Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम Textbook Exercise Questions, and Answers.
Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम
HBSE 10th Class Science जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
मनुष्य में वृक्क एक तन्त्र का भाग है जो सम्बन्धित है –
(a) पोषण से
(b) श्वसन से
(c) उत्सर्जन से
(d) परिवहन से।
उत्तर-
(c) उत्सर्जन से।
प्रश्न 2.
पादप में जाइलम उत्तरदायी है –
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन।
उत्तर-
(a) जल का वहन।
प्रश्न 3.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है –
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
पायरूवेट के विखण्डन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है
(a) कोशिका द्रव्य
(b) माइटोकॉण्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केन्द्रक।
उत्तर-
(d) केन्द्रक।
प्रश्न 5.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर-
हमारे शरीर में वसा (Fat) का पाचन आहार नाल (alimentary canal) में लाइपेज (lipase) नामक विकर द्वारा होता है। पित्त रस (bile juice) में उपस्थित पित्त लवण (bile salts) वसा का इमल्सीकरण करते हैं। जठर रस, अग्न्याशयी रस तथा आंत्रीय रस में लाइपेज एन्जाइम उपस्थित होता है। यह इमल्सीकृत वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदलता है। इस प्रकार वसा का पाचन होता है।
प्रश्न 6.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर-
भोजन के पाचन में लार की भूमिका निम्न प्रकार है-
- यह भोजन को गीला एवं चिकना करती है जिससे भोजन को चबाने तथा निगलने में आसानी होती है।
- लार में उपस्थित टायलिन (Ptylin) विकर भोजन की मंड को माल्टोज शर्करा में बदलता है।
- लार में उपस्थित लाइसोजाइम (Lysozyme) जीवाणु एवं अन्य सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।
- लार दाँतों के बीच फंसे अन्न के कणों को निकालने में सहायता करती है।
प्रश्न 7.
स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके उपोत्पाद क्या हैं ?
उत्तर-
स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition) के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ अथवा कारक निम्नलिखित
- सूर्य का प्रकाश,
- पादपों में उपस्थित पर्णहरित,
- जल तथा
- कार्बन डाइऑक्साइड।
सभी हरे पौधों में पर्णहरित (chlorophyll) उपस्थित होता है। इसकी सहायता से ये पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल द्वारा भोजन (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते हैं।
ग्लूकोज प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया का मुख्य उत्पाद ग्लूकोज है तथा. इसके उपोत्पाद जल तथा ऑक्सीजन हैं।
प्रश्न 8.
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है। (नमूना प्रश्न-पत्र 2012)
उत्तर-
वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अन्तर-
वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration) | अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respiration) |
1. इसे ऑक्सीश्वसन भी कहते हैं। | 1. इसे अनॉक्सीश्वसन भी कहते हैं। |
2. यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। | 2. ऑक्सीजन की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। |
3. इसके द्वारा भोज्य पदार्थों का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। | 3. इसके द्वारा भोज्य पदार्थों का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है। |
4. इसके अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल होते हैं। | 4. इसके अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा कार्बनिक अम्ल होते हैं। |
5. इसमें अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। | 5. इसमें अपेक्षाकृत कम ऊर्जा उत्पन्न होती है। |
यीस्ट में अवायवीय श्वसन होता है। इसके द्वारा ग्लूकोज के अपघटन से इथाइल ऐल्कोहॉल तथा CO2, उत्पन्न होते
प्रश्न 9.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं ?
उत्तर –
श्वसन नली (Trachea) वक्ष गुहा में प्रवेश करके दाईं तथा बाईं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। अब इन्हें श्वसनियाँ कहते हैं। फेफड़ों में प्रवेश करके प्रत्येक श्वसनी पुनः बार-बार विभाजित होकर अनेक श्वसनिकाओं (Bronchioles) में बँट जाती हैं। श्वसनियाँ पुनः कूपिका नलिकाओं में बँट जाती हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका दो-तीन छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं में खुलती है जिन्हें कूपिकाएँ (Alveoli) कहते हैं।
हमारे प्रत्येक फेफड़े में लगभग 15 करोड़ कूपिकाएँ होती हैं। इस प्रकार दोनों फेफड़ों की सतह के धरातल का क्षेत्रफल जिसके द्वारा गैस-विनिमय होता है, लगभग 80 वर्ग मीटर होता है। कूपिकाओं की इतनी अधिक संख्या के कारण सतह का धरातल भी अत्यधिक बड़ा होता है जिससे गैस-विनिमय अधिक दक्षतापूर्वक होता है।
प्रश्न 10.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर-
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन का प्रमुख कार्य फेफड़ों से ऑक्सीजन ग्रहण करके शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुँचाना है अतः इसे श्वसन वर्णक भी कहते हैं। हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) की कमी के कारण फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाएगी, फलस्वरूप भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण में बाधा उत्पन्न होगी। ऐसा होने से शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा में कमी हो जाएगी। इसके कारण स्वास्थ्य खराब हो सकता है तथा शरीर में थकान रहने लगती है। हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाले रोग को रक्ताल्पता (anaemia) कहते हैं। इसकी अत्यधिक कमी से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न 11.
मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
मनुष्य के हृदय में चार कक्ष पाए जाते हैं-दो अलिंद तथा दो निलय। ऐसी व्यवस्था होने से मनुष्य में शुद्ध (ऑक्सीकृत) तथा अशुद्ध (अनॉक्सीकृत) रुधिर पृथक रहता है। मनुष्य के रुधिर परिसंचरण में रुधिर को हृदय से होकर दो बार गुजरना पड़ता है। पहले चक्र में अशुद्ध रुधिर को हृदय फेफड़ों में ऑक्सीकृत होने के लिए पम्प करता है। फेफड़ों से ऑक्सीकृत रुधिर वापस बाएँ निलय में आता है जहाँ से दूसरे चक्र में इसे विभिन्न अंगों को पम्प किया जाता है। शरीर के अंगों से अशुद्ध रुधिर पुनः हृदय के दाएँ अलिन्द में आता है। अतः रुधिर का परिसंचरण दो बार होता दोहरा परिसंचरण होने के कारण शरीर के विभिन्न ऊतकों को अधिक-से-अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध हो पाती है। मनुष्य को नियततापी होने के कारण ताप नियन्त्रण के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो श्वसन से प्राप्त होती है।
प्रश्न 12.
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर-
जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में अन्तर –
जाइलम में वहन | फ्लोएम में वहन |
1. जाइलम में जल एवं इसमें घुलित खनिज लवणों का वहन होता है। | 1. इसमें पत्तियों में संश्लेषित खाद्य पदार्थों का वहन होता है। |
2. जाइलम में वहन केवल ऊपर की ओर होता है। | 2. फ्लोएम में वहन ऊपर तथा नीचे की ओर दोनों दिशाओं में होता है। |
3. जाइलम में वहन भौतिक बलों द्वारा सम्पन्न होता है। | 3. फ्लोएम में वहन ऊर्जा का उपयोग करके होता है। |
प्रश्न 13.
फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया-विधि की तुलना कीजिए।
उत्तर-
फुफ्फुस में कूपिकाओं तथा वृक्क में वृक्काणु की तुलना
फुफ्फुस में कूपिकाएँ | वृक्क में वृक्काणु |
1. वायु कूपिकाएँ फेफड़ों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ हैं। | 1. वृक्काणु वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ हैं। |
2. इनकी संख्या अत्यधिक (लगभग 15 करोड़ प्रति फेफड़ा) होती है। | 2. इनकी संख्या भी अत्यधिक (लगभग 10 लाख प्रति वृक्क) होती है। |
3. इनमें पतली केशिकाओं का जाल होता है। | 3. इनमें भी पतली केशि काओं का जाल होता है। |
4. वायु कूपिकाएँ गैसों के आदान-प्रदान के लिए अत्यधिक सतह धरातल उपलब्ध कराती हैं। | 4. वृक्काणु रुधिर से उत्सर्जी पदार्थों को पृथक् करने के लिए अत्यधिक सतह धरातल उपलब्ध करात हैं। |
5. कूपिकाओं में CO2, रुधिर से अलग तथा O2, रुधिर होते हैं। | 5. वृक्काणु में रुधिर से वर्ण्य नाइट्रोजनी पदार्थ पृथक् में मिलती है। |
HBSE 10th Class Science तत्वों का आवर्त वर्गीकरण InText Questions and Answers
(पाठ्य-पुस्तक पृ.सं. 105)
प्रश्न 1.
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?
उत्तर-
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में विसरण द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो सकती क्योंकि विसरण द्वारा ऑक्सीजन उन्हीं कोशिकाओं में पहुँच सकती है जो वायु के सम्पर्क में होती हैं। हमारे आंतरिक अंगों की कोशिकाएँ एवं ऊतक वायु से दूर गहराई में स्थित होते हैं। अतः इन्हें विसरण द्वारा ऑक्सीजन नहीं मिल सकती।
प्रश्न 2.
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे? .
उत्तर-
किसी वस्तु को सजीव की संज्ञा तभी दी जा सकती है जब उसमें निम्नलिखित लक्षण उपस्थित होते हैं-
- सजीवों का एक निश्चित आकार एवं आकृति होती
- सजीवों का शरीर कोशिका/कोशिकाओं/ऊतकों का बना होता है।
- सजीवों में पोषण होता है।
- सजीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ; जैसे-पाचन, श्वसन, स्वांगीकरण आदि पायी जाती हैं।
- सजीव जनन करके अपनी संतति को बढ़ाते हैं।
- सजीवों में वृद्धि होती है।
- सजीव गति करते हैं तथा संवेदनशीलता प्रदर्शित करते हैं।
- सजीवों की मृत्यु होती है।
यद्यपि सजीव रूप-रंग, आकार आदि में समान भी होते हैं और भिन्न भी। जन्तु दौड़ते-भागते हैं, साँस लेते हैं, बोलते हैं, उत्सर्जन करते हैं। परन्तु पौधों में चलने, साँस लेने, बोलने या उत्सर्जन की क्षमता नहीं होती फिर भी पौधे सजीव हैं, क्योंकि इनमें अन्य सभी क्रियाएँ सामान्य रूप से होती हैं।
प्रश्न 3.
किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
किसी जीव द्वारा कच्ची सामग्रियों का उपयोग कार्बन आधारित अणुओं के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 4.
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर-
जीवन के अनुरक्षण के लिए, हम पोषण (Nutrition), श्वसन (Respiration), परिवहन (Transportation), वृद्धि (Growth), उत्सर्जन (Excretion) आदि को आवश्यक प्रक्रम मानेंगे।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 111)
प्रश्न 1.
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अन्तर –
स्वयंपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition) | विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition) |
1. वे जीवधारी जो सरल अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं, स्वयंपोषी कहलाते हैं और पोषण की यह विधि स्वयंपोणी पोषण कहलाती है। | वे जीवधारी जो सरल अकार्बनिक पदार्थों से भोजन निर्मित नहीं कर पाते और दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं और यह पोषण विधि विषमपोषी पोषण कहलाती है। |
2. सभी हरे पौधे स्वयंपोषी पोषण विधि अपनाते हैं और ये सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित द्वारा जल व CO2, से ग्लूकोज का निर्माण करते हैं | उदाहरण-सभी हरे पौधे, नीले-हरे शैवाल तथा कुछ प्रकाश-संश्लेषी जीवाण।। | सभी जन्तु विषमपोषी पोषण विधि प्रदर्शित करते हैं, तथा ये शाकाहारी, माँसाहारी, परजीवी या मृतोपजीवी हो सकते हैं। उदाहरण-सभी जन्तु, कवक, अधिकांश जीवाणु, परजीवी पादप। |
प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?
उत्तर-
प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री के रूप में पौधे को प्रकाश सूर्य से प्राप्त होता है। जल पौधे की जड़ों द्वारा मृदा से ग्रहण किया जाता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल से ली जाती है। पौधे के प्रकाशसंश्लेषी भागों में रन्ध्र (Stomata) उपस्थित होते हैं जिनसे होकर CO2, ऊतकों तक पहुँचती है। मृदा से जड़ों द्वारा अवशोषित जल जाइलम द्वारा प्रकाश-संश्लेषी भाग तक पहुँचता है। जलीय पौधे जल में घुली हुई CO2, तथा जल तने की सतह द्वारा अवशोषित करते हैं।
प्रश्न 3.
हमारे आमाशय में अम्ल की क्या भूमिका है?
उत्तर-
हमारे आमाशय में उपस्थित जठर ग्रन्थियों (Gastric glands) द्वारा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) स्रावित होता है। यह आमाशय में अम्लीय माध्यम बनाता है जिससे पेप्सिन नामक विकर प्रभावशाली होकर प्रोटीन पाचन का कार्य करता है। HCl भोजन के साथ आए जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से बचाता है। यह भोजन में उपस्थित Ca को कोमल बनाता है। यह पाइलोरिक वाल्वों के खुलने एवं बन्द होने पर भी नियन्त्रण रखता है। साथ ही यह वसा के इमल्शीकरण में भी सहायक होता है।
प्रश्न 4.
पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है ?
उत्तर-
एन्जाइम (Enzymes) कार्बनिक जैव-उत्प्रेरक (Biocatalysts) हैं जो विभिन्न जैव-रासायनिक क्रियाओं की दर बढ़ा देते हैं। ये पाचन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा के पाचन को सुगम बनाते हैं। मुख गुहा में एमिलेस नामक एन्जाइम कार्बोहाइड्रेट का आंशिक पाचन करके इसे माल्टोज में बदलता है। उदर में लाइपेज नामक एन्जाइम वसा को वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में बदलता है। आंत्र लाइपेज, सुक्रेज, माल्टेज एवं लैक्टेज क्रमशः वसा, सुक्रोज, माल्टोज एवं दुग्ध शर्करा का पाचन करते हैं। अतः पाचक एन्जाइम हमारी पाचन क्रिया को सुगम बनाते हैं।
प्रश्न 5.
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर-
छोटी आंत अर्थात् क्षुद्रांत्र (small intestine) की भीतरी सतह पर असंख्य उंगली सदश रसांकर (villi) तथा सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) पाए जाते । ये क्षुद्रांत्र की अवशोषी सतह को लगभग 600 गुना बढ़ा देते हैं। प्रत्येक रसांकुर में रुधिर कोशिकाओं तथा लसीका कोशिकाओं का जाल फैला रहता है। वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल का अवशोषण लसीका कोशिकाओं द्वारा तथा अन्य भोज्य पदार्थों का अवशोषण रुधिर कोशिकाओं द्वारा होता है। अतः क्षुद्रांत्र को पचे हुए भोजन के अवशोषण का स्तम्भ माना जाता है।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 116)
प्रश्न 1.
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?
उत्तर-
जलीय जीव श्वसन के लिए जल में घुली हुई ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं। जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा सीमित होती है। स्थलीय जीव वायु से ऑक्सीजन लेते हैं जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। अतः स्थलीय जीव को जलीय जीव की अपेक्षा अधिक ऑक्सीजन मिल जाती है।
प्रश्न 2.
ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?
उत्तर-
विभिन्न जैविक-क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है, जोकि ATP के रूप में संचित रहती है। विभिन्न जीवधारियों में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण निम्न प्रकार से हो सकता है –
1. वायवीय श्वसन (Aerobic respiration)- यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है तो इसे वायवीय श्वसन कहते हैं। अधिकांश जीवों में इसी प्रकार से ऊर्जा उत्पादन होता है।
2. अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration)यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है तो इसे अवायवीय श्वसन कहते हैं। , .
(i) जब अवायवीय श्वसन किसी सूक्ष्म जीव (जैसेयीस्ट) में होता है तो इथाइल ऐल्कोहॉल, CO2, तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।
(ii) जब अवायवीय श्वसन माँसपेशियों में होता है तब लैक्टिक अम्ल एवं ऊर्जा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 3.
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर-
श्वासोच्छ्वास की क्रिया में खींची गयी वायु फेफड़ों की कूपिकाओं (Alveoli) में भर जाती है। फेफड़ों के अन्दर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है। लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन के प्रति काफी सहिष्णुता होती है। अतः वायु कूपिकाओं से विसरित होकर ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के अणुओं से बँध जाती है। रुधिर इस ऑक्सीजन को ऑक्सीजन की कमी वाले ऊतकों में पहुँचा देता है। CO2, रुधिर में विलेय होकर फेफड़ों तक लायी जाती है। वायु कूपिकाओं में CO2,’ की सान्द्रता कम होने के कारण रुधिर से यह विसरित होट र फेफड़ों में आ जाती है। अब CO2, युक्त वायु निःश्वसन द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।
प्रश्न 4.
गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर-
श्वास नाल अथवा ट्रैकिया (Trachea) वक्ष गुहा में प्रवेश करके दाईं तथा बाईं दो शाखाओं में बँट जाती है। अब इन्हें श्वसनियाँ (Bronchi) कहते हैं। फेफड़ों में प्रवेश करके प्रत्येक श्वसनी, पुनः बारम्बार विभाजित होकर अनेक श्वसनिकाओं (Bronchioles) में बँट जाती हैं। श्वसनिकाएँ पुनः कूपिका नलिकाओं (Alveolar ducts) में बँट जाती हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका दो-तीन छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं में खुलती है जिन्हें कूपिकाएँ (alveoli) कहते हैं। हमारे प्रत्येक फेफड़े (Lung) में लगभग 15 करोड़ वायु कूपिकाएँ (Alveoli) होती हैं। इस प्रकार दोनों फेफड़ों का सतह धरातल जिसके द्वारा गैस विनिमय होता है, लगभग 80 वर्ग मीटर होता है। इस प्रकार हमारे फेफड़े गैसों के अधिकतम आदान-प्रदान के लिए उपयोजित होते हैं।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 122)
प्रश्न 1.
मानव में परिवहन तन्त्र के घटक कौन से हैं ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
मानव में परिवहन तन्त्र के घटक एवं इनके कार्य निम्नलिखित हैं-
- हृदय (Heart)-यह मानव शरीर में एक पम्पिंग स्टेशन का कार्य करता है। यह रुधिर को विभिन्न अंगों में पम्प करता है।
- धमनियाँ (Arteries)-ये मोटी भित्ति वाली रुधिर वाहिकाएँ हैं जो हृदय से रुधिर को विभिन्न अंगों में पहुँचाती
- शिराएँ (Veins)-ये पतली भित्ति वाली वाहिकाएँ हैं जो विभिन्न अंगों से रुधिर एकत्र कर हृदय में लाती हैं।
- केशिकाएँ (Capillaries)-ये अत्यधिक पतली एवं संकीर्ण वाहिकाएँ हैं जो धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं।
- रुधिर (Blood)-रुधिर में एक प्रकार के तरल संर्योजी ऊतक होते हैं, जो भोजन, ऑक्सीजन, लवणों, विकरों, हॉर्मोनों एवं अपशिष्ट पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुँचाते हैं।
प्रश्न 2.
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्तनधारी तथा पक्षियों में दोहरा रुधिर परिसंचरण (Double blood circulation) पाया जाता है। इसका अर्थ है कि रुधिर अपने एक चक्र में दो बार हृदय से होकर गुजरता है। स्तनधारी एवं पक्षियों का हृदय चार कक्षों में बँटा होता है-दो अलिन्द तथा दो निलय। हृदय का बायाँ भाग दैहिक हृदय (Systemic heart) तथा दायाँ भाग पल्मोनरी हृदय (Pulmonary heart) कहलाता है। बाएँ भाग में शुद्ध रुधिर तथा दाएँ भाग में अशुद्ध रुधिर भरा होता है।
शुद्ध अथवा ऑक्सीजन युक्त रुधिर शरीर के विभिन्न अंगों को पहुँचाया जाता है जबकि अशुद्ध रुधिर फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजा जाता है। शुद्ध तथा अशुद्ध रुधिर के पृथक् होने से ऑक्सीजन का ऊतकों में वितरण अधिक प्रभावी तरीके से किया जाता है। स्तनधारी तथा पक्षियों के शरीर का ताप सदैव एक जैसा बनाए रखने एवं अधिक ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3.
उच्च संगठित पादपों में परिवहन तन्त्र के घटक क्या हैं?
उत्तर-
उच्च संगठित पादपों में परिवहन तन्त्र के निम्नलिखित घटक हैं –
- जाइलम (Xylem)-यह ऊतक जड़ों द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न वायवीय भागों में परिवहन करता है।
- फ्लोएम (Phloem)-यह ऊतक पत्तियों में प्रकाशसंश्लेषण के फलस्वरूप बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों तथा हॉर्मोन्स का पौधे के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।
प्रश्न 4.
पादप में जल और खनिज लवण का परिवहन कैसे होता है ?
उत्तर-
पादप में जल एवं इसमें घुलित लवणों का परिवहन जाइलम ऊतक (Xylem tissue) द्वारा किया जाता है। जाइलम वाहिकाएँ तथा वाहिनिकाएँ आपस में सम्बद्ध होकर पादप की जड़ से लेकर पत्तियों तक एक अनवरत जल संचालक मार्ग बनाती हैं। ऐसे अनेक मार्ग पौधे के विभिन्न भागों तक पहँचते हैं। पौधे की पत्तियों में उपस्थित रंध्रों (Stomata) से जल का वाष्पोत्सर्जन होता है जिससे अनवरत जलमार्ग में एक ‘ वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष उत्पन्न होता है। साथ ही जल के अणुओं में ससंजक एवं आसंजक क्षमता भी पायी जाती है जिसके फलस्वरूप जड़ों से लेकर पत्तियों तक जल का एक सतत स्तम्भ बना रहता है और जल ऊपर की ओर चढ़ता है!
प्रश्न 5.
पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है।
उत्तर-
पादप की पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थों का पौधे के अन्य भागों में स्थानान्तरण फ्लोएम (Pholem) नामक ऊतक द्वारा होता है। फ्लोएम चालनी नलिका तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। ऊर्जा का उपयोग करके फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण होता है। वह स्थान जहाँ भोजन का निर्माण होता है, स्त्रोत (Source) कहलाता है तथा जहाँ इसका प्रयोग होता है, उपभोग (Sink) कहलाता है। स्रोत से भोज्य पदार्थ ATP की ऊर्जा का प्रयोग करके फ्लोएम की चालनी नलिकाओं में भरा जाता है।
अब शर्करायुक्त चालनी नलिका में परासरण द्वारा जल प्रवेश करता है जिससे फ्लोएम ऊतकों में दाब बढ़ जाता है। फ्लोएम भोज्य पदार्थों का उच्च दाब क्षेत्र से कम दाब क्षेत्र की ओर परिवहन करता है। भोज्य पदार्थों का परिवहन उपभोग स्थल एवं संचय स्थल की ओर अधिक होता है।
(पाठ्य-पुस्तक घृ. सं. 124)
प्रश्न 1.
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वृक्काणु (Nephrons)-वृक्काणु मानव के वृक्क की उत्सर्जी इकाई कहलाते हैं। प्रत्येक वृक्क का निर्माण असंख्य सूक्ष्म कुण्डलित वृक्क नलिकाओं या वृक्काणु से होता है। प्रत्येक वृक्काणु के दो भाग होते हैं-
- मैल्पीघी कोष (Malpighian corpuscles) तथा
- स्रावी नलिका (Secretory tubule)।
मैल्पीघी कोष में प्यालेनुमा संरचना बोमैन सम्पुट (Bowman’s capsule) तथा रुधिर केशिकाओं का गुच्छा ग्लोमेरुलस (glomerulus) होता है।
स्रावी नलिका के तीन भाग होते हैं-
(a) समीपस्थ कुण्डलित नलिका (Proximal convulated tube),
(b) मध्य का हेनले लूप (middle Henle’s loop) तथा
(c) अन्तिम कुण्डलित नलिका (Distal convulated tube)।
मध्य U-आकार की नलिका हेनले लप के चारों ओर रुधिर केशिकाओं का बना परिनालिका केशिका चालक होता है। वृक्काणु का अन्तिम कुण्डलित भाग चौड़ी गुहा वाली संग्रह नलिका में खुलता है। ग्लोमेरुलस के रुधिर का परानिष्यंदन (ultrafiltration) होता है। इसके फलस्वरूप नेफ्रिक फिल्ट्रेट (nephric filtrate) बनता है। इससे पुनः अवशोषण (re-absorption) तथा स्रावण (secretion) द्वारा मूत्र (Urine) का निर्माण होता हैं। मूत्र में विभिन्न उत्सर्जी पदार्थ; जैसे-यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल, औषधि आदि होते हैं।
प्रश्न 2.
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?
उत्तर-
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादपों ‘ में निम्नलिखित विधियाँ पायी जाती हैं-
- पादपों का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ CO2, है। इसका निर्माण श्वसन क्रिया में होता है। श्वसन क्रिया में उत्पन्न CO2, तथा जलवाष्प का निष्कासन सामान्य विसरण द्वारा रन्ध्रों (Stomata) एवं वातरन्ध्रों (Lenticels) द्वारा किया जाता
- पौधों के उत्सर्जी वर्ण्य पदार्थों को पत्तियों, छाल एवं फलों में पहुँचा दिया जाता है। इनके पौधों से पृथक् होने पर पौधों को इनसे छुटकारा मिल जाता है।
- अनेक उत्सर्जी पदार्थ कोशिकाओं की रिक्तिकाओं में संचित कर दिए जाते हैं।
- गोंद, रेजिन, टेनिन आदि पदार्थ मृत काष्ठ में पहुँचा दिए जाते हैं।
- अनावश्यक जल वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमण्डल में मुक्त कर दिया जाता है।
- कुछ अपशिष्ट पदार्थों को पौधों की जड़ों द्वारा मृदा में स्रावित कर दिया जाता है।
प्रश्न 3.
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
मूत्र बनने की मात्रा प्रमुख रूप से पुनः अवशोषण पर निर्भर करती है। वृक्काणु नलिका द्वारा पानी का पुनः अवशोषण निम्न बातों पर निर्भर करता है-
- जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त मात्रा में जल हो, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है और पुनः अवशोषण कम होता है। यदि शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम हो, तब सान्द्र मूत्र का उत्सर्जन होता है और पुनः अवशोषण अधिक होता है।
- जब मूत्र में घुलनशील उत्सर्जकों (जैसे-यूरिया, यूरिक अम्ल, औषधि) की मात्रा अधिक हो तो इनके उत्सर्जन के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
HBSE 10th Class Science जैव प्रक्रम InText Activity Questions and Answers
क्रियाकलाप 6.1 (पा. पु. पृ. सं. 107)
प्रश्न 1.
पत्ती के रंग का क्या होता है? विलयन का रंग कैसा हो जाता है?
उत्तर-
पत्ती का हरा भाग रंगहीन हो जाता है। विलयन का रंग क्लोरोफिल निकलने के कारण हरा हो जाता है।
प्रश्न 2.
पत्ती के रंग का अवलोकन कीजिए और प्रारम्भ में पत्ती का जो हरा भाग ट्रेस किया था उससे इसकी तुलना कीजिए।
उत्तर-
पत्ती का वह भाग जो पहले हरा था अब वह बैंगनी काला हो गया है।
प्रश्न 3.
पत्ती के विभिन्न भागों में मंड की उपस्थिति के बारे में आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
उत्तर-
निष्कर्ष- क्रोटन अथवा मनीप्लांट की पत्ती शबलित या चितकबरी होती है। पत्ती के हरे भाग में पर्णहरित की उपस्थिति के कारण मंड का निर्माण हुआ जो आयोडीन परीक्षण करने पर बैंगनी काला हो गया। पत्ती के रंगहीन भाग पर मंड परीक्षण का प्रभाव नहीं हुआ। इससे स्पष्ट है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में मंड के निर्माण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
क्रियाकलाप 6.2 (पा. पु. पृ. सं. 108)
प्रश्न 1.
क्या दोनों पत्तियाँ समान मात्रा में मंड की उपस्थिति दर्शाती हैं ?
उत्तर-
नहीं, (a) पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के साथ रखे गये पौधे की पत्ती में मंड अनुपस्थित है, जबकि पौधे (b) की पत्ती में मंड उपस्थित है।
प्रश्न 2.
इस क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं ?
उत्तर-
इस क्रियाकलाप से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मंड के निर्माण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है। पौधा (a) के साथ पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड रखने से यह बेलजार के अन्दर की सारी CO2, को सोख लेता है और पौधे को प्रकाश-संश्लेषण के लिए CO2, उपलब्ध नहीं होती है।
क्रियाकलाप 6.3 (पा. पु. पृ. सं. 109)
प्रश्न 1.
किस परखनली में आपको रंग में परिवर्तन दिखाई दे रहा है ?
उत्तर-
परखनली ‘B’ के विलयन का रंग परिवर्तित हो जाता है। परखनली ‘A’ में रंग परिवर्तन नहीं होता है। . प्रश्न 2. दोनों परखनलियों में मंड की उपस्थिति के बारे में यह क्या इंगित करता है ? – उत्तर-लार में एमाइलेज एन्जाइम होता है। जब परखनली ‘A’ में 1 ml लार डाली जाती है तो इसमें उपस्थित एन्जाइम एमिलेस मण्ड को माल्टोज शर्करा में बदल देता है। जब दोनों परखनलियों में आयोडीन डाली जाती है तो परखनली ‘B’ में उपस्थित मंड के कारण विलयन का रंग नीला हो जाता है। परखनली ‘A’ में बने माल्टोज पर आयोडीन की क्रिया नहीं होती, अतः इसका रंग अपरिवर्तित रहता है।
प्रश्न 3.
यह लार की मंड पर क्रिया के बारे में क्या दर्शाता है ?
उत्तर-
लार में उपस्थित ऐमिलेस एन्जाइम मंड से क्रिया करके इसे माल्टोज शर्करा में बदल देता है।
क्रियाकलाप 6.4 (पा. पु. पृ. सं. 112)
प्रश्न 1.
एक परखनली में ताजा तैयार किया हुआ चूने का पानी लीजिए। इस चूने के पानी में निःश्वास द्वारा निकली वायु प्रवाहित कीजिए। नोट कीजिए कि चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है?
उत्तर-
छात्र स्वयं समय नोट करें।
प्रश्न 2.
एक सिरिंज या पिचकारी द्वारा दूसरी परखनली में ताजा चूने का पानी लेकर वायु प्रवाहित करते हैं। चित्र (b)। नोट कीजिए कि इस बार चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है।
उत्तर-
छात्र स्वयं समय नोट करें।
प्रश्न 3.
निःश्वास द्वारा निकली वायु में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है?
उत्तर-
निःश्वास द्वारा निकली वायु में CO2, की मात्रा सामान्य वायु की अपेक्षा अधिक होती है। यह चूने के पानी के साथ क्रिया करके कैल्सियम कार्बोनेट बनाती है, जोकि एक अवक्षेप के रूप में चूने के पानी को दूधिया कर देता है।
Ca(OH)2, + CO2, →CaCO2, + HO
इससे यह भी सिद्ध होता है कि नि:श्वास में निकली वायु में CO2, होती है।
क्रियाकलाप 6.5 (पा. पु. पृ. सं. 112)
प्रश्न-किण्वन के उत्पाद के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है ?
उत्तर-
फल के रस या चीनी के घोल में यीस्ट द्वारा किण्वन की क्रिया होती है जिससे एक गैस उत्पन्न होती है। यह गैस चूने के पानी को दूधिया कर देती है। इससे पता चलता है कि किण्वन की क्रिया में CO2, गैस उत्पन्न होती है अर्थात् CO2, गैस किण्वन का उत्पाद है।
क्रियाकलाप 6.6 (पा.पु. पृ.सं. 114)
प्रश्न 1.
एक जलशाला में मछली का अवलोकन कीजिए। वे अपना मुँह खोलती और बन्द करती रहती हैं, साथ ही आँखों के पीछे क्लोमछिद्र (या क्लोमछिद्र को ढकने वाला प्रच्छद) भी खुलता है और बन्द होता रहता है। क्या मुँह और क्लोम छिद्र के खुलने और बन्द होने के समय में किसी प्रकार का समन्वय है?
उत्तर-
मछलियाँ जल में घुली हुई ऑक्सीजन को अपनी श्वसन क्रिया के लिए ग्रहण करती हैं। जल में वायु की अपेक्षा कम ऑक्सीजन घुली रहती है। मछलियाँ अपना मुँह खोलकर पानी अन्दर खींचती हैं और क्लोम छिद्र से होकर बाहर निकाल देती हैं। अतः क्लोम छिद्र एवं मुँह के खुलने में आपसी समन्वय है।
प्रश्न 2.
गिनती करो कि मछली एक मिनट में कितनी बार मुँह खोलती और बन्द करती है। इसकी तुलना आप अपनी श्वास को एक मिनट में अन्दर और बाहर करने से कीजिए।
उत्तर-
हम एक मिनट में 15 से 18 बार श्वास लेते हैं जबकि मछलियाँ एक मिनट में इससे अधिक बार मुँह खोलती हैं एवं बन्द करती हैं।
क्रियाकलाप 6.7 (पा. पु. पृ. सं. 116)
प्रश्न 1.
अपने आस-पास के एक स्वास्थ्य केन्द्र का भ्रमण कीजिए और ज्ञात कीजिए कि मनुष्यों में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर क्या है ?
उत्तर-
मनुष्यों में हीमोग्लोबिन का सामान्य परिसर 12 से 15% होता है।
प्रश्न 2.
क्या यह बच्चे और वयस्क के लिए समान
उत्तर-
हाँ, यह बच्चे और वयस्क के लिए समान
प्रश्न 3.
क्या पुरुष और महिलाओं के हीमोग्लोबिन स्तर में कोई अन्तर है ?
उत्तर-
प्रायः महिलाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर पुरुषों से कुछ कम होता है।
प्रश्न 4.
अपने आस-पास के एक पशुचिकित्सा क्लीनिक का भ्रमण कीजिए। ज्ञात कीजिए कि पशुओं, जैसे-भैंस या गाय में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर क्या है ?
उत्तर-
भैंस या गाय में हीमोग्लोबिन की मात्रा के सामान्य परिसर में थोड़ा फर्क होता है। गाय का हीमोग्लोबिन परिसर 11.4 से 17% एवं भैंस का 12 से 18% तक होता है।
क्रियाकलाप 6.8 (पा. पु. पृ. सं. 121)
प्रश्न-
क्या आप दोनों में कोई अन्तर देखते हैं ?
उत्तर-
हाँ, पौधे लगे गमले के ऊपर ढके बेलजार की भीतरी सतह पर पानी की बूँदें जमा हो जाती हैं। दूसरे गमले में ऐसा नहीं होता है।