Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 11 सावित्री बाई फुले Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 11 सावित्री बाई फुले
अभ्यासः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-
(क) महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका का आसीत्?
उत्तरम्:
महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका ‘सावित्री बाई फुले’ आसीत्।
(ख) कस्य समुदायस्य’बालिकानां कृते सावित्री अपरं विद्यालय प्रारब्धवती?
उत्तरम्:
अस्पृष्टस्य समुदायस्य बालिकानां कृते सावित्री अपरं विद्यालयं प्रारब्धवती।
(ग) कीदृशीनां कुरीतीनां सावित्री विरोधम् अकरोत्।
उत्तरम्:
सामाजिक कुरीतीनां सावित्री विरोधम् अकरोत्।
(घ) किमर्थं शीर्णवस्त्रावृता: नार्यः कूपात् जलं ग्रहीतुं वारिताः?
उत्तरम्:
निम्नवर्गत्वात् शीर्णवस्त्रावृताः नार्यः कृपात् जलं ग्रहीतुं वारिताः।
(ङ) सावित्र्याः मृत्युः कथम् अभवत्?
उत्तरम्:
सावित्र्याः मृत्यु असाध्यरोगेण अभवत्।
(च) तस्याः द्वयोः काव्यसङ्कलनयोः नामनी के?
उत्तरम्:
तस्याः द्वयोः काव्यसङ्कलनयोः नामनी
1. काव्य फुले
2. सुबोधरलाकरः च।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत-
स्वकीयम् – __________
सविनोदम् – __________
सक्रिया – __________
प्रदेशस्य – __________
मुखरम् – __________
सर्वथा – __________
उत्तरम्:
स्वकीयम् – (अपना) स्वकीयं कार्यं कुरु।
सविनोदम् – (हास्यपूर्वक), सः सविनोदम् आचरति।
सक्रिया – (क्रियाशीला) सा सदैव सक्रिया दृश्यते।
प्रदेशस्य – (प्रदेश की) प्रदेशस्य उन्नतिः करणीया।
मुखरम् – (स्पष्ट रूप से) सः मुखरम् एव वदति।
सर्वथा – (बिल्कुल) सः सर्वथा सत्यं वदति।
प्रश्न 3.
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदांनि लिखत-
उपरि – ___________
आदानम् – ___________
परकीयम् – ___________
विषमता – ___________
व्यक्तिगतम् – ___________
आरोहः
उत्तरम्:
उपरि – अधः
आदानम् – प्रदानम्
परकीयम् – स्वकीयम्
विषमता – समता
व्यक्तिगतम् – सार्वजनिकम्
आरोहः – अवरोहः
प्रश्न 4.
अधोलिखितानां पदाना लिङ्ग, विभक्ति, वचन च लिखत-
उत्तरम्:
प्रश्न 5.
उदाहरणमनुसृत्य लकारपरिवर्तनं कुरुत-
वर्तमानकालः | अतीतकालः |
यथा- सा शिक्षिका अस्ति। | सा शिक्षिका आसीत्। |
(क) सा अध्यापने संलग्ना भवति। | – |
(ख) सः त्रयोदशवर्षकल्पः अस्ति। | – |
(ग) महिला: तडागात् जलं नयन्ति। | – |
(घ) वयं प्रतिदिनं पाठं पठामः। | – |
(ङ) यूयं कि विद्यालयं गच्छथ? | – |
(च) ते बालकाः विद्यालयात् गृहं गच्छन्ति। | – |
उत्तरम्:
वर्तमानकालः | अतीतकालः |
यथा- सा शिक्षिका अस्ति। | सा शिक्षिका आसीत्। |
(क) सा अध्यापने संलग्ना भवति। | सा अध्यापने संलग्ना अभवत्। |
(ख) सः त्रयोदशवर्षकल्पः अस्ति। | स: त्रयोवशवर्षकल्प: आसीत्। |
(ग) महिला: तडागात् जलं नयन्ति। | महिला: तडागात् जलम आनयन्। |
(घ) वयं प्रतिदिनं पाठं पठामः। | वयं प्रतिदिनं पाठं अपठाम। |
(ङ) यूयं कि विद्यालयं गच्छथ? | यूयं किं विद्यालयम् अगच्छत? |
(च) ते बालकाः विद्यालयात् गृहं गच्छन्ति। | ते बालका: विद्यालयात् गृहम् अगच्छन्। |
मूलपाठः
उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति। मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिला जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।
जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगाँव-नाम्नि स्थाने सावित्री अजायत। तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहिती। नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्पः एव आसीत्। यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबलः समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्याः मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्सं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।
1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणे नगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशाय प्रथम विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवल सप्तदशवर्षीया आसीत्। 1851 तमे ख्रिस्ताब्वे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्धः।
सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखर विरोधम् अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढी सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्धरणं अवारयन्। सावित्री एतत् अपमान सोढुं नाशक्नोत्। सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्ट जल नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।
‘महिला सेवामण्डल’ ‘शिशुहत्या प्रतिबन्धक गृह’ इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फुलेवम्पत्योः अवदानम् महत्त्वपूर्णम्। सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडिताना समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।
सावित्री अनेकाः संस्थाः प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री-व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत्। महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम् असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे ख्रिस्ताब्बे निधनं गता।
साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते ‘काव्यफुले’ ‘सुबोधरलाकर’ चेति। भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयाया: | जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।
सन्धिविच्छेदः
कस्याश्चित् = कस्याः + चित्।
नास्ति = न + अस्ति।
कश्चित् = कः + चित्।
विद्यालये = विद्या + आलये।
सहैव = सह + एव।
केयम् = का + इयम्।
ख्रिस्ताब्दे = ख्रिस्त + अब्दे।
सोऽपि = सः + अपि।
यतोहि = यतः + हि।
अध्ययनाभिलाषा = अध्ययन + अभिलाषा।
प्राप्तवती = प्र + आप्तवती।
साग्रहम् = स + आग्रहम्।
आङ्ग्लभाषाया = अपिआङ्ग्लभाषायाः + अपि।
शिरोमुण्डनस्य = शिरः + मुण्डनस्य।
काश्चित् = काः + चित्।
जलोद्धारणम् = जल + उद्धारणम्।
नाशक्नोत् = न + अशक्नोत्।
यथेष्टम् = यथा + इष्टम्।
सार्वजनिकोऽयम् = सार्वजनिकः + अयम्।
नास्ति = न + अस्ति।
स्वतन्त्रतायाश्च = स्वतन्त्रताया: + च।
इत्यादीनाम् = इति + आदीनाम्।
स्वाधिकारान = स्व + अधिकारान।
रत्नाकरः = रत्न + आकर:।
चेति = च + इति।
महिलोत्थानस्य = महिला + उत्थानस्य।
गहनावबोधाय = गहन + अवबोधाय।
महोदया = महा + उदया।
संयोगः
इयमस्ति = इयम् अस्ति।
अध्ययनमपि = अध्ययनम् + अपि।
यूयमिमाम् = यूयम् + इमाम्।
इयमेव = इयम् + एव।
पदार्थबोध:
वर्तते = है (अस्ति, विद्यते)।
आदाय = लेकर (गृहीत्वा)।
प्रस्तरखण्डान् = पत्थर के टुकड़ों को (पाषाणखण्डान्)।
अजायन = पैदा हुई (जन्म लेभे)।
अभिहितौ = (दोनों) कहे गए हैं (कथितौ)।
परिणीता = ब्याही गई (ऊढा, विवाहिता)।
यतो हि = क्योंकि (यस्मात्)।
प्रारब्धः = आरम्भ किया (समारब्धः)।
निराकरणाय = दूर करने के लिए (निराकर्तुम्)।
नापितः = नाई (केशकर्तकः)।
रूढौ = रूढ़ि में (परम्परायाम्)।
निकषा = निकट (समीपे)।
सोढुम् = सहने में (सहनार्थम्)।
उत्पीडितानाम् = सताए हुओं का (प्रताडितानाम्)।
अश्रान्तम् = बिना थके हुए (अक्लान्तम्)।
महीयते = बढ़-चढ़कर है (विशिष्यते)।
पद्यबद्धम् = कविता के रूप में (काव्यात्मकम्)।
गहनावबोधाय = गहराई से समझने के लिए (गूढचिन्तनाय)।
निधनम् = मृत्यु को (मृत्युम्)।
अध्येतव्यम् = पढ़ना चाहिए (पठितव्यम्)।
सरलार्थ:
ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी पाठशाला का है। यह साधारण पाठशाला नहीं है। यह है महाराष्ट्र की पहली कन्या पाठशाला। एक शिक्षिका घर से पुस्तकें लेकर चलती है। मार्ग में कोई उस पर धूल फेंकता है और कोई पत्थर के टुकड़े। परन्तु वह अपने दृढ़ निश्चय से नहीं हटती। अपने विद्यालय में बालिकाओं से हँसी-मजाक से बातें करती हुई वह (उन्हें) पढ़ाने में लगी रहती है। उसका अपना अध्ययन भी साथ ही चलता है। कौन है यह महिला? क्या तुम सब इस महिला को जानते हो? यह ही महाराष्ट्र की प्रथम महिला शिक्षिका है जिसका नाम ‘सावित्री बाई फुले’ है।
जनवरी महीने के तीसरे दिन सन् 1831 ईस्वी में महाराष्ट्र के नायगाँव नामक स्थान पर सावित्री जन्मी। उसकी माता का नाम लक्ष्मीबाई तथा पिता खंडोजी थे। नौ वर्ष वाली वह ज्योतिबा फुले महोदय से ब्याही गई। वे भी तब तेरह वर्ष के ही थे। क्योंकि वह स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे इसलिए सावित्री के मन में स्थित
अध्ययन की अभिलाषा स्रोत को पा गई। इससे पहले उसने ङ्के पूर्वक आडाला था अध्ययन भी किया।
सन् 1848 ई. में, पुणे नगर में सावित्री ने ज्योतिबा महोदय के साथ कन्याओं के लिए प्रदेश का पहला विद्यालय प्रारम्भ किया। तब वह केवल सत्रह वर्ष की थी। सन् 1851 ई. में छुआछूत से तिरस्कृत समुदाय की बालिकाओं के लिए उसने अलग से विद्यालय आरम्भ किया।
सामाजिक कुरीतियों का सावित्री ने मुखर विरोध किया। विधवाओं के सिर मुंडाने का निराकरण करने के लिए वह साक्षात् नाइयों से मिली। परिणामतः कुछ नाइयों ने इस रूढ़ि का साथ छोड़ दिया। एक बार सावित्री ने मार्ग में देखा कि कुएँ के पास फटे-पुराने कपड़े में लिपटी तथाकथित निम्न जाति की कुछ नारियाँ जल पीने के लिए माँग रही थीं। उच्च वर्ग वालों ने उपहास करते हुए कुएँ से जल निकालने के लिए रोक दिया। सावित्री यह अपमान नहीं सह सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले गई और तालाब दिखाकर कहा कि जितना चाहो उतना जल ले लो। यह तालाब सार्वजनिक है। इससे जल लेने में जाति का बन्धन नहीं है। उसने मनुष्यों की समानता व स्वतन्त्रता के पक्ष का पूरी तरह व हमेशा समर्थन किया।
‘महिला सेवा मण्डल’, ‘शिशु हत्या प्रतिबन्धक गृह’ इत्यादि संस्थाओं की स्थापना में फुले दम्पत्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सत्यशोधक मण्डल की गतिविधियों पर भी सावित्री अत्यधिक सक्रिय थी। इस मण्डल का उद्देश्य था-“सताए हुए समुदायों को अपने अधिकारों के लिए जागृत करना।”
सावित्री ने अपने प्रशासन कौशल से अनेक संस्थाओं का सञ्चालन किया। अकाल और प्लेग के समय उसने पीड़ित लोगों की बिना थके सेवा की। सहायता-सामग्री की व्यवस्था के लिए भरसक प्रयास किया। महामारी फैलने के समय सेवा में लगी हुई वह स्वयं असाध्य रोग से ग्रस्त होकर सन् 1897 ई. में स्वर्गवासी हो गई।
साहित्य रचना में भी सावित्री आगे है। उसके दो काव्य संकलन हैं-‘काव्यफुले’ और ‘सुबोध रत्नाकर’। भारत देश में महिलाओं के उत्थान की गहन जानकारी के लिए सावित्री महोदया के जीवन चरित्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।
सावित्री बाई फुले Summary
सावित्री बाई फुले पाठ-परिचयः
भारतवर्ष में प्राचीन काल में विदुषियों का उल्लेख मिलता है। कालान्तर में एक ऐसा कलंकित काल आया जब स्त्री शिक्षा लगभग समाप्त हो गई। शिक्षा हमारा अधिकार है। हमारे समाज में कई समुदाय इससे लम्बे समय तक वञ्चित रहे हैं। उन्हें इस अधिकार को पाने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा है। लड़कियों को तो और ज्यादा अवरोध झेलना पड़ता रहा है। प्रस्तुत पाठ इस संघर्ष का नेतृत्व करने वाली सावित्री बाई फुले के योगदान पर केन्द्रित है। जब-जब स्त्री शिक्षा के इतिहास की बात होगी, तब-तब फुले जैसी नारियों को चिरकाल तक स्मरण किया जाएगा।