HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर अतीत में दबे पाँव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था, कैसे?
उत्तर:
सिंधु सभ्यता का नगर सुनियोजित था जिसमें पानी की समुचित व्यवस्था थी। मुख्य सड़कें चौड़ी थीं और अन्य छोटी थीं। इस सभ्यता के लोगों का मुख्य काम खेती करना था। इन्हें ताँबे और काँसे का पता था। यहाँ की खुदाई में मिले काँसे के बर्तन, चाक पर बने विशाल मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, चौपड़ की गोटियाँ, कंघी, ताँबे का दर्पण, मनके के हार, सोने के आभूषण आदि यह सिद्ध करते हैं कि सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी। ये लोग अपने यहाँ से निर्यात भी करते थे और बाहर से ऊन के वस्त्र आयात भी करते थे। यातायात के लिए वे बैलगाडियों का प्रयोग करते थे। उनके भंडार हमेशा अनाज से भरे रहते थे। गेहूँ, ज्वार, बाजरा, कपास आदि इनकी मुख्य फसलें थीं। उनके घरों में गृहस्थी की सभी आवश्यक सुविधाएँ थीं। वे साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते थे।

उनकी कला-कृतियों से पता चलता है कि वे सुरुचि संपन्न लोग थे और उन्हें सौंदर्य-बोध का समुचित ज्ञान था। उनकी कला संस्कृति राज-पोषित व धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित थी। साधन-संपन्न होने के बावजूद इस सभ्यता में भव्यता का आडंबर नहीं था। न ही वहाँ कोई भव्य प्रसाद था और न ही मंदिर। यहाँ तक कि राजाओं और महंतों की समाधियाँ भी यहाँ नहीं थीं। यहाँ के मूर्तिशिल्प या औजार छोटे थे। मकान भी छोटे थे और उनके कमरे भी छोटे थे। राजा का मुकुट भी छोटा और नाव भी छोटी थी। किसी भी वस्तु से इस सभ्यता में आडंबर का एहसास नहीं होता। इसलिए यह कहना सर्वथा उचित है कि सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था।

प्रश्न 2.
“सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया?
उत्तर:
उस काल के मनुष्यों की दैनिक प्रयोग की वस्तुओं को देखकर यह प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी के लोग कला प्रिय थे। वास्तुकला में वे अत्यधिक प्रवीण थे। वहाँ पर धातु तथा मिट्टी की मूर्तियाँ मिली हैं तथा चाक के बने बर्तन मिले हैं जिन पर चित्र बने हुए हैं। वनस्पति, पशु-पक्षी की छवियाँ, मुहरें, खिलौने, आभूषण, केश-विन्यास, ताँबे का बर्तन, कंघी तथा सुघड़ लिपि भी प्राप्त हुई है। ये सब उपलब्धियाँ इस सभ्यता के सौंदर्य-बोध को प्रमाणित करती हैं। यहाँ भव्य मंदिरों, स्मारकों आदि के कोई अवशेष नहीं मिले। ऐसा कोई चित्र या मूर्ति प्राप्त नहीं हुई जिससे पता चले कि ये लोग प्रभुत्व तथा आडंबर प्रिय हों। यहाँ से प्राप्त सौंदर्य-बोध जन-सामान्य से जुड़ा प्रतीत होता है। लगता है कि यहाँ की कला-संस्कृति को राजा तथा धर्म का कोई प्रश्रय नहीं मिला। इसलिए यह कहना समीचीन होगा कि सिंधु सभ्यता का सौंदर्य-बोध राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

प्रश्न 3.
पुरातत्त्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि “सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में जिन वस्तुओं तथा कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है, उनमें औजार तो हैं परंतु हथियार नहीं हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मुअनजो-दड़ो हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक संपूर्ण सिंधु सभ्यता में किसी भी जगह हथियार के अवशेष नहीं मिले। इससे पता चलता है कि वहाँ कोई राजतंत्र नहीं था, बल्कि समाजतंत्र था। यदि इस सभ्यता में शक्ति का कोई केंद्र होता तो उसके चित्र अवश्य मिलते। इस सभ्यता के नरेश का मुकुट भी बहुत छोटा मिला है। राजमहल, मंदिर, समाधि के कोई चिह्न नहीं मिले हैं। इससे स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि इस सभ्यता में सत्ता का कोई केंद्र नहीं था। यह सभ्यता स्वतः अनुशासित थी, ताकत के बल पर नहीं। इसलिए पुरातत्त्ववेत्ताओं का यह विचार है कि शायद इस सभ्यता में कोई सैन्य सत्ता न हो। यहाँ के लोग अपनी सोच-समझ के अनुसार ही अनुशासित थे।

प्रश्न 4.
‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जाती; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उस के पार झाँक रहे हैं। इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
पुरातत्त्ववेत्ताओं का विचार है कि मुअनजो-दड़ो की सभ्यता पाँच हजार वर्ष पुरानी है। जबकि हमारे पास लिपिबद्ध इतिहास चौथी शताब्दी ई०पू० से ही उपलब्ध हो जाता है। इससे पता चलता है कि सिंधु सभ्यता वर्तमान इतिहास के काल से दुगुने काल की है। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में मिली टूटी-फूटी सीढ़ियों पर पैर रखकर हम किसी छत पर नहीं पहुँच सकते परंतु जब हम इन सीढ़ियों पर पैर रखते हैं तो हमें गर्व होता है कि हमारी सभ्यता उस समय सुसंस्कृत तथा उन्नत सभ्यता थी जबकि शेष संसार में उन्नति का सूर्य अभी प्रकट भी नहीं हुआ था। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता संसार की शिरोमणि सभ्यता है। हम इतिहास के पार देखते हैं कि इस सभ्यता के विकास में एक लंबा समय लगा होगा। मुअनजो-दड़ो की वास्तुकला आज के सुनियोजित नगरों के लिए आदर्श नमूना है। यदि आज के महानगरों में चौड़ी सड़कें हों तो आज यातायात में कोई बाधा नहीं आएगी। उन लोगों की सोच कितनी उत्तम थी कि उनके घरों के दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर नहीं खुलते थे, जबकि आज सब कुछ विपरीत है।

प्रश्न 5.
टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज़ होते हैं इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो तथा हड़प्पा के टूटे-फूटे खंडहरों को देखने से हमारे मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों की सभ्यता कितनी विकसित तथा साधन संपन्न थी। ये खंडहर हमें सिंधु घाटी सभ्यता तथा संस्कृति से परिचित कराते हैं। हमारे मन में यह विचार पैदा होता है कि हम लोग उन्हीं लोगों की संतान हैं जो यहाँ रहते थे। हम किसी-न-किसी प्रकार से इस सभ्यता से जुड़े हैं। ये हमारे ही पूर्वजों के घर थे। परंतु हमारा दुर्भाग्य है कि हम आज केवल दर्शक बनकर रह गए हैं। इन खंडहरों को देखकर हम ये कल्पना कर सकते हैं कि यहाँ हजारों साल पहले कितनी चहल-पहल रही होगी और लोगों के मन में कितनी खुश-शांति रही होगी। काश हम भी उनके पद-चिह्नों का अनुसरण कर पाते। ये खंडहर हमारे उस प्राचीन सभ्यता के प्रमाण हैं जिन्हें हम कभी नहीं भुला पाएँगे।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

प्रश्न 6.
इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परन्तु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
इस पाठ में मुअनजो-दड़ो के अवशेषों का चित्रात्मक वर्णन किया गया है। भले ही हमने इस स्थान को न देखा हो पर पाठ को पढ़ने से वहाँ के मकानों, बौद्ध स्तूप, चौड़ी सड़कों, नालियों, चित्रकारी, कलाकारी आदि के चित्र हमारी आँखों के सामने झूल जाते हैं। सचमुच मुअनजो-दड़ो की सभ्यता संसार की सर्वाधिक विकसित सभ्यता कही जा सकती है।

कुछ महीने पहले हमारे विद्यालय के शिक्षकों ने दिल्ली के ऐतिहासिक स्थानों पर घूमने का कार्यक्रम बनाया था। मैंने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। इतिहास का विद्यार्थी होने के कारण मैं ऐतिहासिक स्थल देखने की अधिक रुचि रखत हम सबसे पहले लालकिला देखने गए। प्रस्तुत पाठ को पढ़ने के बाद मैं लालकिले के बारे में एक बार यह हमारे देश का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इस किले का निर्माण करवाया था। इसकी भव्यता दूर से ही व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है। यमुना नदी के किनारे पर बने इस किले में लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है।

इसके मुख्य द्वार की शोभा तो अत्यधिक आकर्षक है। इसी द्वार की छत पर हमारे प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा झंडा फहराते हैं। किले में अनेक महल बने हैं जिनमें संगमरमर का प्रयोग किया गया है। शाहजहाँ के काल में महलों की दीवारों पर सोने की नक्काशी की गई थी। दीवाने-आम तथा दीवाने-खास को देखकर दर्शकों की आँखें भौचक्की हो जाती हैं। परंतु लालकिले की सभ्यता भव्यता लिए हुए है और यह राजशक्ति का प्रमाण है। इसके मुकाबले में सिंधु घाटी सभ्यता राज-पोषित न होकर समाज-पोषित है। इसलिए मन में कभी-कभी ख्याल आता है कि शाहजहाँ ने तत्कालीन जनता का कितना शोषण किया होगा।

प्रश्न 7.
नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो सिंधु नदी के समीप बसा था। नगर में लगभग सात सौ कएँ थे। प्रत्येक घर में स्नानागार व जल निकासी की बेजोड़ व्यवस्था थी। अतः लेखक द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कहना उचित है। इस संदर्भ में निम्नलिखित प्रमाण दिए जा सकते हैं

  • आज भी संसार में बड़े-बड़े नगर तटों के पास बसे हैं। मुअनजो-दड़ो के पास ही सिंधु नदी थी।
  • पीने के पानी के लिए नगर में लगभग सात सौ कुओं की व्यवस्था थी। प्रत्येक घर में स्नानागार था।
  • जल निकासी की व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि आज भी विकसित नगरों में ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। प्रत्येक नाली पक्की ईंटों से निर्मित थी और ईंटों से ढकी थी।
  • आज के नगरों तथा कस्बों में बदबू छोड़ती नालियाँ व गंदे नाले देखे जा सकते हैं।
  • यहाँ के मकान छोटे थे तथा कमरे भी छोटे-छोटे थे ताकि अधिकाधिक लोगों को आवासीय सुविधा प्राप्त हो सके। मुअनजो-दड़ो में जल की समुचित व्यवस्था को देखकर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता जल-संस्कृति का श्रेष्ठ उदाहरण है।

प्रश्न 8.
सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है।
नजो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पुरातत्त्ववेत्ताओं ने काफी कुछ लिखा है। यह निश्चित है कि इस सभ्यता के बारे में लिखित प्रमाण नहीं मिला। हमें केवल अवशेषों के आधार पर अवधारणा बनानी पड़ी है। लेखक ने मुअनजो-दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की है वह काफी हद तक सही प्रतीक होती है क्योंकि हमें मुअनजो-दड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई करने पर जो अवशेष मिले हैं उस आधार पर सिंधु घाटी का अनुमान लगाया गया है। भले ही कुछ लोग इन अनुमानों की सत्यता पर शंका व्यक्त करें, पर शंका व्यक्त करने का कोई तर्कसंगत प्रमाण नहीं मिलता। हमें तो केवल अवशेषों को ही प्रमाण मानना है। यहाँ से प्राप्त अवशेषों के काल का निर्धारण
रे पास कई वैज्ञानिक उपकरण हैं और पुरातत्त्ववेत्ताओं ने उनकी आवश्यक सहायता लेकर इस सभ्यता का काल निर्णय किया है। जहाँ तक आलोचकों का प्रश्न है वे अनेक तर्क देकर अपनी विभिन्न धारणाएँ व्यक्त कर सकते हैं।

HBSE 12th Class Hindi अतीत में दबे पाँव Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुअनजोदड़ो कहाँ बसा हुआ था? इसे विशेष प्रकार से क्यों बसाया गया था?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया है कि यह नगर अपने समय में सभ्यता का केंद्र रहा होगा। ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र 200 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला था और इसकी जनसंख्या 85 हजार के लगभग रही होगी। पाँच हजार वर्ष पूर्व यह नगर महानगर की परिभाषा को स्पष्ट करता है। भले ही सिंधु घाटी एक मैदानी संस्कृति थी परंतु सिंधु नदी को सैलाब से बचाने के लिए उसे छोटे-छोटे टीलों पर बनाया गया था। विद्वानों का विचार था कि ये टीले प्राकृतिक नहीं थे बल्कि पक्की व कच्ची ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाकर उस पर बनाए गए थे। यह वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण था। भले ही यहाँ की इमारतें खंडहर बन चुकी हैं, नगर व गलियों के विस्तार से यह स्पष्ट हो जाता है कि नगर का नियोजन पूर्णतया सुनियोजित था। यह नगर सिंधु नदी से पाँच किलोमीटर की दूरी पर बना था। स्तूप वाले चबूतरे के पीछे ‘गढ़’ और सामने ‘उच्च’ वर्ग की बस्ती तथा दक्षिण की ओर के खंडहरों में कामगारों की बस्ती है।

सामूहिक स्थान के लिए 40 फुट लंबा, 25 फुट चौड़ा, 7 फुट गहरा कुंड था जिसमें उत्तर तथा दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती थीं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने थे। कुंड के पानी की निकासी के लिए नालियाँ भी थीं। कुंड के दूसरी ओर विशाल कोठार था। कुंड उत्तर:पूर्व में एक लंबी इमारत थी जिसमें दालान तथा बरामदे बने थे। दक्षिण में 20 कमरों वाला एक विशाल मकान था। नगर की मुख्य सड़कों की चौड़ाई 33 फुट तक थी। परंतु गलियों की सड़कें 9 फुट से 12 फुट तक चौड़ी थीं। प्रत्येक घर में एक स्नानघर था और घरों के भीतर पानी की निकासी की व्यवस्था भी थी। बस्ती के भीतर छोटी सड़कें व गलियाँ थीं। इस नगर में कुओं का उचित प्रबंध था जोकि पक्की ईंटों से निर्मित थे। नगर में यदि छोटे घर थे, तो बड़े घर भी थे। पर सभी पंक्तिबद्ध थे। घर के कमरे छोटे थे ताकि आवास की समस्या का हल निकाला जा सके। संपूर्ण नगर की वास्तुशैली एक ही प्रकार की प्रतीत होती है। इसलिए यह नगर वास्तुकला की दृष्टि से सुनियोजित और सुव्यवस्थित रहा होगा।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

प्रश्न 2.
‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर बौद्ध स्तूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के जो खंडहर प्राप्त हुए हैं उनमें सबसे ऊँचे चबूतरे पर एक बौद्ध स्तूप के अवशेष मिले हैं। इसका चबूतरा 25 फुट ऊँचा है। लेखक का कथन है कि इसका निर्माणकाल 26 सौ वर्ष पहले का है। चबूतरे पर भिक्षुओं के लिए अलग-अलग कमरे बने हुए हैं। यह बौद्ध स्तूप भारत का प्राचीनतम लैंडस्केप कहा जा सकता है। इसे देखकर दर्शक आश्चर्यचकित रह जाता है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार, मुअनजो-दड़ो के स्तूप वाला भाग ‘गढ़’ है जिसके सामने एक बस्ती है जिसका संबंध शायद उच्च वर्ग से है। इसके पीछे पाँच किलोमीटर की दूरी पर सिंधु नदी है।

प्रश्न 3.
‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ के आधार पर महाकुंड का वर्णन करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में एक तालाब भी मिला है। इसे पुरातत्त्वविदों ने महाकुंड का नाम दिया है। इसकी लंबाई 40 फुट, चौड़ाई 25 फुट तथा गहराई 7 फुट है। उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ कुंड में उतरती हैं। उत्तर दिशा में दो पंक्तियों में 8 स्नानघर भी बने हुए हैं। इसके बारे में लेखक लिखता है-‘वह अनुष्ठानिक महाकंड भी है जो सिंधु घाटी सभ्यता के अद्वितीय वास्तुकौशल को स्थापित करने के लिए अकेला ही काफी माना जाता है। कुंड से पानी को बाहर निकालने के लिए नालियाँ बनी हुई हैं। ये सभी नालियाँ ईंटों से बनी हैं तथा ईंटों से ढकी हुई हैं। कुंड के तीन तरफ साधुओं के कक्ष हैं। इस कुंड की विशेष बात यह है कि इसमें पक्की ईंटों का जमाव है। कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया है। पार्श्व की दीवारों के साथ दूसरी दीवार खड़ी की गई है। कुंड के पानी के प्रबंध के लिए एक तरफ कुआँ है। दोहरे घेरे वाला यह अकेला कुआँ है। कुंड के पानी को बाहर बहाने के लिए नालियाँ बनी हुई हैं।

प्रश्न 4.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की फसलों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में पहले यह विचार था कि यहाँ के लोग अनाज पैदा नहीं करते थे, बल्कि आयात करते थे। परंतु हाल की खोज ने इस विचार को गलत सिद्ध कर दिया है। अब विद्वान यह मानते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता खेतीहर और पशुपालक सभ्यता थी। आरंभ में लोहे का प्रयोग नहीं होता था परंतु पत्थर और ताँबे का खूब प्रयोग होता था। पत्थर तो सिंध में ही होता था और ताँबे की खानें राजस्थान में थीं। इनसे बनाए गए उपकरण खेती-बाड़ी के काम में लाए जाते थे। इतिहासकार इरफान हबीब ने यह सिद्ध किया है कि यहाँ पर कपास, गेहूँ, जौ, सरसों तथा चने की खेती होती थी। आरंभ में यहाँ की सभ्यता तट युग की सभ्यता थी लेकिन बाद में यह सूखे में बदल गई। विद्वानों का यह भी विचार है कि यहाँ के लोग ज्वार, बाजरा और भी पाप्त हए हैं।

रागी की भी खेती करते थे। यही नहीं, यहाँ खरबूजे, खजूर और अंगूर भी उगाए जाते थे। झाड़ियों से बेर इकट्ठे किए जाते थे। भले ही कपास के बीज नहीं मिले परंतु सूती कपड़ा मिला है। जिससे सिद्ध होता है कि ये लोग कपास की खेती भी करते थे। यहाँ से सूत का निर्यात किया जाता था।

प्रश्न 5.
निम्न वर्ग के मकानों के बारे में लेखक ने क्या लिखा है?
उत्तर:
लेखक का कहना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता में समाज का निम्न वर्ग भी था क्योंकि यहाँ उच्च वर्ग की बस्ती के साथ-साथ कामगारों की बस्ती भी मिली है। इस बस्ती के घर टूटे-फूटे हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि निम्न वर्ग के मकान अधिक मजबूत नहीं रहे होंगे। दूसरी बात यह भी है कि निम्न वर्ग के मकान मुख्य बस्ती से दूर बसे हुए थे। हल्के मकान होने के कारण ये पाँच हजार साल तक नहीं टिक पाए। यदि मुअनजो-दड़ो के दूसरे टीलों की खुदाई की जाए तो निम्न वर्ग के मकानों के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिल सकती है।

प्रश्न 6.
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में खुदाई के समय मिली कौन-कौन सी चीजें रखी हुई हैं?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की खदाई में निकली हई पंजीकत वस्तओं की संख्या 50 हजार से भी अधिक है, लेकिन बहत कम वस्तएँ ही अजायबघर में प्रस्तुत की गई हैं। ये वस्तुएँ सिंधु घाटी की सभ्यता की झलक दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। अजायबघर में काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मोहरें, आटे चाक पर बने हुए विशाल मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, वाद्य, माप-तोल के पत्थर, चौपड़ की गोटियाँ, ताँबे के बर्तन, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटों वाली चक्की, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनके वाले हार और मिट्टी के कंगन आदि अनेक वस्तुएँ देखी जा सकती हैं। अजायबघर के अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी थे जो बाद में चोरी हो गए। हैरानी की बात यह है कि यहाँ औजारों का तो प्रदर्शन किया गया है लेकिन कोई हथियार नहीं मिला। इसी प्रकार ताँबे और काँसे की बहुत-सी सुईयाँ हैं। नर्तकी और दाढ़ी वाले नरेश की मूर्तियाँ भी प्राप्त हैं। इसके अतिरिक्त हाथी दाँत और ताँबे के सुए भी प्रा प्राप्त हुए हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

प्रश्न 7.
मुअनजो-दड़ो के सामूहिक स्नानागार को धार्मिक स्थल माना जा सकता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के सामूहिक स्नानागार को महाकुंड का नाम दिया गया है। यह कुंड करीब 40 फुट लंबा, 25 फुट चौड़ा और 7 फुट गहरा है। इसमें उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ नीचे उतरती हैं। महाकुंड की तीन दिशाओं में साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पंक्तियों में स्नानागार हैं जिसमें से किसी का दरवाजा भी दूसरे के सामने नहीं खुलता। कुंड में पक्की ईंटों का जमाव है। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि कुंड के पानी का रिसाव न हो पाए और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आए। इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों में ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया है। महाकुंड के लिए पानी का प्रबंध करने के लिए दोहरे घेरे वाला एक कुआँ बनाया गया है। कुंड के पानी को बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नाली बनाई गई है। महाकुंड की विशेषताओं से पता चलता है कि यह कुंड किसी धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ा हुआ रहा होगा।

प्रश्न 8.
‘अतीत में दबे पाँव’ के कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ओम थानवी ने अतीत में दबे पाँव की रचना यात्रा वृत्तांत के रूप में की है परंतु यह रिपोर्ट से मिलता-जुलता लेख है। इसमें लेखक ने अतीत काल की सिंधु घाटी सभ्यता का रोचक और सजीव वर्णन किया है। यह सभ्यता दो महानगरों मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा में बसी हुई थी। इस लेख में मुअनजो-दड़ो शहर और वहाँ की सभ्यता व संस्कृति पर समुचित प्रकाश डाला गया है। लेखक ने यहाँ की बड़ी बस्ती का वर्णन करते हुए महाकुंड का भी परिचय दिया है। सिंधु घाटी सभ्यता में स्तूप, गढ़, स्नानागार, टूटे-फूटे घर, चौड़ी और कम चौड़ी सड़कें, बैलगाड़ियाँ, सूईयाँ, छोटी-छोटी नौकाएँ, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ और औजार प्राप्त हुए हैं। ये सब वस्तुएँ यहाँ की सभ्यता पर समुचित प्रकाश डालती हैं। मुअनजो-दड़ो से प्राप्त अवशेषों के आधार पर पाँच हजार वर्ष पहले की सिंधु घाटी सभ्यता की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक गतिविधियों का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
सिंधु सभ्यता में नगर नियोजन से भी कहीं अधिक सौंदर्य-बोध देखा जा सकता है। ‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ के आधार पर विवेचन करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की खुदाई से यहाँ जो वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं वे उस समय के लोगों के सौंदर्य-बोध की परिचायक हैं। इन वस्तुओं में धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, सुंदर मोहरें, उन पर बारीकी से की गई आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण आदि हिंदू सभ्यता के सौंदर्य-बोध का परिचय देती हैं। यहाँ की सुघड़ लिपि और आश्चर्यचकित करने वाली वास्तुकला तथा नगर नियोजन आदि भी सौंदर्य-बोध के परिचायक हैं। सिंधु सभ्यता में आवास की सुंदर व्यवस्था थी। अन्न का सही भंडारण किया जाता था और सबसे बढ़कर सुंदर कलाकृतियाँ भी बनाई जाती थीं। इन सब बातों से पता चलता है कि सिंधु सभ्यता में नगर नियोजन के साथ-साथ सौंदर्य-बोध के भी दर्शन होते हैं।

प्रश्न 10.
‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ के आधार पर सिंधु सभ्यता में प्राप्त वस्तुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की खदाई में प्राप्त वस्तओं का जो पंजीकरण किया गया. उनकी संख्या 50 हजार से भी अधिक है। इनमें से अधिकांश वस्तुएँ कराची, लाहौर, लंदन तथा दिल्ली में रखी हुई हैं। केवल कुछ वस्तुएँ ही यहाँ के अजायबघर में हैं जिनमें काला पड़ गया गेहूँ, चौपड़ की गोटियाँ, माप-तोल के पत्थर, ताँबे के बर्तन, दीपक, मिट्टी की बैलगाड़ी, कुछ खिलौने, कंघी, दो पाटों वाली चक्की, रंग-बिरंगे पत्थर के मनकों के हार तथा पत्थर के औजार गिनवाए जा सकते हैं। अजायबघर के चौकीदार के अनुसार यहाँ पर सोने के आभूषण भी थे जो कि चोरी हो चुके हैं। यही नहीं यहाँ काँसे के बर्तन, मोहरें, चाक पर बने विशाल मिट्टी के बर्तन, कुछ लिपिबद्ध चिह्न आदि वस्तुएँ भी प्राप्त हुई हैं। यहाँ की उल्लेखनीय वस्तु दाढ़ी वाले नरेश की मूर्ति है जिसके शरीर पर एक सुंदर गुलकारी वाला दुशाला है। यही नहीं, हाथी दाँत और ताँबे की सुइयाँ भी मिली हैं। खुदाई में प्राप्त नर्तकी की मूर्ति एक अद्वितीय कला का नमूना है। इतिहासकारों का कहना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता संसार की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता कही जा सकती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुअनजो-दड़ो के नगर की दशा आज कैसी है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो का प्राचीनतम नगर एक पुराने खंडहर में बदल चुका है। इस नगर के मकानों की छतें गायब हैं परंतु अंदर के कमरे, रसोई, अधूरी सीढ़ियाँ, चौड़ी सड़कें और गलियाँ ज्यों-की-त्यों हैं। वहाँ जाकर दर्शक यह अनुभव करता है कि मानो अभी यह नगर नींद में से जागकर उठ जाएगा और यहाँ रहने वाले लोग फिर से अपने काम में लग जाएँगे।

प्रश्न 2.
रईसों की बस्ती का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
‘अतीत में दबे पाँव पाठ में सिंधु घाटी की खुदाई से प्राप्त तथ्यों का वर्णन किया गया है। इस खुदाई से उस समय के घरों की बनावट से ही अनुमान लगाया गया है कि वहाँ गरीबों व रईसों की अलग-अलग बस्तियाँ थीं। रईसों की बस्ती यानी बड़े घर, चौडी सड़कें ज्यादा कुएँ हैं। इन घरों में स्नानघरों की भी सुन्दर व्यवस्था थी। यहाँ सड़क के दोनों ओर ढकी हुई नालियाँ भी मिली हैं जिससे वहाँ पानी की निकासी के प्रबन्धन का पता चलता है। वहाँ की बस्ती के भीतर छोटी सड़कें हैं और उनसे छोटी गलियाँ थीं। गलियों से ही घरों तक पहुँचा जाता है। यहाँ कुँओं का प्रबन्धन भी बहुत आकर्षक है।

प्रश्न 3.
‘देखना अपनी आँख का देखना है। बाकी सब आँख का झपकना है’ आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के इस कथन का अर्थ यह है कि किसी भी दृश्य अथवा वस्तु को आँखों से देखकर ही उसे जाना जा सकता है। मुअनजो-दड़ो नगर की भी यही स्थिति थी। उसे आँखों से देखकर ही मनुष्य पर सही और स्थायी प्रभाव पड़ सकता है। चित्रों, सही कल्पना साकार नहीं हो सकती।

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प्रश्न 4.
मुअनजो-दड़ो के नगर नियोजन का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
नगर नियोजन में मुअनजो-दड़ो की अपनी पहचान है भले ही इमारतें खंडहरों में बदल गई हों किन्तु शहर के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए सड़कों और गलियों के ये खंडहर काफी हैं। यहाँ की सड़कें सीधी या आड़ी हैं। वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। आजकल की सैक्टरनुमा कालोनियों में सीधा-आड़ा नियोजन बहुत देखने को मिलता है। अतः मुअनजो-दड़ो की नगर नियोजन उत्तम है।

प्रश्न 5.
पुरातत्त्ववेत्ताओं ने किस भवन को देखकर ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ की कल्पना की है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के महाकुंड के उत्तर:पूर्व में एक लंबी इमारत के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिसके बीचो-बीच एक खुला दालान है। उसके तीन तरफ बरामदे भी बने हुए हैं। संभवतः इनके साथ कुछ छोटे-छोटे कमरे भी रहे होंगे। कुछ पुरातत्त्ववेत्ताओं का यह भी कहना है कि इस इमारत में धार्मिक अनुष्ठान किए जाते होंगे क्योंकि इसके दक्षिण में एक अन्य इमारत के खंडहर प्राप्त हुए हैं। यहाँ बीस खंभों वाला एक विशाल हाल है। विद्वानों का यह विचार है कि यह राज्य सचिवालय, सभा भवन अथवा कोई सामुदायिक केंद्र रहा होगा। इस लंबी इमारत और साथ की खंडहर इमारत के आधार पर विद्वानों का कहना है कि यहाँ निश्चित से धर्म और विज्ञान पर विचार-विमर्श होता होगा। इसीलिए इसके लिए ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ की कल्पना की गई है।

प्रश्न 6.
मुअनजो-दड़ो और चंडीगढ़ की नगर-योजना में कौन-सी समानता देखी जा सकती है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो और चंडीगढ़ के नगर-निर्माण शिल्प में एक महत्त्वपूर्ण समानता है। दोनों नगरों की मुख्य सड़कों पर किसी भी मकान का दरवाजा नहीं खुलता। नगर के घरों में जाने के लिए पहले चौड़ी सड़क पर जाना पड़ता है। वहाँ से गली में प्रवेश करके घर में जाया जा सकता है। मुख्य सड़कों की ओर मकानों की पीठ है।

प्रश्न 7.
मुअनजो-दड़ो की सभ्यता सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूक थी। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो की सभ्यता सफाई और स्वच्छता के प्रति विशेष रूप से जागरूक थी। नगर में पानी की निकासी का विशेष प्रबंध था। प्रत्येक घर में स्नानघर था। घरों के अंदर का मैला पानी नाली के द्वारा बाहर की हौदी में गिरता था जो कि नालियों के जाल से जुड़ा हुआ था। सभी नालियाँ पत्थर से ढकी हुई थी जिससे मक्खी-मच्छर के बैठने की संभावना नहीं थी।

प्रश्न 8.
मुअनजो-दड़ो में रंगरेज का कारखाना भी था। सिद्ध करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में एक ऐसा भवन मिला है जिसकी जमीन में ईंटों के गोल गड्ढे बनाए गए हैं। पुरातत्त्ववेत्ताओं का विचार है कि इनमें वे बर्तन रखे जाते होंगे जो रंगाई के काम आते हैं। इस भवन में सोलह छोटे-छोटे मकान भी हैं। एक पंक्ति मुख्य सड़क पर है और दूसरी पंक्ति पीछे की सड़क पर है। ये सभी मकान एक मंजिले और छोटे हैं। प्रत्येक मकान में दो कमरे हैं और सभी घरों में स्नानघर भी हैं। ऐसा लगता है कि यहाँ पर रंगरेज रहते होंगे और रंगाई का काम भी करते होंगे।

प्रश्न 9.
‘जूझ’ पाठ में बचपन में लेखक के मन में पढ़ने के प्रति क्या विचार थे?
उत्तर:
बचपन में लेखक के मन में पढ़ने की प्रबल इच्छा थी। इसलिए वह सोचता था कि खेत में काम करने से उसके हाथ कुछ नहीं लगेगा, उसे किसी भी कीमत पर पढ़ना चाहिए।

प्रश्न 10.
मुअनजो-दड़ो को देखकर लेखक को राजस्थान के कुलधरा गाँव की याद क्यों आ गई?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के उजड़े हुए वीरान नगर को देखकर लेखक अचानक राजस्थान के कुलधरा गाँव को याद कर उठा। यह गाँव भी लंबे काल से वीरान पड़ा हुआ है। कहा जाता है कि लगभग 150 साल पहले यहाँ के राजा तथा गाँववासियों के बीच झगड़ा हो गया था। गाँव के लोग बड़े स्वाभिमानी थे। वे रातो-रात अपने घर छोड़कर कहीं ओर चले गए। तब से इस गाँव के घर खंडहर हो गए हैं। वे आज भी मानो अपने बाशिंदों के इंतजार में खड़े हुए हैं।

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प्रश्न 11.
‘कॉलेज ऑफ प्रीस्टस’ किसे कहा गया है? इसका निर्माण क्यों हुआ होगा?
उत्तर:
महाकुंड के उत्तर:पूर्व में एक बड़ी इमारत के अवशेष हैं। इसके बिल्कुल बीच में खुला और बड़ा दालान है। इसके तीनों तरफ बरामदे हैं। पुरातत्व जानकार के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों में ज्ञानशालाएँ साथ-साथ होती थीं, उस नजरिये से इसे ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्टस’ माना जा सकता है। कॉलेज ऑफ प्रीस्टस’ उस कॉलेज को कहा गया है, जहाँ प्रीस्टस को धार्मिक शिक्षा दी जाती है। इसका निर्माण प्रीस्टस को शिक्षित करने हेतु किया गया होगा।

प्रश्न 12.
मुअनजो-दड़ो में जल की निकासी की व्यवस्था कैसे की गई थी?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में जल की निकासी की अत्यन्त कुशल व्यवस्था थी। मुअनजो-दड़ो के समीप सिन्धु नदी बहती थी। निश्चय ही लोग उसका पानी अपने विभिन्न कार्यों में प्रयोग करते होंगे। इसके अतिरिक्त नगर में कुएँ, स्नानघर आदि थे। इनके पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था थी। पानी की निकासी के लिए पक्की इंटों से बनी नालियों की व्यवस्था थी। ये नालियाँ ईंटों से ढकी हुई थीं। आज की जल-निकासी की व्यवस्था उसके मुकाबले में तुच्छ प्रतीत होती है।

प्रश्न 13.
मुअनजो-दड़ो से प्राप्त बैलगाड़ी और आज की बैलगाड़ी में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो में ठोस लकड़ी के पहियों वाली बैलगाड़ियाँ काम में लाई जाती थीं। संभव है उससे पहले कमानी या आरे वाले पहियों का प्रयोग भी किया जाता हो परंतु बाद में बैलगाड़ियों में काफी परिवर्तन हुआ। जीप के उतरे हुए पहिए लगाकर बैलगाड़ी चलाई जाने लगी। ऊँटगाड़ी में हवाई जहाज के उतरे पहिए लगाए जाने लगे। आज की बैलगाड़ियों में बैलों पर अधिक बोझ नहीं पड़ता।

प्रश्न 14.
मुअनजोदड़ो के अजायबघर में हथियारों के न होने से क्या संकेत मिलता है?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में अनेकानेक वस्तुएँ हैं, किन्तु हथियार एक भी नहीं है। इससे पता चलता है कि वहाँ कोई राजतंत्र नहीं था, अपितु समाजतंत्र था। यदि इस सभ्यता में शक्ति का कोई केन्द्र होता तो उसके चित्र अवश्य मिलते। इस सभ्यता के नरेश का मुकुट भी बहुत छोटा मिला है। यहाँ राजमहल, मन्दिर, समाधि आदि के कोई चिहन नहीं मिले। इससे स्पष्ट है कि इस सभ्यता में सत्ता का कोई केन्द्र नहीं था। यह सभ्यता स्वतः अनुशासित थी, ताकत के बल पर नहीं थी। यहाँ के लोग अपनी सोच-समझ के अनुसार ही अनुशासित थे।

प्रश्न 15.
मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा किस कारण से प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा सिंधु घाटी के स्मारक नगर कहे जा सकते हैं। इसे संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में गिना जाता है। खुदाई में मिले यहाँ के नगर प्राचीनतम नियोजित नगर हैं। इन नगरों का निर्माण आज के उन्नत नगरों के समान पूर्णतया व्यवस्थित है।

प्रश्न 16.
क्या मुअनजोदड़ो को सिंधु घाटी का महानगर कह सकते हैं?
उत्तर:
मुअनजो-दड़ो आज के सुनियोजित नगरों के समान है। यह नगर लगभग 200 हैक्टेयर में फैला हुआ है। यह अनुमान कि इसकी आबादी 85 हजार के लगभग रही होगी। इस नगर के मकान, गलियाँ, जल निकासी आदि का प्रबंध पूर्णतया व्यवस्थित है। अवश्य ही यह उस समय का महानगर रहा होगा।

अतीत में दबे पाँव Summary in Hindi

अतीत में दबे पाँव लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री ओम थानवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
ओम थानवी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-ओम थानवी का जन्म सन् 1957 में हुआ। इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा बीकानेर में प्राप्त की और बाद में राजस्थान विश्वविद्यालय से व्यावसायिक प्रशासन में एम. कॉम. की। मूलतः ओम थानवी एक सफल पत्रकार कहे जा सकते हैं। 1980-89 तक वे ‘राजस्थान पत्रिका’ में कार्यरत रहे। बाद में इन्होंने ‘इतवारी पत्रिका’ का संपादन किया और इस साप्ताहिक पत्रिका को विशेष प्रतिष्ठा दिलाई। ओम थानवी के प्रयासस्वरूप ‘इतवारी पत्रिका’ ने सजग और बौद्धिक समाज में अपना विशेष स्थान बनाया।

ओम थानवी सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े रहे हैं। यही नहीं, एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में भी इन्होंने सफलता प्राप्त की है। साहित्य, सिनेमा, कला, वास्तुकला, पुरातत्त्व और पर्यावरण में इनकी गहन रुचि रही है। 80 के दशक में ‘सेंटर फॉर साइंस एनवायरमेंट’ को फेलोशिप प्राप्त करने के बाद इन्होंने राजस्थान के पारंपरिक जल-स्रोतों पर खोज करके विस्तारपूर्वक लिखा। पत्रकारिता के लिए इन्हें अनेक पुरस्कार मिले। इनकी मुख्य उपलब्धि गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार है। 1999 में इन्होंने दैनिक जनसत्ता दिल्ली और कलकत्ता के संस्करणों के संपादन का कार्यभार संभाला। पिछले 17 वर्षों से वे इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी दैनिक जनसत्ता’ में संपादक के रूप में काम कर रहे हैं।

2. साहित्यिक विशेषताएँ मूलतः ओम थानवी एक पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। परंतु साहित्य और कला में भी इनकी विशेष रुचि रही है। इन्होंने विभिन्न विषयों पर लेखन कार्य किया है जो समय-समय पर समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहा है। उन्होंने प्रायः सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर सफल निबंध लिखें। इनके द्वारा लिखित संपादकीय बड़े ही रोचक और प्रभावशाली रहे।

3. भाषा-शैली-ओम थानवी की भाषा-शैली सहज, सरल और साहित्यिक है। भाषा के बारे में इनका दृष्टिकोण बड़ा उदार रहा है। यही कारण है कि इन्होंने अपनी भाषा में हिंदी के तत्सम, तद्भव शब्दों के अतिरिक्त अंग्रेज़ी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है। इनका वाक्य विन्यास भावानुकूल और प्रसंगानुकूल है। इन्होंने प्रायः वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, विचारात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया है। आज भी वे अपनी लेखनी के द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

अतीत में दबे पाँव पाठ का सार

प्रश्न-
ओम थानवी द्वारा रचित ‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
अखंड भारत में बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में प्राचीन सभ्यता की खोज हेतु दो स्थानों पर खुदाई करवाई गई थी। आज ये दोनों स्थान पाकिस्तान में हैं। पहला स्थान पाकिस्तान के सिंध प्रांत मुअनजो-दड़ो के नाम से प्रसिद्ध है, दूसरा पंजाब प्रांत में हड़प्पा के नाम से जाना जाता है। पुरातत्त्व विभाग के विद्वानों ने इन दोनों स्थानों की खुदाई करके सिंधुकालीन सभ्यता की जानकारी प्राप्त की।
(1) मुअनजोदड़ो का संक्षिप्त परिचय-मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा विश्व के प्राचीनतम नियोजित नगर माने गए हैं। मुअनजो-दड़ो का अर्थ है-मुर्दो का टीला। मानव जाति ने छोटे-छोटे टीलों पर इस नगर का निर्माण किया था। किंतु इस नगर के नष्ट होने के बाद इसे मुअनजो-दड़ो नाम दिया गया। यह नगर सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वश्रेष्ठ नगर माना जाता है। पुरातत्त्व विभाग ने जब इसकी खुदाई की, तब यहाँ असंख्य इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि प्राप्त हुए हैं। ये नगर अपने समय में सभ्यता का केंद्र था। विद्वानों का विचार यह है कि यह नगर शायद उस क्षेत्र की राजधानी थी। पूरा नगर दो सौ हैक्टेयर में फैला हुआ था। पाँच हजार वर्ष पूर्व यह एक बड़ा महानगर रहा होगा। इस नगर से सैकड़ों मील दूर हड़प्पा नगर था। परंतु रेललाइन बिछाने के कारण इसके अनेक प्रमाण नष्ट हो गए हैं।।

मुअनजो-दड़ो नगर मैदान में नहीं अपितु टीलों पर बसाया गया था। ये टीले प्राकृतिक न होकर मानव निर्मित थे। यहाँ कच्ची-पक्की ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाया गया था। ताकि सिंधु नदी के पानी से नगर को बचाया जा सके। भले ही यह नगर आज खंडहर बन चुका है। फिर भी इसके स्वरूप के बारे में आसानी से अनुमान लगा सकते हैं। इस नगर में गलियाँ, सड़कें, रसोई, खिड़की, चबूतरे, आँगन, सीढ़ियाँ आदि सुनियोजित ढंग से बनाई गई हैं। नगर की सभी सड़कें सीधी व आड़ी हैं। आधुनिक वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ की संज्ञा देते हैं। सिरे पर बौद्धस्तूप बना हुआ है और उसके पीछे ‘गढ़’ है। सामने ‘उच्च’ वर्ग की बस्ती है। उसके पीछे पाँच किलोमीटर दूर सिंधु नदी बहती है। दक्षिण में कामगारों की बस्ती बनी हुई है। यही नहीं, नगर में महाकुंड नाम का तालाब भी है जो चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा है।

इसकी गहराई लगभग सात फुट है। कुंड में उत्तर:दक्षिण से सीढ़ियाँ नीचे उतर रही हैं। इसके तीन ओर साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर दिशा में आठ स्नानघर हैं। इसमें किसी भी स्नानघर का दरवाजा किसी दूसरे के सामने नहीं खुलता। महाकुंड का तल तथा दीवारें चूने और पक्की ईंटों को मिलाकर बनाई गई हैं। कुंड में बाहर का गंदा पानी न आए, इसका विशेष ध्यान रखा गया है। कुंड में पानी भरने के लिए एक कुआँ भी है जो दोहरे घेरे वाला है। कुंड के पानी को निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ बनाई गई हैं जो ऊपर से ढकी हुई हैं। पानी की निकासी की ऐसी सुंदर व्यवस्था पूर्व कालीन इतिहास में कहीं नहीं मिलती। कुंड के दूसरी ओर एक विशाल कोठार है जिसमें अनाज रखा जाता था। यही नहीं यहाँ नौ-नौ चौकियों की तीन-तीन हवादार कतारें हैं। इसके उत्तर में एक गली है जिससे संभवतः बैलगाड़ियों में भरकर अनाज लाया जाता होगा। एक ऐसा ही कोठार हड़प्पा में भी मिला है।

(2) बौद्ध स्तूप के अवशेष-मुअनजो-दड़ो सभ्यता के नष्ट होने के बाद एक जीर्ण-शीर्ण टीले के सबसे ऊँचे चबूतरे पर बहुत बड़ा बौद्ध स्तूप बना हुआ है जोकि पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है। इसका निर्माणकाल छब्बीस सौ वर्ष पहले का है। चबूतरे पर भिक्षुओं के लिए कमरे बनाए गए हैं। राखालदास बनर्जी का कहना है कि ये अवशेष ईसवी पूर्वकाल के हैं। तत्पश्चात भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल ने खुदाई का कार्य आरंभ करवाया, जिसके फलस्वरूप भारतीय सभ्यता की गिनती मिस्र और मेसोपोटामिया (इराक) की प्राचीन सभ्यता के साथ की जाने लगी।

यह बौद्ध स्तूप भारत का प्राचीनतम लैंडस्केप कहा जा सकता हैं जिसे देखकर दर्शक भी रोमांचित हो उठते हैं। स्तूप का यह चबूतरा मुअनजो-दड़ो के एक विशेष भाग के सिरे पर स्थित है जिसे विद्वानों ने ‘गढ’ कहा है। तत्कालीन धार्मिक तथा राजनीतिक सत्ता के केंद्र चारदीवारी के अंदर ही होते थे। शहर ‘गढ़’ से कुछ दूरी पर स्थित हैं। मुअनजो-दड़ो में ऐसी इमारत है जो अपने स्वरूप को आज भी बनाए हुए है। मुअनजो-दड़ो की शेष इमारतें लगभग खंडहर हो चुकी हैं।

(3) सिंधु घाटी का परिचय-सिंधु घाटी में व्यापार और खेती दोनों काफी उन्नत स्थिति में थे। वस्तुतः उस समय के लोग खेती करते थे अथवा पशुओं को पालते थे। यहाँ कपास, गेहूँ, जौ, सरसों और चने आदि की फसलें उगाई जाती थीं। कुछ विद्वानों का मत है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की फसलें भी होती थीं। यही नहीं खजूर, अंगूर, खरबूजे भी यहाँ उगाए जाते थे। मुअनजो-दड़ो में जहाँ एक ओर सूत की कताई-बुनाई होती थी वहीं दूसरी ओर रंगाई भी होती थी। खुदाई में रंगाई का छोटा-सा कारखाना भी मिला है। इस सभ्यता के लोग सुमेर से ऊन का आयात करते थे और सूती कपड़े का निर्यात करते थे। इन्हें ताँबे का समुचित ज्ञान था। उस समय सिंध में काफी मात्रा में पत्थर थे, वहीं राजस्थान में ताँबे की खानें थीं। खुदाई से खेती-बाड़ी के उपकरण भी मिले हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव

महाकुंड के आस-पास उत्तरपूर्व में एक बहुत लंबी इमारत के अवशेष मिले हैं जिसमें दालान, बरामदे तथा छोटे-छोटे कमरे बने हुए हैं। दक्षिण में एक छोटी इमारत भी है जिसमें बीस कमरों वाला एक हाल भी था। यह शायद राज्य सचिवालय या सभा भवन या सामुदायिक केंद्र होगा। ‘गढ़’ की चारदीवारी के बाहर छोटे-छोटे टीले हैं। इन पर जो बस्ती बनी है उसे ‘नीचा नगर’ कहा गया है। पूर्व में ‘रईसों की बस्ती’ है जिसमें बड़े-बड़े घर, चौड़ी सड़कें और काफी मात्रा में कुएँ हैं। जिन पुरातत्त्ववेत्ताओं ने मुअनजो-दड़ो की खुदाई करवाई थी उनके नाम से यहाँ मुहल्ले बनाए गए है; जैसे ‘डीके’ हलका-दीक्षित काशीनाथ की खुदाई आदि।

‘डीके’ के नाम से दो हलके हैं। यह क्षेत्र दोनों बस्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हलका माना गया है क्योंकि यहाँ शहर की मुख्य सड़क है जोकि बहुत लंबी है। आज तो केवल आधा मील बची है। इस सड़क की चौड़ाई तैंतीस फीट है। भले ही सड़क के दोनों ओर मकान बने हैं जिनमें से किसी का भी दरवाजा बीच सड़क पर नहीं खुलता। घरों के दरवाजे अंदर की गलियों में खुलते हैं। मुख्य सड़क से गली में जाकर ही किसी घर में पहुँचा जा सकता है। प्रत्येक घर में स्नानघर है। खुली नालियाँ भीतर बस्ती में भी नहीं हैं। घर का पानी पहले हौदी में आता है फिर सड़क की नाली में। बस्ती के भीतर की गलियाँ नौ से बारह फीट चौड़ी हैं। बस्ती में कुओं का प्रबंध भी है। संपूर्ण नगर में लगभग सात सौ कुएँ हैं। मुअनजो-दड़ो को जल संस्कृति का नगर कहा गया है क्योंकि इसमें नदी, कुंड, तालाब, स्नानघर, कुएँ और पानी निकासी की व्यवस्था भी है।

बड़ी बस्ती में पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नाम पर ‘डीके-जी’ का हलका है। यहाँ की दीवारें ऊँची और मोटी हैं। संभवतः यहाँ दो मंजिल वाले मकान रहे होंगे। कुछ दीवारों में छेद हैं। वे शायद शहतीरों के छेद होंगे। सभी घर भट्ठे की पक्की ईंटों के बने हैं जिनका अनुपात 1:2:4 है। इन घरों में पत्थर का उपयोग नहीं किया गया है। छोटे तथा बड़े घर एक ही पंक्ति में बनाए गए हैं। अधिकतर घर 30 जरबे 30 फुट के हैं। इनमें से कुछ दुगुने तथा कुछ तिगुने आकार के भी हैं। सभी घरों की वास्तुकला एक जैसी है। नगर में एक मुखिया का घर भी है जिसमें 20 कमरे तथा दो आँगन हैं। बड़े घरों में ऊपर की मंजिल होने के प्रमाण मिले हैं। घर चाहे छोटे हों या बड़े, पर कमरों का आकार बहुत छोटा है। इससे पता चलता है कि जनसंख्या काफी अधिक होगी। छोटे घरों में सीढ़ियाँ संकरी हैं तथा पायदान ऊँचे हैं। घरों की खिड़कियों तथा दरवाजों पर छज्जों के कोई सबूत नहीं मिले। ऐसा लगता है कि इस नगर में नहर नहीं थी। हो सकता है कि बारिश खूब होती हो, क्योंकि कुओं का तो कोई अभाव नहीं था।

(4) राजस्थान संबंधी सूचना-मुअनजो-दड़ो की गलियों और घरों को देखकर लेखक को राजस्थान के घरों की याद आ जाती है। क्योंकि यहाँ पर भी ज्वार, बाजरे की खेती होती थी। बेर भी होते थे। जैसलमेर का कुलधरा गाँव मुअनजो-दड़ो से मिलता-जुलता है। इस गाँव में लोगों का राजा से झगड़ा हो गया। इसलिए वे सभी गाँव खाली करके चले गए। पीले पत्थरों से बना यह सुंदर गाँव आज भी अपने बाशिंदों की राह देख रहा है। राजस्थान के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, गुजरात में भी कुएँ, कुंड, गली-कूचे तथा कच्ची-पक्की ईंटों के कई घर वैसे ही मिलते हैं जैसे हज़ारों साल पहले थे। जॉन मार्शल ने मुअनजो-दड़ो पर तीन खंडों का एक विशद प्रबंध प्रकाशित करवाया है जिसमें सिंधु घाटी में सौ वर्ष पहले तथा खुदाई में मिली लोहे के पहियों वाली गाड़ी के चित्र दिखाए हैं। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता की परंपरा निरंतर आगे चलती रहती है। गाड़ी में जो कमानी या आरे वाले पहिए लगे हैं, वे परिवर्ती हैं। अब तो किसान बैलगाड़ियों में जीप से उतरे पहिए भी लगाने लग गए हैं। ऊँटगाड़ी में तो हवाई जहाज से उतरे पहिए भी लगाए जाते हैं।

(5) मुअनजो-दड़ो का अजायबघर-मुअनजो-दड़ो भले ही आज खंडहर हैं परंतु यह सिंधु घाटी सभ्यता का अजायबघर कहा जा सकता है। यह किसी कस्बाई स्कूल के छोटे-से कमरे के समान है। परंतु यह अजायबघर छोटा-सा है और इसमें सामान भी कम है। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली हुई वस्तुओं का पंजीकरण भी किया गया था। उनकी संख्या पचास हजार से अधिक है। इसकी मुख्य वस्तुएँ दिल्ली, कराची, लाहौर और लंदन में हैं। परंतु यहाँ जो चीजें दिखाई गई हैं वे विकसित सिंधु घाटी की सभ्यता को दिखाने में सक्षम हैं। इन वस्तुओं में काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, चाक पर बने मिट्टी के बर्तन, वाद्य, चौपड़ की गोटियाँ, दीपक, माप-तोल के पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी, अन्य खिलौने, दो पाटों वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थर के मनकों वाले हार तथा पत्थर के औजार हैं। इस अजायबघर में अली नवाज़ नाम का व्यक्ति तैनात किया गया है जो बताता है कि पहले यहाँ सोने के आभूषण भी थे जो कि चोरी हो गए। अजायबघर को देखकर हैरानी की बात यह लगती है कि यहाँ कोई हथियार नहीं मिला। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ की सभ्यता में शक्ति के बल पर अनुशासन कायम नहीं किया जाता था। यहाँ पर कोई सेना भी नहीं थी। यह सभ्यता सांस्कृतिक तथा सामाजिक व्यवस्था पर टिकी थी। इसलिए यह अन्य सभी सभ्यताओं से भिन्न प्रतीत होती है।

(6) मुअनजो-दड़ो-हड़प्पा सभ्यता-इस संस्कृति में न कोई सुंदर राजमहल है, न मंदिर और न ही राजाओं और महंतों की समाधियाँ हैं। मूर्तिशिल्प बड़े-छोटे आकार के हैं। राजा का मुकुट भी छोटे आकार का है। नावें भी छोटी हैं। लगता है कि उस काल में लोगों में लघता का विशेष महत्त्व था। मुअनजो-दडो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर रहा होगा। दृष्टि से समृद्ध प्रतीत होता है कि इसमें न भव्यता थी और न ही आडंबर। यहाँ से प्राप्त हुई लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी। इसलिए यहाँ की सभ्यता का समुचित ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता। सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में लेखक लिखता भी है-“सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज़्यादा था।

वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, ‘ मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति, पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध ज़ाहिर करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के मुताबिक सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है, जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।”

प्रस्तुत अजायबघर में ताँबे और काँसे की बहुत सारी सुइयाँ मिली हैं। काशीनाथ दीक्षित को सोने की तीन सुइयां मिलीं जिनमें से एक तो दो इंच लंबी थी। हो सकता है कि यह सुई काशीदेकारी के काम आती हो। खुदाई में मुअनजो-दड़ो के नाम से प्रसिद्ध जो दाड़ी वाले ‘नरेश’ की मूर्ति प्राप्त हुई है, उसके शरीर पर आकर्षक गुलकारी वाला दुशाला भी है। खुदाई में हाथी दाँत तथा ताँबे के सुए भी मिले हैं। विद्वान मानते हैं कि इनसे शायद दरियों की बुनाई की जाती थी। मुअनजो-दड़ो में सिंधु के पानी का निकास होने लगा है जिसके कारण मुअनजो-दड़ो की खुदाई का काम रोकना पड़ा है। पानी का रिसाव होने के कारण क्षार और दलदल की समस्याएँ सामने आ गई हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुअनजो-दड़ो की सभ्यता के खंडहरों को किस प्रकार बचाया जाए।

कठिन शब्दों के अर्थ

अतीत के दबे पाँव = प्राचीन काल के अवशेष। मुअनजो-दड़ो = पाकिस्तान के सिंधु प्रांत में स्थित एक पुरातात्त्विक स्थान जिसका अर्थ है-मुर्दो का टीला। हड़प्पा = पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का पुरातात्त्विक स्थान। परवर्ती = बाद का। परिपक्व दौर = समृद्धि का समय। ताम्र = ताँबा। उत्कृष्ट = सर्वश्रेष्ठ। व्यापक = विस्तृत। तदात = सरका। भाडे = बर्तन। साक्ष्य = प्रमाण। आबाद = बसा हुआ। टीले = मिट्टी के छोटे-छोटे उठे हुए स्थान। खूबी = विशेषता। आदम = अत्यधिक प्राचीन। सहसा = अचानक। सहम = भय। महसूस = अनुभव करना। इलहाम = अनुभूति। निर्देश = आज्ञा। अभियान = तीव्रता से काम करना। पर्यटक = यात्री। सर्पिल = टेढ़ी-मेढ़ी। पगडंडी = संकीर्ण रास्ता। नागर = नगर की सभ्यता। लैंडस्केप = पृथ्वी का दृश्य। आलम = संसार। बबूल = कीकर जैसे वृक्ष। वक्त = समय। निहारना = देखना। जेहन = दिमाग। ज्ञानशाला = विद्यालय (स्कूल)। कोठार = भंडार। अनुष्ठानिक = पर्व से संबंधित। महाकुंड = विशालकुंड। वास्तुकौशल = भवन निर्माण की कुशलता। अंदाजा = अनुमान। नगर-नियोजन = नगर-निर्माण की विधि। अनूठी = अनुपम । मिसाल = उदाहरण। मतलब = आशय। भाँपना = अनुमान लगाना। कमोबेश = थोड़ी-बहुत। अराजकता = अशांति। प्रतिमान = मानक। कामगार = मज़दूर (श्रमिक)। साक्षर = पढ़े-लिखे। इत्तर = भिन्न (अलग)। संपन्न = धनवान (पूँजीपति)। विहार = बौद्धों का आश्रम । सायास = प्रयत्नपूर्वक। धरोहर = उत्तराधिकार में प्राप्त। अनुष्ठान = आयोजन।

पाँत = पंक्ति। पार्श्व = पास या अगल-बगल। समरूप = समान। धूसर = मटमैला रंग। निकासी = निकालना। बंदोबस्त = प्रबंध। परिक्रमा = चक्कर लगाना। जगजाहिर = जिसका सबको पता हो। निर्मूल = बिना शंका के। साबित = प्रमाणित। बहुतायत = अधिकता। आयात = विदेशों से मँगवाना। निर्यात = विदेशों को भेजना। अवशेष = चिह्न। सटी = नजदीक। भग्न = टूटी-फूटी। हलका = क्षेत्र। वास्तुकला = भवन का निर्माण करने की कला। चेतन = मस्तिष्क का वह भाग जिसके सहयोग से मानव काम करता है। अवचेतन = मस्तिष्क का वह भाग, जिसमें भाव सुप्तावस्था में पड़े रहते हैं। मैल = गंदगी। बाशिदें = वासी (रहने वाले)। सरोकार = प्रयोजन (मतलब)। बेहतर = अच्छा। . मुताबिक = अनुसार। तकरीबन = लगभग। कायदा = नियम। याजक-नरेश = यज्ञ करने वाला राजा। शिल्प = कलाकारी। संग्रहालय = अजायबघर। ध्वस्त = टूटी-फूटी। चौकोर = चार भुजाओं वाला। अचरज = आश्चर्य। साज-सज्जा = सजावट। संकरी = तंग। प्रावधान = व्यवस्था। जानी-मानी = प्रसिद्ध। रोज़ = दिन। अंतराल = मध्य। अजनबी = अनजान व्यक्ति। चहलकदमी = टहलना। अनधिकार = अधिकार के बिना। अपराध बोध = गलती की अनुभूति। विशद प्रबंध = विशाल ग्रंथ। इज़हार = प्रकट करना। अहम = मुख्य। मेज़बान = यजमान। पंजीकृत = सूचीबद्ध। मृद्-भांड = मिट्टी के बर्तन। आईना = दर्पण (शीशा)। प्रदर्शित = दिखाई गई। ताकत = शक्ति। राजप्रसाद = राजमहल। समृद्ध = संपन्न। आडंबर = दिखावा। उत्कीर्ण = खोदी हुई। वजह = कारण। केशविन्यास = बालों की साज-सज्जा। सुघड़ = सुंदर बनी हुई। नरेश = कशीदाकारी। साक्ष्य = प्रमाण। हासिल करना = प्राप्त करना। क्षार = नमक।

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