की सहायता से आदिमानव के लिए भयंकर शीत से बचाव सुगम हो गया। तीसरा, इस कारण गुफ़ाओं के अंदर जहाँ अंधेरा रहता था प्रकाश करना संभव हुआ।

चौथा, अग्नि की सहायता से भोजन को पकाना संभव हुआ। यह कच्चे भोजन की अपेक्षा अधिक स्वाद होता था। चूल्हों के प्रयोग के बारे में हमें सबसे प्रथम साक्ष्य 1.25 लाख वर्ष पूर्व का मिला है। पाँचवां, अग्नि औज़ारों के निर्माण में काफी उपयोगी सिद्ध हुई।

प्रश्न 5.
आदिमानव ने औज़ारों का निर्माण किस प्रकार किया ?
उत्तर:
आदिमानव के जीवन में औज़ारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वह इनका प्रयोग जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा एवं अपने लिए भोजन जुटाने के लिए करता था। इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ पक्षी एवं वानर आदि भी औज़ारों का निर्माण करते हैं एवं उनका प्रयोग करते हैं। किंतु आदिमानव द्वारा बनाए गए औजार अधिक कौशल एवं स्मरण शक्ति को दर्शाते हैं।

आदिमानव के औज़ार पत्थर से निर्मित थे। संभवत: वे लकड़ी के औजार भी बनाते थे। किंतु लकड़ी के औजार समय के साथ नष्ट हो गए। पत्थर के बने औज़ारों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है। प्रथम श्रेणी में आने वाले औज़ारों को हस्त कुठार (hand axes) कहा जाता है। हस्त कुठारों को मुट्ठी (fist) में पकड़ा जाता था। ये अनेक प्रकार के होते थे। इनका प्रयोग किसी वस्तु को काटने अथवा किसी वस्तु को कुचलने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के औज़ार हमें बड़ी संख्या में तंजानिया के ओल्डुवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हुए हैं।

दूसरी श्रेणी में गंडासे (choppers) सम्मिलित थे। उन्हें भारी पत्थरों से तैयार किया जाता था। इसमें शल्कों (flakes) को निकाल कर धारदार बनाया जाता था। इनका प्रयोग संभवत: माँस काटने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के हथियार हमें बड़ी संख्या में एशिया, अफ्रीका एवं यूरोप के अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। तीसरी श्रेणी में शल्क औज़ार (flake tools) सम्मिलित थे। ये हस्त कुठारों एवं गंडासों की अपेक्षा छोटे एवं पतले होते थे। इनके किनारे अधिक पैने होते थे। ये औज़ार अधिक उपयोगी तथा दूर तक प्रहार करने में सक्षम होते थे।

पत्थर के औजार बनाने एवं इनका प्रयोग किए जाने के सबसे प्राचीन साक्ष्य हमें इथियोपिया (Ethiopia) एवं केन्या (Kenya) से प्राप्त हुए हैं। विद्वानों (scholars) के विचारानुसार आस्ट्रेलोपिथिकस ने सबसे पहले पत्थर के औज़ार बनाए थे। लगभग 35,000 वर्ष पूर्व जानवरों के शिकार करने के तरीकों में सुधार हुआ। इसका साक्ष्य यह है कि इस काल में नए प्रकार के भालों का निर्माण किया गया। इसके अतिरिक्त तीर-कमान भी बनाए गए। 21,000 वर्ष पूर्व सिलाई वाली सूई का आविष्कार हुआ।

निस्संदेह यह एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार था। अब आदिमानव ने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे। अब हड्डी एवं हाथी दाँत से भी औज़ार बनाए जाने लगे। इनके अतिरिक्त अब छेनी (punch blade) जैसे छोटे-छोटे औजार भी बनाए जाने लगे। इनकी सहायता से हड्डी, सींग (antler), हाथी दाँत एवं लकड़ी पर नक्काशी (engravings) की जाने लगी।

हम निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकते कि औज़ारों का निर्माण पुरुषों अथवा स्त्रियों अथवा दोनों द्वारा मिल कर किया जाता था। यह संभव है कि स्त्रियाँ अपने और अपने बच्चों के लिए भोजन जुटाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के औजारों का निर्माण एवं प्रयोग करती रही होंगी।

प्रश्न 6.
भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी सुविधा मिली होगी? इस पर चर्चा कीजिए। इन क्रियाकलापों के लिए विचार संप्रेषण के अन्य किन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता था ?
अथवा
आदिमानव ने भाषा का विकास किस प्रकार किया ? इसका उनके जीवन में क्या महत्त्व था?
उत्तर:
भाषा का विकास आदिमानव की प्रगति की राह में एक मील पत्थर सिद्ध हआ। इनका संक्षिप्त वर्णन
निम्नलिखित अनुसार है
1. भाषा :
प्रारंभिक चरणों में जब भाषा का विकास नहीं हुआ था तो आदिमानव के लिए अपने विचारों की अभिव्यक्ति करना संभव न था। इस कारण उसकी प्रगति करने की रफ्तार बहुत धीमी रही। भाषा के विकास ने उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन के अनुसार, “भाषा की श्रेष्ठता ने मानव को अन्य प्राइमेट के मुकाबले सांस्कृतिक तौर पर अधिक विकसित किया।” भाषा का विकास किस प्रकार हुआ इस संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।

  • होमिनिड भाषा में हाव-भाव (gestures) अथवा हाथों का संचालन (hand movements) सम्मिलित था।
  • उच्चरित (spoken) भाषा से पूर्व प्रचलन हुआ।
  • मानव भाषा का आरंभ संभवत: बुलावों (calls) की क्रिया से हआ था जैसा कि अन्य प्राइमेटों द्वारा किया जाता था।

समय के साथ-साथ इन ध्वनियों ने भाषा का रूप धारण कर लिया। बोलने वाली भाषा का आरंभ कब हुआ इस संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार भाषा का सबसे पहले विकास 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार इसका विकास 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ था जब स्वरतंत्र (vocal tract) का विकास हुआ था।

इसका संबंध विशेष तौर पर आधुनिक मानव से है। कुछ अन्य विद्वानों के विचारानुसार भाषा का विकास 40,000 से 35,000 वर्ष पूर्व तब हुआ जब कला का विकास आरंभ हुआ। इसका कारण यह है कि ये दोनों ही विचार अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। भाषा के प्रयोग से शिकार करने में तथा आश्रय बनाने में अनेक लाभ हुए।

(क) शिकार करने में (In Hunting)-भाषा का प्रयोग शिकार करने में निम्नलिखित पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुआ-

  • लोग शिकार करने की योजना बना सकते थे।
  • वे जानवरों के क्षेत्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे जानवरों की प्रकृति पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे शिकार के लिए आवश्यक औज़ारों पर विचार कर सकते थे।
  • वे मारे गए जानवरों के उपयोग के संबंध में चर्चा कर सकते थे।

(ख) आश्रय बनाने में (In Constructing Shelters)-भाषा का प्रयोग आश्रय बनाने में निम्नलिखित पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुआ-

  • लोग आश्रय बनाने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों पर चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के लिए उपलब्ध सामग्री की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के तरीकों के संबंध में चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल के निकट उपलब्ध सुविधाओं पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल को जंगली जानवरों एवं भयंकर तूफ़ानों से सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में सोच सकते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 7.
आदिमानव की कला पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
आदिकालीन मानव को प्रारंभ से ही कला में विशेष दिलचस्पी थी। अतः उसने चित्रकला एवं मूर्तिकला के क्षेत्रों में अपना हाथ आजमाया।

(क) चित्रकला :
प्रारंभ में आदिमानव अपने दैनिक जीवन में जिनसे प्रभावित होता था उन्हें वह पूर्ण भाव के साथ व्यक्त करने का प्रयास करता था। उसने जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, सूर्य, चंद्रमा, तारों, नदियों आदि के चित्र बनाए। क्योंकि उनके जीवन में शिकार का विशेष महत्त्व था अतः उन्होंने इससे संबंधित सर्वाधिक चित्र बनाए। ये चित्र गुफ़ाओं की दीवारों एवं छतों पर बनाए गए थे।

इनमें से स्पेन में स्थित आल्टामीरा (Altamira) तथा फ्रांस में स्थित लैसकॉक्स (Lascaux) तथा चाउवेट (Chauvet) नामक गुफाएं विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। आल्टामीरा गुफ़ा की खोज 1879 ई० में मार्सिलीनो सैंज दि सउतुओला (Marcelino Sanz de Sautuola) एवं उसकी पुत्री मारिया (Maria) ने की।

इस गुफ़ा से हमें जो अनेक चित्र प्राप्त हुए हैं उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध एक जंगली भैंसे का चित्र है। 1994 ई० में लैसकॉक्स एवं चाउवेट नामक गुफ़ाओं की खोज हुई। इनमें भी बड़ी संख्या में सुंदर चित्र प्राप्त हुए हैं। इनमें जंगली बैलों (bison), घोड़ों, पहाड़ी बकरों (ibex), हिरणों, मैमथों (mammoths), गैंडों (rhinos), शेरों, भालुओं, चीतों, लकड़बग्धों एवं उल्लुओं आदि के चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन चित्रों में विशेष रूप से चार रंगों-काला, लाल, पीला एवं सफ़ेद का प्रयोग किया गया है। इन चित्रों को 30,000 से 12,000 वर्ष पूर्व बनाया गया था।

उपरोक्त चित्रों के संबंध में अनेक प्रश्न उठाए गए हैं। उदाहरणस्वरूप इन चित्रों में अधिकाँश शिकार के चित्र क्यों बनाए गए हैं ? इन्हें गुफ़ाओं के उन स्थानों पर क्यों बनाया गया था जहाँ अंधकार होता था? इन चित्रों में कुछ विशेष चित्रों को ही चित्रित क्यों किया गया है? केवल पुरुषों को ही जानवरों के साथ चित्रित किया गया है स्त्रियों को क्यों नहीं? इन प्रश्नों के संबंध में विद्वानों ने अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए हैं। इन चित्रों के उद्देश्यों के संबंध में विद्वानों में मतभेद पाए जाते हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि ये चित्र गुफ़ाओं को सुंदर बनाने के उद्देश्य से बनाए गए थे।

कुछ अन्य का विचार है कि इन चित्रों को इसलिए चित्रित किया गया था ताकि वे भावी पीढ़ियों को शिकार के संबंध में अपनी जानकारी दे सकें। अधिकांश विद्वानों का विचार है कि इन चित्रों का वास्तविक उद्देश्य धार्मिक था। प्रसिद्ध इतिहासकारों जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर का यह कहना ठीक है कि, “इन चित्रों की सादगी एवं उन्हें दर्शाने की शक्ति ने प्रारंभिक 20वीं शताब्दी से आधुनिक आलोचकों पर गहन प्रभाव छोड़ा। प्रागैतिहासिक काल के कलाकारों के कौशल ने मानव प्रजातियों की अद्भुत दिमागी शक्ति को दर्शाया है।

2. मूर्तिकला (Sculpture)-आदिकालीन मानव ने कुछ छोटे आकार की मूर्तियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। उन्होंने मानवों एवं जानवरों की अनेक मूर्तियाँ बनाईं। इनमें से अधिकाँश मूर्तियाँ स्त्रियों से संबंधित थीं। इसका कारण यह था कि वे स्त्रियों को जनन (fertility) शक्ति का स्रोत समझते थे। इनमें प्रायः स्त्रियों के मुख को नहीं दर्शाया जाता था। इस प्रकार की अनेक मूर्तियाँ हमें यूरोप के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुई हैं। इन मूर्तियों को वीनस (Venus) देवी के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 8.
हादज़ा जनसमूह का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध मानव विज्ञानी (anthropologist) जेम्स वुडबर्न (James Woodburn) द्वारा 1960 ई० में अफ्रीका के हादज़ा जनसमूह के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया। इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार हादज़ा एक लघु समूह है जो एक खारे पानी की झील ‘लेक इयासी’ (Lake Eyasi) के इर्द-गिर्द रहते हैं। वे शिकारी तथा खाद्य संग्राहक हैं। पूर्वी हादज़ा का क्षेत्र सूखा एवं चट्टानी है। यहाँ सवाना घास, काँटेदार झाड़ियाँ तथा एकासिया (accacia) नामक पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ जंगली खाद्य पदार्थ भी काफी मात्रा में मिलते हैं।

20वीं शताब्दी के आरंभ में हादज़ा प्रदेश में बड़ी मात्रा में जानवर पाए जाते थे। यहाँ पाए जाने वाले बड़े जानवरों में हाथी, शेर, तेंदुए, लकड़बग्घे, गैंडे, भैंसे, चिंकारा, हिरण, बबून बंदर, जेब्रा, जिराफ़, वाटरबक एवं मस्सेदार सूअर (warthog) आदि थे। इनके अतिरिक्त यहाँ अनेक प्रकार के छोटे जानवर भी पाए जाते थे। इनमें खरगोश एवं कछुए आदि थे। हादज़ा लोग केवल हाथी को छोड़ कर अन्य सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं एवं उनका माँस खाते हैं। यहाँ यह बात स्मरण रखने योग्य है कि हादज़ा लोग विश्व में सबसे अधिक माँस खाते हैं। इसके बावजूद वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि शिकार को भविष्य में कोई ख़तरा न हो।

साधारण दर्शकों को हादज़ा क्षेत्र में पाए जाने वाले कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल सुगमता से दिखाई नहीं देते। इसके बावजूद ये अत्यंत सूखे मौसम में भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। वहाँ वर्षा ऋतु के 6 महीनों में मिलने वाले खाद्य पदार्थ सूखे के मौसम में मिलने वाले खाद्य पदार्थ से भिन्न होते हैं। किंतु वहाँ कभी भी खाद्य पदार्थ की कोई कमी नहीं रहती। यहाँ पाई जाने वाली सात प्रकार की मधुमक्खियाँ, शहद एवं सूंडियों को विशेष चाव के साथ खाया जाता है। इनकी आपूर्ति (supplies) मौसम के अनुसार बदलती रहती है।

वर्षा ऋतु में संपूर्ण देश में जल स्रोतों की कोई कमी नहीं रहती। ये बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। किंतु सूखे के मौसम में इनमें से अधिकाँश सूख जाते हैं। इसलिए वे प्रायः अपने शिविर जल स्रोतों से एक किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थापित नहीं करते हैं। हादज़ा लोगों के कुछ क्षेत्रों में घास के विशाल मैदान हैं। इसके बावजूद वे कभी भी वहाँ अपना शिविर स्थापित नहीं करते। वे अपने शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के मध्य अथवा उन स्थानों पर लगाते हैं जहाँ ये दोनों सुविधाएँ उपलब्ध हों।

हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपना दावा नहीं करते। कोई भी व्यक्ति जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है। वह वहाँ से कंदमूल, फल एवं शहद एकत्र कर सकता है तथा पानी ले सकता है। वास्तव में इस संबंध में हादज़ा प्रदेश में कोई प्रतिबंध नहीं है। यद्यपि हादज़ा प्रदेश में बड़ी मात्रा में जानवर शिकार के लिए उपलब्ध हैं फिर भी हादज़ा लोग अपने भोजन का 80 प्रतिशत जंगली साग-सब्जियों से प्राप्त करते हैं। वे अपने भोजन का शेष 20 प्रतिशत माँस एवं शहद से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 9.
क्या आज के शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में प्राप्त सूचनाओं को अतीत के मानव जीवन के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा.सकता है?
अथवा
क्या वर्तमान शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में प्राप्त जानकारी के सुदूर अतीत के मानव के जीवन को पुनर्निर्मित करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है?
उत्तर:
मानव विज्ञानियों (anthropologists) के अध्ययनों के आधार पर वर्तमान समय के शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में जैसे-जैसे हमारे ज्ञान में वद्धि हई वैसे-वैसे हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि क्या आज के शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में प्राप्त सूचनाओं को अतीत के मानव जीवन के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस संबंध में इतिहासकारों में निम्नलिखित दो मत प्रचलित हैं

(क) कुछ इतिहासकारों के विचारानुसार वर्तमान समय के शिकारी संग्राहक समाजों से प्राप्त तथ्यों को प्राचीनकालीन प्राप्त अवशेषों के अध्ययन के लिए प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए कुछ पुरातत्त्वविदों (archaeologists) का विचार है कि 20 लाख वर्ष पूर्व के होमिनिड स्थल जो तुर्काना झील (Lake Turkana) के किनारे स्थित हैं वास्तव में आदिकालीन मानवों के निवास स्थान थे। यहाँ वे सूखे के मौसम में जब स्रोतों में कमी आ जाती थी, आकर निवास करते थे। वर्तमान समय में हादज़ा (Hadza) एवं कुंग सैन (Kung San) समाज भी इसी ढंग से रहते हैं।

(ख) दूसरी ओर कुछ अन्य इतिहासकारों का विचार है कि संजातिवृत्त (ethnography) संबंधी तथ्यों का उपयोग अतीत के समाजों को समझने के लिए नहीं किया जा सका क्योंकि दोनों समाज एक-दूसरे से अलग हैं। संजातिवृत्त में समकालीन नृजातीय समूहों (ethnic groups) का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है। इसमें उनके रहन-सहन, खान-पान, आजीविका के साधन, रीति-रिवाजों, सामाजिक रूढ़ियों एवं राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।

आज के शिकारी संग्राहक समाज शिकार एवं संग्रहण के अतिरिक्त कई अन्य आर्थिक गतिविधियों में भी लगे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर वे जंगलों में पाए जाने वाले छोटे-छोटे उत्पादों का आपस में विनिमय (exchange) करते हैं तथा इनका व्यापार भी करते हैं। वे पड़ोसी किसानों के खेतों में मजदूरी का काम भी करते हैं। सबसे बढ़कर वे जिन हालातों में रहते हैं वे आदिकालीन मानवों से पूर्णतः भिन्न हैं।

वर्तमान काल के शिकारी संग्राहक समाजों में आपस में भी बहुत भिन्नता है। उनकी गतिविधियों में बहुत अंतर है। वे शिकार एवं संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं। उनका आकार भी छोटा-बड़ा होता है। भोजन प्राप्त करने के संबंध में श्रम विभाजन (division of labour) को लेकर भी मतभेद पाए जाते हैं।

यद्यपि आज भी अधिकाँश स्त्रियाँ खाद्य-पदार्थों को एकत्र करने का कार्य करती हैं एवं पुरुष शिकार करते हैं किंतु फिर भी अनेक ऐसे समाजों के उदाहरण मिलेंगे जहाँ स्त्रियाँ एवं पुरुष दोनों ही शिकार करते हैं, संग्रहण का कार्य करते हैं तथा औजार बनाते हैं। निस्संदेह इससे ऐसे समाजों में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका की जानकारी प्राप्त होती है। अतः अतीत के संबंध में कोई अनुमान लगाना कठिन है।

प्रश्न 10.
अध्याय के अंत में दिए गए प्रत्येक कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कालानुक्रम-1

1. होमिनॉइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन : नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 1 के भाग 2 एवं 3 का उत्तर देखें।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 4

2. होमो एरेक्टस : नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 के भाग 2 का उत्तर देखें।

कालानुक्रम-2
1. आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव : नोट- इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 के भाग 3 का उत्तर देखें।
2. निअंडरथल मानव का प्रादुर्भाव : नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 के भाग 3 का (ख) भाग देखें।

क्रम संख्यावर्षघटना
1 .-240 लाख वर्ष पूर्वप्राइमेट प्राणियों का अफ्रीका एवं एशिया में उत्थान।
2 .240 लाख वर्ष पूर्वहोमिनॉइड का उत्थान।
3 .56 लाख वर्ष पूर्वआस्ट्रेलोपिथिकस अस्तित्व में आए।
4 .25 लाख वर्ष पूर्वहिम युग का आरंभ, होमो अस्तित्व में आए।
5 .22 लाख वर्ष पूर्वहोमो हैबिलिस का उत्थान।
6 .20 लाख वर्ष पूर्वहोमिनिड का तुर्काना झील पर स्थल।
7 .18 लाख वर्ष पूर्वहोमो एरेक्टस का अस्तित्व में आना।
8 .13 लाख वर्ष पूर्वआस्ट्रेलोपिथिकस का विलुप्त होना।
9 .8 लाख वर्ष पूर्वहोमो हाइडलबर्गेसिस का अस्तित्व में आना।
10 .5 लाख वर्ष पूर्वबॉक्सग्रोव, इंग्लैंड से स्तनपायी जानवरों का योजनाबद्ध ढंग से शिकार का साक्ष्य।
11 .4 लाख वर्ष पूर्वशोनिंजन, जर्मनी से स्तनपायी जानवरों का योजनाबद्ध ढंग से शिकार का साक्ष्य, गुफ़ाओं में निवास।
12.2 लाख वर्ष पूर्वहोमो एरेक्टस का लोप होना।
13.1.95 लाख वर्ष पूर्वआधुनिक मानव का अस्तित्व में आना।
14.1.30 लाख वर्ष पूर्वहोमो निअंडरथलैंसिस का अस्तित्व में आना।
15.1.25 लाख वर्ष पूर्वझोंपड़ियों का निर्माण।
16.35 हज़ार वर्ष पूर्वनिअंडरथल मानवों का लोप, शिकार के तरीकों में सुधार।
17.21 हज़ार वर्ष पूर्वसिलाई वाली सूई का आविष्कार।
18.1879 ई०आल्टामीरा गुफ़ा की खोज हुई।
19.1959 ई०ओल्डुवई गोर्ज की खोज हुई।
20.1960 ईमानव विज्ञानी जेम्स वुडबर्न द्वारा हादज़ा जनसमूह का वर्णन।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
होमिनॉइड और होमिनिड से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1) होमिनॉइड-होमिनॉइड समूह 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था। यह प्राइमेट श्रेणी का एक उपसमूह था। इसमें पूँछहीन बंदर सम्मिलित थे। इनका मस्तिष्क छोटा होता था। अत: उनमें सोचने की शक्ति कम थी। उनके चार पैर थे। वे चलते समय चारों पैरों का प्रयोग करते थे। उनके शरीर का अगला हिस्सा और दोनों पैर लचकदार होते थे। वे सीधे खड़े होकर चल नहीं सकते थे। होमिनॉइड बंदरों से कई प्रकार से भिन्न होते थे। उनका शरीर बंदरों से बड़ा होता था। उनकी पूँछ भी नहीं होती थी। उनके बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता था।

2) होमिनिड-होमिनिड 56 लाख वर्ष पूर्व होमिनॉइड उपसमूह से विकसित हुए। इनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें लेतोली तंजानिया से एवं हादार इथियोपिया से प्राप्त हुए हैं। दो प्रकार के साक्ष्यों से पता चलता है कि होमिनिडों का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। ये 56 लाख वर्ष पुराने हैं। अफ्रीका से बाहर जो जीवाश्म पाए गए हैं वे 18 लाख वर्ष से पुराने नहीं हैं। होमिनिड, होमिनिडेइ नामक परिवार के साथ संबंधित हैं। इस परिवार में सभी रूपों के मानव प्राणी सम्मिलित हैं। इस समूह की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं-

  • इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
  • वे सीधे खड़े हो सकते थे।
  • वे दो पैरों के बल चल सकते थे।
  • उनके हाथ विशेष प्रकार के होते थे। वे इन हाथों की सहायता से औजार बना सकते थे और उनका प्रयोग कर सकते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 2.
दिए गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों की सूची दे सकते हैं जो औज़ारों के निर्माण में सहायक हुए ? औज़ारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला ?
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 5
उत्तर:
औज़ारों के निर्माण में सहायक निवेश

  • मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।
  • औज़ारों के इस्तेमाल के लिए बच्चों व चीज़ों को ले जाने के लिए हाथों का मुक्त होना।
  • सीधे खड़े होकर चलना।
  • आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लंबी दूरी तक चलना।

प्रक्रियाएँ जिनको औज़ारों के निर्माण से बल मिला

  • सीधे खड़े होकर चलना।
  • आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लंबी दूरी तक चलना।
  • मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।

प्रश्न 3.
मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पाई जाती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि संभवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों से हुआ।
(क) व्यवहार और
(ख)शरीर रचना शीर्षकों के अंतर्गतः दो अलग-अलग स्तंभ बनाइए और उन समानताओं की सूची दीजिए। दोनों के बीच पाए जाने वाले उन अंतरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण समझते हैं।
उत्तर:
(क) समानताएँ-व्यवहार एवं शरीर रचना

मानववानर तथा लंगूर
1. मानव पेड़ों पर चढ़ सकता है।1. वानर भी पेड़ों पर चढ़ सकते हैं।
2. माताएँ अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं।2. मादा वानर भी अपने बच्चों को दूध पिलाती है।
3. मानव लंबी दूरी तक चल सकता है।3. वानर भी लंबी दूरी तक चल सकते हैं।
4. मानव प्रजनन द्वारा अपने जैसी संतान उत्पन्न करते हैं।4. वानर भी ऐसा ही करते हैं।
5. मानव रीढ़धारी हैं।5. वानर भी रीढ़धारी होते हैं।

(ख) असमानताएँ-व्यवहार एवं शरीर रचना

मानववानर तथा लंगूर
1. मानव दो पैरों पर चलता है।1. वानर चार पैरों पर चलता है।
2. मानव खेती करके अपने भोजन के लिए अनाज उगाता है।2. वानर ऐसा नहीं कर सकते।
3. मानव सीधे खड़ा होकर चल सकता है।3. वानर ऐसा नहीं कर सकते।
4. मानव की पूँछ नहीं होती।4. वानरों की पूँछ होती है।
5. मानव का शरीर बड़ा होता है।5. वानरों का शरीर अपेक्षाकृत छोटा होता है।

प्रश्न 4.
मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा करिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है ?
उत्तर:
आधुनिक मानव का उद्भव कहाँ हुआ इस संबंध में इतिहासकार एक मत नहीं है। कुछ विद्वान् क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल का समर्थन करते हैं। उनके विचारानुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में नहीं अपितु अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई है। उनका मानना है कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ।

इस अंतर को स्पष्टतः आज भी देखा जा सकता है। कुछ अन्य विद्वान् प्रतिस्थापन मॉडल का समर्थन करते हैं। उनका कथन है कि आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ। अपने पक्ष में वे तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक एवं जननिक समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे विश्व के विभिन्न भागों में फैले।

प्रश्न 5.
आस्ट्रेलोपिथिकस मानव के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस शब्द लातीनी भाषा के शब्द ‘आस्ट्रल’ भाव दक्षिणी एवं यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ भाव बंदर से मिल कर बना है। इसका कारण यह था कि मानव के इस रूप में बंदर के अनेक लक्षण बरकरार रहे। आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें तंज़ानिया के ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं। इसकी खोज 17 जुलाई, 1959 ई० को मेरी एवं लुईस लीकी ने की थी। उनके जीवाश्म 56 लाख वर्ष पुराने थे। होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था। उनके जबड़े अधिक भारी थे एवं दाँत भी ज़्यादा बड़े होते थे।

आस्ट्रेलोपिथिकस बंदरों की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे दो पैरों पर खड़े हो सकते थे। उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं थी। इसका कारण यह था कि वे अभी भी अपना काफी समय पेड़ों पर गुजारते थे। वे अपनी सरक्षा के लिए औज़ारों का निर्माण करने लगे थे। लगभग 25 लाख वर्ष पूर्व ध्रुवीय हिमाच्छादन अथवा हिम युग के प्रारंभ से पृथ्वी के बड़े-बड़े भाग बर्फ से ढक गए। इस कारण जलवायु एवं वनस्पति की स्थिति में बहुत परिवर्तन हुए। तापमान एवं वर्षा में कमी के कारण पृथ्वी पर वन कम हो गए। इसके चलते 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस लुप्त हो गए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 6.
‘होमो’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? इन्हें किन-किन प्रजातियों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। होमो लातीनी भाषा का एक शब्द है। इसका भाव है में पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों सम्मिलित थे। आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा था, जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे एवं दाँत छोटे थे। वैज्ञानिकों द्वारा होमो को निम्नलिखित तीन प्रमुख प्रजातियों में बाँटा गया है

1) होमो हैबिलिस-होमो हैबिलिस औज़ार बनाने वाले के नाम से जाने जाते हैं। उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे आस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे अपने हाथों का दक्षतापूर्वक प्रयोग कर सकते थे। वे प्रथम होमिनिड थे जिन्होंने पत्थर के औजार बनाए।

2) होमो एरेक्टस-होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औज़ारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

3) होमो सैपियंस-होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष पूर्व से 1.60 लाख वर्ष के दौरान हुआ। आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। उस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था। अतः वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी।

प्रश्न 7.
होमो एरेक्टस से आपका क्या अभिप्राय है ? उनकी क्या विशेषताएँ थीं ?
अथवा
‘होमो एरेक्टस’ मानव के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
उन मानवों को जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे होमो एरेक्टस कहा जाता था। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। होमो एरेक्टस के प्राचीनतम जीवाश्म 18 लाख वर्ष पूर्व के हैं। ये जीवाश्म हमें अफ्रीका एवं एशिया दोनों महाद्वीपों से प्राप्त हुए हैं। होमो एरेक्टस का मस्तिष्क होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक बड़ा था। अत: वे अधिक समझदार थे।

उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औज़ारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। आग के संबंध में हमें प्रथम साक्ष्य केन्या के चेसोवांजा से प्राप्त हुआ है। निस्संदेह होमो एरेक्टस मानव विकास की कड़ी में एक मील पत्थर सिद्ध हुए।

प्रश्न 8.
प्रतिस्थापन मॉडल एवं क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1) प्रतिस्थापन मॉडल-आधुनिक मानव के उद्भव के बारे में कुछ विद्वान् प्रतिस्थापन मॉडल का समर्थन करते हैं। उनके अनुसार आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक एवं जननिक समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे विभिन्न स्थानों में गए।

2) क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल-दूसरी ओर कुछ अन्य विद्वान् क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल का समर्थन करते हैं। उनके विचारानुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ। इस अंतर को स्पष्टतः आज भी देखा जा सकता है।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 6

प्रश्न 9.
होमो सैपियंस मानव की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष पूर्व से 1.60 लाख वर्ष पूर्व के दौरान हुआ। आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। इस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था। अतः वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था।

वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी। इससे उसे भोजन की तलाश में भटकना नहीं पड़ा। उसने अब खाना पकाने की विधि की जानकारी प्राप्त कर ली थी। उसके हथियार बहुत उत्तम थे। उसने अनेक नए हथियारों का निर्माण भी कर लिया था। इससे वह जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा अधिक अच्छे ढंग से कर सका। उसने सूई का आविष्कार कर लिया था। अतः उसने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे। एवं भाषा के क्षेत्रों में काफ़ी विकास कर लिया था।

प्रश्न 10.
आदि मानव के भोजन प्राप्त करने के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदिकालीन मानव निम्नलिखित तरीकों से अपना भोजन प्राप्त करते थे
1) संग्रहण-आदिकालीन मानव पूर्ण रूप से प्रकृति जीवी थे। उन्हें कृषि की जानकारी नहीं थी। वे पशुपालन भी नहीं करते थे। अत: आरंभ में आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वे पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे-बीज, गुठलियाँ, फल एवं कंदमूल एकत्र करते थे। संग्रहण के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। इस संबंध में हमें प्रत्यक्ष प्रमाण बहत कम मिले हैं। संग्रहण द्वारा भोजन जुटाने का मुख्य कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था। पुरुष मुख्य रूप से शिकार के लिए बाहर जाते थे।

2) अपमार्जन-आदिकालीन मानव अपमार्जन द्वारा अथवा रसदखोरी द्वारा भी अपना भोजन प्राप्त करता था। अपमार्जन से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। रसदखोरी से अभिप्राय भोजन की तलाश करना है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस एवं मज्जा प्राप्त करते थे।

3) शिकार-शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करना आदिकालीन मानव का महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। शिकार मुख्यतः पुरुषों द्वारा किया जाता था। वे शिकार का पीछा करते हुए अपने निवास स्थान से काफ़ी दूर तक निकल जाते थे। वे छोटे-मोटे पशुओं का शिकार स्वयं कर लेते थे। वे बड़े पशुओं का शिकार सम्मिलित रूप से करते थे। इसका कारण यह था कि बड़े पशुओं का अकेले शिकार करने में उनके स्वयं के मारे जाने का खतरा अधिक रहता था।

वे जंगली घोड़ों, जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन कहा जाता था, गैंडों, रीछों एवं विशालकाय जानवरों जिन्हें मैमथ कहा जाता था, का शिकार करते थे। वे शिकार के लिए भालों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे। बाद में कुत्तों ने आदिमानव को शिकार के लिए बहुमूल्य योगदान दिया।

4) मछली पकड़ना-मछली पकड़ना भी आदिकालीन मानव का भोजन प्राप्त करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि थी। वे नदियों एवं तालाबों से हाथ द्वारा ही मछली पकड़ लिया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छोटी मछली पकड़ने के लिए काँटे का एवं बड़ी मछली पकड़ने के लिए हार्पून का प्रयोग भी करते थे।

प्रश्न 11.
संग्रहण और अपमार्जन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1) संग्रहण-आदिकालीन मानव पूर्ण रूप से प्रकृति जीवी थे। उन्हें कृषि की जानकरी नहीं थी। इसके अतिरिक्त वे पशुपालन भी नहीं करते थे। अतः आरंभ में आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वे पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे-बीज, गुठलियाँ, फल एवं कंदमूल एकत्र करते थे। संग्रहण के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

इस संबंध में हमें प्रत्यक्ष प्रमाण बहुत कम मिले हैं। इसका कारण यह है कि हमें हड्डियों के जीवाश्म तो काफ़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं जबकि पौधों के जीवाश्म बहुत कम प्राप्त हुए हैं। संग्रहण द्वारा भोजन जुटाने का मुख्य कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था। पुरुष मुख्य रूप से शिकार के लिए बाहर जाते थे।

2) अपमार्जन-आदिकालीन मानव अपमार्जन द्वारा अथवा रसदखोरी द्वारा भी अपना भोजन प्राप्त करता था। अपमार्जन से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। रसदखोरी से अभिप्राय भोजन की तलाश करना है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस एवं मज्जा प्राप्त करते थे। इनके अतिरिक्त वे छोटे-छोटे पक्षियों एवं उनके अंडों, गों चूहों एवं अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़ों को खाते थे।

प्रश्न 12.
आदिमानव शिकार द्वारा भोजन किस प्रकार प्राप्त करता था ?
उत्तर:
शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करना आदिकालीन मानव का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। शिकार प्रमुख तौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता था। वे शिकार का पीछा करते हुए अपने निवास स्थान से काफ़ी दूर तक निकल जाते थे। वे छोटे-मोटे पशुओं का शिकार स्वयं कर लेते थे। वे बड़े पशुओं का शिकार सम्मिलित रूप से करते थे।

इसका कारण यह था कि बड़े पशुओं का अकेले शिकार करने में उनके स्वयं के मारे जाने की संभावना अधिक रहती थी। वे जंगली घोड़ों, जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन कहा जाता था, गैंडों, रीछों एवं विशालकाय जानवरों जिन्हें मैमथ कहा जाता था, का शिकार करते थे। वे शिकार के लिए भालों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे। बाद में आदिमानव ने शिकार के लिए कुत्तों का सहयोग लेना आरंभ कर दिया था।

योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों का। उनका वध करने की सबसे परानी उदाहरण हमें दो स्थलों से मिलती है। प्रथम उदाहरण 5 लाख वर्ष पर्व की है। यह दक्षिणी इंग्लैंड में बॉक्सग्रोव से संबंधित है। दूसरी उदाहरण 4 लाख वर्ष पूर्व की है। यह जर्मनी में शोनिंजन से संबंधित है।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 13.
अग्नि का आविष्कार किस प्रकार आदिमानव के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हुआ ?
उत्तर:
अग्नि का आविष्कार आदिमानव के जीवन में क्रांतिकारी प्रमाणित हुआ। इसका आविष्कार कब हुआ इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसके प्रथम साक्ष्य हमें केन्या में चेसोवांजा एवं दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रांस से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से पत्थर के औजारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी और जली हुई हड्डियों के अंश प्राप्त हुए हैं। ये 14 लाख वर्ष पूर्व के हैं। इन वस्तुओं को किस प्रकार आग लगी, इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। अग्नि का आविष्कार मानव के लिए अनेक पक्षों से बहुमूल्य प्रमाणित हुआ।

प्रथम, आग से जंगली जावरों को डर लगता था। अत: आदिमानव अग्नि से गुफ़ाओं को प्रज्वलित रखने लगा। इस कारण उसे जंगली जानवरों, से सुरक्षा प्राप्त हुई। दूसरा, अग्नि की सहायता से आदिमानव के लिए भयंकर शीत से बचाव सुगम हो गया। तीसरा, इस कारण गुफ़ाओं के अंदर जहाँ अंधेरा रहता था प्रकाश करना संभव हुआ। चौथा, अग्नि की सहायता से भोजन को पकाना संभव हुआ। यह कच्चे भोजन की अपेक्षा अधिक स्वाद होता था।

प्रश्न 14.
आदिमानव के औज़ारों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
आदिमानव के औजार पत्थर से निर्मित थे। संभवतः वे लकड़ी के औजार भी बनाते थे। किंतु लकड़ी के औज़ार समय के साथ नष्ट हो गए। पत्थर के बने औज़ारों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है। प्रथम श्रेणी में आने वाले औज़ारों को हस्त कुठार कहा जाता है। हस्त कुठारों को मुट्ठी में पकड़ा जाता था। ये अनेक प्रकार के होते थे। इनका प्रयोग किसी वस्तु को काटने अथवा किसी वस्तु को कुचलने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के औज़ार हमें बड़ी संख्या में तंजानिया के ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

दूसरी श्रेणी में गंडासे सम्मिलित थे। उन्हें भारी पत्थरों से तैयार किया जाता था। इसमें शल्कों को निकाल कर धारदार बनाया जाता था। इनका प्रयोग संभवतः माँस काटने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के हथियार हमें बड़ी संख्या में एशिया, अफ्रीका एवं यूरोप के अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। तीसरी श्रेणी में शल्क औज़ार सम्मिलित थे। ये हस्त कुठारों एवं गंडासों की अपेक्षा छोटे एवं पतले होते थे। इनके किनारे अधिक पैने होते थे। ये औज़ार अधिक उपयोगी तथा दूर तक प्रहार करने में सक्षम होते थे।

प्रश्न 15.
मानव ने बोलना कैसे सीखा ?
अथवा
भाषा का विकास किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
भाषा का विकास किस प्रकार हुआ इस संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।

  • होमिनिड भाषा में हाव-भाव अथवा हाथों का संचालन सम्मिलित था।
  • उच्चरित भाषा से पूर्व गुनगुनाने का प्रचलन हुआ।
  • मानव भाषा का आरंभ संभवत: बुलावों की क्रिया से हुआ था जैसा कि अन्य प्राइमेटों द्वारा किया जाता था। समय के साथ-साथ इन ध्वनियों ने भाषा का रूप धारण कर लिया।

बोलने वाली भाषा का आरंभ कब हुआ इस संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार भाषा का सबसे पहले विकास 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार इसका विकास 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ था जब स्वरतंत्र का विकास हुआ था। इसका संबंध विशेष तौर पर आधुनिक मानव से है। कुछ अन्य विद्वानों के विचारानुसार भाषा का विकास 40,000 से 35,000 वर्ष पूर्व तब हुआ जब कला का विकास आरंभ हुआ। इसका कारण यह है कि ये दोनों ही विचार अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। भाषा के प्रयोग से शिकार करने में तथा आश्रय बनाने में अनेक लाभ हुए।।

प्रश्न 16.
भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी मदद मिली होगी ? उस पर चर्चा करिए।
उत्तर:
1) शिकार करने में-भाषा का प्रयोग शिकार करने में निम्नलिखित पक्षों से बहुमूल्य प्रमाणित हुआ

  • लोग शिकार करने की योजना बना सकते थे।
  • वे जानवरों के क्षेत्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे जानवरों की प्रकृति पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे शिकार के लिए आवश्यक औज़ारों पर विचार कर सकते थे।
  • वे मारे गए जानवरों के उपयोग के संबंध में चर्चा कर सकते थे।

2) आश्रय बनाने में-भाषा का प्रयोग आश्रय बनाने में निम्नलिखित पक्षों से बहुमूल्य प्रमाणित हुआ

  • लोग आश्रय बनाने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों पर चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के लिए उपलब्ध सामग्री की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के तरीकों के संबंध में चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल के निकट उपलब्ध सुविधाओं पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल को जंगली जानवरों एवं भयंकर तूफ़ानों से सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में सोच सकते थे।

प्रश्न 17.
हादज़ा जन समूह के विषय में आपके क्या जानते हो ?
उत्तर:
हादज़ा एक लघु समूह है जो एक खारे पानी की झील ‘लेक इयासी’ के आस-पास रहते हैं। वे शिकारी तथा खाद्य संग्राहक हैं। हादज़ा लोग केवल हाथी को छोड़ कर अन्य सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं .एवं उनका माँस खाते हैं। यहाँ यह बात स्मरण रखने योग्य है कि हादज़ा लोग विश्व में सबसे अधिक माँस खाते हैं।

इसके बावजूद वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि शिकार को भविष्य में कोई ख़तरा न हो। वर्षा ऋतु में संपूर्ण देश में जल स्रोतों की कोई कमी नहीं रहती। ये बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। किंतु सूखे के मौसम में इनमें से अधिकाँश सूख जाते हैं। इसलिए वे प्रायः अपने शिविर जल स्रोतों से एक किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थापित नहीं करते हैं। हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपना दावा नहीं करते।

कोई भी व्यक्ति जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है। वह वहाँ से कंदमूल, फल एवं शहद एकत्र कर सकता है तथा पानी ले सकता है। वास्तव में इस संबंध में हादज़ा प्रदेश में कोई प्रतिबंध नहीं है। यद्यपि हादज़ा प्रदेश में बड़ी मात्रा में जानवर शिकार के लिए उपलब्ध हैं फिर भी हादज़ा लोग अपने भोजन का 80 प्रतिशत जंगली साग-सब्जियों से प्राप्त करते हैं। वे अपने भोजन का शेष 20 प्रतिशत माँस एवं शहद से प्राप्त करते हैं।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवाश्म से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
जीवाश्म से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जीवाश्म अत्यंत प्राचीन पौधे, जानवर अथवा मानव के वे अवशेष होते हैं जो अब पत्थर का रूप धारण करके किसी चट्टान में समा गए हैं। ये लाखों वर्ष तक सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रजाति अथवा स्पीशीज़ से आपका क्या भाव है ?
उत्तर:
प्रजाति अथवा स्पीशीज़ जीवों का एक ऐसा समूह होता है जिसके नर एवं मादा मिल कर संतान उत्पन्न कर सकते हैं। किसी एक प्रजाति के जीव किसी दूसरी प्रजाति के जीव के साथ संभोग करके संतान उत्पन्न नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
चार्ल्स डार्विन कौन था ? उसने कौन-सा सिद्धांत पेश किया ?
अथवा
चार्ल्स डार्विन क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
चार्ल्स डार्विन (1809-1882 ई०) ब्रिटेन का एक प्रसिद्ध विद्वान् था। उसने 1859 ई० में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक जिसका नाम ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़’ प्रकाशित की। इसमें उसने मानव उत्पत्ति के संबंध में विस्तृत प्रकाश डाला है।

प्रश्न 4.
मानव विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मानव विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 5.
प्राइमेट से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
प्राइमेट स्तनधारियों के विशाल समूह में एक छोटा समूह है। इस उपसमूह में बंदर, पूंछहीन बंदर एवं मानव सम्मिलित हैं। प्राइमेट 360 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए।

प्रश्न 6.
प्राइमेट की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके शरीर पर बाल होते थे।
  • इनका गर्भकाल अपेक्षाकृत लंबा होता था।

प्रश्न 7.
होमिनॉइड कब अस्तित्व में आए ? उनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
होमिनॉइड कौन थे ?
उत्तर:

  • होमिनॉइड 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए।
  • इनका मस्तिष्क छोटा होता था।
  • होमिनॉइड सीधे खड़े होकर नहीं चल सकते थे।

प्रश्न 8.
होमिनॉइड एवं बंदरों में कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर:

  • होमिनॉइड का शरीर बंदरों से बड़ा होता था।
  • उनकी पूँछ नहीं होती थी।

प्रश्न 9.
होमिनिड की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
  • वे सीधे खड़े हो सकते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 10.
होमिनिड तथा होमिनॉइड के मध्य कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर:

  • होमिनिड सीधे खड़े होकर चल सकते थे। होमिनॉइड ऐसा नहीं कर सकते थे।
  • होमिनिड का मस्तिष्क होमिनॉइड की अपेक्षा बड़ा था।

प्रश्न 11.
आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म किसने, कब तथा कहाँ से प्राप्त किए ?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म मेरी एवं लुईस लीकी ने, 17 जुलाई, 1959 ई० को ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त किए।

प्रश्न 12.
आस्ट्रेलोपिथिकस की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके जबड़े अधिक भारी थे।
  • इनके दाँत बहुत बड़े थे।

प्रश्न 13.
आस्ट्रेलोपिथिकस एवं होमो में कोई दो अंतर लिखें।
उत्तर:

  • आस्ट्रेलोपिथिकस का मस्तिष्क होमो की तुलना में छोटा था।
  • आस्ट्रेलोपिथिकस के जबड़े होमो की तुलना में भारी थे।

प्रश्न 14.
‘होमो’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? ‘होमो’ की तीन प्रजातियाँ बताएँ।।
उत्तर:
होमो लातीनी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है आदमी। वे 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। वैज्ञानिकों ने उन्हें उनकी विशेषताओं के आधार पर तीन प्रजातियों-होमो हैबिलिस, होमो एरेक्टस तथा होमो सैपियंस में बाँटा है।

प्रश्न 15.
होमो की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • होमो का मस्तिष्क बड़ा था।
  • उनके जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे।

प्रश्न 16.
होमो हैबिलिस कौन थे ?
उत्तर:
होमो हैबिलिस औजार बनाने वाले थे। वे 22 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे हाथों का दक्षतापूर्वक प्रयोग कर सकते थे। उन्होंने भाषा का प्रयोग आरंभ किया। उनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें इथियोपिया में ओमो तथा तंज़ानिया में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 17.
होमो एरेक्टस से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे। उनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें अफ्रीका एवं एशिया से प्राप्त हुए हैं। वे बहुत समझदार थे। उन्होंने भाषा का अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने अग्नि के संबंध में जानकारी प्राप्त कर ली थी।

प्रश्न 18.
होमो सैपियंस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव 1.95 से 1.60 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। इस मानव के प्राचीनतम जीवाश्म हमें अफ्रीका से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 19.
आधुनिक मानव की कोई दो सफलताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उसने कृषि आरंभ कर दी थी।
  • उसने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे।

प्रश्न 20.
प्रतिस्थापन मॉडल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्रतिस्थापन मॉडल इस बात का समर्थन करता है कि आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका अपने पक्ष में वे तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक एवं जननिक समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उसके पूर्वज एक ही क्षेत्र भाव अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे अन्य स्थानों को गए।

प्रश्न 21.
क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल इस बात का समर्थन करता है कि आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। अपने पक्ष में तर्क देते हुए उनका कथन है कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ।

प्रश्न 22.
हाइडलबर्ग मानव की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उसका मस्तिष्क काफी बड़ा था।
  • उसके अंग एवं हाथ काफी भारी थे।

प्रश्न 23.
निअंडरथल मानव की कोई दो विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • यह मानव कद में छोटा था।
  • उसका सिर काफी बड़ा था।

प्रश्न 24.
क्रोमैगनन मानव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रोमैगनन मानव के जीवाश्म हमें फ्राँस से प्राप्त हुए हैं। यह मानव आज से 35 हज़ार वर्ष पहले रहा करता था। वह काफी लंबा होता था। उसका चेहरा काफी चौड़ा होता था। वह आधुनिक मानव से काफी मिलता जुलता था।

प्रश्न 25.
जावा मानव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जावा मानव के जीवाश्म 1894 ई० में डॉक्टर यूजन दुबोरस ने जावा से प्राप्त किए थे। यह मानव लगभग 5 लाख वर्ष पहले रहा करता था। इसका मस्तिष्क आधुनिक मानव से छोटा था। वह खड़ा होकर चलता था।

प्रश्न 26.
आदिकालीन मानव किन-किन तरीकों से अपना भोजन प्राप्त करता था ?
उत्तर:
आदिकालीन मानव संग्रहण द्वारा, अपमार्जन द्वारा, शिकार करके एवं मछलियाँ पकड़ कर अपना भोजन प्राप्त करता था।

प्रश्न 27.
अपमार्जन और संग्रहण से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
संग्रहण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1) अपमार्जन-अपमार्जन से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफ़ाई करने से है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस एवं मज्जा प्राप्त करते थे।

2) संग्रहण-संग्रहण से अभिप्राय है जुटाना। आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वह पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों को एकत्र करता था। यह कार्य मुख्य तौर पर स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 28.
खाद्य संग्राहक और खाद्य उत्पादक शब्दों का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:

  • खाद्य संग्राहक-इससे अभिप्राय उस मानव से था जो जंगली पौधे खाकर एवं शिकार करके अपना गुजारा करता था।
  • खाद्य उत्पादक-इससे अभिप्राय उस मानव से था जो खेती करता था एवं पशु पालता था।

प्रश्न 29.
योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों के शिकार करने की सबसे प्रथम उदाहरण कब और कहाँ से प्राप्त हुई है ?
उत्तर:
योजनाबद्ध ढंग से शिकार करने की सबसे प्रथम उदाहरण 5 लाख वर्ष पूर्व इंग्लैंड में बॉक्सग्रोव से प्राप्त हुई है।

प्रश्न 30.
दोलनी वेस्तोनाइस कहाँ स्थित है ? यह क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • दोलनी वेस्तोनाइस चेक गणराज्य में स्थित है।
  • यह शिकार के स्थल के लिए प्रसिद्ध था।

प्रश्न 31.
आदिमानव के गुफ़ाओं में निवास के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:

  • इससे जंगली जानवरों से आदिमानव को सुरक्षा प्राप्त हुई।
  • इससे आदिमानव भयंकर शीत का सामना सुगमता से कर सका।

प्रश्न 32.
लेज़रेट गुफ़ा कहाँ स्थित है ? इसका आकार क्या है ?
उत्तर:

  • लेज़रेट गुफा दक्षिण फ्रांस में स्थित है।
  • इसका आकार 12×4 मीटर है।

प्रश्न 33. टेरा अमाटा कहाँ स्थित है ? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • टेरा अमाटा दक्षिण फ्राँस में स्थित है।
  • इसकी छत घास-फस एवं लकडी से बनायी गयी थी।
  • इस झोंपड़ी को सहारा देने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया था।

प्रश्न 34.
चेसोवांजा कहाँ स्थित है ? वहाँ से हमें किस बात का प्रमाण मिला है ?
उत्तर:

  • चेसोवांजा केन्या में स्थित है।
  • वहाँ से हमें पत्थर के औज़ारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी एवं जली हुई हड्डियों के प्रमाण मिले हैं।

प्रश्न 35.
आग की खोज ने आदिमानव के जीवन को कैसे प्रभावित किया ?
अथवा
आग की खोज का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • अग्नि के कारण आदिमानव अपने भोजन को पका सका।
  • अग्नि के कारण आदिमानव भयंकर शीत से अपना बचाव कर सका।
  • अग्नि के कारण आदिमानव जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा कर सका।

प्रश्न 36.
पहिए की खोज का महत्त्व लिखिए।
अथवा
पहिए के आविष्कार ने मानव जीवन में कौन-कौन से परिवर्तन लाए ?
उत्तर:

  • चाक की सहायता से अब पहले की अपेक्षा कहीं सुंदर बर्तन बनाए जाने लगे।
  • चरखे के कारण अब कपास कातना सरल हो गया।
  • पहिए का उपयोग गाड़ी खींचने के लिए भी किया जाने लगा। इससे मनुष्य एवं सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना सुगम हो गया।

प्रश्न 37.
आदिमानव के प्राचीन औज़ार किस वस्तु के बने थे ? किन्हीं दो प्रकार के औज़ारों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • आदिमानव के प्राचीन औज़ार पत्थर के बने थे।
  • उस समय हस्त कुठारों एवं गंडासों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 38.
मानव ने बोलना कैसे सीखा?
उत्तर:
मानव ने भाषा के विकास के साथ-साथ बोलना सीखा। इसका आरंभ बोलने वाली क्रिया से हुआ। बाद में इसने ध्वनियों का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 39.
भाषा का विकास शिकार करने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुआ ?
उत्तर:

  • इस कारण लोग शिकार संबंधी योजना बना सके।
  • इस कारण वे शिकार के लिए आवश्यक औज़ारों पर विचार कर सके।
  • इस कारण वे मारे गए जानवरों के उपयोग के संबंध में चर्चा कर सके।

प्रश्न 40.
भाषा का विकास किस प्रकार आश्रय बनाने में सहायक सिद्ध हुआ ?
उत्तर

  • इस कारण लोग आश्रय बनाने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों की चर्चा कर सके।
  • वे आश्रय बनाने के लिए आवश्यक सामग्री पर चर्चा कर सके।
  • वे आश्रय स्थल की जंगली जानवरों से सुरक्षा के बारे में विचार कर सके।

प्रश्न 41.
आल्टामीरा गुफ़ा कहाँ स्थित है ? इसकी खोज किसने तथा कब की ? यह क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:

  • आल्टामीरा गुफ़ा स्पेन में स्थित है।
  • इसकी खोज मार्सिलोना सैंज दि सउतुओला एवं उसकी पुत्री मारिया ने की।
  • यह चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 42.
आल्टामीरा एवं चाउवेट गुफ़ाओं से हमें किन जानवरों के चित्र प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर:
आल्टामीरा एवं चाउवेट गुफ़ाओं से हमें बड़ी संख्या में जंगली भैंसों, बैलों, घोड़ों, पहाड़ी बकरों, हिरणों, मैमथों, गैंडों, शेरों, भालुओं, चीतों, लकड़बग्घों एवं उल्लुओं के चित्र प्राप्त हुए हैं।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 43.
मानव विज्ञान से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मानव विज्ञान से अभिप्राय एक ऐसे विज्ञान से है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 44.
हादज़ा जनसमूह के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:

  • हादजा एक लघु समूह है जो लेक इयासी के आस-पास के क्षेत्रों में रहते हैं।
  • वे शिकारी एवं खाद्य-संग्राहक थे।
  • वे भूमि एवं उसके संसाधनों पर कभी अधिकार नहीं जमाते।

प्रश्न 45.
हादज़ा जनसमूह के भोजन के बारे में बताएँ।
उत्तर:

  • उनका 80% भोजन जंगली साग-सब्जियाँ हैं।
  • उनका 20% भोजन माँस एवं शहद द्वारा पूरा किया जाता है।
  • वे हाथी को छोड़कर अन्य सभी जानवरों का माँस खाते हैं।

प्रश्न 46.
हादज़ा लोग ज़मीन एवं उसके संसाधनों पर अपना दावा क्यों नहीं करते ?
उत्तर:

  • वे जहाँ चाहें वहाँ रह सकते हैं।
  • उन्हें कहीं भी पशुओं का शिकार करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
  • वे कहीं से भी कंदमूल एवं शहद एकत्र कर सकते हैं।

प्रश्न 47.
हादज़ा लोगों के पास सूखा पड़ने पर भी भोजन की कमी क्यों नहीं होती ?
उत्तर:
हादज़ा लोगों के पास सूखे के मौसम में भी कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसलिए उनके पास भोजन की कमी नहीं होती।

प्रश्न 48.
हादज़ा लोगों के शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन क्यों होता रहता है?
उत्तर:
नमी के मौसम में हादज़ा लोगों के शिविर आमतौर पर छोटे एवं दूर-दूर तक फैले होते हैं किंतु सूखे के मौसम में जब पानी की कमी होती है तो उनके शिविर पानी के स्रोतों के आसपास एवं घने बसे होते हैं।

प्रश्न 49.
आज के शिकारी समाजों में पाई जाने वाली कोई दो भिन्नताएँ बताओ।
उत्तर:

  • आज के शिकारी समाज शिकार एवं संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं।
  • उनके आकार भी छोटे-बड़े होते हैं।

प्रश्न 50.
इनमें से कौन-सी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं : (क) संग्रह ) औज़ार बनाना, (ग) आग का प्रयोग।
उत्तर:
इन बनाने के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं।

प्रश्न 51.
ट से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
फ़ट से अभिप्राय उर्वर अर्धचंद्राकार क्षेत्र से है। यह क्षेत्र मध्य सागर तट से लेकर ईरान में जागरोस पर्वतमालागीक फला हुआ था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक मानव लगभग वर्ष पूर्व पैदा हुए थे ?
उत्तर:
1,60,000.

प्रश्न 2.
‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़’ नामक पुस्तक की रचना किसके द्वारा की गई थी ?
उत्तर:
चार्ल्स डार्विन।

प्रश्न 3.
चार्ल्स डार्विन द्वारा अपनी पुस्तक ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़’ की रचना कब की गई थी?
उत्तर:
1859 ई०।

प्रश्न 4.
प्राइमेट स्तनपायी कब अस्तित्व में आए ?
उत्तर:
360 से 240 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 5.
लेतोली कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
तंजानिया में।

प्रश्न 6.
पूर्वी अफ्रीका में आस्ट्रेलोपिथिकस वंश कब पाया गया था ?
उत्तर:
लगभग 56 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 7.
होमिनॉइड समूह कितने वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था ?
उत्तर:
240 लाख।

प्रश्न 8.
होमिनिड कितने वर्ष पूर्व होमिनॉइड से विकसित हुए थे ?
उत्तर:
56 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 9.
‘होमो’ शब्द किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर:
लातिनी।

प्रश्न 10.
लातिनी भाषा के शब्द ‘होमो’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आदमी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 11.
ओल्डुवई गोर्ज की खोज कब हुई ?
उत्तर:
1959 ई० में।

प्रश्न 12.
औज़ार बनाने वाले क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
होमो हैबिलिस।

प्रश्न 13.
वे कौन-से मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे ?
उत्तर:
होमो एरेक्टस।

प्रश्न 14.
आग के संबंध में हमें प्रथम साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुआ है ?
उत्तर:
चेसोवांजा से।

प्रश्न 15.
आधुनिक मानव की खोज कब की गई थी ?
उत्तर:
1.95 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 16.
आधुनिक मानव सर्वप्रथम कहाँ पाए गए थे ?
उत्तर:
आस्ट्रेलिया।

प्रश्न 17.
आधुनिक मानव किन वस्तुओं से औजारों का निर्माण करते थे ?
उत्तर:
पत्थरों व हड्डियों से।

प्रश्न 18.
दार-एस-सोल्तन कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
मोरक्को में।

प्रश्न 19.
जर्मनी के किस नगर से हमें योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों के शिकार एवं उनके वध का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।
उत्तर:
शोनिंजन से।

प्रश्न 20.
दक्षिणी फ्राँस में स्थित टेरा अमाटा क्या है ?
उत्तर:
एक प्रसिद्ध झोंपड़ी।

प्रश्न 21.
स्वार्टक्रान्स कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में।

प्रश्न 22.
सिलाई वाली सूई का आविष्कार कब हुआ ?
उत्तर:
21,000 वर्ष पूर्व।

प्रश्न 23.
स्पेन का कौन-सा स्थान आदिमानव की चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
आल्टामीरा।

प्रश्न 24.
हादज़ा जनसमूह के बारे में किस विद्वान् ने प्रकाश डाला ?
उत्तर:
जेम्स वुडबर्न ने।

प्रश्न 25.
वर्तमान समय के दो शिकारी संग्राहक समाज कौन-से हैं ?
उत्तर:
हादज़ा एवं कुंग सैन।

प्रश्न 26.
आधुनिक मानव कब अस्तित्व में आया था ?
उत्तर:
1.95 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 27.
आदिकालीन मानव किन ढंगों से अपना भोजन एकत्रित करते थे ?
उत्तर:
संग्रहण तथा अपमार्जन।

प्रश्न 28.
होमिनिडों द्वारा संचार के लिए प्रयोग की जाने वाले अंगविक्षेप पद्धति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
हाव-भाव अथवा हाथों को हिला कर अपनी बात समझाना।।

प्रश्न 29.
अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में रहने वाले शिकारी संग्राहक का नाम क्या था ?
उत्तर:
कुंग सैन।

प्रश्न 30.
मानव विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
इसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 31.
संजातिवृत क्या होता है ?
उत्तर:
इसमें नृजातीय समूहों का विश्लेषण किया जाता है।

प्रश्न 32.
शिकारियों व संग्राहकों के जनसमूह को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
हादजा जनसमूह।

प्रश्न 33.
पूर्ण मानव कहाँ निवास करते थे ?
उत्तर:
गुफ़ाओं व कच्ची झोपड़ियों में।

रिक्त स्थान भरिए

1. आधुनिक मानव लगभग …………….. वर्ष पूर्व पैदा हुए थे।
उत्तर:
1,60,000

2. ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़’ नामक पुस्तक की रचना …………….. ने की थी।
उत्तर:
चार्ल्स डार्विन

3. 240 लाख वर्ष पूर्व ‘प्राइमेट’ श्रेणी में एक उपसमूह उत्पन्न हुआ जिसे …………….. कहते हैं।
उत्तर:
होमिनॉइड

4. होमिनिड प्राणियों का साक्ष्य …………….. लाख वर्ष पूर्व प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
56

5. होमिनिड जीवाश्म …………….. वंश से संबंधित है।
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस

6. सर्वप्रथम होमिनिड जीवाश्म …………….. से पाए गए थे।
उत्तर:
पूर्वी अफ्रीका

7. ओल्डुवई गोर्ज की खोज …………….. में हुई थी।
उत्तर:
17 जुलाई, 1959 ई०

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

8. लातिनी भाषा के शब्द ‘होमो’ का अर्थ है ……………. ।
उत्तर:
आदमी

9. जर्मनी के शहर हाइडलवर्ग में पाए गए जीवाश्मों को ……….. कहा गया है।
उत्तर:
होमोहाइडल बर्गेसिस

10. होमो निअंडरथलैंसिस जीवाश्म …………….. से प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
निअंडर घाटी

11. एशिया व यूरोप से प्राप्त जीवाश्मों को ……………. कहा जाता था।
उत्तर:
हाइडवर्ग मानव

12. आधुनिक मानव की खोज …………….. में हुई थी।
उत्तर:
1.95 लाख वर्ष पूर्व

13. आधुनिक मानव सर्वप्रथम …………….. में पाए गए थे।
उत्तर:
आस्ट्रेलिया

14. …………….. तथा …………….. आदिकालीन मानवों के भोजन एकत्रित करने के मुख्य साधन थे।
उत्तर:
संग्रहण, शिकार

15. …………….. से तात्पर्य त्यागी हुई वस्तुओं की सफ़ाई करने से है।
उत्तर:
अपमार्जन

16. ……………. से अभिप्राय भोजन की तलाश करने से है।
उत्तर:
रसदखोरी

17. पूर्व मानव द्वारा …………. नामक स्थान को शिकार के लिए चुना गया था।
उत्तर:
दोलनी वेस्तोनाइस

18. मानव निर्मित वस्तुओं को ……………. कहा जाता था।
उत्तर:
शिल्पकृतियाँ

19. पूर्व मानव द्वारा …………….. तथा …………….. वस्तुओं का निर्माण किया गया।
उत्तर:
औज़ार, चित्रकारियाँ

20. पूर्व मानव …………….. तथा …………….. में निवास करते थे।
उत्तर:
गुफ़ाओं, कच्ची झोपड़ियों

21. पूर्व मानव ने औज़ारों का निर्माण …………….. के लिए किया।
उत्तर:
शिकार

22. पूर्व मानव …………….. तथा …………….. से औज़ारों का निर्माण करते थे।
उत्तर:
हड्डियों, सींगों

23. पूर्व मानव द्वारा औज़ार बनाने व प्रयोग किए जाने का सबसे प्राचीन साक्ष्य ……………. तथा से प्राप्त हुआ है।
उत्तर:
इथियोपिया, केन्या

24. ह्यूमेनिटिज शब्द लातीनी शब्द …………… से बना है।
उत्तर:
ह्यूमिनिटास

25. होमिनिड …………….. विधि द्वारा आपस में संप्रेषण व संचार करते थे।
उत्तर:
अंगविक्षेप

26. होमिनिडों द्वारा संचार के लिए प्रयोग की जाने वाली अंगविक्षेप विधि से अभिप्राय ……………. से था।
उत्तर:
हाथों को हिला कर बात करने

27. भाषा का विकास …………….. वर्ष पूर्व आरंभ हुआ।
उत्तर:
20

28. स्पेन में पूर्व मानव द्वारा निर्मित चित्र ……………. गुफ़ा से प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
आल्टामीरा

29. फ्रांस में पूर्व मानव द्वारा निर्मित चित्र …………….. तथा …………….. की गुफ़ाओं से प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
लैसकॉक्स, शोवे

30. अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में रहने वाले शिकारी संग्राहक का नाम …………….. था।
उत्तर:
कुंग सैन

31. मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के बारे में जानने वाले विषय को ………… कहा जाता है।
उत्तर:
मानव विज्ञान

32. ‘शिकारियों व संग्राहकों के जन समूह को …………… कहा जाता था।
उत्तर:
हादज़ा जनसमूह

33. …………. में समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है।
उत्तर:
संजातिवृत

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक मानव कब अस्तित्व में आए?
(क) 2.95 से 1.60 लाख वर्ष पहले
(ख) 1.95 से 1.60 लाख वर्ष पहले
(ग) 2.95 से 1.95 लाख वर्ष पहल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) 1.95 से 1.60 लाख वर्ष पहले

2. जीवाश्म से आपका क्या अभिप्राय है?
(क) बहुत पुराने पौधों, पशुओं एवं जानवरों के अवशेष जो पत्थर का रूप धारण करके चट्टानों में समा जाते हैं
(ख) जीवों का एक समूह जिसके नर तथा मादा मिल कर बच्चे उत्पन्न कर सकते हैं
(ग) आस्ट्रेलोपिथिकस का प्रारंभिक रूप
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) बहुत पुराने पौधों, पशुओं एवं जानवरों के अवशेष जो पत्थर का रूप धारण करके चट्टानों में समा जाते हैं

3. ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ का लेखक कौन है?
(क) न्यूटन
(ख) आइंसटीन
(ग) गैलिलियो
(घ) चार्ल्स डार्विन।
उत्तर:
(घ) चार्ल्स डार्विन।

4. प्राइमेट कौन थे?
(क) स्तनपायी प्राणियों का समूह
(ख) एशिया के निवासी
(ग) अफ्रीका के निवासी
(घ) आदिमानव।
उत्तर:
(क) स्तनपायी प्राणियों का समूह

5. होमिनॉइड कब अस्तित्व में आए?
(क) 360 लाख वर्ष पहले
(ख) 240 लाख वर्ष पहले
(ग) 56 लाख वर्ष पहले
(घ) 160 लाख वर्ष पहले।
उत्तर:
(ख) 240 लाख वर्ष पहले

6. होमिनिडों का उद्भव कहाँ हुआ?
(क) एशिया में
(ख) अफ्रीका में
(ग) यूरोप में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका में

7. होमिनिड समूह की प्रमुख विशेषता क्या है?
(क) मस्तिष्क का बड़ा आकार
(ख) हाथ की विशेष क्षमता
(ग) पैरों के बल सीधे खड़े होना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

8. आस्टूलोपिथिकस किन दो शब्दों के मेल से बना है ?
(क) लैटिन और अंग्रेज़ी
(ख) ग्रीक और संस्कृत
(ग) फ्रेंच और जर्मन
(घ) लैटिन और ग्रीक।
उत्तर:
(घ) लैटिन और ग्रीक।

9. आस्ट्रेलोपिथिकस कब विलुप्त हो गए?
(क) 360 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 240 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 25 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 13 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(घ) 13 लाख वर्ष पूर्व।

10. निम्नलिखित में से कौन-सी होमो की प्रजाति है?
(क) होमो हैबिलिस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) होमो सैपियंस
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

11. निम्नलिखित में से कौन विकसित औज़ार बनाने वाले थे?
(क) होमो सैपियंस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) होमो हैबिलिस
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) होमो हैबिलिस

12. ओल्डुवई गोर्ज कहाँ स्थित है?
(क) इथियोपिया में
(ख) तंजानिया में
(ग) केन्या में
(घ) सूडान में।
उत्तर:
(ख) तंजानिया में

13. होमो एरेक्टस कब अस्तित्व में आए?
(क) 25 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 20 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 18 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 10 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(ग) 18 लाख वर्ष पूर्व

14. होमीनिड के सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें किस स्थान से प्राप्त हुए हैं?
(क) पूर्वी अफ्रीका
(ख) दक्षिणी अफ्रीका
(ग) उत्तरी अफ्रीका
(घ) दक्षिणी एशिया।
उत्तर:
(क) पूर्वी अफ्रीका

15. हाइडलबर्ग मानव कब अस्तित्व में आए?
(क) 25 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 18 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 8 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 1 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(ग) 8 लाख वर्ष पूर्व

16. निअंडरथल मानव के जीवाश्म सर्वप्रथम कहाँ मिले हैं ?
(क) एशिया में
(ख) यूरोप में
(ग) अमरीका में
(घ) ऑस्ट्रेलिया में।
उत्तर:
(ख) यूरोप में

17. आधुनिक मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
(क) होमो सैपियंस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) नियंडरथल
(घ) होमो हैबिलिस।
उत्तर:
(क) होमो सैपियंस

18. प्रतिस्थापन सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का उद्भव कहाँ हुआ?
(क) एशिया में
(ख) अफ्रीका में
(ग) यूरोप में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका में

19. आदिकालीन मानव निम्नलिखित में से किस तरीके से अपना भोजन जुटाता था?
(क) संग्रहण
(ख) शिकार
(ग) अपमार्जन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

20. मानव ने शिकार करना कब आरंभ किया?
(क) 15 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 10 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 5 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 1 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(ग) 5 लाख वर्ष पूर्व

21. शोनिंजन कहाँ स्थित है?
(क) इंग्लैंड में
(ख) पूर्वी अफ्रीका में
(ग) फ्राँस में
(घ) जर्मनी में।
उत्तर:
(घ) जर्मनी में।

22. चेक गणराज्य के किस स्थान से हमें योजनाबद्ध तरीके से शिकार करने का साक्ष्य प्राप्त हुआ है?
(क) दोलनी वेस्तोनाइस
(ख) बॉक्सग्रोव
(ग) शोनिंजन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) दोलनी वेस्तोनाइस

23. लज़ारेट गुफ़ा कहाँ स्थित है?
(क) उत्तरी फ्रांस में
(ख) दक्षिणी फ्राँस में
(ग) पूर्वी अफ्रीका में
(घ) दक्षिणी अफ्रीका में।
उत्तर:
(ख) दक्षिणी फ्राँस में

24. आदिकालीन मानव के लिए आग का प्रमुख लाभ क्या था?
(क) वह आग द्वारा गुफ़ाओं के अंदर प्रकाश करता था
(ख) वह आग द्वारा जानवरों को डराने का काम लेता था
(ग) वह आग द्वारा भोजन को पकाता था
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

25. निम्न में से किसने सर्वप्रथम पत्थर के औज़ार बनाए?
(क) आस्ट्रेलोपिथिकस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) होमो हाइडलबर्गसिस
(घ) निअंडरथलैंसिस।
उत्तर:
(क) आस्ट्रेलोपिथिकस

26. सर्वप्रथम भाषा का उपयोग कब आरंभ हुआ?
(क) 35 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 30 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 25 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 20 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(घ) 20 लाख वर्ष पूर्व।

27. स्पेन की किस गुफ़ा से हमें चित्रकला के प्राचीन साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ?
(क) आल्टामीरा
(ख) बॉर्डर गुफ़ा
(ग) नियाह गुफ़ा
(घ) चाउवेट गुफ़ा।
उत्तर:
(क) आल्टामीरा

28. आल्टामीरा की खोज कब हुई ?
(क) 1869 ई० में
(ख) 1879 ई० में
(ग) 1885 ई० में
(घ) 1889 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1879 ई० में

29. हादज़ा जनसमूह कहाँ के रहने वाले हैं ?
(क) एशिया
(ख) अफ्रीका
(ग) यूरोप
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका

30. हादजा लोग निम्नलिखित में से किस जानवर का माँस नहीं खाते हैं ?
(क) हाथी
(ख) शेर
(ग) गैंडा
(घ) जिराफ़।
उत्तर:
(क) हाथी

31. हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपना दावा क्यों नहीं करते?
(क) वे जहाँ चाहें रह सकते हैं
(ख) वे कहीं भी पशुओं का शिकार कर सकते हैं
(ग) वे कहीं से भी कंदमूल एवं शहद इकट्ठा कर सकते हैं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

समय की शुरुआत से HBSE 11th Class History Notes

→ मानव प्राणियों की उत्पत्ति कब हुई, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। प्राइमेट स्तनपायी 360 से 240 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका एवं एशिया में अस्तित्व में आए। इस समूह में बंदर, पूँछहीन बंदर एवं मानव सम्मिलित थे। होमिनॉइड 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। यह प्राइमेट श्रेणी का एक उपसमूह है।

→ इसमें पूँछहीन बंदर सम्मिलित थे। इनमें सोचने की शक्ति कम थी एवं वे सीधे खड़े होकर चल नहीं सकते थे। 56 लाख वर्ष पूर्व होमिनिड समूह का विकास हुआ। इनके सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें अफ्रीका में लेतोली (तंजानिया) एवं हादार (इथियोपिया) से प्राप्त हुए हैं।

→ इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा था तथा वे सीधे खड़े होकर चल सकते थे। आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें 1959 ई० में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं। इनकी खोज मेरी एवं लुइस लीकी ने की थी। होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था एवं जबक भारी थे।

→ 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस लुप्त हो गए। होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। उन्हें उनकी विशेषताओं के आधार पर अनेक प्रजातियों में बाँटा जाता है। होमो हैबिलिस 22 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। इनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें ओमो एवं ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

→ वे औज़ार बनाने वाले के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने पत्थर के औज़ार बनाए। उन्होंने शिकार के लिए भाषा का प्रयोग आरंभ किया। होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर चलना जानते थे। वे 18 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। वे अफ्रीका से एशिया एवं फिर यूरोप में गए। उन्होंने आग का आविष्कार किया एवं भाषा का अधिक विकास किया। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। आधुनिक मानव को होमो सैपियंस के नाम से जाना जाता है। यह मानव 1.95 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया।

→ प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार उनका उद्भव अफ्रीका में हुआ। दूसरी ओर क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के अनुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। यह मानव सबसे समझदार था। उसने खेती सीख ली थी तथा स्थायी निवास आरंभ कर दिया था। उसके औज़ार बहुत उत्तम थे। उसने सूई का आविष्कार कर लिया था। अत: उसने सिले हुए कपड़े पहनने आरंभ कर दिए थे। आदिकालीन मानव संग्रहण द्वारा, अपमार्जन द्वारा, शिकार द्वारा तथा मछली पकड़ कर अपना भोजन जुटाता था।

→ आदिमानव द्वारा योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों के शिकार एवं उनके वध करने के सबसे प्राचीन साक्ष्य हमें लाख वर्ष पूर्व इंग्लैंड के बॉक्सग्रोव नामक स्थल से एवं 4 लाख वर्ष पूर्व जर्मनी के शोनिंजन नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। 35 हज़ार वर्ष पूर्व शिकार के तरीकों का सुधार हुआ। इस संबंध में हमें चेक गणराज्य में स्थित दोलनी वेस्तोनाइस नामक स्थल से जानकारी प्राप्त होती है।

→ आदिकालीन मानव का प्रारंभिक निवास पेड़ों पर था। 4 लाख वर्ष पर्व उसने गफ़ाओं में अपना निवास आरंभ कर दिया। इससे उसे भयंकर शीत एवं जंगली जानवरों से सरक्षा मिली। 1.25 लाख वर्ष पर्व उसने झोंपडियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। दक्षिणी फ्राँस से प्राप्त टेरा अमाटा नामक झोंपड़ी इसकी प्रसिद्ध उदाहरण है।

→ अग्नि का आविष्कार आदिकालीन मानव के लिए बहुत क्रांतिकारी प्रमाणित हुआ। इसके प्रथम साक्ष्य हमें केन्या में चेसोवांजा तथा दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रांस से प्राप्त हुए हैं। आदिकालीन मानव के जीवन में औज़ारों का विशेष महत्त्व रहा है। प्रारंभिक औजार पत्थर के थे। इनमें हस्त कुठार, गंडासे एवं शल्क औज़ार सम्मिलित थे। इनका प्रयोग आदिमानव जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा एवं उनके शिकार के लिए करता था।

→ भाषा एवं कला के विकास ने आदिमानव के जीवन को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्पेन में स्थित आल्टामीरा तथा फ्राँस में स्थित लैसकॉक्स एवं चाउवेट नामक गुफ़ाओं में की गई चित्रकारी को देख कर व्यक्ति चकित रह जाता है। उनकी अधिकाँश मूर्तियाँ स्त्रियों से संबंधित थीं क्योंकि वे उन्हें जनन शक्ति का स्रोत समझते थे।

→ 1960 ई० में प्रसिद्ध मानव विज्ञानी जेम्स वुडबर्न ने अफ्रीका के हादज़ा जनसमूह के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला है। उनके अनुसार हादज़ा एक छोटा समूह है जो लेक इयासी के आस-पास रहता है। वे केवल हाथी को छोड़कर अन्य सभी जानवरों का शिकार करते हैं। वे विश्व में सबसे अधिक माँस खाते हैं। वे अपने भोजन का 80% भाग जंगली साग-सब्जियों से प्राप्त करते हैं।

→ उनके प्रदेश में सूखे में भी भोजन की कोई कमी नहीं होती। वे ज़मीन एवं उसके संसाधनों पर अपना दावा नहीं करते क्योंकि वे इनका स्वतंत्रतापूर्वक प्रयोग करते हैं। आज का शिकारी संग्राहक समाज प्राचीन शिकारी समाज से अनेक बातों से भिन्न है। इससे अतीत के संबंध में कोई अनुमान लगाना कठिन है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध विद्वान् चार्ल्स डार्विन ने 24 नवंबर, 1859 ई० को एक विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ का प्रकाशन करवाया। इसमें मानव के क्रमिक विकास का विस्तृत वर्णन किया गया।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष भारत के कितने लोगों को प्रभावित करती हैं?
(A) 2 करोड़
(B) 6 करोड़
(C) 10 करोड़
(D) 12 करोड़
उत्तर:
(B) 6 करोड़

2. विश्व के सर्वाधिक आपदा संभावित देशों में भारत का कौन-सा स्थान है?
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) चौथा
(D) पाँचवां
उत्तर:
(A) दूसरा

3. सामान्यतः भारत का कितने प्रतिशत क्षेत्र सूखे से ग्रस्त रहता है?
(A) 5%
(B) 10%
(C) 14%
(D) 16%
उत्तर:
(D) 16%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

4. निम्नलिखित में से कौन-सा एक इलाका भूकंप की दृष्टि से अति जोखिम क्षेत्र के अंतर्गत आता है?
(A) दक्कन पठार
(B) पूर्वी हरियाणा
(C) पश्चिमी उत्तर प्रदेश
(D) कश्मीर घाटी
उत्तर:
(D) कश्मीर घाटी

5. भूकंप किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीवमण्डलीय
उत्तर:
(B) भौमिकी

6. आपदा प्रबंधन नियम किस वर्ष बनाया गया?
(A) वर्ष 2003 में
(B) वर्ष 2005 में
(C) वर्ष 2007 में
(D) वर्ष 1999 में
उत्तर:
(B) वर्ष 2005 में

7. भारत में सूखे का प्रभाव लगभग कितने क्षेत्र पर होता है?
(A) 5 लाख वर्ग कि०मी०
(B) 7 लाख वर्ग कि०मी०
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०
(D) 15 लाख वर्ग कि०मी०
उत्तर:
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०

8. भुज में विनाशकारी भूकंप कब आया था?
(A) 26 जनवरी, 1999
(B) 26 जनवरी, 2000
(C) 26 जनवरी, 2001
(D) 26 जनवरी, 2002
उत्तर:
(C) 26 जनवरी, 2001

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

9. भुज में 2001 को आए भूकंप की रिक्टर स्केल पर तीव्रता क्या थी?
(A) 2.5
(B) 3.5
(C) 5.2
(D) 7.9
उत्तर:
(D) 7.9

10. आपदाओं के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) समय के साथ प्राकृतिक आपदाओं के प्रारूप में परिवर्तन आया है
(B) सभी संकट आपदाएँ होती हैं
(C) समय के साथ आपदाओं द्वारा किए गए नुकसान में वृद्धि हो रही है
(D) आपदाओं के भय ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है
उत्तर:
(B) सभी संकट आपदाएँ होती हैं

11. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही नहीं है?
(A) सर्वाधिक चक्रवात अक्तूबर और नवम्बर में आते हैं
(B) ये पूर्वी प्रशांत महासागर, मैक्सिको तथा मध्य अमेरिकी तट पर भी पैदा होते हैं
(C) इनकी उत्पत्ति भूमध्यरेखा के पास 0° से 5° अक्षांशों के बीच होती है।
(D) इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ एक-दूसरे के नजदीक होती हैं
उत्तर:
(C) इनकी उत्पत्ति भूमध्यरेखा के पास 0° से 5° अक्षांशों के बीच होती है।

12. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात सामान्यतः निम्नलिखित अक्षांश में आते हैं-
(A) 0° – 5° अक्षांशों के बीच
(B) 5° – 15° अक्षांशों के बीच
(C) 15° – 20° अक्षांशों के बीच
(D) 5° – 20° अक्षांशों के बीच
उत्तर:
(D) 5° – 20° अक्षांशों के बीच

13. आपदाओं के संबंध में जो कथन सही नहीं है, उसे चिहनित कीजिए-
(A) देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित घोषित किया गया है
(B) देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 30 प्रतिशत भाग पर सूखे का प्रभाव रहता है
(C) सूखे का अधिक प्रभाव वहाँ पड़ता है जहाँ वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक 20 प्रतिशत से अधिक होता है
(D) भूस्खलन की दृष्टि से हरियाणा अधिक सुभेद्यता क्षेत्र में आता है
उत्तर:
(D) भूस्खलन की दृष्टि से हरियाणा अधिक सुभेद्यता क्षेत्र में आता है

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष भारत के कितने लोगों को प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
लगभग 6 करोड़।

प्रश्न 2.
विश्व के सर्वाधिक आपदा सम्भावित देशों में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 3.
भारत के किस राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
उत्तर:
तमिलनाडु में।

प्रश्न 4.
भूकम्पों के आने का क्या कारण है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।

प्रश्न 5.
भारतीय प्लेट किस दिशा में खिसक रही है?
उत्तर:
उत्तर दिशा।

प्रश्न 6.
सामान्यतः भारत का कितना प्रतिशत क्षेत्र सूखे से ग्रस्त रहता है?
उत्तर:
16 प्रतिशत।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 7.
चक्रवात में समदाब रेखाओं की आकृति लगभग कैसी होती है?
उत्तर:
लगभग गोल।

प्रश्न 8.
धरातल के उस बिन्दु का नाम बताएँ जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय तरंगें पहुँचती हैं।
उत्तर:
अधिकेन्द्र।

प्रश्न 9.
भूकम्प की तीव्रता को किस स्केल पर मापा जाता है?
उत्तर:
रिक्टर स्केल पर।

प्रश्न 10.
रिक्टर स्केल पर कितनी इकाइयाँ होती हैं?
उत्तर:
1 से 9 तक।

प्रश्न 11.
भुज में 26 जनवरी, 2001 को आए भूकम्प की रिक्टर स्केल पर तीव्रता क्या थी?
उत्तर:
7.9।

प्रश्न 12.
भारत में अत्याधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखें।
उत्तर:
बीकानेर (राजस्थान)।

प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सामान्यतः किन अक्षांशों में आते हैं?
उत्तर:
5° से 20° अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून तथा चक्रवात।

प्रश्न 15.
प्रायद्वीपीय भारत में बातें कम क्यों आती हैं?
उत्तर:
नदियाँ मौसमी होने के कारण।

प्रश्न 16.
उत्तराखण्ड में भयंकर प्राकृतिक आपदा कब आई?
उत्तर:
16 जून, 2013 में।

प्रश्न 17.
पृथ्वी के अन्दर भूकम्प कितनी गहराई तक उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
75 कि०मी० की गहराई तक।

प्रश्न 18.
पृथ्वी के अन्दर भूकम्प उत्पत्ति वाले स्थान का नाम बताओ।
उत्तर:
उद्गम केन्द्र या भूकम्प मूल।

प्रश्न 19.
रिक्टर स्केल का आविष्कारक कौन था?
उत्तर:
चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर।

प्रश्न 20.
महाराष्ट्र के लाटूर में आए भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर दिशा में खिसकना।

प्रश्न 21.
भूकम्प और ज्वालामुखी की सर्वोत्तम व्याख्या कौन-सा सिद्धान्त करता है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धान्त।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूखा क्यों पड़ता है?
उत्तर:
वर्षा की परिवर्तनीयता के कारण सूखा पड़ता है।

प्रश्न 2.
भारत में आने वाली प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. बाढ़
  2. सूखा
  3. चक्रवात
  4. भू-स्खलन
  5. भूकम्प
  6. ज्वारीय तरंगें इत्यादि।

प्रश्न 3.
कोयना भूकम्प क्यों आया था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में पानी के भारी दबाव के कारण यहाँ भूकम्प आया था।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 4.
चक्रवातों से प्रभावित भारत के तीन राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. ओडिशा
  2. आन्ध्र प्रदेश तथा
  3. तमिलनाडु।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक आपदा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल, स्थल अथवा वायुमण्डल में उत्पन्न होने वाली ऐसी घटना या बदलाव जिसके कुप्रभाव से विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि और पर्यावरण का अवक्रमण होता हो, प्राकृतिक आपदा कहलाती है।

प्रश्न 6.
बाढ़ संभावित क्षेत्रों में कौन-कौन से क्षेत्र आते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती रहती हैं।

प्रश्न 7.
सुनामी लहरें क्या हैं?
उत्तर:
भूकम्प और ज्वालामुखी से उठी समुद्री लहरों को सुनामी लहरें तरंगें कहा जाता है। महासागरों की तली पर आने वाले भूकम्प से महासागरीय जल विस्थापित होता है जिससे ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें ‘सुनामी’ कहा जाता है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें ज्यादा प्रभावी होती हैं। कई बार तो इनकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक होती है।

प्रश्न 8.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
सूखा एक घातक पर्यावरणीय आपदा है। यह मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पति तथा कृषि को प्रभावित करता है। किसी क्षेत्र विशेष अथवा प्रदेश या देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी क्षेत्र में लंबी अवधि तक वर्षा की कमी, कम वर्षा होना, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, जिसे सूखा कहते हैं। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जब किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से 75 प्रतिशत से कम वर्षा होती है तब सूखा उत्पन्न होता है।

प्रश्न 9.
बाढ़ से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नदी की क्षमता से अधिक जल का बहाव, जिसमें नदी तट के निकट की निम्न व समतल भूमि डूब जाए, बाढ़ कहलाती है। नदी में जल का उसकी क्षमता से अधिक विसर्जन भारी वर्षा, अत्यधिक हिम के पिघलने, प्राकृतिक अवरोध के खण्डित हो जाने तथा बाँध टूटने के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 10.
महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में आए भूकंप के पीछे कौन-सा कारण माना जाता है ?
उत्तर:
कोयना बाँध महाराष्ट्र में दक्षिणी पठार पर बनाया गया है। इस क्षेत्र को स्थिर और भूकंप-रहित समझा जाता था, परन्तु यहाँ 11 दिसम्बर, 1967 में कोयना बाँध पर आए भूकंप ने सभी को अचम्भित कर दिया। यह भूकंप कोयना बाँध के जलाशय में अधिक जल के भर जाने के कारण आया। इस जल के अधिक भार के कारण स्थानीय भू-सन्तुलन बिगड़ गया तथा चट्टानों में दरारें पड़ गईं। इस भूकंप को मानवकृत भूकंप कहा जा सकता है।

प्रश्न 11.
प्राकृतिक आपदा और अकाल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जहाँ आपदाएँ और संकट प्राकृतिक परिघटनाएँ हैं, वहाँ अकाल एक मानव-जनित (Man made) स्थिति है। अकाल तब पड़ता है जब भोजन, दवाइयों व राहत-सामग्री की कमी तथा यातायात और संचार की अपर्याप्त सुविधा के कारण लोग भूख, बीमारी और बेबसी से त्रस्त होकर मरने लगते हैं।

प्रश्न 12.
भू-स्खलन को रोकने के दो उपाय बताइए।
उत्तर:

  1. पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाए तथा किसी नीतिगत ढंग से पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगाया जाए।
  2. पर्वतों में गैर जरूरी खनन पर रोक लगाई जाए।

प्रश्न 13.
भू-स्खलन क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी शिलाओं से लेकर काफी बड़े भू-भाग के ढलान के नीचे की ओर सरकने या खिसकने की क्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाढ़ से आपका क्या अभिप्राय है? बाढ़ आने के किन्हीं चार कारणों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदी की क्षमता से अधिक जल का बहाव, जिसमें नदी तट के निकट की निम्न व समतल भूमि डूब जाए, बाढ़ कहलाती है। नदी में जल का उसकी क्षमता से अधिक विसर्जन भारी वर्षा, अत्यधिक हिम के पिघलने, प्राकृतिक अवरोध के खण्डित हो जाने तथा बाँध टूटने के परिणामस्वरूप होता है।

बाढ़ आने के कारण-बाढ़ आने के कारण निम्नलिखित हैं-
(1) भारी वर्षा-दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनें सीमित अवधि में भारी वर्षा करती हैं। इस वर्षा का तीन-चौथाई भाग मानसून पवनों द्वारा जून से सितम्बर तक प्राप्त किया जाता है। इस कारण गंगा व उसकी अनेक सहायक नदियों में वर्षा ऋतु में बाढ़ आ जाती है। इसी प्रकार पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों व पश्चिमी तटीय मैदान तथा असम में हिमालय में भारी तथा निरन्तर वर्षा के कारण ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आ जाती है।

(2) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात-भारत के पूर्वी तट पर आन्ध्र प्रदेश व उड़ीसा में तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर से उठने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भयंकर बाढ़ लाते हैं।

(3) विस्तृत जल-ग्रहण क्षेत्र भारत की अधिकांश नदियों के जलग्रहण क्षेत्र बहुत विस्तृत हैं। परिणामस्वरूप इन नदी घाटियों के मध्य व निम्न भागों में भारी मात्रा में जल भर जाता है जो बाढ़ का कारण बनता है।

(4) नदी के प्रवाह में अवरोध नदी के तली में मिट्टी व अन्य अवसादों के जमाव, भूस्खलन तथा नदी विसर्जन (Meandering) आदि से नदी के जल का प्रवाह अवरुद्ध होने लगता है। अवरोध के अचानक टूटने के बाद नदी का जल अत्यन्त तेजी के साथ बहकर निकटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ ला देता है।

प्रश्न 2.
सूखे के चार प्रकारों के नाम लिखिए व किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूखा निम्नलिखित प्रकार का होता है-

  • मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा
  • जल विज्ञान सम्बन्धी सूखा
  • भौमिक जल सम्बन्धी सूखा
  • कृषि अथवा मृदा जल सम्बन्धी सूखा।

मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा-यह सूखा सामान्य से कम वर्षा होने की स्थिति में पैदा होता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Dept.) के अनुसार, यदि दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों से औसत वार्षिक वर्षा के 75 प्रतिशत से कम हो तो सूखा पड़ता है और यदि यह वर्षा सामान्य से 50 प्रतिशत से भी कम हो तो भीषण सूखा पड़ता है।

प्रश्न 3.
भूकम्प के परिणाम बताते हुए इसके प्रभाव को कम करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भूकम्प में बड़े पैमाने पर भू-तल और जनसंख्या प्रभावित होती है। इससे जान और माल की भारी क्षति होती है तथा भूकम्प बुनियादी ढाँचे, परिवहन व संचार व्यवस्था, उद्योग और अन्य विकासशील क्रियाओं को ध्वस्त कर देता है। इससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचती है।

भूकम्प के प्रभाव से होने वाले नुकसान को कम करने के निम्नलिखित तरीके हैं-

  • भूकम्प-नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना की जाए ताकि भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में लोगों को सूचित किया जा सके। GPS प्रणाली की सहायता से प्लेट हलचल का पता लगाया जा सकता है।
  • भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन डिजाइन में सुधार करना।
  • भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी भवन बनाना और हल्की निर्माण सामग्री का प्रयोग करना।

प्रश्न 4.
भूकम्प आने के किन्हीं दो कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1. भू-प्लेटों का खिसकना-जब अधिकांश वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि भूकम्प भू-प्लेटों के खिसकने से आते हैं। पृथ्वी का कठोर स्थलमंडल भू-प्लेटों से बना है, जिनकी औसत मोटाई 100 कि०मी० है। इन प्लेटों के नीचे दुर्बलता मंडल स्थित हैं। ये प्लेटें एक साथ गतिशील रहती हैं। इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकम्प पैदा होते हैं। अधिकांश भूकम्प इन प्लेटों के किनारों पर आते हैं।

2. ज्वालामुखी क्रिया-प्रचण्ड वेग से मैग्मा व गैसें जब भूपटल पर आने का प्रयास करती हैं तो कड़ी शैलों के अवशेष के कारण चट्टानों में कम्पन पैदा होता है। इसके अतिरिक्त भूपटल के कमज़ोर भागों को तोड़कर मैग्मा जब भारी विस्फोट के साथ बाहर निकलता है तो इससे चट्टानों में कम्पन आता है। लेकिन इस तरह के झटके छोटे क्षेत्र तक सीमित रहते हैं।

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प्रश्न 5.
भारत में भूकंपीय क्षेत्रों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में कोई भी क्षेत्र भूकम्पों के प्रभाव से अछूता नहीं हैं। भारत मध्य महाद्वीपीय भूकम्प पेटी में आता है। सबसे अधिक भूकम्प भारत के हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। इसका कारण यह है कि ये नवीन मोड़दार पर्वत आज भी ऊपर उठ रहे हैं। इससे इस क्षेत्र का सन्तुलन बिगड़ता है और भूकम्प आते हैं। अरावली से पूर्व में असम तक फैले उत्तरी भारत के मैदान में जलोढ़ के भारी जमाव द्वारा उत्पन्न भू-असन्तुलन के कारण भूकम्प आते हैं। मैदानी भाग के भूकम्प कम विनाशकारी होते हैं।

दक्कन पठार अब तक भूकम्पों से इसलिए मुक्त समझा जाता था क्योंकि यह विश्व के सबसे कठोर स्थल खण्डों में से एक है। लेकिन सन् 1967 में कोयना तथा सन् 1993 में लाटूर में आए भूकम्पों ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया। फिर भी यह माना जा सकता है कि दक्षिणी पठार पर बहुत कम भूकम्प आते हैं। भारत में अब तक का सबसे बड़ा भूकम्प सन् 2001 में गुजरात के भुज में आया था। इसमें 50,000 से अधिक लोग मारे गए थे। सन् 2005 में कश्मीर में आए भूकम्प में भी 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे।

प्रश्न 6.
भूकम्प क्या है? उसके परिणाम लिखिए।
अथवा
भूकम्प के किन्हीं चार दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में संचित दबाव तथा हलचलों के कारण तरंगों का संचरण चट्टानों में कंपन पैदा करता है, इसे भूकंप कहते हैं। भूकंप पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाली विवर्तनिक गतिविधियों के कारण उत्पन्न ऊर्जा से पैदा होते हैं। भूकम्प के दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • भूकम्पों से न केवल हजारों-लाखों लोग मारे जाते हैं, बल्कि भारी संख्या में मकान और खेत इत्यादि भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं।
  • भूकम्प के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिनसे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इससे बातें आती हैं जो जन और धन की हानि करती हैं।
  • भूकम्प के आने पर समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन भूकम्पीय समुद्री लहरों को जापान में सुनामी तरंगें (Tsunamis) कहा जाता है। ये तरंगें तटीय भागों का विनाश करती हैं।
  • भूकम्प से भूपटल पर पड़ी दरारों के कारण न केवल यातायात अवरुद्ध हो जाता है बल्कि अनेक इम पशु इनमें समा जाते हैं।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन निवारण के मुख्य उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
भू-स्खलन निवारण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपाय होने चाहिएँ, जो निम्नलिखित हैं-

  • अधिक भू-स्खलन वाले क्षेत्रों में सड़क और बाँध निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • स्थानान्तरी कृषि वाले क्षेत्रों में (उत्तर:पूर्वी भाग) सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल-बहाव को कम करने के लिए बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 8.
भूकम्पों से होने वाले प्रमुख लाभों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. भूकम्पों के माध्यम से हमें पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  2. भूकम्पीय बल से उत्पन्न भ्रंश और वलन अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देते हैं; जैसे पर्वत, पठार, मैदान और घाटियाँ आदि। भूमि के धंसने से झरनों और झीलों जैसे नए जलीय स्रोतों की रचना होती है।
  3. समुद्र तटीय भागों में आए भूकम्पों के कारण कम गहरी खाड़ियों का निर्माण होता है जहाँ सुरक्षित पोताश्रय बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 9.
भू-स्खलन के दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. बेशकीमती जान और माल की हानि होती है।
  2. नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बाढ़ें आती हैं। उदाहरणतः अगस्त, 1998 में पिथौरागढ़ का लामारी गाँव भूस्खलन से अवरुद्ध हुई काली नदी के जल में डूबकर नष्ट हो गया था।
  3. भू-स्खलनों से न केवल पर्यावरण नष्ट हो रहा है, बल्कि उपजाऊ मिट्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का भी विनाश हो रहा है।
  4. हरित आवरण विहीन ढलानों पर बहते जल का अवशोषण न हो पाने की स्थिति में जलीय स्रोत सूख रहे हैं।

प्रश्न 10.
“उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात केवल प्रायद्वीपीय भारत में ही अधिक प्रभावशाली होते हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
चक्रवातों की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त कॉरियालिस बल चाहिए ताकि पवन चक्राकार घूम सके। भूमध्य रेखा व इसके दोनों ओर 5° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच कॉरियालिस बल क्षीण होता है। इसीलिए चक्रवात 5° से 20° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।

(2) विस्तृत समुद्री क्षेत्र जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो ताकि चक्रवात को भारी मात्रा में आर्द्रता मिल सके। आर्द्र वायु के संघनित होने पर जो गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, वही चक्रवात की अपार ऊर्जा का स्रोत होती है।

(3) शान्त वायु क्षेत्र का होना भी आवश्यक है।

(4) चक्रवात के ऊपर 8 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रतिचक्रवात अर्थात् उच्च वायुदाब होना चाहिए ताकि धरातल से ऊपर उठने वाली वायु को बाहर निकलने का मौका मिलता रहें और धरातल में स्थित केन्द्र में निम्न वायुदाब बना रहे। दी गई दशाएँ बंगाल की खाड़ी व अरब सागर में उपलब्ध होती हैं। यही कारण है कि चक्रवात इन जलराशियों में उत्पन्न होकर निकटवर्ती भारतीय प्रायद्वीय पर अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं।

प्रश्न 11.
चक्रवातों की उत्पत्ति के मुख्य कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
चक्रवातों की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त कॉरियालिस बल चाहिए ताकि पवन चक्राकार घूम सके। भूमध्य रेखा व इसके दोनों ओर 5° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच कॉरियालिस बल क्षीण होता है। इसीलिए चक्रवात 5° से 20° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।

(2) विस्तृत समुद्री क्षेत्र जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो ताकि चक्रवात को भारी मात्रा में आर्द्रता मिल सके। आर्द्र वायु के संघनित होने पर जो गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, वही चक्रवात की अपार ऊर्जा का स्रोत होती है।

(3) शान्त वायु क्षेत्र का होना भी आवश्यक है।

(4) चक्रवात के ऊपर 8 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रतिचक्रवात अर्थात उच्च वायुदाब होना चाहिए ताकि धरातल से ऊपर उठने वाली वायु को बाहर निकलने का मौका मिलता रहे और धरातल में स्थित केन्द्र में निम्न वायुदाब बना रहे। यही कारण है कि चक्रवात इन जलराशियों में उत्पन्न होकर निकटवर्ती भारतीय प्रायद्वीय पर अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं।

प्रश्न 12.
भूकम्प की आपदा से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
भूकम्प कुदरत का एक ऐसा कहर है जिसे रोकना तो सम्भव नहीं किन्तु संगठित प्रयासों से उसके विनाश को कम किया जा सकता है। भूकम्प सैंकड़ों वर्षों के विकास को क्षण-भर में मिटा सकता है। भूकम्प का प्रतिकार करना किसी अत्यन्त शक्तिशाली शत्रु से युद्ध करने जैसा है। अतः भूकम्प के विरुद्ध एक नीतिगत रक्षा कवच बनाया जाना जरूरी है। इसके तहत न केवल भूकम्पमापी केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जाए बल्कि भूकम्प की सूचना को कारगर तरीके से आखिरी आदमी तक फैलाया जाए। संवदेनशील भूकम्प क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प से पहले, उसके दौरान व बाद में उठाए जाने वाले कदमों का अभ्यास करवाते रहना चाहिए। वहाँ तरंगरोधी मकानों की योजना लागू करना जरूरी है।

भूकम्प के विरुद्ध उपाय और इच्छाशक्ति जन-धन की अपार हानि को कम कर सकती है।

प्रश्न 13.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं
(1) कृषि उपज में कमी-वर्ष 1987 के सूखे के कारण II 25 अरब से अधिक कृषि उपज का नुकसान हुआ। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने सूखे पर लगभग II 75 अरब व्यय किए। खाद्यान्नों के उत्पादन में लगभग 165 लाख टन की गिरावट आई। खाद्य समस्या के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त हो गया।

(2) प्रति व्यक्ति आय में कमी-सूखे के परिणामस्वरूप कम कृषि उपज के कारण भारत की प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है, जिसको बढ़ाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

(3) कृषि मजदूरों की दुर्दशा-सूखे का सबसे बुरा प्रभाव कृषि मजदूरों पर पड़ता है। मज़दूर बेरोज़गार हो जाते हैं, क्योंकि वर्षा न होने के कारण खेतों में कोई काम नहीं रहता और धन के अभाव के कारण मजदूरों का भूख से मरना शुरु हो जाता है।

(4) बीमारियों की बढ़ोत्तरी-सूखे में जल के अभाव के कारण अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। पौष्टिक भोजन में कमी होने के कारण बच्चों तथा स्त्रियों में बीमारियाँ बहुत फैल जाती हैं। सरकार के राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं, जिससे राजस्व पूँजी में कमी आ जाती है।

(5) पशुधन में कमी-चारे के अभाव के कारण लाखों पशु मर जाते हैं, जिसका खाद्य आपूर्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाएँ क्या हैं? भारत के संदर्भ में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन कीजिए। अथवा भारत में प्राकृतिक आपदाओं के क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदा का अर्थ (Meaning of Natural Disaster)-जल, थल अथवा वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली एक असामान्य घटना जिसके कुप्रभाव से एक विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि तथा पर्यावरण का ह्रास होता है, प्राकृतिक आपदा कहलाती है। यह प्राकृतिक घटना जो सीमित अवधि के लिए आती है उस देश की सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था को बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर देती है। आपदा केवल प्राकृतिक नहीं होती, यह मानव-जनित भी हो सकती है। आपदाओं के विभिन्न स्वरूपों के आधार पर उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • प्राकृतिक अथवा भौगोलिक आपदा
  • मानवकृत अथवा कृत्रिम आपदा
  • जैविक आपदा।

विभिन्न प्राकृतिक आपदाएँ (Various Natural Disasters)-प्राकृतिक प्रकोप अथवा कारणों से उत्पन्न आपदाएँ प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। ये धरातल के ऊपर अथवा नीचे कार्यरत शक्तियों की क्रिया का परिणाम होती हैं। विश्व जलवायु संगठन के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं का प्रलयकारी परिणाम या इन घटनाओं की संगठित क्रिया जिससे बड़े पैमाने पर जनहानि तथा मानव क्रियाकलापों का उच्छेदन हो, प्राकृतिक आपदा कहलाती है। इनका वर्गीकरण अनेक निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है

  • विवर्तनिक (Tectonic) आपदाएँ भूकंप (Earthquake) तथा ज्वालामुखी उदगार (Volcanic Eruption)।
  • भौमिक अथवा भू-तलीय आपदाएँ-भूस्खलन (Landslide), हिमस्खलन या हिमघाव (Avalanche) तथा भू-क्षरण।
  • वायुमंडलीय आपदाएँ-चक्रवात (Cyclone), तड़ित (Lightning), तड़ितझंझा (Thunder Storm), टारनैडो (Tomado), बादल फटना (Cloud Brust), सूखा (Drought), पाला (Frost), लू (Loo)।
  • जलीय आपदाएँ-बाढ़ (Flood), ज्वार (Tide), महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents), सुनामी (Tsunami)।

इनमें से प्रमुख आपदाओं का विवरण इस प्रकार है–
1. भूकंप-पृथ्वी के आंतरिक भाग में संचित दबाव तथा हलचलों के कारण तरंगों का संचरण चट्टानों में कंपन पैदा करता है, इसे भूकंप कहते हैं। भूकंप पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाली विवर्तनिक गतिविधियों के कारण उत्पन्न ऊर्जा से पैदा होते हैं।
देश को निम्नलिखित पांच भूकंपीय क्षेत्रों में बांटा गया है-
(1) सर्वाधिक तीव्रता का क्षेत्र इस क्षेत्र में उत्तर:पूर्वी राज्य, नेपाल, बिहार सीमावर्ती क्षेत्र, उत्तराखंड, हिमालय पर्वत श्रेणी, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला क्षेत्र, कश्मीर घाटी के कुछ क्षेत्र, कच्छ प्रायद्वीप तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं।

(2) अधिक तीव्रता का क्षेत्र-इसके अंतर्गत कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के बचे भाग, उत्तरी पंजाब, पूर्वी हरियाणा, बिहार के उत्तरी मैदानी भाग एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश आते हैं।

(3) मध्यम तीव्रता का क्षेत्र-इसके अंतर्गत उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार सम्मिलित हैं।

(4) निम्न तीव्रता का क्षेत्र देश के शेष बचे हुए भागों में से तमिलनाडु, उत्तर:पश्चिम तथा पूर्वी राजस्थान, ओडिशा का प्रायद्वीपीय भाग, उत्तरी मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ आते हैं।

(5) अति निम्न तीव्रता का क्षेत्र इस क्षेत्र में जोन-II के क्षेत्रों के भीतरी भाग शामिल हैं।

2. भूस्खलन-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में चट्टानों के टुकड़ों का पर्वतीय ढलानों पर अचानक नीचे की ओर सरकना तथा लुढ़कना भूस्खलन कहलाता है। यह प्राकृतिक आपदा मुख्यतया पर्याप्त वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में आती है। भूस्खलन एक त्वरित घटने वाली प्राकृतिक घटना है जिससे जन-धन की हानि होती है। नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तथा यातायात प्रभावित होता है। भूस्खलन अनेक प्रकार के होते हैं, जिनमें-

  • अवपात
  • सर्पण
  • अवसर्पण
  • प्रवाह तथा
  • विसर्पण मुख्य होते हैं।

भारत के प्रमुख भूस्खलन क्षेत्र इस प्रकार है।

  • अति उच्च भूस्खलन क्षेत्र-इसमें हिमालय के राज्य; जैसे हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड आते हैं। इन क्षेत्रों में अत्यधिक हानि होती है।
  • उच्च भूस्खलन क्षेत्र इसमें समस्त पूर्वोत्तर राज्य; जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, असम आदि आते हैं। यहाँ वर्षाकाल में जानमाल की हानि अधिक होती है।
  • मध्यम भूस्खलन क्षेत्र इसके अंतर्गत पश्चिमी घाट, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु राज्यों के नीलगिरी पहाड़ियों के क्षेत्र आते हैं।
  • निम्न भूस्खलन क्षेत्र-इस क्षेत्र में पूर्वीघाट के राज्यों के सागर तटीय क्षेत्र आते हैं। यहाँ वर्षाकाल में हानि अधिक है। सामान्य भूस्खलन की घटनाएँ होती रहती हैं।
  • अतिनिम्न भूस्खलन क्षेत्र इस क्षेत्र में विंध्याचल की पहाड़ियाँ तथा पठारों के भाग शामिल हैं। यहाँ कभी-कभी भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं।

3. चक्रवात उष्ण कटिबंधीय चक्रवात 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं। साधारणतया इनका व्यास 500 से 1000 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ होता है। इनकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई 12-14 किलोमीटर तक होती है। प्राकृतिक आपदाओं में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात सर्वाधिक शक्तिशाली, विध्वंसक, प्राणघातक तथा खतरनाक होते हैं। चक्रवातों को उनके था मौसम के आधार पर चार प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

  • विक्षोभ
  • अवदाब
  • तूफान तथा
  • हरिकेन या टाइफून।

भारत में चक्रवातों का वितरण-भारत के प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। भारत में आने वाले चक्रवात इन्हीं दोनों जलीय क्षेत्रों से उत्पन्न होते हैं। बंगाल की खाड़ी से उठने वाले चक्रवात अधिकतर अक्तूबर व नवम्बर में 16° से. 21° उत्तरी अक्षांश तथा 92° पूर्व देशांतर के पश्चिम में पैदा होते हैं। ये चक्रवात जुलाई के महीने में सुंदरवन डेल्टा के पास 18° उत्तर अक्षांश तथा 90° पूर्व देशांतर के पश्चिम से उत्पन्न होते हैं।

4. सूखा-सूखा एक घातक पर्यावरणीय आपदा है। यह मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पति तथा कृषि को प्रभावित करता है। किसी क्षेत्र विशेष अथवा प्रदेश या देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी क्षेत्र में लंबी अवधि तक वर्षा की कमी, कम वर्षा होना, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, जिसे सूखा कहते हैं। विभाग ने सूखे को दो वर्गों में बांटा है

  • प्रचंड सूखा-जब वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा से 50 प्रतिशत अथवा इससे भी कम होती है तो इसे प्रचंड सूखा कहते हैं
  • सामान्य सूखा जब वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा से 50 से 75 प्रतिशत के मध्य होती है तो इसे सामान्य सूखा कहते हैं।

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र भारत में सूखे से प्रभावित होने वाले संभावित क्षेत्र बिहार, झारखंड का पठारी भाग, गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, मराठवाड़ा, तेलंगाना, ओडिशा के कालाहाण्डी तथा समीपवर्ती क्षेत्र आदि मुख्य हैं। सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में बांटा गया है
(i) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान, विशेषकर पश्चिमी राजस्थान का मरुस्थल जिसमें राजस्थान के जैसलमेर तथा बाड़मेर जिले शामिल हैं। यहाँ औसत वर्षा 90 मि०मी० से भी कम होती है तथा गुजरात का रन व कच्छ क्षेत्र आता है।

(ii) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इस क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, कर्नाटक का पठारी भाग, आंध्र प्रदेश के भीतरी भाग, तमिलनाडु का उत्तरी भाग, दक्षिणी झारखंड तथा ओडिशा के भीतरी भाग सम्मिलित हैं।

(iii) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, पूर्वी गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु से कोयम्बटूर पठार तक तथा आंतरिक कर्नाटक शामिल हैं।

5. बाढ बाढ का संबंध अतिवष्टि से है। प्राकतिक आपदाओं में बाढ भी एक अत्यंत तबाही मचाने वाली आपदा है। नदियों में जल-स्तर इतना बढ़ जाता है कि जल की विशाल राशि उन क्षेत्रों में प्रविष्ट कर जाती है जहाँ सामान्यतया उसकी उपेक्षा नहीं की जाती। इस प्रकार जल के अनियंत्रित तथा असीमित फैलाव को बाढ़ कहा जाता है। सामान्य शब्दों में वर्षा जल की अधिकता के कारण जल अपने प्रवाह मार्ग में न बहकर तटबंधों से बाहर आकर मानव अधिवासों तथा समीपवर्ती भूभाग को जलमग्न कर देता है तो उसे बाढ़ कहते हैं। सामान्यतया बाढ़ विशेष ऋतु में तथा विशेष क्षेत्र में ही आती है।

बाढ़ मूलतः प्राकृतिक कारकों का प्रतिफल है, परंतु मानवीय कारक भी इसमें सक्रिय योगदान देते हैं। मानवीय क्रियाकलाप; जैसे नदियों के मार्ग में परिवर्तन, नगरीकरण, बांध का निर्माण, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि, भूमि उपयोग में परिवर्तन, बाढ़ के मैदानों में मानव अधिवास के कारण बाढ़ की तीव्रता, परिमाण तथा विध्वंसता में वृद्धि होती है

6. सुनामी-भूकम्प और ज्वालामुखी से उठी समुद्री लहरों को सुनामी तरंगें कहा जाता है। महासागरों की तली पर आने वाले भूकम्प से महासागरीय जल विस्थापित होता है जिससे ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें ‘सुनामी’ कहा जाता है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें ज्यादा प्रभावी होती हैं कई बार तो इनकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक होती है।

सुनामी लहरों के क्षेत्र-सुनामी लहरें आमतौर पर प्रशान्त महासागरीय तट जिसमें अलास्का, जापान, फिलीपाइन, दक्षिण-पूर्वी एशिया के दूसरे द्वीप, इण्डोनेशिया और मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यांमार, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती हैं।

सुनामी लहरों के प्रभाव तट पर पहुँचने पर सुनामी लहरें अत्यधिक ऊर्जा निर्मुक्त करती हैं और समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है और तट के निकटवर्ती क्षेत्रों में तबाही फैलाता है। अतः तटीय क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होने के कारण दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की अपेक्षा सुनामी अधिक जान-माल का नुकसान पहुँचाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन कीजिए तथा बाढ़ों से होने वाली क्षति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नदी में जब पानी की मात्रा उसकी जलमार्ग क्षमता से अधिक हो जाती है तब उसे बाढ़ के रूप में जाना जाता है। बाढ़ की मात्रा घर्षण की मात्रा और तीव्रता, तापमान, तथा ढाल पर निर्भर करती है। लम्बी अवधि तक होने वाली वर्षा से मिट्टी अपनी सम्पूर्ण क्षमता तक पानी से परिपूर्ण हो जाती है और वहाँ का अनुपात बढ़ता जाता है। बजरी, जिसके नीचे अप्रवेश्य पदार्थ न हो, इसका अपवाद है। जहाँ पर झंझावातों द्वारा भारी वर्षा होती है, वहाँ बाढ़ का खतरा अधिक होता है। बाढ़ निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

आकस्मिक बाढ़-इनकी अवधि बहुत छोटी होती है, इस प्रकार की बाढ़ गरज के साथ होने वाली प्रबल बौछारों से आती है। दीर्घ अवधि बाद-लम्बे समय तक वर्षा होने के कारण जल की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, जिससे सम्पूर्ण जल विभाजक क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है।।

भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र बाढ़ से जन-जीवन अव्यवस्थित हो जाता है। जन-धन की अपार हानि होती है। शहरी क्षेत्र में पेय जल की समस्या के कारण अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। भारत का अधिकांश भाग बाढ़ सम्भावित क्षेत्र है। अधिकांश बाढ़ भारत के उत्तरी भाग में आती है। गंगा तथ ब्रह्मपुत्र नदियों के अप्रवाह क्षेत्र में भारत का 60% बाढ़ग्रस्त क्षेत्र आता है। हर वर्ष गंगा, यमुना, सतलुज, रावी, व्यास, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि नदियों में बाढ़ आती है।

असम, बिहार, आन्ध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश आदि में बाढ़ का प्रकोप बना रहता है। कोसी, तिस्ता और टोर्सा नदियाँ हिमाचल से उतरकर अवसादों के निक्षेपण से अपने रास्ते बदल लेती हैं। कोसी नदी को ‘शोक की नदी’ कहा जाता है, क्योंकि इससे काफी मात्रा में फसल नष्ट होती है। ब्रह्मपुत्र नदी असम में बाढ़ लाती है। हुगली नदी पश्चिमी बंगाल में बाढ़ लाती है। महानदी से ओडिशा के कई भाग प्रभावित होते हैं। हरियाणा में जल निकास की अव्यवस्था के कारण बाढ़ आ जाती है।

बाढ़ से होने वाली क्षति या प्रभाव-बाढ़ों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है-

  • बाढ़ों से फसलें समाप्त हो जाती हैं। कृषि उपज में गिरावट आ जाती है।
  • प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है।
  • बिजली आपूर्ति ठप्प होने से करोड़ों रुपए की हानि होती है।
  • कृषि भूमि अनुपजाऊ बन जाती है।
  • परिवहन तन्त्र गड़बड़ा जाता है।
  • उत्पादन प्रक्रिया ठप्प होने से काफी नुकसान होता है।
  • विकास कार्य रुक जाते हैं।
  • राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं।
  • पीने का पानी, खाद्य सामग्री की व्यवस्था बिगड़ जाती है।

इस प्रकार प्रत्येक वर्ष भारत में सूखा तथा बाढ़ के प्रकोप से करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। हमारी अर्थव्यवस्था में गिरावट का यह मुख्य कारण है। अतः हमें सूखा तथा बाढ़ को रोकने के लिए समय-समय पर उचित कदम उठाने चाहिएँ। हमें योजना बनाकर इस समस्या से निपटना चाहिए। हमारे द्वारा किया गया सही नियोजन करोड़ों रुपयों की पूँजी बचा सकता है।

प्रश्न 3.
एक प्राकृतिक आपदा के रूप में भूकम्प क्या है? इसके कारणों तथा परिणामों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात् काँप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं। चट्टानों की तीव्र गति के कारण हुआ यह कम्पन अस्थायी होता है। भूकम्प आने के कारण भूकम्प आने का मुख्य कारण पृथ्वी की सन्तुलित अवस्था में व्यवधान का पड़ना है। सन्तुलन की अवस्था में अस्थिरता निम्नलिखित कारणों से आती है-
1. भू-प्लेटों का खिसकना-पृथ्वी का कठोर स्थलमंडल भू-प्लेटों से बना है। इन प्लेटों के नीचे दुर्बलता मंडल स्थित हैं। ये प्लेटें एक साथ गतिशील रहती हैं तथा इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकम्प पैदा होते हैं। अधिकांश भूकम्प इन प्लेटों के किनारे पर आते हैं।

2. ज्वालामुखी क्रिया प्रचण्ड वेग से मैग्मा व गैसें जब भूपटल पर आने का प्रयास करती हैं तो कड़ी शैलों के अवरोध के कारण चट्टानों में कम्पन पैदा होती है। इसके अतिरिक्त भूपटल के कमजोर भागों को तोड़कर मैग्मा जब भारी विस्फोट के साथ बाहर निकलता है तो इससे चट्टानों में कम्पन आती है।

3. भूपटल का संकुचन पृथ्वी के भीतर का भाग धीरे-धीरे ठण्डा होकर सिकुड़ रहा है। ऊपर की चट्टानें जब नीचे की सिकुड़ती हुई चट्टानों से समायोजन करती हैं तो शैलों में आई अव्यवस्था के कारण भूकम्प आते हैं।

4. भूसन्तुलन भूपटल की ऊपरी चट्टानों ने ऊपर-नीचे समायोजित होकर सन्तुलन बना लिया है। कालान्त भू-भागों के अपरदन से उत्पन्न तलछट धीरे-धीरे समुद्री तली में निक्षेपित होने लगता है। इससे पृथ्वी का सन्तुलन भंग हो जाता है। अतः पुनः सन्तुलन प्राप्त करने की प्रक्रिया भूकम्प को जन्म देती है।

5. इलास्टिक रिबाऊन्ड सिद्धान्त-चट्टानें रबड़ की तरह प्रत्यास्थ होती हैं, इनमें पैदा होने वाले सम्पीड़न और तनाव की एक सीमा होती है। उस सीमा के बाद शैल और अधिक तनाव सहन नहीं कर सकती और वह टूट जाती है; ठीक उसी प्रकार जैसे रबड़ अत्यधिक खिंचाव के बाद टूट जाती है। शैल खण्डों का अकस्मात् टूटना और पुनः अपना स्थान ग्रहण करना भूकम्प पैदा करता है।

6. जलीय भार जब कभी मानव-निर्मित बड़े-बड़े जलाशयों में जल एकत्रित कर लिया जाता है तो जल भार से नीचे की चट्टानों पर दबाव बढ़ता है। इससे भूसन्तुलन अस्थिर हो जाता है। अतः उस क्षेत्र में जब भूसन्तुलन पुनः स्थापित होता है तब भूकम्प आते हैं।

7. गैसों का फैलाव-भूगर्भ में ऊँचे ताप के कारण चट्टानों के पिघलने और रिसे हुए समुद्री जल के उबलने से गैसों की उत्पत्ति होती है। चट्टानों पर सतत् बढ़ता हुआ दबाव उनमें कम्पन पैदा करता है।

8. अन्य कारण भस्खलन (Landslide), भारी हिमखण्डों (Avalanches) का ढलानों से नीचे गिरना, चना प्रदेशों (Karst Regions) में बड़ी गुफाओं की छतों का गिरना, खानों (Mines) की छतों का नीचे बैठना, पोखरण जै परीक्षण तथा भारी मशीनों और रेलों का चलना आदि ऐसे कारण हैं जो स्थानीय स्तर पर भूकम्प लाते हैं।

भूकम्पों से होने वाली हानियाँ (परिणाम)-
(1) भूकम्पों से न केवल हजारों-लाखों लोग मारे जाते हैं, बल्कि भारी संख्या में मकान और खेत इत्यादि भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। बीसवीं शताब्दी में लाखों भूकम्प आए किन्तु इनमें से केवल 34 भूकम्प ऐसे थे जिनके कारण लगभग 67 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हुई।

(2) भूकम्प के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिनसे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इससे बातें आती हैं जो जन और धन की हानि करती हैं।

(3) भूकम्प के आने पर समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन भूकम्पीय समुद्री लहरों को जापान में सुनामी तरंगें (Tsunamis) कहा जाता है। ये तरंगें तटीय भागों का विनाश करती हैं। सन् 1960 में चिली में आए भूकम्प से उत्पन्न सुनामी तरंगों ने काफी कहर बरसाया था।

(4) भूकम्प से भूपटल पर पड़ी दरारों के कारण न केवल यातायात अवरुद्ध हो जाता है बल्कि अनेक इमारतें, मनुष्य और पुश इनमें समा जाते हैं। सन् 1897 में असम में आए भूकम्प के कारण वहाँ 12 मील लम्बी व 35 फुट चौड़ी दरार पड़ गई थी।

(5) भूकम्प से पड़ी दरारों में से गैस, जल व कीचड़ आदि बाहर निकलते रहते हैं। गैसें वायु के सम्पर्क में आकर प्रज्ज्वलित हो उठती हैं जिससे भीषण आग लग जाती है। जल और कीचड़ में आसपास के क्षेत्र डूब जाते हैं।

प्रश्न 4.
भूस्खलन के कारणों और प्रभावों पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
भूस्खलन के कारण और इससे होने वाले दुष्परिणामों या संकटों का वर्णन करें।
उत्तर:
भूस्खलन के कारण यद्यपि भूस्खलन प्रकृति-जनित दुर्घटना है, लेकिन इस आपदा की आवृत्ति व उसके प्रभाव को बढ़ाने में मनुष्य की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। भूस्खलन के जिम्मेदार प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-
1. वनों का विनाश-वक्षों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती हैं। इससे वर्षा का बहता जल मिट्टी में कटाव नहीं कर पाता । वनों के विनाश से जल ढाल पर निर्बाध गति से बहता है और वृहत् स्तर पर मिट्टी और मलबे को बहा ले जाता है। वनों का विनाश मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से होता है

  • पहाड़ों पर बढ़ती जनसंख्या खेती के लिए वनों को साफ करती है और ईंधन के लिए वृक्षों को काटती है।
  • जनसंख्या के साथ पशुओं-गाय, भेड़-बकरी आदि की संख्या भी बढ़ रही है। पशुओं से होने वाले अति चारण से वनस्पति का आवरण तेजी से हट रहा है।
  • वन विभागों व ठेकेदारों की मिली-भगत से ‘वुड माफ़िया’ पनप जाता है जो भ्रष्ट तरीकों के नियत संख्या से ज्यादा पेड़ काट लेते हैं।

2. भकम्प हिमालयी क्षेत्र में प्रायः आने वाले भूकम्प के झटके शिलाखण्डों को हिला देते हैं जिससे वे टकर नीचे की ओर खिसक जाते हैं।

3. सड़क निर्माण-पहाड़ों में सड़क निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। वहाँ एक किलोमीटर लम्बी सड़क बनाने के लिए लगभग 6 हजार घन मीटर मलबा हटाना पड़ता है। इतनी बड़ी मात्रा में ढीला मलबा जहाँ भी पड़ता है, वर्षा के जल का अवशोषण कर ढलान के साथ नीचे की ओर सरक कर विनाश का कार्य करता है।

4. भवन निर्माण-पहाड़ों में बढ़ती जनसंख्या के लिए मकान व पर्यटन के विकास के लिए भवन एवं स्थल विकसित किए . जा रहे हैं। इन क्रियाओं से भी भूस्खलन में वृद्धि होती है।

5. स्थनान्तरी कृषि-उत्तर:पूर्वी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी प्रचलित स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि वनों को साफ करके की जा रही है। इससे भी भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं।

भूस्खलन से होने वाले संकट (दुष्परिणाम) अथवा प्रभाव भूस्खलन से होने वाले दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • बेशकीमती जान और माल की हानि होती है।
  • नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बाढ़ें आती हैं। उदाहरणतः अगस्त, 1998 में पिथौरागढ़ का लामारी गाँव भूस्खलन से अवरुद्ध हुई काली नदी के जल में डूबकर नष्ट हो गया था।
  • भूस्खलनों से न केवल पर्यावरण नष्ट हो रहा है, बल्कि उपजाऊ मिट्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का भी विनाश हो रहा है।
  • हरित आवरण विहीन ढलानों पर बहते जल का अवशोषण न हो पाने की स्थिति में जलीय स्रोत सूख रहे हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत में सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर पाई जाने वाली मिट्टी है
(A) काली मिट्टी
(B) जलोढ़ मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) मरुस्थलीय मिट्टी
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी

2. निम्नलिखित में से किस मिट्टी का अन्य नाम रेगड़ है?
(A) वनीय मिट्टी का
(B) जलोढ़ मिट्टी का
(C) लैटेराइट मिट्टी का
(D) काली मिट्टी का
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी का

3. गंगा के मैदान का उपजाऊपन किस कारण से बना हुआ है?
(A) लगातार सिंचाई
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव
(C) मानसूनी वर्षा
(D) ऊसर भूमि का सुधार
उत्तर:
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

4. भारत में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार कितना है?
(A) 22%
(B) 35%
(C) 44%
(D) 55%
उत्तर:
(C) 44%

5. काली मिट्टी की रचना हुई है
(A) समुद्री लहरों की निक्षेपण क्रिया द्वारा
(B) कांप की मिट्टी के निक्षेपण द्वारा
(C) पैठिक लावा के जमने से
(D) लोएस के जमाव से
उत्तर:
(C) पैठिक लावा के जमने से

6. काली मिट्टी के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) इसमें नमी को धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है।
(B) सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं।
(C) गन्ना, तम्बाकू, गेहूं, तिलहन व कपास के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।
उत्तर:
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।

7. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही नहीं है ?
(A) काली मिट्टी : महाराष्ट्र
(B) कांप मिट्टी : उत्तर प्रदेश
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब
(D) लाल और पीली मिट्टी : तमिलनाडु
उत्तर:
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब

8. दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का विस्तार सबसे ज्यादा है?
(A) काली मिट्टी
(B) कांप मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) जलोढ़ मिट्टी
उत्तर:
(A) काली मिट्टी

9. काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) कपास
(D) बाजरा
उत्तर:
(C) कपास

10. मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया कहलाती है
(A) निक्षालन
(B) मृदा-जनन
(C) मृदा अपरदन
(D) मृदा संरक्षण
उत्तर:
(B) मृदा-जनन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

11. राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
(A) तटीय
(B) अवनालिका
(C) परत
(D) पवन
उत्तर:
(D) पवन

12. चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
(A) जलोढ़
(B) लैटेराइट
(C) काली
(D) पर्वतीय
उत्तर:
(B) लैटेराइट

13. मिट्टी का विकास कितनी अवस्थाओं में होता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(B) 3

14. लाल मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) लोहे के यौगिकों की उपस्थिति के कारण इसका रंग लाल होता है
(B) यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है
(C) यह अधिकांशतः तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है
उत्तर:
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है

15. पीट मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है
(B) इसका निर्माण आर्द्र दशाओं में होता है
(C) इसमें लोहांश और जीवांश की मात्रा अधिक पाई जाती है
(D) वर्षा ऋतु में अधिकांशतः पीट मिट्टी जल में डूब जाती है
उत्तर:
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है

16. लैटेराइट मिट्टी के संबंध में कौन-सी बात असत्य है?
(A) इसका निर्माण निक्षालन एवं केशिका क्रिया द्वारा होता है
(B) यह मिट्टी अम्लीय प्रकार की होने के कारण कम उपजाऊ है
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है
(D) यह मिट्टी कंकरीली और छिद्रयुक्त होती है
उत्तर:
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है

17. लैटेराइट मिट्टी का सबसे ज्यादा उपयोग किस कार्य में किया जाता है?
(A) कृषि में
(B) चरागाहों में
(C) झाड़ीनुमा वनों में
(D) भवन-निर्माण में
उत्तर:
(D) भवन-निर्माण में

18. ‘बेट’ भूमि कहा जाता है
(A) तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली नालों व नालियों से कटी-फटी भूमि को
(B) उभरे हुए मिट्टी के दरों को
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को
(D) चंबल क्षेत्र में पाई जाने वाली क्षत-विक्षत भूमि को
उत्तर:
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को

19. भारत में मृदा अपरदन का सबसे प्रमुख कारण है?
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन
(B) वायु द्वारा मिट्टी का अपवाहन
(C) सरिता अपरदन
(D) जलवायविक दशाएँ
उत्तर:
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन

20. भारत में मृदा की ऊपरी परत के हास का प्रमुख कारण है-
(A) वायु अपरदन
(B) अत्याधिक निक्षालन
(C) जल अपरदन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जल अपरदन

21. देश में हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है?
(A) जिप्सम का बढ़ता प्रयोग
(B) अतिचारण
(C) अति सिंचाई
(D) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर:
(C) अति सिंचाई

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
मृदा को मूल पदार्थ अथवा पैतृक पदार्थ कहाँ से प्राप्त होता है?
उत्तर:
चट्टानों से।

प्रश्न 2.
भारत में किस मिट्टी का विस्तार सबसे अधिक क्षेत्रफल पर है?
अथवा
भारत में उत्तरी मैदान में किस मिट्टी का विस्तार अधिक है?
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी का।

प्रश्न 3.
दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार पाया जाता है?
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 4.
काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
उत्तर:
कपास एवं गन्ना।

प्रश्न 5.
लाल मिट्टी के लाल रंग का क्या कारण है?
उत्तर:
लोहांश की अधिक मात्रा।

प्रश्न 6.
राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
उत्तर:
पवन।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 7.
चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
उत्तर:
लैटेराइट मिट्टी।

प्रश्न 8.
कौन-सी मिट्टी खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती?
उत्तर:
पीली मिटी।

प्रश्न 9.
बांगर मिट्टी को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पुरातन काँप मिट्टी।

प्रश्न 10.
लाल या पीले रंग वाली मिट्टी का नाम बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट।

प्रश्न 11.
काली मिट्टी पाए जाने वाले किसी एक राज्य का नाम बताएँ।
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 12.
नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जो मृदा मिलती है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
नूतन काँप मिट्टी।

प्रश्न 13.
मरुस्थलीय मिट्टी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बलुई मिट्टी।

प्रश्न 14.
वायु अपरदन सबसे अधिक कहाँ होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय भागों में।

प्रश्न 15.
खड़ी ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन रोकने के लिए कौन-सी विधि अपनाई जाती है?
उत्तर:
समोच्चरेखीय जुताई।

प्रश्न 16.
पहाड़ों और पठारों पर मिट्टी की परत पतली क्यों होती है?
उत्तर:
क्योंकि ढाल एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण वहाँ मिट्टी टिक नहीं पाती।

प्रश्न 17.
जलोढ़ मिट्टियों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अपरदित पदार्थों के निक्षेपण से।

प्रश्न 18.
जलोढ़ मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान क्यों होता है?
उत्तर:
मिट्टी के मुलायम होने के कारण।

प्रश्न 19.
मरुस्थलीय मिट्टी में लहलहाती फसलें कैसे उगाई जा सकती हैं?
उत्तर:
सिंचाई की सुविधाएँ देकर।

प्रश्न 20.
पर्वतीय मिट्टी चाय के लिए उपयोगी क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
पर्वतीय मिट्टी तेज़ाबी होती है जो चाय में ‘फ्लेवर’ पैदा करती है।

प्रश्न 21.
वृक्षारोपण मृदा के संरक्षण में कैसे सहायता करते हैं?
उत्तर:
वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांध देती हैं।

प्रश्न 29.
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में प्राकृतिक वनस्पति की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवांश (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक (Interesting) सम्बन्ध पाया जाता है।

प्रश्न 30.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे हुआ है? यह भारत में कहाँ-कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
निर्माण आधुनिक मान्यता के अनुसार, काली मिट्टी ज्वालामुखी विस्फोट से बनी दरारों से निकले पैठिक लावा (Basic Lava) के जमाव से बनी है।
विस्तार-यह मिट्टी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात तथा तमिलनाडु के लगभग 5 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी के बाद देश में काली मिट्टी का विस्तार सबसे बड़े क्षेत्र पर है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
अथवा
मृदा की विशेषताएँ किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? किन्हीं दो उदाहरणों से इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा या मिट्टी एक अत्यन्त मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी के निर्माणकारी विभिन्न घटकों का संयोजन मिट्टी के उपजाऊपन को निर्धारित करता है। अधिक उपजाऊ और गहरी मिट्टी में कृषि अर्थव्यवस्था समृद्ध तथा अधिक जनसंख्या के पोषण में समर्थ होती है। इसके विपरीत, कम गहरी व कम उपजाऊ मिट्टी में कृषि का विकास कम होता है जिससे वहाँ जनसंख्या का घनत्व और लोगों का जीवन-स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। सघन जनसंख्या वाले पश्चिम बंगाल के डेल्टाई प्रदेश एवं केरल के तटीय मैदान दोनों में समृद्ध जलोढ़ मिट्टी के कारण उन्नतशील कृषि पाई जाती है जबकि तेलंगाना की कम गहरी व मोटे कणों वाली मिट्टी और राजस्थान की रेत उन्नत कृषि को आधार प्रदान नहीं कर पाई।

प्रश्न 2.
भूमि का ढाल अथवा उच्चावच मिट्टी की निर्माण प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
भूमि का ढाल मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया को कई प्रकार से प्रभावित करता है-
(1) तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिससे मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है।

(2) ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के निर्माण के सक्रिय एवं निष्क्रिय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा निर्माण के पाँच कारकों में से दो सक्रिय व तीन निष्क्रिय कारक होते हैं-
(1) सक्रिय कारक (Active Factors) मृदा निर्माण में जलवायु और जैविक पदार्थ सक्रिय कारक माने जाते हैं क्योंकि इनकी क्रियाशीलता के कारण ही चट्टानों का अपघटन (Decomposition) होता है और कुछ नए जैव-अजैव यौगिक (Compounds) तैयार होते हैं।

(2) निष्क्रिय कारक (Passive Factors)-जो कारक मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया में स्वयं पहल नहीं करते, निष्क्रिय कारक कहलाते हैं। वे हैं-जनक पदार्थ, स्थलाकृति और विकास की अवधि।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 4.
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह मिट्टी हल्के भूरे व पीले रंग की होती है।
  • अधिकतर स्थानों पर यह भारी दोमट व अन्य स्थानों पर यह बलुही और चिकनी होती है।
  • भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जलोढ़ मिट्टी की गहराई अलग-अलग होती है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस व वनस्पति अंश (ह्यूमस) की कमी होती है, परन्तु पोटाश और चूरा पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ होती है।
  • यह प्रवाहित (Transported) मिट्टी है जिसमें जन्म से जमाव तक के लम्बे चट्टानी मार्ग में अनेक रासायनिक तत्त्व आ मिलते हैं।
  • मुलायम होने के कारण इस मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान और कम खर्चीला होता है।
  • जलोढ़ मिट्टी में गहन कृषि (Intensive Farming) की जाती है; जैसे चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास, तिलहन, दालें, तम्बाकू व हरी सब्ज़ियाँ इस मिट्टी में बहुतायत से उगाई जाती हैं।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टियों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संरचना और उपजाऊपन के आधार पर जलोढ़ मिट्टियों के तीन उप-विभाग हैं-
1. खादर मिट्टियाँ–नदी तट के समीप नवीन कछारी मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं। नदियों की बाढ़ के कारण यहाँ प्रतिवर्ष जलोढ़क की नई परत बिछ जाने के कारण यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। इसे ‘बेट’ भूमि भी कहा जाता है।

2. बाँगर मिट्टियाँ-पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊँचे प्रदेश को बाँगर कहते हैं। यहाँ बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। बाँगर में मृतिका का अंश अधिक पाया जाता है। इसमें कैल्शियम संग्रथनों अर्थात् कंकड़ों की भरमार होती है। इसे ‘धाया’ भी कहते हैं।

3. न्यूनतम जलोढ़ मिट्टियाँ यह नदियों के डेल्टाओं में पाई जाने वाली दलदली, नमकीन और अत्यन्त उपजाऊ मिट्टियाँ होती हैं। इनके कण अत्यन्त बारीक होते हैं। इनमें ह्यूमस, पोटाश, चूना, मैग्नीशियम व फॉस्फोरस अधिक मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 6.
भारत के उत्तरी मैदान तथा प्रायद्वीपीय पठार की मिट्टियों में मूलभूत अन्तर क्या है?
उत्तर:
भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। यहाँ की मिट्टी हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार दोनों से ही निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई गई है। इसमें महीन कणों वाली मृत्तिका पाई जाती है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ (Permanent Soils) कहलाती हैं। ये प्रायः मोटे कणों वाली और कम उपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 7.
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विशेषताएँ-

  1. रंग की गहराई के आधार पर काली मिट्टी के तीन प्रकार होते हैं-(a) छिछली काली मिट्टी, (b) मध्यम काली मिट्टी तथा (c) गहरी काली मिट्टी।।
  2. यह अपने ही स्थान पर बनकर पड़ी रहने वाली स्थायी मिट्टी है।
  3. इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम कार्बोनेट, एल्यूमीनियम व पोटाश अधिक पाया जाता है, परन्तु इसमें जीवित पदार्थों, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा कम पाई जाती है।
  4. लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण इस मिट्टी का रंग काला होता है।
  5. उच्च स्थलों पर पाई जाने वाली मिट्टी का उपजाऊपन निम्न स्थलों व घाटियों की काली मिट्टी की अपेक्षा कम होता है।
  6. काली मिट्टी में कणों की बनावट घनी और महीन होती है जिससे इसमें नमी धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है। इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है।
  7. जल के अधिक देर तक ठहर सकने के गुण के कारण यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए श्रेष्ठ है।
  8. इस मिट्टी का प्रमुख दोष यह है कि ग्रीष्म ऋतु में सूख जाने पर इसकी ऊपरी परत में दरारें पड़ जाती हैं। वर्षा ऋतु में यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है। दोनों दशाओं में इसमें हल चलाना कठिन हो जाता है। अतः पहली बारिश के बाद इस मिट्टी की जुताई ज़रूरी है।
  9. कपास के उत्पादन के लिए यह मिट्टी अत्यन्त उपयोगी है। अतः इसे काली कपास वाली मिट्टी भी कहते हैं। गन्ना, तम्बाकू, गेहूँ व तिलहन के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।

प्रश्न 8.
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. वृक्षारोपण-वृक्षारोपण मृदा-संरक्षण का सबसे सशक्त उपाय है। जिन क्षेत्रों में वनों का अभाव है वहाँ वर्षा के जल से मिट्टी के कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में लगाए गए वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँध देती हैं व वृक्ष तेज़ हवाओं के कारण होने वाली मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं। साथ ही वृक्षों के अनियोजित कटाव को भी रोकना होगा। यदि विकास कार्यों हेतु वृक्ष काटने भी पढ़ें तो आस-पास नये वृक्ष लगाना भी आवश्यक है।

2. कृषि प्रणाली में सुधार भारत के कई स्थानों में की जाने वाले दोषपूर्ण कृषि प्रणाली में सुधार लाकर भी मिट्टी का संरक्षण किया जा सकता है। इसमें फसलों का चक्रण, सीढ़ीदार कृषि व ढलानों पर जल का वेग रोकने के लिए समोच्च रेखीय जुताई करना प्रमुख है। खेतों की मेड़बन्दी करना व उर्वरता बढ़ाने हेतु कृषि-भूमि को कुछ समय के लिए परती (Fallow) छोड़ना भी भूमि-संरक्षण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 9.
मृदा अपरदन भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु क्यों माना जाता है? मृदा अपरदन की हानियाँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
मृदा भारत के करोड़ों लोगों व करोड़ों पशुओं के भोजन का आधार है। भारत में मृदा अपरदन ने भयंकर रूप धारण कर रखा है। इसलिए इसे भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु माना जाता है। मृदा-अपरदन से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  • भीषण तथा आकस्मिक बाढ़ों का प्रकोप।
  • सूखे (Drought) की लम्बी अवधि जिससे फसलों को नुकसान होता है।
  • कुओं व ट्यूबवलों, नलकूपों का जल-स्तर (चोवा) नीचे चला जाता है व सिंचाई में बाधा पहुँचती है।
  • बालू के जमाव से नदियों, नहरों व बन्दरगाहों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
  • उपजाऊ भूमि के नष्ट होने से कृषि की उत्पादकता कम होती है।
  • अवनालिका अपरदन से कृषि-योग्य भूमि में कमी आती है।

प्रश्न 10.
मृदा की उर्वरा-शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिएँ?
उत्तर:
कृषि भूमि पर निरन्तर खेती करने से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है। उर्वरा-शक्ति को बनाए रखने के लिए . निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ-
1. भूमि को परती छोड़ना (Fallow Land) कृषि की जमीन को लगातार जोतने की बजाय उसे एक दो वर्षों के लिए परती छोड़ देनी चाहिए। परती छोड़ने से वायु, वनस्पति (घास), कीड़े-मकौड़े आदि ऐसी जमीन पर उर्वरा-शक्ति बढ़ाते हैं।

2. फसलों का हेर-फेर (Rotation of Crops)-खेत में फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। विभिन्न पौधे मिट्टी से विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व खींचते हैं और कछ तत्त्व छोडते हैं। अतः फसलों के हेर-फेर से मिट्टी में लगातार एक प्रकार के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते, बल्कि दूसरी फसलों से उनकी पूर्ति हो जाती है।

3. गहरी जुताई (Deep Ploughing) कृषि-भूमि को काफी गहराई तक जोतना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के खनिज तत्त्वों का मिट्टी में पूरी तरह मिलान हो जाता है।

4. रासायनिक खादों का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizers)-मिट्टी में समय-समय पर रासायनिक खाद तथा जैविक उर्वरक आदि का प्रयोग करते रहना चाहिए।

प्रश्न 11.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषताएँ किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
भू-पटल पर पाए जाने वाले असंगठित शैल चूर्ण की पर्त, जो पौधों को उगने तथा बढ़ने के लिए जीवांश तथा खनिजांश प्रदान करती है, उसे मृदा कहते हैं। यह एक बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा है। इस पर अनेक मानवीय क्रियाएँ निर्भर करती हैं। मिट्टी कृषि, पशु-पालन तथा वनस्पति जीवन का आधार है। बहुत-से देशों की अर्थव्यवस्था मिट्टी के उपजाऊपन पर निर्भर करती है। विश्व के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य अपने भोजन के लिए मृदा की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करते हैं। जिन क्षेत्रों की भूमि अनुपजाऊ होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व तथा लोगों का जीवन-स्तर निम्न होता है।

उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल का डेल्टाई क्षेत्र और केरल तट अति उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से निर्मित हैं। इसलिए ये क्षेत्र सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व के प्रदेश हैं तथा यहाँ उन्नत कृषि की जाती है। इसके विपरीत तेलंगाना में मोटे कणों की मिट्टी पाई जाती है और राजस्थान में रेतीली मिट्टी मिलती है। यह मिट्टी कृषि के योग्य नहीं है। इसलिए उन क्षेत्रों में जनसंख्या विरल है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा-निर्माण करने वाले विभिन्न घटकों या कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा-निर्माण करने वाले मुख्य घटक या कारक निम्नलिखित हैं-
1. जनक-सामग्री अथवा मूल पदार्थ-मिट्टी का निर्माण करने वाले जनक पदार्थों की प्राप्ति चट्टानों से होती है। चट्टानों के अपरदन और अपक्षय से बने चूर्ण से ही मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ कहलाती हैं।

2. उच्चावच-तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिसके कारण मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है। ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

3. जलवायु-भारत में तापमान और वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का जन्म हुआ है। उष्ण और आर्द्र प्रदेशों की मिट्टियाँ मोटाई और उपजाऊपन में शीतल एवं शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों से काफी भिन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त, मिट्टी में जल रिसने की मात्रा और सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति भी, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, जलवायु द्वारा नियन्त्रित होती है।

4. प्राकृतिक वनस्पति-मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवाश्म (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक सम्बन्ध पाया जाता है।

5. विकास की अवधि अथवा समय-मिट्टी का निर्माण एक धीमी किन्तु सतत् प्रक्रिया है। ऐसा मानना है कि दो सेण्टीमीटर मोटी मिट्टी की विकसित परत को बनाने में प्रकृति को लगभग दो शताब्दियाँ लग जाती हैं। मिट्टी का विकास तीन अवस्थाओं में होता है-

  • युवा अवस्था
  • प्रौढ़ अवस्था व
  • जीर्ण अवस्था।

अतः कहा जा सकता है कि मिट्टी ठोस, तरल व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रिया का परिणाम है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मृदा क्या है? मृदा के प्रकार बताइए और जलोढ़ मृदा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा-भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश और खनिजांश प्रदान करती है मृदा कहलाती है। मिट्टियों के गुण, रंग व बनावट के आधार पर भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं-

  • काली मिट्टी
  • लैटेराइट मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी
  • लाल और पीली मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • खारी खड़िया मिट्टी
  • दलदली मिट्टी।

1. काली मिट्टी (Black Soil) काली मिट्टी में महीन कण वाली मृत्तिका अधिक होती है। इस कारण इसमें पानी के रिसने की सम्भावना नहीं होती। यह मिट्टी कठोर प्रकार की होती है। यह ज्वालामुखी के लावा से बनती है। यह काले रंग की बारीक कणों वाली होती है। इसे रेगर (Ragur) के नाम से भी जाना जाता है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। इसमें अधिक जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती। यह मिट्टी अधिक मात्रा में नमी ग्रहण कर सकती है। इसमें चूना, पोटाश, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। यह मिट्टी दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश में अधिक मात्रा में पाई जाती है। कपास की खेती के लिए यह मिट्टी बहुत उपजाऊ है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ 1

2. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस प्रकार की मिट्टी उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाई जाती है। भारी वर्षा के कारण इसमें चूना व सिलिका घुल जाते हैं और एल्युमीनियम की मात्रा अधिक हो जाती है। चूने के अभाव के कारण यह मृदा अम्लीय होती है। पठारों और पहाड़ियों पर इस मिट्टी का निर्माण अधिक होता है। इस मिट्टी का रंग लौह-ऑक्साइड तत्त्व के कारण लाल होता है। ओडिशा के पूर्वी घाट क्षेत्र में यह मिट्टी अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा नमी क्षेत्र को छोड़कर बहुत कम पाई जाती है। ऊँचे भागों की लेटेराइट मिट्टी अनुपजाऊ होती है। यह नाइट्रोजन, चूना, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होने के कारण कम उपजाऊ है। मिट्टी में घास, झाड़ियाँ बहुत उगती हैं। यह मिट्टी छोटा नागपुर. का पठार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा असम में पाई जाती है।

3. पर्वतीय मिट्टी (Mountaineous Soil)-मैदान की अपेक्षा पर्वतीय मिट्टियों में अधिक विभिन्नताएँ होती हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ आग्नेय चट्टानों तथा इनके पदार्थों के विघटन होने के कारण बनी हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ ऊँचाई के अनुरूप अलग-अलग पाई जाती हैं। इनके तल की मिट्टियाँ क्षितिजीय वितरण के लिए होती हैं। ऊँचे पर्वत की मिट्टियाँ ऊपरी ढाँचे से युक्त होती हैं। निचले भागों में अपेक्षाकृत पूर्ण निर्मित व समान रूप से वितरित मिट्टियाँ पाई जाती हैं। धरातल व ढालों के प्रभाव के कारण इसकी गहराई में अन्तर मिलता है।

ये मिट्टियाँ लम्बे समय तक कृषि के उपयोग में लाई जाती हैं। पर्याप्त नमी के कारण विभिन्न खनिजों का जमाव, फास्फोरस, जिप्सम, चूना आदि की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टियों का निर्माण प्रतिवर्ष होता रहता है।

4. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil) भारत की मरुस्थलीय मिट्टी में अनुसन्धान ‘भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्’ कर रही है। इसने हाल ही में राजस्थान के मरुस्थल के बारे में जानकारी उपलब्ध की है। ये मिट्टियाँ मूल रूप से गंगा सिन्ध मैदान का भाग हैं। ये मिट्टियाँ उच्च तापमान व शुष्कता से निर्मित होती हैं। इसका रंग काला, लाल, भूरा व स्लेटी होता है। ये एक प्रकार की स्थानान्तरित कछारी मिट्टियाँ हैं। इनमें उर्वरा शक्ति बहुत कम होती है। इसमें क्षारीय तत्त्व, जैवकीय तत्त्व, नाइट्रोजन व ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है। इसकी रन्ध्रता से पानी का अधिक तेजी से रिसाव होता है। पैतृक पदार्थों से विघटित होकर ये मिट्टियाँ खिट के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।

5. लाल मिट्टी (Red Soil)-लाल मिट्टी भारत के दक्षिण पठार के मुख्य ट्रेप (Trap) के बाहरी भागों तक पाई जाती है। पूर्वी तथा पश्चिम घाटों के ढाल, हजारीबाग तथा छोटा नागपुर पठार, दामोदर की घाटी तथा अरावली पर्वत श्रेणी इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। इसकी बनावट बलुई व दोमट कणों की है। यह उपोष्ण प्रदेशों में कम, विक्षलित वर्षा वाले वनों में गहरे लाल रंग के रूप में पाई जाती है। ये मिट्टियाँ अधिक मोटी व उपजाऊ होती हैं। ये मिट्टियाँ ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तरी मध्य आन्ध्र प्रदेश तथा पूर्वी केरल राज्यों में विस्तृत रूप से फैली होती हैं। लाल दानेदार मिट्टी कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है। यह मिट्टी कम उर्वरा शक्ति वाली होती है। इसकी भौतिक संरचना रेगर प्रकार की होती है।

6. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) यह भारत के उत्तरी मैदान की प्रमुख मिट्टी है। उत्तरी भारत की नदियों द्वारा बिछाई गई मिट्टी भारतीय पठार में पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं, नर्मदा, ताप्ती की निचली घाटियों व गुजरात में पाई जाती है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है। यहाँ की पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बिछाई गई मिट्टी में चूने की मात्रा पूर्ण रूप से पाई जाती है। यह मिट्टी शुष्क छ स्थानों पर खारी मिट्टी के बड़े टुकड़े सोडियम, कैल्शियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम के जमा होने से बनती है। इस मिट्टी में रेह अथव कल्लर भी पाई जाती है। इस मिट्टी पर जुताई बड़ी आसानी से हो जाती है। इसमें खाद मिलाकर सिंचाई करने के बाद वर्ष में कई फसलें प्राप्त की जा सकती हैं। इस भाग में वर्षा के असमान वितरण के कारण कई तत्त्वों की न्यूनाधिकता पाई जाती है। यह मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति के कारण भारतीय कृषि में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

7. खारी खड़िया मिट्टियाँ (Brakish Soil)-खारी लवण-युक्त मिट्टियाँ शुष्क मरुस्थल में पाई जाती हैं। इस मिट्टी वाले स्थानों पर लवण धरातल पर विक्षालन की बजाय निचली परतों में एकत्रित हो जाते हैं और धीरे-धीरे मिट्टी को लवण-युक्त बना देते हैं। इसकी ऊपरी सतह पर नमक की परत जमा हो जाती है। यह नमक की परत उपजाऊ शक्ति को कम कर देती है। इसमें सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में पाई जाती है।
मृदाएँ

8. दलदली मिट्टी (Marshy Soil)-दलदली और पीट मिट्टियाँ, जहाँ बहुत गहरा कीचड़ होता है, वहाँ पाई जाती हैं। उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र क्षेत्र जहाँ अपर्याप्त जल प्रवाह होता है, वहाँ दलदली मिट्टियाँ विकसित होती हैं। ये अत्यधिक अम्लीय अपरिष्कृत विनिष्ट वनस्पतिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं। ये बाढ़ के मैदानों पर निर्मित होती हैं, जो विभिन्न अवधियों में जलमग्न हो जाती हैं और कीचड़ तथा तलछट के निक्षेपों से युक्त हो जाती हैं। यह मिट्टी केरल, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 3.
मृदा अपरदन से आपका क्या तात्पर्य है? इसके प्रकार तथा कारण बताएँ।
अथवा
मृदा अपरदन क्या है? इसके प्रकारों तथा कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion)-प्रकृति की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टियों के ह्रास को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन जल तथा वायु के परिणामस्वरूप होता है। विभिन्न साधन, जो किसी-न-किसी रूप में सक्रिय रहते हैं, धरातल को निरन्तर काटते-छाँटते रहते हैं, इनमें बहता हुआ जल, हवा, हिमानी आदि प्रमुख प्राकृतिक साधन हैं। मिट्टियों के अपरदन में मानवीय क्रियाकलाप का भी योगदान कम नहीं है। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के तकनीकी साधन अपनाकर मिट्टी के कटाव को बढ़ावा देता है। वर्तमान समय में भूमि के अधिकतम उपयोग, अधिकतम रासायनिक क्रियाओं व खाद का उपयोग अव्यवस्थित कृषि पद्धति आदि करने से मिट्टी का कटाव अधिक हो रहा है।

मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion)-मृदा अपरदन मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  • जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)
  • वायुद अपरदन (Acolian Erosion)
  • समुद्री अपरदन (Marine Erosion)

1. जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)-जल के विभिन्न रूप प्रभावित जल, एकत्रित जल, नदी पोखरों, झरनों, हिमानी द्वारा मिट्टी का कटाव को जलीय अपरदन कहते हैं। इसमें मिट्टियाँ अपनी मूलचट्टानों को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर जमा हो जाती हैं। बहते हुए जल द्वारा वहाँ अपरदन कई रूप में होता है
(1) अवनलिका अपरदन (Gully Erosion)-प्रथम अवस्था में मिट्टियाँ इस प्रकार का अपरदन पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों के तंग मार्ग में मिट्टी के कटाव करती हैं। इसमें कटाव लम्बवत रूप से होता है तथा घाटी गहरी होती जाती है।

(2) चद्दर अपरदन (Sheet Erosion)-इस प्रकार का अपरदन नदियों के लिए तलीय भाग के पानी द्वारा होता है। इसमें अपरदन परतों के रूप में होता है, इसलिए इसे चद्दर अपरदन कहते हैं।

(3) सरिता अपरदन (River Erosion)-जब नदी अपनी वृद्ध अवस्था में छोटी-छोटी जल धाराओं में बँट जाती है और मिट्टी की ऊपरी परत (महीन व चिकने कणयुक्त) को काट देती है, तो उसे सरिता अपरदन कहा जाता है।

(4) नदी तटीय कटाव (Riparian Erosion) यह अपरदन नदियों के तेज प्रवाह के कारण होता है। इसमें नदियाँ तटीय भागों को अधिक अपरदित करती हैं। इसका निर्माण नदी की सर्पाकार अवस्था में भी मिलता है।

(5) छपछपाना कटाव (Splash Erosion)-जब वर्षा रुक-रुककर होती है, तो इस क्रिया से मिट्टी ढीली हो जाती है, जो बाद में पानी के साथ बह जाती है। इसे छपछपाना कटाव कहते हैं।

2. वायुद अपरदन (Acolian Erosion)-वायु अपनी प्राकृतिक शक्ति द्वारा मैदानी तथा मरुस्थलों की मिट्टी को अपने साथ उड़ा ले जाती है और उसे दूसरे स्थान पर निक्षेपण कर देती है। हवा द्वारा मिट्टियों का अपरदन व निक्षेपण विस्तृत भागों में होता है। मरुस्थलों में इस प्रकार का अपरदन व निक्षेपण कई कि०मी० तक होता रहता है। इसमें वायु का वेग तेज होता है। जिन क्षेत्रों में अव्यवस्थित कृषि होती है और भूमि बारम्बार जोत से ढीली हो जाती है, उसे वायु अपने साथ उड़ा ले जाती है। इस प्रकार का अपरदन उपजाऊ भाग की मिट्टियाँ उड़ाकर उसे अनुपजाऊ बना देता है। मिट्टियों की निक्षेपण क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार की मरुस्थलीय स्थलाकृतियाँ बनती व बिगड़ती रहती हैं। जिन भागों पर ये मिट्टियाँ बिछा दी जाती हैं, वहाँ मिट्टी की पतली परत का निर्माण हो जाता है, जो बहुत उपजाऊ होती है, लेकिन पानी के अभाव के कारण अनुपजाऊ हो जाती है।

3. समुद्री अपरदन (Marine Erosion)-नदियों व झीलों आदि की लहरों द्वारा समुद्र के तटवर्ती भागों का अपरदन होता है। ये लहरें धीरे-धीरे तटीय भागों को अपरदित करना शुरू कर देती हैं और वहाँ अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण कर देती हैं। ये लहरें दलदल का भी निर्माण करती हैं, जिससे खारी मिट्टियों का निर्माण होता है। लहरें तटीय भागों पर गहरी नालियों का निर्माण कर देती हैं तथा उपजाऊ भूमि को अनुपयुक्त बना देती हैं। ज्वार-भाटा भी तटीय कटावों में सहयोगी होता है।

इस प्रकार पानी की क्रियाओं द्वारा या हवाओं द्वारा निरन्तर मिट्टियों का कटाव होता रहता है। मिट्टी अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion) मृदा अपरदन के निम्नलिखित कारण हैं-
1. वर्षा की भिन्नता (Variability of Rainfall) अलग-अलग क्षेत्रों में वर्षा के वितरण में भिन्नता पाई जाती है। जहाँ पर कम वर्षा होती है, वहाँ मिट्टी शुष्क होकर अपरदित होने लगती है। कहीं-कहीं पर पानी से दरारें व मिट्टी भुरभुरी होकर बिखर जाती है। अतः वर्षा का असमान वितरण भी मिट्टी कटाव में सहायक होता है।

2. निरन्तर कृषि (Regular Cultivation)-लगातार कई वर्षों तक एक ही क्षेत्र पर कृषि करने से मिट्टियों का कटाव होता है। इसकी उपजाऊ शक्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है और मिट्टी में रासायनिक तत्त्वों की कमी आ जाती है। स्थानान्तर कृषि से वनों का नाश होता है, इसके द्वारा भी काफी मात्रा में मिट्टी अपरदन होता है।

3. जंगलों की कटाई (Deforestation)-वर्तमान समय में जनसंख्या के विस्फोट के कारण वनों की निरन्तर कटाई से वन धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और ताप व वर्षा की दशाओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं, जिसका प्रभाव वनस्पति के विकास व वृद्धि पर पड़ता है। इस प्रकार धीरे-धीरे वन उजड़ जाते हैं और मृदा अपरदन बढ़ता जाता है।

4. नदियाँ (Rivers)-बहती हुई नदियाँ अपने रास्ते से मिट्टी बहाकर ले जाती हैं और रास्ते में अनेक खड्डों का निर्माण कर देती हैं। कई बार नदियाँ अपना रास्ता बदल देती हैं और नए तरीके से अपने मार्ग का निर्माण कर देती हैं। इस निर्माण क्रिया में भी मृदा अपरदन होता रहता है। बाढ़ के समय मृदा अपरदन काफी मात्रा में होता है।

5. हवाएँ (Airs) मरुस्थलीय भागों में वायु द्वारा मृदा अपरदन तीव्र गति से होता है। वायु अपने साथ मिट्टी को उड़ाकर ले जाती है और दूसरे स्थान पर उसका निक्षेपण कर देती है। वायु की तीव्रता के अनुसार मृदा अपरदन कम या ज्यादा होता है।

6. अनियन्त्रित पशुचारण (Uncontrolled Pastroalis) पशुचारण से पेड़-पौधों का विनाश होता है। पशु घास को जड़ सहित खींच लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूमि-क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। पशुओं के चलने-फिरने से भी मिट्टी ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार पशुओं के अनियमित चराने से मृदा अपरदन होता है।

7. कृषि के गलत तरीके (Faulty Methods ofCultivation)-आधुनिक समय में विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के कारण के अनेक विकसित तरीकों की खोज हो चुकी है। मानव अधिक फसल के लिए इन तरीकों का गलत प्रयोग करता है। इस कारण भी मृदा अपरदन होता है। खेतों को बारम्बार जोतना या आवश्यकता न होने पर जोतना, अनियन्त्रित सिंचाई, अधिक कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करना आदि से मिट्टियाँ अपना गुण खो देती हैं और इनका विघटन प्रारम्भ हो जाता है।

8. वनस्पति का विनाश (Destruction of Vegetation) प्राकृतिक वातावरण में धीरे-धीरे परिवर्तन से ताप में भिन्नता तथा इन क्षेत्रों की मिट्टियों के निर्माण में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। इस परिवर्तन के कारण पौधों व वनस्पति पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। वनस्पति नष्ट होनी शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे शुष्कता भी बढ़ती जाती है। वनस्पति आवरण के कम होने के कारण ताप की तीव्रता अधिक होती जाती है और मिट्टियों का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत का कितना क्षेत्रफल वनों के अंतर्गत आता है?
(A) 12.50%
(B) 15.49%
(C) 19.39%
(D) 33.25%
उत्तर:
(C) 19.39%

2. भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
(A) 9
(B) 12
(C) 14
(D) 16
उत्तर:
(C) 14

3. भारत में एक सींग वाले गैंडे कहाँ मिलते हैं?
(A) ओडिशा (उड़ीसा) में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) असम में
(D) गुजरात में
उत्तर:
(C) असम में

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

4. भारत के सबसे बड़े क्षेत्र में किन वनों का फैलाव है?
(A) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का
(B) कंटीले वनों का
(C) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों का
(D) डेल्टाई वनों का
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का

5. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों के वृक्ष हैं
(A) सागोन
(B) साल
(C) नीम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. मैंग्रोव वन किन क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में
(B) पर्वतीय क्षेत्रों में
(C) मैदानी क्षेत्रों में
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में
उत्तर:
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में

7. कंटीली झाड़ियाँ किन क्षेत्रों में पाई जाती हैं?
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में
(B) पर्वतीय क्षेत्रों में
(C) मैदानी क्षेत्रों में
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में
उत्तर:
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में

8. सुंदरवन जीव मंडल निचय किस राज्य में स्थापित है?
(A) पश्चिमी बंगाल में
(B) उत्तराखंड में
(C) मध्य प्रदेश में
(D) उत्तर प्रदेश में
उत्तर:
(A) पश्चिमी बंगाल में

9. भारत में पाई जाने वाली वनस्पति में बोरियल वनस्पति का अनुपात कितना है?
(A) 20%
(B) 30%
(C) 35%
(D) 40%
उत्तर:
(D) 40%

10. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन क्षेत्रों में वर्षा की कितनी मात्रा पाई जाती है?
(A) 75 cm से कम
(B) 100 cm
(C) 150 cm
(D) 200 cm से अधिक
उत्तर:
(D) 200 cm से अधिक

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

11. भारत में बाघ विकास कार्यक्रम परियोजना की शुरुआत की गई
(A) सन् 1973 में
(B) सन् 1974 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1976 में
उत्तर:
(A) सन् 1973 में

12. गिर वन किस प्राणी की शरणस्थली है?
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(C) शेर

13. भारत का राष्ट्रीय पशु है-
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(D) बाघ

14. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(A) मोर

15. भारतीय वन्य जीवमंडल का गठन कब किया गया-
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1972 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(A) सन् 1952 में

16. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम बनाया गया-
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1972 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(C) सन् 1972 में

17. हरा सोना कहा जाता है-
(A) कोयले को
(B) वृक्षों को
(C) पर्वतों को
(D) सागर को
उत्तर:
(B) वृक्षों को

18. महोगिनी उदाहरण है
(A) डेल्टाई वन का
(B) मरुस्थलीय वन का
(C) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन का
(D) उष्णकटिबंधीय शुष्क वन का
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन का

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
नंदा देवी जीवमंडल निचय किस प्रांत में स्थित है?
उत्तर:
उत्तराखंड।

प्रश्न 2.
भारत में वन्य प्राणी अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:
सन् 1972 में।

प्रश्न 3.
भारतीय वन्य जीवमंडल का गठन कब किया गया?
उत्तर:
1952 में।

प्रश्न 4.
भारत में देशज अथवा स्थापित अथवा मौलिक वनस्पति कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय क्षेत्र के अधिकांश भागों में।

प्रश्न 5.
भारत में चीनी-तिब्बती क्षेत्र से आने वाली वनस्पति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बोरियल वनस्पति।

प्रश्न 6.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों से प्राप्त हुई वनस्पति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
पुराउष्ण कटिबन्धीय जात।

प्रश्न 7.
बाघ परियोजना कब आरंभ की गई?
उत्तर:
1973 में।

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प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन हमेशा हरे क्यों दिखाई पड़ते हैं?
उत्तर:
विभिन्न जातियों के वृक्षों के पत्ते गिरने का समय अलग-अलग होने के कारण।

प्रश्न 9.
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी वन किन जलवायविक दशाओं में उगते हैं?
उत्तर:
वार्षिक वर्षा 100 से 200 सें०मी० तथा सारा वर्ष ऊँचा (24°C) तापमान।

प्रश्न 10.
भारत में पाई जाने वाली वनस्पति में बोरियल वनस्पति का अनुपात कितना है?
उत्तर:
40 प्रतिशत।

प्रश्न 11.
हिमालय में वनस्पति के प्रकार को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारक कौन-सा है?
उत्तर:
ऊँचाई।

प्रश्न 12.
प्राकृतिक वनस्पति का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति का दूसरा नाम अक्षत वनस्पति है।

प्रश्न 13.
वनस्पति जगत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वनस्पति जगत का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र में किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है।

प्रश्न 14.
मरुस्थल में किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
मरुस्थल में कांटेदार झाड़ियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 15.
पर्वत की ढलानों पर किस प्रकार के वन पाए जाते हैं?
उत्तर:
पर्वत की ढलानों पर शंकुधारी वन पाए जाते हैं।

प्रश्न 16.
पर्वतीय वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश, उत्तराँचल तथा जम्मू और कश्मीर।

प्रश्न 17.
एक सींग वाले गैंडे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
असम तथा पश्चिमी बंगाल के दलदल वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 18.
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर कौन-से वन फैले हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन फैले हैं।

प्रश्न 19.
खजूर तथा नागफनी किस प्रकार के वनों की वनस्पति है?
उत्तर:
खजूर तथा नागफनी कंटीले वनों की वनस्पति है।

प्रश्न 20.
सिमलीपाल जीव मंडल निचय कौन-से राज्य में स्थित है?
उत्तर:
ओडिशा में।

प्रश्न 21.
भारत में हाथी कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में हाथी असम, कर्नाटक तथा केरल में पाए जाते हैं।

प्रश्न 22.
भारत में जंगली गधे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
भारत में जंगली गधे कच्छ के रन में मिलते हैं।

प्रश्न 23.
भारत में याक कहाँ पाए जाते है?
उत्तर:
भारत में याक लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों पर पाए जाते हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का कितना क्षेत्रफल वनों के अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
19.39 प्रतिशत अथवा 637.3 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
वन किन भौगोलिक कारकों की देन होते हैं?
उत्तर:
जलवायु (धूप एवं वर्षा), समुद्र तल से ऊँचाई तथा भू-गर्भिक संरचना।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के कुछ प्रमुख वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर:
ताड़, महोगनी, रबड़, बाँस, बेंत तथा आबनूस।

प्रश्न 4.
डेल्टाई वनों के अन्य नाम बताइए।
उत्तर:
दलदली वन, ज्वारीय वन, मैंग्रोव वन।

प्रश्न 5.
डेल्टाई वनों के कुछ प्रमुख वृक्षों के नाम बताइए।
उत्तर:
ताज, ताड़, बेंत, नारियल, रोज़ोफरोश, सोनेरिटा व फीनिक्स इत्यादि।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह वनस्पति जो बिना मनुष्य की सहायता के किसी प्रदेश में अपने-आप उग आती है।

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प्रश्न 7.
औषधि देने वाले पाँच पौधों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • नीम
  • तुलसी
  • आंवला
  • सर्प गंधा
  • जामुन।

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के तीन वृक्षों के नाम लिखें।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के तीन वृक्षों के नाम महोगनी, रोजवुड और रबड़ है।

प्रश्न 9.
देशज वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह वनस्पति जो मूलरूप से भारतीय हो, उसे देशज वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 10.
विदेशज वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो वनस्पति विदेशों से भारत में आई है, उसे विदेशज वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 11.
हिमरेखा के पास वनस्पति के विकास की दशाएँ कैसी होती हैं?
उत्तर:
भारी ठण्ड के कारण वृक्षों में गाँठे पड़ जाती हैं और उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 12.
वृक्षों को ‘हरा सोना’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
उनके आर्थिक, औद्योगिक एवं पर्यावरणीय महत्त्व के कारण।

प्रश्न 13.
पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वातावरण एवं उसमें रहने वाले जीव आपस में घुल-मिलकर रहते हैं। इसी व्यवस्था को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का अभिन्न अंग है।

प्रश्न 14.
भारत के चार ‘जीवमण्डल निचय’ के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नीलगिरी जीवमण्डल निचय
  2. मानस जीवमण्डल निचय
  3. सुंदरवन जीवमण्डल निचय
  4. नंदा देवी जीवमण्डल निचय।।

प्रश्न 15.
भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है?
उत्तर:

  1. धरातल
  2. मृदा
  3. तापमान
  4. वर्षण
  5. सूर्य का प्रकाश।

प्रश्न 16.
कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-हाथी और बंदर
  2. पर्वतीय वन बारहसिंगा और याक।

प्रश्न 17.
संकटमयी जातियों तथा दुर्लभ जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. संकटमयी जातियाँ इस श्रेणी में वे जातियाँ आती हैं जो चारों ओर से खतरों से घिरी हुई हैं, उनके विलुप्त होने की पूरी सम्भावना है।उनकी संख्या बहुत थोड़ी रह गई है और उनका आवास भी काफी नष्ट हो चुका है।

2. दुर्लभ जातियाँ ये वे जातियाँ हैं जो संख्या में बहुत कम हैं और कुछ ही आवासों में जीवित हैं। उनके जीवन को तुरन्त कोई खतरा नहीं है, किन्तु उनके नष्ट होने की पूरी सम्भावना है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संकटापन्न जीवों के संरक्षण के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं? संकटापन्न जातियों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में संकटापन्न जातियों के संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए वन्य प्राणियों की गणना की जाती है तथा उन जीवों की नवीनतम स्थिति और प्रवृत्ति का अनुमान लगाया जाता है। बाघ संरक्षण के लिए टाइगर प्रोजैक्ट योजना चलाई गई है जिसमें बाघों के आवास को बचाया जाता है तथा उनकी संख्या के स्तर को बनाए रखा जाता है। संकटापन्न जातियाँ-बाघ, गैण्डा, समुद्री गाय।

प्रश्न 2.
वन्य-जीवन के महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1. आर्थिक महत्त्व-वन्य-जीवन से हमें अनेक उत्पादों की प्राप्ति होती है। अनेक जानवरों का उपयोग खेती, परिवहन तथा बोझा ढोने में किया जाता है।

2. पारिस्थितिक तन्त्र का नियमन वन्य-जीवन (पौधे और प्राणी) अपनी संख्या सन्तुलित तो रखते ही हैं, बल्कि खाद्य-शृंखला तथा प्राकृतिक चक्रों को भी नियमित करते हैं।

3. जीन बैंक के रूप में वन्य-जीवन में कुछ बहुत उपयोगी जीन होते हैं। फसलों की उत्तम जातियाँ उत्पन्न करने के लिए वैज्ञानिकों को उत्तम जीन वाले पौधों की ज़रूरत होती है। इसी प्रकार रोग-प्रतिरोधी पौधे उत्पन्न करने के लिए भी उत्तम जीनों की आवश्यकता होती है।

4. अनुसन्धान-पौधे तथा जन्तु बायो मेडिकल अनुसन्धान के अभिन्न अंग हैं।

5. मनोरंजनात्मक महत्त्व प्राणियों के व्यवहार को प्राकृतिक वातावरण में देखना अच्छा लगता है। पक्षी शरणस्थल तथा बड़े-बड़े एक्वेरियम मनुष्य का मन मोह लेते हैं। इससे मनुष्य का मनोरंजन होता है तथा पर्यटन का भी विकास होता है।

प्रश्न 3.
वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1972 में वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया जिसके अन्तर्गत-

  1. वन्य जीवन को वैधानिक संरक्षण
  2. वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबन्ध
  3. चोरी से शिकार करने वालों को कठोर दण्ड का प्रावधान
  4. शेर, बाघ, गेंडे व हाथियों के शिकार को दण्डनीय अपराध घोषित करना
  5. दुर्लभ व समाप्त हो रही प्रजातियों के व्यापार पर रोक (शाहतूश की शालों के व्यापार पर रोक)
  6. वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए समिति गठित करना जैसे प्रावधान किए गए।

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प्रश्न 4.
वनस्पति जात और वनस्पति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति जात और वनस्पति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वनस्पति ज्ञातवनस्पति
1. किसी विशिष्ट प्रदेश अथवा युग के पेड़-पौधों की विभिन्न जातियाँ, जिन्हें एक वर्ग में रखा जा सकता है, ‘बनस्पति जात’ कहलाती हैं।1. किसी विशिष्ट पर्यावरण में पनपने वाले पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों के समूह को ‘वनस्पति’ कहते हैं।
2. पर्यावरण में भिन्नता के कारण पेड़-पौधों की विभिन्न जातियाँ उगती और बढ़ती हैं।2. एक जैसे पर्यावरण में पाये जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे एक दूसरे के साहचर्य में पनपते हैं।
3. परस्पर मिलती-जुलती पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों को एक वर्ग में रखा जाता है और उस वर्ग का एक विशेष नाम होता है; जैसे भारत में पाए जाने वाले चीनी-तिब्बती क्षेत्र से प्राप्त पेड़-पौधों की जातियों के वर्ग को बोरियल कहते हैं।3. वनस्पति एक प्रदेश में विविध दृश्यावली प्रस्तुत करती है, जैसे-घास-भूमि, वनस्थली व झाड़ियाँ इत्यादि।

प्रश्न 5.
“मैंग्रोव वन सम्पन्न पारिस्थितिक तन्त्र हैं।” संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मैंग्रोव अपने आप में समृद्ध और सम्पन्न पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-system) हैं। अत्यधिक नमी, पर्याप्त धूप, गले-सड़े जैव पदार्थों से प्राप्त पोषक तत्त्व, नदियों के बहते जल से प्राप्त खनिजांश की बहुतायत के कारण ये वन जीवन के अनेक रूपों के पैदा होने, फलने व बढ़ने की अनकल प्राकृतिक दशाएँ प्रदान करते हैं। घने पत्तों (Foliage) की छाय में उलझी हुई मज़बूत जड़ों की सुरक्षा के कारण ये वृक्ष असंख्य जीव-जन्तुओं, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों, झींगों व अन्य जलीय जीवों के विकास, विशेष रूप से उनके प्रजनन काल में आश्रय-स्थली का काम करते हैं। ज्वारीय जल के संचरण के समय ये वृक्ष अपनी जड़ों के जाल से मुलायम कीचड़ को रोककर मिट्टी के पोषक तत्त्वों को कार्य समुद्र में न जाने देकर मृदा-संरक्षण में अनूठी भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 6.
चिड़ियाघर (Z00) तथा राष्ट्रीय उद्यान (National Park) में अंतर बताइए।
उत्तर:
चिड़ियाघर-चिड़ियाघर वह स्थान है, जहाँ पर जंगली पशु तथा पक्षी रखे जाते हैं। इन्हें पिंजरों में बंद रखा जाता है और नियमित समय पर भोजन दिया जाता है। राष्ट्रीय उद्यान-इसमें वनस्पति तथा पशु-पक्षियों को संरक्षित रखा जाता है। इसमें वन्य-प्राणियों को प्राकृतिक वातावरण में जीवन-निर्वाह करने दिया जाता है। इसमें पशु-पक्षी अपने भोजन की व्यवस्था उन्हीं सीमाओं में स्वयं करते हैं, जहाँ उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 7.
वनस्पति और वन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति और वन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वनस्पतिवन
1. किसी विशिष्ट पर्यावरण में पनपने वाले पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों के समूह को ‘वनस्पति’ कहते हैं।1. पेड़-पौधों से ढके हुए विशाल प्रदेश को ‘बन’ कहा जाता है।
2. एक जैसे पर्यावरण में पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे एक दूसरे के साहचर्य में पनपते हैं।2. वन से तात्पर्य परस्पर निकट उगने वाले पेड़ों से है।
3. बनस्पति एक प्रदेश में विविध दृश्यावली प्रस्तुत करती है, जैसे-घास-भूमि, वनस्थली व झाड़ियाँ इत्यादि।3. वन सामान्यतः एक ही प्रकार के पेड़ों की दृश्यावली प्रस्तुत करते हैं; जैसे-पर्णपाती वन, शंकु-धारी वन, सदाबहार वन इत्यादि।

प्रश्न 8.
घास और झाड़ियों में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
घास और झाड़ियों में निम्नलिखित अन्तर हैं-

घासझाड़ियाँ
1. यह आर्द्र उष्ण कटिबन्ध तथा मानसून प्रदेशों में उगती है।1. ये मरुस्थलीय क्षेत्रों में उगती हैं।
2. यह पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग होती है।2. आर्थिक दृष्टि से इनका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता।
3. घास के मैदान कृषि की दृष्टि से उपजाऊ होते हैं।3. झाड़ियों वाले मरुस्थलीय क्षेत्रों में कृषि सम्भव नहीं है।
4. यह हरी-भरी होती है।4. ये प्रायः कांटेदार होती हैं।
5. इसकी ऊँचाई कुछ सें०मी० से लेकर कुछ मीटरों तक होती है।5. इनकी ऊँचाई प्रायः मीटरों में मापी जा सकती है।

प्रश्न 9.
सदाबहार तथा डेल्टाई वन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
सदाबहार तथा डेल्टाई वन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

सदाबहार वनडेल्टाई वन
1. ये बन पश्चिमी तटीय मैदान, असम, मेघालय, नगालैण्ड, मणिपुर तथा पश्चिमी बंगाल में पाए जाते हैं।1. ये बन गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृण्गा तथा कावेरी आदि नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाए जाते हैं।
2. ये अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।2. ये उपजाऊ डेल्टाई मिट्टी के प्रदेशों में पाए जाते हैं।
3. इन वनों में ताड़, महोगनी तथा सिनकोना वृक्ष अधिक मिलते हैं।3. इनमें सुन्दरी, नारियल तथा मैंग्रोव वृक्ष अधिक हैं।
4. इन वनों में उपयोगी वृक्ष कम होते हैं।4. ये वन उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 10.
वनों का आर्थिक महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारत के वनों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. वन्नों की मुख्य उपजें-वनों से ईंधन तथा इमारती लकडी प्राप्त होती है। इन वनों में साल, सागवान तथा देवदार की लकडी इमारतों के काम के लिए महत्त्वपूर्ण समझी जाती है।

2. वनों की सामान्य उपजें वनों से अनेक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। वृक्षों की छाल से चमड़ा रंगने का काम लिया जाता है। चंदन की लकड़ी से सुगंधित तेल प्राप्त होता है। वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं। कुनैन तथा रबड़ जैसी उपयोगी वस्तुएँ भी वनों से प्राप्त होती हैं।

3. माँस, खाल तथा सींगों की प्राप्ति-वन प्रदेश शिकार के लिए उत्तम स्थान होते हैं, जहाँ शिकारी लोग शिकार करने जाते हैं। इनमें माँस, खाल, सींग इत्यादि वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।

4. वनों पर निर्भर उद्योग-वन संबंधी उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था के अंग हैं। भारतीय वनों पर आधारित मुख्य उद्योग; जैसे रेशम के कीड़े पालना, कागज़ उद्योग, लाख इकट्ठा करना, दियासलाई उद्योग, नारियल संबंधी उद्योग, प्लाईवुड उद्योग, रेयान उद्योग, खेल का सामान बनाना, फर्नीचर बनाना तथा औषधि आदि हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति (वनों) का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [B.S.E.H. March, 2017]
अथवा
भारत के मानचित्र पर पाँच प्रकार के वनों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में मुख्यतः पाँच प्रकार के वन पाए जाते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों और तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं। ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 सें०मी० से अधिक वर्षा के साथ कुछ समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है। क्योंकि ये क्षेत्र साल भर गर्म और आर्द्र रहते हैं, इसीलिए यहाँ हर प्रकार की वनस्पति-झाड़ियाँ, वृक्ष व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाइयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं। वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता। अतः ये वन साल भर हरे-भरे लगते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोजवुड, रबड़ और सिंकोना हैं।

2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन-ये वन भारत में सबसे अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं। इन वनों को मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70 सें०मी० से 200 सें०मी० तक वर्षा होती है। इन वनों के वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, पश्चिमी ओडिशा (उड़ीसा), छत्तीसगढ़, झारखंड तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों तक ये वन पाए जाते हैं। सागोन इन वनों की अधिक प्रमुख वृक्ष प्रजाति है। वर्ब, अर्जुन, साल, शीशम, बांस, रवैर, कुसुम, चंदन, तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाले हैं।

3. कंटीले वन तथा झाड़ियाँ-जिन क्षेत्रों में वर्षा 70 सेंमी० से भी कम होती है, वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन और झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं। अकासिया, खजूर (पाम), यूफोरबिया तथा नागफनी (कैक्टाई) यहाँ के पौधों की मुख्य प्रजातियाँ हैं।

4. पर्वतीय वन-
(i) आई शीतोष्ण कटिबंधीय वन-ये वन 1000 मी० से 2000 मी० तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट वृक्ष पाए जाते हैं।

(ii) शंकुधारी वन-ये वन 1500 मी० से 3000 मी० की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। चीड़, देवदार, सिल्वर-फर, स्यूस, सीडर इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष हैं।

(ii) शीतोष्ण कटिबंधीय वन एवं घास के मैदान ये वन और घास के मैदान 3000 मी० से 3600 मी० की ऊँचाई तक के प्रदेशों में पाए जाते हैं।

(iv) अल्पाइन वन-3600 मी० से अधिक ऊंचाई पर इस प्रकार के वन पाए जाते हैं। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।

5. मैंग्रोव वन-यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों, जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं, की महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी एवं बालू रित) इन तटों पर एकत्रित हो जाती है। मैंग्रोव एक प्रकार की ऐसी वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं। ये वन ब्रह्मपुत्र, गंगा, गोदावरी, महानदी, कावेरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाए जाते हैं। सुंदरवन इस प्रकार के वनों का प्रमुख उदाहरण है। इस वन में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसलिए इस वन को सुंदरवन के नाम से जाना जाता है। यह वन गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा प्रदेश में स्थित है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 1

प्रश्न 2.
भारतीय वन्य जीवों की विविधता पर भौगोलिक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, जलवायु के प्रकारों तथा विविध स्थलाकृतियों के कारण भारत में बड़ी संख्या में नाना प्रकार के वन्य-जीव पाए जाते हैं। अब तक विश्व में ज्ञात जीव-जन्तुओं की एक-तिहाई प्रजातियाँ भारत में विद्यमान हैं।
1. स्तनपायी जीव (Mammals) भारत के स्तनपायी जीवों में हाथी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हाथी मुख्यतः केरल, कर्नाटक तथा असम में पाया जाता है। यह उष्ण व आर्द्र जलवायु का जीव है। इसके अतिरिक्त गोर (Indian Bison) भारतीय भैंस, नील गाय, ऊँट, चौ सिंगा, भारतीय जंगली गधा, काला हिरण तथा एक सींग वाला गैंडा इत्यादि अन्य महत्त्वपूर्ण स्तनपायी जीव हैं जो भारत में पाए जाते हैं। हिरण की यहाँ अनेक जातियाँ पाई जाती हैं; जैसे कस्तूरी मृग, हांगुल, दलदली हिरण, चीतल, शामिन तथा पिसूरी।

2. माँसाहारी जीव (Carnivores)-माँसाहारी जीवों में एशियाई सिंह (Asiatic Lion), बाघ (चीता), तेंदुआ, लमचीता या बदली तेंदुआ, साह (Showleopard) तथा छोटी बिल्लियाँ प्रमुख हैं। शेर (सिंह) मुख्यतः गुजरात के गिर (Gir) वन क्षेत्र में पाया जाता है। संसार में अफ्रीका के बाहर पाया जाने वाला यह एकमात्र स्थान है जहाँ शेर पाए जाते हैं। अपनी शान (Majesty) और शक्ति (Power) के लिए प्रसिद्ध बाघ (Tiger) को राष्ट्रीय पशु होने का गौरव हासिल है। दुनिया में पाई जाने वाली बाघ की आठ प्रजातियों में बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्र में पाया जाने वाला ‘बंगाल टाइगर’ की बात ही कुछ और है।

3. बन्दर (Monkeys)-भारत में बन्दर की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें लंगूर प्रमुख है। भारत का एकमात्र कपिहुलक गिब्बन उत्तरी-पूर्वी भारत के वर्षा वनों (Rain Forests) में पाया जाता है। शेर जैसी पूँछ वाला बन्दर जिसके चेहरे पर बालों का एक घेरा होता है, दक्षिण भारत में पाया जाता है।

4. हिमालय के जीव-जन्तु (Himalayan Wild Life)-हिमालय में वास करने वाले प्राणियों में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, बड़े सींगों वाली पहाड़ी बकरी (Ibeso), मार खोर, छबूंदर, तापिर, साह तथा छोटा पांडा उल्लेखनीय हैं।

5. पक्षी (Birds) भारत में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। अन्य पक्षी तीतर, कोयल, बटेर, बत्तख, तोते, कबूतर, सारस, धनेश, शकरखोरा, बैया, चकोर तथा दर्जी पक्षी इत्यादि हैं।

6. अन्य प्राणी भारत में अनेक प्रकार के सरीसृप व उभयचर पाए जाते हैं। जलचरों में मछलियाँ, कछुए, मगरमच्छ व घड़ियाल प्रमुख हैं। घड़ियाल केवल भारत में पाए जाते हैं। गिरगिट, अनेक प्रकार की छिपकलियाँ, जहरीले नाग, अत्यन्त विषैले करेल तथा विषहीन धामिन जैसे साँप, भारत के वन्य-जीवन की विविधता को बढ़ाते हैं। बिना रीढ़ वाले प्राणियों में एक कोशिका वाले प्रोटोजोआ से लेकर कंटक देही प्राणी तक शामिल हैं। कीड़े, मकौड़ों व मोलस्क के भी यहाँ अनेक प्रकार पाए जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 3.
वन्य जीव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर क्या कदम उठाए गए हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणियों के बचाव की परिपाटी बहुत प्राचीन है। पंचतन्त्र और जंगल बुक इत्यादि की कहानियाँ हमारे । वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश में वन्य जीवन संरक्षण के लिए अनेक प्रभावी कदम उठाए गए-
(1) सन् 1952 में भारतीय वन्य जीवमण्डल (Indian Board for Wild Life-IBWL) का गठन किया गया।

(2) सन् 1972 में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया जिसके अन्तर्गत-
(i) वन्य जीवन को वैधानिक संरक्षण

(ii) वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबन्ध

(iii) चोरी से शिकार करने वालों को कठोर दण्ड का प्रावधान

(iv) शेर, बाघ, गेंडे व हाथियों के शिकार को दण्डनीय अपराध घोषित करना

(v) दुर्लभ व समाप्त हो रही प्रजातियों के व्यापार पर रोक (शाहतूश की शालों के व्यापार पर रोक)

(vi) वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए समिति गठित करना जैसे प्रावधान किए गए। इस अधिनियम को 1991 में पूर्णतया संशोधित कर दिया गया जिसके अन्तर्गत कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें कुछ पौधों की प्रजातियों को बचाने तथा संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण का प्रावधान है।

(vii) सन् 1980 में वन (संरक्षण) विधेयक द्वारा केन्द्रीय शासन की अनुमति के बिना किसी भी जंगल का किसी भी कार्य के लिए विनाश वर्जित किया गया।

(viii) अत्यधिक संकटापन्न जातियों के पुनर्वास के लिए विशेष परियोजनाएँ चलाई गईं; जैसे बाघ परियोजना, हिमचीता परियोजना, गेंडा परियोजना, लाल पांडा परियोजना, घड़ियाल प्रजनन तथा पुनर्वास परियोजना, गिर शेर शरण स्थल परियोजना, कस्तूरी मृग परियोजना, हंगुल परियोजना, मणिपुर थामिन परियोजना इत्यादि। लखनऊ के निकट कुकरैल के जंगल में बारहसिंघों, जंगली कुत्तों तथा लोमड़ी आदि के लिए पुनर्वास केन्द्र स्थापित किया गया है।

इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य भारत में इन प्राणियों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें। इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा। भारत में ‘वन्य जीवन’ की सुरक्षा के लिए जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं। देश में लगभग 103 नेशनल पार्क और 535 वन्य प्राणी अभयवन हैं।

प्रश्न 4.
वनों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ क्या हैं?
उत्तर:
प्रत्यक्ष लाभ-वनों के प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं-

  • वनों से ईंधन के लिए लकड़ी प्राप्त होती है।
  • वनों से हमें इमारती तथा फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी मिलती है।
  • वनों से भेड़-बकरियाँ पाली जाती हैं।
  • वनों से बहुत-से लोगों को रोजगार मिलता है; जैसे लकड़ी काटना, चीरना तथा ढोना आदि।
  • वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं।
  • वनों से सरकार को भी आय होती है।
  • वनों से बहुत-सी उपयोगी वस्तुएँ; जैसे गोंद, सुपारी, तारपीन का तेल, लाख तथा मोम आदि प्राप्त होती हैं।
  • अनेक प्रकार के उद्योग-धंधे; जैसे खेल का सामान, कागज़ बनाने का सामान, रेयान कपड़ा, प्लाईवुड आदि वनों पर आधारित हैं।

अप्रत्यक्ष लाभ-वनों के अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं-

  • वन वर्षा लाने में सहायक होते हैं।
  • वन पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं।
  • वन बाढ़ की भयंकरता को कम करते हैं।
  • वन प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
  • वन भूमि कटाव को रोकने में सहायक होते हैं।
  • वन भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
  • वन कहीं-कहीं पर दो देशों की प्राकृतिक सीमा भी बनाते हैं; जैसे भारत और बर्मा की सीमा।

प्रश्न 5.
प्रमुख जीव-मण्डल निचय के नामों को भारत के मानचित्र में दर्शाएँ।
अथवा
भारत के मानचित्र पर पाँच प्रकार के जीवमंडल निचय प्रदर्शित करें।
उत्तर:
प्रमुख जीव-मण्डल निचय के नाम निम्नलिखित तालिका में स्पष्ट किए गए हैं-

कम सेंजीव-मण्डल निचय का नामस्थिति (प्रदेश/राज्य)
1.नीलगिरीबायनाद, नगरह्नेल, बांदीपुर, मुदुमलार्इ, निलंबूर, सायलेंट वैली और सिरुवली पहाड़ियाँ (तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक)।
2.नंदा देवीचमोली, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों के भाग (उत्तराखंड)।
3.मानसकोकराझार, बोगाई गांव, बरपेटा, नलबाड़ी कामरूप व दारांग जिलों के हिस्से (असम) ।
4.सुंदरवनगंगा-व्रह्मपुत्र नदी तंत्र का डेल्टा व इसका हिस्सा (पश्चिम बंगाल)।
5.नोकरेकगारो पहाड़ियों का हिस्सा (मेघालय)।
6.मन्नार की खाड़ीभारत और श्रीलंका के बीच स्थित मन्नार की खाड़ी का भारतीय हिस्सा (तमिलनाह)।
7.ग्रेट निकोबारअंडमान-निकोबार के सुदूर दक्षिणी द्वीप (अंडमान निकोबार द्वीप समूह)।
8.कच्छगुजरात राज्य के कच्छ, राजकोट, सुरेन्द्रनगर और पाटन ज़िलों के भाग।
9.कोल्ड डेज़र्टहिमाचल प्रदेश में स्थित पिनवैली राष्ट्रीय पार्क और आस-पास के क्षेत्र, चंद्रताल, सारचू और किब्यर वन्यजीव अभयारण्य।
10.अचनकमर-अमरकटंकमध्य प्रदेश में अनुपुर और दिन दोरी जिलों के भाग और छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले का भाग।
11.सिमिलीपालमयूरभंज जिले के भाग (ओडिशा)।
12.डिन्नू-साईकोवाडित्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों के भाग (असम)।
13.दिहांग-देबांगअरुणाचल प्रदेश में सियांग और देबांग जिलों के भाग।
14.कंचनजंचाउत्तर और पश्चिम सिक्किम के भाग।
15.पंचमड़ीबेनूल, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा जिलों के भाग (मध्य प्रदेश)।
16.अगस्त्यमलाईकेरल में अगस्त्यथीमलाई पहाड़ियाँ।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. विश्व में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
(A) मॉसिनराम
(B) चेरापूँजी
(C) तुरा
(D) सिल्वर
उत्तर:
(A) मॉसिनराम

2. भारत की जलवायु है-
(A) शीतोष्ण कटिबंधीय
(B) उष्ण कटिबंधीय
(C) ध्रुवीय
(D) उपोष्ण कटिबंधीय
उत्तर:
(B) उष्ण कटिबंधीय

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

3. भारत के उत्तरी मैदान में ग्रीष्म ऋतु में दिन में बहने वाली पवन का क्या नाम है?
(A) काल बैसाखी
(B) सन्मार्गी पवनें
(C) लू
(D) शिनूक
उत्तर:
(C) लू

4. भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में सर्दियों में होने वाली वर्षा किस कारण से होती है?
(A) चक्रवातीय अवदाब
(B) पश्चिमी विक्षोभ
(C) लौटती मानसून
(D) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
उत्तर:
(B) पश्चिमी विक्षोभ

5. निम्नलिखित में से किसके सहारे पर्वतीय वर्षा नहीं होती?
(A) पश्चिमी घाट
(B) अरावली
(C) शिवालिक
(D) गारो, खासी और जयंतिया
उत्तर:
(B) अरावली

6. निम्नलिखित में से वर्षा की सर्वाधिक परिवर्तनीयता कहाँ पाई जाती है?
(A) राजस्थान
(B) केरल
(C) कर्नाटक
(D) मेघालय
उत्तर:
(A) राजस्थान

7. कौन-सी विशेषता मानसूनी वर्षा की नहीं है?
(A) मौसमी वर्षा
(B) वर्षा वाले दिनों की निरंतरता
(C) वषां का असमान वितरण
(D) अनिश्चित और अनियमित वर्षा
उत्तर:
(B) वर्षा वाले दिनों की निरंतरता

8. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा सबसे पहले भारत के किस राज्य में आती है?
(A) केरल
(B) पंजाब
(C) पश्चिमी बंगाल
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(A) केरल

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9. सर्वाधिक वार्षिक तापांतर निम्नलिखित में से किस महानगर में पाया जाता है?
(A) कोलकाता
(B) फरीदाबाद
(C) मुंबई
(D) चेन्नई
उत्तर:
(B) फरीदाबाद

10. निम्नलिखित में से सबसे कम वार्षिक तापांतर पाया जाता है-
(A) शिलांग
(B) तिरुवनंतपुरम
(C) जोधपुर
(D) जींद
उत्तर:
(B) तिरुवनंतपुरम

11. भारतीय मौसम मानचित्र नहीं दर्शाता है-
(A) मेघाच्छादन
(B) समदाब रेखाएँ
(C) समताप रेखाएँ
(D) वायु की दिशा
उत्तर:
(C) समताप रेखाएँ

12. दिल्ली का वार्षिक तापांतर अधिक है, क्योंकि
(A) यह कर्क रेखा के निकटतम है
(B) यहाँ अल्प वर्षा होती है
(C) यह समुद्र से दूर स्थित है
(D) यह मरुस्थल के निकट है
उत्तर:
(C) यह समुद्र से दूर स्थित है

13. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा नहीं होती?
(A) पंजाब
(B) कर्नाटक
(C) तमिलनाडु
(D) राजस्थान
उत्तर:
(C) तमिलनाडु

14. तमिलनाडु में वर्षा होने का कारण है-
(A) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
(B) उत्तर:पूर्वी मानसून
(C) पूर्वी अवदाब
(D) पश्चिमी विक्षोभ
उत्तर:
(B) उत्तर:पूर्वी मानसून

15. दक्षिण-पश्चिमी मानसून भारत के दक्षिण में केरल तट पर कब पहुँचती है?
(A) 1 जून
(B) 10 जून
(C) 13 जून
(D) 18 जून
उत्तर:
(A) 1 जून

16. कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण में मानसूनी जलवायु को किस संकेताक्षर से प्रस्तुत किया है?
(A) Am
(B) Aw
(C) Af
(D) Cw
उत्तर:
(A) Am

17. भारत में प्रवेश करने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति कहाँ होती है?
(A) अरब सागर में
(B) भूमध्य सागर में
(C) हिंद महासागर में
(D) अटलांटिक महासागर में
उत्तर:
(B) भूमध्य सागर में

18. कौन-सा पर्वतीय क्षेत्र अधिकतम वर्षा प्राप्त करता है?
(A) पश्चिमी घाट
(B) नीलगिरि
(C) सतपुड़ा
(D) खासी पहाड़ियाँ
उत्तर:
(D) खासी पहाड़ियाँ

19. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सुमेलित नहीं है?
(A) आन वर्षा : ओडिशा
(B) आंधी : उत्तर प्रदेश
(C) काल बैसाखी : पं० बंगाल
(D) लू : उत्तर पश्चिमी भारत
उत्तर:
(A) आन वर्षा : ओडिशा

20. भारत के कोरोमंडल तट पर वर्षा होती है-
(A) मार्च-मई में
(B) जनवरी-फरवरी में
(C) अक्तूबर-नवम्बर में
(D) जून-सितम्बर में
उत्तर:
(C) अक्तूबर-नवम्बर में

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

21. निम्नलिखित में से किस स्थान पर सूर्य सिर के ऊपर कभी लंबवत् नहीं चमकता?
(A) चेन्नई
(B) दिल्ली
(C) भोपाल
(D) मुम्बई
उत्तर:
(B) दिल्ली

22. वर्षा की सर्वाधिक विरलता निम्नलिखित में से कहाँ पाई जाती है?
(A) जैसलमेर
(B) जोधपुर
(C) बीकानेर
(D) लेह
उत्तर:
(D) लेह

23. कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में ‘As’ संकेताक्षर भारत के किस क्षेत्र के लिए प्रयुक्त किया गया है?
(A) पूर्वी हिमालय
(B) केरल तट
(C) तमिलनाडु तट
(D) पश्चिमी राजस्थान
उत्तर:
(C) तमिलनाडु तट

24. दिसंबर मास में भारत में सबसे कम तापमान कहाँ पाया जाता है?
(A) गंगानगर
(B) द्रास/कारगिल
(C) पंजाब
(D) केरल
उत्तर:
(B) द्रास/कारगिल

25. भारत में उच्चतम तापमान कहाँ पाया जाता है?
(A) गंगानगर
(B) द्रास/कारगिल
(C) पंजाब
(D) केरल
उत्तर:
(A) गंगानगर

26. वर्षा ऋतु में वायुमंडल में सर्वाधिक आर्द्रता विद्यमान रहती है-
(A) मध्यान्ह के समय
(B) प्रातःकाल के समय
(C) सायंकाल के समय
(D) मध्यरात्रि के समय
उत्तर:
(B) प्रातःकाल के समय

27. निम्नलिखित में से कौन भारतीय मानसून को प्रभावित नहीं करता?
(A) जेट स्ट्रीम
(B) एल-निनो
(C) गल्फ स्ट्रीम
(D) तिब्बत का पठार
उत्तर:
(C) गल्फ स्ट्रीम

28. पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित वृष्टि-छाया प्रदेश के होने का प्रमुख कारण कौन-सा है?
(A) मंद ढाल
(B) आर्द्रता में वृद्धि
(C) तापमान में वृद्धि
(D) विरल वनस्पति
उत्तर:
(C) तापमान में वृद्धि

29. ग्रीष्म ऋतु में आने वाला कौन-सा तूफान चाय, पटसन व चावल के लिए उपयोगी माना जाता है?
(A) काल बैसाखी
(B) आम्र वर्षा
(C) फूलों वाली बौछार
(D) वज्र तूफान
उत्तर:
(A) काल बैसाखी

30. मानसून की गतिक विचारधारा का प्रतिपादन किस विद्वान ने किया था?
(A) एम०टी० यीन
(B) पी० कोटेश्वरम्
(C) रामारत्ना
(D) एच० फ्लोन
उत्तर:
(D) एच० फ्लोन

31. एल-निनो के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) यह पेरु के तट के सहारे बहने वाली समुद्री धारा है
(B) एल-निनो का अर्थ है ‘बालक ईसा’
(C) यह उष्ण वायु की धारा है जो जल में वाष्पिक अनियमितताएँ उत्पन्न कर देती है
(D) यह धारा क्रिसमस के आस-पास पैदा होती है
उत्तर:
(C) यह उष्ण वायु की धारा है जो जल में वाष्पिक अनियमितताएँ उत्पन्न कर देती है

32. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय स्थान सबसे ठण्डा है?
(A) श्रीनगर
(B) गुलमर्ग
(C) द्रास
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(C) द्रास

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत कौन-सी जलवायु वाला देश है?
उत्तर:
भारत उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु वाला देश है।

प्रश्न 2.
‘मानसून’ शब्द कौन-सी भाषा के किस शब्द से बना है?
उत्तर:
मानसून शब्द अरबी भाषा के मौसिम’ शब्द से बना है।

प्रश्न 3.
विश्व में सर्वाधिक वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर:
विश्व में सबसे अधिक वर्षा मेघालय में चेरापूंजी के निकट मॉसिनराम स्थान पर होती है।

प्रश्न 4.
‘ल’ भारत में कब और किस क्षेत्र में चलती है?
उत्तर:
भारत में ‘लू’ ग्रीष्म ऋतु (मई-जून) में तथा उत्तरी भारत में चलती है।

प्रश्न 5.
जेट-प्रवाह की कौन सी शाखा सर्दियों में उत्तरी भारत में चक्रवात लाने में सहायक होती है?
उत्तर:
जेट-प्रवाह की पश्चिमी शाखा।

प्रश्न 6.
भारत में किस क्षेत्र से मानसून सबसे पहले लौटता है?
उत्तर:
पश्चिमी राजस्थान से।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 7.
भारत के किन भागों में लौटती हुई मानसून पवनें शीतऋतु में वर्षा करती हैं?
उत्तर:
तमिलनाडु में।

प्रश्न 8.
थार्नवेट तथा कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के क्या आधार हैं?
उत्तर:
थार्नवेट : जल-सन्तुलन, कोपेन तापमान एवं वृष्टि के मासिक मान।

प्रश्न 9.
भारत में उच्चतम तापमान कहाँ और कितना पाया जाता है?
उत्तर:
भारत में उच्चतम तापमान राजस्थान के गंगानगर शहर में 52° सेल्सियस पाया जाता है।

प्रश्न 10.
भारत के किस राज्य में वार्षिक तापान्तर सबसे कम होता है?
उत्तर:
केरल में।

प्रश्न 11.
भारत के दक्षिणी-पूर्वी तट पर अथवा कोरोमण्डल तट पर सर्दियों में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों के कारण।

प्रश्न 12.
मानसून पवनें कौन-सी पवनें होती हैं?
उत्तर:
मानसून पवनें मौसमी पवनों को कहते हैं।

प्रश्न 13.
गर्मियों में मानसून पवनों की दिशा बताएँ।
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर।

प्रश्न 14.
ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा सबसे पहले भारत के किस राज्य में आती है?
उत्तर:
केरल में।

प्रश्न 15.
काल बैसाखी नामक भयंकर तूफानी पवनें क्यों चलती हैं?
उत्तर:
शुष्क व गर्म पवनों के समुद्री आर्द्र पवनों से मिलने के कारण।

प्रश्न 16.
भारत में वर्षा ऋतु के महीने कौन-से माने जाते हैं?
उत्तर:
जून से सितम्बर तक के महीने।

प्रश्न 17.
मानसून प्रस्फोट क्या होता है?
उत्तर:
वर्षा का अचानक आरम्भ होना।

प्रश्न 18.
भारत का कौन-सा तट दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों से वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तट।

प्रश्न 19.
भारत के किस राज्य में आम्र वर्षा होती है?
उत्तर:
केरल में।

प्रश्न 20.
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार भारत की चार ऋतुएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. शीत ऋतु
  2. ग्रीष्म ऋतु
  3. वर्षा ऋतु
  4. मानसून के निवर्तन की ऋतु।

प्रश्न 21.
पश्चिमी विक्षोभ या शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सर्दियों में कहाँ कहाँ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
हिमालय की श्रेणियों, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में।

प्रश्न 22.
दक्षिणी भारत में उत्तर भारत जैसी प्रखर ग्रीष्म ऋतु क्यों नहीं होती?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय स्थिति (तीन ओर से समुद्र) के कारण।

प्रश्न 23.
काल बैसाखी तूफान या नॉरवेस्टर कहाँ चलते हैं?
उत्तर:
असम और पश्चिमी बंगाल में।

प्रश्न 24.
आम्र वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर:
पूर्वी महाराष्ट्र तथा पश्चिमी तटीय प्रदेश में।

प्रश्न 25.
200 सें०मी० से अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र कौन से हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग तथा उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 26.
भारत की जलवायु की क्या विशेषता है?
अथवा
उष्ण कटिबन्धीय मानसनी जलवाय की क्या विशेषता है?
उत्तर:
उष्ण-आर्द्र गर्मियाँ व शुष्क एवं ठण्डी सर्दियाँ।

प्रश्न 27.
भारत में जून सबसे गर्म महीना होता हैं, जुलाई नहीं। क्यों?
उत्तर:
जुलाई में वर्षा हो जाने के कारण तापमान 10°C सेल्सियस गिर जाता है।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनवरी में जेट-प्रवाह की क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
जनवरी में जेट-प्रवाह हिमालय के दक्षिण की ओर पश्चिम से पूर्व दिशा में होती है।

प्रश्न 2.
मानसून द्रोणी किसे कहते हैं?
उत्तर:
अंतउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र को मानसून द्रोणी कहते हैं।

प्रश्न 3.
मानसून विच्छेद क्या होता है?
उत्तर:
एक बार कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद यदि एक-दो या कई हफ्तों तक वर्षा न हो तो वह मानसून विच्छेद कहलाता है।

प्रश्न 4.
फूलों वाली बौछार कहाँ होती है और किस फसल के लिए उपयोगी मानी जाती है?
उत्तर:
फूलों वाली बौछार केरल में होती है तथा यह कहवा फसल के लिए उपयोगी मानी जाती है।

प्रश्न 5.
‘अक्तूबर हीट’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अत्यधिक आर्द्रता तथा गर्मी वाला अक्तूबर का घुटन भरा चिपचिपा मौसम।

प्रश्न 6.
‘लू’ किस प्रकार की पवनें होती हैं?
उत्तर:
गर्मियों में उत्तरी भारत में चलने वाली गर्म एवं धूल भरी पवनें।

प्रश्न 7.
वृष्टि-छाया क्षेत्र कौन-से होते हैं?
उत्तर:
पर्वतों के पवनाविमुखी ढाल वाले क्षेत्र वृष्टि-छाया क्षेत्र होते हैं।

प्रश्न 8.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है ऋतु अर्थात् मानसून का अर्थ एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा में पूरी तरह से परिवर्तन हो जाता है। ये मौसमी पवनें हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं। ये पवनें ग्रीष्मकाल में छह मास सागर से स्थल की ओर तथा शीतकाल में छह मास तक स्थल से सागर की ओर चलती हैं।

प्रश्न 9.
अंतःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (I.T.C.z.) क्या है?
उत्तर:
अंतःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र निम्न वायुदाब क्षेत्र होता है जो सभी दिशाओं से पवनों के अन्तर्वहन को प्रोत्साहित करता है। यह भूमध्य-रेखीय क्षेत्र में स्थित होता है। इसकी स्थिति सूर्य की स्थिति के अनुसार उष्ण कटिबन्ध के मध्य बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में यह उत्तर की ओर तथा शीतकाल में यह दक्षिण की ओर सरक जाता है। इसे भूमध्यरेखीय द्रोणी भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
लू से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लू, वे स्थानीय पवनें हैं जो ग्रीष्मकाल में उत्तर तथा उत्तर:पश्चिमी भारत में दिन के समय तेज गति से चलती हैं। ये अत्यधिक गर्म हवाएँ होती हैं। लू के कारण तापमान 40° सेल्सियस से अधिक रहता है तथा धूल-भरी आँधियाँ चलती हैं। लू की गर्मी सहन नहीं होती और लोग प्रायः बीमार हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
‘मानसून’ प्रस्फोट किसे कहते हैं? और भारत में सबसे अधिक वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर:
भारत में ग्रीष्म ऋतु के पश्चात् वर्षा ऋतु आरम्भ होती है। इस समय भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें प्रवेश करती हैं तथा भारत की 80% वर्षा इन्हीं पवनों से होती है। मानसून पवनों की वर्षा के
अकस्मात् आरम्भ होने को ‘मानसून प्रस्फोट’ कहते हैं। इसमें वर्षा की तेज बौछारें पडती हैं। भारत में सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम (चेरापंजी) में होती है।

प्रश्न 12.
वर्षा की परिवर्तनीयता से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर्षा की सामान्य मात्रा से अधिक या कम वर्षा होने की घटना को वर्षा की परिवर्तनीयता या विचरणशीलता कहते हैं। परिवर्तनीयता का मूल्य एक ऐसे सूत्र से निकाला जाता है जिसे विचरणशीलता का गुणांक या संक्षेप में C.V. कहा जाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 1

प्रश्न 13.
संसार में सर्वाधिक वर्षा मॉसिनराम में होती है। क्यों?
उत्तर:
मॉसिनराम मेघालय राज्य में स्थित है। यह स्थान 1221 सें०मी० से अधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है, जो विश्व में किसी भी स्थान की वर्षा की अपेक्षा अधिक है। यह स्थान खासी-गारो-ज्यन्तिया पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिनकी स्थिति कुप्पी जैसी है। यहाँ बंगाल की खाड़ी में मानसून पवनें घुस जाती हैं जिससे यहाँ भारी वर्षा होती है।

प्रश्न 14.
तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकतर वर्षा जाड़ों में होती है, क्यों?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिमी मानसून के दिनों में वृष्टि-छाया क्षेत्र में होने के कारण ये क्षेत्र सूखे रह जाते हैं, परन्तु लौटती हुई मानसून (Retreating Monsoon) या उत्तर:पूर्वी मानसून के दिनों में यहाँ काफी वर्षा होती है क्योंकि ये पवनें जब खाड़ी बंगाल के ऊपर से गुज़रती हैं तो वाष्प लेकर सीधे तमिलनाडु के तट से टकराकर यहाँ खूब वर्षा करती हैं।

प्रश्न 15.
भारत के उत्तर:पश्चिम के मैदान में शीत ऋतु में वर्षा होती है, क्यों?
उत्तर:
भूमध्य सागर तथा फारस की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण करके पवनें, जेट-प्रवाह की सहायता से शीत ऋतु में उत्तर:पश्चिम भारत में प्रवेश करके और पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों से टकराकर यहाँ वर्षा करती हैं, जो इस मैदान की कृषि के लिए बहुत लाभदायक है।

प्रश्न 16.
वर्षा का वितरण सारे भारत में एक-समान नहीं है। क्यों?
उत्तर:
भारत में वर्षा का वितरण एक-समान नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि जैसे-जैसे हम समुद्र से दूर जाते हैं, वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। समुद्र के निकट और पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार वृष्टिछाया क्षेत्र में वर्षा की मात्रा बहुत कम होती है क्योंकि पर्वतों से नीचे उतरती वायु में वाष्पकण ग्रहण करने की शक्ति बढ़ती जाती है। भारत एक विशाल देश है। यहाँ राजस्थान जैसे प्रदेश समुद्र से इतने दूर हैं कि खाड़ी बंगाल की पवनें यहाँ आते-आते शुष्क हो जाती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 17.
भारत की वार्षिक वर्षा के वितरण की दो मुख्य प्रवृत्तियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
भारत की वार्षिक वर्षा के वितरण की दो मुख्य प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं (1) वर्षा की मात्रा पश्चिमी बंगाल और ओडिशा के तट से पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर कम होती जाती है। (2) पश्चिमी एवं पूर्वी तटों से पठार के आन्तरिक क्षेत्रों की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 18.
जैसलमेर में वर्षा शायद ही कभी 12 सें०मी० से अधिक होती है। क्यों?
उत्तर:
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिम में स्थित है। अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। इसलिए ये मानसून पवनें बिना-रोक-टोक आगे निकल जाती हैं तथा वर्षा नहीं करतीं। इसलिए यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 12 सें०मी० से भी कम है।

प्रश्न 19.
उत्तर-पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? ये चक्रवात कहाँ उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को अत्यन्त लाभदायक शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्राप्त होते हैं, जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ भी कहा जाता है। ये चक्रवात पूर्वी भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं और पूर्व की ओर यात्रा करते हुए भारत पहुँचते हैं।

प्रश्न 20.
भारत के तटीय प्रदेशों में गर्मी और जाड़े की ऋतुओं के मध्य तापमानों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। क्यों?
उत्तर:
भारत के तटीय प्रदेश उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित हैं। यहाँ ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु में तापमान में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि सागरों के समकारी प्रभाव के कारण तापमान समान रहता है। यहाँ जल समीर तथा स्थल समीर चलती हैं। इनके प्रभाव के कारण तापमान अधिक नहीं बढ़ता तथा शीत ऋतु में सागरों के जल के गर्म रहने के कारण तापमान अधिक कम नहीं होता।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अत्यधिक गर्म तथा अत्यधिक ठण्डे स्थानों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत में अत्यधिक ठण्डे प्रदेश उत्तर:पश्चिमी हिमालय में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा अन्य पर्वतीय क्षेत्र हैं। जम्मू-कश्मीर के कारगिल नामक स्थान पर न्यूनतम तापमान-40° सेल्सियस पाया जाता है। इन प्रदेशों के अत्यधिक ठण्डे होने का मुख्य कारण समुद्र-तल से ऊँचाई है। इन प्रदेशों में शीत ऋतु में हिमपात होता है तथा तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है।

भारत में सबसे अधिक गर्म स्थान राजस्थान का बाड़मेर क्षेत्र है। यहाँ ग्रीष्मकाल में दिन का तापमान 50° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। यहाँ अधिक तापमान का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है। गर्मियों में यहाँ लू चलती है जो यहाँ के तापमान को बढ़ा देती है। अन्य कारण यहाँ की रेतीली मिट्टी तथा वायु में आर्द्रता की कमी है।

प्रश्न 2.
भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले तथा सर्वाधिक शुष्क स्थानों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूँजी के निकट स्थित) में 1140 सें०मी० तथा 200 सें०मी० से अधिक गारो तथा खासी की पहाड़ियों, पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट पर होती है क्योंकि ये प्रदेश पर्वतीय क्षेत्र हैं तथा पवनों की दिशा में स्थित हैं। गारो तथा खासी की पहाड़ियों में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलान पर अरब सागर की मानसून पवनें खूब वर्षा करती हैं।

भारत में निम्नतम वर्षा (20 सें०मी० से कम) वाले क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर क्षेत्र, कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र तथा दक्षिणी पठार क्षेत्र हैं क्योंकि राजस्थान में अरावली पर्वत अरब मानसूनी पवनों के समानान्तर स्थित है। प्रायद्वीप पठार तथा लद्दाख क्षेत्र वृष्टिछाया में स्थित होने के कारण बहुत कम वर्षा प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 3.
‘जेट-प्रवाह’ क्या है? इसका क्या प्रभाव है?
उत्तर:
पृथ्वी के तल से लगभग तीन किलोमीटर की ऊँचाई पर तेज गति की धाराएँ चलती हैं, जिन्हें जेट-प्रवाह कहते हैं। एक मान्यता के अनुसार ये ‘जेट-प्रवाह’ मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण है। ये जेट-प्रवाह 40° उत्तर से 20° दक्षिण अक्षांशों में नियमित रूप से चलते हैं। हिमालय पर्वत तथा तिब्बत का पठार इसके मार्ग में अवरोध पैदा करते हैं, जिससे यह जेट-प्रवाह दो शाखाओं में बँट जाता है। एक भाग हिमालय के उत्तर में तथा दूसरा भाग दक्षिण में पश्चिमी-पूर्वी दिशा में बहता है। दक्षिणी को प्रभावित करता है। शीत काल में भारत के उत्तर:पश्चिमी भाग में आने वाले चक्रवात इस जेट-प्रवाह का ही परिणाम है।

प्रश्न 4.
पश्चिमी जेट-प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उप-महाद्वीप में लाने में मदद करते हैं?
उत्तर:
जेट-प्रवाह की दूसरी शाखा हिमालय के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व को बहती है। यह शाखा 25° उत्तर अक्षांश पर स्थित होती है। इसका दाब स्तर 200 मिलीबार से 300 मिलीबार होता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जेट-प्रवाह की यह दक्षिणी शाखा भारत में शीत ऋतु को प्रभावित करती है तथा यहाँ पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायक है। ये विक्षोभ पश्चिमी एशिया तथा भूमध्य सागर के निकट निम्न वायु-दाब क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं तथा जेट-प्रवाह के साथ-साथ ईरान और पाकिस्तान को पार करके भारत में प्रवेश करते हैं। इनके प्रभाव से शीतकाल में उत्तर:पश्चिमी भारत में वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
भारतीय मानसून की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय मानसून की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • मानसून पवनों का अनियमित तथा अनिश्चित होना।
  • ऋतु अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होना।
  • मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायविक एकता का होना।

प्रश्न 6.
भारत में कितनी ऋतुएँ होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर में कोई अन्तर मिलता है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहाँ तापमान दबाव, पवनों तथा वर्षा की परिस्थितियाँ सारा वर्ष समान नहीं रहतीं बल्कि इनमें नियमित रूप से परिवर्तन आते हैं। भारत की जलवायु की अवस्था तथा उसके रचना-तन्त्र के अनुसार निम्नलिखित चार ऋतुएँ पाई जाती हैं

  • शीत ऋतु-दिसम्बर से फरवरी।
  • ग्रीष्म ऋतु-मार्च से मध्य जून।
  • वर्षा ऋतु-मध्य जून से मध्य सितम्बर।
  • मानसून प्रत्यावर्तन ऋतु-दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की इस ऋतु की अवधि में अन्तर मिलता है।

दक्षिणी भारत में कोई विशेष ऋतु नहीं होती। यहाँ सामान्यतः ग्रीष्म ऋतु पाई जाती है। तटीय क्षेत्रों में ऋतु परिवर्तन नहीं होता क्योंकि भारत का दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। उत्तरी भारत में स्पष्ट रूप से ग्रीष्म ऋतु तथा शीत ऋतु पाई जाती है क्योंकि यह भाग शीत उष्णकटिबन्ध में स्थित है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 7.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत में किस भाग में शीत ऋतु में वर्षा होती है?
अथवा
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किन भागों में ये शीतकालीन वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी विक्षोभ वे चक्रवात हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्य सागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी जेट-प्रवाह के कारण ये चक्रवात पूर्व की तरफ से ईरान तथा पाकिस्तान को पार करके भारत में प्रवेश करते हैं। शीत ऋतु में ये चक्रवात पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में क्रियाशील होते हैं तथा इनके कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भारी वर्षा होती है। यह वर्षा गेहूँ की फसल के लिए विशेष रूप से लाभदायक होती है।

प्रश्न 8.
कौन-कौन-से कारक भारतीय उप-महाद्वीप में तापमान वितरण को नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उप-महाद्वीप के तापमान के वितरण में बहुत अन्तर पाया जाता है। मानसून प्रदेश में स्थित होने के कारण यह एक उष्ण देश है। यहाँ के विभिन्न क्षेत्रों के तापमान में पाई जाने वाली विविधता के निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-

  • अक्षांश अथवा भूमध्य रेखा से दूरी
  • पर्वतों की स्थिति
  • समुद्र तल से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • चक्रवातीय प्रभाव
  • समुद्र तल से ऊँचाई।

प्रश्न 9.
भारत में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक के वितरण की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक में सामान्य रूप से 15 से 30 प्रतिशत के बीच विचलन पाया जाता है। विचरण गुणांक अधिक वर्षा वाले भागों में कम और कम वर्षा वाले भागों में अधिक पाया जाता है। पश्चिमी तट पर मंगलौर, मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, उप-हिमालयी पेटी, मणिपुर, मिज़ोरम व नगालैण्ड जैसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विचरण गुणांक 15 प्रतिशत से कम है। इसके विपरीत पठारी प्रदेशों में विचरण गुणांक 30 प्रतिशत से अधिक है। ये साधारण वर्षा वाले क्षेत्र हैं। हरियाणा व पंजाब में विचरण गुणांक 40 प्रतिशत तथा पश्चिमी राजस्थान, कच्छ व गुजरात के न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनीयता सर्वाधिक अर्थात् 50 से 80 प्रतिशत के बीच है।

प्रश्न 10.
जलवायु प्रदेश क्या होता है? जलवायु प्रदेश किन आधारों पर पहचाने जाते हैं?
उत्तर:
जलवायु प्रदेश जलवायु प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसमें विभिन्न जलवायविक तत्त्व अपने संयुक्त प्रभाव से एकरूपी जलवायविक दशाओं का निर्माण करते हैं। स्थानीय तौर पर मौसम के तत्त्व; जैसे तापमान, वर्षा इत्यादि मिलकर जलवायु में अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ उत्पन्न कर देते हैं। इन विभिन्नताओं को हम जलवायु के उप-प्रकार मानते हैं। इसी आधार पर जलवायु प्रदेश पहचाने जाते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में ग्रीष्म ऋतु में आने वाले कुछ प्रसिद्ध तूफानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गर्मियों में भारत में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण तूफान आते हैं-

  • आम्र वर्षा यह पूर्वी महाराष्ट्र तथा पश्चिमी तटीय प्रदेशों में चलती है। आम के वृक्षों के लिए यह तूफानी वर्षा फायदेमन्द होती है।
  • फूलों वाली बौछार-इस वर्षा से केरल. तथा निकटवर्ती कहवा उत्पादन वाले क्षेत्रों में फूल खिलने लगते हैं।
  • काल बैसाखी-असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं, जिन्हें नॉरवेस्टर भी कहा जाता है। चाय, पटसन व चावल के लिए ये पवनें अच्छी हैं।
  • लू–उत्तरी मैदान में चलने वाली गर्म, शुष्क व भीषण पवनें।

प्रश्न 12.
मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह मौसमी वर्षा है जो प्रतिवर्ष जून से सितम्बर के दौरान होती है। देश की कुल वर्षा का 75 प्रतिशत ग्रीष्मकालीन मानसून द्वारा प्राप्त होता है।
  • मानसूनी वर्षा अनिश्चित है। कभी निर्धारित समय से पहले व कभी देर से शुरू होती है। कभी तो कुछ समय होकर जल्दी रुक जाती है व कभी वर्षा काल की अवधि बढ़ जाती है।
  • मानसूनी वर्षा का भारत में वितरण असमान है। कुछ भागों में वर्षा 250 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है व कुछ भागों में 12 सेंटीमीटर से भी कम होती है।
  • मानसनी वर्षा पर्वतीय है अथवा उच्चावच से प्रभावित होती है।
  • अधिकांश मानसूनी वर्षा मूसलाधार होती है।
  • यह वर्षा अनियमित भी है। एक ही क्षेत्र में कभी अकाल और कभी बाढ़ की दशाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में मानसून की भूमिका महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

प्रश्न 13.
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून का क्रम अन्तराल पर सामान्यतः शुष्क मौसम की छोटी अवधि द्वारा भंग होता रहता है, क्यों?
उत्तर:
भारत में मुख्य रूप से वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें करती हैं। इन पवनों द्वारा वर्षा लगातार नहीं होती अपितु कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताहों के अन्तराल पर होती है। इन दिनों एक दीर्घ शुष्क मौसम आ जाता है तथा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है क्योंकि इसका कारण खाड़ी बंगाल अथवा अरब सागर में उत्पन्न होने वाले चक्रवात हैं। ये चक्रवात वर्षा की मात्रा को बढ़ाते हैं परन्तु ये चक्रवात अनियमित रूप से चलते हैं। इसलिए सामान्यतः शुष्क मौसम की छोटी अवधि द्वारा मानसून का क्रम भंग होता रहता है।

प्रश्न 14.
लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारत में सितम्बर तथा अक्तूबर के महीने में औसत अधिकतम तापमान काफी ऊँचा रहता है। क्यों?
उत्तर:
भारत में जून मास सबसे अधिक गर्म मास है। इसके पश्चात् मानसून पवनों की वर्षा के कारण तापमान में गिरावट आ जाती है परन्तु वर्षा ऋतु समाप्त होने के पश्चात् तापमान में फिर वृद्धि हो जाती है क्योंकि सितम्बर तथा अक्तूबर में मानसून पवनें वापस लौटने लगती हैं। ये पवनें शुष्क होती हैं तथा तापमान अधिक ऊँचे होते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में इन मासों में औसत तापमान अधिकतम 33° सेल्सियस से अधिक रहता है। सितम्बर मास में सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है इसलिए दक्षिण भारत में तापमान अधिक पाया जाता है।

प्रश्न 15.
उत्तर-पश्चिमी भारत में मानसून की अवधि बहुत कम है, क्यों?
उत्तर:
जिस प्रकार भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों पर मानसून के आने का समय भिन्न-भिन्न है, इसी प्रकार उसके लौटने का समय भी भिन्न-भिन्न होता है। इस प्रकार हर स्थान पर इसकी अवधि भी अलग-अलग होती है। उत्तर:पश्चिमी भारत में यह समय बहुत कम होता है क्योंकि गर्मियों की मानसून पवनें यहाँ बहुत देर से अर्थात् 15 जुलाई के आसपास पहुँचती हैं। यह 15 सितम्बर के आसपास लौटना शुरू कर देती हैं। अतः केवल 2 मास ही इस क्षेत्र में मानसून की अवधि होती है जो भारत के किसी भी क्षेत्र से कम है। वास्तव में यह अवधि भारत में दक्षिण-पूर्व से उत्तर:पश्चिम की ओर कम होती जाती है।

प्रश्न 16.
भारतीय मानसून की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है-ऋतु, अर्थात् मानसून का अर्थ एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा में पूरी तरह से परिवर्तन हो जाता है। ये मौसमी पवनें हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं। ये पवनें ग्रीष्मकाल में छः मास सागर से स्थल की ओर तथा शीतकाल में छः मास तक स्थल से सागर की ओर चलती हैं।

मानसून की प्रकृति-मानसून पर लगभग तीन शताब्दियों से प्रेक्षण हो रहे हैं। इसके बावजूद आज भी यह वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली ही है। अब मानसून का अध्ययन क्षेत्रीय स्तर की बजाय भूमंडलीय स्तर पर किया गया है। दक्षिणी एशियाई क्षेत्र में वर्षा के कारणों का व्यवस्थित अध्ययन मानसन के कारणों को समझने में सहायता करता है। इसके कछ विशेष पक्ष अग्रलिखित हैं

  • मानसून का आरम्भ और उसका स्थल की ओर बढ़ना।
  • वर्षा लाने वाले तंत्र तथा मानसूनी वर्षा की आवृत्ति और वितरण के बीच संबंध।
  • मानसून में विच्छेद।
  • मानसून का निवर्तन।

प्रश्न 17.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा उत्तर-पूर्वी मानसून में अन्तर बताइए।
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा उत्तर-पूर्वी मानसून में निम्नलिखित अन्तर हैं-

दक्षिण-पश्चिमी मानसूनउत्तर-पूर्वी मानसून
1. जून से सितम्बर तक की अवधि दक्षिण-पशिचमी मानसून की होती है।1. दिसम्बर से फरवरी तक की अवंधि उत्तर-पूर्वी मानसून की होती है।
2. इन महीनों में उत्तर भारत में निम्न दाब-क्षेत्र बन जाता है।2. इन महीनों में उत्तर भारत में उच्च दाब-क्षेत्र बन जाता है।
3. इस निम्न दाब-क्षेत्र की ओर पवनें अग्रसर होने लगती हैं और उनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व होती है।3. इस उच्च दाब से पवनें चारों ओर फैलने लगती हैं। पवनों की दिशा गंगा की घाटी में पश्चिम में, बंगाल में उत्तर में और बंगाल की खाड़ी में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम हो जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 18.
भारत में पाई जाने वाली शीत ऋतु का वर्णन करें।
उत्तर:
शीतकाल भारत में सामान्यतः नवम्बर मध्य से मार्च तक होता है। इस ऋतु में अधिकांश भागों में महाद्वीपीय पवनें चलती हैं। इस ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है। यहाँ के अधिकांश भागों में तापमान 20° सेल्सियस से नीचे रहता है और कई क्षेत्रों में हिमांक बिन्दु से भी नीचे गिर जाता है। उत्तरी भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान तथा उत्तरी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीत लहरें’ (Cold Waves) चलती हैं। दक्षिणी भारत में तापमान 22° सेल्सियस से नीचे नहीं आता।

शीतकाल में पवनें स्थलीय भागों से सागर की ओर चलती हैं, इसलिए ये हवाएँ शुष्क होती हैं। जो बंगाल की खाड़ी को पार करके नमी ग्रहण करती हैं तथा पूर्वी घाट से टकराकर आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय भागों में वर्षा करती हैं।

इस मौसम में उत्तर:पश्चिम से आने वाले चक्रवातों एवं दक्षिण में लौटती हुई मानसून पवनों से वर्षा होती है, लेकिन पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। इसे रबी की फसल के लिए वरदान माना जाता है। उत्तरी-पूर्वी भारत में इस मौसम में थोड़ी वर्षा होती है।

वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर पश्चिमी पवनों का प्रभाव होता है अर्थात् 3 किलोमीटर की ऊँचाई पर जेट प्रवाह सक्रिय होता है। हिमालय तथा तिब्बत की उच्च भूमि इन जेट प्रवाहों को अवरुद्ध करती है, जिससे जेट प्रवाह दो शाखाओं में बँट जाता है। इसकी एक शाखा हिमालय के उत्तर में तथा दूसरी दक्षिण में पश्चिमी-पूर्वी दिशा में 25° उत्तरी अक्षांश के सहारे चलने लगती है। इस जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा में शीत ऋतु में उत्तरी भारत में वर्षा होती है अर्थात् जेट प्रवाह उत्तर:पश्चिमी चक्रवातों को लाने में मदद करते हैं।

प्रश्न 19.
एल निनो क्या है? इसका भारतीय मानसून पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एल निनो एक जटिल मौसम तन्त्र है जो हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के अनेक भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएँ आती हैं। एल निनो पूर्वी प्रशान्त महासागर में पेरु के तट के निकट उष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत का मानसून अत्यधिक प्रभावित होता है। यह धारा पेरु के तट के जल का तापमान 10°C तक बढ़ा देती है जिसके परिणामस्वरूप भूमध्य-रेखीय वायुमण्डलीय परिसंचरण में विकृति उत्पन्न हो जाती है जिससे भारतीय मानसून प्रभावित होता है।

प्रश्न 20.
मानसून की उत्पत्ति पर एक नोट लिखिए।
अथवा
मानसून की उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक विचारधारा का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर:
आधुनिक मौसम-विशेषज्ञों का विचार है कि मानसून पवनों की उत्पत्ति का सम्बन्ध क्षोभ सीमा पर पाई जाने वाली जेट प्रवाह से है। सन् 1973 में भारतीय तथा सोवियत मौसम विशेषज्ञों ने ‘मानसून अभियान संगठन’ का गठन किया। यह संगठन इस जलवायु निष्कर्ष पर पहुँचा कि मानसून की उत्पत्ति तिब्बत के ऊँचे पठार से होती है। इस धारणा के अनुसार शीत ऋतु में एशिया में तीन कि०मी० की ऊँचाई पर क्षोभमण्डल में अपनी तरह का एक वायु-परिसंचरण दिखाई देता है। इसमें धरातलीय विषमताओं का कोई योगदान नहीं होता। इस समय समस्त एशिया के मध्य एवं पश्चिमी भाग के क्षोभमण्डल पर पश्चिमी पवनों का प्रभाव होता है, जिन्हें ‘जेट-स्ट्रीम’ कहते हैं।

तिब्बत का पठार तथा हिमालय इस जेट-प्रवाह के मार्ग में अवरोधक का काम करते हैं। इस रुकावट से जेट-प्रवाह दो भागों में विभाजित हो जाता है। एक भाग हिमालय के उत्तर में तथा दूसरा भाग दक्षिण तथा पश्चिम से पूर्व की ओर बहते हैं। इस जेट-प्रवाह से नीचे की ओर उतरती हुई वायु हिन्द महासागर की ओर चलती है। गर्मियों में भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब उत्तर भारत की ओर खिसकने के साथ पश्चिमी जेट-स्ट्रीम भारत से चला जाता है।

उसकी जगह भारत पर एक पूर्वी जेट-स्ट्रीम बहने लगता है, जो उष्ण कटिबन्धीय गों के भारतीय उप-महाद्वीप की ओर आकर्षित कर लेता है। इस पूर्वी जेट की उत्पत्ति गर्मियों में हिमालय पर्वत तथा तिब्बत के पठार के अत्यधिक गर्म होने से होती है। इन ऊँचे भागों से विकिरण के कारण क्षोभमण्डल में दक्षिणवर्ती (Clockwise) परिसंचरण आरम्भ होता है। इन उच्च स्थलों से भूमध्य रेखा की ओर बहने वाला प्रवाह भारत में ‘पूर्वी जेट-प्रवाह’ कहलाता है। अतः गर्मियों में मानसून की उत्पत्ति भूमध्य रेखीय निम्न दाब के उत्तर की ओर स्थानान्तरण तथा हिमालय एवं मध्य एशिया के ऊँचे स्थलों के गर्म होने के संयुक्त प्रयास से होती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु या वर्षा ऋतु का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केरल तथा तमिलनाडु के तटीय भागों में जून के प्रथम सप्ताह से मानसूनी वर्षा शुरू हो जाती है, लेकिन उत्तरी भारत में मानसून जुलाई के मध्य तक पहुँच जाता है। देश की 80 प्रतिशत वर्षा इसी ऋतु में होती है। जब अकस्मात् मानसून का आरम्भ होता है तो उसे ‘मानसून का विस्फोट’ (Burst of Monsoon) कहते हैं। अगस्त में तापमान 35° से 40° के मध्य रहता है। वर्षा के कारण तापमान में कमी आ जाती है।

दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों की निम्नलिखित दो शाखाएँ हैं-

  • बंगाल की खाड़ी का मानसून
  • अरब सागर का मानसून।

(1) बंगाल की खाड़ी का मानसून (Monsoon of Bay of Bengal)-जब बंगाल की खाड़ी से दक्षिणी-पश्चिमी हवाएँ गुज़रती हैं, तो पर्याप्त नमी ग्रहण करती हैं। ये पवनें दो शाखाओं में बँट जाती हैं। एक शाखा पूर्व की ओर मेघालय में गारो, खासी एवं जयन्तिया की पहाड़ियों से टकराती है तथा वर्षा करती है। इन पहाड़ियों की आकृति कीप (Funnel) की तरह होने के कारण यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है इसलिए मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूँजी के निकट स्थित) में विश्व की सर्वाधिक वार्षिक वर्षा 1,140 सें०मी० होती है।

बंगाल की खाड़ी को मानसून की दूसरी शाखा सीधे गंगा घाटी में प्रवेश करके हिमालय से टकराकर बंगाल, बिहार तथा उत्तर प्रदेश से होती हुई हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर आदि में वर्षा करती है, लेकिन पश्चिम की ओर जाने पर इन मानसून पवनों की नमी में कमी आती जाती है। कोलकाता में 120 सें०मी०, पटना में 105 सें०मी०, इलाहाबाद में 75 सें०मी० और दिल्ली में 56 सें०मी० वर्षा होती है।

(2) अरब सागरीय मानसून (Monsoon of Arabian Sea) मानसून पवनों की दूसरी शाखा अरब सागरीय मानसून है जो पश्चिमी घाट से टकराकर पश्चिमी भारत में वर्षा करती है, लेकिन जब ये वाष्प भरी हवाएँ पश्चिमी घाट को पार करती हैं तो इनकी आर्द्रता में कमी आ जाती है और पश्चिमी घाट का पूर्वी भाग ‘वृष्टिछाया प्रदेश’ (Rain Shadow Area) में पड़ जाता है, जिसके कारण मंगलौर में जहाँ 280 सें०मी० वर्षा होती है, वहीं बंगलूरू में केवल 60 सें०मी० वर्षा होती है। अरब सागरीय मानसून की दूसरी शाखा उत्तर की ओर गुजरात एवं राजस्थान में अरावली पहाड़ियों के समानान्तर आगे हिमालय तक चली जाती है, लेकिन राजस्थान में वर्षा नहीं करती, वरन् हिमालय से टकराकर वर्षा करती है।

प्रश्न 2.
कोपेन द्वारा प्रस्तुत भारत को जलवायु विभागों में वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
यह बताया जा चुका है कि सारे भारत में मानसूनी जलवायु पाई जाती है, फिर भी यहाँ जलवायु में विभिन्न प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि भारत एक विशाल देश है तथा यहाँ पर विभिन्न भौतिक स्वरूप मिलते हैं, जिनके कारण भारत में विभिन्न भागों में तथा विभिन्न समयों में जलवायु की कुछ अलग-अलग विशेषताएँ मिलती हैं। कई जलवायु-वेत्ताओं ने भारतीय जलवायु को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत करने की चेष्टा की है। कोपेन द्वारा प्रस्तुत भारत का जलवायु विभागों में वर्गीकरण अधिक मान्य है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 2

कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु प्रदेश: कोपेन की प्रणाली के अनुसार जलवायु प्रवेश कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु प्रदेश कोपेन द्वारा जलवायु के वर्गीकरण की पद्धति तापमान तथा वृष्टि के मासिक मान पर आधारित है। उसने भारतीय जलवाय को आठ जलवाय प्रदेशों में बाँटा है। वैसे कोपेन के जलवाय प्रदेश पाँच प्रकार के हैं, जिनको अंग्रेजी के पहले पाँच बड़े अक्षरों से सम्बोधित किया है; जैसे
(1) उष्ण कटिबन्धीय जलवायु (Tropical Climate) = A
(2) शुष्क जलवायु (Dry Climate) = B
(3) गर्म जलवायु (Warm Climate) = C
(4) हिम जलवायु (Snow Climate) = D
(5) बर्फीली जलवायु (Ice Climate) = E
वृहत रूप के उपर्युक्त पाँच जलवायु प्रदेशों को तापमान तथा वर्षा ऋतु के अनुसार वितरण के आधार पर उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है, जिनके लिए अंग्रेजी के छोटे अक्षरों का प्रयोग किया गया है, जिनका अर्थ इस प्रकार है
a = गर्म ग्रीष्म तथा सबसे अधिक गर्म माह का औसत तापमान 22° सेल्सियस से अधिक।
c = शीतल ग्रीष्म सबसे गर्म माह का औसत तापमान 22° सेल्सियस से कम।
i = कोई भी मौसम शुष्क नहीं।
s = ग्रीष्म ऋतु में शुष्क मौसम।
g = ग्रीष्म ऋतु में वर्षा तथा गंगा तुल्य तापमान का वार्षिक परिसर।
h = वार्षिक औसत तापमान 18° सेल्सियस से नीचे।
m = मानसून, शुष्क मौसम की अल्प अवधि।
भारत के आठ जलवायु प्रदेशों का वितरण इस प्रकार है-

  • लघु शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रकार इस प्रकर की जलवायु भारत के पश्चिमी तटों पर गोवा के दक्षिण में पाई जाती है।
  • अधिक गर्मी की अवधि में शुष्क ऋतु का प्रदेश इस प्रकार की जलवायु भारत के कोरोमण्डल तट पर पाई जाती है।
  • उष्ण कटिबन्धीय सवाना प्रकार की जलवायु इस प्रकार की जलवायु दक्षिणी भारत के अधिकांश भाग पर पाई जाती है। कोरोमण्डल तथा मालाबार के तट इसके अपवाद हैं।
  • अर्ध-शुष्क स्टेपी जलवायु–यह जलवायु दक्षिणी पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों, गुजरात, राजस्थान तथा हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भाग में पाई जाती है।
  • उष्ण मरुस्थलीय जलवायु-यह जलवायु भारत के पश्चिमी भागों में पाई जाती है।
  • शुष्क ऋतु वाला मानसून जलवायु-यह जलवायु भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाती है।
  • लघु ग्रीष्म के साथ शीतल व अर्ध-शीत वाली जलवायु इस प्रकार की जलवायु भारत के उत्तर:पूर्वी भाग में पाई जाती है।
  • ध्रुवीय प्रकार इस प्रकार की जलवायु कश्मीर तथा निकटवर्ती पर्वतमालाओं में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 3.
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की जलवायु को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत-भारत की उत्तरी सीमा पर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हिमालय पर्वत के कारण उत्तर भारत में ऊँचा तापमान तथा शुष्क ऋतु पाई जाती है। यहाँ उष्ण कटिबन्धीय लक्षण पाए जाते हैं, यद्यपि उत्तर भारत शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है।

2. हिन्द महासागर-भारतीय जलवायु पर हिन्द महासागर का गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मानसून पवनों को आर्द्रता प्रदान करता है तथा सम्पूर्ण भारत में वर्षा होती है।

3. भारत का विस्तार तथा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियाँ देश के बड़े आकार के कारण तथा पृथक्-पृथक् स्थलाकृतियों के मिलने के कारण भारत में विविध प्रकार की जलवायु पाई जाती है।

4. शीत ऋतु में विक्षोभ-भूमध्य सागर में उत्पन्न विक्षोभ चक्रवातों के रूप में भारत में पहुँचकर उत्तरी भारत के पश्चिमी हिमालय से टकराकर वर्षा करते हैं।

5. भूमध्य रेखा की समीपता भारत 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर के मध्य स्थित है। इसलिए भारत का दक्षिणी क्षेत्र भूमध्य रेखा के निकट स्थित है तथा सारा वर्ष गर्मी पड़ती है। कर्क रेखा देश के मध्य से गुजरती है इसलिए यहाँ उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है।

6. समुद्र तट से दूरी-भारतीय तटीय प्रदेशों में समकारी प्रभाव के कारण सम प्रकार की जलवायु पाई जाती है। उदाहरण के लिए मुम्बई का ग्रीष्मकालीन तापमान लगभग 27° सेल्सियस तथा शीतकालीन तापमान लगभग 24° सेल्सियस रहता है। जो स्थान समुद्र तट से अधिक दूर है, वहाँ विषम प्रकार का जलवायु मिलता है। उदाहरण के लिए इलाहाबाद समुद्र तट से दूर है। इसलिए यहाँ ग्रीष्मकालीन तापमान लगभग 30° सेल्सियस तथा शीतकालीन तापमान लगभग 16° सेल्सियस रहता है। दक्षिणी भारत तीनों ओर से सागरों तथा महासागर से घिरा है। इसलिए यहाँ गर्मियों में कम गर्मी तथा सर्दियों में कम सर्दी पड़ती है।

7. धरातल का प्रभाव पश्चिमी घाट तथा मेघालय पर्वतीय क्षेत्र मानसून पवनों के सम्मुख ढाल पर स्थित हैं। इसलिए यहाँ वर्षा अधिक होती है। परन्तु दक्षिणी पठार पवन-विमुख ढाल के कारण वृष्टिछाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। राजस्थान में स्थित अरावली पर्वत मानसून पवनों की दिशा के समानान्तर स्थित होने के कारण शुष्क रह जाता है।

पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम तथा मैदानों में तापमान अधिक होता है। उदाहरण के लिए आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही आक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा में जनवरी का तापमान 16° सेल्सियस दार्जिलिंग में 4° सेल्सियस होता है, क्योंकि आगरा मैदानी क्षेत्र है तथा दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र है।

प्रश्न 4.
अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी की मानसूनी पवनों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. अरब सागर की मानसून पवनें ये पवनें अरब सागर में उत्पन्न होकर भारत की ओर अग्रसर होती हैं, परन्तु भारत के पश्चिमी तट पर पहुँचकर ये तीन शाखाओं में बँट जाती हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं-
(1) पहली शाखा, पश्चिमी घाटों से टकराकर भारत के पश्चिमी तटीय मैदानों पर लगभग 250 सें०मी० वर्षा करती है। पश्चिमी घाट के पूर्व की ओर घाटों से नीचे उतरने के कारण इन पवनों के तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है तथा पूर्व की ओर ये वर्षा नहीं करती हैं, अतः पश्चिमी घाट के पूर्व का क्षेत्र ‘वृष्टि छाया’ (Rain Shadow) क्षेत्र कहलाता है।

(2) दूसरी शाखा, नर्मदा तथा ताप्ती नदियों की घाटियों में से होकर भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र में प्रवेश करती है। यहाँ इनके रास्ते में ऐसी रुकावट नहीं है जो इन्हें रोककर वर्षा हो सके, अतः ये दूर तक मध्य भारतीय क्षेत्र से में निकल जाती हैं और वर्षा करती हैं। नागपुर के पास इन पवनों द्वारा लगभग 60 सें०मी० वर्षा होती है।

(3) तीसरी शाखा, उत्तर:पूर्व की ओर अरावली पर्वतों के समानान्तर चलती है तथा रुकावट न होने के कारण ये राजस्थान से बिना वर्षा किए निकल जाती है। आगे चलकर हिमालय की पश्चिमी पहाड़ियों से टकराकर काफी वर्षा करती है।

2. बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें-ये पवनें दो शाखाओं में विभक्त होकर चलती हैं-
(1) एक शाखा, गंगा के डेल्टे को पार करके असम में खासी तथा गारो की पहाड़ियों से टकराकर असम में खूब वर्षा करती है। यहाँ मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूंजी के निकट स्थित) नामक स्थान पर विश्व की सर्वाधिक वर्षा (1140 सें०मी०) होती है।

(2) दूसरी शाखा हिमालय पर्वत के समानान्तर पश्चिम की ओर बहती है क्योंकि यह हिमालय को पार नहीं कर पाती इसलिए पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा करती जाती है तथा वर्षा की मात्रा में कमी आती जाती है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. अपवाह शब्द व्याख्या करता है
(A) नदी तंत्र की
(B) पर्वत श्रृंखला की
(C) वायुमंडल की
(D) प्राणी मंडल की
उत्तर:
(A) नदी तंत्र की

2. भारतीय नदियों को कितने अपवाह तंत्रों में बाँटा गया है?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर:
(B) 2

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

3. हिमालय से निकलने वाली नदी है-
(A) सिंधु
(B) ब्रह्मपुत्र
(C) गंगा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. सिंधु नदी का उद्गम होता है
(A) गंगोत्री से
(B) यमुनोत्री से
(C) मानसरोवर झील के निकट तिब्बत से
(D) अमरकंटक से
उत्तर:
(C) मानसरोवर झील के निकट तिब्बत से

5. गंगा का उद्गम स्थल है
(A) देवप्रयाग
(B) अमरकंटक
(C) मानसरोवर
(D) गंगोत्री
उत्तर:
(D) गंगोत्री

6. यमुना का उद्गम स्थल है
(A) यमुनोत्री
(B) गंगोत्री
(C) देवप्रयाग
(D) इलाहाबाद
उत्तर:
(A) यमुनोत्री

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

7. प्रायद्वीपीय उच्च भूमि से आने वाली गंगा की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं
(A) चंबल
(B) बेतवा
(C) सोन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम स्थल है-
(A) अमरकंटक
(B) गंगोत्री
(C) तिब्बत में मानसरोवर झील के पूर्व में
(D) नेपाल में
उत्तर:
(C) तिब्बत में मानसरोवर झील के पूर्व में

9. खारे पानी की झील है
(A) डल झील
(B) चिल्का झील
(C) सांभर झील
(D) पुलीकट झील
उत्तर:
(C) सांभर झील

10. निम्नलिखित में से कौन-सी मीठे पानी की झील है?
(A) डल
(B) भीमताल
(C) बड़ापानी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. निम्नलिखित में से कौन-सी मानव-निर्मित झील है?
(A) गुरुगोबिंद सागर झील
(B) डल झील
(C) वूलर झील.
(D) भीमताल
उत्तर:
(A) गुरुगोबिंद सागर झील

12. प्रायद्वीपीय भारत की कौन-सी नदी पूर्व की ओर बहती है?
(A) ताप्ती
(B) महानदी
(C) नर्मदा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) महानदी

13. गंगा नदी पर कौन-सी प्रांतीय राजधानी स्थित है?
(A) पटना
(B) कोलकाता
(C) लखनऊ
(D) भुवनेश्वर
उत्तर:
(A) पटना

14. जोग प्रपात किस नदी से संबंधित है?
(A) गोदावरी
(B) महानदी
(C) शरवती
(D) नर्मदा
उत्तर:
(C) शरवती

15. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी अरब सागर में गिरती है?
(A) गोदावरी
(B) महानदी
(C) कृष्णा
(D) माही
उत्तर:
(D) माही

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

16. ‘दक्षिण की गंगा’ या ‘वृद्ध गंगा’ किस नदी को कहा जाता है?
(A) गोदावरी
(B) कृष्णा
(C) महानदी
(D) कावेरी
उत्तर:
(A) गोदावरी

17. निम्नलिखित में से कौन-सी खारे पानी की झील है?
(A) सांभर
(B) वूलर
(C) डल
(D) गोविंद सागर
उत्तर:
(A) सांभर

18. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी मैकाल श्रेणी से नहीं निकलती?
(A) तापी
(B) नर्मदा
(C) सोन
(D) महानदी
उत्तर:
(A) तापी

19. कौन-सी नदी गंगा के बाएं किनारे पर नहीं मिलती है?
(A) चंबल
(B) गोमती
(C) घाघरा
(D) कोसी
उत्तर:
(A) चंबल

20. काली और तिस्ता नदियों के बीच हिमालय का कौन-सा भाग पड़ता है?
(A) पंजाब हिमालय
(B) कुमाऊं हिमालय
(C) नेपाल हिमालय
(D) असम हिमालय
उत्तर:
(C) नेपाल हिमालय

21. अमरकंटक पठार से कौन-सी नदी नहीं निकलती?
(A) सोन
(B) गोदावरी
(C) नर्मदा
(D) महानदी
उत्तर:
(B) गोदावरी

22. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी डेल्टा नहीं बनाती?
(A) गंगा
(B) गोदावरी
(C) तापी/ताप्ती
(D) महानदी
उत्तर:
(C) तापी/ताप्ती

23. हिमालय से निकलने वाली निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी एक पूर्ववर्ती नदी है?
(A) घाघरा
(B) घाघर
(C) यमुना
(D) सतलुज
उत्तर:
(D) सतलुज

24. चेमयुंगडुंग हिमनद से कौन-सी नदी निकलती है?
(A) घाघरा
(B) ब्रह्मपुत्र
(C) लोहित
(D) बूढ़ी दिहिंग
उत्तर:
(B) ब्रह्मपुत्र

25. चिल्का झील स्थित है-
(A) कर्नाटक तट पर
(B) उत्तरी सरकार तट पर
(C) कोंकण तट पर
(D) मालाबार तट पर
उत्तर:
(B) उत्तरी सरकार तट पर

26. ‘दक्षिण का उद्यान’ कहा जाने वाला तंजाऊर जिला किस नदी के डेल्टा में बसा है?
(A) पेन्नार
(B) कावेरी
(C) बैगाई
(D) कृष्णा
उत्तर:
(B) कावेरी

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत की नदियों के दो बड़े वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. हिमालय की नदियाँ
  2. प्रायद्वीपीय नदियाँ।

प्रश्न 2.
सिन्धु नदी का उद्गम क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट।

प्रश्न 3.
ब्रह्मपुत्र नदी ने किस पर्वत-चोटी के पास महाखण्ड (Gorge) बनाया है?
उत्तर:
नामचा बरवा।

प्रश्न 4.
बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी किस नाम से प्रवेश करती है?
उत्तर:
जमना।

प्रश्न 5.
गंगा की उन दो शीर्ष नदियों के नाम बताइए, जो देवप्रयाग में एक-दूसरे से मिलती हैं?
उत्तर:
अलकनन्दा तथा भागीरथी।

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प्रश्न 6.
गंगा किस स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती है?
उत्तर:
हरिद्वार।

प्रश्न 7.
गंगा के बाएँ किनारे की मुख्य सहायक नदियों के नाम बताइए।
अथवा
गंगा नदी की दो सहायक नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी।

प्रश्न 8.
प्रायद्वीपीय भारत का सबसे बड़ा तंत्र कौन-सा है?
उत्तर:
गोदावरी।

प्रश्न 9.
प्रायद्वीपीय भारत की कौन-सी नदी को ‘वृद्ध गंगा’ या ‘दक्षिणी गंगा’ कहा जाता है?
उत्तर:
गोदावरी।

प्रश्न 10.
प्रायद्वीपीय भारत की अरब सागर में गिरने वाली दो सबसे बड़ी नदियों के नाम बताएँ।
उत्तर:
नर्मदा, ताप्ती।

प्रश्न 11.
तिब्बत में सिंधु नदी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सिंगी खंबान या शेरमुख।

प्रश्न 12.
दरार घाटियों में बहने वाली दो नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
नर्मदा और ताप्ती।

प्रश्न 13.
उत्तरी भारत की नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के मध्य जल-विभाजक का नाम बताएँ।
उत्तर:
विन्ध्य-सतपुड़ा श्रेणी।

प्रश्न 14.
एक ट्रांस हिमालयी नदी का नाम बताएँ जो सिन्धु की सहायक नदी बनती है?
उत्तर:
सतलुज।

प्रश्न 15.
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी का नाम बताएँ।
उत्तर:
गोदावरी।

प्रश्न 16.
दक्षिणी भारत की कौन-सी नदी ज्वारनदमुख बनाती है?
उत्तर:
नर्मदा।

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प्रश्न 17.
कृष्णा नदी कहाँ-से निकलती है?
उत्तर:
महाबलेश्वर से।

प्रश्न 18.
बांग्लादेश में गंगा नदी किस नाम से बहती है?
उत्तर:
पद्मा के नाम से।

प्रश्न 19.
प्रायद्वीपीय भारत की बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 20.
जल संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर भारतीय अपवाह द्रोणियों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
तीन भागों में।

प्रश्न 21.
पूर्ववर्ती जल-प्रवाह के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सिन्धु नदी, ब्रह्मपुत्र नदी, सतलुज नदी इत्यादि।

प्रश्न 22.
झेलम नदी कहाँ से निकलती है?
उत्तर:
यह नदी शेषनाग झील से निकलकर अन्त में वूलर झील में मिलती है।

प्रश्न 23.
नदियाँ अपनी घाटी को पीछे कैसे सरकाती हैं?
उत्तर:
शीर्ष कटाव व सरिता-हरण से।

प्रश्न 24.
हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदियों में से कौन-सी नदियाँ पुरानी हैं?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय नदियाँ।

प्रश्न 25.
सतलुज नदी का उद्गम स्थल बताइए।
उत्तर:
कैलाश पर्वत के दक्षिण में मानसरोवर झील के निकट राक्षस ताल से निकलती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 26.
डेल्टाई मैदान में गंगा किन नामों से जानी जाती है?
उत्तर:
भागीरथी व हुगली।

प्रश्न 27.
सन्दरवन डेल्टा का निर्माण कौन-सी नदी करती है?
उत्तर:
गंगा।

प्रश्न 28.
साबरमती नदी का उद्गम क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
अरावली की पहाड़ियों में डूंगरपुर ज़िला।

प्रश्न 29.
अन्तःस्थलीय अपवाह का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
घग्घर नदी।

प्रश्न 30.
हिमालय की नदियों की प्रवृत्ति कैसी है?
उत्तर:
मानसूनी भी और हिमनदीय भी।

प्रश्न 31.
प्रायद्वीपीय नदियों की प्रवृत्ति कैसी है?
उत्तर:
मानसूनी।

प्रश्न 32.
खम्भात की खाड़ी में गिरने वाली किसी नदी का नाम बताइए।
उत्तर:
माही।

प्रश्न 33.
प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य जल विभाजक का नाम क्या है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रायद्वीपीय पठार की नदियों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
इन नदियों ने चौड़ी, संतुलित व उथली घाटियों का निर्माण किया है। यहाँ की सभी नदियाँ आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं।

प्रश्न 2.
नदी तन्त्र क्या है?
उत्तर:
मुख्य नदी तथा उसकी सहायक नदियों से मिलकर बना तन्त्र नदी तन्त्र कहलाता है।

प्रश्न 3.
अपवाह-तन्त्र क्या है?
उत्तर:
स्थान विशेष में एक निश्चित क्रम में प्रवाहित होने वाली नदियों एवं उनकी शाखाओं के सम्मिलित अध्ययन को अपवाह-तन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 4.
अपवाह द्रोणी क्या है?
उत्तर:
धरातल का वह क्षेत्र जिसका जल एक ही नदी तन्त्र द्वारा बहाकर ले जाया जाता है, अपवाह द्रोणी कहलाता है।

प्रश्न 5.
अन्तःस्थलीय अपवाह क्या होता है?
उत्तर:
ऐसी नदियाँ जो किसी सागर में न गिरकर स्थलमण्डल की किसी झील अथवा मरूभूमि में विलीन हो जाती हैं।

प्रश्न 6.
नदी प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
नदी में ऋतुवत् जल-विसर्जन को उसकी प्रवृत्ति कहा जाता है।

प्रश्न 7.
नर्मदा नदी कौन-सा विख्यात जल-प्रपात बनाती है और कहाँ बनाती है?
उत्तर:
जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर शैलों को काटते हुए मनोरम धुआँधार प्रपात बनाती है।

प्रश्न 8.
जल विभाजक का क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जल विभाजक का कार्य दो पड़ोसी प्रवाह श्रेणियों को अलग करना है। यह विभाजक अपनी एक ओर की ढाल पर बहने वाली नदियों को एक ओर तथा दूसरी ढाल पर बहने वाली नदियों को दूसरी ओर मोड़ देता है। हिमालय पर्वत एक प्रमुख जल विभाजक है।

प्रश्न 9.
भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
उत्तर:
भारत की सबसे विशाल नदी द्रोणी गंगा नदी द्रोणी है। इसकी लंबाई लगभग 2500 कि०मी० है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 10.
सिंधु एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं?
उत्तर:
सिंधु नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट से निकलती है और गंगा नदी गंगोत्री नामक हिमानी से निकलती है।

प्रश्न 11.
गंगा की दो मुख्य धाराओं के नाम लिखिए। ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं?
उत्तर:
गंगा नदी की दो मुख्य धाराएँ हैं-भागीरथी और अलकनंदा। ये दोनों धाराएँ उत्तराखंड के देवप्रयाग में आपस में मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 12.
हिमालय के तीन प्रमुख अपवाह-तन्त्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की विभिन्न श्रेणियों से अनेक नदियाँ उतरकर भारत की ओर प्रवाहित होती हैं। इन समस्त नदियों को तीन अपवाह-तन्त्रों में विभाजित किया जाता है

  1. सिन्धु अपवाह-तन्त्र
  2. गंगा अपवाह-तन्त्र
  3. ब्रह्मपुत्र अपवाह-तन्त्र।

प्रश्न 13.
किसी देश का अपवाह-तन्त्र किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी भी देश का अपवाह-तन्त्र वहाँ की धरातलीय रचना, भूमि के ढाल, शैलों के स्वभाव, विवर्तनिक क्रियाओं, जल की प्राप्ति एवं अपवाह क्षेत्र के भू-गर्भिक इतिहास पर निर्भर करता है।

प्रश्न 14.
गंगा तथा महानदी डेल्टा के बीच बहने वाली नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
गंगा नदी का डेल्टा पश्चिमी बंगाल में तथा महानदी का डेल्टा ओडिशा में फैला हुआ है। इनके बीच फैले राज्यों बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में ब्राह्मणी तथा स्वर्णरेखा नदियाँ बहती हैं।

प्रश्न 15.
गंगा अपवाह-तन्त्र की रचना कौन-सी नदियाँ करती हैं?
उत्तर:
गंगा अपवाह-तन्त्र का निर्माण हिमालय एवं प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली नदियों द्वारा होता है। हिमालय के हिमाच्छादित भागों से आने वाली गंगा, यमुना, घाघरा, गंडक, गोमती तथा कोसी नदियाँ और प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली चम्बल, बेतवा, टोंस, केन, सोन, इत्यादि नदियाँ गंगा अपवाह-तन्त्र का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 16.
अपवाह किसे कहते हैं?
उत्तर:
निश्चित वहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल-प्रवाह को अपवाह कहते हैं।

प्रश्न 17.
वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी अपवाह की आकृति वृक्ष के समान हो तो ऐसे अपवाह के प्रतिरूप को वृक्षाकार अपवाह प्रारूप कहते हैं।

प्रश्न 18.
जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानांतर प्रवाहित होती हो और सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हो तो अपवाह के ऐसे प्रारूप को जालीनुमा अपवाह प्रारूप कहते हैं।

प्रश्न 19.
नमामी गंगे परियोजना क्या है?
उत्तर:
यह भारत सरकार का एक एकीकृत जल संरक्षण मिशन है। इसमें राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं-

  • प्रदूषण को कम करना
  • इसके संरक्षण और कायाकल्प को पूरा करना।

प्रश्न 20.
नदी प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
नदियों में अलग-अलग मौसम में जल का बहाव भी अलग-अलग होता है। नदी में जल के मौसमी बहाव अर्थात् ऋतुवत् जल-विसर्जन को नदी प्रवृत्ति कहा जाता है।

प्रश्न 21.
जल-विसर्जन क्या होता है?
उत्तर:
किसी समय विशेष पर किसी नदी में बहने वाली जल-राशि को जल-विसर्जन कहा जाता है। जल-विसर्जन के मापने की इकाई को क्यूसेक्स अर्थात् घन फुट प्रति सैकिण्ड अथवा क्यूमेक्स अर्थात् घन मीटर प्रति सैकिण्ड कहते हैं।

प्रश्न 22.
कोसी नदी को ‘बिहार का शोक’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
यह नदी कंचनजंगा से निकलकर बिहार में प्रवेश करती है। यह नदी कई धाराओं में बहती है। रास्ता बदलना तथा आकस्मिक बाढ़ लाना इसका स्वभाव रहा है। यह नदी बिहार में धन, जन तथा फसलों को बाढ़ के कारण अपार क्षति पहुँचाती है। इसलिए इस नदी को बिहार का दुःख या शोक कहा जाता है।

प्रश्न 23.
तटीय नदी तन्त्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पश्चिमी तटीय मैदान में छोटी-छोटी लगभग 600 नदियाँ बहती हैं। इन नदियों के मैदान सँकरे व तल सामान्यतः खड़े ढाल वाले हैं। ये नदियाँ बड़ी मात्रा में तलछट बहाकर लाती हैं। तीव्र गति वाली होने के कारण ये नदियाँ समुद्र तट पर तलछट जमा नहीं कर पातीं। अतः ये नदियाँ डेल्टा बनाने में असमर्थ हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की सभ्यता, संस्कृति एवं आर्थिक विकास में नदियों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल से भारत की नदियाँ सिंचाई, जल-विद्युत् उत्पादन, मत्स्योत्पादन, जल-परिवहन एवं व्यापार का महत्त्वपूर्ण साधन रही हैं। भारतीय नदियों के तटों पर अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक केन्द्र स्थापित हुए। नदियों की उपजाऊ घाटियों एवं डेल्टा प्रदेशों में सघन जनसंख्या का निवास पाया जाता है। उपर्युक्त कारणों से भारत की सभ्यता, संस्कृति एवं आर्थिक विकास में नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

प्रश्न 2.
उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों के दो मुख्य तथा दो गौण वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों के दो मुख्य वर्ग हैं-

  • हिमालय की नदियाँ तथा
  • प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ।

इनके अतिरिक्त दो गौण नदी-तन्त्र है-

  • तटीय नदी तन्त्र
  • अन्तः स्थली अपवाह।

प्रश्न 3.
सिंधु एवं गंगा अपवाह में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सिंधु एवं गंगा अपवाह में निम्नलिखित अंतर हैं

सिंधु अपवाहगंगा अपवाह
1. सिन्धु अपवाह की नदियाँ गॉर्ज का निर्माण करती हैं।1. गंगा अपवाह की नदियाँ विशाल मैदानी भाग का निर्माण करती हैं।
2. इसमें दोआब पाए जाते हैं।2. इसमें संगम पाए जाते हैं।
3. इस अपवाह में बहने वाली नदियाँ मुख्यतः अरब सागर में गिरती हैं।3. इस अपवाह में बहने वाल्की नदियाँ मुख्यतः बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय प्रवाह तंत्र का उल्लेख कीजिए
अथवा
भौगोलिक आधार पर भारतीय प्रवाह तंत्र को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र 1

प्रश्न 5.
गोदावरी को अक्सर ‘वृद्ध गंगा’ या ‘दक्षिणी गंगा’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
गोदावरी दक्षिणी भारत की सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम स्थान महाराष्ट्र का नासिक ज़िला है। यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसका अपवाह क्षेत्र 1,36,090 वर्ग कि० मी० है और इसका जल-ग्रहण क्षेत्र महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश तक है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ प्रवरा, पेनगंगा, वेनगंगा, इन्द्रावती, वर्षा, मनेर आदि हैं। अतः इसका आकार तथा विस्तार बहत विशाल है। इसी विशालता, पवित्रता व प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण इसे ‘वृद्ध गंगा’ या ‘दक्षिण की गंगा’ कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 6.
पश्चिमी तट पर नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती, जबकि वे बड़ी मात्रा में तलछट बहाकर लाती हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट से निकलने वाली मुख्य नदियाँ नर्मदा, ताप्ती व अनेक छोटी-छोटी नदियाँ बहुत तेज़ गति से बहकर अरब सागर में गिरती हैं। इसका कारण अरब सागर की ओर पश्चिमी घाट के ढाल का तीव्र होना है। ये नदियाँ अपनी तेज़ गति के कारण अपने साथ बहाकर लाए गए अवसाद को गहरे सागर में ले जाती हैं, उनका तट पर जमाव नहीं कर पातीं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ भ्रंश घाटियों में बहती हैं। ये नदियाँ अपने अवसाद को मूल दरारों में भरती रहती हैं। इस कारण ये नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं। इन नदियों के मुहानों पर आने वाला ज्वार-भाटा भी इनके अवसादों को गहरे समुद्र में बहा ले जाता है। एक और कारण भी है-अरब सागर का निर्माण प्रायद्वीपीय खण्ड के पश्चिमी पार्श्व के अवतलन के कारण हुआ था। अतः पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की घाटियाँ भी जल में डूब गई थीं।

प्रश्न 7.
गॉर्ज किसे कहते हैं? भारत की कौन-सी नदियों ने गॉर्ज बनाए हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पर्वतीय प्रदेशों में नदी युवावस्था में होती है और अपनी लम्बवत् अपरदन क्रिया द्वारा बहुत गहरी तथा संकरी घाटी का निर्माण करती हैं जिसे गॉर्ज़ कहते हैं। गॉर्ज के किनारे खड़े ढालों वाले होते हैं। ये ऐसे क्षेत्रों में बनते हैं, जहाँ चट्टानें कठोर व संक्षारण-प्रतिरोधी होती हैं। विशाल आकार वाले महाखड्ड को कैनयन (Canyon) कहते हैं। सिन्धु, सतलुज, अलकनन्दा, गंडक, कोसी और ब्रह्मपुत्र नदियों ने हिमालय में गॉर्ज बनाए हैं।

प्रश्न 8.
सहायक नदी और वितरिका में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सहायक नदी और वितरिका में अंतर निम्नलिखित हैं-

सहायक नदीवितरिका
1. जब एक छोटी नदी एक मुख्य नदी में मिलती है तो वह सहायक नदी कहलाती है।1. डेल्टा क्षेत्र में अवसादों की रुकावट के कारण जब नदी कई शाखाओं में बँट जाती है तो उन शाखाओं को वितरिकाएँ कहा जाता है।
2. सहायक नदी मुख्य नदी में कहीं भी मिल सकती है।2. वितरिका सदैव डेल्टा प्रदेश में ही मिलती है।
3. परिवहन तथा सिंचाई दोनों के लिए सहायक नदी का उपयोग किया जाता है।3. मुख्यतः परिवहन के लिए वितरिका उपयोगी होती है।
4. सहायक नदी मुख्य नदी में अपना जल डालती हैं।4. वितरिका मुख्य नदी से जल ले जाती है और दोबारा नदी में नहीं मिलती।
5. गंगा नदी की सहायक नदी यमुना है।5. गंगा नदी की वितरिका हुगली है।

प्रश्न 9.
अन्तःस्थलीय अपवाह का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसका उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अन्तःस्थलीय अपवाह में उन नदियों को सम्मिलित किया जाता है जो किसी सागर में न गिरकर स्थलमण्डल पर ही किसी झील में विलीन हो जाती हैं अथवा मरुभूमि में ही विलीन हो जाती हैं। आन्तरिक अपवाह प्रदेश उत्तरी कश्मीर, दक्षिण-पूर्वी असम, पश्चिमी राजस्थान और हरियाणा तक सीमित है। राजस्थान की लूनी, माही और साबरमती नदियों को छोड़कर अन्य सभी नदियाँ मरुभूमि में ही विलीन हो जाती हैं अथवा साँभर झील में गिर जाती हैं। हरियाणा की घग्घर नदी भी अन्तःस्थलीय अपवाह का उदाहरण है।

प्रश्न 10.
सिन्धु नदी का उद्गम स्थल कहाँ है? इसकी पाँच सहायक नदियों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु नदी का उद्गम स्थल कैलाश पर्वत-श्रेणी के उत्तरी ढलान से तिब्बत में लगभग 5,000 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर झील है। अपने स्रोत से यह उत्तर तथा उत्तर:पश्चिम दिशा में लगभग 320 कि०मी० बहने के बाद जम्मू-कश्मीर में से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है। इसकी सहायक नदियाँ हैं-

  • सतलुज
  • व्यास
  • रावी
  • चिनाब
  • झेलम।

प्रश्न 11.
प्रायद्वीपीय भारत की पश्चिम की ओर बहने वाली दो मुख्य नदियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय भारत का सामान्य ढाल पूर्व की ओर है। इसलिए अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर खाड़ी बंगाल में प्रवेश करती हैं। पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। उनमें दो प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित हैं

  • नर्मदा नदी-यह मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर अरब सागर की खम्भात की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी लम्बाई 1,300 कि०मी० है।
  • ताप्ती नदी-यह मध्य प्रदेश में महादेव की पहाड़ियों से निकलकर खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी लम्बाई 338 कि०मी० है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्द ब्रह्म नदी अवधारणा की व्याख्या कीजिए। उन मुख्य तर्कों का विवरण दीजिए जिनके आधार पर इस अवधारणा पर आपत्ति की गई है।
उत्तर:
हिन्द-ब्रह्म नदी अवधारणा-भू-गर्भ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि शिवालिक पहाड़ियों के संस्तरों का निक्षेपण एक ऐसी विशाल नदी द्वारा किया गया था जो मायोसीन काल में असम से हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ अनुदैर्ध्य विस्तार में बहती हुई सुलेमान, किरथर के सहारे उत्तर:पश्चिम कोने तक पहुँचकर दक्षिण में मुड़कर अरब सागर में जा मिलती थी। पेस्को ने इस नदी को हिन्द-ब्रह्म तथा पिलग्रिम ने शिवालिक का नाम दिया। ऐसा विश्वास है कि हिन्द-ब्रह्म नदी सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र सहित हिमालय से निकलने वाली सभी नदियों के समस्त जल को अरब सागर तक ले जाती थी। कालान्तर में यह ऐतिहासिक नदी निम्नलिखित तन्त्रों व उपतन्त्रों में बँट गई

  • सिन्धु नदी
  • पंजाब में सिन्धु नदी की पाँचों सहायक नदियाँ (सतलुज, रावी, चिनाब, ब्यास व झेलम)
  • गंगा तथा हिमालय से निकलने वाली उसकी सहायक नदियाँ
  • ब्रह्मपुत्र का वह भाग जो असम में है व हिमालय से निकलने वाली उसकी सहायक नदियाँ।

हिन्द-ब्रह्म नदी का उपर्युक्त विच्छेदन निम्नलिखित कारणों से हुआ-

  • अत्यन्त नूतन या प्लिस्टोसीन युग में हुई भू-गर्भिक हलचलें जिनमें पोतवार पठार का उत्थान भी सम्मिलित है।
  • इस नदी की निचली घाटी में इसकी सहायक नदियों द्वारा शीर्षाभिमुख अपरदन।

इन परिवर्तनों से हिन्द-ब्रह्म नदी की प्रवाह-दिशा में प्रत्यावर्तन हुआ। नदी का उत्तरी-पश्चिमी भाग सिन्धु नदी के रूप में विकसित हुआ तथा मध्य में विच्छेदित हुआ मुख्य धारा का शेष भाग वर्तमान गंगा के रूप में प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिरने लगा। गंगा ने यमुना को अपनी सहायक नदी के रूप में मिला लिया। इस घटना से पूर्व यमुना सम्भवतः दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती थी और सिन्धु की सहायक नदी थी। सिन्धु तथा गंगा तन्त्रों के बीच सहायक नदियों का विनिमय उनके मध्य स्थित प्रदेश में पिछले प्राअभिनव काल की सामान्य घटना रही है। इस प्रकार हिन्द-ब्रह्म ही वह मूल नदी थी जिससे हिमालय के वर्तमान नदी-तन्त्रों का विकास हुआ है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 2.
प्रायद्वीपीय भारत की नदियों का विस्तृत वर्णन कीजिए। अथवा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र का वर्णन करें।
अथवा
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में गिरने वाली नदियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत में अनेक छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश बंगाल की खाड़ी में, कुछ अरब सागर में व कुछ अन्य खम्भात की खाड़ी में गिरती हैं। पठार की प्रायः सभी नदियाँ करोड़ों वर्षों से अपने मार्गों को काटती चली आ रही हैं। अतः इनकी घाटियाँ चौड़ी और छिछली हैं। नगण्य ढाल क्रम के कारण इन नदियों की अपरदन शक्ति नष्टप्रायः हो चुकी है।

I. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ-
1. महानदी-यह नदी कोयना और संख नदियों के संगम से मिलकर छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के निकट निकलती है और छत्तीसगढ़ व आन्ध्र प्रदेश से होती हुई ओडिशा में बड़ा डेल्टा बनाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 880 कि० मी० है और अपवाह-क्षेत्र लगभग 1,41,600 वर्ग कि० मी० है। प्रसिद्ध हीराकुड बाँध इसी नदी पर बना हुआ है।

2. गोदावरी यह प्रायद्वीपीय नदियों में सबसे लम्बी नदी है जिसकी लम्बाई 1,465 कि० मी० है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिमी घाट से निकलती है और आन्ध्र प्रदेश में बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। गोदावरी का कुल अपवाह-क्षेत्र 3,12,812 वर्ग कि० मी० है। अपनी पवित्रता, सौन्दर्य, उपयोगिता, विशाल आकार एवं विस्तार के कारण इसे वृद्ध गंगा तथा दक्षिण गंगा के नाम से भी पुकारा जाता है।

3. कृष्णा-इस नदी का उद्गम महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट पर स्थित महाबलेश्वर के निकट है। गोदावरी के बाद यह प्रायद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी नदी है जिसकी लम्बाई 1,400 कि०मी० लम्बी है। इस नदी का कुल अपवाह-क्षेत्र 2,58,948 वर्ग कि०मी० है जो महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में विस्तृत है। कोयना, तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा व मूसी इत्यादि इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

4. कावेरी यह नदी कर्नाटक के कुर्ग जिले में पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरि श्रेणी से निकलती है और तमिलनाडु राज्य में पत्तनम के निकट बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। 800 कि० मी० लम्बी इस नदी का अपवाह-क्षेत्र लगभग 87,900 वर्ग कि० मी० है, जो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में फैला है। मैसूर के पठार पर बहते समय यह नदी अनेक सुन्दर जल-प्रपात बनाती है जिनमें शिवसमुद्रम तथा होगेनकाल प्रपात दर्शनीय हैं। इस नदी पर मैटूर सहित अनेक बाँध बनाए गए हैं। कावेरी के डेल्टा में बसा तंजाऊर जिला अपने उपजाऊपन के कारण दक्षिण का उद्यान कहलाता है।

II. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
1. नर्मदा यह नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर विन्ध्याचल और सतपुड़ा पर्वत-श्रेणियों के बीच पश्चिम की ओर बहती हुई भड़ौच के निकट अरब सागर की खम्भात की खाड़ी (Bay of Cambay) में जा मिलती है। इस नदी की लम्बाई 1,300 कि० मी० और अपवाह-क्षेत्र 98,796 वर्ग कि० मी० है। मध्य प्रदेश में जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर चट्टानों में नर्मदा का महाखड्डु और कपिलधारा प्रपात मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

2. ताप्ती-यह नदी मध्य प्रदेश के बेतूल जिले में महादेव की पहाड़ियों से निकलती है। सतपुड़ा श्रेणी के दक्षिण में स्थित दरार घाटी (Rift Valley) में नर्मदा के समानान्तर पश्चिम की ओर बहती हुई खम्भात की खाड़ी में मिल जाती है। ताप्ती नदी 724 कि०मी० लम्बी है। इस नदी का अपवाह-क्षेत्र 65,145 वर्ग कि० मी० है जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात में विस्तृत है।

3. माही नदी-इसकी उत्पत्ति विन्ध्याचल के पश्चिमी भाग से हुई है। यह गुजरात में बहती हुई खम्भात की खाड़ी में गिरती है।

4. साबरमती नदी राजस्थान के डूंगरपुर जिले में अरावली की पहाड़ियाँ इसका उद्गम स्थान है, जो 300 कि०मी० बहने के बाद खम्भात की खाड़ी में गिरती है। इसका अपवाह क्षेत्र 21,600 वर्ग कि०मी० है जो राजस्थान तथा गुजरात में फैला है।।

5. लूनी नदी-यह नदी राजस्थान के अजमेर के दक्षिण-पश्चिम से निकलकर 300 किलोमीटर बहने के बाद कच्छ की खाड़ी में गिरती है।

उपरोक्त नदियों के अतिरिक्त प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में चम्बल, केन, बेतवा तथा सोन प्रमुख नदियाँ हैं, जो प्रायद्वीपीय पठार से निकलकर यमुना तथा गंगा में मिलती हैं, इनकी प्रवाह दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर है। चम्बल, केन तथा बेतवा नदियाँ बीहड़-खड्डों से प्रवाहित होती हैं। प्रायद्वीपीय पठार का ढाल उत्तर में सतलुज-गंगा के मैदान की ओर होने के कारण ये नदियाँ उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होती हैं तथा गंगा और यमुना को जल प्रदान करती हैं।

प्रश्न 3.
हिमालय की नदियों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा
उत्तर भारतीय नदियों का वर्णन करें।
अथवा
सिन्धु अपवाह तंत्र का वर्णन कीजिए।
अथवा
गंगा अपवाह तंत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारतीय नदी तंत्र को हिमालयी अपवाह तंत्र भी कहा जाता है। हिमालय की नदियों के अपवाह तंत्र को निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा जा सकता है-

  • सिन्धु अपवाह तंत्र
  • गंगा अपवाह तंत्र
  • ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र

(1) सिन्धु अपवाह तंत्र-इस तंत्र के अन्तर्गत उत्तरी भारत की प्रमुख नदियाँ सिन्धु, झेलम, चेनाब, सतलुज, रावी और व्यास सम्मिलित हैं।
1. सिन्धु नदी-यह नदी तिब्बत में 5,180 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर के निकट से निकलती है। यह अपने उद्गम स्थान से उत्तर:पश्चिम दिशा में 320 किलोमीटर बहने के बाद भारतीय क्षेत्र में पहुँचती है। लद्दाख तथा गिलगित से होकर यह नदी एटक के निकट मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। सिन्धु नदी की लम्बाई लगभग 2,900 कि०मी० तथा जलग्रहण क्षेत्र लगभग 11,66,700 वर्ग कि०मी० है, जिसमें से 3,21,300 वर्ग कि०मी० भारत में है। पाकिस्तान के साथ हुए सिन्धु जल-सन्धि के अनुसार भारत सिन्धु नदी का केवल 20% पानी प्रयुक्त कर सकता है।

2. झेलम नदी-यह नदी कश्मीर की शेषनाग झील से निकलकर 120 किलोमीटर उत्तर:पश्चिम दिशा में बहती हुई वूलर झील से मिलती है। इसकी लम्बाई 400 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 28,500 कि०मी० है।

3. चेनाब नदी-यह नदी हिमाचल से निकलती है, जहाँ दो नदियाँ चन्द्र और भागा मिलती हैं। हिमाचल में इसे चन्द्रभागा नदी कहते हैं। यह नदी पश्चिम की ओर पीर-पंजाल के समानान्तर बहती है और अखनूर के पास मैदान में प्रवेश करती है तथा कुछ दूर जाने पर पाकिस्तान में चली जाती है। भारत में यह लगभग 1,200 कि०मी० तक बहती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र 2

4. सतलुज नदी-यह नदी मानसरोवर झील के निकट राक्षस ताल से लगभग 4,555 मीटर की ऊंचाई से निकलती है। 1,440 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह नदी व्यास नदी में मिल जाती है। शिपकी-ला दर्रे के निकट यह भारत में प्रवेश करती है। पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा करने के पश्चात् रूपनगर (रोपड़) के पास यह पंजाब में प्रवेश करती है। भारत की प्रमुख बहु-उद्देश्यीय ‘भाखड़ा-नांगल परियोजना’ इसी नदी पर निर्मित है।

5. रावी नदी-यह पंजाब की सबसे छोटी नदी है, जो धौलपुर पर्वतमाला के उत्तरी तथा पीर-पंजाल में दक्षिण ढालों से बहती हुई मैदानी भाग में प्रवेश करती है।

6. व्यास नदी-यह नदी हिमाचल में स्थित रोहतांग दर्रे के व्यास कुण्ड से निकलती है। यह हिमाचल में कुल्लू, मण्डी और कांगड़ा जिलों से बहती हुई पंजाब में अमृतसर तथा कपूरथला जिलों से बहती हुई कपूरथला के निकट सतलुज में मिल जाती है। इसका अपवाह क्षेत्र 25,900 वर्ग किलोमीटर है तथा कुल लम्बाई 615 किलोमीटर है।

(2) गंगा अपवाह तंत्र-गंगा अपवाह तंत्र उत्तरी भारत का प्रमुख तंत्र है जिसमें गंगा तथा उसकी सहायक नदियाँ सम्मिलित हैं।
1. गंगा नदी-यह नदी अलकनन्दा एवं भागीरथी का सम्मिलित नाम है, जो क्रमशः उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय से बद्रीनाथ के निकट तथा गोमुख से निकलकर देवप्रयाग में आपस में मिलकर गंगा के नाम से जानी जाती है। अलकनन्दा बद्रीनाथ के निकट तिब्बत की सीमा से 7,800 मीटर की ऊंचाई से निकलकर विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा, नन्दप्रयाग में नन्दाकिनी, कर्णप्रयाग में पिण्डर तथा रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी नदियों का जल ग्रहण कर देवप्रयाग में भागीरथी से मिलती है, जबकि भागीरथी 6,600 मीटर की ऊँचाई से गंगोत्री ग्लेशियर से निकलकर टिहरी में मिलंगना नदी को अपने साथ मिलाकर देवप्रयाग में अलकनन्दा से मिलती है। गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इलाहाबाद में यमुना इसमें मिलती है और इसकी दिशा पूर्वी हो जाती है। बिहार तथा बंगाल होती हुई अन्त में यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

2. यमुना नदी यह गंगा की प्रमुख सहायक नदी है जो गढ़वाल में यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है। ताजेवाला नामक स्थान से यह उत्तरी मैदान में प्रवेश करती है और यह इलाहाबाद में गंगा में विलीन हो जाती है। चम्बल, बेतवा तथा केन नदियाँ, जो विन्ध्याचल से निकलकर दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं, यमुना में मिल जाती हैं।

3. घाघरा नदी-पहाड़ी क्षेत्र में इसे करनाली नदी कहते हैं। यह हिमालय में मप्सातुंग ग्लेशियर से निकलती है, नेपाल के बाद यह भारत में प्रवेश करती है तो शारदा नदी का जल लेकर छपरा के निकट गंगा नदी में मिल जाती है। यह उत्तर प्रदेश के अयोध्या, फैजाबाद और बलिया जिलों में बहती है।

4. गंडक नदी-यह चीन तथा तिब्बत की सीमा से निकलकर नेपाल से होती हुई बिहार से पटना के पास गंगा में मिल जाती है। नेपाल में इसे नारायणी नदी कहते हैं।

5. कोसी नदी-यमुना के बाद यह नदी गंगा की दूसरी बड़ी सहायक नदी है। यह 730 कि०मी० लम्बी है इस नदी में बाढ़ें अधिक आती हैं तथा अपार जन-धन की हानि होती है, इसलिए इसे ‘बिहार का शोक’ (Sorrow of Bihar) कहते हैं।

(3) ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र यह तिब्बत में मानसरोवर झील के दक्षिण-पूर्व में 85 किलोमीटर की दूरी से निकलती है। तिब्बत में इसकी दिशा हिमालय के समानान्तर पश्चिम से पूर्व की ओर है, जहाँ इसे साँपो (Tsangpo) कहते हैं। भारत में यह नामचा बरवा के निकट दक्षिण की ओर मुड़ जाती है, जहाँ इसे दिहांग (अरुणाचल प्रदेश में) कहते हैं।

उसके बाद असम में प्रवेश करने पर इसे ब्रह्मपत्र के नाम से जाना जाता है। गारो पहाडियों से मडकर यह दक्षिण दिशा में बहती हई दक्षिण-पर्व में मेघना नदी में मिल जाती है। यह भारत की सबसे लम्बी नदी है, जिसकी लम्बाई लगभग 2,900 किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में मुख्य रूप से सबनसीरी, भारेली तथा मनास जो इसके दाहिने किनारे मिलती हैं। बाएं किनारे मिलने वाली सहायक नदियों में लुहित, दिहिंग, बूढ़ी दिहिंग तथा कापिली प्रमुख नदियाँ हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. गारो और खासी पहाड़ियाँ निम्नलिखित में से किसका भाग हैं?
(A) शिवालिक का
(B) नीलगिरि का
(C) दक्कन के पठार का
(D) हिमालय का
उत्तर:
(D) हिमालय का

2. नई दिल्ली की अक्षांश रेखा के दक्षिण में स्थित सबसे ऊंची चोटी का नाम है-
(A) माउंट एवरेस्ट
(B) गुरु शिखर
(C) धूपगढ़
(D) दोदा बेटा
उत्तर:
(A) माउंट एवरेस्ट

3. कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने वाला दर्रा है-
(A) कराकोरम
(B) बनिहाल
(C) जोजिला
(D) नाथूला
उत्तर:
(B) बनिहाल

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4. हिमालय पर्वत का निर्माण निम्नलिखित में से किसके परिणामस्वरूप हुआ था?
(A) महासागर-महासागर प्लेटों के अभिसरण द्वारा
(B) महाद्वीप-महाद्वीप प्लेटों के अभिसरण द्वारा
(C) महाद्वीप-महासागर प्लेटों के अभिसरण द्वारा
(D) महाद्वीप-द्वीपीय चाप के अभिसरण द्वारा
उत्तर:
(B) महाद्वीप-महाद्वीप प्लेटों के अभिसरण द्वारा

5. निम्नलिखित में से किस नगर की पहाड़ी सही नहीं दर्शाई गई है?
(A) ऊटकमंड-नीलगिरि पहाड़ियाँ
(B) माउंट आबू-अन्नामलाई पहाड़ियाँ
(C) कोडाईकनाल-अन्नामलाई पहाड़ियाँ
(D) शिमला-पीरपंजाल पहाड़ियाँ
उत्तर:
(D) शिमला-पीरपंजाल पहाड़ियाँ

6. निम्नलिखित में से किस पर्वत का निर्माण सबसे पहले हुआ था?
(A) विंध्याचल
(B) अरावली
(C) सतपुड़ा
(D) नीलगिरि
उत्तर:
(B) अरावली

7. चंडीगढ़ किस पहाड़ी के नीचे बसी हुई राजधानी है?
(A) सोलन पहाड़ी
(B) मोरनी हिल्स
(C) शिवालिक पहाड़ी
(D) चंडी हिल्स
उत्तर:
(C) शिवालिक पहाड़ी

8. भारत का प्राचीनतम पर्वतक्रम कौन-सा है?
(A) सतपुड़ा
(B) अरावली
(C) विंध्याचल
(D) हिमालय
उत्तर:
(B) अरावली

9. जोजिला दर्रा निम्नलिखित में से किसको जोड़ता है?
(A) कश्मीर एवं तिब्बत
(B) नेपाल एवं तिब्बत
(C) लेह एवं श्रीनगर
(D) लेह एवं करगिल
उत्तर:
(C) लेह एवं श्रीनगर

10. छोटा नागपुर पठार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है
(A) धूपगढ़
(B) पंचमढ़ी
(C) पारसनाथ
(D) महाबलेश्वर
उत्तर:
(C) पारसनाथ

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11. तमिलनाडु का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है-
(A) दोदा बेट्टा
(B) धूपगढ़
(C) महेंद्रगिरि
(D) कोडाई कनाल
उत्तर:
(A) दोदा बेट्टा

12. कलिमपोंग को ल्हासा से जोड़ने वाला दर्रा है-
(A) जेलेपला
(B) नाथूला
(C) बोमडिला
(D) शिपकीला
उत्तर:
(A) जेलेपला

13. मिकिर पहाड़ियाँ किस राज्य में विस्तृत हैं?
(A) मेघालय
(B) सिक्किम
(C) असम
(D) झारखंड
उत्तर:
(C) असम

14. मानसरोवर झील व कैलाश के दर्शन करने वाले भारतीय यात्री किन दरों से होकर निकलते हैं?
(A) शिपकीला
(B) माना और नीति दर्रे
(C) कराकोरम
(D) बोलन दर्रा
उत्तर:
(B) माना और नीति दर्रे

15. शिवालिक की अत्यधिक कटी-फटी और बंजर दक्षिणी ढलानों को किस राज्य में ‘चो’ कहा जाता है?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) पंजाब
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) सिक्किम
उत्तर:
(C) हिमाचल प्रदेश

16. भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का नाम है-
(A) माउंट एवरेस्ट
(B) गाडविन ऑस्टिन (K²)
(C) नामचा बरवा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) गाडविन ऑस्टिन (K²)

17. बालटोरो, हिस्पर, बतूरा और बिफाओं क्या हैं?
(A) फर वाले हिमालयी जंतु
(B) तिब्बत हिमालय की चोटियाँ
(C) ट्रांस हिमालय की हिमनदियाँ
(D) कराकोरम की श्रेणियाँ
उत्तर:
(C) ट्रांस हिमालय की हिमनदियाँ

18. केरल के तट पर मिलने वाले लैगून को क्या कहा जाता है?
(A) पयार
(B) बुग्याल
(C) मर्ग
(D) कयाल
उत्तर:
(D) कयाल

19. शिवालिक के गिरिपद क्षेत्र में पहुंचकर जहां छोटी-छोटी नदियां अवसाद के नीचे विलुप्त हो जाती हैं, उसे क्या कहते हैं?
(A) तराई
(B) भाबर
(C) खादर
(D) डेल्टाई प्रदेश
उत्तर:
(B) भाबर

20. निम्नलिखित में से कौन-सा उत्तर से दक्षिण की ओर सही क्रम में है?
(A) विंध्याचल, सतपुड़ा, नीलगिरि, ताप्ती
(B) विंध्याचल, नर्मदा, सतपुड़ा, ताप्ती
(C) नर्मदा, विंध्याचल, ताप्ती, सतपुड़ा
(D) विंध्याचल, ताप्ती, नर्मदा, सतपुड़ा
उत्तर:
(B) विंध्याचल, नर्मदा, सतपुड़ा, ताप्ती

21. धूपगढ़ किस पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी है?
(A) सतपुड़ा
(B) विंध्याचल
(C) अरावली
(D) पूर्वी घाट
उत्तर:
(A) सतपुड़ा

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22. कौन-सी पहाड़ियाँ पश्चिमी घाट से संबंधित नहीं हैं?
(A) नीलगिरि
(B) अन्नामलाई
(C) पालकोंडा
(D) इलायची
उत्तर:
(C) पालकोंडा

23. मुंबई-कोलकाता रेलमार्ग किस दर्रे से होकर निकलता है?
(A) थालघाट
(B) भोर घाट
(C) पाल घाट
(D) शेनकोटा गैप
उत्तर:
(A) थालघाट

24. निम्नलिखित में से सबसे ऊंची चोटी कौन-सी है?
(A) माउंट आबू
(B) महाबलेश्वर
(C) दोदा बेट्टा
(D) अनाईमुड़ी
उत्तर:
(D) अनाईमुड़ी

25. भारत में कोरोमण्डल तट कहाँ विस्तृत है?
(A) कृष्णा से कावेरी तक
(B) महानदी से कृष्णा तक
(C) गोवा से मंगलौर तक
(D) मंगलौर से कन्याकुमारी तक
उत्तर:
(A) कृष्णा से कावेरी तक

26. निम्नलिखित में से कौन-सी पर्वत चोटी भारत में स्थित नहीं है?
(A) के-2
(B) कामेट
(C) माउंट एवरेस्ट
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(C) माउंट एवरेस्ट

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हिमालय की उत्पत्ति के बारे में नवीनतम तथा सर्वमान्य सिद्धान्त कौन-सा है?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
शिलांग का पठार किस भू-आकृतिक विभाग का अंग है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 3.
भारत के पठारी भाग में भ्रंश घाटी से बहने वाली किसी एक नदी का नाम बताओ।
उत्तर:
नर्मदा।

प्रश्न 4.
कश्मीर की पुरानी झीलों की तली के निक्षेपों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
करेवा।

प्रश्न 5.
भारत के अवशिष्ट पर्वत का नाम बताइए।
उत्तर:
अरावली।

प्रश्न 6.
हिमालय और अरावली में दो समानताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. दोनों मोड़दार हैं
  2. दोनों का जन्म भू-अभिनति (Geosyncline) से हुआ है।

प्रश्न 7.
भारतीय भू-पृष्ठ का सबसे प्राचीन भाग अथवा वृद्धावस्था की भू-आकृति वाला भाग कौन-सा है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार।

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प्रश्न 8.
भारत का कौन-सा भू-भाग क्रमिक अपरदन चक्र के कारण घिसकर जीर्णावस्था में पहुंच चुका है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार।।

प्रश्न 9.
प्रायद्वीपीय पठारों का जन्म किस युग में हुआ था?
उत्तर:
पूर्व-कैम्ब्रियन युग में।

प्रश्न 10.
पूर्व-कैम्ब्रियन युग कब शुरू हुआ था?
उत्तर:
60 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 11.
नूतन युग की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
अब से सात करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 12.
अरावली पर्वत-श्रेणी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
विन्ध्य महाकल्प (पैल्योजोइक) में लगभग 40 करोड़ साल पहले।

प्रश्न 13.
प्रायद्वीपीय पठार में अवतलन के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
गोदावरी, महानदी, दामोदर, नर्मदा, ताप्ती, मालाबार व मेकरान के तट भ्रंश घसाव (अवतलन) के उदाहरण हैं।

प्रश्न 14.
प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिमी लावा प्रदेश में कौन-सी मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 15.
अरब सागर का निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
दक्षिणी पठार के पश्चिमी भाग के धंसने से।

प्रश्न 16.
आज से सात करोड़ साल पहले वर्तमान हिमालय के स्थान पर क्या था?
उत्तर:
टेथीस सागर जो एक भू-अभिनति था।

प्रश्न 17.
टेथीस सागर के उत्तर व दक्षिण में कौन-से भूखण्ड थे?
उत्तर:
उत्तर में अंगारालैण्ड व दक्षिण में गोण्डवाना लैण्ड।

प्रश्न 18.
हिमालय का जन्म किस दौर में हुआ था?
उत्तर:
टरश्यरी दौर अथवा आल्पाइन दौर में।

प्रश्न 19.
हिमालय का सर्वमान्य विस्तार किन दो नदियों के बीच है?
उत्तर:
सिन्धु तथा ब्रह्मपुत्र।

प्रश्न 20.
पूर्व-पश्चिम दिशा में हिमालय की कुल कितनी लम्बाई है?
उत्तर:
2,400 कि०मी०।

प्रश्न 21.
भारत की सबसे ऊँची पर्वत चोटी का नाम तथा उसकी स्थिति बताइए।
उत्तर:
K2 कराकोरम पर्वत श्रेणी में।

प्रश्न 22.
दो नदियों के बीच का भू-भाग क्या कहलाता है?
उत्तर:
दोआब।

प्रश्न 23.
‘बारी’ दोआब किन दो नदियों के बीच फैला है?
उत्तर:
ब्यास और रावी।

प्रश्न 24.
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे ऊँची चोटी का नाम क्या है?
उत्तर:
अनाईमुड़ी।

प्रश्न 25.
नीलगिरि के दक्षिण में पश्चिमी घाट में स्थित दो दरों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. पाल घाट तथा
  2. शेनकोटा गैप।

प्रश्न 26.
प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
600 से 900 मीटर।

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प्रश्न 27.
अण्डमान तथा निकोबार द्वीप-समूह में कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
204

प्रश्न 28.
भारत में ज्वालामुखी कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
बैरन द्वीप, अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह में।

प्रश्न 29.
भारत का कौन-सा तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा है?
उत्तर:
पूर्वी तटीय मैदान।

प्रश्न 30.
भारत के प्रवाल द्वीप कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
लक्षद्वीप; अरब सागर में।

प्रश्न 31.
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थित प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा कौन-सा है?
उत्तर:
शिलांग पठार।

प्रश्न 32.
हिमालय पर्वतमाला किस पर्वत प्रणाली का अंग है?
उत्तर:
पामीर की गाँठ।

प्रश्न 33.
शिवालिक श्रेणी के दो अन्य नाम बताइए।
उत्तर:

  1. उप हिमालय तथा
  2. बाह्य हिमालय।

प्रश्न 34.
किस पर्वत श्रेणी को तिब्बत के पठार की रीढ़ कहा जाता है?
उत्तर:
कराकोरम श्रेणी को।

प्रश्न 35.
कराकोरम श्रेणी की दो प्रमख चोटियों के नाम लिखो।
उत्तर:
गाडविन आस्टिंन (K²), हिडन पीक।

प्रश्न 36.
कराकोरम पर्वत की दो श्रेणियों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. अघील
  2. मुजताध।

प्रश्न 37.
कराकोरम श्रेणी की दो प्रमुख हिमनदियों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. बालटोरो
  2. हिस्पर।

प्रश्न 38.
कराकोरम दर्रा किनके बीच द्वार का काम करता है?
उत्तर:
भारत तथा तारिम बेसिन के बीच।

प्रश्न 39.
पंजाब हिमालय कहाँ से कहाँ तक विस्तृत है?
उत्तर:
सिन्धु नदी से सतलुज नदी तक।

प्रश्न 40.
असम हिमालय कहाँ से कहाँ तक है?
उत्तर:
तिस्ता नदी से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के दिहांग दर्रे तक।

प्रश्न 41.
भाबर में अवसाद कौन-सी चट्टानें बनाती हैं?
उत्तर:
पारगम्य चट्टानें।

प्रश्न 42.
भारतीय प्रायद्वीप में विविधता और जटिलता के कौन-से दो कारण हैं?
उत्तर:

  1. भ्रंशन
  2. विभंजन।

प्रश्न 43.
अरावली का उच्चतम शिखर कौन-सा है?
उत्तर:
गुरु शिखर।

प्रश्न 44.
सतपुड़ा की सबसे ऊँची चोटी कौन-सी व कहाँ है?
उत्तर:
धूपगढ़ (1350 मीटर)। यह चोटी महादेव पर्वत पर है।

प्रश्न 45.
धुआँधार जलप्रपात किस नदी ने बनाया है और यह कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
नर्मदा नदी ने जबलपुर के पास बनाया है।

प्रश्न 46.
भारत के मुख्य पठार तथा शिलांग के पठार के बीच फैले काँप के निम्न मैदान को क्या कहते हैं?
उत्तर:
गारो-राजमहल खड्ड।

प्रश्न 47.
थालघाट दर्रे से कौन-सा रेलमार्ग निकलता है?
उत्तर:
मुम्बई-कोलकाता रेलमार्ग।

प्रश्न 48.
भोरघाट से कौन-सा रेलमार्ग निकलता है?
उत्तर:
मुम्बई-चेन्नई रेलमार्ग।

प्रश्न 49.
पालघाट से कौन-सा स्थल-मार्ग निकलता है?
उत्तर:
केरल को तमिलनाडु से मिलाने वाली सड़क।

प्रश्न 50.
अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह को अलग करने वाले समुद्री भाग का नाम बताओ।
उत्तर:
10° चैनल।

प्रश्न 51.
सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई कितनी है?
उत्तर:
1000 से 2000 मीटर।

प्रश्न 52.
मणिपुर घाटी के मध्य में कौन-सी मील स्थित है?
उत्तर:
लोकताक झील।

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प्रश्न 53.
भारत के भूगर्भिक इतिहास को कितने कालों में बाँटा गया है?
उत्तर:
चार।

प्रश्न 54.
नूतन जलोढ़ का क्षेत्र किसे कहा जाता है?
उत्तर:
खादर प्रदेश को।

प्रश्न 55.
पुराना जलोढ़ का क्षेत्र किसे कहा जाता है?
उत्तर:
बाँगर प्रदेश को।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय उपमहाद्वीप के तीन भू-आकृतिक विभागों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. हिमालय तथा उससे संबद्ध पर्वत श्रृंखलाएँ
  2. सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 2.
हिमालय की युवावस्था को सिद्ध करने वाले तीन प्रमाण बताइए।
उत्तर:

  1. करेवा
  2. स्तनपायी जीवों के अवशेष
  3. नदी वेदिकाएँ।

प्रश्न 3.
उत्खण्ड क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊपर उठा प्रखण्ड जो पठार के रूप में भ्रंशों के बीच से ऊपर उठता है।

प्रश्न 4.
पठार के भू-स्थलों के उत्थान के दो प्रमाण दीजिए।
अथवा
दक्षिण भारत की जीर्ण एवं वृद्ध स्थलाकृति पर युवा लक्षणों के प्रादुर्भाव के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. पलनी तथा
  2. नीलगिरि पहाड़ियों का उत्थान।

प्रश्न 5.
हिमालय को वलित पर्वत क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि हिमालय का निर्माण टेथीस सागर की तली में एकत्रित तलछट के वलित होकर ऊपर उठने से हुआ है।

प्रश्न 6.
समस्त भूपटल किन छह मुख्य अथवा प्राचीन प्लेटों में बँटा हुआ है?
उत्तर:

  1. प्रशांती प्लेट
  2. यूरेशियाई प्लेट
  3. अमरीकी प्लेट
  4. भारतीय प्लेट
  5. अफ्रीकी प्लेट
  6. अण्टार्कटिका प्लेट।

प्रश्न 7.
भारत के उत्तरी मैदान का विस्तार कहाँ-से-कहाँ तक है?
उत्तर:
पश्चिम में सिन्धु नदी के डेल्टा से पूर्व में गंगा नदी के डेल्टा तक है।

प्रश्न 8.
भू-अवनति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल के उथले लम्बे भाग जिसमें तलछट का जमाव होता है।

प्रश्न 9.
द्रोणी घाटी का अर्थ बताइए।
उत्तर:
भ्रंशन के उपरान्त धरती के धंसाव या निकटवर्ती खण्डों के उत्थान से बनी नदी घाटी द्रोणी घाटी कहलाती है।

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प्रश्न 10.
भारत के पाँच भौतिक विभागों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. हिमालय पर्वत समूह
  2. सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार
  4. तटीय मैदान
  5. द्वीप।

प्रश्न 11.
हिमालय की तीन समान्तर श्रेणियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. बृहत् हिमालय
  2. लघु हिमालय
  3. बाह्य हिमालय।

प्रश्न 12.
हिमालय पर्वत समूह के चार तरंगित मैदानों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. अक्साईचिन
  2. दिपसांग
  3. लिंगजिताग (लद्दाख) तथा
  4. देवसाई (नंगा पर्वत के दक्षिण-पूर्व में कश्मीर में)।

प्रश्न 13.
8000 मीटर से ऊँची हिमालय की चार चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. एवरेस्ट
  2. कंचनजंगा
  3. मकालू
  4. धौलागिरि।

प्रश्न 14.
धाया क्या होता है?
उत्तर:
पंजाब के मैदान में नदियों द्वारा जलौढ़ राशि को तोड़कर बनाए गए वप्र धाया होते हैं।

प्रश्न 15.
पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले तीन दरों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. थाल घाट
  2. पाल घाट
  3. भोर घाट।

प्रश्न 16.
दक्कन पठार की पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं के नाम बताएँ।
उत्तर:
पूर्वी सीमा पर राजमहल पहाड़ियाँ तथा पश्चिमी सीमा पर अरावली पर्वत।

प्रश्न 17.
किसी देश के भौतिक विकास में किन तीन दशाओं की निर्णायक भूमिका होती है?
उत्तर:

  1. भौगोलिक संरचना
  2. प्रक्रम
  3. विकास की अवस्था।

प्रश्न 18.
बृहत् हिमालय की औसत ऊँचाई व औसत चौड़ाई बताइए।
उत्तर:
औसत ऊँचाई 6,000 मीटर तथा औसत चौड़ाई 25 कि०मी०।

प्रश्न 19.
दून या दुआर किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
लघु हिमालय और शिवालिक के बीच विस्तृत घाटियों को पश्चिम में दून और पूर्व में दुआर कहते हैं।

प्रश्न 20.
‘चौ’ कौन-सी भूमियाँ होती हैं?
उत्तर:
शिवालिक की बंजर व अत्यधिक कटी-फटी दक्षिणी ढलान ‘चौ’ भूमियाँ कहलाती हैं।

प्रश्न 21.
उत्तरी भारत के विशाल मैदान की लम्बाई व चौड़ाई बताइए।
उत्तर:
यह मैदान पश्चिम से पूर्व की ओर 3,200 कि०मी० लम्बा है व इसकी चौड़ाई 150 से 300 कि०मी० है।

प्रश्न 22.
गंगा के मैदान में बिछे तलछट की मोटाई कितनी है?
उत्तर:
समुद्र तल से 3,050 मीटर नीचे तथा पृथ्वी की ऊपरी सतह से 4,000 मीटर नीचे तक।

प्रश्न 23.
खादर प्रदेश उपजाऊ क्यों होते हैं?
उत्तर:
प्रतिवर्ष नदियों की बाढ़ से नए जलौढ़ बिछाने के कारण।

प्रश्न 24.
हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित हिमालय की बीच वाली श्रृंखला को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित हिमालय की बीच वाली श्रृंखला को हिमाचल के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 25.
हिमालय के किस भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
हिमालय के सतलुज और सिंधु के बीच के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 26.
भाबर क्या है?
उत्तर:
शिवालिक की तलहटी में नदियों द्वारा निक्षेपित भूमि को भाबर कहते हैं।

प्रश्न 27.
भांगर (बांगर) क्या है?
उत्तर:
नदियों के बाढ़ वाले मैदानों के ऊपरी भागों में स्थित भूमियों को बांगर कहते हैं।

प्रश्न 28.
भूड़ क्या होते हैं?
उत्तर:
बाँगर भूमि में पाए जाने वाले बालू के ढेरों को भूड़ कहते हैं।

प्रश्न 29.
शंकुपाद मैदानों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
जब किसी क्षेत्र में शंक व अन्तः शंक मिल जाते हैं।

प्रश्न 30.
अरावली श्रेणी की लम्बाई व ऊँचाई बताइए।
उत्तर:
अरावली श्रेणी 800 कि०मी० लम्बी व इसकी ऊँचाई समुद्र तल से 800 मीटर है।

प्रश्न 31.
लैगून (अनूप) क्या होते हैं?
उत्तर:
लैगून खारे पानी की झीलें होती हैं।

प्रश्न 32.
लैगूनों की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
लैगूनों की रचना तट के पास समुद्री जल का एक हिस्सा रोधिका और भू-जिह्वा द्वारा अलग हो जाता है।

प्रश्न 33.
कोंकण तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान का दमन से गोवा तक का भाग कोंकण तट कहलाता है।

प्रश्न 34.
कनारा या कन्नड़ तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान का गोआ से मंगलौर तक का भाग कन्नड़ तट कहलाता है।

प्रश्न 35.
मालाबार तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंगलौर से कन्याकुमारी के बीच का पश्चिमी तटीय मैदान मालाबार तट कहलाता है।

प्रश्न 36.
उत्तरी सरकार और कोरोमण्डल तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पूर्वी तटीय मैदान का महानदी से कृष्णा तक का उत्तरी भाग उत्तरी सरकार तथा कृष्णा से कावेरी तक का दक्षिणी भाग कोरोमण्डल तट कहलाता है।

प्रश्न 37.
पूर्वी तट पर पाए जाने वाले प्रमुख लैगूनों का नाम लिखिए।
उत्तर:
चिलका, कोल्लेरू तथा पुलीकट।

प्रश्न 38.
भारत को भू-गर्भीय अजायबघर क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भारत में सभी महाकल्पों, कल्पों व युगों में उत्पन्न विविध प्रकार की भू-गर्भिक संरचनाएँ एवं भू-आकार देखने को मिलते हैं। इसी आधार पर भारत भू-गर्भीय अजायबघर कहलाता है।

प्रश्न 39.
बृहत् स्तर पर भारत में पाई जाने वाली तीन प्रमुख भू-गर्भिक इकाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रायद्वीपीय पठार
  2. हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ
  3. सिन्धु-गंगा एवं ब्रह्मपुत्र का मैदान।

प्रश्न 40.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार की उत्खण्ड से तुलना क्यों की जाती है?
उत्तर:
यह पठार प्राचीनतम भू-पर्पटी शैलों से बना हुआ है जिनका जन्म पूर्व कैम्ब्रियन युग में निक्षेपित अवसादों के समुद्र की सतह से ऊपर उठने से हुआ था। एक बार समुद्र से ऊपर उठने के पश्चात् भारत का यह भू-भाग फिर कभी समुद्र में नहीं डूबा। आज तक सपाट भूमि एक दृढ़, अगम्य व अलचीले खण्ड के रूप में कायम है। इसलिए इस पठार की तुलना उत्खण्ड (Horst) से की जाती है।

प्रश्न 41.
भू-अभिनति से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भू-अभिनति भू-पर्पटी में एक बृहत् गर्त अथवा द्रोणी या सैकड़ों किलोमीटर तक फैली एक गहरी खाई होती है जिसका तल दोनों भू-खण्डों से अपरदित मलबे के निक्षेपण के कारण धीरे-धीरे धंसता जाता है, फलस्वरूप अवसादी शैलों की मोटी परतों का निर्माण होता है। टेथीस सागर भी इसी प्रकार की एक भू-अभिनति था।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

प्रश्न 42.
करेवा क्या है? यह क्या सिद्ध करता है?
उत्तर:
हिमालय के पीरपंजाल क्षेत्र में 1500 से 1850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित झीलों की तली में पाए जाने वाली नए अवसादों की परतों को करेवा कहा जाता है। करेवा का होना सिद्ध करता है कि हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है जिसके निर्माण की प्रक्रिया प्लीस्टोसीन काल तक होती रही है।

प्रश्न 43.
महाखड्ड क्या होते हैं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
महाखड्ड उच्च भूमियों या पर्वतों में गम्भीर और विवर होते हैं जिनमें प्रायः नदी बहती है।
उदाहरण-

  • संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलेरेडो नदी का महाखड्ड तथा
  • भारत में सिन्धु नदी का महाखड्ड।

प्रश्न 44.
‘दून’ किसे कहते हैं? हिमालय से इसके तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
लघु हिमालय और शिवालिक के बीच कहीं-कहीं सपाट, तलछटी, संरचनात्मक विस्तृत घाटियाँ पाई जाती है जिन्हें पश्चिम में दून (Doon) व पूर्व की ओर दुआर (द्वार) (Duar) कहा जाता है जो वास्तव में हिमालय के प्रवेश द्वार हैं। देहरादून, कोथरीदून, पटलीदून, ऊधमपुर, कोटली, चौखम्भा व ऊना इसी प्रकार की घाटियों में स्थित हैं।

प्रश्न 45.
तराई से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तराई भाबर के दक्षिण में मैदान का वह भाग होता है जहाँ भाबर की लुप्त नदियाँ पुनः भूतल पर प्रकट होती हैं। परिणामस्वरूप इस प्रदेश में अत्यधिक नमी व दलदल पाए जाते हैं। तराई की रचना बारीक कंकड, पत्थर, रेत और चिकनी मिट्टी से हुई है। पहले यहाँ घने वन और वन्य प्राणी पाए जाते थे परन्तु अब अधिकांश क्षेत्रों में कृषि होने लगी है। यहाँ ऊँची घास, कांस, हाथी घास, भाबर घास और वृक्ष इत्यादि पाए जाते हैं।

प्रश्न 46.
बाँगर प्रदेश क्या होता है?
उत्तर:
पुरानी जलौढ़ मिट्टी के निक्षेप से बने प्रदेश को बाँगर कहा जाता है। यह मैदान का वह ऊँचा उठा हुआ भाग होता है जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता। इस भाग में कैल्सियमी संग्रथनों जैसे कंकड़ की अधिकता होती है।

प्रश्न 47.
डेल्टा किसे कहते हैं? भारत में इसके चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
नदियों के मुहाने पर तलछट के निक्षेप से बनी भू-आकृति को डेल्टा कहते हैं। यह अधिकतर त्रिभुजाकार स्थल-रूप होता है। यह एक समतल उपजाऊ क्षेत्र होता है। भारत में चार मुख्य डेल्टा हैं-

  • गंगा नदी का डेल्टा
  • महानदी का डेल्टा
  • ब्रह्मपुत्र का डेल्टा
  • कावेरी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 48.
पामीर की गाँठ से निकलने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियों के नाम बताओ।
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित पामीर की गाँठ से अनेक पर्वत श्रेणियाँ बाहर निकलती हैं। पामीर की गाँठ को हम ‘संसार की छत’ (Roof of the World) भी कहते हैं।

  • महान हिमालय
  • कराकोरम श्रेणी
  • हिन्दुकुश पर्वत
  • कुनलुन पर्वत
  • तियेनशान पर्वत
  • पामीर पर्वत
  • अलाय पर्वत।

प्रश्न 49.
हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण किस विद्वान ने किया था? हिमालयी प्रदेशों के नाम भी बताइए।
उत्तर:
सर्वप्रथम सर सिडीन बुराई ने हिमालय को पश्चिम से पूर्व की ओर चार प्रादेशिक भागों में विभाजित किया। इस विभाजन का आधार नदी घाटियाँ हैं। इन प्रदेशों के नाम हैं-

  • पंजाब हिमालय
  • कुमाऊँ हिमालय
  • नेपाल हिमालय
  • असम हिमालय।

प्रश्न 50.
पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान में कोई दो अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. पूर्वी तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक समतल व चौड़ा है, जबकि पश्चिमी तटीय मैदान बहुत ही असमान एवं संकुचित है।
  2. पूर्वी तटीय मैदान में कई नदी डेल्टा हैं। इसके विपरीत, पश्चिमी तटीय मैदान में कई ज्वारनदमुख हैं।

प्रश्न 51.
प्रायद्वीपीय पठार तथा उत्तर के विशाल मैदानों में कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर:

  1. उत्तर के विशाल मैदानों का निर्माण जलोढ़ मिट्टी से हुआ है, जबकि प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण प्राचीन ठोस चट्टानों से हुआ है।
  2. उत्तर के विशाल मैदानों की समुद्र तल से ऊँचाई दक्षिणी पठार की अपेक्षा बहुत कम है।

प्रश्न 52.
अरब सागर कैसे बना?
उत्तर:
जिस समय हिमालय का निर्माण हो रहा था, उस समय दो अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाओं ने प्रायद्वीपीय पठार को प्रभावित किया। पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में एक विस्तृत ज्वालामुखी उद्गार हुआ। इसके अतिरिक्त पठार का पश्चिमी भाग टूटकर निमज्जित हो गया। हिंद महासागर का जल इस निमज्जित गर्त में भर गया और इस प्रकार अरब सागर का जन्म हुआ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दिल्ली के आस-पास के इलाके को जल-विभाजक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
दिल्ली और राजमहल की पहाड़ियों के बीच के इलाके में मिट्टी के जमाव की गहराई आस-पास के मैदानी क्षेत्र से अधिक मानी गई है। दिल्ली के आस-पास (अम्बाला, सहारनपुर तथा लुधियाना) का इलाका गंगा-यमुना के मैदान का सबसे अधिक ऊँचा उठा हुआ भाग है। इस भाग के पूर्व की तरफ की नदियाँ बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम की नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। यही कारण है कि इस ऊँचे उठे भाग को जल-विभाजक (Water Divide) कहा जाता है।

प्रश्न 2.
“हिमालय का जन्म भू-अभिनति से हुआ था।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व मेसोजोइक युग (Mesozoic Syncline) में वर्तमान हिमालय के स्थान पर भू-अभिनति (Geo Syncline) के रूप में एक सागर था जिसे टेथिस सागर (Tethys Sea) के नाम से जाना जाता है। उस समय उत्तरी मैदान समेत समस्त हिमालय क्षेत्र टेथिस सागर की सतह (Sea Level) से नीचे था। इस सागर के उत्तर में अंगारालैण्ड (Angaraland) व दक्षिण में गोंडवानालैण्ड (Gondwanaland) नामक दो भू-खण्ड थे।

इन दोनों स्थलीय भागों से आने वाली नदियों ने टेथिस सागर की तली में तलछट का निक्षेपण किया। मेसोजोइक युग के अन्त में कुछ भू-गर्भिक हलचलों के कारण सागर के उत्तर व दक्षिण में स्थित स्थलीय भाग अंगारालैण्ड व गोंडवानालैण्ड एक-दूसरे की ओर बढ़ने लगे। इस संपीडन (compression) के कारण टेथिस सागर की तली में एकत्रित तलछट वलित होकर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगे। तलछट के समुद्री सतह से ऊपर उठने से हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ।

प्रश्न 3.
हिमालय पर्वतों की तीन समानांतर शृंखलाओं के नाम लिखें और प्रत्येक की एक-एक विशेषता बताएँ।
उत्तर:
1. सर्वोच्च हिमालय या हिमाद्रि-यह हिमालय की उत्तरी तथा सबसे ऊँची श्रेणी है। हिमालय के सर्वोच्च शिखर इसी श्रेणी में हैं। मांउट एवरेस्ट शिखर संसार का सर्वोच्च शिखर है।

2. मध्य या लघु हिमालय-यह पर्वत श्रेणी हिमालय के दक्षिण में फैली है। इसमें डलहौज़ी, धर्मशाला, शिमला, मसूरी, नैनीताल और दार्जिलिंग आदि प्रमुख पर्वतीय नगर स्थित हैं।

3. बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणी-यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है। यह जलोढ़ अवसादों से बनी है। इस भाग में प्रायः भूकंप आते रहते हैं तथा भूस्खलन होते हैं।

प्रश्न 4.
शिवालिक में अधिक भू-स्खलन क्यों होता है?
उत्तर:

  1. शिवालिक की श्रेणियाँ जलोढ़ अवसादों से बनी हैं। अतः यहाँ प्रायः भू-स्खलन होता रहता है।
  2. दूसरे इन श्रेणियों से बहकर गुजरने वाली नदियाँ इन पहाड़ियों की नींव को कमज़ोर करती रहती हैं, फलस्वरूप ये पहाड़ियाँ खिसक जाती हैं।
  3. मानव द्वारा छेड़छाड़ भी इन पहाड़ियों में भू-स्खलन का एक कारण है।

प्रश्न 5.
सर्वोच्च हिमालय किसे कहते हैं? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की सबसे उत्तरी श्रृंखला को सर्वोच्च हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसकी दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. पर्वत श्रृंखला सबसे ऊँची है तथा सदैव बर्फ से ढकी रहती है। यहाँ से निकलने वाली नदियाँ सदानीरा हैं।
  2. विश्व की सर्वोच्च चोटी माऊंट एवरेस्ट इसी श्रृंखला में स्थित है। इसकी ऊँचाई 8848 मीटर हैं।

प्रश्न 6.
हिमालय की युवावस्था को सिद्ध करने के लिए भू-वैज्ञानिकों एवं पुरातत्त्ववेताओं द्वारा दिए गए प्रमाणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिमालय की युवावस्था को इंगित करने वाले अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं-
1. कश्मीर में पीर-पंजाल के पार्श्व में 1500-1850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित झीलों की तली में अवसादों की नई परतें, जिन्हें करेवा कहते हैं, संकेत करती हैं कि हिमालय में उत्थान की क्रिया प्लिओसीन (Pliocene) तथा प्लीस्टोसीन (Pleistocene) कालों तक होती रही है।

2. उप-हिमालय के गिरिपदीय क्षेत्रों में तृतीय कल्प (Tertiary) के स्तनपायी जीवों (Mammals) के अवशेषों का पाया जाना भी सिद्ध करता है कि इस क्षेत्र का उत्थान प्लीस्टोसीन काल तक होता रहा है।

3. बृहत् हिमालय के तलछटों का शिवालिक बेसिन में निक्षेप भी इसी तथ्य की पुष्टि करता है।

4. हिमालय की नदियों की कई वेदिकाओं से मिले उपकरणों से संकेत मिलता है कि हिमालय के उत्थान का एक चरण उस समय पूरा हुआ होगा जब वहाँ मानव का आविर्भाव हो चुका था।

प्रश्न 7.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भू-गर्भशास्त्री सुवेस (Suess) के अनुसार, हिमालय के निर्माण के बाद हिमालय व पठार के बीच एक गर्त (Depression) बन गया था जिसे टेथिस सागर के जल ने भर दिया और कालान्तर में इसी गर्त को सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र व इनकी सहायक नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत से आने वाली नदियों ने अपने निक्षेप से भर दिया और एक विशाल मैदान बना दिया। सर सिडनी बुराई एवं कुछ अन्य भू-वैज्ञानिकों का मत है कि इस मैदान का निर्माण एक भ्रंश घाटी के भराव से हुआ है। इस घाटी का जन्म पटल विरूपणी हलचलों द्वारा हुए चट्टानों के विभंजन से हुआ था। इस मत का अनेक विद्वानों ने खण्डन किया है।

प्रश्न 8.
हिमालय के निर्माण के सम्बन्ध में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार, पर्वत निर्माणकारी घटनाओं का सम्बन्ध प्लेटों की गति से है। समस्त भू-पटल 6 मुख्य प्लेटों अथवा प्राचीन शील्डों में बँटा है। ये प्लेटें धीमी गति से अर्ध-द्रवीय सतह पर सरक रही हैं। प्लेटों का आपसी टकराव उनमें तथा ऊपर की महाद्वीपीय चट्टानों में प्रतिबलों को जन्म देता है जिसके कारण वलन, भ्रंशन व आग्नेय क्रियाएँ होती हैं।

हिमालय पर्वत का निर्माण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में सरकने और यूरेशियन प्लेट को नीचे से धक्का देने से हुआ। लगभग साढ़े छह से सात करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट के उत्तर में खिसकने के कारण टेथिस सागर सिकुड़ने लगा। लगभग तीन से छः करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय व यूरेशियाई प्लेटें एक-दूसरे के काफी निकट आ गईं। परिणामस्वरूप टेथिस क्षेपकार (Thrust Edges) विभंगित होने लगे। लगभग 2 से 3 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की पर्वत-श्रेणियाँ टेथिस सागर की सतह से ऊपर उभरने लगीं।

प्रश्न 9.
भारत-भूमि के भू-आकृतिक विभाजनों के लक्षणों में अन्तर पाया जाता है। कारण बताइए।
उत्तर:
भारत के मुख्य भू-आकृतिक विभाजनों के लक्षणों में अन्तर पाए जाने का मुख्य कारण इन भू-भागों की अलग-अलग संरचना तथा अलग ही भू-गर्भिक इतिहास का होना है। हिमालय पर्वत का जन्म भौतिक इतिहास के अन्तिम चरण में भू-संचालनों के कारण हआ जबकि भारत का दक्षिण का पठार पूर्व कैम्ब्रियन महाकल्प में निक्षेपित अवसादों के समुद्र की सतह से ऊपर उठ जाने से हुआ। इसी प्रकार भारत के उत्तरी मैदान की रचना, हिमालय पर्वत के बनने के बाद यहाँ से निकलने वाली विशाल नदियों द्वारा लाए गए तलछट के जमाव से हुआ है और आज भी यह क्रम जारी है जो गंगा के सुन्दरवन डेल्टा के निरन्तर बढ़ने से साबित होता है। इस प्रकार इन भू-आकृतियों का निर्माण अलग-अलग कालों में हुआ है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि इन मुख्य भागों के लक्षणों में अन्तर पाया जाए।

प्रश्न 10.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार को उत्खण्ड (Horst) की संज्ञा क्यों दी गई है?
उत्तर:
भारत का दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार इस उप-महाद्वीप के प्राचीन भू-खण्डों में से एक है। एक बार समद्र से बाहर आने के बाद यह कभी भी पानी में नहीं डूबा। यह उच्च सम-भूमि हमेशा दृढ़ तथा अगम्य खण्ड के रूप में स्थिर रही इसलिए इसकी तुलना प्रायः उत्खण्ड से की जाती है। उत्खण्ड, लगभग दो समानान्तर भ्रंशों के बीच की भूमि होती है जो भ्रंश रेखाओं के सहारे अपने आसपास की भूमि से ऊपर उठ गई हैं। भारतीय प्रायद्वीपीय पठार में जन्म से ही भ्रंशन तथा विभंजन होते रहे हैं; जैसे पुराजीवी-विंध्य महाकाल्प में भू-अभिनति के कारण अरावली पर्वतों का निर्माण होना तथा दक्षिणी भारत के पश्चिमी भाग के धंसने के कारण पश्चिमी घाटों का एक दीवार के रूप में खड़ा रहना।

प्रश्न 11.
प्रायद्वीपीय पठार की उत्पत्ति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप गोंडवाना भू-खण्ड का ही भाग है। यह अगम्य चट्टानों का उत्खण्ड प्रदेश रहा है जो पूरी तरह से कभी जलमग्न नहीं हुआ। भूगोलवेत्ताओं का विचार है कि इसकी उत्पत्ति आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व हुई। यह भू-भाग, पर्वत-निर्माणकारी भू-संचलन क्रियाओं से पूरी तरह मुक्त रहा है। परन्तु भू-गर्भिक हलचलों के प्रमाण लम्ब रूप में अवश्य मिलते हैं, क्योंकि कई स्थानों पर इस भाग में भ्रंश घाटियाँ तथा हार्ट मिलते हैं। नर्मदा, ताप्ती तथा दामोदर नदियाँ भ्रंश घाटियों के प्रमुख उदाहरण हैं। एक ज्वालामुखी उदभेदन के कारण इसका लगभग 2 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र लावा से ढका गया, जिससे दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ।

प्रश्न 12.
पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट में अंतर निम्नलिखित हैं-

पूर्वी घाटपश्चिमी घाट
1. दक्कन के पठार की पूर्वी सीमा पर मंद ढाल वाली पहाड़ियों की लंबी पर्वतमाला को पूर्वी घाट कहते हैं।1. दक्कन के पठार की पश्चमी सीमा पर उत्तर से दक्षिण की ओर खम्बात की खाड़ी से कन्याकुमारी तक फैली लंबी पर्वतमाला पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला कहलाती है।
2. पूर्वी घाट अपेक्षाकृत कम ऊँचे हैं।2. पश्चिमी घाट की ऊँचाई दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
3. पूर्वी घाट को महानदी, गोदावरी, कृष्गा तथा कावेरी नदियों ने काट दिया है।3. पश्चिमी घाट सहयाद्रि, नीलगिरि, अन्ना मलाई तथा कार्डामम के रूप में एक सतत पर्वत शृंखला है।
4. पूर्वी घाट पर कम वर्षा होती है।4. पश्चिमी घाट पर अत्यधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 13.
भारतीय पठार और हिमालय पर्वत के उच्चावच लक्षणों में वैषम्य बताइए।
उत्तर:
भारतीय पठार और हिमालय पर्वत के उच्चावच लक्षणों में निम्नलिखित वैषम्यता दिखाई देती है-
1. भारतीय पठार-यह एक अनियमित त्रिभुजाकार पठार है। इसके उच्चावच के वर्तमान लक्षणों का विकास भू-गर्भिक इतिहास काल में हुआ। यह पठार अधिकांश समय से अपना अस्तित्व सागर की सतह से ऊपर बनाए हुए है इसलिए करोड़ों वर्षों तक अपरदन-बलों ने इसे प्रभावित किया है। उत्थान और निमज्जन की क्रियाओं की पुनरावृति तथा भ्रशन और विमगन के कारण उच्च भूमि में विविधता दिखाई देती है।

2. हिमालय पर्वत-यह क्षेत्र अभिनव भू-गर्भिक समय तक सागरीय सतह से नीचे रहा। पृथ्वी पर पर्वत निर्माण क्रिया के अन्तिम चरण में टेथिस सागर में निक्षेपित अवसादों के वलन के कारण हिमालय पर्वत तथा इसकी अन्य शृंखलाओं का निर्माण हुआ। इसमें भू-अभिनति में निक्षेपित अवसादों के संरचनात्मक विस्थापन के कारण भू-पर्पटी का काफी कमजोर क्षेत्र बन गया।

प्रश्न 14.
भाबर क्या है? भाबर पट्टी के तीन प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की शिवालिक की पहाड़ियों के दक्षिणी तलहटी प्रदेश को भाबर का मैदान कहते हैं। यह पारगम्य चट्टानों का बना हुआ है। पर्वतीय क्षेत्र में बहने वाली कई नदियाँ भाबर में लुप्त हो जाती हैं।

भाबर के लक्षण-

  • भाबर का मैदान एक संकरी पट्टी के रूप में 8 से 16 कि०मी० की चौड़ाई में मिलता है।
  • यह अत्यधिक नमी का क्षेत्र है, इसलिए यहाँ सघन वन और अनेक प्रकार के वन्य प्राणी मिलते हैं।
  • इसमें बजरी तथा पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े निक्षेपित हैं।

प्रश्न 15.
दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
दो नदियों के मध्य के भू-खण्ड को दोआब कहते हैं। इसका निर्माण नदियों द्वारा लाई गई पुरानी कांप मिट्टी से होता है। यह प्रदेश इन नदियों को एक-दूसरे से अलग करता है। भारतीय महाद्वीप में निम्नलिखित दोआब हैं-

  • रावी-चेनाब के मध्य रचना दोआब।
  • रावी-व्यास के मध्य बारी दोआब।
  • व्यास-सतलुज के मध्य स्थित जालन्धर दोआब।
  • गंगा-यमुना के मध्य दोआब।

प्रश्न 16.
“हिमालय का मूल उच्चावच नदियों तथा हिमनदियों के निरन्तर कार्य से रूपान्तरित हुआ है।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
हिमालय के उच्चावच के रूपान्तरण पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
अनेक नदियों व हिमनदियों ने हिमालय के उत्थान के साथ ही अपनी अपरदन शक्ति से इन पर्वतों के मूल उच्चावच को व्यापक रूप से रूपान्तरित करना आरम्भ कर दिया था। अनाच्छादन के उपर्युक्त दोनों साधनों के प्रभावशाली कार्यों के निम्नलिखित प्रमाण हैं-
1. सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि अनेक नदियों ने हिमालय में हज़ारों मीटर गहरे महाखड्ड (Gorges), कैनियन (Canyon) व गहरी घाटियों (Valleys) का निर्माण कर हिमालय के मूल स्वरूप को प्रभावित किया है।

2. हिमंनदियों ने विशाल शिला-खण्डों को ऊँचे शिखरों से हजारों मील दूर धकेल दिया है।

3.  कश्मीर घाटी में निक्षेपित करेवा (Karewa) में हिमनदीय मृत्तिका व अनेक प्रकार की हिमोढ़ सामग्री इंगित करती है कि हिमनदियाँ कभी विस्तृत क्षेत्रों पर कार्यरत थीं।

4. वर्तमान हिमनदियों से बहुत नीचे, कम ऊँचाई पर ‘U’ आकार की घाटियों व लटकती घाटियों (Hanging Valleys) का मिलना प्रमाणित करता है कि हिमालय क्रमिक रूप से हिमनद की अनेक चक्रीय अवस्थाओं में से गुज़रा है।।

5. अनेक नदी-घाटियों के किनारों के साथ-साथ विस्तृत हिमोढ़ों ने विकसित वेदिकाओं (Terraces) का निर्माण किया है। उपर्युक्त तथ्यों से पुष्टि होती है कि हिमालय का मूल उच्चावच जल व हिमनदियों से रूपान्तरित होता रहा है।

प्रश्न 17.
हिमालय के महत्त्वपूर्ण दरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमालय के कुछ प्रसिद्ध दरें निम्नलिखित हैं-
1. खैबर दर्रा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच स्थित यह दर्रा उपमहाद्वीप का सबसे महत्त्वपूर्ण दर्रा है जिसने करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। सदियों से आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने के लिए इसी मार्ग का प्रयोग करते रहे।

2. बोलन दर्रा-पाकिस्तान स्थित यह दर्रा प्राचीन समय से महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग रहा है। अब इसमें से एक रेलमार्ग व एक महामार्ग गुज़रता है।

3. कराकोरम दर्रा-भारत के जम्मू और कश्मीर में कराकोरम श्रेणी में स्थित यह एक अत्यन्त ऊँचा व कठिन दरों में से एक है।

4. जोजिला-यह दर्रा भी भारत के जम्मू और कश्मीर में स्थित है। यह श्रीनगर से लेह का मार्ग है।

5. शिपकी ला यह हिमाचल प्रदेश में है। शिमला से तिब्बत जाने का मार्ग यहीं से गुज़रता है।

6. माना और नीति-इन दरों से होकर भारतीय यात्री मानसरोवर झील व कैलाश के दर्शन करने जाते हैं।

प्रश्न 18.
हिमालय का भू-वैज्ञानिक विभाजन किस आधार पर किया गया है?
उत्तर:
चट्टानों के रचनाकाल एवं उनके प्रकारों के आधार पर हिमालय के निम्नलिखित चार भू-वैज्ञानिक विभाजन हैं-
1. तिब्बती क्षेत्र-इस भाग का विस्तार बृहत् हिमालय के उत्तर में तिब्बत व निकटवर्ती क्षेत्रों पर है। यहाँ जीवाश्म वाली अवसादी चट्टानें मिलती हैं।

2. वलनों वाला हिमालयी क्षेत्र-इस क्षेत्र में लघु हिमालय व बृहत् हिमालय के कुछ भाग सम्मिलित किए जाते हैं। इस क्षेत्र में रवेदार (Crystalline) तथा रूपान्तरित (Metamorphic) शैलें; जैसे ग्रेनाइट, शिस्ट तथा नीस चट्टानें भी पाई जाती हैं।

3. प्रतिवलनों तथा क्षेप भ्रंशों का हिमालयी क्षेत्र-इस जटिल क्षेत्र में प्राचीन चट्टानों के विशाल समूह स्थानान्तरित होकर एक बड़े क्षेत्र में शयान वलनों (Recumbent Folds) के साथ-साथ नवीन चट्टानों पर धकेल दिए गए हैं। परिणामस्वरूप य ग्रीवा-खण्डों (Nappes) का निर्माण हुआ है। ऐसे लक्षण कश्मीर, हिमाचल तथा गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों में मिलते हैं।

4. बाह्य या उपहिमालयी क्षेत्र-शिवालिक का निर्माण भी इसी काल में हुआ था। विद्वानों का मत है कि ये अवसाद हिमालय की अपरदित सामग्री से बने हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

प्रश्न 19.
“पश्चिमी हिमालय में पर्वत श्रेणियों की एक क्रमिक श्रृंखला पाई जाती है।”-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियाँ हैं जो एक-दूसरे के समानान्तर पाई जाती हैं। इन श्रेणियों को ‘दून’ या. ‘दुआर’ नामक घाटियाँ आपस में अलग करती हैं। पश्चिमी हिमालय में हमें इन श्रेणियों के स्पष्ट क्रम देखने को मिलते हैं। हरियाणा और पंजाब के मैदानों के बाद पहली श्रेणी शिवालिक के रूप में उपस्थित होती है। इसके बाद सिन्धु की सहायक नदियों की घाटियाँ हैं। दूसरी श्रेणी के रूप में पीर-पंजाल व धौलाधार की लघु हिमालयी श्रेणियाँ मिलती हैं। पीर-पंजाल और बृहत् हिमालय के बीच कश्मीर घाटी है। तीसरी श्रेणी के रूप में बृहत् हिमालय की जास्कर श्रेणी पाई जाती है। इसके बाद लद्दाख व कराकोस्म की श्रेणियाँ पाई जाती हैं जिनके बीच सिन्धु घाटी पाई जाती है।

प्रश्न 20.
तटीय मैदानों का भारत के लिए क्या आर्थिक महत्त्व है?
उत्तर:
1. इन तटों की उपजाऊ मिट्टी के व्यापक स्तर पर चावल की खेती की जाती है। यहाँ बड़े पैमाने पर काजू, सुपारी, रबड़, गर्म मसाले, अग्नि व लेमन घास तथा फल उगाए जाते हैं। तटों पर उगाने वाले नारियल की जटाओं से अनेक प्रकार की उपयोगी वस्तुएँ बनती हैं।

2. तट से घाट की ओर पाए जाने वाले ढाल पर चाय और कॉफी के बागान मिलते हैं। ये हमारी निर्यात प्रधान उपजें हैं।

3. भारत का 98 प्रतिशत विदेशी व्यापार तटों पर स्थित प्रमुख बन्दरगाहों द्वारा होता है।

4. केरल तट तथा पूर्वी तट की नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

5. खनिज सम्पदा की दृष्टि से भारत के दोनों तट सम्पन्न हैं। अरब सागर में महाद्वीपीय मग्नतट पर मुम्बई हाई में खनिज तेल पाया जाता है। केरल तट पर मोनोज़ाइट, थोरियम तथा जिरकन (Zircan) नामक बहुमूल्य खनिज मिलते हैं। इनसे परमाणु शक्ति प्राप्त होती है।

6. तटीय क्षेत्रों, विशेष रूप से गुजरात में समुद्री जल का वाष्पीकरण करके नमक बनाया जाता है।

7. तटों पर विकसित अनेक बन्दरगाह नगरों में जलयान निर्माण, तेलशोधन तथा सूती वस्त्र जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योग स्थापित हो गए हैं।

8. तट पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार व देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

प्रश्न 21.
भारत में बंगाल की खाड़ी के द्वीपों का भौगोलिक विवरण दीजिए।
उत्तर:
निकटवर्ती द्वीपों में पाम्बन द्वीप, न्यू मरे द्वीप, श्री हरिकोटा द्वीप हैं। सुदूरवर्ती द्वीपों में अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह हैं। ये 300 कि० मी० की लम्बाई में एक अर्धचन्द्राकार आकृति में फैले हैं। इनका क्षेत्रफल 8,300 वर्ग कि० मी० है। इस द्वीप समूह में कटे-फटे द्वीप हैं जिनकी अधिकतम ऊंचाई 730 मीटर है। इनमें से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी उद्गारों से हुई है। इन पर दो ज्वालामुखी द्वीप-बैरन द्वीप (Barren Island) व नरकोण्डम द्वीप (Narcon-dam Island) हैं जो पोर्ट ब्लेयर के उत्तर में स्थित हैं। अण्डमान द्वीप समूह के दक्षिण में 19 द्वीपों का निकोबार द्वीप समूह है जिसके उत्तरी भाग को कार निकोबार व दक्षिणी भाग को महान् निकोबार कहा जाता है। यह द्वीप समूह 6°30′ उत्तरी तथा 9°30′ अक्षांशों के बीच स्थित है। अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह गहरे समुद्र द्वारा अलग किए गए हैं। इस समुद्र को ’10° चैनल’ कहा जाता है क्योंकि यह 10° उत्तरी अक्षांश रेखा से संपात (Coincide) होता है। महान् निकोबार के अन्तिम बिन्दु को इन्दिरा प्वाइण्ट (Indira Point) कहा जाता है। यह भारत का सुदूरतम दक्षिणी बिन्दु है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग कौन-से हैं? हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीपीय पठार के उच्चावच लक्षणों में क्या अंतर है?
उत्तर:
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग निम्नलिखित हैं
1. उत्तर के विशाल पर्वत-हिमालय विश्व के सर्वोच्च नवीन वलित पर्वत हैं। इनमें तीन स्पष्ट पर्वत श्रेणियाँ हैं, जो एक-दूसरे के समानांतर फैली हैं। इनमें सबसे उत्तर वाली श्रेणी को ‘विशाल हिमालय’ अथवा ‘हिमाद्रि’ कहते हैं। हिमाद्रि के दक्षिण में ‘मध्य हिमालय’ अथवा ‘हिमाचल श्रेणी’ स्थित हैं। इसकी तीसरी व दक्षिणतम श्रेणी को ‘बाह्य हिमालय’ अथवा ‘शिवालिक की पहाड़ियाँ’ भी कहा जाता है।

2. उत्तर भारत का मैदान-उत्तर भारत के मैदान का निर्माण उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा लाकर जमा की गई जलोढ़ गाद से हुआ है। यह संसार का बहुत ही विस्तृत एवं अत्यंत उपजाऊ मैदान है। इसके उच्चावच में बहुत कम अंतर है। उच्चावच के अंतर के आधार पर मैदानी भाग को चार भागों (1) भाबर, (2) तराई, (3) बांगर तथा (4) खादर में विभक्त किया जाता है।

3. प्रायद्वीपीय पठार-प्रायद्वीपीय पठार देश का सबसे प्राचीन भाग है। इस पठार को दो उपभागों-मध्यवर्ती उच्चभूमि तथा दक्कन का पठार में विभाजित किया जा सकता है। नर्मदा नदी की घाटी इसे दो भागों में विभाजित करती है। प्रायद्वीपीय पठार (मध्यवर्ती-उच्चभूमि) का उत्तरी भाग अनेक पठारों, अनाच्छादित पर्वत श्रेणियों तथा नीची पहाड़ियों द्वारा निर्मित है। यह भाग कठोर आग्नेय शैलों द्वारा बना है।
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दक्कन का पठार उत्तर में सतपुड़ा, महादेव तथा मैकाल पहाड़ियों से दक्षिण की ओर प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे तक विस्तृत है। इसका उत्तरी-पश्चिमी भाग मुख्यतः लावा निक्षेपों से बना है।

हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीपीय पठार के उच्चावच लक्षणों में अंतर निम्नलिखित हैं-

हिमालय क्षेत्रप्रायद्वीपीय पठार
1. हिमालय अपेक्षाकृत नए तथा युवा वलित पर्वत हैं।1. प्रायद्वीपीय पठार बहुत ही प्राचीन भू-खंड हैं। इसका निर्माण चट्टानों से हुआ है।
2. हिमालय पर्वत पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिमी कश्मीर तक 2400 कि०मी० की लंबाई में फैले हैं।2. प्रायद्वीपीय पठार उत्तर-पश्चिम में अराबली पर्वत श्रेणी से लेकर उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है।
3. हिमालय पर्वत का निर्माण तलछटी चट्टानों से हुआ है। यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी औसत ऊँचाई 6000 मीटर है।3. प्रायद्धीपीय पठार का निर्माण लगभग 50 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है। यह आग्नेय चट्टानों से बना है।
4. हिमाचल को तीन स्पष्ट श्रेणियों-विशाल हिमालय, मध्य हिमालय तथा बाह्य हिमालय में बाँटा जा सकता है।4. प्रायद्वीपीय पठार को मुख्यतः दो भागों-मालवा का पठार तथा दक्षिण का पठार में बाँटा जा सकता है।
5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ बारहमासी हैं।5. प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ बरसाती हैं। इनमें गर्मियों में पानी नहीं रहता।
6. हिमालय पर्वत क्षेत्र में खनिजों की कमी है।6. प्रायद्वीपीय पठार खनिज पदार्थों से भरपूर है।

प्रश्न 2.
“उपमहाद्वीप के वर्तमान भू-आकृतिक विभाग एक लम्बे भू-गर्भिक इतिहास के दौर में विकसित हुए हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत के भू-आकृतिक खण्ड की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वृहत स्तर पर भारत को मुख्य रूप से तीन भू-आकृतिक इकाइयों में बाँटा जा सकता है-

  • हिमालय पर्वत तथा इसकी शाखाएँ
  • उत्तरी भारत का मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार।

उप-महाद्वीप की ये तीनों भू-आकृतियाँ एक लम्बे भू-गर्भिक इतिहास के दौर में विकसित हुई हैं। कई भू-वैज्ञानिकों ने इनके निर्माण के सम्बन्ध में बहुत-से प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। परन्तु इसके अतीत का पूर्ण रूप से अनावरण नहीं हो पाया है। इनका वर्णन इस प्रकार है
1. हिमालय पर्वत तथा इसकी शाखाएँ-यह एक नवीन वलित पर्वत है। विद्वानों के अनुसार लगभग सात करोड़ वर्ष पहले मध्यजीवी पुराकल्प (Mesozoic) में हिमालय पर्वत के स्थान पर टेथिस सागर नामक एक विशाल भू-अभिनति थी। इसके उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में गोंडवानालैण्ड था।

इन दोनों भू-भागों से अनेक नदियों ने इस सागर में तलछट का निक्षेप किया तथा यह क्रम बहुत लम्बे समय तक चलता रहा। मेसोजोइक युग के अन्त में इस क्षेत्र में भू-गर्भीय हलचलें हुईं तथा संपीडन के कारण, टेथिस सागर की तली में एकत्रित पदार्थ धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा जिससे हिमालय पर्वतों का निर्माण होता गया। भू-गर्भिक सर्वेक्षण के अध्ययन से पता चला है कि हिमालय पर्वतों में पर्वत निर्माण कार्य की पहली हलचल अल्प नूतन युग में, दूसरी अवस्था मध्य नूतन युग में और तीसरी अवस्था उत्तर अभिनूतन युग में हुई। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार उत्थान तथा वलन का क्रम अभी तक जारी है।

2. उत्तरी भारत का मैदान यह मैदान हिमालय पर्वत और दक्षिणी पठार के मध्य स्थित है। यह एक समतल तथा काँप के निक्षेपों से निर्मित उपजाऊ मैदान है। हिमालय के निर्माण के पश्चात्, हिमालय तथा दक्षिणी पठार के बीच एक गर्त बन गया था जिसे टेथिस सागर ने जल से भर दिया था। इस गर्त में हिमालय पर्वत तथा दक्षिणी पठार से बहने वाली नदियाँ तथा उनकी सहायक नदियाँ इसे भरती चली गईं और इसने एक विशाल मैदान का रूप धारण कर लिया। यह मैदान युगों तक नदियों द्वारा लाए गए तथा जमा किए गए पदार्थों से बना है और यह क्रम अब भी जारी है। सुन्दरवन का निरन्तर बढ़ना इस बात का प्रमाण है।

3. प्रायद्वीपीय पठार-भू-गर्भ शास्त्रियों के अनुसार यह प्राचीनतम भू-खण्ड है, जिसकी रचना कैम्ब्रियन-पूर्व युग में हुई। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह एक उत्खण्ड है। इसका उत्थान सागर से हुआ। इसके पश्चिमी भाग में अरावली पर्वत तथा दक्षिण में अन्नामलाई पर्वतमाला का उत्थान विंध्य महायुग में हुआ। इसके पश्चात् दक्षिणी पठारी क्षेत्र में एक लम्बे समय तक संपीडन तथा वलन का क्रम चलता गया तथा तनाव के कारण इस क्षेत्र में भ्रंशन तथा विभाजन होते रहे।

हिमालय पर्वत के निर्माण के पश्चात् प्लिओसीन युग में पठार के उत्तर:पश्चिमी भाग में धंसने के कारण अरब सागर का निर्माण हुआ तथा पश्चिमी घाट एक दीवार की भाँति समुद्र की ओर खड़े रह गए। एक धारणा के अनुसार पूर्वी तटों की तट रेखा पर पुराजीव काल के पश्चात् कोई परिवर्तन नहीं आया है। यह पठार विशाल गोंडवाना महाद्वीप का एक भाग माना जाता है।

प्रश्न 3.
विभिन्न भू-गर्भिक प्रक्रियाओं द्वारा विकसित प्रायद्वीपीय पठार की भौतिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के प्रायद्वीपीय पठार की भौतिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) आदि गोण्डवाना से अलग हुआ यह प्रखण्ड तीन ओर से समुद्र द्वारा घिरा होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार कहलाता है।

(2) क्रमिक अपरदन चक्र के कारण घिसकर जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है। खड़ी कटकें व द्रोणी घाटियाँ यहाँ के अपरदित धरातल की एकरूपता को भंग करती हैं।

(3) जिस मुख्य प्लेट पर हमारा पठार स्थित है उसे भारतीय प्लेट (Indian Plate) कहते हैं। इस चापाकार प्रायद्वीप के पूर्वी कोने पर शिलांग का पठार व पश्चिमी कोने पर केराना की पहाड़ियाँ हैं। वर्तमान में ये दोनों भाग मुख्य पठार से अलग दिखाई पड़ते हैं क्योंकि नदियों ने इन्हें प्रायद्वीप से काटकर वहाँ निक्षेप जमा कर दिए हैं।

(4) यह पठार प्राचीनतम भू-पर्पटी शैलों से बना हुआ है जिनका जन्म पूर्व कैम्ब्रियन युग में निक्षेपित अवसादों के समुद्र की सतह से ऊपर उठने से हुआ था।

(5) एक बार समुद्र से ऊपर उठने के पश्चात् भारत का यह भू-भाग फिर कभी समुद्र में नहीं डूबा। आज तक सपाट भूमि एक दृढ़, अगम्य व अलचीले खण्ड के रूप में कायम है। इसलिए इस पठार की तुलना उत्खण्ड (Horst) से की जाती है।

(6) प्रायद्वीपीय पठार के संरचनात्मक इतिहास की प्रथम प्रमुख घटना विन्ध्य महाकल्प (पैल्योजोइक) (Vindhyan Palaeozoic) में घटी जब अरावली क्षेत्र की भू-अभिनति में जमे अवसाद से विशाल अरावली पर्वत-श्रेणी का निर्माण हुआ।

(7) सम्भवतः अरावली के जन्म-काल के समय ही दक्षिण की नल्लामलाई पर्वत-श्रेणी (Nallamalai Range) का विकास हुआ था।

(8) इसके बाद प्रायद्वीपीय भारत एक लम्बे समय तक संपीडन तथा वलन क्रियाओं से मुक्त रहा। यद्यपि पृथ्वी में तनाव से उत्पन्न ऊर्ध्वाधर हलचलों के कारण भ्रंशन तथा विभंजन होते रहे।

(9) नए उत्थानों के कारण नई अपरदन-क्रिया हुई जिसके कारण यहाँ की जीर्ण और वृद्ध स्थलाकृति पर युवा लक्षणों का प्रादुर्भाव भी होता रहा। पलनी तथा नीलगिरि की पहाड़ियाँ नए उत्थानों के प्रमाण हैं। दूसरी ओर भू-भागों के अवतलन के प्रमाण गोदावरी, महानदी तथा दामोदर घाटियों के द्रोणी भ्रंश तथा नर्मदा, ताप्ती, मालाबार और मेकरान तटों के भ्रंश धंसाव से मिलते हैं।

(10) हिमालय के उत्थान के समय प्रायद्वीपीय पठार पर निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटी

  • पठार के उत्तरी तथा पश्चिमी भागों पर विस्तृत ज्वालामुखी उद्भेदन हुआ जिसके कारण यहाँ का लगभग 5 लाख वर्ग कि० मी० क्षेत्र लावा से ढक गया। इसी लावा प्रदेश की काली उपजाऊ मिट्टी पर कपास की कृषि होती है।
  • दक्षिणी पठार का पश्चिमी भाग धंस गया जिससे अरब सागर का निर्माण हुआ।
  • भूमि के इस निमज्जन ने पश्चिमी घाट को उभारकर पर्वतमाला का रूप दे दिया और भू-आकृतिक विषमता प्रदान की।
  • अरब सागर की आयु के बारे में भू-गर्भ शास्त्रियों में सहमति है कि इसकी उत्पत्ति प्लिओसीन (Pliocene Age) से पहले नहीं हुई थी।

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति कैसे हुई? वर्णन कीजिए। अथवा हिमालय पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति-हिमालय की चट्टानों से प्रमाणित होता है कि इस पर्वत का जन्म समुद्र के नीचे हुआ था। भू-गर्भ शास्त्रियों के अनुसार आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व मेसोजोइक युग (Mesozoic Syncline) में वर्तमान हिमालय के स्थान पर भू-अभिनति (Geo Syncline) के रूप में एक सागर था जिसे टेथिस सागर (Tethys Sea) के नाम से जाना जाता है। उस समय उत्तरी मैदान समेत समस्त हिमालय क्षेत्र टेथिस सागर की सतह (Sea Level) से नीचे था। इस सागर के उत्तर में अंगारालैण्ड (Angaraland) व दक्षिण में गोंडवानालैण्ड (Gondwanaland) नामक दो भू-खण्ड थे।

इन दोनों स्थलीय भागों से आने वाली नदियों ने टेथिस सागर की तली में तलछट का निक्षेपण किया। मेसोजोइक युग के अन्त में कुछ भू-गर्भिक हलचलों के कारण सागर के उत्तर व दक्षिण में स्थित स्थलीय भाग अंगारालैण्ड व गोंडवानालैण्ड एक-दूसरे की ओर बढ़ने लगे। इस संपीडन (Compression) के कारण टेथिस सागर की तली में एकत्रित तलछट वलित होकर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगे। तलछट के समुद्री सतह से ऊपर उठने से हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ। इन पर्वतों का उत्थान धीरे-धीरे अनेक युगों में होता रहा। विद्वानों का मत है कि वर्तमान में ठ रहे हैं। हिमालय पर्वत का निर्माण टरश्यरी दौर में हुआ। अतः इस दौर को अल्पाइन दौर (Alpine Age) भी कहा जाता है क्योंकि यूरोप के आल्पस पर्वत का उत्थान भी इसी काल में हुआ था।

हिमालय व आल्प्स पर्वत के निर्माण सम्बन्धी टेथिस भू-अभिनति सिद्धान्त की मान्यता अब कम हो गई है। इस सिद्धान्त की अपेक्षा प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के सिद्धान्त को वैज्ञानिक अधिक महत्त्व दे रहे हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार पर्वत निर्माणकारी घटनाओं का सम्बन्ध प्लेटों की गति से है। समस्त भू-पटल 6 मुख्य प्लेटों अथवा प्राचीन शील्डों (Ancient Shields) में बँटा है। ये प्लेटें प्रशांती प्लेट, यूरेशियाई प्लेट, अमरीकी प्लेट, भारतीय प्लेट, अफ्रीकी प्लेट तथा अण्टार्कटिका प्लेट के नाम से विख्यात हैं।

ये प्लेटें धीमी गति से अर्ध-द्रवीय सतह पर सरक रही हैं। प्लेटों का आपसी टकराव उनमें तथा ऊपर की महाद्वीपीय चट्टानों में प्रतिबलों को जन्म देता है जिसके कारण वलन (Folding), भ्रंशन (Faulting) व आग्नेय क्रियाएँ (Igneous Activities) होती हैं।

हिमालय पर्वत का निर्माण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में सरकने और यूरेशियन प्लेट को नीचे से धक्का देने से हुआ। लगभग साढ़े छः से सात करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट के उत्तर में खिसकने के कारण टेथिस सागर सिकुड़ने लगा। लगभग तीन से छः करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय व यूरेशियाई प्लेटें एक-दूसरे के काफी निकट आ गईं। परिणामस्वरूप टेथिस क्षेपकार (Thrust Edges) विभंगित होने लगे। लगभग 2 से 3 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की पर्वत-श्रेणियाँ टेथिस सागर की सतह से ऊपर उभरने लगीं।

प्रश्न 5.
उच्चावच के आधार पर भारत को कितने भागों में बाँटा जा सकता है? इनमें से किसी एक भाग का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
हिमालय पर्वत समूह का विस्तृत भौगोलिक वर्णन कीजिए। उत्तर:उच्चावच के आधार पर भारत को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है-

  • उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  • सिन्धु-गंगा, ब्रह्मपुत्र का मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार
  • तटीय मैदान
  • द्वीप।

उत्तरी पर्वतीय प्रदेश अथवा हिमालय पर्वत समह भारत के उत्तरी भाग में स्थित पर्व-पश्चिमी दिशा में फैली हिमालय पर्वत-मालाएँ तीन समानान्तर तथा चाप की आकृति में दीवार की भाँति पाई जाती हैं। ये लगभग 2,400 कि०मी० लम्बे तथा 160 से 400 कि०मी० चौड़े क्षेत्र में पाए जाते हैं, जिनका अध्ययन इस प्रकार से है-
1. बृहत हिमालय (Great Himalayas)-ये हिमालय की बहुत ऊँची पर्वत-श्रेणियाँ हैं, जिनकी मध्यमान ऊँचाई 6,000 मीटर। तथा चौड़ाई 25 कि०मी० है। संसार की उच्चतम तथा प्रमुख चोटियाँ इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं। यहाँ की महत्त्वपूर्ण चोटियाँ एवरेस्ट, कंचनजंगा, धौलागिरि, मैकालू, नन्दादेवी, अन्नपूर्णा आदि हैं जो सदा बर्फ से ढकी रहती हैं। इसी कारण बृहत हिमालय को ‘हिमाद्रि’ कहा जाता है।

2. मध्य हिमालय (Middle Himalayas) इन्हें लघु हिमालय भी कहते हैं। ये बृहत् हिमालय के दक्षिण में इनके समानान्तर, पूर्व-पश्चिम दिशा में लगभग 80 से 100 कि०मी० की चौड़ाई में फैले हुए हैं। इनकी औसत ऊँचाई 3,500 से 5,000 मीटर तक है। इन पर्वतों की कई शाखाएँ हैं; जैसे पीर-पंजाल तथा धौलाधार आदि। इन पर्वतों में लम्बी-चौड़ी घाटियाँ भी पाई जाती हैं; जैसे कश्मीर घाटी तथा नेपाल की काठमाण्डू घाटी आदि। भारत के अधिकतर स्वास्थ्य-वर्धक तथा रमणीक स्थल इन्हीं पर्वतों में पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में ऊबड़-खाबड़ मैदान; जैसे अक्साईचीन, देवसाई, दिपसांग आदि पाए जाते हैं।

3. बाह्य हिमालय (Outer Himalayas)-इन्हें शिवालिक की पहाड़ियाँ भी कहते हैं। ये भी पूर्व-पश्चिम दिशा में लघु हिमालय के समानान्तर 10 से 50 कि०मी० की चौड़ाई में फैले हुए हैं। इनकी औसत ऊँचाई 1,000 से 1,500 मीटर है। मध्य हिमालय तथा बाह्य हिमालय के बीच कुछ घाटियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें ‘दून’ कहते हैं। इनको पूर्व में ‘दुआर’ कहते हैं। देहरादून, पटलीदून, कोटली, चौखम्भा व ऊना इसी प्रकार की घाटियों में स्थित हैं।

हिमालय की उत्तरी ढलान पर हिम-नदियों का जमाव अधिक होता है क्योंकि उत्तरी ढलान मन्द है। इसके विपरीत, दक्षिणी ढलान कगार की भाँति तीव्र है। इसी प्रकार पूर्वी तथा पश्चिमी भागों में भी इन पर्वतों की ढाल में अन्तर पाया जाता है। पूर्वी भाग की ओर बिहार तथा पश्चिमी बंगाल की तरफ पर्वतों की ढाल तीव्र है।

हिमालय का प्रादेशिक विभाजन-सर सिडीन बुराई महोदय ने सिन्धु नदी तथा ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित भारतीय हिमालय पर्वत को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा है-
1. पंजाब हिमालय-यह हिमालय पर्वत-श्रृंखला पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में सतलुज नदी तक फैली हुई है। ये पर्वत अधिकतर जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल राज्यों में फैले हुए हैं। पर्वतों के इस भाग की लम्बाई लगभग 560 कि०मी० है। यहाँ मुख्य पर्वत-श्रेणियाँ धौलाधार तथा पीर-पंजाल हैं। यहाँ का मुख्य दर्रा जोजिला है।

2. कुमाऊँ हिमालय-यह भाग सतलुज नदी से लेकर नेपाल की सीमा पर स्थित काली नदी तक विस्तृत है। इस भाग की लम्बाई 320 कि०मी० है। ये अधिक ऊँचे पर्वत हैं जहाँ अनेक हिमनद झीलें पाई जाती हैं। यहाँ स्वास्थ्य-वर्धक स्थल; जैसे मसूरी, नैनीताल, शिमला, अल्मोड़ा आदि स्थित हैं। यहाँ प्रसिद्ध चोटियाँ बद्रीनाथ, केदारनाथ तथा नन्दा देवी हैं। नीतीपास यहाँ का महत्त्वपूर्ण दर्रा है। गंगा तथा यमुना नदियों के उद्गम-स्थल भी इन्हीं पर्वतों में स्थित हैं।

3. नेपाल हिमालय-ये पर्वत पश्चिम में काली नदी से लेकर पूर्व में तिस्ता नदी तक फैले हुए हैं तथा ये नेपाल देश में स्थित हैं। इनकी लम्बाई लगभग 800 कि०मी० है। इस क्षेत्र में हिमालय की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ मिलती हैं; जैसे एवरेस्ट, कंचनजंगा, धौलागिरि आदि।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान 2

4. असम हिमालय ये पर्वत-श्रेणियाँ पश्चिम में तिस्ता नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैली हुई हैं तथा लगभग 700 कि०मी० लम्बी हैं। यहाँ पर्वतों की ऊँचाई कुछ कम पाई जाती है। नामचा बरवा तथा कुला कांगड़ी यहाँ की मुख्य चोटियाँ हैं।

हिमालय का भू-वैज्ञानिक विभाजन-हिमालय पर्वत का यह विभाजन चट्टानों के समूहों तथा उनके प्रकार पर आधारित है। इस आधार पर इन पर्वत को चार भू-वैज्ञानिक भागों में बाँटा गया है
1. तिब्बती क्षेत्र-ये क्षेत्र बृहत् हिमालय के उत्तर में स्थित हैं ये पुराजीवी महाकल्प से लेकर आदिनूतन महाकल्प के जीवाश्म वाली चट्टानों से निर्मित हैं, जो तलछटी हैं।

2. वलनों वाला बृहत् हिमालय क्षेत्र-बृहत् हिमालय के साथ-साथ इस वर्ग में कुछ लघु हिमालय भी शामिल हैं और यह क्षेत्र रवेदार तथा कायांतरित चट्टानों; जैसे ग्रेनाइट तथा शिस्ट आदि चट्टानों का बना हुआ है। पुराने क्रम की तलछटी चट्टानें भी यहाँ मिलती हैं।

3. प्रतिवलनों तथा अधिक्षेप भ्रंशों का क्षेत्र यह एक जटिल (Complex) क्षेत्र है जहाँ प्रतिवलन (Overturned Folds) तथा अधिक्षेप भ्रंशों (Overthrust Faults) के समूह बहुत मिलते हैं। प्राचीन चट्टानों के भौतिक रूप से स्थानान्तरण के कारण नवीन चट्टानों के ऊपर आने से शयान वलनों (Recumbent Folds) का निर्माण यहाँ पाया जाता है। ग्रीवा-खण्ड (Nappes) भू-आकृति विशेष रूप से कश्मीर, हिमाचल तथा गढ़वाल क्षेत्र में पाई जाती है।

4. बाह्य या उपहिमालयी क्षेत्र यह क्षेत्र तृतीयक काल के तलछटी निक्षेपों से बना हुआ है। अनुमान है कि ये तलछट मुख्य हिमालय की पर्वत-श्रेणियों से लाए गए हैं। हिमालय का मूल धरातल नदियों तथा हिम नदियों द्वारा रूपान्तरित होता रहा है। अपरदन शक्ति के महत्त्वपूर्ण प्रभाव तथा उनसे बनी भू-आकृतियाँ यहाँ विशेषतया दिखाई देती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे शिला-खण्ड (Erratic Blocks) काफी दूर-दूर तक पाए जाते हैं और अनेक U-आकार तथा लटकती घाटियों का मिलना प्रभावशाली हिम नदी के प्रभाव को दर्शाते हैं। ऐसा लगता है कि हिमालय क्षेत्र हिमानीकरण (Glaciation) के अनेक चरणों में से गुजरा है। बीच-बीच में उष्ण युगों का आना भी यहाँ नदी-वेदिकाओं से जाहिर होता है।

प्रश्न 6.
सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र के विशाल मैदान का प्रादेशिक प्रारूप का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत की भू-आकृति विज्ञान को बतलाते हुए सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदानों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत का विशाल मैदान पूर्व में बर्मा (म्याँमार) की सीमा से पश्चिम में पाकिस्तान तक फैला है। असम में ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों का यह मैदानी भाग संकरा है, लेकिन पश्चिम में इसकी चौड़ाई अधिक है। पूर्व में यह मैदान 150 कि०मी०। तथा मध्य में इलाहाबाद के आसपास 280 कि०मी० चौड़ा है। लाखों वर्षों से हिमालय से निकलने वाली नदियों ने इसमें अवसाद (तलछट) की मोटी परत बिछा दी है तथा कहीं-कहीं पर इसकी मोटाई 2,000 मीटर तक मापी गई है। जलौढ़ मिट्टी के जमाव के कारण यह मैदानी भाग विश्व के उपजाऊ प्रदेशों में से एक है। इसलिए इसे भारत की ‘रोटी की टोकरी’ (Bread Basket) कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भू-आकृतिक दृष्टि से पंजाब से असम तक के मैदान की ऊँचाई तथा उच्चावच में काफी असमानताएँ पाई जाती हैं जो निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित की जा सकती हैं-
(1) भाबर-यह शिवालिक श्रेणियों के गिरिपद (Foot hill) पर एक संकरी पट्टी के रूप में विस्तृत है। इस क्षेत्र में नदियों द्वारा पत्थर, कंकड़ तथा बलुई मिट्टी का जमाव किया जाता है तथा छोटी नदियाँ भूमिगत हो जाती हैं।

(2) तराई-भाबर के दक्षिण में अपेक्षाकृत कोमल एवं चिकनी मिट्टी का क्षेत्र है, जहाँ भाबर की लुप्त सरिताएँ पुनः धरातल पर अवतरित हो जाती हैं। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में आर्द्रता की अधिकता एवं उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस क्षेत्र में दलदल एवं वनों तथा वन्य प्राणियों की अधिकता पाई जाती है।

(3) बांगर-बांगर पुरानी जलौढ़ मिट्टी का क्षेत्र है जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता है। यह अपेक्षाकृत ऊँचा उठा हुआ भू-भाग है।

(4) खादर-यह क्षेत्र नीचा है, जहाँ प्रतिवर्ष नदियों की बाढ़ का पानी पहुँच जाता है तथा प्रतिवर्ष जलौढ़ मिट्टी की नई परत बिछती जाती है जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र का उपजाऊपन प्राकृतिक रूप से बना रहता है।

उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन-उत्तर का विशाल मैदान उच्चावच की दृष्टि से विभिन्नता रखता है। पश्चिम में सिन्ध नदी से लेकर पूर्व में असम तक इसमें प्रादेशिक विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। इन विभिन्नताओं के आधार पर इस मैदान को निम्नलिखित तीन भागों (प्रदेशों) में बाँटा जा सकता है-
1. पंजाब तथा हरियाणा का मैदान-उत्तरी-पश्चिमी भारत की पाँच नदियों द्वारा निर्मित इस मैदानी भाग को पंजाब का मैदान कहते हैं जिसमें तीन राज्य (पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली) सम्मिलित हैं। पाँच नदियों के बीच का क्षेत्र, जिसे ‘दोआब’ कहते हैं, इसी से निर्मित है। यह मैदानी भाग अपनी उर्वरता के लिए प्रसिद्ध है। ब्यास, सतलुज, रावी, चेनाब तथा झेलम नदियों द्वारा लाई तलछट के जमाव से इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ है। शिवालिक नदियों के साथ-साथ अपरदन अधिक होने के फलस्वरूप बड़ी संख्या में खड्डे मिलते हैं, जिन्हें ‘चो’ (Chos) कहते हैं। दक्षिण में इस मैदानी भाग की सीमा अरावली तथा पश्चिम में राजस्थान के बालू के टिब्बों तथा पूर्व में यमुना नदी द्वारा बनती है। इस मैदान का उत्तरी भाग अपेक्षाकृत अधिक आर्द्र एवं उपजाऊ है।

2. गंगा का मैदान उत्तर:पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आरम्भ होकर पश्चिमी बंगाल तक विस्तृत है, जिसकी उत्तरी सीमा शिवालिक तथा दक्षिणी सीमा दक्कन के पठारी भाग द्वारा निर्धारित होती है। उत्तर में हिमालय से निकलने वाली गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, गंडक, घाघरा तथा कोसी और दक्षिणी पठारी भाग से उत्तर की ओर बहने वाली नदियों में चम्बल, बेतवा, केन और सोन नदियों के तलछट के जमाव द्वारा इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ है। इस मैदान को भूगोल-वेत्ताओं ने प्रादेशिक आधार पर तीन भागों ऊपरी गंगा का मैदान, गंगा का मध्यवर्ती मैदान तथा गंगा का निचला मैदान, में बाँटा है। इन सब में ऊपरी गंगा का मैदान (गंगा तथा यमुना का दोआब) सबसे अधिक उपजाऊ है। यहाँ तलछट की मोटाई 1,000 मीटर से 2,000 मीटर तक है। सम्पूर्ण उत्तर के विशाल मैदान का ढाल उत्तर:पश्चिम से पूर्व की ओर है।

3. ब्रह्मपुत्र का मैदान ब्रह्मपुत्र के मैदान का अधिकांश हिस्सा असम राज्य में सम्मिलित है। असम घाटी (मैदान) धुबरी (Dhubri) से सदिया तक 640 कि०मी० लम्बी है और इसकी चौड़ाई लगभग 100 किलोमीटर है। बीच में मैदान की चौड़ाई कम हो जाती है। मैदान के दक्षिण में पहाड़ियों के ढाल साधारण हैं, जबकि उत्तर में हिमालय का ढाल तीव्र है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

प्रश्न 7.
प्रायद्वीपीय पठार का भौगोलिक वर्णन कीजिए।
अथवा
दक्षिणी भारत की भू-आकृतिक संरचना का विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर:
उत्तरी मैदान के दक्षिण में पठारी प्रदेश तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार कहलाता है। यह एक त्रिभुजाकार प्रदेश है जिसका आधार दिल्ली एवं राजमहल की पहाड़ियों के बीच तथा शीर्ष दक्षिण में कन्याकुमारी पर स्थित है। शिलांग की पहाडियाँ इसके उत्तरी विस्तार के प्रमाण हैं। नर्मदा तथा ताप्ती की सँकरी घाटियों ने इसे दो असमान भागों में बाँट दिया है। उत्तर में इसे मालवा पठार तथा दक्षिण में दक्कन ट्रेप कहते हैं।

मालवा का पठार-यह पठार नर्मदा, ताप्ती नदियों के उत्तर में तथा विन्ध्य पर्वत के उत्तर:पश्चिम में त्रिभुज आकृति में फैला हुआ है। इसके उत्तर:पश्चिम में अरावली पर्वत तथा उत्तर:पूर्व में गंगा का मैदान है तथा यह ग्रेनाइट चट्टानों का बना हुआ है। यह ऊबड़-खाबड़ तथा बड़े-बड़े बीहड़ एवं खड्ड वाला प्रदेश है। इस पठार की औसत ऊँचाई 800 मी० है। यहाँ विंध्याचल पर्वत की औसत ऊँचाई 730 मीटर तथा एक भ्रंश पर्वत है। इसके दक्षिण में नर्मदा-ताप्ती नदियों के बीच सतपुड़ा पर्वत है, जिसकी लम्बाई 1,120 कि०मी० है। यहाँ सबसे ऊँचा शिखर धूपगढ़ 1,350 मीटर ऊँचा है। ताप्ती नदी का उद्गम-स्थल महादेव पूर्व में स्थित है तथा महादेव के पूर्व में मैकालू है, जहाँ से नर्मदा नदी निकलती है।

अरावली की पहाड़ियाँ मालवा पठार के उत्तर:पश्चिम में स्थित हैं जो अहमदाबाद से दिल्ली तक फैली हुई हैं। ये अवशिष्ट पर्वत हैं। इस पर्वत की सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर, माऊण्ट आबू (राजस्थान) में है और 1,722 मीटर ऊँची है।

मुख्य पठार या दक्कन ट्रेप-यह पठार त्रिभुजाकार में है तथा इसके उत्तर:पश्चिम में सतपडा एवं विंध्याचल, उत्तर में महादेव तथा मैकालू, पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट है। यह लावे का बना हुआ है जिसकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है। इस 2 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में फैले पठार की ढाल पूर्व की ओर है। इस पठार पर बहने वाली मुख्य नदियों-महानदी, संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी, ने पूर्व की ओर बहते हुए अपनी घाटियों को बहुत गहरा किया है तथा समूचे पठार को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया है।

पश्चिमी घाट ये उत्तर में ताप्ती नदी की घाटी से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैले हुए हैं जो लगभग 1,600 कि०मी० लम्बे हैं तथा इनको सहयाद्रि कहा जाता है। इनको पार करने के लिए थाल घाट, भोर घाट तथा पाल घाट नामक दरों का प्रयोग किया जाता है। पश्चिमी ढलान की ओर सीढ़ियों के रूप में होने के कारण इन पर्वतों को घाट कहा जाता है। इस घाट के दक्षिण में नीलगिरि, पलनी, अन्नामलाई तथा इलायची की पहाड़ियाँ हैं। दक्षिणी भारत का सबसे ऊँचा शिखर अनाईमुड़ी, पलनी की पहाड़ियों में स्थित है, जो 2,695 मीटर ऊँचा है। नीलगिरि में सबसे ऊँची चोटी दोदाबेट्टा है।

पूर्वी घाट-ये घाट ओडिशा के उत्तर:पूर्वी भाग से शुरू होकर नीलगिरि की पहाड़ियों में जा मिलते हैं। इनकी औसत चौड़ाई उत्तर में 200 कि०मी० तथा दक्षिण में 100 कि०मी० है तथा औसत ऊँचाई 600 मीटर है। यहाँ सबसे ऊँची चोटी तिमाइगिरि की ऊँचाई 1,515 मी० है। ये घाट टूटी-फूटी अवशिष्ट पहाड़ियों की श्रृंखला हैं।।

प्रश्न 8.
भारत के तटीय मैदानों का भौगोलिक विवरण दीजिए।
उत्तर:
पश्चिमी तथा पूर्वी घाटों व समुद्र के बीच दो संकरे समुद्र तटीय मैदान हैं, जिन्हें क्रमशः पश्चिमी तटीय मैदान और पूर्वी तटीय मैदान कहते हैं।
1. पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain)-पश्चिमी घाट और अरब सागर के तट के बीच स्थित यह एक लम्बा, संकरा मैदानी प्रदेश है जो उत्तर में खम्भात की खाड़ी (Bay of Cambay) से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत है। इस मैदान की औसत चौड़ाई 65 कि० मी० है। इसका उत्तरी भाग चौड़ा व दक्षिणी भाग संकरा है। दमन से गोआ तंक के 500 कि० मी० तक के प्रदेश को कोंकण तट, मध्य भाग में गोआ से मंगलौर तक के 225 कि० मी० के विस्तार को कन्नड़ या कनारा तटीय मैदान तथा मंगलौर व कन्याकुमारी के बीच के 500 कि० मी० क्षेत्र को मालाबार तट कहते हैं।

पश्चिमी घाट से अरब सागर में गिरने वाली असंख्य छोटी-छोटी तीव्रगामी नदियों ने पश्चिमी समुद्री तट को काट-छाँट दिया है। ऐसी स्थिति प्राकृतिक बन्दरगाहों के लिए बहुत अनुकूल होती है। इस मैदान के दक्षिण में मालाबार तट पर बालू के टिब्बे व अनूप (Lagoons) पाए जाते हैं। इन अनूपों को स्थानीय भाषा में कयाल (Kayals) कहा जाता है। अनूप खारे पानी की झीलें होती हैं जिन्हें बालू की रोधिका तथा भू-जिह्वा समुद्र से अलग करती हैं। कोचीन बन्दरगाह एक ऐसे ही अनूप पर स्थित है।

2. पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plain) यह मैदान पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है। उत्तर में स्वर्ण रेखा नदी से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी इत्यादि नदियों ने उपजाऊ डेल्टाओं का निर्माण किया है। इस मैदान के उत्तरी भाग अर्थात् महानदी से कृष्णा तक को उत्तरी सरकार कहते हैं। इसका दक्षिणी भाग अर्थात् कृष्णा से कावेरी तक का भाग कोरोमण्डल (Coromandal) या कर्नाटक (Carnatic) तट कहलाता है। पूर्वी तटीय मैदान में अनेक अनूप (Lagoons) पाए जाते हैं, जिनमें चिल्का, कोल्लेरू व पुलीकट झीलें प्रसिद्ध हैं। ये तटीय मैदान काफी उपजाऊ हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. कौन-सा देश भारतीय उपमहाद्वीप में शामिल नहीं है?
(A) पाकिस्तान
(B) अफगानिस्तान
(C) भूटान
(D) बांग्लादेश
उत्तर:
(B) अफगानिस्तान

2. सर्वप्रथम ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग भारत के लिए किस भाषा में किया गया था?
(A) उर्दू
(B) यूनानी
(C) अरबी
(D) फारसी
उत्तर:
(B) यूनानी

3. भारत का पूर्वी देशांतर है
(A) 97° 25’E
(B) 68° 7’E
(C) 77° 9’E
(D) 82° 32’E
उत्तर:
(B) 68° 7’E

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4. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल व सिक्किम राज्यों की सीमाएँ किस एक देश के साथ मिलती हैं?
(A) चीन
(B) भूटान
(C) नेपाल
(D) म्यांमार
उत्तर:
(C) नेपाल

5. क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
(A) मध्य प्रदेश
(B) उत्तर प्रदेश
(C) आंध्र प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर:
(D) राजस्थान

6. गर्मियों की छुट्टियों में यदि आप सिलवासा आए हुए हैं तो आप कहाँ पर अवस्थित हैं?
(A) बंगाल की खाड़ी के किसी द्वीप पर
(B) अरब सागर के किसी द्वीप पर
(C) गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर
(D) तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की सीमा पर
उत्तर:
(C) गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर

7. कर्क रेखा किस एक राज्य से नहीं गुज़रती?
(A) गुजरात
(B) राजस्थान
(C) ओडिशा
(D) त्रिपुरा
उत्तर:
(C) ओडिशा

8. निम्नांकित में से कौन-सा भारतीय राज्य म्यांमार देश की सीमा पर स्थित नहीं है?
(A) त्रिपुरा
(B) अरुणाचल प्रदेश
(C) नागालैंड
(D) मणिपुर
उत्तर:
(A) त्रिपुरा

9. रेटक्लिफ रेखा भारत के साथ किस देश की सीमा निर्धारित करती है?
(A) चीन
(B) पाकिस्तान
(C) भूटान
(D) बांग्लादेश
उत्तर:
(B) पाकिस्तान

10. कर्क रेखा भारत के कितने राज्यों से होकर गुज़रती है?
(A) 5
(B) 6
(C) 8
(D) 7
उत्तर:
(C) 8

11. भारत की स्थलीय सीमा कितनी लंबी है?
(A) 15,200 कि०मी०
(B) 20,015 कि०मी०
(C) 17,500 कि०मी०
(D) 7,516 कि०मी०
उत्तर:
(A) 15,200 कि०मी०

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

12. किस देश की भारत के साथ सबसे लंबी स्थल सीमा है?
(A) चीन
(B) म्यांमार
(C) पाकिस्तान
(D) बांग्लादेश
उत्तर:
(D) बांग्लादेश

13. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन 82°30’E के संबंध में सही नहीं है?
(A) यह भारत की मानक देशांतर रेखा है
(B) इस रेखा का स्थानीय समय ग्रीनविच समय से 5.30 घंटे आगे है
(C) यह रेखा मिर्जापुर से गुज़रती है
(D) यह रेखा देश को दो बराबर भागों में बाँटती है
उत्तर:
(D) यह रेखा देश को दो बराबर भागों में बाँटती है

14. भारत के किस राज्य की तटरेखा सबसे लंबी है?
(A) गुजरात
(B) आंध्र प्रदेश
(C) तमिलनाडु
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(A) गुजरात

15. संपूर्ण विश्व के क्षेत्रफल में भारत का हिस्सा है-
(A) 16%
(B) 2.4%
(C) 4.2%
(D) 1.6%
उत्तर:
(B) 2.4%

16. भारतीय तटरेखा की कुल लंबाई है
(A) 3,500 कि०मी०
(B) 7,516.6 कि०मी०
(C) 6,000 कि०मी०
(D) 9,500 कि०मी०
उत्तर:
(B) 7,516.6 कि०मी०

17. निम्नलिखित में से कौन-सा द्वीप मन्नार की खाड़ी में स्थित है?
(A) न्यूमूर
(B) एलिफेंटा
(C) लक्षद्वीप
(D) पांबन
उत्तर:
(D) पांबन

18. भारत का 30° का देशांतरीय विस्तार पृथ्वी की परिधि का कौन-सा भाग है?
(A) छठा
(B) बारहवाँ
(C) चौथा
(D) आठवाँ
उत्तर:
(B) बारहवाँ

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
सर्वप्रथम ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग भारत के लिए किस भाषा में किया गया था?
उत्तर:
यूनानी।

प्रश्न 2.
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
राजस्थान।

प्रश्न 3.
रेटक्लिफ रेखा भारत के साथ किस देश की सीमा निर्धारित करती है?
उत्तर:
पाकिस्तान की।

प्रश्न 4.
कर्क रेखा भारत के कितने राज्यों से होकर गुज़रती है?
उत्तर:
आठ।

प्रश्न 5.
भारत के किस राज्य की तटरेखा सबसे लंबी है?
उत्तर:
गुजरात की।

प्रश्न 6.
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का संसार के देशों में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
सातवाँ।

प्रश्न 7.
भारत के लगभग बीचों-बीच कौन-सी अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 8.
भारत के किस स्थान पर बंगाल की खाड़ी, अरब सागर तथा हिन्द महासागर मिलते हैं?
अथवा
भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम बिन्दु कौन-सा है?
उत्तर:
कन्याकुमारी।

प्रश्न 9.
‘संसार की छत’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
पामीर की गाँठ।

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प्रश्न 10.
भारत और श्रीलंका को कौन-सी जल-सन्धि अलग करती है?
उत्तर:
पाक जल-सन्धि।

प्रश्न 11.
मिज़ोरम राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
आइज़ोल।

प्रश्न 12.
मणिपुर राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
इम्फाल।

प्रश्न 13.
नागालैण्ड राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
कोहिमा।

प्रश्न 14.
कर्नाटक राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
बंगलुरु।

प्रश्न 15.
भारतीय यात्री कैलाश और मानसरोवर किन दरों से होकर जाते हैं?
उत्तर:
माना तथा नीति दरों से।

प्रश्न 16.
सिक्किम राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
गंगटोक।

प्रश्न 17.
त्रिपुरा राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
अगरतला।

प्रश्न 18.
मेघालय राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
शिलांग।

प्रश्न 19.
कर्क रेखा भारत को किन दो जलवायु प्रदेशों में बाँटती है?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबन्धीय
  2. उपोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 20.
भारत का प्रामाणिक समय किस देशान्तर से लिया जाता है? कौन-सी देशान्तर रेखा भारत के लगभग बीच से गुज़रती है?
अथवा
उत्तर:
82\(\frac { 1 }{ 2 }\)° पूर्वी देशान्तर।

प्रश्न 21.
अरुणाचल प्रदेश की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
इटानगर।

प्रश्न 22.
भारत का सबसे छोटा केन्द्र-शासित प्रदेश कौन-सा है?
उत्तर:
लक्षद्वीप।

प्रश्न 23.
गुजरात राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
गाँधीनगर।

प्रश्न 24.
भारत में कुल कितने राज्य व केन्द्र-शासित प्रदेश हैं?
उत्तर:
28 राज्य व 8 केन्द्र-शासित प्रदेश।

प्रश्न 25.
भारत का क्षेत्रफल बताइए।
उत्तर:
32,87,263 वर्ग कि०मी०।

प्रश्न 26.
भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल/स्थलीय धरातल का कितना प्रतिशत है?
उत्तर:
2.4 प्रतिशत।

प्रश्न 27.
भारत के किस राज्य में कर्क रेखा सर्वाधिक दूरी तय करती है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश से।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

प्रश्न 28.
कर्क रेखा पर स्थित दो भारतीय नगरों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. गाँधीनगर
  2. जबलपुर।

प्रश्न 29.
82° पूर्वी देशान्तर पर स्थित प्रमुख नगर का नाम लिखें।
उत्तर:
इलाहाबाद।

प्रश्न 30.
तट पर स्थित भारत के केन्द्र-शासित प्रदेशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. दमन
  2. पुदुच्चेरी।

प्रश्न 31.
भारत के दक्षिण में स्थित दो पड़ोसी देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. श्रीलंका
  2. मालदीव।

प्रश्न 32.
कौन-सा चैनल निकोबार द्वीप को अण्डमान द्वीप से अलग करता है?
उत्तर:
10° चैनल।

प्रश्न 33.
अण्डमान व निकोबार द्वीपों का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
जलमग्न पहाड़ियों के शिखरों के कारण।

प्रश्न 34.
प्रायद्वीप भारत का दक्षिणतम बिंदु कौन-सा है?
उत्तर:
कन्याकुमारी।

प्रश्न 35.
भारत का मानक समय ग्रीनविच मानक समय से कितना आगे है?
उत्तर:
5 : 30 मिनट आगे।

प्रश्न 36.
भारत की मुख्य भूमि की तटरेखा कितनी है?
उत्तर:
6,100 कि०मी०।

प्रश्न 37.
भारत का सबसे बड़ा पठारी राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 38.
भारत की प्रामाणिक मध्याह रेखा क्या कहलाती है?
उत्तर:
80°30′ पूर्वी देशांतर।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की मुख्य भूमि का अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार बताइए।
उत्तर:
भारत की मुख्य भूमि 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक है।

प्रश्न 2.
भारत के दक्षिणतम बिन्दु का नाम और अक्षांश बताइए।
उत्तर:
इन्दिरा प्वाइंट, 6°45′ उत्तरी अक्षांश (ग्रेट निकोबार द्वीप)।

प्रश्न 3.
भारत के उत्तरी छोर से दक्षिण छोर तक तथा पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक कितनी दूरी है?
अथवा
भारत की पूर्व से पश्चिम छोर के बीच की दूरी कितनी है?
उत्तर:
भारत उत्तर से दक्षिण तक 3,214 कि०मी० तथा पूर्व से पश्चिम तक 2,933 कि०मी० स्थित है। प्रश्न 4. भारत का कौन-सा स्थान व भाग इण्डोनेशिया के निकटतम है? उत्तर:स्थान-इन्दिरा प्वाइंट व भाग-ग्रेट निकोबार द्वीप।

प्रश्न 5.
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में कौन-कौन से भारतीय द्वीप स्थित है?
उत्तर:
क्रमशः लक्षद्वीप तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 6.
बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले पाँच भारतीय राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. पश्चिम बंगाल
  2. असम
  3. मेघालय
  4. त्रिपुरा
  5. मिज़ोरम।

प्रश्न 7.
इन्दिरा कॉल कहाँ हैं? यहाँ कौन-कौन से देश मिलते हैं?
उत्तर:
भारत के उत्तर में पामीर की गाँठ के पास, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान तथा चीन।

प्रश्न 8.
भारत के उन चार राज्यों के नाम बताओ जो न तो समुद्र को छूते हैं और न ही अन्तर्राष्ट्रीय सीमा को।
उत्तर:

  1. हरियाणा
  2. मध्य प्रदेश
  3. छत्तीसगढ़
  4. झारखण्ड।

प्रश्न 9.
पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. गुजरात
  2. राजस्थान
  3. पंजाब
  4. जम्मू और कश्मीर (अब जम्मू और कश्मीर केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है)।

प्रश्न 10.
भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित सात राज्यों के नाम बताएँ।
अथवा
भारत के किन राज्यों को ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा जाता है?
उत्तर:

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. असम
  3. नागालैण्ड
  4. मणिपुर
  5. मिज़ोरम
  6. त्रिपुरा
  7. मेघालय।

प्रश्न 11.
रेटक्लिफ व मैकमोहन रेखाएँ भारत की किन देशों के साथ सीमाएँ निर्धारित करती हैं?
उत्तर:
रेटक्लिफ रेखा-एक कत्रिम रेखा है जो भारत और पाकिस्तान के मध्य सीमा रेखा बनाती है। मैकमोहन रेखा-भारत व चीन के बीच प्राकृतिक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का कार्य करती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

प्रश्न 12.
भारत के पूर्व तथा पश्चिम में स्थित तीन-तीन देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा ईरान। पूर्व में बांग्लादेश, म्याँमार तथा थाइलैण्ड।

प्रश्न 13.
नेपाल की सीमा के साथ लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. उत्तर प्रदेश
  2. उत्तराखंड
  3. बिहार
  4. पश्चिम बंगाल
  5. सिक्किम।

प्रश्न 14.
भूटान की सीमा के साथ लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. सिक्किम
  2. पश्चिम बंगाल
  3. असम
  4. अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 15.
म्यांमार की सीमा के साथ लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. नागालैण्ड
  3. मणिपुर
  4. मिज़ोरम।

प्रश्न 16.
मैकमोहन रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूटान से पूर्व में भारत और चीन के बीच हिमालय की शिखर रेखा जो भारत-चीन-म्यांमार की त्रि-सन्धि तक विस्तृत है।

प्रश्न 17.
कर्क रेखा भारत के किन-किन राज्यों से होकर गुजरती है?
उत्तर:
कर्क रेखा गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों से होकर गुजरती है।

प्रश्न 18.
भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा और सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
सबसे बड़ा राज्य-उत्तर प्रदेश। सबसे छोटा राज्य-सिक्किम।

प्रश्न 19.
भारत का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा और सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
सबसे बड़ा राज्य-राजस्थान। सबसे छोटा राज्य-गोवा।

प्रश्न 20.
ग्रीनविच तथा भारतीय मानक समय के बीच 5% घंटों के अंतर का कारण बताइए।
उत्तर:
इलाहाबाद के निकट 82°30′ पू० देशांतर के स्थानीय समय को संपूर्ण भारत का मानक समय माना गया है। एक से दूसरे देशांतर के बीच 4 मिनट का अंतर होता है। इस प्रकार 82°30′ x 4 = 51/2 घंटे 30 मिनट का अंतर आएगा। यही कारण है कि भारत का मानक समय ग्रीनविच मानक समय से 5 घंटे आगे है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“भारत भूगोल और इतिहास दोनों के सन्दर्भ में महान् है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की सभ्यता और संस्कृति 5,000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है। अपनी बहु-आयामी विशिष्टता के कारण भारत आदि काल से ही विश्व के लिए आकर्षण का केन्द्र बना रहा है। भौगोलिक रूप से भी यह एक विस्तृत और विशाल देश है जो उत्तर में हिमालय की गगनचुम्बी श्रेणियों व दक्षिण में हिन्द महासागर के बीच फैला हुआ है। यह विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के दक्षिण मध्य में स्थित है।

प्रश्न 2.
भारत की धरातलीय विविधता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत-भूमि विविध प्रकार की है। इसके उत्तर में काँप की मिट्टी से बना विशाल उपजाऊ मैदान है व जीवनदायिनी नदियों के स्रोत, हिमाच्छादित लम्बी पर्वतीय शृंखलाएँ हैं। भारत के उत्तर:पश्चिम में थार का विशाल मरुस्थल है व दक्षिण में प्रायद्वीपीय भाग है, जो ऊबड़-खाबड़ पठारों से बना है। भारत के पूर्व में पूर्वी घाट व पूर्वी तटीय मैदान हैं तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट व पश्चिमी तटीय मैदान हैं। ये तटीय मैदान नारियल व लैगून झीलों के लिए प्रसिद्ध हैं। मुख्य भूमि का लगभग 6,100 कि०मी० लम्बा समुद्री तट भारत की स्थिति को व्यापकता प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
कर्क रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है, इसके क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
कर्क रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है। इसके मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. दो विभिन्न जलवायु कटिबंध-कर्क रेखा के भारत के मध्य से गुज़रने के कारण देश दो जलवायु कटिबंधों में बँटा हुआ है। इसका उत्तरी भाग समशीतोष्ण कटिबंध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबंध में स्थित है। यही कारण है कि इसका दक्षिणी भाग . उत्तरी भागों की अपेक्षा अधिक गर्म है।

2. दक्षिणी भारत में सूर्य की लंबवत् किरणें-उत्तरी भारत में किसी भी स्थान पर सूर्य की किरणें लंबवत् नहीं पड़तीं, जबकि दक्षिणी भारत के सभी स्थानों पर वर्ष में दो बार सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं।
भारत-स्थिति

प्रश्न 4.
क्या कारण है कि कन्याकुमारी में दिन और रात के समय में अंतर पता नहीं चलता, परंतु कश्मीर में ऐसा – नहीं है?
उत्तर:
कन्याकुमारी भारत के दक्षिण में स्थित होने के कारण भूमध्य रेखा के बहुत निकट है और कश्मीर भारत के उत्तर में के कारण भूमध्य रेखा से बहुत दूर पड़ता है। क्योंकि भूमध्य रेखा पर दिन और रात लगभग बराबर होते हैं, इसलिए, जो स्थान भूमध्य रेखा के निकट होंगे जैसे कि कन्याकुमारी है, वहाँ दिन और रात के समय का इतना अंतर नहीं होगा। जैसे-जैसे हम भूमध्य रेखा से दूर चलते जाएँगे, वैसे-वैसे दिन और रात के समय में भी अंतर बढ़ता जाएगा। इसी कारण कश्मीर में, जो भूमध्य रेखा से अपेक्षाकृत काफी दूर है, दिन और रात के समय में काफी अंतर पड़ जाएगा।

प्रश्न 5.
भारतीय उप-महाद्वीप से क्या अभिप्राय है? यह किन देशों से मिलकर बना है?
उत्तर:
भारतीय उप-महाद्वीप एशिया में स्थित होते हुए भी एक अलग भौगोलिक इकाई दिखाई देता है। इस उप-महाद्वीप में कई देश सम्मिलित हैं। इसके उत्तर:पश्चिम में पाकिस्तान, केंद्र में भारत, उत्तर में नेपाल, उत्तर:पूर्व में भूटान तथा पूर्व में बांग्लादेश हैं। भारत के दक्षिण में श्रीलंका और मालदीव हिंद महासागर में स्थित हैं। ये दोनों द्वीपीय राष्ट्र हैं। नेपाल में प्रजातंत्र तथा भूटान में राजतंत्र शासन है। शेष सभी देश गणतंत्र हैं।

प्रश्न 6.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग की दृष्टि से भारत की स्थिति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग के संदर्भ में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण भारत एक ओर से स्वेज़ नहर द्वारा यूरोप के देशों से जुड़ा हुआ है और दूसरी ओर से जापान आदि पूर्वी देशों व ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त भारत की स्थिति खाड़ी तथा अरब देशों के संदर्भ में भी बड़ी महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
“भारत न तो भीमकाय है और न ही बौना।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। क्षेत्रफल के आधार पर विश्व के देशों में भारत की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है। क्षेत्रफल में भारत से बड़े छः देश क्रमशः रूस, चीन, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील तथा ऑस्ट्रेलिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से पौने तीन गुना व रूस भारत से साढ़े पाँच गुना बड़ा है। भारत पाकिस्तान से चार गुना, फ्रांस से छह गुना, जर्मनी से नौ गुना व बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि “भारत का आकार न तो भीमकाय है और न ही बौना।”

प्रश्न 8.
उन दो भौतिक लक्षणों के नाम बताइए जिन्होंने भारत के एक विशिष्ट भौगोलिक स्वरूप के विकास में सहयोग दिया है।
उत्तर:
निम्नलिखित दो भौतिक लक्षणों ने भारत के विशिष्ट भौगोलिक स्वरूप के विकास में काफी सफल भूमिका निभाई है।
1. उत्तर में हिमालय पर्वत एक अटूट श्रृंखला के रूप में हज़ारों कि०मी० तक फैला हुआ है। विश्व का यह उच्चतम पर्वत भारत को मध्य एशिया से अलग किए हुए है। अपारगम्यता के कारण हिमालय को पार करना कठिन है। इस विशिष्टता ने भारत के जन समूह के एकीकरण की भूमिका निभाई।

2. हिन्द महासागर ने जहाँ देश को एक तरफ विलगता प्रदान की वहाँ उसने पूर्व व पश्चिम के सुदूर स्थित देशों को भारत के साथ जोड़ने का प्रयास किया। इस प्रकार जलीय विस्तार ने अलगाव को भी बढ़ावा दिया तथा सम्पर्कों द्वारा सभ्यता को भी उन्नत किया। इससे भारतीय सभ्यता में एक विशिष्ट एकरूपता विकसित हुई।

प्रश्न 9.
भारत का अक्षांशीय विस्तार बताइए। इसके प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
भारत लगभग 8°4′ उत्तरी अक्षांश तथा 37°6′ उत्तरी अक्षांश के मध्य स्थित है। भारत विषुवत् वृत्त के उत्तर में स्थित होने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में आता है। प्रधान मध्याह्न रेखा के पूर्व में स्थित होने के कारण भारत की गणना पूर्वी गोलार्द्ध में होती है। वास्तव में भारत का विस्तार एशिया महाद्वीप के दक्षिणी मध्य प्रायद्वीप में है। अपनी इस स्थिति के कारण प्राचीनकाल में भारत ने पश्चिम में अरब देशों से तथा दक्षिण-पूर्व एशिया एवं सुदूर-पूर्व के साथ सांस्कृतिक तथा अन्य प्रकार के संबंध स्थापित कर रखे थे।

प्रश्न 10.
मैकमोहन रेखा किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है? इसका निर्धारण कैसे हुआ है?
उत्तर:
भारत और चीन के मध्य सीमा-मान्य रेखा को मैकमोहन रेखा कहते हैं। यह हिमालय के साथ-साथ कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक मान्य है। इस रेखा के उत्तर में चीन के सिक्यांग और तिब्बत के पठार स्थित हैं। इसके उत्तर:पूर्व में म्यांमार, भारत तथा चीन आपस में मिलते हैं। यह सीमा-रेखा मुख्यतः प्राकृतिक है और ऐतिहासिक रूप से निर्धारित की हुई है। हिमालय पर्वत भारतीय उत्तरी सीमा पर एक प्रहरी के रूप में स्थित है। उच्च हिमालय के शिखर जल विभाजक के रूप में फैले हुए हैं जो भारत और चीन को अलग करते हुए सीमारेखा को प्राकृतिक रूप प्रदान करते हैं।

प्रश्न 11.
भारत के अधिक देशान्तरीय विस्तार की भौगोलिक विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए पृथ्वी के पूर्वी भाग पश्चिमी भागों की अपेक्षा सूर्य के समक्ष पहले आते हैं। अरुणाचल प्रदेश सौराष्ट्र के पूर्व में है, इसलिए वहाँ सूर्योदय पहले होगा। सौराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में 30 देशान्तरों का अन्तर होने के कारण इनके स्थानीय समय में दो घण्टे का अन्तर होता है क्योंकि सूर्य के समक्ष पृथ्वी एक देशान्तर को 4 मिनट में पार करती है (30 x 4 = 120 मिनट)। अतः जब अरुणाचल प्रदेश में सूर्योदय हो चुका होता है तो सौराष्ट्र में रात बाकी होती है। समय के इस भ्रम को 82°30′ पूर्वी देशान्तर के स्थानीय समय को प्रामाणिक समय घोषित करके दूर किया जाता है।

प्रश्न 12.
भारत के कौन-से राज्य किस देश के साथ लगते हैं?
उत्तर:

देशसीमा पर अवस्थित भारतीय राज्य
1. पाकिस्तान1. गुजरात, 2. राजस्थान, 3. पंजाब।
2. चीन1. हिमाचल प्रदेश, 2. सिक्किम, 3. अरुणाचल प्रदेश, 4 उत्तराखंड।
3. नेपाल1. उत्तर प्रदेश, 2. उत्तराखंड, 3. बिहार, 4. पश्चिम बंगाल, 5. सिक्किम।
4. भूटान1. सिक्किम, 2. पश्चिम बंगाल, 3. असम, 4. अरुणाचल प्रदेश।
5. बांग्लादेश1. पश्चिम बंगाल, 2. असम, 3. मेघालय, 4. त्रिपुरा।
6. म्यांमार1. अरुणाचल प्रदेश, 2. नागालैण्ड, 3. मणिपुर, 4. मिज़ोरम।
नोट-वर्तमान में जम्मू कश्मीर केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है।

प्रश्न 13.
“हिन्द महासागर वास्तव में हिन्द का सागर है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के तट को स्पर्श करने वाले समुद्रों के विस्तार ने भारत के साथ निकटस्थ प्रदेशों के परस्पर सम्बन्ध की प्रकृति निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित होने के कारण, भारत यूरोप, अफ्रीका तथा पूर्वी एशिया के व्यापारिक मार्गों से जुड़ा है। प्राचीनकाल में इसी सागर की लहरों पर बेबीलोन, मिस्र तथा फोनेशिया की नौकाएँ यात्रा करती थीं।

अरबों का समुद्री व्यापार भी इसी सागर के माध्यम से होता था। भारतीय नौकाएँ लगभग 4,000 वर्षों तक दजला, फरात एवं नील नदी की घाटियों को अपना माल पहुँचाया करती थीं। स्वेज नहर के खुलने से भूमध्य सागर को हिन्द महासागर से जोड़ दिया गया है और इस प्रकार दक्षिणी यूरोप एवं उत्तरी अफ्रीका भी हिन्द महासागर के प्रभाव क्षेत्र में आ गए हैं।

हिन्द महासागर में भारत की स्थिति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश के अतिरिक्त संसार के किसी भी अन्य देश की इतनी लम्बी तट-रेखा इस समुद्र के साथ नहीं है। भारत का दक्कन प्रायद्वीप हिन्द महासागर की ओर इस प्रकार प्रक्षेपित है कि इस देश के लिए अपने पश्चिमी तट से पश्चिमी एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप तथा पूर्वी तट से दक्षिणी-पूर्वी एशिया तथा सुदूर पूर्व की ओर एक साथ देखना सम्भव है।

प्रश्न 14.
सूर्योदय अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में गुजरात के पश्चिमी भाग की अपेक्षा 2 घंटे पहले क्यों होता है, जबकि दोनों राज्यों में घड़ी एक ही समय दर्शाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अरुणाचल प्रदेश 97° 25′ पूर्वी देशांतर पर स्थित है, जबकि भारत के सबसे पश्चिमी छोर जोकि गुजरात में है। वह 68° 7′ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। अतः अरुणाचल प्रदेश और गुजरात के देशांतरों में (97° 25′- 68°7′ = 29° 18′) लगभग 30° का अंतर है और देशांतर में 1° का अंतर होने से 4 मिनट के समय का अंतर आ जाता है। इसलिए गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में भी सूर्योदय के समय में 30 x 4 = 120 मिनट अर्थात 2 घंटे का अंतर है। लेकिन पूरे भारत वर्ष में एक ही भारतीय मानक समय स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 15.
“भारत को हिन्द महासागर में सर्वाधिक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है।” यह कथन कहाँ तक उचित है?
उत्तर:
हिन्द महासागर का विस्तार 40° पूर्व से 120° पूर्व देशान्तर तक है। भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम सिरा (केरल और तमिलनाडु) लगभग 76° से 80° पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। इस प्रकार भारत को हिन्द महासागर में केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। भारतीय प्रायद्वीप अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है। हिन्द महासागर में किसी भी देश की तट-रेखा भारतीय तट-रेखा जितनी लम्बी नहीं है। भारत पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं में स्थित देशों के मध्य में स्थित है। इसी केन्द्रीय स्थिति के कारण ही हिन्द महासागर वास्तव में ‘हिन्द का महासागर’ है।

प्रश्न 16.
भारत के पड़ोसी देशों के बीच सीमा विस्तार को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:

  • भारत-बांग्लादेश सीमा – 4,096 कि०मी०
  • भारत-चीन सीमा – 3,439 कि०मी०
  • भारत-नेपाल सीमा – 1,761 कि०मी०
  • भारत-पाक सीमा – 3,310 कि०मी०
  • भारत-म्यांमार सीमा – 1,643 कि०मी०
  • भारत-भूटान सीमा – 587 कि०मी०
  • भारत-अफगानिस्तान सीमा – 106 कि०मी०

प्रश्न 17.
भारत के लिए हमें एक मानक मध्याहून रेखा की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
विशाल देशांतरीय विस्तार के कारण भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी सुदूर बिंदुओं के स्थानीय समय में दो घंटों का अंतर है। उदाहरण के लिए जब अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में सूर्योदय होता है, तो उस समय गुजरात के पश्चिमी भाग में रात रहती है। इसका तात्पर्य यह है कि हर स्थान का अपना अलग-अलग स्थानीय समय होता है। किंतु हम इस स्थानीय समय को, जो भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है, स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने से परेशानी पैदा होगी तथा चारों ओर अव्यवस्था फैल जाएगी और दुर्घटनाएँ होंगी। इन सभी परिस्थितियों से बचने के लिए सारे देश के लिए एक सामान्य समय स्वीकार कर लिया जाता है, जो उस देश का मानक समय (Standard Time) कहलाता है।

हमारे देश में 82°30′ पूर्वी देशांतर को मानक रेखा स्वीकार किया गया है। इलाहाबाद के निकट से गजरने वाली इस मध्याहन रेखा का समय ही भारत का मानक समय (I.S.T.) है, जो ग्रीनविच समय से 5 1/2 घंटे आगे है। हमने 82°30′ पूर्वी देशांतर को भारत की प्रधान मध्याहून रेखा इसलिए स्वीकार किया है, क्योंकि यह रेखा भारत के लगभग बीचो-बीच से होकर गुज़रती है। भारतीय मानक समय के कारण सारे देश में समय की एकरूपता प्राप्त की जा सकी है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के आकार, स्थिति तथा विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आकार और स्थिति क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व का सातवाँ तथा जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरा बड़ा देश है। भारत की मुख्य भूमि 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक विस्तृत है। बंगाल की खाड़ी में स्थित मुख्य भूमि से दूर अण्डमान व निकोबार द्वीप-समूह का दक्षिणतम बिन्दु इन्दिरा प्वाइण्ट (Indira Point), जिसे पहले पिग्मेलियन प्वाइण्ट कहा जाता था, 6°45′ उत्तरी अक्षांश पर स्थित है।

उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कन्याकुमारी तक भारत की लम्बाई 3,214 कि०मी० है। भारत का अक्षांशीय विस्तार लगभग 30° है जो भू-मध्य रेखा और उत्तरी ध्रुव के बीच कोणीय दूरी का एक तिहाई है। कच्छ के रन से अरुणाचल प्रदेश तक पूर्व-पश्चिम दिशा में भारत की चौड़ाई 2,933 कि०मी० है। भारत का देशान्तरीय विस्तार लगभग 30° है जो पृथ्वी की परिधि का बारहवाँ भाग है। यह देशान्तरीय विस्तार स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड्स, जर्मनी व पोलैण्ड के सम्मिलित देशान्तरीय विस्तार के समान है। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) हमारे देश के लगभग मध्य से गुजरती है।

विस्तार-भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि० मी० है जो विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है। क्षेत्रफल में भारत से बड़े छः देश क्रमशः रूस (170.75 लाख वर्ग कि०मी०), चीन (95.97 लाख वर्ग कि० मी०), कनाडा (92.15 लाख वर्ग कि० मी०), संयुक्त राज्य अमेरिका (90.72 लाख वर्ग कि०मी०), ब्राजील (85.12 लाख वर्ग कि० मी०) तथा ऑस्ट्रेलिया (76.82 लाख वर्ग कि०मी०) है। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से पौने तीन गुना व रूस भारत से साढ़े पाँच गुना बड़ा है। भारत पाकिस्तान से चार गुना, फ्रांस से छः गुना, जर्मनी से नौ गुना व बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि “भारत का आकार न तो भीमकाय है और न ही बौना।”

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

प्रश्न 2.
भारत की भौगोलिक स्थिति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। अथवा भारत की भौगोलिक स्थिति का क्या महत्त्व है? वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की भौगोलिक स्थिति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. केन्द्रीय स्थिति-भारत की मुख्य भूमि 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक विस्तृत है। इस प्रकार भारत उत्तरी गोलार्द्ध में होने के साथ-साथ पूर्वी गोलार्द्ध के बीचो-बीच स्थित है। परिणामस्वरूप भारत एक ओर यूरोप से व दूसरी ओर उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से लगभग बराबर दूरी पर स्थित है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय महामार्गों पर स्थित अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भी भारत की स्थिति अत्यन्त लाभदायक है। अनेक समुद्री व्यापारिक महामार्ग एवं वायुमार्ग भारत से होकर जाते हैं।

3. कर्क रेखा का देश के बीच से गुज़रना-देश के दक्षिणी सिरे से भूमध्य रेखा की निकटता तथा कर्क रेखा (23%° उ०) का देश के बीच से गुज़रना भारत के लिए सारा साल उष्ण व उपोष्ण प्रकार की जलवायुवी दशाएँ पैदा करते हैं। इन दशाओं में पूरे वर्ष खेती की जा सकती है। अपनी इसी स्थिति के कारण ही भारत आज एक कृषि प्रधान देश बना हुआ है।

4. लम्बी तट रेखा भारत की मुख्य भूमि की तट-रेखा 6,100 कि०मी० तथा द्वीपों सहित देश की तट-रेखा 7,516 कि०मी० लम्बी है। समुद्र के इस लम्बे विस्तार ने निकटस्थ प्रदेशों के परस्पर सम्बन्धों की प्रकृति निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लम्बी तट-रेखा के कारण भारत को अनेक बन्दरगाहों की सुविधा उपलब्ध है जिससे हमारे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बल मिलता है।

5. देश की सुरक्षा-उत्तर में हिमालय पर्वत तथा दक्षिण में हिन्द महासागर ने प्राकृतिक सीमा बनकर युगों से देश की बाहरी तत्त्वों से सुरक्षा की है।

6. मानसूनी जलवायु-हिन्द महासागर के सिरे पर भारत की स्थिति के कारण ही भारत को ग्रीष्म ऋतु में मानसूनी वर्षा प्राप्त होती है जो इस देश के करोड़ों लोगों की आजीविका के साधन-कृषि का आधार है।

इस प्रकार भारत की भौगोलिक स्थिति ने भारत में आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास में अनेक प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 3.
भारत को किन आधारों पर एक उप-महाद्वीप का दर्जा दिया गया है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक उप-महाद्वीप विशाल भौगोलिक इकाई होती है जो शेष महाद्वीप से भिन्न पहचान रखती है। यूरोपीय विद्वान् डॉ० क्रेसी ने भारत के विस्तार इसकी भौतिक, मानवीय व सांस्कृतिक विभिन्नताओं, विशाल जनसंख्या, हिमालय की लम्बी एवं बर्फीली श्रेणियों द्वारा स्थापित किया गया पृथक्, अस्तित्व, अनेक प्रकार की जलवायु के कारण इसे उप-महाद्वीप की संज्ञा दी है। .. इन आधारों की व्याख्या इस प्रकार है-
1. बड़ा क्षेत्रफल-भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि०मी० है जो विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है। रूस भारत में साढ़े पाँच गुना बड़ा है जबकि भारत पाकिस्तान से चार गुना, फ्रांस से छः गुना, जर्मनी से नौ गुना व बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है।

2. धरातलीय विभिन्नता-भारत-भूमि विविध प्रकार की है। इसके उत्तर में विशाल उपजाऊ मैदान व जीवनदायिनी नदियों के स्रोत हिमाच्छादित लम्बी पर्वत शृंखलाएँ हैं। भारत के उत्तर-पश्चिम में थार का मरुस्थल तथा दक्षिण में ऊबड़-खाबड़ पठारों से बना विशाल प्रायद्वीपीय भाग है। भारत के लम्बे और विस्तृत तट एवं घाट तथा नदियाँ और झीलें इसकी भौगोलिक विविधता को और अधिक प्रखर करती हैं।

3. विशाल जनसंख्या और उसकी विविधता-लगभग 121.01 करोड़ जनसंख्या (2011) के साथ भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की जनसंख्या की नृ-जातीय तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं में भी पर्याप्त विविधता पाई जाती है। अनेक जाति-वर्ग, भाषायी व धार्मिक समूह इस देश की विशालता और विविधता को उजागर करते हैं।

4. जलवायु की विविधता-भारत में दुनिया की हर प्रकार की जलवायु पाई जाती है। जलवायु की यह विविधता प्रादेशिक स्तर पर तापमान, वायुदाब, वर्षा की मात्रा, शुष्कता और आर्द्रता में भिन्नता के रूप में देखी जा सकती है। ब्लैंफोर्ड ने सत्य कहा था कि “हम भारत की जलवायुओं के बारे में कह सकते हैं, जलवायु के विषय में नहीं क्योंकि स्वयं विश्व में जलवायु की इतनी विषमताएँ नहीं मिलती जितनी अकेले भारत में।”

5. प्राकृतिक सीमाएँ-भारत उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में हिन्द महासागर के बीच फैला हुआ है। हिमालय भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल व भूटान को भी शेष एशिया से अलग करके उन्हें एक अनूठी भौगोलिक विशिष्टता प्रदान करता है। समुद्री मार्गों के कारण भारत ने अन्य देशों के सामाजिक-सांस्कृतिक गुणों को आत्मसात् किया। इन समुद्रों से अलगाव ही बनाए रखा जिससे भारत अपनी भौगोलिक विशिष्टता को बचाए रख सका।

6. परिबद्ध चरित्र-भारत चारों ओर से विशाल तथा कई मध्यम पर्वतों द्वारा घिरा हुआ है। इन पर्वतों ने हज़ारों कि०मी० की दूरी तक अखण्ड रूप से घेर कर भारत को परिबद्ध (Enclosed) चरित्र प्रदान किया है। इस पर्वतीय धेरे ने भारत को एशिया के अन्य भागों से व्यावहारिक रूप से अलग कर दिया है।

7. प्रचुर एवं विविध प्राकृतिक संसाधन-भू-गर्भिक, धरातलीय एवं जलवायविक विविधता ने भारत को नाना प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न किया है। यहाँ के खनिजों, मृदा, जल, वनस्पति, जीव-जन्तुओं की विविधता के साथ-साथ मानवीय संसाधनों ने देश के आर्थिक विकास के आधार को मज़बूत किया है। संसाधनों की इतनी अधिक विविधता एवं सम्पन्नता अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलती।

उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर प्रमाणित होता है कि भारत सही अर्थों में एक उप-महाद्वीप की हैसियत रखता है। इस उप-महाद्वीप में भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका देश भी शामिल हैं।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. निम्नलिखित में से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?
(A) बिहार
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) असम
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(A) बिहार

2. उत्तरांचल अब उत्तराखण्ड के किस जिले में मालपा भूस्खलन आपदा घटित हुई थी?
(A) बागेश्वर
(B) चंपावत
(C) अल्मोड़ा
(D) पिथौरागढ़
उत्तर:
(D) पिथौरागढ़

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3. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
(A) असम
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) केरल
(D) तमिलनाडु
उत्तर:
(D) तमिलनाडु

4. इनमें से किस नदी में मजौली नदीय द्वीप स्थित है?
(A) गंगा
(B) बह्मपुत्र
(C) गोदावरी
(D) सिंधु
उत्तर:
(B) बह्मपुत्र

5. बर्फानी तूफान किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा है?
(A) वायुमंडलीय
(B) जलीय
(C) भौमिकी
(D) जीवमंडलीय
उत्तर:
(A) वायुमंडलीय

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर:
संकट से हमारा तात्पर्य उन प्राकृतिक तत्त्वों से है जिनमें जान-माल को क्षति पहुँचाने की सम्भाव्यता होती है जैसे नदी के तट पर बसे लोगों के लिए नदी एक संकट है क्योंकि नदी में कभी भी बाढ़ आ सकती है। संकट उस समय आपदा बन जाता है, जब वह अचानक उत्पन्न हो और उससे निपटने के लिए पूर्ण तैयारी भी न हो।

प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर:पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
इसका कारण यह है कि इण्डियन प्लेट उत्तर और उत्तर:पूर्व दिशा में 1 सें०मी० खिसक रही है और यूरेशियन प्लेट से टकराकर ऊर्जा निर्मुक्त करती है जिससे इस क्षेत्र में भूकम्प आते हैं।

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प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. महासागरीय तल का तापमान 27°C से अधिक हो ताकि तूफान को अधिक मात्रा में आर्द्रता मिल सके जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
  2. तीव्र कॉरियालिस बल जो केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे।
  3. क्षोभमंडल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बनते जाते हैं।

प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़, पश्चिमी भारत की बाढ़ से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
पूर्वी भारत की नदियों में बाढ़ बार-बार आती है जिसका कारण है वहाँ मानसून की तीव्रता, जबकि पश्चिमी भारत में बाढ़ कभी-कभी आती है। इसके अतिरिक्त पूर्वी भारत में बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है जबकि पश्चिमी भारत की बातें कम विनाशकारी होती हैं।

प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी और मध्य भारत में वर्षा बहुत कम होती है जिसके कारण भूतल पर जल की कमी हो जाती है। पश्चिमी भाग मरुस्थलीय और मध्यवर्ती भाग पठारी लेने के कारण भी सूखे के स्थिति पैदा होती है। अतः कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से सूखे की स्थिति पैदा होती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा से निवारण के कुछ उपाय बताएँ।
उत्तर:
भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है-
1. अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र-अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव गतिविधियों वाले क्षेत्र अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र के अन्तर्गत रखे गए हैं।

2. अधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र इस क्षेत्र में हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर:पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) शामिल किए गए हैं।

3. मध्यम और कम सुभेद्यता वाले क्षेत्र-इसके अन्तर्गत ट्रांस हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में कम वर्षा वाले क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र शामिल हैं। जहाँ कभी-कभी भू-स्खलन होता है।

4. अन्य क्षेत्र अन्य क्षेत्रों में राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग को छोड़कर) असम और दक्षिण प्रान्तों के तटीय क्षेत्र भी भू-स्खलन युक्त हैं।

भू-स्खलन निवारण के उपाय-भू-स्खलन निवारण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपाय होने चाहिएँ, जो निम्नलिखित हैं-

  • अधिक भू-स्खलन वाले क्षेत्रों में सड़क और बाँध निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • स्थानान्तरी कृषि वाले क्षेत्रों में (उत्तर:पूर्वी भाग) सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल-बहाव को कम करने के लिए बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इसके निवारण के उपाय बताएँ।
उत्तर:
सुभेद्यता का अर्थ सुभेद्यता किसी व्यक्ति, जन-समूह या क्षेत्र में हानि पहुँचाने का भय है जिससे वह व्यक्ति, जन-समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।

भारत के प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों का विभाजन-भारत को सूखे के आधार पर निम्नलिखित प्राकृतिक आपदा वाले भेद्यता क्षेत्रों में बाँटा गया है-
(1) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान का अधिकांश भाग विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ 90 मि०मी० से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।

(2) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें राजस्थान का पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आन्ध्र प्रदेश के अन्दरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड के दक्षिणी भाग और ओ आते हैं।

(3) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र इस वर्ग में राजस्थान के पूर्वी भाग, हरियाणा, उत्तर:प्रदेश के दक्षिणी जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार और आन्तरिक कर्नाटक शामिल हैं।

भारत के शेष भाग में बहुत कम या न के बराबर सूखा पड़ता है।
सूखा निवारण के उपाय-

  • सूखा निवारण के लिए सरकार द्वारा राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक योजनाएँ चलानी चाहिए।
  • भूजल के भंडारों की खोज के लिए सुदूर संवेदन, उपग्रह मानचित्रण तथा भौगोलिक सूचना तंत्र जैसी विविध युक्तियों का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • लोगों के सक्रिय सहयोग से वर्षा के जल संग्रहण के समन्वित कार्यक्रम भी अपनाए जाने चाहिए।
  • जल संग्रह के लिए छोटे बाँधों का निर्माण, वन रोपण तथा सूखारोधी फसलें उगानी चाहिए।

प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
विकास कार्य निम्नलिखित परिस्थितियों में संकट का कारण बन सकते हैं-

  1. मानव द्वारा ऊँचे बाँधों का निर्माण गम्भीर संकट पैदा कर सकता है। यदि इस प्रकार का बाँध टूट जाए तो निकटवर्ती क्षेत्र डूब सकता है।
  2. पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य भू-स्खलन का प्रमुख कारण बन सकता है।
  3. बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई से कई प्रकार के संकट पैदा होते हैं। इससे अपरदन क्रिया तेज होती है तथा पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ सकता है।
  4. नगरीकरण तथा औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्तियाँ सारे वायुमंडल को प्रदूषित कर रही हैं। उद्योगों से CO2 गैस और CFC का विसर्जन गम्भीर संकट पैदा कर सकता है।
  5. उद्योगों से अर्थव्यवस्था का विकास होता है लेकिन औद्योगिक दुर्घटना कई बार आपदा का रूप ले लेता है; जैसे भोपाल गैस कांड में काफी लोग मारे गए थे।

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ आपदा (Disaster) जल, स्थल अथवा वायुमंडल में उत्पन्न होने वाली ऐसी घटना या बदलाव जिसके कुप्रभाव से विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि और पर्यावरण का अवक्रमण होता है, आपदा कहलाती है।

→ संकट (Hazards) वह वस्तु या हालात जिससे आपदा आ सकती है, संकट कहलाती है।

→ भूकम्प (Earthquake)-पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात काँप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं।

→ सुनामी (Tsunami) बंदरगाह पर आने वाली ऊँची लहरें अथवा भूकम्पीय लहरें।

→ भूस्खलन (Landslide)-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी शिलाओं से लेकर काफी बढ़े भू-भाग के ढलान के नीचे की तरफ सरकने या खिसकने की क्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

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