Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव Important Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव
निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
अथवा
15वीं शताब्दी में भौगोलिक खोजों के कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
15वीं शताब्दी में यूरोपवासियों ने भौगोलिक खोजों का सिलसिला आरंभ किया। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
1. आर्थिक उद्देश्य (Economic Motives):
यूरोपवासियों को नई खोज यात्राएँ करने में आर्थिक उद्देश्यों की प्रमुख भूमिका थी। 1453 ई० में तुर्कों द्वारा कुंस्तुनतुनिया (Constantinople) पर अधिकार से यूरोपीय व्यापार को गहरा आघात लगा। इस संकट से निपटने के लिए नए प्रदेशों की खोज करना आवश्यक था। 15वीं शताब्दी में यूरोपवासियों की आर्थिक आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गई थीं।
नवोदित राष्ट्रीय राज्यों को अपनी सेना के लिए धन आवश्यकता थी। नए प्रदेशों की खोज करके यूरोपवासी अपने इन आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते थे। अत: वे नए प्रदेशों की खोज करने के लिए प्रेरित हुए।
2. नए आविष्कार (New Inventions):
14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी से संबंधित नए आविष्कारों ने नाविकों की समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया। 1380 ई० में कुतबनुमा (compass) भाव दिशासूचक यंत्र का आविष्कार हुआ। यह एक सर्वोच्च महत्त्व का आविष्कार था। इससे नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी प्राप्त होती थी। 16वीं शताब्दी में एस्ट्रोलेब (astrolab) का आविष्कार हुआ।
इस यंत्र से नाविकों को भूमध्य रेखा (equator) से दूरी मापने में सहायता मिली। इस काल में यूरोपियों ने अपने जहाजों में बहुत सुधार कर लिया था। ये जहाज़ पहले से अधिक हल्के, विशाल एवं तीव्र गति से चलने वाले थे। निस्संदेह इन नवीन आविष्कारों ने समुद्री यात्राएँ करने वालों को एक नई दिशा प्रदान की। प्रसिद्ध इतिहासकार थॉमस एफ० एक्स० नोबल के शब्दों में, “14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी में सहायक सिद्ध हुए अनेक नए आविष्कारों ने खुले समुद्र में यात्राओं को सुगम एवं अधिक पूर्वानुमानित बनाया।
3. टॉलेमी की ज्योग्राफी (Ptolemy’s Geography):
टॉलेमी की ज्योग्राफी ने नए प्रदेशों की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। टॉलेमी मिस्र का रहने वाला था। उसने दूसरी शताब्दी में ज्योग्राफी की रचना की। यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक 1477 ई० में मुद्रित हुई। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई। इससे यूरोपवासी नए प्रदेशों की खोज करने के लिए प्रेरित हुए।
4. मार्को पोलो की यात्राएँ (Travels of Marco Polo):
मार्को पोलो इटली के शहर वेनिस का एक महान् यात्री था। वह 1275 ई० में मंगोलों के महान् नेता कुबलई खाँ (Kublai Khan) के दरबार में पीकिंग (Peking) पहुँचा। कुबलई खाँ ने उसका बहुत सम्मान किया। मार्को पोलो 17 वर्षों तक कुबलई खाँ के दरबार में रहा। इस समय के दौरान वह सरकार के कुछ महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त हुआ।
वापसी के समय वह जापान, बर्मा, भारत एवं थाइलैंड होता हुआ वापस इटली पहुँचा। यहाँ पहुँच कर उसने मार्को पोलो की यात्राएँ (Travels of Marco Polo) नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। इसमें उसने पूर्वी देशों के महान् वैभव पर विस्तृत प्रकाश डाला था। उसके विवरण में यूरोपवासियों में इन देशों की समुद्री यात्रा करने की एक होड़-सी आरंभ हो गई।
5. धार्मिक उद्देश्य (Religious Motives):
ईसाई धर्म सदैव से एक प्रचारक धर्म रहा था। ईसाई मिशनरियों ने अपने अथक प्रयासों से मध्यकाल तक संपूर्ण यूरोप में ईसाई धर्म का प्रसार कर दिया था। इसमें उन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी। इसके पश्चात् उन्होंने अपना ध्यान एशिया एवं अफ्रीका की तरफ किया। वे यहाँ के असभ्य लोगों को सभ्य बनाना चाहते थे। इन देशों में ईसाई धर्म का प्रसार करने के लिए बड़ी संख्या में उनके मिशनरी तैयार थे। अतः यूरोपीय व्यापारियों के साथ-साथ ईसाई मिशनरी भी इन देशों में गए। वास्तव में ईसाई धर्म के प्रसार की भावना ने नए देशों की समुद्री खोज को एक नया प्रोत्साहन दिया।
6. आईबेरियाई प्रायद्वीप का योगदान (Contribution of Iberian Peninsula):
15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप भाव स्पेन एवं पुर्तगाल के देशों ने समुद्री खोज यात्राओं में बहुमूल्य योगदान दिया। अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने समुद्री खोजों में अन्य देशों के मुकाबले अग्रणी भूमिका क्यों निभाई ? इसके अनेक कारण थे। प्रथम, इस समय स्पेन एवं पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था अच्छी थी जबकि यूरोप की अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर से गुजर रही थी।
दूसरा, स्पेन एवं पुर्तगाल के शासक सोना एवं धन दौलत के भंडार एकत्र कर अपने यश एवं सम्मान में वृद्धि करना चाहते थे। तीसरा, वे नई दुनिया में ईसाई धर्म का प्रसार करना चाहते थे। चौथा, धर्मयुद्धों (crusades) के कारण इन देशों की एशिया के साथ व्यापार करने में रुचि बढ़ गई। इन युद्धों के दौरान उन्हें पता चला कि इन देशों के साथ व्यापार करके वे भारी मुनाफा कमा सकते हैं। पाँचवां इन देशों के शासकों ने समुद्री खोज पर जाने वाले नाविकों को प्रत्येक संभव सहायता प्रदान की।
7. पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी का योगदान (Contribution of Prince Henry of Portugal):
पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी (1394-1460 ई०) ने समुद्री खोज यात्राओं को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अत: वह इतिहास में हेनरी दि नेवीगेटर (Henry, the Navigator) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने खोज यात्राओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सारगेस (Sargess) में एक नाविक स्कूल खोला। इस स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के लिए विश्व के अनेक देशों से नाविक, वैज्ञानिक एवं मानचित्र बनाने वाले आए।
इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यहाँ भावी समुद्री खोज यात्राओं की योजना तैयार की जाती थी। यहाँ लंबी दूरी की समुद्री यात्राएँ करने के लिए सुदृढ़ नावों का निर्माण किया गया जिन्हें कैरेवल (caravels) कहा जाता था। नाविकों की सहायता के लिए नए भौगोलिक मानचित्र तैयार किए गए। राजकुमार हेनरी ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से पश्चिमी अफ्रीका के शासकों के साथ संबंध स्थापित किए तथा बोजाडोर (Bojador) में अपना व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।
प्रसिद्ध इतिहासकार बी० वी० राव का यह कहना ठीक है कि, “यद्यपि वह (हेनरी) व्यावसायिक तौर पर एक नाविक नहीं था किंतु उसने भौगोलिक खोजों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 2.
क्रिस्टोफर कोलंबस कौन था ? उसकी बहामा द्वीप यात्रा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रिस्टोफर कोलंबस ने नई दुनिया (New World) की खोज में सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान दिया। उसका जन्म 1451 ई० में इटली के प्रसिद्ध शहर जेनेवा (Genoa) में हआ। जेनेवा इटली की एक प्रसिद्ध बंदरगाह थी। अतः यहाँ जहाज़ों का आना-जाना लगा रहता था। अतः कोलंबस के मन में बचपन से ही समुद्री यात्रा करने एवं नाम कमाने की गहरी इच्छा थी।
वह फ्रांसीसी दार्शनिक कार्डिनल पिएर डिऐली द्वारा 1410 ई० में खगोलशास्त्र (Astronomy) एवं भूगोल (Geography) पर लिखी प्रसिद्ध रचना इमगो मुंडी (Imago Mundi) से बहुत प्रभावित हुआ। अतः उसने पूर्व (the Indies) की यात्रा करने का निर्णय किया।
कोलंबस 3 अगस्त, 1492 ई० को स्पेन की एक बंदरगाह पालोस (Palos) से यात्रा के लिए रवाना हुआ। इस समय उसके पास तीन जहाजों-सांता मारिया (Santa Maria), पिंटा (Pinta) तथा नीना (Nina) का एक छोटा-सा बेड़ा था। इनमें कुल 90 नाविक सवार थे। कोलंबस स्वयं सांता मारिया की कमान कर रहा था। इसमें कुल 40 नाविक थे। यह यात्रा काफी लंबी हो गई। समुद्र एवं आकाश के अतिरिक्त कुछ अन्य नज़र नहीं आता था। उनकी खाद्य सामग्री भी कम होने लगी। इससे नाविकों में बेचैनी फैल गई।
वे कोलंबस से तुरंत वापस चलने की माँग करने लगे। सहसा उन्हें 7 अक्तूबर, 1492 ई० को समुद्र के ऊपर कुछ पक्षी उड़ते दिखाई दिए। इससे उनका धैर्य बढ़ गया। उन्हें यह विश्वास हो गया कि उनका बेड़ा किसी भूमि के निकट पहुँचने वाला है। अंतत: उन्हें 12 अक्तूबर, 1492 ई० को भूमि दिखाई दी। इससे उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा।
कोलंबस जिस स्थान पर पहुँचा उसने उसे इंडीज (भारत एवं भारत के पूर्व में स्थित देश) समझा। अतः उसने वहाँ के निवासियों को रेड इंडियन्स (Red Indians) कहा। वास्तव में वह बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि (Guanahani) नामक स्थान पर पहुंचा था। जब कोलंबस एवं उसके साथी वहाँ पहुँचे तो वहाँ रहने वाले अरावाक (The Arawaks) लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया।
अरावाक लोग इन अपरिचित लोगों को देखकर एक-दूसरे को आश्चर्य से कह रहे थे कि देखो ये लोग स्वर्गलोक से यहाँ आए हैं। इन लोगों ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया। कोलंबस उनकी उदारता से बहुत प्रभावित हुआ। कोलंबस ने उनके संबंध में लिखा है कि, “वे बहुत उदार हैं तथा वे बुराई को नहीं जानते। वे किसी दूसरे की हत्या नहीं करते तथा न ही चोरी करते हैं तथा उनके पास हथियार भी नहीं हैं।”
कोलंबस लगभग तीन महीने गुआनाहानि में रहा। उसने इस द्वीप में स्पेन का झंडा गाड़ दिया। उसने इस द्वीप का नया नाम सैन सैल्वाडोर (San Salvador) रख दिया। उसने स्वयं को वहाँ का वाइसराय (Viceroy) घोषित कर दिया। वाइसराय का अभिप्राय है राजा का प्रतिनिधि। कोलंबस ने इस समय के दौरान क्यूबा (Cuba) एवं हिस्पानिओला (Hispaniola) की खोज की। कोलंबस ने इन स्थानों की खोजें वहाँ से सोना प्राप्त करने के उद्देश्य से की थी किंतु इसमें उसे कोई विशेष सफलता प्राप्त न हुई।
इस समय के दौरान कोलंबस को कैरिब (Carib) नाम के एक खूखार कबीले का सामना करना पड़ा। अत: कोलंबस के साथी नाविकों ने उसे वापस स्पेन चलने के लिए बाध्य किया। कोलंबस ने 4 जनवरी, 1493 ई० को स्पेन की वापसी यात्रा आरंभ की। इस समय उनका सांता मारिया नामक जहाज़ नष्ट हो गया था तथा बाकी दो अन्य जहाजों को दीमक लगनी आरंभ हो गई थी।
कोलंबस एवं उसके साथी 15 मार्च, 1493 ई० को स्पेन की बंदरगाह पालोस वापस पहुँचने में सफल रहे। उनका स्पेन के शासक फर्जीनेंड द्वारा भव्य स्वागत किया गया। कोलंबस ने भी उसे गुआनाहानि से प्राप्त कुछ बहमल्य उपहार भेंट किए। राजा इससे बहत प्रसन्न हआ। अतः उसने कोलंबस को एडमिरल ऑफ दी ओशन सी (Admiral of the Ocean Sea) नामक उपाधि तथा इंडीज का वाइसराय होने की घोषणा की। इसके पश्चात् कोलंबस ने 1493-96 ई०, 1498-1500 ई० तथा 1502-04 ई० में इंडीज की तीन बार और यात्राएँ कीं।
इस समय के दौरान कोलंबस ने वहाँ सख्ती से शासन किया। उसने वहाँ के लोगों को भारी कर देने तथा सोना देने के लिए बाध्य किया। इंकार करने पर लोगों पर घोर अत्याचार किए जाने लगे। इस कारण वहाँ के लोगों में स्पेनी शासन रोष फैलने लगा। जब यह समाचार स्पेन के शासक फर्जीनेंड को प्राप्त हआ तो उसने कोलंबस को जंजीरों में जकड़ कर दरबार में प्रस्तुत करने को कहा। उसके आदेश की पालना करते हुए कोलंबस को 7 नवंबर, 1504 ई० को दरबार में प्रस्तुत किया गया।
कोलंबस द्वारा क्षमा याचना माँगने पर रानी ईसाबेला ने उसे क्षमा कर दिया किंतु उससे वाइसराय की पदवी छीन ली गई। कोलंबस की 20 मई, 1506 ई० को अत्यंत निराशा की स्थिति में स्पेन के शहर वल्लाडोलिड (Valladolid) में मृत्यु हो गई। प्रसिद्ध इतिहासकार माईकल एच० हार्ट के अनुसार, “उसकी खोज ने नई दुनिया में खोजों एवं उपनिवेशों के युग का आरंभ करके इतिहास को एक नया मोड़ दिया। 1499 ई० में इटली के एक भूगोलवेत्ता अमेरिगो वेस्पुसी (Amerigo Vespucci) ने दक्षिण अमरीका की यात्रा की।
उसने अपनी यात्रा का विस्तृत वर्णन किया तथा दक्षिण अमरीका को नयी दुनिया (New World) के नाम से संबोधित किया। 1507 ई० में एक जर्मन प्रकाशक ने अमेरिगो वेस्पुसी के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए नई दुनिया को अमरीका का नाम दिया।
प्रश्न 3.
हरनेडो कोटेंस कौन था? उसने मैक्सिको पर किस प्रकार विजय प्राप्त की?
उत्तर:
हरनेडो अथवा हरनन कोर्टेस जिसने मैक्सिको पर महत्त्वपूर्ण विजय प्राप्त की थी स्पेन का एक महत्त्वपूर्ण विजेता था। उसे तथा उसके सैनिकों को जिन्होंने मैक्सिको पर आक्रमण किया था इतिहास में कोक्विस्टोडोर (Conquistadores) के नाम से जाना जाता है। हरनेंडो कोर्टस का जन्म 1485 ई० में स्पेन के शहर मेडलिन (Medellin) में हुआ था। 1504 ई० में वह अपना भाग्य आजमाने क्यूबा के गवर्नर की सेना में भर्ती हो गया। यहाँ उसने क्यूबा के गवर्नर के आदेश पर अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया। इनमें कोर्टेस ने अपनी बहादुरी के अनेक प्रमाण दिए।
इससे प्रभावित होकर क्यूबा के गवर्नर ने 1519 ई० में कोर्टेस को मैक्सिको पर आक्रमण करने का आदेश दिया। हरनेडो कोर्टेस फरवरी, 1519 ई० में 600 स्पेनी सैनिकों, 11 जहाजों एवं कुछ तोपों के साथ क्यूबा से रवाना हुआ। शीघ्र ही वे मैक्सिको की एक बंदरगाह वेराक्रुज (Veracruz) पहुँचे। यहाँ उसे डोना मैरीना (Dona Marina) का महत्त्वपूर्ण सहयोग मिला। वह स्पेनिश एवं मैक्सिकन भाषाओं में बहुत प्रवीण थी। उसके सहयोग के बिना कोर्टेस के लिए वहाँ के लोगों की भाषा समझना अत्यंत कठिन था।
डोना मैरीना ने इस कार्य को सरल कर दिया। हरनेंडो कोर्टस का कहना था कि, “परमात्मा के पश्चात् हम न्यू स्पेन की विजय के लिए डोना मैरीना के ऋणी हैं।” डोना मैरीना द्वारा अपने देश के साथ किए गए विश्वासघात के लिए मैक्सिकन लोग उसे मालिंच (Malinche) अथवा विश्वासघातिनी कहते थे। डोना मैरीना के संबंध में हमें महत्त्वपूर्ण जानकारी बर्नाल डियाज़ डेल कैस्टिलो (Bernal Diaz del Castillo) की प्रसिद्ध रचना टु हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको (True History of Maxico) से प्राप्त होती है। हरनेंडो कोर्टेस ने यह जानकारी भी प्राप्त की कि अनेक कबीलों के लोगों में एजटेक शासक मोंटेजुमा द्वितीय (1502-1520 ई०) के घोर अत्याचारों के कारण भारी रोष है। ये लोग उसके शासन का अंत देखना चाहते थे।
इस स्थिति का लाभ उठाते हुए कोर्टेस ने सर्वप्रथम वहाँ के टोटोनेक (Totonacs) लोगों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। इसे फौरन स्वीकार कर लिया गया क्योंकि टोटोनेक एज़टेक शासन से मुक्त होना चाहते थे। स्पेनी सैनिकों ने सर्वप्रथम लैक्सकलान (Tlaxcalans) नामक एक खूखार कबीले पर आक्रमण कर दिया। इस कबीले ने स्पेनी सैनिकों से कड़ा मुकाबला किया परंतु अंततः उनकी पराजय हुई। इसके पश्चात् ट्लैक्सकलान स्पेनी सैनिकों के साथ सम्मिलित हो गए। इससे कोर्सेस का साहस बढ़ गया। इस समय तक एज़टेक शासक मोंटेजुमा द्वितीय ने कोर्टेस की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
ट्लैक्सकलानों पर उसकी विजय के पश्चात् मोंटेजुमा द्वितीय ने अपने एक अधिकारी के हाथों अनेक बहुमूल्य उपहार कोर्टेस को इस उद्देश्य के साथ भेजे कि वह उनके साम्राज्य से वापस चला जाए। कोर्टेस ने जब इन उपहारों को देखा तो उसकी अधिक धन प्राप्त करने की लालसा बढ़ गई। इस अधिकारी ने जब वापस जाकर मोंटेजुमा द्वितीय को स्पेनवासियों की आक्रमण क्षमता, उनके बारूद एवं घोड़े के प्रयोग के बारे में बताया तो वह घबरा गया।
कोर्टेस एवं उसके सैनिकों ने 8 नवंबर, 1519 ई० को एजटेक की राजधानी टेनोक्टिटलान (Tenochtitlan) पर आक्रमण कर दिया। यहाँ तक वे बिना किसी विरोध के पहुंच गए थे। यहाँ वे राजधानी टेनोक्टिटलान की भव्यता को देखकर स्तब्ध रह गए। उन्हें लगा जैसा कि वे कोई स्वप्न देख रहे हों। यहाँ मोंटेजुमा द्वितीय ने कोर्टेस को देवता का अवतार समझ उसका भव्य स्वागत किया। शीघ्र ही कोर्टेस ने मोंटेजुमा द्वितीय को बिना किसी कारण बंदी बना लिया। वास्तव में उसके बंदी बनाए जाने से ही कोर्टेस ने मैक्सिको पर लगभग विजय प्राप्त कर ली थी।
इसी समय हरनेडो कोर्टेस को क्यूबा वापस लौटना पड़ा। अतः उसने अपने सहायक ऐल्वारैडो (Alvarado) को मैक्सिको का प्रशासन सौंपा। स्पेनी शासन बहुत अत्याचारी प्रमाणित हुआ। सोने की निरंतर माँग के कारण वहाँ के लोगों ने विद्रोह कर दिया। अतः ऐल्वारैडो ने हुइजिलपोक्टली (Huizilpochtli) के वसंतोत्सव (spring festival) के दौरान हत्याकांड का आदेश दे दिया। इसने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया।
अतः स्थिति से निपटने के लिए कोर्टेस 25 जून, 1520 ई० को वापस लौटा। पर लोगों में स्पेनी शासन के विरुद्ध बहुत रोष था। उन्होंने कोर्टेस के लिए अनेक बाधाएँ उत्पन्न कर दी। सड़क मार्ग बंद कर दिए गए। पुलों को तोड़ दिया गया। जलमार्गों को काट दिया गया। स्पेनियों को भोजन की घोर कमी का भी सामना करना पड़ा। विद्रोहियों ने अथवा स्पेनी सैनिकों ने 29 जून, 1520 ई० को मोंटेजुमा द्वितीय को मौत के घाट उतार दिया। इसके बावजूद एज़टेकों एवं स्पेनियों में लड़ाई जारी रही। 30 जून, 1520 ई० को 600 स्पेनी एवं उतने ही एज़टेक लोग मारे गए।
अतः हत्याकांड की इस भयंकर रात को इतिहास में आँसू भरी रात (Night of Tears) के नाम से जाना जाता है। अंततः कोर्टेस ने 15 अगस्त, 1521 ई० को एज़टेकों को पराजित कर उनके साम्राज्य का अंत कर दिया। इस प्रकार हरनेंडो कोर्टेस ने दो वर्षों के भीतर ही एजटेक साम्राज्य का अंत कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० एम० फारेगर के अनुसार, “दो वर्षों के भीतर ही कोर्टेस एवं उसकी सेना ने एजटेक साम्राज्य को नष्ट कर दिया। यह एक ऐसी शानदार सफलता थी जिसकी विजयों के इतिहास में कोई अन्य उदाहरण नहीं है।’
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर कब्जा करने के पश्चात् भारी मात्रा में स्पेन के शासक चाल्र्स पँचम (Charles V) को सोना एवं बहुमूल्य आभूषण भेजे। इससे प्रसन्न होकर चार्ल्स पँचम ने हरनेंडो कोर्टेस को अनेक सम्मानों से विभूषित किया तथा उसे 1522 ई० में न्यू स्पेन (मैक्सिको का नाम अब परिवर्तित करके न्यू स्पेन रख दिया गया था।) का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल (Governor and Captain-General) बनाया गया।
कोर्टेस ने अपने शासनकाल के दौरान न्यू स्पेन में नए नगरों का निर्माण किया। उसने वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। कोर्टेस के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसके विरोधियों ने चार्ल्स पँचम के कान भरे। अत: चार्ल्स पँचम ने कोर्टेस की शक्तियों में कुछ कमी कर दी। इससे कोर्टेस को बहुत निराशा हुई। अतः कोर्टेस 1541 ई० में वापस स्पेन आ गया। उसकी 2 दिसंबर, 1547 ई० को सेविली (Seville) में मृत्यु हो गई। निस्संदेह हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको में स्पेनी शासन स्थापित करने में बहुमूल्य योगदान दिया।
प्रश्न 4.
फ्रांसिस्को पिज़ारो कौन था? उसने इंका साम्राज्य पर किस प्रकार विजय प्राप्त की ?
उत्तर:
फ्राँसिस्को पिज़ारो पेरू (Peru) पर अधिकार करने वाला स्पेन का एक अन्य प्रसिद्ध विजेता था। उसका जन्म 1478 ई० में स्पेन के शहर ट्रजिलो (Trujillo) में हुआ था। वह एक अत्यंत गरीब परिवार से संबंधित था। अत: वह अनपढ़ रहा। वह 1502 ई० में हिस्पानिओला (Hispaniola) में अपना भाग्य आजमाने आ गया था। यहाँ वह सेना में भर्ती हो गया। 1513 ई० में वह प्रसिद्ध नाविक बालबोआ (Balboa) के साथ यात्रा पर गया जिसने प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) की खोज की। इस यात्रा से पिज़ारो बहुत प्रेरित हुआ।
शीघ्र ही उसे इंका राज्य के बारे में यह जानकारी मिली कि यह एक सोने एवं चाँदी का देश (El-do-rado) है। अत: वह इस देश पर अधिकार करने के स्वप्न देखने लगा। 1521 ई० में हरनेंडो कोर्टेस द्वारा मैक्सिको की विजय ने उसमें नव-स्फूर्ति का संचार किया। 1528 ई० में वह पेरू पहुँचने में सफल हो गया।फ्रांसिस्को पिजारो स्पेन की वापसी यात्रा के समय वहाँ से इंका कारीगरों द्वारा बनाए गए सोने के अत्यंत सुंदर कुछ मर्तबान अपने साथ ले आया।
वह स्पेन के शासक चार्ल्स पँचम (Charles V) को 1529 ई० में मिलने में सफल हुआ। उसने अपनी भेंट के दौरान चार्ल्स पँचम को इंका साम्राज्य में उपलब्ध बहुमूल्य दौलत के बारे में जानकारी दी। इससे उसके मन में इस अपार दौलत को प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हुई। अतः उसने पिज़ारो को यह वचन दिया कि यदि वह इंका साम्राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल हो जाता है तो उसे वहाँ का गवर्नर बना दिया जाएगा।
यह वचन पाकर पिज़ारो बहुत प्रसन्न हुआ। अतः वह इंका साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए किसी सुनहरी अवसर की तलाश करने लगा। 1532 ई० में इंका साम्राज्य में सिंहासन प्राप्त करने के उद्देश्य से दो भाइयों अताहुआल्पा (Atahualpa) एवं हुआस्कर (Huascar) के मध्य गृह युद्ध आरंभ हो गया। अत: यह सुनहरी अवसर देखकर पिज़ारो ने इंका साम्राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उसने केवल 168 सैनिकों एवं 62 घोड़ों के साथ इंका साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।
इस समय तक अताहुआल्पा ने अपने भाई को पराजित कर सिंहासन प्राप्त कर लिया था। पिज़ारो 15 नवंबर, 1532 ई० को अपने सैनिकों के साथ इंका साम्राज्य के शहर काजामारका (Cajamarca) पहुँचा। यहाँ अताहुआल्पा अपने 40,000 सैनिकों के साथ मौजूद था। इतने सैनिकों का मुकाबला करना पिज़ारो के बस की बात नहीं थी। अतः उसने एक चाल द्वारा अताहुआल्पा को 16 नवंबर, 1532 ई० को बंदी बना लिया। अताहुआल्पा ने अपनी मुक्ति के लिए पिज़ारो को एक कमरा भर सोने की फिरौती देने का प्रस्ताव किया।
उस समय तक के इतिहास में इतनी बड़ी फिरौती कभी नहीं दी गई थी। इसके बावजूद पिज़ारो ने 29 अगस्त, 1533 ई० को राजा का वध करवा दिया। अताहुआल्पा के वध के कारण इंका साम्राज्य के सैनिकों में घोर निराशा फैल गई थी। अतः पिज़ारो एवं उसके सैनिकों ने नवंबर 1533 ई० में सुगमता से इंका साम्राज्य की राजधानी कुजको (Cuzco) पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह यह पिज़ारो की एक महान् सफलता थी। दो सौ से भी कम सैनिकों के साथ 6 लाख लोगों के साम्राज्य पर अधिकार करने की कोई अन्य उदाहरण इतिहास में नहीं मिलती।
पिज़ारो के सैनिकों ने कुज़को पर अधिकार करने के पश्चात् वहाँ भयंकर लूटमार की। पिज़ारो ने 1535 ई० में लिमा (Lima) को पेरू की नई राजधानी बनाया। अपने शासन के दौरान पिज़ारो ने इंका साम्राज्य के लोगों पर घोर अत्याचार किए। उसने बड़ी संख्या में लोगों को गुलाम बना लिया तथा उन्हें अधिक-से-अधिक धन देने के लिए विवश किया। अत: 1534 ई० में वहाँ के लोगों ने स्पेनी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह दो वर्षों तक जारी रहा। 26 जून, 1541 ई० को लिमा में पिजारो के एक विरोधी गुट ने उसका वध कर दिया। इस प्रकार स्पेन के इस महान् विजेता का दुःखद अंत हुआ।
प्रश्न 5.
16वीं शताब्दी में ब्राजील के पुर्तगाली प्रशासन के संबंध में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्राज़ील पर पुर्तगालियों का कब्जा संयोगवश ही हुआ। पुर्तगाली शासक मनोल (Manoel) के आदेश पर पेड्रो अल्वारिस कैनाल (Pedro Alvares Cabral) 9 मार्च, 1500 ई० को 13 जहाजों के एक बेड़े के साथ पुर्तगाल की बंदरगाह तागुस (Tagus) से भारत के लिए रवाना हुआ। समुद्री तूफानों से बचने के लिए वह अपने जहाजों के साथ 22 अप्रैल, 1500 ई० को ब्राजील के तट पर पहुँचा। उसके वहाँ पहुँचने पर वहाँ के मूल निवासियों (natives) ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया। कैब्राल ब्राज़ील में एक सप्ताह रुकने के पश्चात् पूर्व की ओर चल दिया।
उसने ब्राजील की खोज संबंधी पुर्तगाली शासक को अवगत किया। आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राजील की ओर कम ध्यान दिया। इसका प्रमुख कारण यह था कि वहाँ सोना अथवा चाँदी मिलने की संभावना बहुत कम थी। वहाँ केवल ब्राजीलवुड (Brazilwood) नामक वृक्ष पाया जाता था। इससे लाल रंजक (red dye) तैयार की जाती थी। ब्राजीलवुड के नाम के आधार पर ही यूरोपवासियों ने इस प्रदेश का नाम ब्राजील रखा।
पुर्तगाली शासक ने आरंभिक 30 वर्षों में ब्राजील में व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमति बदले में वे सरकार को कर देते थे। ब्राजील के मूल निवासी इन व्यापारियों को लोहे के चाकू, छरियों एवं आरियों के बदले में जिन्हें वे अदभत मानते थे. पेड़ों को काटने तथा उन्हें जहाजों तक ले जाने के लिए तैयार हो गए। इसके अतिरिक्त वे इनके बदले में बहुत से बंदर, मुर्गियाँ, तोते, शहद तथा अन्य वस्तुएँ देने के लिए तैयार रहते थे। ब्राजील के मूल निवासी इस बात को समझने में असमर्थ रहे कि पुर्तगाली एवं फ्रांसीसी लोग इस लकड़ी की तलाश में इतनी दूर से क्यों आते हैं तथा घोर परेशानियाँ क्यों झेलते हैं।
पुर्तगालियों के ब्राजील में बढ़ते हुए व्यापार के कारण फ्रांसीसी व्यापारी उनसे ईर्ष्या करने लगे। अत: वे भी ब्राजील पहुंच गए। अतः पुर्तगाली एवं फ्रांसीसी व्यापारियों के मध्य अनेक भयंकर लड़ाइयाँ हुई। इन लड़ाइयों में अंततः पुर्तगालियों की विजय हुई। 1533 ई० में पुर्तगाली शासक जॉन तृतीय (John II) ने ब्राज़ील को 15 आनुवंशिक कप्तानियों (hereditary captaincies) में बाँट दिया। प्रत्येक कप्तानी का प्रमुख डोनाटेरियस (Donatarius) कहलाता था।
उसे विशाल शक्तियाँ प्रदान की गई थीं। उसे लोगों पर कर लगाने तथा उन्हें भूमि अनुदान देने का अधिकार दिया गया था। वे स्थानीय लोगों को गुलाम भी बना सकते थे। उनका मूल निवासियों के प्रति व्यवहार बहुत क्रूर था। 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने ब्राजील में व्यापक पैमाने पर गन्ना उपजाने एवं वहाँ चीनी मिलें चलाने का कार्य शुरू किया। इस चीनी की यूरोप के बाजारों में बहुत माँग थी। अत: उन्हें इस व्यापार से बहुत लाभ होने लगा। पुर्तगाली इन चीनी मिलों में काम करने के लिए स्थानीय लोगों पर निर्भर थे।
इन लोगों की चीनी मिलों में काम करने की कोई दिलचस्पी न थी क्योंकि यह काम बहुत नीरस था। अत: पुर्तगालियों ने इन लोगों को गुलाम बना कर वहाँ काम करने के लिए बाध्य किया। पर्तगालियों के घोर अत्याचार से बचने के लिए इन लोगों ने अपने गाँव खाली कर दिए तथा जंगलों में जाकर शरण ली। अत: बहुत कम लोग गाँवों में बचे थे। अत: मिल मालिकों को अफ्रीका से गुलाम मंगवाने के लिए बाध्य होना पडा। स्पेनी उपनिवेशों-एजटेक साम्राज्य एवं इंका साम्राज्य-में स्थिति इससे बिल्कुल विपरीत थी। वहाँ स्थानीय लोगों ने खेतों एवं खानों में काम करने का विरोध नहीं किया।
अतः स्पेनियों को वहाँ गुलामों की आवश्यकता नहीं पड़ी। ब्राजील में डोनाटेरियसों के क्रूर व्यवहार के कारण वहाँ के लोगों में पुर्तगाली प्रशासन के विरुद्ध विरोध बढ़ता जा रहा था। अतः 1549 ई० में पुर्तगाली शासक ने ब्राजील के शासन को सीधा अपने हाथों में लेने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से ब्राज़ील में एक गवर्नर-जनरल को नियुक्त किया गया। उसे अपने सभी कार्यों के लिए राजा के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। सैल्वाडोर (Salvador) को ब्राजील की राजधानी घोषित किया गया।
इस समय से जेसुइट पादरियों (Jesuit missionaries) ने ब्राज़ील जाना आरंभ कर दिया था। इन पादरियों ने दास प्रथा की कड़े शब्दों में आलोचना की। जेसुइट पादरी एंटोनियो वीइरा का कथन था, “जो भी आदमी दूसरों की स्वतंत्रता छीनता है और उस स्वतंत्रता को वापस लौटाने की क्षमता रखते हुए भी नहीं लौटाता, वह अवश्य ही महापाप का भागी होता है। इसके अतिरिक्त इन पादरियों ने वहाँ के मल निवासियों के साथ अच्छा बर्ताव किए जाने का पक्ष लिया। इन कारणों से यूरोपवासी इन जेसुइट पादरियों को पसंद नहीं करते थे। इन पादरियों ने ब्राज़ील में ईसाई धर्म का खूब प्रचार किया।
प्रश्न 6.
साम्राज्यवाद से क्या अभिप्राय है? साम्राज्यवाद के उत्थान के लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
साम्राज्यवाद से तात्पर्य उस तीव्र इच्छा से है जिसके कारण एक शक्तिशाली देश राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से पिछडे हए किसी दूसरे देश पर बलपूर्वक अधिकार जमाने का प्रयास करता है। इतिहास साक्षी है कि प्राचीनकाल से ही राजाओं की इच्छा दूसरे प्रदेशों पर कब्जा करने की रही है। साम्राज्यवाद शब्द विश्व में पहली बार 16वीं शताब्दी में छपा था।
19वीं शताब्दी में साम्राज्वाद को एक नया रूप सामने आया। इस नवीन साम्राज्यवाद के पीछे राजनीति भावना की अपेक्षा आर्थिक भावना अधिक प्रबल थी। साम्राज्यवादी देश उनके नियंत्रण में आए देशों का खूब शोषण करते थे। साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने में पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस एवं जापान ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में सामाज्यवाद के प्रसार के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
1. कच्चे माल की आवश्यकता (Necessity for Raw Materials):
औद्योगीकरण के अधीन यूरोपियन देशों में बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना हुई। इन उद्योगों को चलाने हेतु कच्चे माल की अत्यधिक मात्रा में आवश्यकता थी। हर प्रकार का कच्चा माल देश के अंदर मिलना संभव न था। इसलिए यूरोपीय लोगों ने उन देशों के साथ मेल जोल बढ़ाना शुरू कर दिया था, जहां से उन्हें कच्चा माल अधिक मात्रा में मिल सकता था।
अधिक लाभ कमाने के लिए वे इन देशों से कच्चा माल काफ़ी सस्ते मूल्य पर खरीदते थे। आरंभ में इन यूरोपीय देशों के लोग व्यापारियों के रूप में एशिया तथा अफ्रीका के अनेक भागों में गए। परंतु बाद में उनकी कमजोर राजनैतिक स्थिति और पिछड़ेपन का लाभ उठा कर उन देशों पर अपना अधिकार कर लिया। इन स्थानों पर अधिकार करने हेतु इन देशों में परस्पर होड़ लग गई। इस प्रकार कच्चे माल की आवश्यकता ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया।
2. नई मंडियों की खोज (The Search for New Markets):
यूरोप के देशों में औद्योगिक क्रांति के आने से बहुत-से नए और बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई। इन कारखानों में पहले से कहीं अधिक माल तैयार होने लगा। यह माल उस देश की आवश्यकताओं से कहीं अधिक होता था। अधिक लाभ कमाने के लिए और देश में मूल्य नियंत्रण रखने के लिए, इस माल को विदेशों में बेचना बहुत आवश्यक था।
इस माल को वे यूरोप के देशों में नहीं बेच सकते थे क्योंकि इनमें से बहुत-से देशों ने संरक्षण नीति को अपनाया हुआ था। इसके अधीन उन्होंने कानून पास करके विदेशों से तैयार माल खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसीलिए इन देशों ने अपना तैयार माल बेचने के लिए नई मंडियों की खोज शुरू कर दी। परिणामस्वरूप इन देशों ने एशिया तथा अफ्रीका से बहुत-से देशों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार साम्राज्यवाद की भावना को प्रोत्साहन मिला।
3. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population):
19वीं शताब्दी से यूरोप के कुछ बड़े देशों में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही थी। इन देशों में से इंग्लैंड, जर्मनी तथा फ्राँस प्रमुख थे। इस बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण लोगों को रोजगार देने तथा उन्हें बसाने की समस्या ने जटिल रूप धारण कर लिया था। इस समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए बड़े राष्ट्रों ने अतिरिक्त जनसंख्या को अपने अधीन उपनिवेशों में भेजना आरंभ कर दिया। ये लोग या तो प्रमुख प्रशासनिक एवं सैनिक पदों पर लग गए अथवा उन्होंने वहाँ अपने उद्योग स्थापित कर लिए। धीरे धीरे उन्होंने इन उपनिवेशों में अपना प्रभाव बढ़ा लिया।
4.ईसाई प्रचारक (Christian Missionaries):
ईसाई प्रचारकों ने भी साम्राज्यवाद के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन प्रचारकों ने पिछड़े देशों में जा कर अपने धर्म का प्रचार किया। उन्होंने वहाँ के लोगों में फैले धार्मिक अंधविश्वासों को दूर करने का यत्न किया। इस प्रकार अनेक लोगों ने प्रभावित होकर उनके धर्म में शामिल होना आरंभ कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने धन का लालच देकर अनेक लोगों को अपने धर्म में शामिल करना शुरू कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे उनका प्रभाव एशियाई और अफ्रीकी देशों में बढ़ना शुरू हो गया।
5. उच्चतम सभ्यता में विश्वास (Faith in Higher Civilization):
19वीं शताब्दी में यूरोप के अधिकाँश देशों में एक नई राष्ट्रीय जागृति का विकास हुआ। इस विकास के फलस्वरूप यूरोप के प्रमुख देश अपनी सभ्यता पर अधिक गर्व करने लग पड़े। उनके अनुसार केवल उनकी सभ्यता ही विश्व में विकसित सभ्यता थी। उन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता का विकास अविकसित देशों में करना आवश्यक समझा। उनका कहना था कि “हीन जातियों को सभ्य बनाना श्रेष्ठ जातियों का कर्तव्य है।” अधिक-से-अधिक उपनिवेशों को अपने प्रभावाधीन लाने को वे अपने राष्ट्र के लिए सम्मान का चिह्न मानते थे।
6. अतिरिक्त पूँजी का लगाना (Investment of Extra Capital):
औद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप यूरोपीय देशों के लोग बहुत धनवान् हो गए। इनके पास पूँजी की मात्रा बढ़ गई, परंतु इस समय ब्याज की दर कम होने के कारण वे पूँजी को बैंकों में रखना नहीं चाहते थे। वे उपनिवेशों में इस अतिरिक्त पूँजी को उद्योग स्थापित करने में लगाना चाहते थे।
अत: उन्होंने अधीनस्थ उपनिवेशों में उद्योग स्थापित किए। वहाँ का कच्चा माल सस्ते दाम पर लेकर निर्मित माल अधिक दामों पर बेचना आरंभ कर दिया। इस प्रकार अपनी पूँजी से अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने हेतु उन्होंने अधीन उपनिवेशों में अधिक-से-अधिक कारखाने आदि स्थापित करके अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया।
7. देशों का पिछडापन (Backwardness of the Countries):
एशिया तथा अफ्रीका के अधिकाँश देश रोपियन देशों से अनेक पक्षों से पिछडे हए थे। उनके पास न तो आधनिक शस्त्र थे और न ही अच्छी प्रशिक्षित सेना। इसके अतिरिक्त उनमें राजनीतिक एकता का भी अभाव था। वे परस्पर लड़ते-झगड़ते रहते थे। इन कारणों से वे यूरोपियन देशों का मुकाबला न कर सके। अतः यूरोप के शक्तिशाली राष्ट्रों के लिए इन पिछड़े देशों पर अधिकार करना सुगम हो गया।
8. यातायात और संचार के साधन (Means of Transport and Communications) :
यातायात तथा संचार के साधनों के विकास ने साम्राज्यवाद की भावना को प्रोत्साहन दिया। भाप से चलने वाले जहाजों तथा रेलगाड़ियों ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा को सरल बना दिया। अब यूरोपीय देशों द्वारा उपनिवेशों के आंतरिक भागों से कच्चा माल प्राप्त करने तथा वहाँ अपने देश का बना माल बेचने का कार्य पहले से कहीं सुगम हो गया। तार के द्वारा दूर-दूर के स्थानों के साथ संपर्क संभव हो पाया। इस प्रकार यातायात और संचार के साधनों ने साम्राज्यवाद के विस्तार कार्य को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक सुगम बना दिया।
प्रश्न 7.
अरावाक कौन थे? उनके जीवन की मुख्य विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरावाकी कबीले के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे द्वीप समूहों जिन्हें आजकल बहामा (Bahamas) कहा जाता है एवं वृहत्तर एंटिलीज (Greater Antilles) में रहते थे। वे अरावाकी लुकायो (Arawakian Lucayos) के नाम से भी जाने जाते थे। वे बहुत शाँतिप्रिय लोग थे। वे लड़ने की अपेक्षा बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे। उन्हें कैरिब (Caribs) नामक एक खूखार कबीले ने दक्षिण अथवा लघु ऐंटिलीज (Lesser Antilles) से सहजता से खदेड़ दिया था।
अरावाकी लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे। उनका न तो कोई राजा था तथा न ही कोई सेना। चर्च का भी उनके जीवन पर कोई नियंत्रण न था। इस प्रकार वे एक स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते थे। उनमें बहु विवाह प्रथा प्रचलित थी। वे स्त्रियों का बहुत सम्मान करते थे। वे कुशल नौका निर्माता थे। वे नौकाओं में बैठकर खुले समुद्र की यात्रा करते थे एवं मछलियाँ पकड़ते थे। उनके प्रमुख शस्त्र तीर एवं कमान थे। इनके द्वारा वे पशुओं का शिकार करते थे। इनके अतिरिक्त वे खेती का धंधा भी करते थे।
उनकी प्रमुख फ़सलें मक्का (corn), मीठे आलू (sweet potatoes), कंद-मूल (tubers) एवं कसावा (cassava) थे। वे खेती का अधिक विस्तार नहीं कर सके क्योंकि उनके पास घने जंगलों की सफाई करने के लिए लोहे की कुल्हाड़ी नहीं थी। अरावाकी गाँवों में रहते थे। उनके घर साधारण प्रकार के थे। यद्यपि वे सोने के गहने पहनते थे किंतु वे यूरोपियों की तरह सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे। यदि कोई यूरोपीय उन्हें सोने के बदले काँच के मनके (glass beads) दे देता था तो वे बहुत प्रसन्नता से इन्हें स्वीकार करते थे।
इसका कारण यह था कि काँच का मनका उन्हें अधिक सुंदर लगता था। वे बुनाई की कला में बहुत निपुण थे। उनके हैमक (Hammock) नामक झूले को देखकर यूरोपीय भी दंग रह गए थे। अरावाकियों का धर्म में अटूट विश्वास था। वे जीववादी (Animists) थे। उनका विश्वास था कि निर्जीव वस्तुओं-पत्थर एवं पेड़ आदि में भी जीवन होता है। वे जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे। शमन लोग (Shamans) लोगों के कष्टों को दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाते थे।
अरावाकी बहुत उदार थे। 1492 ई० में जब क्रिस्टोफर कोलंबस (Cristopher Columbus) बहामा द्वीप में पहुँचा तो अरावाकियों ने उसका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। कोलंबस उनकी उदारता से बहुत प्रभावित हुआ था। इस बारे में उसने अपने रोज़नामचे (log-book) में लिखा, “वे इतने ज्यादा उदार एवं सरल स्वभाव के लोग हैं कि अपना सब कुछ देने को तैयार हैं। वे कभी इंकार नहीं करते; बल्कि वे सदा बाँटने को तत्पर रहते हैं और इतना अधिक प्यार जताते हैं कि मानो उनका प्यार भरा कलेजा ही बाहर निकल आएगा।’
स्पेनी प्रशासन के अधीन अरावाकियों पर घोर अत्याचार किए गए। उन्हें सोने एवं चाँदी की खानों में कार्य करने के लिए बाध्य किया गया। इस कारण अरावाकी उनके विरुद्ध हो गए। स्पेनियों ने उनका क्रूरता से दमन किया। इसके अतिरिक्त यूरोपियों के आगमन से बहामा में अनेक भयंकर बीमारियाँ फैल गईं। इनके चलते स्पेनियों के संपर्क में आने के बाद 25 वर्ष के अंदर ही अरावाकी सभ्यता लुप्त हो गई। निस्संदेह यह एक दुःखदायी अध्याय था।
प्रश्न 8.
एजटेक सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? इस सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
एजटेक एक युद्धप्रिय एवं यायावर कबीला था। वे उत्तर मैक्सिको के रहने वाले थे। वे भोजन की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। एजटेकों ने मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में 12वीं शताब्दी में बसने का निर्णय किया। मैक्सिको नाम एजटेकों के एक प्रमुख देवता मैक्सिली (Mexitli) के नाम पर पड़ा था।
1. एटेक साम्राज्य (Aztec Empire):
एजटेकों ने एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इसकी सीमाएं 2 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई थीं। 15वीं शताब्दी में एजटेकों की शक्ति अपने शिखर पर थी। उस समय एजटेक साम्राज्य में 38 प्राँत थे। प्रत्येक प्रांत का मुखिया एक सैनिक गवर्नर होता था। उसकी सहायता के लिए एक सैनिक दल होता था। ये सैनिक लोगों से कर वसूल करते थे तथा गैर-एजटेक लोगों पर घोर अत्याचार करते थे। जॉन ए० गैरटी एवं पीटर गे के अनुसार, “एजटेक खन के प्यासे लोग थे तथा उनका साम्राज्य एक राजनीतिक राज्य की अपेक्षा सैनिक राज्य अधिक था।”
2. सम्राट की स्थिति (Position of the Emperor):
समाज में सम्राट् का स्थान सर्वोच्च था। उसे निरंकुश शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द कानून समझा जाता था। कोई भी उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करता था। वह भव्य महलों में निवास करता था। उसके दरबार में विशेष नियमों का पालन किया जाता था। प्रजा उसकी देवता समान उपासना करती थी। उसे पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि समझा जाता था। राजा का चुनाव अभिजात वर्ग द्वारा किया जाता था।
3. कला (Art):
एजटेक शासक महान् कला प्रेमी थे। पाँचवें एज़टेक सम्राट् मोटेजुमा प्रथम (Montezuma I) ने 1325 ई० में टेनोस्टिटलान (Tenochtitlan) नामक राजधानी का निर्माण करवाया। इसका मैक्सिको झील के मध्य निर्माण किया गया था। इसे भव्य महलों, मंदिरों एवं उपवनों से सुसज्जित किया गया था। इस शहर की भव्यता को देखकर बाद में आने वाले स्पेनवासी भी चकित रह गए थे। 16वीं शताब्दी में इसकी गणना अमरीका के सबसे बड़े शहरों में की जाती थी।
4. श्रेणियों (Classes):
एज़टेक समाज श्रेणीबद्ध था। इसमें अभिजात वर्ग (aristocracy) को सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इसमें शाही परिवार के सदस्य, पुरोहित, सैनिक अधिकारी एवं कुछ धनी व्यापारी सम्मिलित थे। उन्हें राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया जाता था। वे भव्य महलों में निवास करते थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।
समाज में उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी। व्यापारियों को सरकारी राजदूतों एवं गुप्तचरों के रूप में कार्य करने का अवसर दिया जाता था। समाज में प्रतिभाशाली शिल्पियों, चिकित्सकों एवं अध्यापकों को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों का था। उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। युद्धबंदियों को दास बना लिया जाता था। गरीब लोग भी विवश होकर अपने बच्चों को दासों के रूप में बेच देते थे।
5. व्यवसाय (Occupations):
एज़टेक लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे। उनका मुख्य व्यवसाय कृषि था। क्योंकि एजटेक लोगों के पास भूमि की कमी थी इसलिए उन्होंने एक विशेष ढंग को अपनाया। वे सरकंडे (reed) की चटाइयाँ (mats) बुनकर उन्हें मिट्टी एवं पत्तों से ढक कर मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू (artificial islands) बना लेते थे।
इन्हें चिनाम्पा (chinampas) कहा जाता था। इस भूमि पर स्वामित्व किसी व्यक्ति विशेष का नहीं अपितु कुल का होता था। यहाँ की प्रमुख फ़सलें मक्का (corn), फलियाँ (beans), कद्दु (pumpkins), कसावा (manioc root), आलू (potatoes) आदि थीं। कृषि के अतिरिक्त एजटेक लोग वस्त्र बनाने, गहने बनाने, मिट्टी के बर्तन बनाने तथा धातुओं के औजार बनाने का कार्य भी करते थे।
6. शिक्षा (Education):
एजटेक लोग शिक्षा पर विशेष बल देते थे। अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते थे उन्हें कालमेकाक (Calmecac) कहा जाता था। यहाँ उन्हें पुरोहित एवं योद्धा बनने का प्रशिक्षण दिया जाता था। उस समय एजटेक समाज में इन दोनों व्यवसायों की विशेष माँग थी। सामान्य लोगों के बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते थे उन्हें तेपोकल्ली (Telpochcalli) कहा जाता था। यहाँ लड़कों को सैन्य प्रशिक्षण, कृषि एवं व्यापार करना सिखाया जाता था। उन्हें धर्म, उत्सवी गीतों एवं इतिहास संबंधी शिक्षा भी दी जाती थी। लड़कियों को घरेलू कार्यों की एवं नैतिक शिक्षा दी जाती थी।
7. स्त्रियों की स्थिति (Position of women):
एजटेक समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। कुछ स्त्रियाँ पुरोहित का कार्य करती थीं। इस व्यवसाय को समाज में विशेष सम्मान प्राप्त था। कुछ स्त्रियाँ पुरुषों के साथ कृषि कार्य करती थीं। कुछ स्त्रियाँ दुकानदारी का कार्य भी करती थीं। अधिकांश स्त्रियाँ घरेलू जीवन व्यतीत करती थीं। उस समय लड़कियों का विवाह प्रायः 16 वर्ष की आयु में कर दिया जाता था। विवाह के समय बहुत जश्न मनाया जाता था। उस समय लड़कियों को दहेज देने की प्रथा प्रचलित थी।
8. धर्म (Religion):
एजटेक लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनका पंचांग (calendar) 18 माह में विभाजित था। प्रत्येक माह किसी विशेष देवी-देवता को समर्पित था। सूर्य देवता उनका सबसे प्रमुख देवता था। वह विश्व की सभी घटनाओं की जानकारी रखता था तथा पापियों को दंड देता था। युद्ध देवता उनका दूसरा महत्त्वपूर्ण देवता था।
युद्ध में विजय अथवा पराजय उसकी कृपा पर निर्भर करती थी। अन्न देवी (corn goddess) उनकी प्रमुख देवी थी। उसे सभी देवताओं की जननी समझा जाता था। इन देवी-देवताओं की स्मृति में विशाल एवं भव्य मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इन मंदिरों में इन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। इन देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष बड़ी संख्या में लोगों की बलियाँ दी जाती थीं। एजटेक . लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। उनमें अनेक प्रकार के अंध-विश्वास भी प्रचलित थे।
9. पतन (Decline):
1519 ई० में स्पेन के हरनेडो कोर्टस (Hernando Cortes) ने एज़टेक साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसने दो वर्षों के भीतर ही संपूर्ण एजटेक सभ्यता को रौंद डाला। एज़टेक साम्राज्य का इतनी शीघ्र पतन क्यों हो गया इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। सर्वप्रथम, एजटेक शासकों ने लोगों पर भारी कर लगाए थे। इस कारण उनमें भारी असंतोष था। दूसरा, एज़टेक शासकों की लगातार लड़ाइयों के कारण सैनिक भी ऊब चुके थे।
तीसरा, एज़टेक शासकों ने जिन नवीन क्षेत्रों को अपने अधीन किया वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। इस कारण उनमें घोर असंतोष था। चौथा, एजटेक साम्राज्य में रोजाना बड़ी संख्या में युद्धबंदियों एवं गैर एज़टेक लोगों को बलि चढ़ा दिया जाता था। इस कारण लोग ऐसे अत्याचारी शासन का अंत करना चाहते थे। अतः इन लोगों ने हरनेडो कोर्टेस के आक्रमण के समय उसकी यथासंभव सहायता की। अतः ऐसे साम्राज्य का डूबना कोई हैरानी की बात नहीं थी।
प्रश्न 9.
इंका सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
इंका सभ्यता दक्षिण अमरीका की सबसे प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली सभ्यता थी। इस सभ्यता की स्थापना 12वीं शताब्दी में मैंको कपाक (Manco Capac) ने पेरू (Peru) में की थी। उसने कुजको (Cuzco) को अपनी राजधानी घोषित किया। यह सभ्यता 15वीं शताब्दी में अपनी उन्नति के शिखर पर थी। इस सभ्यता का सबसे शाक्तशाली शासक पचकुटी इंका (Pachacuti Inca) था। वह नौवां इंका शासक था। वह 1438 ई० में सिंहासन पर बैठा था। उसके शासनकाल में इंका साम्राज्य की सीमाओं में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इंका साम्राज्य उत्तर में इक्वेडोर (Ecuador) से लेकर दक्षिण में चिली (Chile) तक फैला हुआ था। इसका क्षेत्रफल 3000 मील था तथा इसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक थी।
1. सम्राट् की स्थिति (Position of the Emperor):
इंका साम्राज्य में सम्राट् की स्थिति सर्वोच्च थी। उसे सूर्य देवता का पुत्र समझा जाता था। राज्य के सभी लोग अपने सम्राट् की देवता समान उपासना करते थे। सम्राट को अनेक शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द कानून समझा जाता था। सम्राट् की आज्ञा का उल्लंघन करना मृत्यु को निमंत्रण देना था। इंका सम्राट् अताहुआल्पा (Atahualpa) का कथन था कि, “मेरे साम्राज्य में मेरी इच्छा के बिना न तो कोई पक्षी उड़ सकता है तथा न ही कोई पत्ता हिल सकता है।
2. प्रशासन (Administration):
इंका शासक कुशल प्रशासक थे। उनके प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लोक भलाई था। इंका शासकों ने प्रशासन की कुशलता के उद्देश्य से इसे अनेक प्रांतों में विभाजित किया था। प्रत्येक प्रांत का मुखिया एक गवर्नर होता था। वह अभिजात वर्ग से संबंधित होता था। वह अपने अधीन प्रांत में कानून एवं व्यवस्था के लिए उत्तरदायी होता था। उसकी सहायता के लिए कुछ सैनिक एवं अन्य अधिकारी होते थे। इंका साम्राज्य में अनेक कबीले थे। प्रत्येक कबीला स्वतंत्र रूप से वरिष्ठों की सभा (Council of Elders) द्वारा शासित होता था।
इनका चुनाव कबीले के सदस्यों द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से किया जाता था। प्रत्येक कबीला अपने कार्यों के लिए शासक के प्रति उत्तरदायी था। शासक उनके कार्यों पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण रखता था। निस्संदेह इंका शासकों का प्रशासन बहुत उच्च कोटि का था। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० एस० फ्राई के कथनानुसार, “इंका ने अपने विशाल साम्राज्य का प्रशासन एक कुशल संगठन द्वारा चलाया जिसका मुकाबला प्राचीन काल रोम के साथ किया जा सकता है।”
3. भवन निर्माण (Architecture):
इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। कुजको (Cuzco) एवं माचू-पिच्चू (Machu-Picchu) नामक शहरों में बने उनके भव्य महल, किले, मंदिर एवं अन्य भवन उनकी उच्च कोटि की भवन निर्माण कला को दर्शाते हैं। इन भवनों की दीवारों को बनाते समय वे विशाल पत्थरों का प्रयोग करते थे। इनमें से कुछ पत्थरों का वजन 100 टन से भी अधिक तक होता था। इन पत्थरों को वे मजदूरों एवं रस्सियों के सहयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे। इन पत्थरों को जो कि वास्तव में बड़ी चट्टानें होती थीं बहुत बारीकी से तराशा जाता था।
इन पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंका मिस्त्री किसी गारे अथवा सीमेंट का प्रयोग नहीं करते थे। इसके बावजूद उनके द्वारा बनवाए गए भवन बहुत मज़बूत होते थे। इन भवनों को शल्क पद्धति (flaking) द्वारा सुंदर बनाया जाता था। भवनों के अतिरिक्त इंका लोगों ने पहाड़ों के मध्य संपूर्ण साम्राज्य में सड़कें, पुल एवं सुरंगें बनाईं। इनसे उनके इंजीनियरिंग कौशल का पता चलता है। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० एच० हाल का यह कथन ठीक है कि, “इंका भवन निर्माण कला के शिखरों को नई दुनिया में भी नहीं छुआ जा सका है।”
4. विभिन्न श्रेणियाँ (Various Classes):
इंका समाज विभिन्न श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान सम्राट् को प्राप्त था। वह भव्य महलों में रहता था। वह बहुमूल्य वस्त्र पहनता था। उसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में नौकर होते थे। उसके मनोरंजन के लिए बड़ी संख्या में रखैलें (concubines) भी होती थीं। सम्राट् के पश्चात् दूसरा स्थान कुलीनों (nobles) एवं पुरोहितों (priests) को प्राप्त था।
उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे एक समृद्ध जीवन व्यतीत करते थे। शिक्षक, डॉक्टर एवं सैनिक मध्य वर्ग से संबंधित थे। उनका जीवन निर्वाह भी सुगमता से हो जाता था। किसान एवं दस्तकार साधारण वर्ग से संबंधित थे। उन्हें अपने जीवन निर्वाह के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को प्राप्त था। उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। ई० एम० बर्नस एवं अन्य के शब्दों में, “इंका समाज मानव समुदायों में पाए जाने वाले सबसे कठोर समाजों में से एक था।”
5. स्त्रियों की स्थिति (Position of Women):
समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। उनका परिवार में पूर्ण सम्मान किया जाता था। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया गया था। वे अपना पति चुनने के लिए भी स्वतंत्र थीं। उनमें बाल विवाह की प्रथा प्रचलित नहीं थी। विधवा को दुबारा विवाह करने की अनुमति थी। अधिकाँश स्त्रियाँ घरेलू होती थीं। कुछ स्त्रियाँ पुरोहित का कार्य करती थीं। उस समय की स्त्रियाँ त्योहारों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती थीं।
6. शिक्षा (Education):
इंका समाज में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता था। प्रत्येक बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भेजा जाता था। लड़कों को प्रायः सैनिक एवं पुरोहित बनने संबंधी शिक्षा दी जाती थी। अधिकाँश लड़कियों को घरेलू कार्यों संबंधी शिक्षा दी जाती थी। कुछ लड़कियाँ पुरोहित संबंधी प्रशिक्षण ग्रहण करती थीं। उस समय विद्यार्थियों को मौखिक (oral) शिक्षा दी जाती थी।
इसका कारण यह था कि इंका समाज में कोई लेखन प्रणाली प्रचलित नहीं थी। वे अपना हिसाब क्विपु (quipu) प्रणाली से रखते थे। इससे चीजों को स्मरण रखने में मदद मिलती थी। इसमें एक डंडा होता था जिस पर विभिन्न रंगों की रस्सियों से गाँठ बाँधी जाती थी। प्रत्येक गाँठ एक किस्म का संकेत होती थी जिससे उस वस्तु का अनुमान लगाया जाता था। इंका लोगों की प्रशासनिक भाषा क्वेचुआ (Quechua) थी।
7. विभिन्न व्यवसाय (Various Occupations):
इंका समाज में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय प्रचलित थे। उस समय के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। इसे इंका सभ्यता का आधार माना जाता था। उस समय पहाड़ों में सीढ़ीदार खेत (terraces) बनाए जाते थे। इन खेतों की सिंचाई के लिए नहरें बनाई जाती थीं। उनकी प्रमुख फ़सलें मक्का (corn) एवं आलू (potatoes) थीं।
उस समय कुछ लोग पशुपालन का कार्य करते थे। वे लामा (Ilama) तथा अल्पाका (Alpaca) नामक पशुओं को पालते थे। इनसे वे भार ढोने का कार्य करते थे। इनसे ऊन प्राप्त की जाती थी तथा इनका माँस खाया जाता था। इनके अतिरिक्त उस समय वस्त्र उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग एवं सोने, चाँदी एवं ताँबे के आभूषण बनाने के उद्योग भी प्रसिद्ध थे। कुछ लोग खानों से धातु निकालने का कार्य भी करते थे।
8. धर्म (Religion):
इंका लोगों का जीवन धर्म से बहुत प्रभावित था। यद्यपि वे अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे किंतु सूर्य उनका प्रमुख देवता था। उनका विश्वास था कि उनका प्रथम शासक मैंको कपाक सूर्य का पुत्र था। अतः इंका शासकों ने सूर्य देवता की स्मृति में साम्राज्य भर में अनेक भव्य एवं विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरों को सोने से सजाया जाता था।
इन मंदिरों में इंका के मृत शासकों के शवों को रखा जाता था। इन मंदिरों में उपासना के लिए बड़ी संख्या में पुरोहितों को नियुक्त किया जाता था। सर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की एवं कभी-कभी मनुष्य की बलियाँ दी जाती थीं। विशेष अवसरों पर राजा स्वयं विशेष धूम-धड़के के साथ इन मंदिरों में उपासना के लिए आता था। इंका लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। उनमें अनेक प्रकार के अंध-विश्वास भी प्रचलित थे।
9. पतन (Decline):
इंका सभ्यता के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, 1532 ई० में स्पेनी आक्रमण से पूर्व इंका साम्राज्य कमज़ोर हो गया था। इसका कारण सिंहासन प्राप्ति के लिए वहाँ अताहुआल्पा (Atahualpa) एवं उसके भाई हुआस्कर (Huascar) में गृह युद्ध आरंभ हो गया था। अताहुआल्पा ने सिंहासन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की तथा उसने अपने भाई हुआस्कर को बंदी बना लिया था। दूसरा, अताहुआल्पा एक योग्य शासक प्रमाणित न हुआ। वह विशाल सेना के होते हुए भी स्पेनी आक्रमणकारियों का सामना न कर सका।
तीसरा, फ्राँसिस्को पिज़ारो (Francisco Pizarro) जिसके नेतृत्व में स्पेनी सैनिकों ने इंका साम्राज्य पर आक्रमण किया था बहुत अनुभवी था। उसने बहुत चतुराई से अताहुआल्पा को बंदी बना लिया था। चौथा, यूरोपियों के आगमन के कारण इंका साम्राज्य में अनेक बीमारियाँ फैल गई थीं। इस कारण वहाँ बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का शिकार हो गए थे। पाँचवां, इंका लोग अपने तीरों एवं तलवारों से स्पेनी बंदूकों एवं तोपों का सामना करने में विफल रहे । अतः उनकी सभ्यता का लोप हो गया।
प्रश्न 10.
माया सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। इस सभ्यता का पतनं क्यों हुआ?
उत्तर:
माया सभ्यता मैक्सिको की एक महत्त्वपूर्ण सभ्यता थी। यह सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँची । इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण केंद्र मैकि महत्त्वपूर्ण केंद्र मैक्सिको (Maxico), ग्वातेमाला (Guatemala), होंडुरास (Honduras) एवं अल-सैल्वाडोर (El Salvador) में थे। यद्यपि माया सभ्यता का अंत 16वीं शताब्दी में हुआ किंतु इसका पतन 11वीं शताब्दी से आरंभ हो गया था।
1. माया शासन पद्धति (Maya Polity):
माया सभ्यता की शासन पद्धति के संबंध में हमें कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है। माया शासक सामान्यतः पुरुष हुआ करते थे। कभी-कभी रानियाँ भी शासन करती थीं। राजा का पद पैतृक होता था। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका बड़ा पुत्र सिंहासन पर बैठता था। राजा का बहादुर होना अनिवार्य था।
एक बहादुर राजा ही साम्राज्य का विस्तार एवं उसकी सुरक्षा कर सकता था। राजा के सिंहासन पर बैठते समय देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से मानव बलि दी जाती थी। राजा अभिजात वर्ग (nobility) एवं पुराहितों (priests) की सहायता से शासन चलाता था। राजा भव्य महलों में रहता था। उसकी सेवा में बड़ी संख्या में लोग, दास एवं दासियाँ होते थे।
2. श्रेणियाँ (Classes):
माया समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पुरोहितों को प्राप्त था। राजा उनके परामर्श के बिना कोई कार्य नहीं करता था। समाज में दूसरा स्थान अभिजात वर्ग को प्राप्त था। अभिजात वर्ग के लोग राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे। पुरोहित एवं अभिजात वर्ग के लोग बहुत बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे तथा वे बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे।
उनकी सेवा में भी अनेक दास-दासियाँ होते थे। समाज की अधिकाँश जनसंख्या किसान वर्ग से संबंधित थी। उन्हें अपने जीवन निर्वाह के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को प्राप्त था। उनकी दशा अत्यंत दयनीय थी।
3. कृषि (Agriculture):
माया लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उन्होंने पत्थर की कुल्हाड़ी (stone axe) तथा आग के द्वारा अनेक घने जंगलों का सफाया किया। इस भूमि को उन्होंने कृषि योग्य बनाया। उनके कृषि करने के ढंग उन्नत एवं कुशलतापूर्वक थे। अतः उस समय फ़सलों की भरपूर पैदावार होती थी। माया किसान सबसे अधिक मक्का (corn) का उत्पादन करते थे। इसका कारण यह था कि माया लोगों के अनेक धार्मिक क्रियाकलाप एवं उत्सव मक्का बोने, उगाने एवं काटने से जुड़े होते थे। इसके अतिरिक्त वे सेम (beans), आलू (potatoes), कपास (cotton) आदि फ़सलों का उत्पादन करते थे।
4. धर्म (Religion):
माया लोगों का धर्म में अटूट विश्वास था। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके दो प्रमुख देवता सूर्य देवता एवं मक्का देवता थे। इनके अतिरिक्त वे अग्नि देवता, वन देवता, भूमि देवता एवं वर्षा देवता आदि की भी उपासना करते थे। वे अपने देवी-देवताओं की स्मृति में भव्य मंदिरों एवं सुंदर मूर्तियों का निर्माण करते थे।
इन मंदिरों की देखभाल के लिए बड़ी संख्या में पुरोहितों को नियुक्त किया जाता था। माया लोग अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलियाँ देते थे। कुछ विशेष अवसरों पर मानव बलियाँ भी दी जाती थीं। माया लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। उनमें अनेक प्रकार के अंध विश्वास भी प्रचलित थे।
5. कला (Art):
माया लोग कला के महान् प्रेमी थे। उन्होंने यूनानी एवं रोमनों की तरह भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने अनेक भव्य नगरों, महलों, पिरामिडों, मंदिरों एवं वेधशालाओं (observatories) का निर्माण करवाया। माया लोगों ने जिन नगरों का निर्माण किया उनमें टिक्ल (Tikal), कोपान (Copan), पालेंक (Palenque), कोबा (Coba), युकाटान (Ukatan), चिचेन इटजा (Chichen Itza), बोनामपाक (Bonamapak), कलाक्मुल (Kalakmul) तथा उक्समल (Uxmal) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इन नगरों को अनेक भव्य भवनों, उद्यानों एवं फव्वारों से सुसज्जित किया गया था। माया कलाकारों द्वारा बनाए गए महलों को देखकर व्यक्ति चकित रह जाता है। ये महल बहुत विशाल एवं सुंदर थे। माया लोगों ने बहुत विशाल पिरामिड (pyramids) बनवाए। इन पिरामिडों के ऊपर मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इन मंदिरों में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। ये मूर्तियाँ देखने में बिल्कुल सजीव लगती थीं।
माया कलाकारों ने जिन मंदिरों का निर्माण किया उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध आठवीं शताब्दी ग्वातेमाला में निर्मित टिक्ल मंदिर था। यह मंदिर 229 फुट ऊँचा था। इस मंदिर में बनी मूर्तियाँ एवं चित्र इसकी शान में चार चाँद लगाते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार टी० एच० वालबैंक के अनुसार, “कला के क्षेत्र में माया भवन निर्माण कला एवं मर्ति कला ने अद्वितीय उन्नति की।”
6. पंचांग (Calendar):
माया सभ्यता ने पंचांग के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन दी। उन्होंने दो प्रकार के पंचांग तैयार किए। प्रथम पंचांग धर्म-निरपेक्ष था। इसमें सौर पंचांग की तरह वर्ष में 365 दिन होते थे। उनके वर्ष में 18 माह होते थे। प्रत्येक माह में 20 दिन होते थे। शेष पाँच दिनों को दुर्भाग्यपूर्ण समझा जाता था। माया लोगों का दूसरा पंचांग धार्मिक था। इसमें वर्ष में 260 दिन होते थे। इसे पुराहितों के लिए धार्मिक कर्मकांडों के लिए तैयार किया गया था।
7. लिपि (Script):
माया सभ्यता की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि उनकी लिपि थी। यह अमरीका की प्रथम सभ्यता थी जिसने सर्वप्रथम लिपि का विकास किया। उनकी लिपि चित्रात्मक (pictographic) थी। माया लेखन के उदाहरण प्रस्तर पट्टों पर उत्कीर्ण अभिलेखों (carved inscriptions on the stelae) एवं पुस्तकों जिन्हें कोडिसेज (codices) कहा जाता था में पाए गए हैं। इनमें माया शासकों से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं खगोल विद्या (astronomical information) संबंधी सूचनाएँ दर्ज की जाती थीं। दुर्भाग्यवश इस लिपि को अभी तक पूर्णतः पढ़ने में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकी है।
8. पतन (Downfall):
माया सभ्यता का पतन 11वीं शताब्दी में आरंभ हो गया था। माया सभ्यता का पतन क्यों हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आने वाले भयंकर भूकंपों एवं समुद्री तूफानों के कारण हुआ। कुछ अन्य के विचारों के अनुसार माया सभ्यता का विनाश वहाँ फैलने वाली भयंकर बीमारियों के कारण हुआ। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का शिकार हो गए थे। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आए जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ।
वहाँ काफी लंबे समय तक सूखा पड़ा। इस कारण फ़सलें नष्ट हो गई एवं लोग भूखे मर गए। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि माया सभ्यता के पतन में वहाँ होने वाले किसान विद्रोहों ने प्रमुख भूमिका निभाई। अधिकाँश इतिहासकारों का मानना है कि माया सभ्यता का अंत 1519 ई० में हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण के कारण हुआ। उसने 1521 ई० में मैक्सिको को अपने अधीन कर लिया था। शीघ्र ही उसने ग्वातेमाला, निकारागुआ एवं होंडुरास पर कब्जा करके माया सभ्यता का अंत कर दिया।
प्रश्न 11.
ओलाउदाह एक्वियानो कौन था? उसकी यात्रा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राज़ील ले जाए गए ग्यारह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
ओलाउदाह एक्वियानो नाईजीरिया (Nigeria) का रहने वाला था। 11 वर्ष की उम्र में उसे गुलाम बना लिया गया था। उसे गुलाम के रूप में ब्राज़ील में बेच दिया गया। वहाँ से उसे इंग्लैंड के एक कप्तान ने खरीद लिया। 1766 ई० में उसने अपने स्वामी से मुक्ति प्राप्त कर ली। इसके पश्चात् उसने विभिन्न देशों में दासता के विरुद्ध प्रचार किया। 1789 ई० में उसकी आत्मकथा दि इनटरेस्टिंग नैरेटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो (The Interesting Narrative of the Life of Olaudah Equiano) प्रकाशित हुई।
यह पुस्तक शीघ्र ही संपूर्ण विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई तथा इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया। इस पुस्तक में ओलाउदाह एक्वियानो ने एक गुलाम के रूप में अपनी यात्रा तथा गुलामों के जीवन के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है। ओलाउदाह एक्वियानो ने अपनी आत्मकथा (autobiography) में लिखा है कि उसका जन्म 1745 ई० में नाईजीरिया में हुआ था। मैंने कभी अंग्रेज़ों अथवा समुद्र के बारे में नहीं सुना था।
एक दिन जब मेरे माता-पिता खेतों में कार्य करने गए थे तो उस दिन दो पुरुषों एवं एक स्त्री जो कि अफ्रीकी थे ने मेरे घर पर धावा बोल दिया। वे मुझे तथा मेरी छोटी बहन को बंदी बना कर ले गए। उस समय मेरी आयु 11 वर्ष थी। आगे आने वाले 6 अथवा 7 महीनों के दौरान मुझे कई अफ्रीकी मालिकों को बेचा जाता रहा। हमें बंदरगाह की ओर पैदल ले जाया जाता रहा। मेरे साथ बहत से अन्य लोग थे जिन्हें गुलाम बनाया गया था। इन सभी को जंजीरों से जकड कर पंक्ति के रूप में ले जाया जाता था।
जिन लोगों ने हमें खरीदा था वे हमारे साथ-साथ चलते थे। अधिक शोर मचाने वालों अथवा भागने का प्रयास करने वालों की हंटर से ज़बरदस्त पिटाई की जाती थी। एक शाम को हम बंदरगाह के किनारे पहुंच गए। मुझे बहुत से अन्य गुलामों के साथ बंदरगाह पर खड़े एक जहाज में दूंस दिया गया। जहाज़ में सवार नाविकों की डरावनी शकलें देखकर मैं काँप गया। मुझे लगा कि मैं बुरी आत्माओं की दुनिया में आ गया हूँ तथा ये लोग कर खा जाएँगे।
जहाज़ में गलामों का जीवन नरक समान था। उनमें विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जैसे चेचक, पेचिश तथा पीला बुखार आदि फैल गई थीं। इससे उनके दुःख बहुत बढ़ गए थे। इन घातक बीमारियों के कारण तथा बिना किसी इलाज के रोज़ाना अनेक गुलामों की मत्य हो जाती थी। दर्द से कराह रहे इन गलामों की आवाज़ सुन कर दिल दहल जाता था।
एक दिन अवसर पाकर दो गुलामों ने पानी में कूदकर आत्महत्या कर ली। मुझे यह अवसर प्राप्त नहीं हुआ नहीं तो मैं भी ऐसा ही करता। जब जहाज़ के सदस्यों को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने सभी गुलामों की जम कर पिटाई की तथा हम पर निगरानी बढ़ा दी गई।
जब यह जहाज़ अंततः ब्राजील की बंदरगाह पर पहुँचा तो बहुत से गुलाम खरीदने वाले व्यापारी जहाज़ पर चढ़ आए। उनकी शकलें बहुत डरावनी थीं। ऐसा लगता था कि वे हमें खा जाएंगे। उन्हें देखकर बहुत से गुलाम काँपने लगे। इसी समय जहाज़ पर वहाँ पहले से रह रहे दो अफ्रीकी गुलाम आए तथा उन्होंने हमें समझाया कि उन्हें यहाँ मारने के लिए नहीं अपितु काम करने के लिए लाया गया है। मुझे खेतों में कार्य करने के लिए लगाया गया। यहाँ गुलामों पर घोर अत्याचार किए जाते थे।
अफ्रीका में गुलामों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जाता था। वहाँ गुलामों को परिवार के सदस्यों के रूप में सम्मिलित कर लिया जाता था। कुछ समय पश्चात् मुझे एक गोरे व्यक्ति ने खरीद लिया तथा वह अपने साथ मुझे इंग्लैंड ले आया। वह एक व्यापारी था। उसके साथ मैं अनेक बार वेस्टइंडीज़ (West Indies) गया। 1766 ई० में मेरे स्वामी ने मुझे मुक्त कर दिया। इसके पश्चात् ओलाउदाह एक्वियानो ने 1797 ई० में अपनी मृत्यु तक गुलाम प्रथा के विरुद्ध एक जोरदार अभियान चलाया। इस प्रकार इतिहास में सदैव के लिए उसका नाम अमर हो गया।
प्रश्न 12.
दास व्यापार के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस प्रथा का उन्मूलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
दास व्यापार आधुनिक विश्व इतिहास के माथे पर एक कलंक समान था। इस प्रथा ने 15वीं शताब्दी में अपने पाँव यूरोप में पसारने आरंभ किए। 16वीं शताब्दी में यह प्रथा दक्षिण एवं उत्तरी अमरीका में भी फैल गई। यह प्रथा 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में अपनी उन्नति के शिखर पर थी। आरंभ में पराजित हए लोगों को गुलाम बना लिया जाता था।
बाद में बड़ी संख्या में दासों को अफ्रीका से पकड़ कर इन देशों में बेचा जाने लगा। वास्तव में दास प्रथा ने एक व्यापार का रूप धारण कर लिया था। इन दासों पर जो अमानवीय अत्याचार किए जाते थे उनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। दास व्यापार के कारण न केवल अफ्रीका अपितु यूरोप एवं अमरीका के समाजों पर दूरगामी प्रभाव पड़े।
1. दास प्रथा का जन्म (Origin of Slavery):
15वीं शताब्दी में जब कुछ पुर्तगाली एवं स्पेनी नाविक अफ्रीका गए तो वे अपने साथ वहाँ से कुछ दासों को भी ले आए। इन गुलामों को घरों, खेतों एवं खानों में कार्य पर लगाया गया। 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों एवं स्पेनियों ने दक्षिण अमरीका के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया था। वहाँ इन देशों के सैनिकों ने स्थानीय लोगों को पराजित कर उन्हें गुलाम बना लिया था। इन लोगों से गुलाम के रूप में कार्य करवाना अत्यंत कठिन सिद्ध हुआ। इस समस्या से निपटने के लिए यूरोपियों ने नई दुनिया में अफ्रीका से गुलाम मंगवाने आरंभ कर दिए थे।
2. दास व्यापार (Slave Trade):
17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में नई दुनिया में दासों की माँग में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई थी। इसका कारण था कि जंगलों की सफाई के लिए, खेतों के लिए एवं खानों में कार्य करने के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता थी। अत: यूरोपवासियों ने अफ्रीका के साथ गुलामों का व्यापार आरंभ कर दिया था। ये व्यापारी अपनी माँग अफ्रीका के स्थानीय नेताओं को देते थे।
अफ्रीका के स्थानीय नेता काफी प्रभावशाली होते थे। उन्होंने अपने अधीन कछ सेना रखी होती थी। इन सैनिकों की सहायता से वे रात के समय अफ्रीका के अंदरूनी भागों में छापे मार कर लोगों को बलपूर्वक गुलाम बना लेते थे। इन गुलामों में अधिकाँश संख्या युवा गुलामों की होती थी। इन गुलामों को यूरोपीय व्यापारियों को बेच दिया जाता था।
इसके बदले यूरोपीय व्यापारी उन्हें दक्षिण अमरीका से लाए गए खाद्य पदार्थ देते थे। ये अफ्रीकी लोगों के प्रमुख खाद्य पदार्थ थे। कभी-कभी उन्हें नकद धन भी दिया जाता था। यूरोपीय व्यापारी अफ्रीकी गुलामों को जहाजों में लाद कर नई दुनिया में ले आते थे। बंदरगाह पर पहुँचने पर ये व्यापारी इन दासों को दो से तीन गुना अधिक मुनाफे पर ज़रूरतमंदों को बेच देते थे।
3. दासों का जीवन (Life of Slaves):
अधिकाँश दास खेतों में मजदूरी का कार्य करते थे। कुछ गुलाम खानों में भी काम करते थे। इन्हें अत्यंत भयावह स्थितियों में कार्य करना पड़ता था। गुलामों से प्रतिदिन 14 से 16
घंटे कार्य लिया जाता था। कार्य के दौरान भी उन्हें जंजीरों से जकड़ कर रखा जाता था ताकि वे भागने न पाएँ। कार्य के दौरान यदि कोई गुलाम सुस्त कार्य करता तो उसकी निगरानी करने वाला गोरा निरीक्षक उसकी हंटर द्वारा जमकर पिटाई करता। उस पर अनेक प्रकार के अन्य अमानवीय अत्याचार किए जाते थे।
कठोर श्रम करने के बावजूद इन गुलामों को दो समय भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था। रात्रि के समय उन्हें गंदी झोंपड़ियों में धकेल दिया जाता था। इस समय भी वे जंजीरों से जकड़े रहते थे। वे नाम मात्र के वस्त्र पहनते थे। संक्षेप में गुलामों का जीवन जानवरों से भी बदतर था। एरिक विलियम्स (Eric Williams) प्रथम आधुनिक इतिहासकार था जिसने 1940 के दशक में अपनी पुस्तक कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी (Capitalism and Slavery) में गुलामों के दु:खों पर काफी प्रकाश डाला है।
4. दासों पर प्रतिबंध (Restrictions on Slaves):
दासों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे। वे अपने मालिकों से अनुमति पत्र लिए बिना अपने कार्य को नहीं छोड़ सकते थे। वे किसी प्रकार का कोई नशा नहीं कर सकते थे। वे अपने पास किसी प्रकार का कोई हथियार नहीं रख सकते थे। उन्हें पढ़ने तथा लिखने का भी कोई अधिकार न था। वे गोरे लोगों के विरुद्ध चाहे वे उन्हें जान से मार दें अथवा इनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार करें कोई शिकायत दर्ज नहीं करवा सकते थे। दसरी ओर वे गोरे लोगों पर हाथ नहीं उठा सकते थे। इनमें से किसी नियम का उल्लंघन करने पर संबंधित गुलाम को कड़ा दंड दिया जाता था।
5. दास व्यापार के प्रभाव (Impacts of the Slave Trade):
दास व्यापार के अनेक दूरगामी परिणाम निकले। प्रथम, यह प्रथा अफ्रीका के लिए विशेष तौर पर विनाशकारी सिद्ध हई। इस प्रथा के कारण अफ्रीका के अधिकांश पुरुषों को दास बना लिया गया। अतः उनकी स्त्रियों को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा। वे खेतों में काम करने के लिए बाध्य हुईं।
यह कार्य पहले पुरुष किया करते थे। दूसरा, इस प्रथा के चलते दासों को घोर अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। बाध्य होकर अनेक बार दास या तो भाग जाते थे या फिर विद्रोह कर देते थे। दास व्यापार यूरोपियों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ। दासों को खानों एवं खेतों में कार्य पर लगाया गया। उनके खून-पसीने के कारण यूरोपीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली।
6. दास प्रथा का उन्मूलन (The Abolition of Slavery):
दासों के साथ किए जाने वाले अमानुषिक व्यवहार के कारण अनेक देशों में इस क्रूर प्रथा के विरुद्ध आवाज़ बुलंद होने लगी। बहुत से नेताओं ने इस प्रथा का अंत करने के लिए अपनी सरकारों को प्रेरित किया। इसके लिए उन्हें एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। सर्वप्रथम डेनमार्क (Denmark) ने 1803 ई० में दासों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।
यह निस्संदेह दास प्रथा का उन्मूलन करने की दिशा में उठाया गया प्रथम महत्त्वपूर्ण पग था। डेनमार्क का अनुसरण करते हुए ब्रिटेन ने 1807 ई० में, फ्राँस ने 1814 ई० में, नीदरलैंड ने 1817 ई० में तथा स्पेन ने 1845 ई० में गुलामों के व्यापार पर पूर्णत: निषेध लगा दिया। 1833 ई० में सर्वप्रथम ब्रिटेन ने दास प्रथा का अंत करने की घोषणा की। इसके पश्चात् फ्राँस ने 1848 ई० में, संयुक्त राज्य अमरीका ने 1865 ई० में, क्यूबा ने 1886 ई० में तथा ब्राजील ने 1888 ई० में दास प्रथा का अंत कर दिया। दास प्रथा का उन्मूलन निस्संदेह एक नए युग का संकेत था।
क्रचन सेख्या | बर्ष | घटना |
1. | 1325 ई० | एजटेक की राज्धानी टेनोक्टिटलान का निर्माण। |
2. | 1380 ई० | कुलबनुमा का आविष्कार। |
3. | 1410 ई० | कार्डिनल पिएर ड्विऐेली ने ‘इमगो मुंड़ी’ की रचना की। |
4. | 1438 ई० | इंका सम्र्राज्य का सबसे शब्तिशाली शासक पचकुटी इंका सिंहासन पर बैठा। |
5. | 1453 ई० | तुर्कों द्वारा कुस्तुनदुनिया पर अधिकार। |
6. | 1477 ई० | टॉलेमी की ज्योग्राफ़ी प्रकाशित हुई। |
7. | 1492 ई० | कोलेंबस द्वारा बहामा द्वीप समूह की खोज। |
8. | 1499 ई० | अमेरिगो वेस्पुसी ने यदिण अमरीका की यात्रा की। |
9. | 22 अप्रैल, 1500 ई० | पेट्गो अल्वारिस कैज्राल ब्राजील पहूँचज। |
10. | 1502 ई० | मेंटेजुमा द्वितीय एजटेक सम्नाट् बना। |
11. | 1507 ई० | नयी दुनिया को अमरीका का नाम दिया गया। |
12. | 1519 ई० | हरनेंड़ो कोटेंस द्वारा एजटेक सात्राज्प पर आक्रमण। |
13. | 30 जून, 1520 ई० | औसू भरी रात। |
14. | 15 अगस्त, 1521 ई० | एजटेक साम्राज्म का अंत। |
15. | 1522 ई० | हरनेंडो कोर्टेस को न्यू स्पेन (मैक्सिको) का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल बनाया गया। |
16. | 1532 ई० | अताहुआल्पा इंका साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा। फ्राँसिस्को पिज़ारो ने इंका साम्राज्य को जीता। |
17. | 1532 ई० | पुर्तगाली शासक ने ब्राज़ील का शासन सीधा अपने हाथों में लिया। |
18. | 1549 ई० | ओलाउदाह एक्वियानो की आत्मकथा ‘दि इनटरेस्टिंग नैंरेटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो’ का प्रकाशन। |
19. | 1789 ई० | ओलाइदाह एक्वियानो की आत्मकथा ‘दि इनटरेस्टिंग |
20. | 1797 ई० | नैरैटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ ओलाउदाह एक्वियनो’ का प्रकाशन। |
21. | 1803 ई० | ओसाउदाह एक्वियानो की मृत्यु हुई। |
22. | 1833 ई० | ड़नमार्क ने दास व्यापार पर सर्वप्रथन प्रतिबंध लगापा। |
23. | 1865 ई० | ब्रिटेन ने दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। |
24. | 1888 ई० | संयुक्त राज्च अमरीका ने दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। |
संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली ?
अथवा
भौगोलिक खोजों के क्या कारण थे ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में निम्नलिखित कारणों ने यूरोपीय नौचालन में सहायता दी
(1) नए प्रदेशों की खोज कर वहाँ से सोना-चाँदी प्राप्त करना।
(2) विदेशों में ईसाई धर्म का प्रसार करना।
(3)1380 ई० में कुतबनुमा अथवा दिशासूचक का आविष्कार हुआ। इस कारण नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं को सही जानकारी प्राप्त हुई। इस कारण समुद्री यात्राएँ अधिक सुरक्षित हो गई।
(4) समुद्री यात्रा पर जाने वाले यूरोपीय जहाजों में भी काफी सुधार हो चुका था। इससे नाविकों को समुद्र पार जाने के लिए प्रेरणा मिली।
(5) 1477 ई० में टॉलेमी की प्रसिद्ध पुस्तक ज्योग्राफी का प्रकाशन हुआ। इसमें अनेक देशों से संबंधित बहुमूल्य भौतिक जानकारी दी गई थी। इसने नाविकों को समुद्री यात्राएँ करने के लिए प्रेरित किया।
(6) 15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप अर्थात् स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने समुद्री यात्राएँ करने वाले नाविकों को दिल खोलकर सहायता प्रदान की।
प्रश्न 2.
15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप ने भौगोलक खोजों के क्षेत्र में क्या योगदान दिया ?
अथवा
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने 15वीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप भाव स्पेन एवं पुर्तगाल के देशों ने समुद्री खोज यात्राओं में बहुमूल्य योगदान दिया। अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने समुद्री खोजों में अन्य देशों के मुकाबले अग्रणी भूमिका क्यों निभाई ? इसके अनेक कारण थे। प्रथम, इस समय स्पेन एवं पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था अच्छी थी जबकि यूरोप की अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर से गुजर रही थी।
दूसरा, स्पेन एवं पुर्तगाल के शासक सोना एवं धन दौलत के भंडार एकत्र कर अपने यश एवं सम्मान में वृद्धि करना चाहते थे। तीसरा, वे नई दुनिया में ईसाई धर्म का प्रसार करना चाहते थे। चौथा, धर्मयुद्धों के कारण इन देशों की एशिया के साथ व्यापार करने में रुचि बढ़ गई। इन युद्धों के दौरान उन्हें पता चला कि इन देशों के साथ व्यापार करके वे भारी मुनाफा कमा सकते हैं।
पाँचवां, स्पेन के शासकों द्वारा दिए जाने वाले इकरारनामों जिन्हें कैपिटुलैसियोन कहा जाता था लोगों को महासागरी शूरवीर बनने के लिए प्रोत्साहित किया। इन इकरारनामों द्वारा स्पेन के शासक ने नई दुनिया के प्रदेशों को जीतने वाले नेताओं को पुरस्कार के रूप में शासन का अधिकार दिया। छठा, इन देशों के शासकों ने समुद्री खोज पर जाने वाली नाविकों को प्रत्येक संभव सहायता प्रदान की।
प्रश्न 3.
नए आविष्कारों ने किस प्रकार भौगोलिक खोजों के उत्साहित किया ?
उत्तर:
14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी से संबंधित नए आविष्कारों ने नाविकों की समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया। 1380 ई० में कुतबनुमा भाव दिशासूचक यंत्र का आविष्कार हुआ। यह एक सर्वोच्च महत्त्व का आविष्कार था। इससे नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी प्राप्त होती थी।
इससे सुदूर समुद्री यात्राएँ करना संभव हुआ। 16वीं शताब्दी में एस्ट्रोलेब का आविष्कार हुआ। इस यंत्र से नाविकों को भूमध्य रेखा से दूरी मापने में सहायता मिली। इसी शताब्दी में बतिस्ता ने विश्व का ठीक मानचित्र बनाया। इससे नाविकों को स्थानों के मध्य दूरी जानने में सहायता मिली। 1609 ई० में दूरबीन के आविष्कार ने नाविकों को दूर तक देखना संभव बनाया।
इस कारण वे आने वाले किसी ख़तरे से परिचित हो सकते हैं। सबसे बढ़कर इस काल में यूरोपियों ने अपने जहाजों में बहुत सुधार कर लिया था। ये जहाज़ पहले से अधिक हल्के, विशाल एवं तीव्र गति से चलने वाले थे। निस्संदेह इन नवीन आविष्कारों ने समद्री यात्राएँ करने वालों को एक नई दिशा प्रदान की।
प्रश्न 4.
क्रिस्टोफर कोलंबस पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
क्रिस्टोफर कोलंबस ने नयी दुनिया की खोज में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसका जन्म 1451 ई० में इटली के शहर जिनोआ में हुआ था। उसे बचपन से ही समुद्री यात्राएँ करने का शौक था। 1492 ई० में स्पेन के शासक फर्जीनेंड ने समुद्री यात्राओं संबंधी उसकी योजना को स्वीकृति दी। कोलंबस 3 अगस्त, 1492 ई० को स्पेन की बंदरगाह पालोस से यात्रा के लिए रवाना हुआ। इस समय उसके पास तीन जहाज़-सांता मारिया, पिंटा तथा नीना थे।
वह 12 अक्तूबर, 1492 ई० को बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि पहुँचा। कोलंबस ने इसे इंडीज समझा। अत: उसने वहाँ के निवासियों को रेड इंडियन्स कहा। वह यहाँ के निवासियों के भव्य स्वागत एवं उदारता से बहुत प्रभावित हुआ। कोलंबस ने इस द्वीप का नाम सैन सैल्वाडोर रखा। कोलंबस की इस महत्त्वपूर्ण सफलता से प्रभावित होकर फर्जीनेंड ने उसे एडमिरल ऑफ़ दी ओशन सी की उपाधि से सम्मानित किया। उसे सैन सैल्वाडोर का वाइसराय नियुक्त किया गया। उसने अपने शासनकाल के दौरान यहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। 1506 ई० में क्रिस्टोफर कोलंबस की मृत्यु हो गई।
प्रश्न 5.
हरनेंडो कोर्टेस कौन था ?
उत्तर:
हरनेंडो कोर्टेस स्पेन का एक प्रसिद्ध विजेता (कोंक्विस्टोडोर) था। उसका जन्म 1485 ई० में स्पेन के शहर मेडिलन में हुआ था। 1504 ई० में वह क्यूबा के गवर्नर की सेना में भर्ती हो गया था। उसने अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया एवं महत्त्वपूर्ण सफलताएँ अर्जित की। उसकी बहादुरी एवं योग्यता से प्रभावित होकर क्यूबा के गवर्नर ने हरनेंडो कोर्टेस को 1519 ई० में मैक्सिको पर आक्रमण करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। हरनेडो कोर्टेस 1519 ई० में 600 स्पेनी सैनिकों के साथ मैक्सिको के लिए रवाना हुआ। उसे डोना मैरीना का बहुमूल्य सहयोग मिला।
उसके सहयोग के बिना हरनेडो कोर्टेस के लिए वहाँ के लोगों की भाषा समझना अत्यंत कठिन था। उस समय मैक्सिको में एजटेक शासक मोंटेजमा द्वितीय का शासन था। लोग उसके अत्याचारों से बहत दःखी थे। अतः हरनेंडो कोर्टेस बिना किसी विरोध के एज़टेक साम्राज्य की राजधानी टेनोक्टिटलान में 8 नवंबर, 1519 ई० को पहुँच गया था।
उसने धोखे से मोंटेजुमा द्वितीय को बंदी बना लिया। 1521 ई० तक हरनेंडो कोर्टेस ने संपूर्ण एज़टेक साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया था। 1522 ई० में उसने मैक्सिको का नाम परिवर्तित करके न्यू स्पेन रख दिया। हरनेंडो कोर्टेस ने 1522 ई० से लेकर 1541 ई० तक न्यू स्पेन के गवर्नर के रूप में शासन किया। अपने शासनकाल के दौरान उसने वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। 1547 ई० में उसकी मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 6.
फ्राँसिस्को पिज़ारो के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पिज़ारो स्पेन का एक प्रसिद्ध विजेता था। उसका जन्म 1478 ई० में स्पेन के में हुआ था। 1502 ई० में वह सेना में भर्ती हो गया था। वह 1521 ई० में हरनेंडो कोर्टेस की मैक्सिको विजय से बहुत प्रभावित हुआ। वह 1528 ई० में अपना भाग्य आजमाने पेरू चला गया। अगले वर्ष वह वहाँ से स्पेन वापसी यात्रा के समय इंका कारीगरों द्वारा बनाए गए कुछ सोने के बर्तन साथ ले आया था। उसने उन्हें स्पेन के शासक चार्ल्स पँचम को भेंट किया तथा पेरू में उपलब्ध अपार दौलत के बारे में जानकारी दी।
अतः उसने पिज़ारो को पेरू पर आक्रमण करने एवं वहाँ शासन करने की अनुमति दे दी। 1532 ई० में पेरू में सिंहासन प्राप्त करने के लिए दो भाइयों में गृहयुद्ध आरंभ हो गया था। इसके अतिरिक्त वहाँ चेचक के भयंकर रूप में फैलने से बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गयी थी। यह स्वर्ण अवसर देखकर फ्रांसिस्को पिज़ारो ने 15 नवंबर, 1532 ई० को पेरू पर आक्रमण कर दिया था। उसने धोखे से पेरू के नव-नियुक्त शासक अताहुआल्पा को बंदी बना लिया था। अताहुआल्पा द्वारा भारी फिरौती देने के बावजूद भी उसका वध कर दिया गया।
इसके पश्चात् पिज़ारो ने सुगमता से संपूर्ण इंका साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। 1535 ई० में उसने लिमा को पेरू साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। अपने शासनकाल के दौरान पिज़ारो ने वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। परिणामस्वरूप 26 जून, 1541 ई० को पिज़ारो का लिमा में वध कर दिया गया।
प्रश्न 7.
अरावाकी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) अरावाकी लोग बहुत शाँतिप्रिय थे। वे लड़ने की अपेक्षा बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।
(2) अरावाकी लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे। उनका न तो कोई राजा था तथा न ही कोई सेना। चर्च का भी उनके जीवन पर कोई नियंत्रण न था। इस प्रकार वे एक स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते थे।
(3) वे कुशल नौका निर्माता थे। वे नौकाओं में बैठकर खुले समुद्र की यात्रा करते थे एवं मछलियाँ पकड़ते थे। उनके प्रमुख शस्त्र तीर एवं कमान थे। इनके द्वारा वे पशुओं का शिकार करते थे।
(4) अरावाकी गाँवों में रहते थे। उनके घर साधारण प्रकार के थे। यद्यपि वे सोने के गहने पहनते थे। किंतु वे यूरोपियों की तरह सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे।
(5) वे बुनाई की कला में बहुत निपुण थे। उनके हैमक नामक झूले को देखकर यूरोपीय भी दंग रह गए थे।
(6) अरावाकियों का धर्म के अटूट विश्वास था। वे जीववादी थे। उनका विश्वास था कि निर्जीव वस्तुओं पत्थर एवं पेड़ आदि में भी जीवन होता है। वे जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे।
प्रश्न 8.
एजटेक सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
(1) एजटेक समाज में सम्राट् का स्थान सर्वोच्च था। उसे पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि समझा जाता था।
(2) एज़टेक शासक महान् कला प्रेमी थे। एजटेक सम्राट् मोंटेजुमा प्रथम ने 1325 ई० में टेनोक्टिटलान नामक राजधानी का निर्माण करवाया।
(3) एज़टेक समाज श्रेणीबद्ध था। इसमें अभिजात वर्ग को सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों का था। उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय थी।
(4) एजटेक लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे। उनका मुख्य व्यवसाय कृषि था।
(5) एजटेक लोग शिक्षा पर विशेष बल देते थे। अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते थे। उनको कालमेकाक कहा जाता था।
(6) एज़टेक समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। कुछ स्त्रियाँ पुरोहित का कार्य करती थीं।
(7) धर्म एज़टेक लोगों का जीवन का मुख्य आधार था। सूर्य देवता उनका सबसे प्रमुख देवता था। युद्ध देवता और अन्न देवी उनके प्रमुख देवी-देवता थे।
प्रश्न 9.
एजटेक और मेसोपोटामयी सभ्यताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
- एज़टेक एवं मेसोपोटामयी दोनों ही सभ्यताएँ एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थीं।
- दोनों ही सभ्यताओं के समाज में सम्राट् को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
- दोनों ही सभ्यताओं का समाज श्रेणीबद्ध था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को दिया गया था। उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय थी।
- दोनों ही सभ्यताओं के लोगों के जीवन में धर्म की प्रमुख भूमिका थी। लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में भव्य मंदिरों का निर्माण करते थे।
- दोनों ही सभ्यताओं के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें अनेक अधिकार प्राप्त थे।
- एजटेक समाज में शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता था। मेसोपोटामयी सभ्यता के लोग कम शिक्षित थे।
प्रश्न 10.
इंका लोगों की संस्कृति की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- इंका साम्राज्य में सम्राट की स्थिति सर्वोच्च थी। उसे सूर्य देवता का पुत्र समझा जाता था।
- इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। कुजको एवं माचू-पिच्चू नामक शहर उनकी उच्च कोटि की कला के प्रतीक हैं।
- इंका समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को प्राप्त था। उनका जीवन नरक समान था।
- इंका समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। उनका परिवार में काफ़ी सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक अधिकार भी प्राप्त थे।
- इंका समाज में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता था। सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भेजा जाता था।
- इंका समाज में नैतिकता पर विशेष बल दिया जाता था। लोग सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करते थे।
प्रश्न 11.
इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। कुजको एवं माचू-पिच्चू नामक शहरों में बने उनके भव्य महल, किले, मंदिर एवं अन्य भवन उनकी उच्च कोटि की भवन-निर्माण कला को दर्शाते हैं। इन भवनों की दीवारों को बनाते समय वे विशाल पत्थरों का प्रयोग करते थे। इनमें से कुछ पत्थरों का वज़न 100 टन से भी अधिक तक होता था। इन पत्थरों को वे मजदूरों एवं रस्सियों के सहयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे।
इन पत्थरों को जो कि वास्तव में बड़ी चट्टानें होती थीं बहुत बारीकी से तराशा जाता था। इन पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंका मिस्त्री किसी गारे अथवा सीमेंट का प्रयोग नहीं करते थे। इसके बावजूद उनके द्वारा बनवाए गए भवन इतने मज़बूत होते थे कि सैंकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद एवं कुछ विनाशकारी भूकंपों के बावजूद वे नष्ट नहीं हुए। इन भवनों को शल्क पद्धति द्वारा सुंदर बनाया जाता था। भवनों के अतिरिक्त इंका लोगों ने पहाड़ों के मध्य संपूर्ण साम्राज्य में सड़कें, पुल एवं सुरंगें बनाईं। इनसे उनके इंजीनियरिंग कौशल का पता चलता है।
प्रश्न 12.
माया लोगों की अति महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:
(1) माया समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पुरोहितों को प्राप्त था। राजा उनके परामर्श के बिना कोई कार्य नहीं करता था।
(2) माया लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उनके कृषि करने के ढंग उन्नत एवं कुशलतापूर्वक थे। अतः उस समय फ़सलों की भरपूर पैदावार होती थी।
(3) माया लोगों का धर्म में अटूट विश्वास था। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके दो प्रमुख देवता सूर्य देवता एवं मक्का देवता थे।
(4) माया लोग कला के महान् प्रेमी थे। उन्होंने यूनानी एवं रोमनों की तरह भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनका आठवीं शताब्दी ग्वातेमाला में निर्मित टिक्ल मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध था।
(5) माया सभ्यता की पंचांग के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन थी। उन्होंने दो प्रकार के पंचांग तैयार किए। प्रथम पंचांग धर्म-निरपेक्ष था। दूसरा पंचांग धार्मिक था।
(6) माया सभ्यता अमरीका की प्रथम सभ्यता थी जिसने सर्वप्रथम लिपि का विकास किया।
प्रश्न 13.
माया सभ्यता की कला के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
माया लोग कला के महान् प्रेमी थे। उन्होंने यूनानी एवं रोमनों की तरह भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने अनेक भव्य नगरों, महलों, पिरामिडों, मंदिरों एवं वेधशालाओं का निर्माण करवाया। माया लोगों ने जिन नगरों का निर्माण किया उनमें टिक्ल, कोपान, पालेंक, कोबा, युकाटान, बोनामपाक तथा उक्समल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इन नगरों को अनेक भव्य भवनों, उद्यानों एवं फव्वारों से सुसज्जित किया गया था। माया कलाकारों द्वारा बनाए गए महलों को देखकर व्यक्ति चकित रह जाता है। ये महल बहुत विशाल एवं सुंदर थे। इनमें शाही परिवार के अतिरिक्त अनेक अन्य व्यक्तियों के लिए निवास स्थान बनाए जाते थे। इन महलों की छतों एवं दीवारों को अनेक प्रकार के चित्रों से सुसज्जित किया जाता था।
इन चित्रों में चटकीले रंग भरे गए हैं। माया लोगों ने बहुत विशाल पिरामिड बनवाए। इन पिरामिडों के ऊपर मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इन मंदिरों में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। ये मूर्तियाँ देखने में बिल्कुल सजीव लगती थीं।
प्रश्न 14.
माया सभ्यता का पतन क्यों हुआ ?
उत्तर:
माया सभ्यता का पतन क्यों हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आने वाले भयंकर भूकंपों एवं समुद्री तूफानों के कारण हुआ। कुछ अन्य के विचारों के अनुसार माया सभ्यता का विनाश वहाँ फैलने वाली भयंकर बीमारियों के कारण हुआ। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का शिकार हो गए थे।
कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आए जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ। वहाँ काफ़ी लंबे समय तक सूखा पड़ा। इस कारण फ़सलें नष्ट हो गई एवं लोग भूखे मर गए। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि माया सभ्यता के पतन में वहाँ होने वाले किसान विद्रोहों ने प्रमुख भूमिका निभाई।
अधिकाँश इतिहासकारों का माना है कि माया सभ्यता का अंत 1519 ई० में हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण के कारण हुआ। उसने 1521 ई० में मैक्सिको को अपने अधीन कर लिया था।
प्रश्न 15.
ओलाउदाह एक्वियानो कौन था ?
उत्तर:
ओलाउदाह एक्वियानो नाईजीरिया का रहने वाला था। 11 वर्ष की उम्र में उसे गुलाम बना लिया गया था। उसे गुलाम के रूप में दक्षिण अमरीका में बेच दिया गया। वहाँ से उसे इंग्लैंड के एक कप्तान ने खरीद लिया। 1766 ई० में उसने अपने स्वामी से मुक्ति प्राप्त कर ली। इसके पश्चात् उसने विभिन्न देशों में दास्ता के विरुद्ध प्रचार किया। 1789 ई० में उसकी आत्मकथा दि इनटरेस्टिंग नैरैटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो प्रकाशित हुई।
यह पुस्तक शीघ्र ही संपूर्ण विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई तथा इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया। इस पुस्तक में ओलाउदाह एक्वियानो ने एक गुलाम के रूप में अपनी यात्रा तथा गुलामों के जीवन के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है। गुलाम प्रथा का अंत करने में इस पुस्तक ने प्रमुख भूमिका निभाई।
प्रश्न 16.
दासों के जीवन पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण अमरीका में दासों का जीवन नरक समान था। उनसे अधिकांशतः खेती का कार्य करवाया जाता था। कुछ गुलाम खानों में भी काम करते थे। इन्हें अत्यंत भयावह स्थितियों में कार्य करना पड़ता था। कार्य के दौरान उन्हें जंजीरों से जकड़ कर रखा जाता था ताकि वे भागने न पाएँ। उन पर अनेक प्रकार के अन्य अमानवीय अत्याचार किए जाते थे। इन अत्याचारों के कारण अनेक गुलामों की मृत्यु हो जाती थी।
इसके बावजूद गोरे लोगों पर किसी प्रकार का न तो कोई मुकद्दमा चलता था तथा न ही उन्हें कोई सज़ा दी जाती थी। कठोर श्रम करने के बावजूद इन गलामों को दो समय भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था। वे गंदी झोंपडियों में रहते थे। वे अर्द्धनग्न घमते रहते थे। घरों में कार्य करने वाले दासों की स्थिति यद्यपि कुछ अच्छी थी, किंतु उन्हें भी अपने मालिकों के घोर अत्याचारों को सहन करना पड़ता था।
प्रश्न 17.
दास व्यापार के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
दास व्यापार के अनेक दूरगामी परिणाम निकले। प्रथम, यह व्यापार विशेष रूप से अफ्रीका के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। दास व्यापार 15वीं शताब्दी में बहुत छोटे पैमाने पर आरंभ हुआ था। इस व्यापार ने 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में बहुत विकास कर लिया था। इस व्यापार के चलते अफ्रीका के दो तिहाई पुरुषों को दास बना कर यूरोप की मंडियों में बेच दिया गया था।
अतः अफ्रीका में लिंग अनुपात गड़बड़ा गया। अफ्रीका में स्त्रियों की संख्या बहुत बढ़ गई। उन्हें अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा। वे खेतों में काम करने के लिए बाध्य हुईं। यह कार्य पहले पुरुष किया करते थे। दूसरा, इस प्रथा के चलते दासों को घोर अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका जीवन नरक समान था।
बाध्य होकर अनेक बार दास या तो भाग जाते थे या फिर विद्रोह कर देते थे। दास व्यापार यूरोपियों के दृष्टिकोण से बहुत लाभकारी प्रमाणित हुआ। दासों की मेहनत के परिणामस्वरूप यूरोपीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय प्रगति की।
प्रश्न 18.
दास प्रथा का उन्मूलन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
दासों के साथ किए जाने वाले अमानुषिक व्यवहार के कारण अनेक देशों में इस क्रूर प्रथा के विरुद्ध आवाज़ बुलंद होने लगी। बहत-से नेताओं ने इस प्रथा का अंत करने के लिए अपनी सरकारों को प्रेरित किया। इसके लिए उन्हें एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। अंत में उनकी प्रेरणा रंग लाई। इसके चलते सर्वप्रथम डेनमार्क ने 1803 ई० में दासों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।
यह निस्संदेह दास प्रथा का उन्मूलन करने की दिशा में उठाया गया प्रथम महत्त्वपूर्ण पग था। डेनमार्क का अनुसरण करते हुए ब्रिटेन ने 1807 ई० में, फ्राँस ने 1814 ई० में, नीदरलैंड ने 1817 ई० में तथा स्पेन ने 1845 ई० में गुलामों के व्यापार पर पूर्णतः निषेध लगा दिया। 1833 ई० में सर्वप्रथम ब्रिटेन ने दास प्रथा का अंत करने की घोषणा की।
इसके पश्चात् फ्राँस ने 1848 ई० में, संयुक्त राज्य अमरीका ने 1865 ई० में, क्यूबा ने 1886 ई० में तथा ब्राज़ील ने 1888 ई० में दास प्रथा का अंत कर दिया। दास प्रथा का उन्मूलन निस्संदेह एक नए युग का संकेत था।
अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
कोई ऐसे दो कारण बताएँ जिनसे 15वीं शताब्दी में सबसे पहले यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली ?
उत्तर:
- 14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी से संबंधित नए आविष्कारों ने नाविकों की समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया।
- पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने यूरोपीय नौचालन को यथासंभव सहायता प्रदान की।
प्रश्न 2.
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पंद्रहवीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया ?
उत्तर:
- उस समय स्पेन और पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था अच्छी थी। इस कारण वे अटलांटिक महासागर के पार जाने का खर्चा उठा सकने में सक्षम थे।
- स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने अटलांटिक महासागर के पार जाने वाले नाविकों की प्रत्येक संभव सहायता की।
- ईसाई प्रचारक वहाँ ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते थे।
प्रश्न 3.
कुतबनुमा का आविष्कार कब हुआ ? इसने नौचालन को कैसे प्रेरित किया ?
उत्तर:
- कुतबनुमा का आविष्कार 1380 ई० में हुआ।
- इसने नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी प्रदान की। इससे सुदूर समुद्री यात्राएं करना संभव हआ।
प्रश्न 4.
टॉलेमी कहाँ का निवासी था ? उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ? इसका प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर:
- टॉलेमी मित्र का निवासी था।
- उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम ज्योग्राफी था।
- इसका प्रकाशन 1477 ई० में हुआ था।
प्रश्न 5.
मार्को पोलो कौन था ?
उत्तर:
- मार्को पोलो इटली के शहर वेनिस का एक महान् यात्री था।
- वह 1275 ई० में मंगोलों के महान् नेता कुबलई खाँ के दरबार में पीकिंग पहुंचा।
- उसने मार्को पोलो की यात्राएँ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
प्रश्न 6.
रीकांक्वेस्टा (Reconquista) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
रीकांक्वेस्टा से अभिप्राय है पुनर्विजय। ईसाई राजाओं ने 1492 ई० में आईबेरियन प्रायद्वीप को अरबों के कब्जे से छडा लिया था। इस सैनिक विजय को रीकांक्वेस्टा कहा जाता है।
प्रश्न 7.
कैपिटुलैसियोन (Capitulaciones) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कैपिटुलैसियोन से अभिप्राय स्पेन के शासक द्वारा दिए गए इकरारनामों से है। इन इकरारनामों द्वारा स्पेन के शासक ने नए जीते गए प्रदेशों पर उन्हें जीतने वाले अभियानों के नेताओं को पुरस्कार के रूप में उनका शासनाधिकार दिया।
प्रश्न 8.
कौन-सी नयी खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमरीका से बाकी दुनिया को भेजी जाती है ?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका से तंबाकू, आलू, गन्ने की चीनी, ककाओ, रबड़, लाल मिर्च, मक्का, कसावा एवं कुमाला नामक नयी खाद्य वस्तुएँ बाकी दुनिया को भेजी जाती थीं।
प्रश्न 9.
कार्डिनल पिएर डिऐली (Cardinal Pierre di Ailly) कौन था ?
उत्तर:
- वह एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक था।
- उसने खगोलशास्त्र एवं भूगोल पर ‘इमगो मुंडी’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
प्रश्न 10.
क्रिस्टोफर कोलंबस कहाँ का निवासी था ? वह बहामा द्वीप समूह में कब पहुँचा ?
उत्तर:
- क्रिस्टोफर कोलंबस इटली का निवासी था।
- वह बहामा द्वीप समूह में 12 अक्तूबर, 1492 ई० को पहुँचा।
प्रश्न 11.
कोलंबस गुआनाहानि कब पहुँचा ? उसने इस द्वीप का क्या नाम रखा ?
उत्तर:
- कोलंबस गुआनाहानि 12 अक्तूबर, 1492 ई० को पहुंचा।
- उसने इस द्वीप का नाम सैन सैल्वाडोर रखा।
प्रश्न 12.
कोलंबस का नाम क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
- उसने नयी दुनिया की खोज की।
- उसने उपनिवेशों के युग का आरंभ किया।
- उसने यूरोप को कच्चे माल एवं खनिज पदार्थों के नए स्रोत दिए।
प्रश्न 13.
नयी दुनिया को अमरीका का नाम किसने, कब तथा किसकी स्मृति में दिया ?
उत्तर:
नयी दुनिया को अमरीका का नाम एक जर्मन प्रकाशक ने 1507 ई० में अमेरिगो वेस्पुसी की स्मृति में दिया।
प्रश्न 14.
कोक्विस्टोडोर (Conquistadores) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कोक्विस्टोडोर से अभिप्राय स्पेनी विजेताओं एवं उनके सैनिकों से है जिन्होंने नयी दुनिया में अपने साम्राज्य स्थापित किए।
प्रश्न 15.
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर कब आक्रमण किया था ? उस समय वहाँ का शासक कौन
उत्तर:
- हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर 1519 ई० में आक्रमण किया था।
- उस समय वहाँ का शासक मोंटेजुमा द्वितीय था।
प्रश्न 16.
डोना मैरीना (Dona Marina) कौन थी ?
उत्तर:
वह मैक्सिको की एक राजकुमारी थी। उसकी माँ ने उसे टैबैस्को लोगों को एक दासी के रूप में बेच दिया था। वह स्पेनिश एवं मैक्सिकन भाषाओं में बहुत प्रवीण थी। उसने हरनेंडो कोर्टेस के लिए दुभाषिये का काम किया था। उसके सहयोग के बिना हरनेंडो कोर्टेस के लिए मैक्सिको पर विजय पाना अत्यंत कठिन था।
प्रश्न 17.
मोंटेजुमा द्वितीय कौन था ?
उत्तर:
मोटेजुमा द्वितीय मैक्सिको का शासक था। वह इस पद पर 1502 ई० से 1520 ई० तक रहा। वह अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में बहुत बदनाम था। हरनेंडो कोर्टेस ने 1519 ई० में उसकी राजधानी टेनोक्टिटलान पर आक्रमण कर धोखे से बंदी बना लिया था। 29 जून, 1520 ई० को मोंटेजुमा द्वितीय को मौत के घाट उतार दिया गया।
प्रश्न 18.
हरनेंडो कोर्टस क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
हरनेंडो कोर्टेस स्पेन का एक प्रसिद्ध कोक्विस्टोडोर था। उसने 1519 ई० में मैक्सिको पर आक्रमण कर इसके शासक मोंटेजुमा द्वितीय को बंदी बना लिया था। उसने 1521 ई० में मैक्सिको पर कब्जा कर एज़टेक साम्राज्य का अंत कर दिया था। उसे स्पेन के शासक चार्ल्स पँचम ने न्यू स्पेन (मैक्सिको) का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल नियुक्त किया था। वह इस पद पर 1541 ई० तक रहा।
प्रश्न 19.
फ्रांसिस्को पिज़ारो कौन था ?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पिज़ारो स्पेन का एक प्रसिद्ध विजेता था। उसने 1532 ई० में पेरू में स्थापित इंका साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया था। उसने धोखे से इसके शासक अताहुआल्पा को बंदी बना लिया। उसने अताहुआल्पा से भारी फिरौती लेने के बावजूद उसका 1533 ई० में वध कर दिया। उसने इंका साम्राज्य में भयंकर लूटमार की। उसने 1535 ई० में लिमा को पेरू की नई राजधानी बनाया। 26 जून, 1541 ई० को पिज़ारो का लिमा में उसके विरोधियों ने वध कर दिया।
प्रश्न 20.
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल का नाम क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल पुर्तगाल का एक प्रसिद्ध नाविक था। उसने 22 अप्रैल, 1500 ई० को ब्राज़ील की खोज की। पुर्तगालियों ने यहाँ से मिलने वाली ब्राज़ीलवुड का भरपूर लाभ उठाया। इससे लाल रंजक (red dye) तैयार की जाती थी।
प्रश्न 21.
आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राज़ील की ओर कम ध्यान क्यों दिया ?
उत्तर:
आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राजील की ओर कम ध्यान इसलिए दिया क्योंकि वहाँ सोना अथवा चाँदी मिलने की संभावना बहुत कम थी। दूसरा, पुर्तगाली उस समय पश्चिमी भारत के साथ अपना व्यवसाय करने के लिए अधिक उत्सुक थे।
प्रश्न 22.
यूरोपीय जेसुइट पादरियों के विरुद्ध क्यों थे ?
उत्तर:
- वे सभी लोगों की स्वतंत्रता के पक्ष में थे।
- उन्होंने दास प्रथा की कड़े शब्दों में आलोचना की।
- उन्होंने यूरोपियों को मूल निवासियों के साथ अच्छा बर्ताव करने का परामर्श दिया।
प्रश्न 23.
पोटोसी (Potosi) को नरक का मुख किसने कहा और क्यों ?
उत्तर:
पोटोसी को नरक का मुख एक संन्यासी डोमिनिगो डि सैंटो टॉमस (Dominigo de Santo Tomas) ने कहा। इसका कारण यह था कि प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में इंडियन लोग जो यहाँ की खानों में काम करते थे मृत्यु का ग्रास बन जाते थे। इन खानों के मालिक इन लोगों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार करते थे।
प्रश्न 24.
दक्षिणी अमरीका को लैटिन अमरीका क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
दक्षिणी अमरीका को लैटिन अमरीका इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ स्पेनी एवं पुर्तगाली दोनों ही भाषाएँ बोली जाती थीं। ये दोनों ही भाषाएँ लैटिन भाषा परिवार से संबंधित हैं। अतः दक्षिणी अमरीका को लैटिन अमरीका कहा जाने लगा।
प्रश्न 25.
अरावाकी लुकायो कौन थे?
उत्तर:
- वे बहुत शांतिप्रिय लोग थे।
- वे लड़ने की अपेक्षा बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।
प्रश्न 26.
अरावाकी सभ्यता की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
- वे अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे।
- उनमें बहु-विवाह प्रथा प्रचलित थी।
प्रश्न 27.
अरावाकी लोगों का आरंभ में स्पेनियों के प्रति कैसा व्यवहार था ? बाद में इस व्यवहार में परिवर्तन क्यों आया ?
उत्तर:
- अरावाकी लोगों का आरंभ में स्पेनियों के प्रति व्यवहार मैत्रीपूर्ण था।
- बाद में इस व्यवहार में परिवर्तन का कारण स्पेनियों द्वारा मूल निवासियों के प्रति अपनाई गई क्रूर नीति थी।
प्रश्न 28.
तुपिनांबा लोग कहाँ रहते थे ? वे खेती के लिए घने जंगलों का सफ़ाया क्यों न कर सके ?
उत्तर:
- तुपिनांबा लोग दक्षिणी अमरीका के पूर्वी तट पर रहते थे।
- वे खेती के लिए घने जंगलों का सफाया इसलिए नहीं कर सके क्योंकि उनके पास पेड़ काटने के लिए लोहे का कुल्हाड़ा नहीं था।
प्रश्न 29.
स्पेनियों के संपर्क में आने के बाद 25 वर्ष के अंदर ही अरावाकी सभ्यता लुप्त क्यों हो गई ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:
- स्पेनियों ने अरावाकियों का क्रूरता से दमन किया।
- स्पेनियों के आगमन से अरावाकियों में अनेक भयंकर बीमारियाँ फैल गईं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में अरावाकियों की मृत्यु हो गई।
प्रश्न 30.
एजटेक साम्राज्य की राजधानी का नाम क्या था ? इसका निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:
- एज़टेक साम्राज्य की राजधानी का नाम टेनोक्टिटलान (Tenochtitlan) था।
- इसका निर्माण 1325 ई० में किया गया।
प्रश्न 31.
एज़टेक की राजधानी टेनोक्टिटलान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- इसका निर्माण 1325 ई० में किया गया था।
- इसे भव्य महलों, मंदिरों एवं उपवनों से सुसज्जित किया गया था।
प्रश्न 32.
एज़टेक सभ्यता की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
- एजटेक समाज में सम्राट को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
- एज़टेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त थे।
प्रश्न 33.
एजटेक समाज में सम्राट् की स्थिति क्या थी ?
उत्तर:
- एज़टेक समाज में सम्राट को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
- उसे निरंकुश शक्तियाँ प्राप्त थीं।
- उसे पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि समझा जाता था।
प्रश्न 34.
चिनाम्पा. (Chinampas) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
चिनाम्पा मैक्सिको झील में बने कृत्रिम टापू थे। इन्हें सरकंडे की बहुत बड़ी चटाइयाँ बुनकर इन्हें मिट्टी तथा पत्तों से ढककर बनाया जाता था। ये अत्यंत उपजाऊ थे।
प्रश्न 35.
कालमेकाक (Calmecac) तथा तेपोकल्ली (Telpochcally) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
- कालमेकाक एजटेक लोगों के वे स्कल थे जिनमें अभिजात वर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते थे।
- तेपोकल्ली वे स्कल थे जिनमें साधारण वर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते थे।
प्रश्न 36.
एज़टेक समाज में लड़कों एवं लड़कियों को किस प्रकार की शिक्षा दी जाती थी ?
उत्तर:
- एज़टेक समाज में लड़कों को पुरोहित एवं सैनिक बनने की शिक्षा दी जाती थी।
- एजटेक समाज में लड़कियों को घरेलू कार्यों की शिक्षा दी जाती थी।
प्रश्न 37.
एज़टेक समाज में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
एजटेक समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी थी। वे शिक्षा प्राप्त करती थीं। वे सामान्यतः घरेलू कार्य करती थीं। कुछ स्त्रियाँ खेती का एवं कुछ पुरोहित का कार्य भी करती थीं। उनका विवाह प्रायः 16 वर्ष की आयु में किया जाता था।
प्रश्न 38.
एजटेक लोगों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
- वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
- सूर्य देवता एवं युद्ध देवता उनके दो प्रमुख देवते थे।
- वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मनुष्यों की बलियाँ देते थे।
प्रश्न 39.
एजटेक सभ्यता के पतन के कोई दो प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर:
- एज़टेक शासकों ने गैर-एज़टेक लोगों पर घोर अत्याचार किए। इस कारण उनमें भारी असंतोष था।
- एज़टेक साम्राज्य में रोजाना बड़ी संख्या में लोगों की बलि दी जाती थी। अत: वे ऐसे शासन का अंत करना चाहते थे।
प्रश्न 40.
एजटेक और मेसोपोटामई सभ्यता की तुलना कीजिए।
उत्तर:
- एज़टेक और मेसोपोटामई सभ्यताएँ एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थीं।
- दोनों सभ्यताओं के समाजों में दासों को सबसे निम्न स्थान प्राप्त था।
- दोनों सभ्यताओं में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी।
प्रश्न 41.
इंका सभ्यता का संस्थापक कौन था ? उसकी राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर:
- इंका सभ्यता का संस्थापक मैंको कपाक था।
- उसकी राजधानी का नाम कुजको था।
प्रश्न 42.
इंका सभ्यता का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था ? वह सिंहासन पर कब बैठा था ?
उत्तर:
- इंका सभ्यता का सबसे शक्तिशाली शासक पचकुटी इंका था।
- वह 1438 ई० में सिंहासन पर बैठा था।
प्रश्न 43.
इंका साम्राज्य की राजधानी एवं प्रशासनिक भाषा का नाम बताएँ।
उत्तर:
- इंका साम्राज्य की राजधानी का नाम कुजको (Cuzco) था।
- इंका साम्राज्य की प्रशासनिक भाषा कवेचुआ (Quechua) थी।
प्रश्न 44.
इंका सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
इंका समाज की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- इंका साम्राज्य में सम्राट की स्थिति सर्वोच्च थी।
- इंका समाज विभिन्न श्रेणियों में विभाजित था।
- इंका सभ्यता का आधार कृषि था।
प्रश्न 45.
इंका लोग उच्चकोटि के भवन निर्माता थे। कैसे ?
उत्तर:
- उन्होंने कुजको एवं माचू-पिच्चू में भव्य महलों, किलों एवं मंदिरों का निर्माण किया।
- उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से चिली तक अनेक सड़कें बनाईं।
प्रश्न 46.
इंका भवनों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
- वे अपने भवनों में विशाल पत्थरों का प्रयोग करते थे।
- वे अपने भवनों को शल्क पद्धति (flaking) द्वारा सुंदर बनाते थे।
प्रश्न 47.
“इंका समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी।” कोई दो तर्क दें।
उत्तर:
- उनका परिवार में पूर्ण सम्मान किया जाता था।
- उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था।
प्रश्न 48.
क्विपु (quipu) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
क्विपु इंका लोगों की एक प्रणाली थी। इससे चीजों को स्मरण रखने में सहायता मिलती थी। इसमें एक डंडा होता था जिसमें विभिन्न रंगों की रस्सियों से गाँठ बाँधी जाती थी। प्रत्येक गाँठ एक किस्म का संकेत देती थी जिससे उस वस्तु का अनुमान लगाया जाता था।
प्रश्न 49.
इंका कृषि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
- वे कृषि के लिए पहाड़ों में सीढ़ीदार खेत (terraces) बनाते थे।
- उनकी दो प्रमुख फ़सलें मक्का एवं आलू थीं।
प्रश्न 50.
इंका लोग लामा (Ilama) का पालन क्यों करते थे ?
उत्तर:
- वे इससे भार ढोने का कार्य लेते थे।
- वे इससे ऊन प्राप्त करते थे।
- वे इसका माँस खाते थे।
प्रश्न 51.
इंका लोगों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
- उनका प्रमुख देवता सूर्य था।
- वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जानवरों एवं कभी-कभी मनुष्यों की बलियाँ देते थे।
- वे मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।
प्रश्न 52.
इंका सभ्यता के पतन के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
- इंका शासक अताहुआल्पा एक योग्य शासक प्रमाणित न हुआ।
- इंका स्पेनी आक्रमणकारी फ्रांसिस्को पिज़ारो का सामना न कर सके।
प्रश्न 53.
माया काल का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- माया सभ्यता का आरंभ 1500 ई० पू० में हुआ था।
- यह सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान बहुत प्रफुल्लित हुई।
- इस सभ्यता का अंत 1519 ई० में हुआ।
प्रश्न 54.
माया सभ्यता की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- उनकी सभ्यता का मुख्य आधार मक्के की खेती थी।
- माया समाज में पुरोहितों को मुख्य स्थान प्राप्त था।
प्रश्न 55.
मक्के की खेती माया सभ्यता का मुख्य आधार क्यों थी ?
उत्तर:
मक्के की खेती माया सभ्यता का मख्य आधार इसलिए थी क्योंकि उनके अनेक धार्मिक क्रियाकलाप एवं उत्सव मक्का बोने, उगाने एवं काटने से जुड़े थे।
प्रश्न 56.
माया लोगों के धार्मिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
- वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके दो प्रमुख देवता सूर्य देवता एवं मक्का देवता थे।
- वे मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे।
प्रश्न 57.
माया मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर कौन-सा था ? इसकी स्थापना कब और कहाँ की गई थी ?
उत्तर:
- माया मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर टिक्ल था।
- इसकी स्थापना 8वीं शताब्दी में ग्वातेमाला में की गई थी।
प्रश्न 58.
माया पंचांग कितनी प्रकार के थे ? इनमें वर्ष में कितने दिन होते थे ?
उत्तर:
- माया पंचांग दो प्रकार के थे।
- इनमें एक वर्ष में 365 दिन एवं दूसरे में 260 दिन होते थे।
प्रश्न 59. माया लिपि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
- माया लिपि चित्रात्मक थी।
- इस लिपि को अभी तक पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका है।
प्रश्न 60.
माया सभ्यता के पतन के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:
- इस सभ्यता के पतन में किसानों के विद्रोह मुख्य रूप से उत्तरदायी थे।
- 1519 ई० में हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण ने माया सभ्यता के पतन का डंका बजा दिया।
प्रश्न 61.
ओलाउदाह एक्वियानो (Olaudah Equiano) कहाँ का निवासी था ? जब उसे गुलाम बनाया गया तो उसकी आयु क्या थी ?
उत्तर:
- ओलाउदाह एक्वियानो नाईजीरिया का निवासी था।
- जब उसे गुलाम बनाया गया तो उसकी आयु 11 वर्ष थी।
प्रश्न 62.
ओलाउदाह एक्वियानो ने अपनी आत्मकथा कब लिखी ? इसका नाम क्या था ?
उत्तर:
- ओलाउदाह एक्वियानो ने अपनी आत्मकथा 1789 ई० में लिखी।
- इसका नाम दि इनटरेस्टिंग नैरैटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो था।
प्रश्न 63.
आधुनिक इतिहासकार एरिक विलियम्स ने कब तथा किस पुस्तक की रचना की ? इसका विषय क्या था ?
उत्तर:
- आधुनिक इतिहासकार एरिक विलियम्स ने 1940 के दशक में कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
- इसका मुख्य विषय अफ्रीकी दासों के कष्टों का वर्णन करना था।
प्रश्न 64.
दासों पर लगे कोई दो प्रतिबंध बताएँ।
उत्तर:
- वे अपने मालिकों से अनुमति पत्र लिए बिना अपने कार्य को नहीं छोड़ सकते थे।
- वे अपने पास किसी किस्म का कोई हथियार नहीं रख सकते थे।।
प्रश्न 65.
किन्हीं दो देशों के नाम बताएँ जिन्होंने दास प्रथा का उन्मूलन किया। ऐसा कब किया गया ?
उत्तर:
- ब्रिटेन एवं संयुक्त राज्य अमरीका ने दास प्रथा का उन्मूलन किया।
- ऐसा क्रमवार 1833 ई० एवं 1865 ई० में किया गया।
प्रश्न 66.
दास प्रथा के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:
- अफ्रीका के अधिकांश पुरुषों को दास बना कर यूरोप में बेच दिया गया। इससे अफ्रीका में लिंग अनुपात गड़बड़ा गया।
- दासों की मेहनत के कारण यूरोपीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
यूरोपवासियों ने खोज यात्राओं का श्रीगणेश किस शताब्दी में किया ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में।
प्रश्न 2.
15वीं शताब्दी में किन दो देशों ने समुद्री यात्राओं को प्रोत्साहित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया ?
उत्तर:
पुर्तगाल एवं स्पेन।
प्रश्न 3.
तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर कब अधिकार किया ?
उत्तर:
1453 ई० में।
प्रश्न 4.
कुतबनुमा का आविष्कार कब हुआ था ?
उत्तर:
1380 ई० में।
प्रश्न 5.
विश्व का ठीक मानचित्र किसने बनाया था ?
उत्तर:
बतिस्ता ने।
प्रश्न 6.
टॉलेमी की ज्योग्राफ़ी किस वर्ष प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
1477 ई० में।
प्रश्न 7.
मार्को पोलो कुबलई खाँ के दरबार में कब पहुँचा था ?
उत्तर:
1275 ई० में।
प्रश्न 8.
समुद्री खोज यात्राओं को प्रोत्साहित करने वाला राजकुमार हेनरी किस देश से संबंधित था ?
उत्तर:
पुर्तगाल।
प्रश्न 9.
क्रिस्टोफर कोलंबस किस देश का निवासी था ?
उत्तर:
इटली का।
प्रश्न 10.
इमगो मुंडी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
कार्डिनल पिएर डिऐली।
प्रश्न 11.
क्रिस्टोफर कोलंबस गुआनाहानि कब पहुँचा ?
उत्तर:
1492 ई० में।
प्रश्न 12.
गुआनाहानि में कौन लोग रहते थे ?
उत्तर:
अरावाक।
प्रश्न 13.
कोलंबस ने गुआनाहानि में रहने वाले लोगों को किस नाम से पुकारा ?
उत्तर:
रेड इंडियन्स।
प्रश्न 14.
कोलंबस ने गुआनाहानि का नाम क्या रखा ?
उत्तर:
सैन सैल्वाडोर।
प्रश्न 15.
कोलंबस की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1506 ई० में।
प्रश्न 16.
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर:
1519 ई० में।
प्रश्न 17.
हरनेंडो कोर्टस के मैक्सिको आक्रमण के दौरान किसने उसे बहुमूल्य सहयोग दिया ?
उत्तर:
डोना मैरीना ने।
प्रश्न 18.
टु हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको का लेखक कौन था ?
उत्तर:
बर्नाल डियाज़ डेल कैस्टिलो।
प्रश्न 19.
हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण के समय वहाँ किस एजटेक शासक का शासन था ?
उत्तर:
मोंटेजुमा द्वितीय का।
प्रश्न 20.
एजटेक साम्राज्य की राजधानी का नाम क्या था।
उत्तर:
टेनोक्टिटलान।
प्रश्न 21.
आँसू भरी रात की घटना कब हुई ?
उत्तर:
30 जून, 1520 ई०।
प्रश्न 22.
हरनेंडो कोर्टेस ने एज़टेक साम्राज्य का अंत कब किया ?
उत्तर:
1521 ई० में।
प्रश्न 23.
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको का क्या नाम रखा ?
उत्तर:
न्यू स्पेन।
प्रश्न 24.
पेरू पर किसने अधिकार किया ?
उत्तर:
फ्राँसिस्को पिज़ारो ने।
प्रश्न 25.
फ्राँसिस्को पिज़ारो ने किसे पेरू की राजधानी घोषित किया ?
उत्तर:
लिमा को।
प्रश्न 26.
ब्राजील की खोज किसने की ?
उत्तर:
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल ने।
प्रश्न 27.
ब्राज़ील किस वृक्ष के लिए जाना जाता था ?
उत्तर:
ब्राज़ीलवुड के लिए।
प्रश्न 28.
पुर्तगाल ने ब्राज़ील का शासन कब सीधा अपने हाथों में ले लिया ?
उत्तर:
1549 ई० में।
प्रश्न 29.
पुर्तगाल ने किसे ब्राज़ील की राजधानी घोषित किया?
उत्तर:
सैल्वाडोर को।
प्रश्न 30.
अरावाकी लुकायो नामक कबीला कहाँ रहता था ?
उत्तर:
बहामा एवं वृहत्तर एंटिलीज में।
प्रश्न 31.
हैमक क्या थे ?
उत्तर:
एक प्रकार का झूला।
प्रश्न 32.
एजटेक साम्राज्य कहाँ फैला हुआ था ?
उत्तर:
मैक्सिको में।
प्रश्न 33.
एजटेक साम्राज्य की राजधानी टेनोक्टिटलान का निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:
1325 ई० में।
प्रश्न 34.
एजटेक समाज में सबसे निम्न स्थान किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
दासों को।
प्रश्न 35.
मैक्सिको झील में जो कृत्रिम टापू बनाए गए थे वे क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
चिनाम्पा।
प्रश्न 36.
एजटेक साम्राज्य में अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते थे वे क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
कालमेकाक।
प्रश्न 37.
एज़टेकों का प्रमुख देवता कौन था ?
उत्तर:
सूर्य देवता।
प्रश्न 38.
दक्षिण अमरीका की सबसे प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली सभ्यता कौन-सी थी ?
उत्तर:
इंका सभ्यता।
प्रश्न 39.
इंका साम्राज्य का संस्थापक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
मैंको कपाक को।।
प्रश्न 40.
इंका साम्राज्य की राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर:
कुजको।
प्रश्न 41.
इंका साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था ?
उत्तर:
पचकुटी इंका।
प्रश्न 42.
माचू-पिच्चू नामक प्रसिद्ध शहर का निर्माण किस सभ्यता ने किया था ?
उत्तर:
इंका सभ्यता ने।
प्रश्न 43.
इंका साम्राज्य में किसे सर्वोच्च स्थान प्राप्त था ?
उत्तर:
सम्राट् को।
प्रश्न 44.
इंका साम्राज्य में विद्यार्थियों को शिक्षा किस प्रकार दी जाती थी ?
उत्तर:
मौखिक।
प्रश्न 45.
इंका साम्राज्य के लोगों की प्रशासनिक भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
क्वेचुआ।
प्रश्न 46.
माया सभ्यता कहाँ फैली थी ?
उत्तर:
मैक्सिको में।
प्रश्न 47.
माया सभ्यता के लोग किस फ़सल का सर्वाधिक उत्पादन करते थे ?
उत्तर:
मक्का का।
प्रश्न 48.
माया लोगों का प्रमुख देवता कौन था ?
उत्तर:
सूर्य देवता।
प्रश्न 49.
माया लोगों ने टिक्ल मंदिर का निर्माण कहाँ करवाया था ?
उत्तर:
ग्वातेमाला में।
प्रश्न 50.
माया लोगों ने कितने प्रकार के पंचांग तैयार किए थे ?
उत्तर:
दो।
प्रश्न 51.
माया लोगों की लिपि कैसी थी ?
उत्तर:
चित्रात्मक।
प्रश्न 52.
ओलाउदाह एक्वियानो कहाँ का निवासी था ?
उत्तर:
नाईजीरिया का।
प्रश्न 53.
दि इनटरेस्टिंग नैरेटिव ऑफ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो का प्रकाशन किस वर्ष हुआ था ?
उत्तर:
1789 ई० में
प्रश्न 54.
17वीं-18वीं शताब्दियों में यूरोपीय देश अधिकाँश दास कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर:
अफ्रीका से।
प्रश्न 55.
कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
एरिक विलियम्स।
प्रश्न 56.
संयुक्त राज्य अमरीका ने दास प्रथा पर कब प्रतिबंध लगाया ?
उत्तर:
1865 ई० में।
रिक्त स्थान भरिए
1. यूरोपवासियों ने खोज यात्राओं का सर्वप्रथम आरंभ ……………… सदी में किया।
उत्तर:
15वीं
2. स्पेन के हरनेंडो कोर्टेस ने ……………….. में मैक्सिको पर आक्रमण कर दिया था।
उत्तर:
1519 ई०
3. एज़टेक की राजधानी का नाम ……………….. था।
उत्तर:
टेनोक्टिटलान
4. माया संस्कृति का संबंध ………………. देश से था।
उत्तर:
मैक्सिको
5. माया संस्कृति के लोगों के द्वारा टिक्ल मंदिर का निर्माण ……………….. में करवाया गया था।
उत्तर:
ग्वातेमाला
6. इंका साम्राज्य की स्थापना ……………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
मैंको कपाक
7. टॉलेमी ने ……………….. नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
उत्तर:
ज्योग्रफ़ी
8. तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर विजय ……………….. ई० में प्राप्त की।
उत्तर:
1453
9. क्रिस्टोफर ……………….. का निवासी था।
उत्तर:
इटली
10. स्पेनिश भाषा के अनुसार ‘बाओ’ शब्द का अर्थ है …………. ।
उत्तर:
भारी जहाज़
11. वास्कोडिगामा ……………….. ई० में कालीकट पहुँचा।
उत्तर:
1498
12. अमेरिका नाम का सर्वप्रथम प्रयोग एक जर्मन के प्रकाशक द्वारा ………………. ई० में किया गया।
उत्तर:
1507
13. ‘टू हिस्ट्री ऑफ मैक्सिको’ नामक पुस्तक की रचना …………. द्वारा की गई।
उत्तर:
बर्नार्ड
14. फ्रांसीसको पिज़ारो ने ……………….. को पेरु की राजधानी घोषित किया।
उत्तर:
लिमा को
15. स्पेन के फिलिप द्वितीय द्वारा बेगार की प्रथा पर ……………….. ई० में रोक लगा दी गई थी।
उत्तर:
1601
16. एरिक विलियम्स की सुप्रसिद्ध रचना का नाम ……………….. था।
उत्तर:
कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी
17. संयुक्त राज्य अमेरिका ने ……………….. ई० में दास प्रथा पर रोक लगा दी थी।
उत्तर:
1865
बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. 15वीं से 17वीं शताब्दियों के दौरान यूरोपवासियों और उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका के मूल निवासियों के बीच हुए संघर्ष की जानकारी का प्रमुख स्रोत क्या है ?
(क) भवन
(ख) यात्रियों की डायरियाँ
(ग) जेसुइट धर्म प्रचारकों के विवरण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।
2. दूरबीन की खोज कब हुई ?
(क) 1409 ई० में
(ख) 1469 ई० में
(ग) 1609 ई० में
(घ) 1709 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1609 ई० में
3. दिशासूचक यंत्र का आविष्कार कब हुआ था ?
(क) 1280 ई० में
(ख) 1320 ई० में
(ग) 1380 ई० में
(घ) 1420 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1380 ई० में
4. टॉलेमी की ज्योग्राफ़ी किस वर्ष प्रकाशित हुई थी ?
(क) 1475 ई० में
(ख) 1477 ई० में
(ग) 1478 ई० में
(घ) 1479 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1477 ई० में
5. तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर कब अधिकार कर लिया था ?
(क) 1433 ई० में
(ख) 1443 ई० में
(ग) 1453 ई० में
(घ) 1463 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1453 ई० में
6. मार्कोपोलो किस देश का निवासी था ?
(क) फ्राँस का
(ख) इटली का
(ग) रूस का
(घ) अमेरिका का।
उत्तर:
(ख) इटली का
7. कोलंबस का जन्म स्थान कहाँ था ?
(क) जेनेवा
(ख) पुर्तगाल
(ग) फ्राँस
(घ) स्पेन।
उत्तर:
(ख) पुर्तगाल
8. कोलंबस गुआनाहानि कब पहुँचा ?
(क) 1410 ई० में
(ख) 1451 ई० में
(ग) 1482 ई० में
(घ) 1492 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1492 ई० में।
9. कोलंबस ने गुआनाहानि के लोगों को किस नाम से संबोधित किया ?
(क) रेड इंडियन्स
(ख) ब्लैक इंडियनस
(ग) अरावाक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) रेड इंडियन्स
10. कोलंबस ने गुआनाहानि में किस देश का झंडा गाड़ा था ?
(क) पुर्तगाल का
(ख) इटली का
(ग) स्पेन का
(घ) मैक्सिको का।
उत्तर:
(ग) स्पेन का
11. निम्नलिखित में से किसने दक्षिण अमरीका को नयी दुनिया का नाम दिया ?
(क) कोलंबस ने
(ख) अमेरिगो वेस्पुसी ने
(ग) हरनेंडो कोर्टेस ने
(घ) डोना मैरीना ने।
उत्तर:
(ख) अमेरिगो वेस्पुसी ने
12. हरनेडो कोर्टेस और उसके सैनिकों जिन्होंने मैक्सिको पर आक्रमण किया था इतिहास में किस नाम से जाना जाता है ?
(क) कोंक्विस्टोडोर
(ख) मालिंचिस्टा
(ग) लैक्सकलान
(घ) कैरिब।
उत्तर:
(क) कोंक्विस्टोडोर
13. बर्नाल डियाज़ डेल कैस्टिलो ने किस प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की ?
(क) इमगो मुंडी
(ख) ट्र हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको ।
(ग) ट्र हिस्ट्री ऑफ़ अमरीका
(घ) दि प्रिंस।
उत्तर:
(ख) ट्र हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको ।
14. हरनेंडो कोर्टस ने मैक्सिको पर कब आक्रमण किया था ? ।
(क) 1509 ई० में
(ख) 1511 ई० में
(ग) 1519 ई० में
(घ) 1521 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1519 ई० में
15. हरनेंडो कोटेंस ने जब मैक्सिको पर आक्रमण किया तो वहाँ किसका शासन था ?
(क) मोंटेजुमा प्रथम का
(ख) मोंटेजुमा द्वितीय का
(ग) अताहुआल्पा का
(घ) हुआस्कर का।
उत्तर:
(ख) मोंटेजुमा द्वितीय का
16. आँसू भरी रात की घटना किस दिन हुई ?
(क) 19 जन. 1520 ई० को
(ख) 29 जन 1500 ई० को
(ग) 30 जून, 1520 ई० को
(घ) 29 जुलाई, 1520 ई० को।
उत्तर:
(ग) 30 जून, 1520 ई० को
17. हरनेंडो कोर्टेस ने एजटेक साम्राज्य का अंत कब किया ?
(क) 1519 ई० में
(ख) 1520 ई० में
(ग) 1521 ई० में
(घ) 1522 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1521 ई० में
18. हरनेंडो कोर्टेस को मैक्सिको विजय के लिए किसने बहुमूल्य सहयोग दिया था ?
(क) मोंटेजुमा द्वितीय ने
(ख) डोना मैरीना ने
(ग) अमेरिगो वेस्पुसी ने
(घ) काजामारका ने।
उत्तर:
(ख) डोना मैरीना ने
19. अताहुआल्पा इंका साम्राज्य का शासक कब बना ?
(क) 1529 ई० में
(ख) 1530 ई० में
(ग) 1531 ई० में
(घ) 1532 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1532 ई० में।
20. इंका साम्राज्य की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) पेरू
(ख) लिमा
(ग) कुजको
(घ) टेनोक्टिटलान।
उत्तर:
(ग) कुजको
21. निम्नलिखित में से किसने इंका साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था ?
(क) कोलंबस ने
(ख) फ्राँसिस्को पिज़ारो ने
(ग) हरनेंडो कोर्टेस ने
(घ) डोना मैरीना ने।
उत्तर:
(ख) फ्राँसिस्को पिज़ारो ने
22. 1533 ई० में पुर्तगाल के राजा ने ब्राजील को कितने आनुवंशिक कप्तानियों में बाँट दिया था?
(क) 13
(ख) 14
(ग) 15
(घ) 16
उत्तर:
(ग) 15
23. पुर्तगाल के शासक ने किसे ब्राज़ील की राजधानी घोषित किया ?
(क) कुजको को
(ख) सैल्वाडोर को
(ग) क्यूबा को
(घ) सैन सैल्वाडोर को।
उत्तर:
(ख) सैल्वाडोर को
24. एंटोनियो वीइरा कौन था ?
(क) जेसुइट
(ख) कैथोलिक पादरी
(ग) फ्रांसीसी व्यापारी
(घ) पुर्तगाली नाविक।
उत्तर:
(क) जेसुइट
25. अरावाकी लोगों की प्रमुख फ़सल कौन-सी थी ?
(क) मक्का
(ख) कसावा
(ग) मीठे आलू
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।
26. अरावाकी जो झूले बनाते थे वे किस नाम से जाने जाते थे ?
(क) कुजको
(ख) कसावा
(ग) हैमक
(घ) डोनाटेरियस।
उत्तर:
(ग) हैमक
27. एजटेकों ने अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना कहाँ की थी ?
(क) मैक्सिको में
(ख) ब्राज़ील में
(ग) स्पेन में
(घ) इटली में।
उत्तर:
(क) मैक्सिको में
28. एज़टेकों ने मैक्सिको नाम अपने किस प्रमुख देवता के नाम पर रखा था ?
(क) युद्ध देवता
(ख) कुजको
(ग) मैक्सिली
(घ) कालमेकाक।
उत्तर:
(ग) मैक्सिली
29. एजटेकों ने मैक्सिको झील में जो कृत्रिम टापू बनवाए वे क्या कहलाते थे ?
(क) चिनाम्पा
(ख) हैमक
(ग) माचू-पिच्चू
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) चिनाम्पा
30. एजटेकों की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) कुजको
(ख) टेनोक्टिटलान
(ग) सैल्वाडोर
(घ) लिमा।
उत्तर:
(ख) टेनोक्टिटलान
31. एज़टेक समाज में सर्वोच्च स्थान किसे प्राप्त था ?
(क) अभिजात वर्ग को
(ख) पुरोहितों को
(ग) सैनिकों को
(घ) दासों को।
उत्तर:
(क) अभिजात वर्ग को
32. एनटेक साम्राज्य में अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते थे वे क्या कहलाते थे ?
(क) तेपोकल्ली
(ख) कालमेकाक
(ग) हैमक
(घ) डोनाटेरियस।
उत्तर:
(ख) कालमेकाक
33. एजटेक साम्राज्य के लोग किस देवी की प्रमुख रूप से उपासना करते थे ?
(क) मातृदेवी
(ख) अन्न देवी
(ग) मिनर्वा
(घ) डायना।
उत्तर:
(ख) अन्न देवी
34. इंका साम्राज्य की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 10वीं शताब्दी में
(ख) 12वीं शताब्दी में
(ग) 13वीं शताब्दी में
(घ) 15वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(ख) 12वीं शताब्दी में
35. इंका साम्राज्य की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) बहामा में
(ख) ब्राज़ील में
(ग) पेरू में
(घ) मैक्सिको में।
उत्तर:
(ग) पेरू में
36. इंका साम्राज्य का सबसे महान् शासक कौन था ?
(क) मैंको कपाक
(ख) पचकुटी इंका
(ग) अताहुआल्पा
(घ) हुआस्कर।
उत्तर:
(ख) पचकुटी इंका
37. निम्नलिखित में से किस शहर का निर्माण इंका साम्राज्य के लोगों ने किया था ?
(क) उर
(ख) मारी
(ग) माचू-पिच्चू
(घ) लिमा।
उत्तर:
(ग) माचू-पिच्चू
38. इंका साम्राज्य के लोगों की प्रशासनिक भाषा क्या थी ?
(क) अंग्रेज़ी
(ख) फ्राँसीसी
(ग) क्विपु
(घ) क्वेचुआ।
उत्तर:
(घ) क्वेचुआ।
39. निम्नलिखित में से किस का साम्राज्य के लोग पालते थे ?
(क) भेड़
(ख) गाय
(ग) लामा
(घ) बाइसन।
उत्तर:
(ग) लामा
40. इंका साम्राज्य का अंत कब हुआ ?
(क) 1530 ई० में
(ख) 1532 ई० में
(ग) 1632 ई० में
(घ) 1638 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1532 ई० में
41. माया समाज में सबसे निम्न स्थान किसे प्राप्त था ?
(क) पुरोहितों को
(ख) दासों को
(ग) व्यापारियों को
(घ) किसानों को।
उत्तर:
(ख) दासों को
42. माया सभ्यता के लोग निम्न में से किस फ़सल का सर्वाधिक उत्पादन करते थे ?
(क) आलू
(ख) कपास
(ग) सेम
(घ) मक्का
उत्तर:
(घ) मक्का
43. माया सभ्यता द्वारा निर्मित टिक्ल मंदिर का निर्माण किस शताब्दी में किया गया था ?
(क) 7वीं शताब्दी में
(ख) 8वीं शताब्दी में
(ग) 9वीं शताब्दी में
(घ) 10वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(ख) 8वीं शताब्दी में
44. माया सभ्यता के लोगों ने कितने प्रकार के पंचांग बनाए थे ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
(ख) दो
45. ओलाउदाह एक्वियानो कौन था ?
(क) दास
(ख) दार्शनिक
(ग) चिकित्सक
(घ) अध्यापक।
उत्तर:
(क) दास
46. ओलाउदाह एक्वियानो कहाँ का निवासी था ?
(क) साइबेरिया का
(ख) नाइजीरिया का
(ग) तंजानिया का
(घ) केन्या का।
उत्तर:
(ख) नाइजीरिया का
47. कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी का लेखक कौन था ?
(क) जॉन विलियम्स
(ख) एरिक विलियम्स
(ग) कार्डिनल पिएर डिऐली
(घ) मार्को पोलो।
उत्तर:
(ख) एरिक विलियम्स
48. निम्नलिखित में से किस देश ने 1865 ई० में दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था ?
(क) डेनमार्क
(ख) ब्रिटेन
(ग) संयुक्त राज्य अमरीका
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(ग) संयुक्त राज्य अमरीका
संस्कृतियों का टकराव HBSE 11th Class History Notes
→ 15वीं शताब्दी में यूरोपवासियों द्वारा की गई भौगोलिक खोजों ने एक नए युग का सूत्रपात किया। इन भौगोलिक खोजों को नए आविष्कारों, टॉलेमी की ज्योग्राफी, मार्को पोलो की यात्राओं, आर्थिक एवं धार्मिक उद्देश्यों एवं पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी के बहुमूल्य योगदान ने प्रेरित किया। इन खोजों के अनेक दूरगामी परिणाम निकले।
→ 1492 ई० में क्रिस्टोफर कोलंबस ने बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि नामक स्थान पर स्पेन का झंडा गाड़ा। उसने इस द्वीप का नाम सैन-सैल्वाडोर रखा। यहाँ के अरावाकी लोगों ने जिस गर्मजोशी से कोलंबस का स्वागत किया उससे वह चकित रह गया। 1499 ई० में इटली के अमेरिगो वेस्पुसी ने दक्षिण अमरीका की यात्रा की।
→ उसने इसे नई दुनिया के नाम से संबोधित किया। 1507 ई० में एक जर्मन प्रकाशक ने अमेरिगो वेस्पुसी की स्मृति में नयी दुनिया को अमरीका का नाम दिया। स्पेन के हरनेडो कोर्टेस ने 1519 ई० में मैक्सिको पर आक्रमण कर दिया था। इस आक्रमण के दौरान उसे डोना मैरीना ने बहुमूल्य योगदान दिया।
→ कोर्टेस ने मैक्सिको के शासक मोंटेजुमा द्वितीय को धोखे से बंदी बना लिया। 1521 ई० में कोर्टेस ने एज़टेकों को पराजित कर उनके साम्राज्य का अंत कर दिया। हरनेंडो कोर्टेस 1522 ई० से लेकर 1547 ई० तक मैक्सिको जिसे अब न्यू स्पेन का नाम दिया गया था का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल रहा।
→ अपने शासनकाल के दौरान उसने वहाँ के मूल निवासियों पर घोर अत्याचार किए। स्पेन के एक अन्य प्रसिद्ध विजेता फ्रांसिस्को पिज़ारो ने पेरू में स्थापित इंका साम्राज्य पर 1532 ई० में आक्रमण कर दिया। उसने धोखे से वहाँ के शासक अताहुआल्पा को बंदी बना लिया।
→ इस कारण उसने सुगमता से 1533 ई० में इंका साम्राज्य की राजधानी कुज़को पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने वहाँ भयंकर लूटमार की। पिज़ारो ने 1541 ई० तक पेरू में शासन किया। उसने लिमा को पेरू की नई राजधानी बनाया। 1500 ई० में पुर्तगाल का नाविक पेड्रो अल्वारिस कैबाल संयोगवश ब्राज़ील पहुँच गया था।
→ आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राज़ील की ओर कम ध्यान दिया। इसका प्रमुख कारण यह था कि वहाँ सोना अथवा चाँदी मिलने की संभावना बहुत कम थी। ब्राज़ील में केवल ब्राज़ीलवुड नामक इमारती लकड़ी मिलती थी। 1549 ई० में पुर्तगाल के शासक ने ब्राज़ील का शासन सीधे अपने हाथों में ले लिया था। यहाँ आए जेसुइट पादरियों ने दास प्रथा की कटु आलोचना की।