HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

HBSE 9th Class Hindi साखियाँ एवं सबद Textbook Questions and Answers

साखियाँ

प्रश्न 1.
‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर-
‘मानसरोवर’ से कवि का आशय मन रूपी तालाब से है, जिसमें ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात जीवात्मा रूपी हंस क्रीड़ा करता है अर्थात जीवात्मा मोक्ष रूपी मोती चुगती है।

प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?
उत्तर-
कवि ने सच्चे प्रेमी की कसौटी पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि ईश्वर का एक प्रेमी जब दूसरे प्रेमी से मिलता है तो विषय-वासनाओं रूपी विष भी प्रभु-भक्ति रूपी अमृत में बदल जाता है। एक सच्चा प्रेमी प्रभु की चर्चा करता है, जिससे सबके हृदय में आनंद एवं सुख की अनुभूति होती है।

प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है ?
उत्तर-
तीसरे दोहे में कवि ने हस्ती रूपी ज्ञान को महत्त्व दिया है, जो सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्राप्त हो सकता है। ऐसे ज्ञान से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर-
संत कवि कबीरदास ने बताया है कि सारा संसार पक्ष-विपक्ष के विवाद में फँसा हुआ है, किंतु सच्चा संत वह कहलाता है, जो निष्पक्ष या समभाव से ईश्वर का भजन करता है।

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प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है ?
उत्तर-
अंतिम दो दोहों में कबीरदास ने हिंदुओं और मुसलमानों की सांप्रदायिकता अर्थात हमारा राम श्रेष्ठ है तथा हमारा खुदा श्रेष्ठ है, की संकीर्णता पर प्रकाश डाला है। अंतिम दोहे में कबीरदास ने ऊँचे कुल में जन्म लेने पर गुणहीन होने पर भी अपने-आपको समाज में ऊँचा या श्रेष्ठ समझने की संकीर्णता को अभिव्यक्त किया है। व्यक्ति ऊंचे कुल में उत्पन्न होने से नहीं, अपितु अच्छे कर्म करने से ही बड़ा होता है।

प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
कबीरदास ने अपनी साखी में बताया है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं होती, अपितु उसके कर्मों से होती है। यदि एक व्यक्ति उच्च कुल में पैदा होकर नीच कर्म करता है तो उसे नीच ही समझा जाता है और उसकी पहचान बुरे या नीच व्यक्ति के रूप में ही होती है। इसके विपरीत, छोटे कुल में उत्पन्न व्यक्ति यदि सत्कर्म या महान् कर्म करता है तो उसे उच्च समझा जाता है अर्थात उसकी पहचान उसके कुल से नहीं, अपितु उसके कर्मों से ही होती है। संत कवि रैदास इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 7.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिएहस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥
उत्तर-
(क) प्रस्तुत दोहे में कवि ने ज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट किया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) दोहा छंद है।
(घ) स्वर-मैत्री के कारण भाषा में लय का समावेश है।
(ङ) संपूर्ण दोहे में रूपक अलंकार है।

सबद

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है ?
उत्तर-
कवि के अनुसार मनुष्य ईश्वर को देवालय (मंदिर), मस्जिद, काबा, कैलाश पर्वत, क्रिया-कर्म, योग और वैराग्य में ढूँढ़ता फिरता है।

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प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है ?
उत्तर-
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के अनेक प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर मंदिरों, मस्जिदों में प्राप्त नहीं हो सकता। वह काबा और कैलाश जैसे तीर्थ-स्थलों पर भी नहीं है। यहाँ तक कि योग-साधना, संन्यास या वैराग्य से भी उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वह कर्मकांडों के द्वारा भी प्राप्त नहीं हो सकता। ये सब दिखावे हैं। इनमें ईश्वर को ढूँढना व्यर्थ है।

प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है ?
उत्तर-
कबीर का मत है कि ईश्वर घट-घट में समाया हुआ है। इसलिए वह प्रत्येक प्राणी की साँस-साँस में समाया हुआ है। वह प्रत्येक प्राणी के हृदय में विद्यमान है।

प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की ?
उत्तर-
कबीर की दृष्टि में ज्ञान के आगमन और आँधी की प्रवृत्ति एक समान है। इसलिए उन्होंने ज्ञान के आगमन की तुलना आँधी से की है। जिस प्रकार आँधी के आने से पृथ्वी पर पड़ी व्यर्थ वस्तुएँ उड़ जाती हैं और पृथ्वी स्वच्छ हो जाती है; उसी प्रकार ज्ञान के आगमन से मनुष्य के मन में व्याप्त भ्रम और दुविधाएँ नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर ईश्वर की भक्ति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए कबीरदास ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा की अपेक्षा आँधी से की है।

प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
कबीरदास के अनुसार ज्ञान की आँधी आने से भक्त के मन में सभी प्रकार की भ्रम एवं दुविधा की स्थिति समाप्त हो जाती है और उसके मन में ईश्वरीय प्रेम उत्पन्न हो जाता है। अज्ञान या अविवेक नष्ट हो जाता है और वह ईश्वर की भक्ति में लीन होकर अनुपम आनंद की अनुभूति करने लगता है।

प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
उत्तर-
(क) इस पंक्ति में स्पष्ट किया गया है कि ज्ञान के आगमन से साधक या भक्त के मन के सभी प्रकार के भ्रम और मन की दुविधा रूपी दो थूनी गिरकर टूट जाती है अर्थात मन की दुविधा की स्थिति समाप्त हो जाती है और सांसारिक मोह रूपी बल्ली भी टूट जाती है। कहने का भाव है कि मानव को ईश्वरीय ज्ञान होने पर उसके मन के भ्रम, दुविधा एवं मोह के बंधन टूट जाते हैं।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि ज्ञान की आँधी आने पर अर्थात मानव को ज्ञान प्राप्त हो जाने पर ईश्वरीय भक्ति की जो वर्षा होती है, उसमें ईश्वर का भक्त पूर्णतः भीग जाता है अर्थात ईश्वरीय भक्ति में मगन हो जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 14:
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
संकलित साखियों में कबीरदास ने धार्मिक विचारों को उदार बनाने पर बल दिया है। उन्होंने कहा है कि हमें अपने धर्म को ही श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए, अपितु सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। कबीर की दृष्टि में सभी धर्मों के प्रति समभाव रखने वाला व्यक्ति सही अर्थों में जीवन जीता है। इसी प्रकार कबीरदास ने एक अन्य साखी में कहा है कि जब मनुष्य मध्यम मार्ग अपना लेता है तो उसे काबा व काशी तथा राम और रहीम में परम तत्त्व के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार संकलित पदों में कबीरदास ने ईश्वर को बाह्य साधनों में ढूँढने की अपेक्षा मन में ढूँढने की प्रेरणा दी है, क्योंकि ईश्वर तो प्रत्येक प्राणी के हृदय में बसता है। मानव को ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति होने पर उसके मन के सभी भ्रम एवं दुविधाएँ नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर प्रभु-भक्ति का संचार हो जाता है, जिससे वह सुख एवं आनंद का अनुभव करता है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख
उत्तर-
शब्द –तत्सम
पखापखी = पक्ष-विपक्ष
अनत = अन्य
जोग – योग
जुगति = युक्ति
बैराग = वैराग्य
निरपख = निष्पक्ष

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न-
कबीर की साखियों को याद कर कक्षा में अंत्याक्षरी का आयोजन कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।

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HBSE 9th Class Hindi साखियाँ एवं सबद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित दोहों के आधार पर कबीर की प्रेम संबंधी धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
कबीर जी का प्रेम सांसारिक प्रेम नहीं, अपितु उनका प्रेम परमात्मा के प्रति था। वे प्रेम को पवित्र जल के समान उज्ज्वल एवं पावन मानते हैं। इस प्रेम की प्राप्ति के पश्चात् कोई प्राणी इससे अलग नहीं रह सकता। ईश्वरीय प्रेम की प्राप्ति से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है। उसके पापों का नाश हो जाता है तथा वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
कबीरदास मानव की श्रेष्ठता किसमें मानते हैं ?
उत्तर-
कबीरदास के मतानुसार वही व्यक्ति श्रेष्ठ है जिसमें किसी प्रकार का घमंड नहीं होता। वह सदैव सद्कर्मों में लगा रहता है। सद्कर्म और प्रभु स्मरण करने वाला व्यक्ति ही कबीर की दृष्टि में श्रेष्ठ है।

प्रश्न 3.
कबीरदास के मतानुसार ईश्वर की प्राप्ति का सही उपाय क्या है ? .
उत्तर-
कबीरदास के मतानुसार ईश्वर कहीं बाह्य स्थानों अर्थात् देवालय, पर्वत, मंदिर, मस्जिद आदि में नहीं मिलता, अपितु वह मनुष्य के हृदय में बसा हुआ है। मानव की हर साँस में उसका निवास है। इसलिए हमें ईश्वर को अपने हृदय में ही ढूँढना चाहिए। हमें अपनी हर साँस में ईश्वर की अनुभूति करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
कबीरदास ने मेरे और तेरे मन के एक न होने की बात क्यों कही है ?
उत्तर-
कबीरदास ने ‘मेरे’ शब्द का प्रयोग अपने लिए या प्रभु भक्त के लिए किया है। ‘तेरे’ शब्द का प्रयोग सांसारिक मोह में फँसे हुए व्यक्ति के लिए किया है। इन दोनों की विचारधाराएँ अलग-अलग हैं। दोनों के लक्ष्य भिन्न-भिन्न हैं। एक अपने अनुभव पर विश्वास करता है, जबकि दूसरा वेद शास्त्रों में कही गई बात अथवा अंधविश्वासों को मानता है। यह सोच का अंतर ही मेरे-तेरे मन के एक होने में बाधक है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संत कबीर किस भक्ति काव्यधारा के कवि हैं ?
(A) राम भक्ति काव्यधारा के
(B) कृष्ण भक्ति काव्यधारा के
(C) सूफी भक्ति काव्यधारा के
(D) निर्गुण भक्ति काव्यधारा के
उत्तर-
(D) निर्गुण भक्ति काव्यधारा के

प्रश्न 2.
संत कबीर का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1398 में
(B) सन् 1405 में
(C) सन् 1415 में
(D) सन् 1425 में
उत्तर-
(A) सन् 1398 में

प्रश्न 3.
कबीरदास कहाँ के रहने वाले थे ?
(A) लखनऊ के
(B) काशी के
(C) मेरठ के
(D) प्रयागराज के
उत्तर-
(B) काशी के

प्रश्न 4.
विद्वानों ने कबीरदास की कितनी लंबी आयु मानी है ?
(A) लगभग सौ वर्ष
(B) लगभग एक सौ दस वर्ष
(C) लगभग एक सौ बीस वर्ष
(D) लगभग एक सौ तीस वर्ष
उत्तर-
(C) लगभग एक सौ बीस वर्ष

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प्रश्न 5.
विद्वानों ने कबीरदास का जन्म किसके गर्भ से माना है ?
(A) विधवा ब्राह्मणी के
(B) शूद्र के
(C) जुलाहिन के
(D) क्षत्राणी के
उत्तर-
(A) विधवा ब्राह्मणी के

प्रश्न 6.
विद्वानों ने कबीरदास का निधन कब माना है ?
(A) सन् 1538 में
(B) सन् 1528 में
(C) सन् 1518 में
(D) सन् 1508 में
उत्तर-
(C) सन् 1518 में

प्रश्न 7.
कबीरदास का पालन-पोषण किसने किया ?
(A) विधवा ब्राह्मणी ने
(B) नीरू नामक जुलाहा ने
(C) दादू दयाल ने
(D) एक मौलवी ने
उत्तर-
(B) नीरू नामक जुलाहा ने

प्रश्न 8.
कबीरदास की सामाजिक चेतना कैसी थी ?
(A) गहन
(B) उथली
(C) उदार
(D) संकीर्ण
उत्तर-
(A) गहन

प्रश्न 9.
कबीरदास की कुछ प्रमुख रचनाएँ किस धार्मिक ग्रंथ में संकलित हैं ?
(A) गीता में
(B) महाभारत में
(C) रामायण में
(D) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में
उत्तर-
(D) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में

प्रश्न 10.
किस विद्वान ने कबीरदास के काव्य की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भाषा बताया है ?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने
(B) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने
(C) महावीर प्रसाद द्विवेदी ने
(D) रामकुमार वर्मा ने
उत्तर-
(B) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने

प्रश्न 11.
कबीरदास को ‘मस्तमौला’ किस विद्वान ने कहा है ?
(A) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने
(C) रामकुमार वर्मा ने
(D) जयशंकर प्रसाद ने
उत्तर-
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने

प्रश्न 12.
कबीरदास के अनुसार हंस कहाँ केलि करते हैं ?
(A) सागर में
(B) नदी में
(C) मानसरोवर में
(D) लघु सरोवर में
उत्तर-
(C) मानसरोवर में

प्रश्न 13.
कबीरदास के अनुसार प्रेमी को प्रेमी मिलने पर क्या हो जाता है ?
(A) शक्ति में वृद्धि
(B) दोनों में मेलजोल
(C) विष का अमृत में परिवर्तन हो जाना
(D) गिले-शिकवे दूर होना
उत्तर-
(C) विष का अमृत में परिवर्तन हो जाना

प्रश्न 14.
कबीरदास किस ‘प्रेमी’ की बात कहते हैं ?
(A) परमात्मा
(B) साधारण मनुष्य
(C) गहरे मित्र
(D) धोखेबाज प्रेमी
उत्तर-
(A) परमात्मा

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प्रश्न 15.
‘सहज दुलीचा’ किसका प्रतीक है ?
(A) सहज भक्ति-भावना का
(B) सहज विचार का
(C) सहज जीवन का
(D) सहज भोजन का
उत्तर-
(A) सहज भक्ति-भावना का

प्रश्न 16.
कवि ने किसे संत सुजान कहा है ?
(A) जो पक्षपात करता हो
(B) जो पक्ष-विपक्ष के चक्कर में पड़ा हो
(C) जो निष्पक्ष भाव से परमात्मा की भक्ति करता हो
(D) जो किसी विशेष मत को अपनाता हो
उत्तर-
(C) जो निष्पक्ष भाव से परमात्मा की भक्ति करता हो

प्रश्न 17.
कबीरदास के अनुसार कौन व्यक्ति श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करता है ?
(A) जो राम या खुदा में भेदभाव करता है
(B) जो राम या खुदा के भेदभाव के निकट नहीं जाता
(C) जो राम को खुदा से बड़ा मानता है
(D) जो खुदा से राम को छोटा मानता है
उत्तर-
(B) जो राम या खुदा के भेदभाव के निकट नहीं जाता

प्रश्न 18.
किस साधक के लिए काबा काशी और राम रहीम बन जाता है ?
(A) सच्चे साधक के लिए
(B) पाखंडी साधक के लिए
(C) भीख माँगने वाले के लिए
(D) निर्गुण साधक के लिए
उत्तर-
(A) सच्चे साधक के लिए

प्रश्न 19.
साधु किस व्यक्ति की निंदा करते हैं ?
(A) जो ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे काम करता है
(B) जो नीच कुल में जन्म लेकर अच्छे काम करता है
(C) जो परिश्रमी होता है
(D) जो पंडित होकर भी भजन नहीं करता
उत्तर-
(A) जो ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे काम करता है

प्रश्न 20.
किस वस्तु से भरे हुए स्वर्ण कलश की साधु निंदा करते हैं ?
(A) अमृत से
(B) शराब से
(C) दूध से
(D) जल से
उत्तर-
(B) शराब से

प्रश्न 21.
‘मोकों कहाँ ढूँढे बदे’ पद में कवि ने ईश्वर को कहाँ ढूँढ़ने के लिए कहा है ?
(A) मन्दिर में
(B) मस्जिद में
(C) अपने घर में
(D) अपने अंदर
उत्तर-
(D) अपने अंदर

प्रश्न 22.
‘मोकों कहाँ ढूँढे बदे’ पद में किसकी सर्वव्यापकता का वर्णन किया गया है ?
(A) वायु की
(B) जल की
(C) प्रकाश की
(D) ईश्वर की
उत्तर-
(D) ईश्वर की

प्रश्न 23.
कबीरदास के अनुसार किसकी आँधी आई है ?
(A) धूल की
(B) सुगंधित पवन की
(C) रेत की
(D) ज्ञान की
उत्तर-
(D) ज्ञान की

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प्रश्न 24.
कौन-सी टाटी उड़ गई है ?
(A) फूंस की
(B) बाँस की
(C) तिनकों की
(D) भ्रम की
उत्तर-
(D) भ्रम की

प्रश्न 25.
ज्ञान की आँधी आने से किसका भांडा फूट जाता है ?
(A) पाप का
(B) मोह का
(C) कुबुद्धि का
(D) लालच का
उत्तर-
(C) कुबुद्धि का

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दो बैलों की कथा अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

साखियाँ

1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुनें, अब उड़ि अनत न जाहिं ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-मानसरोवर = एक झील (यहाँ हृदय)। सुभर = भरा हुआ। केलि = क्रीड़ाएँ। मुकता = मोती। अनत = अन्यत्र, कहीं ओर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) मानसरोवर में कौन क्रीड़ाएँ करता है ?
(6) कौन मुकता चुगता है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या कवि कहता है कि मेरा हृदय रूपी मानसरोवर भक्ति रूपी जल से परिपूर्ण है अर्थात भरा हुआ है। उसमें जीवात्मा रूपी हंस क्रीड़ाएँ कर रहा है। वह क्रीड़ाएँ करता हुआ मुक्ति रूपी मोती चुग रहा है। वह उसमें इतना लीन है कि अब उसे छोड़कर कहीं ओर नहीं जाएगा।
भावार्थ-कवि के कहने का भाव है कि ईश्वरीय ज्ञान होने पर आत्मा ईश्वर भक्ति में लीन रहती है।

(3) साधक साधना करते हुए भगवद्-प्रेम में लीन है। परमात्मा से साक्षात्कार होने पर अब वह अनूठे आनंद में मग्न है। इस आनंद को छोड़कर वह किसी अन्य देवी-देवता की शरण में नहीं जाएगा।

(4) (क) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है।
(ख) दोहा छंद का प्रयोग है।
(ग) रूपक अलंकार है।
(घ) ‘मुकताफल मुकता’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) प्रस्तुत साखी संक्षिप्त होते हुए भी गहन अर्थ को व्यक्त करने में सफल सिद्ध हुई है।

(5) मानसरोवर (हृदय) में जीवात्मा रूपी हंस क्रीड़ाएँ करता है।

(6) जीवात्मा रूपी हंस मुकता चुगता है।

2. प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-प्रेमी = प्रेम करने वाला। कौं = को। विष = जहर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) यह दोहा किसने किसको कहा है ?
(6) सब विष अमृत कब हो जाता है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत साखी में कवि ने ईश्वर-प्रेमी के गुणों एवं संगति के प्रभाव को अभिव्यक्त किया है। कवि कहता है कि मैं भगवान के प्रेमी को ढूँढता फिरता हूँ, किंतु मुझे कोई सच्चा प्रेमी नहीं मिला। जब भगवान के एक प्रेमी से दूसरा प्रेमी मिलता है, तब विषय-वासनाओं का सारा विष अमृत रूप में बदल जाता है, क्योंकि तब ईश्वर के प्रेम की धारा बहने लगती है। भक्ति वासना को भी अमृत रूप में परिवर्तित कर देती है।
भावार्थ-कवि ने भक्ति के महत्त्व को स्पष्ट किया है।

(3) प्रस्तुत साखी में कवि ने स्पष्ट किया है कि ईश्वर-प्रेमी की संगति करने से मानव मन के बुरे भाव समाप्त हो जाते हैं और वह ईश्वर से प्रेम करने लगता है। इसलिए हमें ईश्वर-प्रेमी की संगति करनी चाहिए।

(4) (क) प्रस्तुत साखी में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) दोहा छंद है।
(ग) ‘प्रेमी कौं प्रेमी’ में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) प्रस्तुत साखी गायी जाने योग्य है।

(5) प्रस्तुत दोहा कबीरदास ने जन-साधारण को समझाने के लिए कहा है।
(6) जब एक ईश्वर-प्रेमी दूसरे ईश्वर-प्रेमी मिलता है, तब विष (वासनाएँ) भी अमृत (भक्ति) हो जाता है।

3. हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-हस्ती = हाथी। सहज = साधारण, सहज-साधना। दुलीचा = हाथी की कमर पर डाला जाने वाला वस्त्र। डारि = डालना। स्वान = कुत्ता। मूंकन = भौंकना। झख मारि = झख मारना, व्यर्थ बोलना।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कवि ने साधक को किस पर चढ़ने के लिए कहा है ?
(6) कवि ने संसार को क्या कहा है और क्यों ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

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(2) व्याख्या-प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने ज्ञान-प्राप्ति की पद्धति और संसार के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि हमें ज्ञान रूपी हाथी पर सहज पद्धति रूपी दुलीचा डालकर चढ़ना चाहिए अर्थात हमें प्रभु-भक्ति सहज ढंग से करनी चाहिए। संसार में भक्ति के अनेक ढंग बताए गए हैं, हमें उनकी ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। यह संसार तो कुत्ते की भाँति है, जो भौंकता रहता है। हमें इसकी ओर ध्यान न देकर ईश्वर भक्ति में अपने मन को लगाए रखना चाहिए।
भावार्थ-कवि ने साधक को अपनी ज्ञान-साधना में लीन रहने का उपदेश दिया है। उसे संसार की चिंता नहीं करनी चाहिए कि वह उसे क्या कहता है ?

(3) कवि के कहने का भाव है कि हमें ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सहज रूप से भक्ति करनी चाहिए। हठ योग आदि पद्धति के द्वारा शरीर को कष्ट नहीं देना चाहिए। इससे ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। हमें सांसारिक आकर्षणों व वाद-विवादों की ओर ध्यान न देकर अपना मन प्रभु-भक्ति में लगाए रखना चाहिए।

(4) (क) प्रस्तुत साखी में कवि ने सरल एवं भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया है।
(ख) दोहा छंद है।
(ग) प्रथम पंक्ति में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘झख मारि’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग किया गया है।
(ङ) कथन की सादगी एवं सच्चाई देखते ही बनती है।

(5) कवि ने साधक को ज्ञान रूपी हाथी पर चढ़ने के लिए कहा है।

(6) संसार को कवि ने स्वान कहा है, क्योंकि वह स्वान की भाँति व्यर्थ बोलता रहता है।

4. पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-पखापखी = पक्ष तथा विपक्ष । कारनै = कारण। जग = संसार । निरपख = निष्पक्ष, सच्चे मन से। हरि = ईश्वर । सुजान = बुद्धिमान।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कबीर की दृष्टि में सारा संसार किसको और क्यों भूला हुआ है ?
(6) सुजान संत किसे कहा गया है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या प्रस्तुत साखी में कबीरदास ने निष्पक्ष भाव या समभाव से ईश्वर की भक्ति करने का उपदेश दिया है। कबीरदास का कथन है कि यह संपूर्ण संसार ईश्वर के अस्तित्व या निर्गुण-सगुण के पक्ष-विपक्ष की उलझन में फँसा हुआ है। इसलिए वह ईश्वर के सत्य स्वरूप को ही भूल गया है। जो लोग निष्पक्ष होकर ईश्वर का भजन करते हैं, वे ही सुजान संत कहलाते हैं अर्थात सच्चे संत शांत एवं समभाव से ईश्वर में ध्यान लगाकर भक्ति करते हैं।
भावार्थ-कबीरदास के मतानुसार वाद-विवाद, मत-मतान्तर आदि को त्यागकर ही ईश्वर की सच्ची भक्ति संभव है।

(3) प्रस्तुत साखी का प्रमुख विषय ईश्वर-भक्ति की पद्धति और सच्चे संत की पहचान बताना है। प्रस्तुत साखी में कवि ने ईश्वर की भक्ति समभाव से करने का उपदेश दिया है। ईश्वर के स्वरूप के पक्ष-विपक्ष में बहस करने वाले लोग उसके सच्चे रूप या सार तत्त्व को भूल जाते हैं। इसलिए किसी विवाद में न फँसकर पूर्ण लगन से ईश्वर के नाम का स्मरण करना चाहिए।

(4) (क) प्रस्तुत साखी सच्चे संत की पहचान करवाती है।
(ख) कवि के कथन की सच्चाई पाठक के मन को प्रभावित करती है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त है।
(घ) संपूर्ण साखी में अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
(ङ) “सोई संत सुजान’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

(5) कबीर की दृष्टि में सारा संसार वाद-विवाद एवं पक्ष-विपक्ष के कारण ईश्वर को भूल गया है।

(6) जो व्यक्ति निष्पक्ष भाव से ईश्वर की भक्ति करता है, वही सुजान संत है।

5. हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-मूआ = मरना। जीवता = जीवित। दुहुँ = दोनों।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तत साखी में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कबीर ने किसे जीवित कहा है ?
(6) हिंदू और मुसलमान ईश्वर को किन-किन नामों से पुकारते हैं ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत साखी में कबीरदास ने बताया है कि हिंदू राम नाम रटकर अपने संप्रदाय (धर्म) की श्रेष्ठता के प्रतिपादन में मर मिटे तो मुसलमान खुदा को श्रेष्ठ बताने के प्रयास में नष्ट हो गए। कबीरदास के अनुसार जीवित व्यक्ति तो वे ही हैं, जो दोनों नामों को एक ब्रह्म मानकर इस विवाद में नहीं पड़ते कि कौन श्रेष्ठ है।
भावार्थ-कवि ने हिंदू-मुसलमान के राम और रहीम के विवाद को असत्य बताते हुए निष्पक्ष भाव से भक्ति करने पर बल दिया है।

(3) प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने स्पष्ट किया है कि राम तथा खुदा, दोनों भिन्न नहीं हैं। दोनों एक ही हैं। इस विवाद को खड़ा करना उचित नहीं है। उनकी दृष्टि में दोनों में एक ही ब्रह्म को मानकर जो उसकी भक्ति करता है, वही सच्चा साधक या भक्त होता है।

(4) (क) भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(ख) भावों की गहनता देखते ही बनती है।
(ग) अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
(घ) ‘कहै कबीर’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) शब्द-चयन सार्थक एवं विषयानुकूल है।

(5) कबीर ने उसे जीवित कहा है, जो राम व खुदा की श्रेष्ठता के विवाद में न उलझकर, दोनों में एक ही ब्रह्म को स्वीकार करके उसकी सच्चे मन से भक्ति करता है।

(6) हिंदू ‘राम’ और मुसलमान ‘खुदा’ कहकर ईश्वर को पुकारते हैं।

6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-काबा = मुसलमानों का तीर्थ-स्थल । कासी = हिंदुओं का तीर्थ-स्थान। भया = हो गया। मोट = मोटा। जीम = खाना।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तत साखी के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत साखी के काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) कबीर के अनुसार किस दृष्टि से काबा व काशी में अंतर नहीं रह जाता ?
(6) ‘मोट चून’ किसे कहा गया है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) व्याख्या-कबीरदास का कथन है कि मध्यमार्गी प्रवृत्ति से मुसलमानों के तीर्थ-स्थल काबा और हिंदुओं के तीर्थ-स्थान काशी में कोई अंतर नहीं रह जाता। दोनों के आराध्य राम और रहीम भी एक ही हो जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न विरोधी विचारधाराएँ या मत, जो पहले मोटे आटे के समान भद्दे लगते थे, मध्यम-मार्ग के अनुसरण से सुंदर मैदे जैसे लगने लगे। इससे उत्पन्न आनंद का कबीर उपभोग कर रहा है।
भावार्थ-कबीरदास मध्यम मार्ग को अपनाने का उपदेश देते हैं। उनके अनुसार राम और रहीम, काबा और काशी में कोई अंतर नहीं है।

(3) प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने स्पष्ट किया है कि समन्वयवादी भावना या मध्यम-मार्ग को अपनाने में ही जीवन का सच्चा सुख तथा आनंद है।

(4) (क) भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(ख) ‘काबा फिरि कासी…’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग) दोहा छंद का प्रयोग है।
(घ) प्रस्तुत साखी में कवि की गहन एवं सच्ची अनुभूति व्यक्त हुई है।

(5) कबीर के अनुसार मध्यम प्रवृत्ति से काबा व काशी में कोई अंतर नहीं रह जाता। (6) कबीरदास ने विभिन्न विरोधी विचारधाराओं को मोट चून कहा है, क्योंकि वे भद्दी प्रतीत होती हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

7. ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ॥ [पृष्ठ 91]

शब्दार्थ-करनी = कर्म। सुबरन = सुंदर रंग या स्वर्ण। कलस = घड़ा। सुरा = शराब। सोइ = उसकी।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत साखी का संदर्भ लिखिए।
(3) प्रस्तुत साखी की व्याख्या एवं भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(4) प्रस्तुत साखी में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) ऊँचे कुल में पैदा होने का महत्त्व कैसे नहीं होता ?
(6) साधुजन किसकी निंदा करेंगे ?
(7) प्रस्तुत साखी के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-साखियाँ।

(2) कबीरदास द्वारा रचित प्रस्तुत साखी में बुरी संगति के दुष्प्रभाव को स्वर्ण कलश और मदिरा का उदाहरण देकर अभिव्यक्त किया गया है।

(3) व्याख्या प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने बताया है कि यदि मानव के कर्म अच्छे नहीं हैं तो ऊँचे कुल में पैदा होने से क्या होता है अर्थात आदमी अच्छे कार्यों से ही बड़ा होता है। सोने का घड़ा यदि शराब से भरा हुआ है तो भी साधु-जन उसकी निंदा करेंगे। उसे बुरा बताएँगे।।
भावार्थ-कहने का भाव है कि व्यक्ति जन्म से नहीं, अपितु गुणों से ऊँचा या महान होता है। अतः हमें सत्कर्म करने चाहिएँ।

(4) (क) प्रस्तुत साखी की भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(ख) दोहा छंद है।
(ग) ‘सुरा भरा’ में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) शब्दों का चयन भाव के अनुकूल किया गया है।
(ङ) भावों की गंभीरता द्रष्टव्य है।

(5) कोई व्यक्ति ब्राह्मण-कुल में पैदा होकर भी यदि नीच कर्म करे तो उसे ऊँचे कुल में पैदा होने का महत्त्व नहीं मिल सकता है।

(6) साधुजन ऊँचे कुल में जन्मे नीच कर्म करने वाले की निंदा ही करते हैं।

(7) कवि ने अत्यंत सरल शब्दों में महान् भाव को उद्घाटित किया है कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई बड़ा नहीं हो सकता। व्यक्ति अपने कर्मों से बड़ा होता है। अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएँ तथा बुरे कर्मों या बुरी संगत से दूर रहना चाहिए। यही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

सबद (पद)

सबदों का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीरदास के ‘सबदों’ का सार/काव्य-परिचय लिखिए।
उत्तर-
कबीरदास ने प्रथम पद में बताया है कि परमात्मा कहीं बाहर नहीं, अपितु प्राणियों के हृदय में तथा कण-कण में रमा हुआ है। उसे मंदिर, मस्जिद, देवालय आदि में नहीं ढूँढा जा सकता। उसे किसी क्रिया-कर्म से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता और न ही ईश्वर योग तथा वैराग्य धारण करने से प्राप्त होता है, अपितु यदि कोई भक्त उसे सच्चे मन से खोजने का प्रयास करे तो ईश्वर एक पल में ही मिल सकता है। कबीरदास का विश्वास है कि परमात्मा तो हर साँस तथा हर प्राण में निवास करता है। उसे बाहर नहीं, अपितु अपने हृदय में ही ढूँढा जा सकता है।
दूसरे पद में कबीरदास ने बताया है कि अज्ञान ही सांसारिक मोह-माया के बंधन का मूल कारण है। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात साधक माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आँधी और टाटी या छान के रूपक के माध्यम से कवि ने बताया है कि जिस प्रकार आँधी आने पर छान (झोंपड़ी) की फूस से बनी टाटियाँ उड़ जाती हैं, वैसे ही ज्ञान की आँधी आने से भ्रम की टाटी बँधी नहीं रह सकती। ज्ञान उत्पन्न होने से साधक के मन के सभी भ्रम स्वतः नष्ट हो जाते हैं। इस ज्ञान की आँधी के पश्चात प्रभु-भक्ति की वर्षा होती है, जिसमें साधक लीन होकर आनंदानुभूति प्राप्त करने लगता है। साधक के मन में ईश्वर का सच्चा स्वरूप भी स्पष्ट हो जाता है और वह फिर कभी भ्रम में नहीं फँसता।

अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में ॥ [पृष्ठ 92]

शब्दार्थ-मोकों = मुझे। बदे = व्यक्ति। देवल = देवालय, मंदिर। काबा = मुसलमानों का तीर्थ-स्थान। कैलास = पर्वत का नाम। कौने ,= किसी। क्रिया-कर्म = सांसारिक आडंबर। योग = योग-साधना। बैराग = वैराग्य। खोजी = खोजने वाला। तुरतै = तुरंत ही। तालास = खोज। स्वाँस = साँस।

प्रश्न
(1) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) भगवान कहाँ-कहाँ नहीं है ?
(6) कबीरदास ने ईश्वर को कहाँ खोजने का उपदेश दिया है ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-सबद (पद)।

(2) व्याख्या-निराकार ब्रह्म मनुष्य को कहता है, हे बंदे! तू मुझे अपने से बाहर कहाँ ढूँढता फिरता है। मैं तो तेरे अत्यंत समीप हूँ। न तो मैं किसी मंदिर या मस्जिद में रहता हूँ, न ही मुसलमानों के पवित्र तीर्थ-स्थान काबा में निवास करता हूँ और न ही हिंदुओं के कैलाश पर्वत पर। इसलिए इन स्थानों पर मुझे ढूँढना व्यर्थ है। मैं न सांसारिक क्रिया-कर्म अर्थात कर्मकांड करने से प्राप्त होता हूँ, न मैं योग-साधना से मिल सकता हूँ और न ही संसार को त्यागकर वैराग्य धारण करने से या संन्यासी बनने से। ये सब तो बाहरी दिखावे हैं। हे मनुष्य! मैं तो हर स्थान एवं कण-कण में समाया हुआ हूँ। यदि कोई सच्चा भक्त खोजने वाला हो तो मैं एक पल-भर की अर्थात बहुत थोड़े समय की तलाश में मिल सकता हूँ। कहने का भाव है कि जिसके मन में मुझे प्राप्त करने की सच्ची लगन होती है, उसे मैं तुरंत ही मिल सकता हूँ। कबीरदास संतों और भक्तों को कहते हैं, हे संतो! सुनो, वह परमात्मा सब प्राणियों में विद्यमान है। जैसे साँस का निवास हमारे भीतर है, वैसे ही परमात्मा का निवास भी हमारे हृदय में है। इसलिए परमात्मा को हमें बाहर नहीं, अपितु अपने भीतर हृदय में ही खोजने या अनुभव करने की कोशिश करनी चाहिए।
भावार्थ-कवि ने ईश्वर प्राप्ति के लिए बाह्य दिखावे, तीर्थ, व्रत, उपवास आदि साधनों की अपेक्षा सच्चे मन से भक्ति करने की प्रेरणा दी है क्योंकि ईश्वर तो हर प्राणी की हर साँस में विद्यमान है।

(3) ईश्वर मंदिर, मस्जिद, काबा व कैलाश आदि तीर्थों की अपेक्षा मनुष्य के हृदय में रहता है। इसलिए उसे बाहरी दिखावा करके प्राप्त नहीं किया जा सकता, अपितु सच्चे मन और लगन से अपने हृदय में ही देखा व प्राप्त किया जा सकता है।

(4) (क) ईश्वर की सर्वव्यापकता का उल्लेख किया गया है।
(ख) संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
(ग) स्वर-मैत्री के कारण भाषा लययुक्त हो गई है।
(घ) भाषा अत्यंत सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ङ) शब्द-चयन विषयानुकूल है।

(5) कबीरदास के अनुसार भगवान केवल मस्जिद, मंदिर, क्रियाकर्म, योग या विराग आदि बाह्य स्थलों पर नहीं मिलता।

(6) कबीरदास ने बताया है कि ईश्वर प्रत्येक प्राणी के हृदय में समाया हुआ है, इसलिए ईश्वर को हमें अपने हृदय में ही खोजना चाहिए।

2. संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ॉनी, माया रहै न बाँधी ॥
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा ॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।
आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनां ॥ [पृष्ठ 92]

शब्दार्थ-टाटी = छान के चारों ओर फूस की लगाई गई ओट या परदा। उड़ॉनी = उड़ गई। चित्त = मन। द्वै = दो (दो विचारों में फँसा व्यक्ति)। यूँनी = दो खंभे (स्तंभ)। बलिंडा = बँडेर, बीच की बल्ली जिस पर छान टिकी रहती है। तूटा = टूट गया। त्रिस्ना = इच्छा, कामना । कुबधि = बुरी बुद्धि । भाँडाँ फूटा = भेद खुलना। जोग = योग। जुगति = युक्ति। निरचू = थोड़ा भी। कुड़ कपट = कपट का कूड़ा । काया = शरीर। निकस्या = निकला। जल बूठा = जल बरसना । भाँन = सूर्य। तम= अंधकार (अज्ञान)। खीना = नष्ट हो गया।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
(3) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(6) भ्रम की टाटी कब और क्यों टूटती है ?
(7) ज्ञान प्राप्त होने पर कौन-से भाव नष्ट हो जाते हैं ?
उत्तर-
(1) कवि-कबीरदास। कविता-सबद (पद)।

(2) प्रस्तुत पद में कवि ने स्पष्ट किया है कि अज्ञान ही सांसारिक मोह-माया के बंधनों का मुख्य कारण है। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात साधक माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

(3) व्याख्या-कबीरदास ने कहा है कि हे संतो! ज्ञान रूपी आँधी आ गई है। ज्ञान की आँधी से भ्रम रूपी छप्पर से बनी छत उड़कर नष्ट हो गई है। अब माया भी इस भ्रम को बाँध नहीं सकती। कहने का भाव है कि ज्ञान प्राप्त हो जाने पर साधक के मन के सभी भ्रम नष्ट हो जाते हैं। ज्ञान की आँधी से दुविधा (दुविधाग्रस्त स्थिति) की दोनों थूनियाँ गिर गई हैं। मोह रूपी बल्ली भी टूटकर गिर गई है। ज्ञान की स्थिति उत्पन्न होने पर मोह और दुविधा के भाव नष्ट हो जाते हैं। ज्ञान प्राप्त हो जाने पर मानव-मन में रहने वाली इच्छाएँ और कुबुद्धि (अविवेक) भी नष्ट हो जाते हैं। किन्तु संतों ने योग की युक्ति के द्वारा ऐसी झोंपड़ी बाँधी जिसमें से पानी नहीं टपक सकता अर्थात मानव सांसारिक कामनाओं की ओर नहीं भटक सकता। इस ज्ञान रूपी आँधी के पश्चात वर्षा होती है। उसमें साधक पूर्णतः भीग जाता है अर्थात व्यक्ति प्रभु-भक्ति में पूर्णतः लीन हो जाता है। उसी से साधक को आनंद की अनुभूति होती है। कबीरदास जी कहते हैं कि ज्ञान की आँधी के पश्चात प्रभु रूपी सूर्य उदय होता है तथा सभी प्रकार का अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाता है। कहने का भाव यह है कि ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात अज्ञान नष्ट हो जाता है और साधक के मन में आनंद उत्पन्न हो जाता है।
भावार्थ-कबीरदास ने ज्ञान व आँधी के रूपक के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि जब व्यक्ति को ईश्वरीय ज्ञान हो जाता है तब उसको माया अपने बंधन व भ्रम में नहीं जकड़ सकती। उसके सांसारिक बंधन व भ्रम स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।

(4) (क) कवि ने आँधी के रूपक के माध्यम से ज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
(ख) समूचे पद में रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
(ग) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(घ) शब्द-चयन विषय के अनुरूप है।

(5) प्रस्तुत पद में कवि ने ज्ञान के महत्त्व को उजागर किया है। ज्ञान की प्राप्ति पर ही मानव-मन से सभी दुविधाएँ और भ्रम समाप्त हो जाते हैं। मोह-माया की वास्तविकता स्पष्ट हो जाने पर साधक उसको त्यागकर प्रभु-भक्ति में लीन हो जाता है। उस स्थिति में उसे सुख एवं आनंद की अनुभूति होती है।

(6) ज्ञान की आँधी आने पर मानव-मन में व्याप्त भ्रम की टाटी टूट जाती है।

(7) ज्ञान प्राप्त होने पर मोह और दुविधा के भाव नष्ट हो जाते हैं।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

दो बैलों की कथा Summary in Hindi

दो बैलों की कथा कवि-परिचय

प्रश्न-
कबीरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कबीरदास का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-कबीरदास का संत कवियों में प्रमुख स्थान है। उनके जन्म एवं मृत्यु के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं। अधिकांश विद्वानों ने कबीरदास का जन्म 1398 ई० में माना है। जनश्रुति के अनुसार, कबीरदास एक विधवा ब्राह्मणी के घर पैदा हुए थे और वह लोक-लाज के डर से इन्हें काशी के लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ गई थी। नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने इनका पालन-पोषण किया था। रामानंद जी इनके गुरु माने जाते हैं। उन्हीं से इन्होंने ‘राम-नाम’ का मंत्र लिया था। . कबीर अनपढ़ थे, किंतु उन्होंने साधु-संतों की संगति से ज्ञान प्राप्त किया था। वे गृहस्थी थे। उन्होंने अपना जीवन सत्संग करने और उपदेश देने में ही व्यतीत किया था। कबीरदास का देहांत 1518 ई० में माना जाता है।

2. प्रमुख रचनाएँ-कबीर की वाणी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित है। इसके तीन भाग हैं-‘साखी’, ‘सबद’ एवं ‘रमैनी’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कबीरदास जी ने अपने साहित्य में निर्गुण ईश्वर का वर्णन किया है। उनकी मान्यता है कि ईश्वर घट-घट में बसा हुआ है। उनका कथन है
“कहै कबीर सुनो भाई साधो सब स्वाँसों की स्वाँस में।” कबीरदास जी ने गुरु को सबसे अधिक महत्त्व दिया है। उनकी दृष्टि में गुरु तो ईश्वर से भी बढ़कर है। गुरु की महिमा अनंत है। उन्होंने धर्म के नाम पर किए गए पाखंडों का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति-पूजा और मुसलमानों की नमाज और बाँग का भी खंडन किया है। वे जाति-पाँति में विश्वास नहीं रखते थे। वे सच्चे अर्थों में समाज-सुधारक थे।

4. भाषा-शैली-कबीरदास जनता के कवि थे, इसलिए उनकी भाषा जनता की भाषा थी। उनकी काव्य-भाषा में विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों का सार्थक प्रयोग हुआ है, इसलिए उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा गया है। उनकी काव्य-भाषा में अरबी, फारसी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी आदि के शब्दों का प्रयोग हुआ है। उनकी काव्य-भाषा में अलंकारों का भी सुंदर प्रयोग हुआ है।

दो बैलों की कथा साखियों का सार/काव्य-परिचय

साखियाँ

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीरदास की ‘साखियाँ’ का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कबीरदास के दोहों को ‘साखी’ कहा जाता है। उन्होंने अपनी इन साखियों में बताया है कि ईश्वर के साक्षात्कार के बाद मन रूपी मानसरोवर प्रेम और आनंद से परिपूर्ण हो गया है। इसमें जीव रूपी हंस मुक्ति रूपी मोती चुग रहा है। कबीरदास ने कहा है कि जब एक ईश्वर-प्रेमी दूसरे ईश्वर-प्रेमी से मिलता है, तब विषय-वासनाओं रूपी विष अमृत में बदल जाता है। वहाँ ईश्वरीय प्रेम की धारा प्रवाहित होने लगती है। कबीरदास ने यह भी बताया है कि ईश्वर की भक्ति सहज रूप में करनी चाहिए तथा संसार की चिंता नहीं करनी चाहिए। इस संसार में सभी लोग पक्ष और विपक्ष के विवाद में पड़कर ब्रह्म को भूल गए हैं। जो व्यक्ति निरपेक्ष होकर ईश्वर का भजन करता है, वह सच्चा संत कहलाता है। इसी प्रकार हिंदू और मुसलमान अथवा राम और खुदा के विवाद में न पड़कर जो सच्चे मन से ईश्वर के नाम का स्मरण करता है, वही वास्तव में मनुष्य का जीवन जीता है। जब मनुष्य सांप्रदायिक भावों को त्यागकर समन्वय की भावना को ग्रहण करता है तो उसके लिए काबा काशी और राम रहीम बन जाता है। इसलिए समन्वय अथवा समभाव अपनाकर ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है। मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेने से नहीं, अपितु उच्च या सत्कर्म करने से ही ऊँचा या महान् बनता है। बुरे कर्म करने वाला व्यक्ति कभी महान् नहीं बन सकता।

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