Haryana State Board HBSE 7th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Sangya ke Vikar संज्ञा के विकार Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 7th Class Hindi Vyakaran संज्ञा के विकार
हमने पढ़ा कि संज्ञा एक विकारी शब्द है। संज्ञा में विकार (परिवर्तन) तीन कारणों से होता है:
- लिंग (Gender)
- वचन (Number)
- कारक (Case)
यद्यपि आप पिछली कक्षा में इनके बारे में जान चुके हैं पर अब हम इनके बारे में अधिक विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त करेंगे।
1. लिंग (Gender) :
शब्द के जिस रूप में यह जाना जाए कि यह पुरुष जाति के लिए प्रयुक्त हुआ है अथवा स्त्री जाति के लिए उसे लिंग कहते हैं। भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए संज्ञा के लिंग का ज्ञान होना आवश्यक है। हिन्दी में लिंग दो माने जाते हैं :
- पुल्लिग (Masculine Gender)
- स्त्रीलिंग (Feminine Gender)।
पुल्लिग पुरुष जाति का बोध कराते हैं और स्त्रीलिंग स्त्री जाति को बोध कराते हैं। जैसे- घोड़ा-घोड़ी, शेर-शेरनी।
हिन्दी भाषा के ठीक प्रयोग के लिए संज्ञा शब्दों के लिंग का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि संज्ञा शब्दों के लिंग का प्रभाव सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा क्रिया विशेषण पर पड़ता है। जैसे-
- सर्वनाम पर – (पुल्लिग) अपना कमरा खोलो। – (स्त्रीलिंग) अपनी कोठरी खोलो।
- विशेषण पर – (पुल्लिंग) मुझे नीला कोट चाहिए। – (स्त्रीलिंग) मुझे नीली साड़ी चाहिए।
- क्रिया पर – (पुल्लिग) लड़का दौड़ा। – (स्त्रीलिंग) लड़की दौड़ी।
- क्रिया-विशेषण पर- (पुल्लिंग) राम दौड़ता हुआ आया। – (स्त्रीलिंग) सीता दौड़ती हुई आई।
लिंग पहचान के कुछ सामान्य नियम
(क) पुल्लिग : निम्नलिखित शब्द प्रायः पुल्लिग होते हैं :
1. देशों के नाम : चीन, भारत, अमेरिका, फ्रांस आदि।
2. पेड़ों के नाम : आम, केला, संतरा, अमरूद आदि। [अपवाद : इमली, नारंगी, इलायची आदि]
3. पर्वतों के नाम : हिमालय, विंध्याचल, सतपुड़ा आदि।
4. सागरों के नाम : हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर आदि।
5. दिनों के नाम : सोमवार, रविवार, मंगलवार आदि।
6. महीनों के नाम : चैत, वैशाख, मार्च, जून आदि। [अपवाद : जनवरी, फरवरी, मई, जुलाई]
7. तारों तथा ग्रहों के नाम : सूर्य, चन्द्र, शुक्र, मंगल आदि। [अपवाद : पृथ्वी]
8. धातुओं के नाम : ताँबा, लोहा, सोना, राँगा आदि। [अपवाद : चाँदी, पीतल]
9. शरीर के कुछ अंगों के नाम : सिर, गाल, कान, होंठ आदि।
10. भाववाचक संज्ञाएं : प्रेम, क्रोध, आनंद, दुख आदि।
11. अकारांत शब्द : शेर, लेखक, पर्वत, पत्र आदि।
(ख) स्वीलिंग : निम्नलिखित शब्द प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं :
1. भाषाओं के नाम : हिंदी, अंग्रेजी, रूसी, जापानी आदि।
2. नदियों के नाम : गंगा, यमुना, सरस्वती, सरयू आदि।
3. ईकारांत : नदी, पोथी, रोटी, मिठाई, लाठी आदि।
4. आकारांत शब्द : प्रार्थना, आशा, कला, परीक्षा आदि।
5. बोलियों के नाम : ब्रजभाषा, खड़ी बोली, अवधी, मैथिली आदि।
6. तिथियों के नाम : पूर्णिमा, अष्टमी, चतुर्थी, तीज आदि।
लिंग परिवर्तन-तालिका (Change of Gender):
कुछ सर्वथा भिन्न रूप:
2. वचन (Number) :
वचन का संबंध गिनती से ही होता है।
एक या अनेक के भाव का बोध जिस रूप से कराया जाता है, उसे वचन कहते हैं।
हिन्दी में दो वचन होते हैं :
- एकवचन (Singular Number)
- बहुवचन (Plural Number)
1. एकवचन (Singular Number): किसी एक ही व्यक्ति का बोध कराने वाले शब्द के रूप को ‘एकवचन’ कहते हैं। जैसेलड़का, नदी, पुस्तक आदि।
2. बहुवचन (Plural Number) : एक से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं का बोध कराने वाले शब्दों के रूप को बहुवचन कहते हैं। जैसे- लड़के, नदियाँ, पुस्तकें आदि।
एकवचन से बहुवचन बनाने के नियम (Change of Gender):
कुछ अन्य नियम :
1. सम्मान या आदर प्रकट करने के अर्थ में एक व्यक्ति के लिए भी बहुवचन का प्रयोग किया जाता है, जैसे-
(क) गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे।
(ख) आज गुरुजी नहीं आए।
2. हस्ताक्षर, प्राण, दर्शन, होश, लोग आदि शब्द प्रायः बहुवचन रूप में ही प्रयुक्त होते हैं। जैसे-
(क) आपने हस्ताक्षर कर दिए ?
(ख) उसके प्राण निकल गए।
(ग) आपके दर्शन दुर्लभ हैं।
3. जनता, वर्षा, पानी शब्द एकवचन में ही प्रयुक्त होते हैं। जैसे-
(क) जनता बड़ी चली जा रही है।
(ख) बहुत तेज वर्षा हो रही है।
(ग) चारों ओर पानी भर गया।
कभी-कभी संज्ञा शब्दों के वचन का प्रभाव सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा क्रिया-विशेषण पर भी पड़ता है। जैसे-
सर्वनाम पर – (एकवचन) मेरा बेटा पास हो गया। – (बहुवचन) मेरे बेटे पास हो गए।
विशेषण पर – (एकवचन) अच्छा लड़का आदर करता है। – (बहुवचन) अच्छे लड़के आदर करते हैं।
क्रिया पर – (एकवचन) घोड़ा तेज दौड़ा। – (बहुवचन) घोड़े तेज दौड़े।
क्रिया-विशेषण पर – (एकवचन) लड़का दौड़ता हुआ आया। – (बहुवचन) लड़के दौड़ते हुए आए।
3. कारक (Case) :
कारक का शाब्दिक अर्थ है-‘क्रिया को करने वाला’ अर्थात् क्रिया को पूरी करने में किसी-न-किसी भूमिका को निभाने वाला। क्रिया को संपन्न अर्थात् पूरा करने में जो संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग प्रकार की भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं।
नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ो :
1. राहुल ने केला खाया।
2. रवि ने सचिन को पीटा।
3. गरिमा चाकू से फल काटती है।
4. मोहन बच्चों के लिए खिलौने लाया।
5. पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं।
6. पुस्तक मेज पर रखी है।
उपर्युक्त वाक्यों में
वाक्य (1) में ‘खाना’ क्रिया है। किसने खाया ? राहुल ने।
वाक्य (2) में रवि ने किसको पीटा ? सचिन को।
वाक्य (3) में गरिमा ने फल किससे काटा ? चाकू से।
वाक्य (4) में मोहन किसके लिए खिलौने लाया ? बच्चों के लिए।
वाक्य (5) में पत्ते कहाँ से गिरे ? पेड़ से।
वाक्य (6) में पुस्तक कहाँ रखी है ? मेज़ पर।
इन सभी वाक्यों में संज्ञा-पदों का क्रिया-पद के साथ एक निश्चित संबंध होता है। अत: किसी वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम पदों का उस वाक्य की क्रिया से जो संबंध होता है, उसे कारक कहते हैं।
इन संज्ञाओं का क्रियाओं से संबंध को बताने के लिए ने, को, से, में, पर, के लिए आदि चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। इन चिह्नों को ‘कारक चिह्न’ कहते हैं। हिंदी में ये कारक-चिह्न ‘परसर्ग’ कहलाते हैं। कभी-कभी वाक्यों में कुछ शब्दों के साथ परसों का प्रयोग नहीं होता है। जैसे- राम गया।
कारक वह व्याकरणिक कोटि है जो यह स्पष्ट करती है कि संज्ञा आदि शब्द वाक्य में स्थित क्रिया के साथ किस प्रकार की भूमिका से संबद्ध है।
कारक के भेद (Kinds of Case):
कारक के मुख्य भेद छह हैं:
1. कर्ता कारक (Nominative Case)
2. कर्म कारक (Objective Case)
3. करण कारक (Instrumental Case)
4. संप्रदान कारक (Dative Case)
5. अपादान कारक (Ablative Case)
6. अधिकरण कारक (Locative Case)
कुछ लोग निम्नलिखित दो भेदों को भी कारक के अंतर्गत रखते हैं :
7. संबंध कारक (Possessive Case)
8. संबोधन कारक (Vocative Case)
इनका विवरण इस प्रकार है :
1, कर्ता कारक [ने] : किसी क्रिया को करने वाला ही कर्ता है। प्रत्येक क्रिया के साथ कर्ता अवश्य होता है, बिना कर्ता के क्रिया हो ही नहीं सकती। जैसे-
- गीता खाना पका रही है।
- नीहारिका ने कहानी लिखी।
- राम चला गया।
इन वाक्यों में गीता, नीहारिका और राम कर्ता कारक हैं। जब सकर्मक क्रिया भूतकाल में हो तो कर्ता कारक के साथ ‘ने’ परसर्ग का प्रयोग होता है। कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ कारक-चिह्न का भी प्रयोग होता है ; जैसे- मोहन को मुंबई जाना है।
निम्नलिखित स्थितियों में ‘ने’ परसर्ग (कारक-चिह्न) का प्रयोग नहीं होता-
- वर्तमान काल की सकर्मक क्रिया के साथ-मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
- भूतकाल को अकर्मक क्रिया के साथ-वह चला गया।
2. कर्म कारक [को] : वाक्य में जिस संज्ञा/सर्वनाम पर क्रिया का फल या प्रभाव पड़ता है और जिसकी अपेक्षा क्रिया करती है, उसे कर्म कहते हैं।
प्रायः कर्म की पहचान क्रिया पर ‘क्या’, ‘किसे’ प्रश्न करके की जाती है। इसके उत्तर में जो संज्ञा प्राप्त होती है, वही कर्म होती हैं।
कर्म कारक के साथ ‘को’ परसर्ग का प्रयोग होता है; परंतु कई अवस्थाओं में इसका प्रयोग नहीं भी होता है। ‘को’ परसर्ग का प्रयोग प्रायः प्राणिवाचक संज्ञा के साथ होता है। जैसे –
1. राजश न माहन का पढ़ाया। किसको पढ़ाया ?
(परसर्ग को) – मोहन (कम), परसर्ग – को।
2 माँ ने बच्चे को सुलाया। किसको सुलाया ?
(परसर्ग को) – बच्चे (कम), परसर्ग – को।
3. वह पुस्तक पढ़ रहा है ? क्या पड़ रहा है?
पुस्तक – (कम), परसर्ग-को, परसर्ग – कोई नहीं।
जब वाक्य में दो कर्म हों (मुख्य और गौण), तब ‘को’ का प्रयोग गौण कर्म के साथ होता है; जैसे-मैंने राम को पत्र लिखा। (राम गौण कर्म, पत्र मुख्य कम)।
3. करण कारक [से, के द्वारा ] : जिसकी सहायता से कोई कार्य संपन्न हो, वह संज्ञा/सर्वनाम पद करण कारक होता है। करण कारक का विभक्ति-चिह्न (परसर्ग) है -से, के द्वारा। जैसे-
- मैं पैन से चिट्ठी लिख रहा हूँ।
- राधा ने चाकू से छेद किया।
- उसे पत्र के द्वारा समाचार मिला।
4. संप्रदान कारक [को, के लिए] : संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को संप्रदान कहते हैं जिसके लिए कर्ता द्वारा कुछ किया जाए या उसे कुछ दिया जाए। संप्रदान कारक का चिह्न को, के लिए है। जैसे-
- मोहन ने गरीबों को धन दिया।
- मैं आपके लिए दवा लाया हूँ।
- वह यह मिठाई बहन के लिए लाया था।
‘को’ परसर्ग का प्रयोग कर्म कारक और संप्रदान कारक दोनों में होता है। कर्म कारक में ‘को’ To के अर्थ में होता है, जबकि संप्रदान कारक में ‘को’ For के अर्थ में। जैसे-
- वह मोहन को पत्र लिखेगा। (कर्म कारक)
- वह दीन-दुखियों को कपड़े देता है। (संप्रदान कारक)
5. अपादान कारक [से] : जिस पद से अलग होने या निकलने का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसका परसर्ग ‘से’ है। जैसे-
- गंगा हिमालय से निकलती है।
- पेड़ से पत्ते गिरते हैं।
- मोहन घोड़े से गिर पड़ा।
ध्यान दें : ‘से’ परसर्ग का प्रयोग करण कारक और अपादान कारक दोनों में होता है, पर दोनों स्थितियों में अंतर है। करण कारक में ‘से’ सहायक साधन के रूप में (with) तथा अपादान कारक में यह अलग (depart) होने का सूचक है।
6. अधिकरण कारक [ में, पर ] : जिस संज्ञा/सर्वनाम पद से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इससे क्रिया के स्थान, काल, अवसर आदि का ज्ञान होता है। अधिकरण कारक के परसर्ग हैं- में, पर। जैसे-
- थैले में फल हैं।
- पुस्तक मेज पर रखी है।
- माताजी घर में हैं।
कभी-कभी अधिकरण कारक का परसर्ग लुप्त भी हो जाता है। जैसे-
- बगीचे के किनारे छायादार वृक्ष लगे हैं। (किनारे पर)
- बच्चे घर हैं ? (घर पर या घर में)
कभी-कभी अधिकरण कारक के परसर्ग के बाद दूसरे कारक का परसर्ग भी आ जाता है, जैसे-
- पुस्तक में से पढ़ लो।
- वह पेड़ पर से उतर रहा था।
7. संबंध कारक [का, के, की/रा, रे, री] : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु व्यक्ति का संबंध दूसरी वस्तु व्यक्ति के साथ जाना जाए, उसे संबंध कारक कहते हैं। इसमें का, के, की, रा, रे, री परसर्गों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
- यह राम का भाई हैं।
- वह शशि की बहन है।
- मेरा भाई, तेरी बहन आदि।
8. संबोधन कारक [हे, अरे, ओ] : यह ध्यान आकर्षित करते समय अथवा चेतावनी देते समय प्रयुक्त होता है। शब्द के पूर्व प्रायः विस्मयादिबोधक अव्यय [हे ! अरे !] आदि लगते हैं। जैसे-
- अरे मोहन ! यहाँ आना।
- सज्जनो और देवियो ! चुप हो जाओ।
कारक तालिका:
समझो:
1. कर्म कारक और संप्रदान कारक में अंतर : इन दोनों में ‘को’ परसर्ग का प्रयोग होता है; जैसे-
- मैं राम को समझाऊँगा। (कर्म कारक)
- मैंने गीता को पुस्तक दी। (संप्रदान कारक)
पहले वाक्य में ‘समझाने’ क्रिया का फल ‘राम’ पर पड़ रहा है, अत: वह कर्म है। दूसरे वाक्य में देने का भाव है, अत: संप्रदान कारक है।
2. करण कारक और अपादान कारक में अंतर : इन दोनों कारकों में ‘से’ परसर्ग का प्रयोग होता है। जैसे-
- वह कलम से लिखती है।
- गंगा हिमालय से निकलती है।
पहले वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया ‘कलम से’ हो रही है अर्थात् ‘कलम’ लिखने की क्रिया का साधन है, अतः ‘करण कारक’ है।
दूसरे वाक्य में गंगा का हिमालय से पृथक होने का पता चल रहा है। अतः अपादान कारक लें।