HBSE 7th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 हम पंछी उन्मुक्त गगन के

Haryana State Board HBSE 7th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 हम पंछी उन्मुक्त गगन के Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 हम पंछी उन्मुक्त गगन के

HBSE 7th Class Hindi हम पंछी उन्मुक्त गगन के Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
हर तरह की सुख-सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नहीं रहना चाहते?
उत्तर:
यद्यपि पिंजरे में खाने-पीने तथा सुरक्षा की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, फिर भी पक्षी पिंजरे में बंद नहीं रहना चाहते। इसका कारण यह है कि उन्हें स्वतंत्रता प्रिय है। वे खुले आकाश में उड़ान भरकर अधिक प्रसन्न रहते हैं। उन्हें अपनी उड़ान में कोई बाधा पसंद नहीं है। उन्हें बंधन प्रिय नहीं लगता।

प्रश्न 2.
पक्षी उन्मुक्त रहकर अपनी कौन-कौन सी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं?
उत्तर:
पक्षी उन्मुक्त रहकर अपनी इन इच्छओं को पूरा करना चाहते हैं:

  • वे नदी-झरनों का बहता जल पीना चाहते हैं।
  • वे अपनी गति से उड़ान भरना चाहते हैं।
  • वे अपनी इच्छा से प्रकृति से वस्तुएँ लेकर खाना चाहते हैं।

प्रश्न 3.
भाव स्पष्ट कीजिएया तो क्षितिज मिलन बन जाता/या तनती साँसों की डोरी।
उत्तर:
पक्षी क्षितिज में लंबी उड़ान भरने को इच्छुक रहते हैं। वे दोनों स्थितियों को सहने को तैयार रहते हैं-या तो वे अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते अर्थात् क्षितिज तक जा पहुँचते अथवा उड़ते-उड़ते उनकी साँस फूल जाती।

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कविता से आगे

प्रश्न 1.
बहुत से लोग पक्षी पालते हैं
(क) पक्षियों को पालना उचित है अथवा नहीं? अपने विचार लिखिए।
(ख) क्या आपने या आपकी जानकारी में किसी ने कभी कोई पक्षी पाला है?
उसकी देखरेख किस प्रकार की जाती होगी, लिखिए।
उत्तर:
(क) हमारी दृष्टि से पक्षियों को पालना उचित नहीं है क्योंकि इससे हम उनकी स्वतंत्रता पर पाबंदी लगा देते हैं। पक्षियों को प्रकृति में स्वच्छंद विचरण करने देना चाहिए। उन्हें वहीं प्रसन्नता मिलती है।

(ख) हमारे एक पड़ोसी ने तोता पाला था। उसे उसने एक पिंजरे में रखा हुआ था। उसके पिंजरे में ही एक कटोरी रखी हुई थी। वह उसी में उसका खाना रख देता था। हम देखते कि तोता बाहर निकलकर उड़ने के लिए बेचैन रहता था।

प्रश्न 2.
पक्षियों को पिंजरे में बंद करने से केवल उनकी आजादी का हनन ही नहीं होता, अपितु पर्यावरण भी प्रभावित होता है। इस विषय पर दस पंक्तियों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
पक्षियों को पिंजरे में बंद करके रखना सभी दृष्टियों से गलत है। यह हम केवल अपने मनोरंजन हेतु करते हैं। इससे पक्षियों का कुछ भी भला नहीं होता।

पिंजरे में बंद करके रखने से पक्षियों की आजादी छिनती है। वे तो खले आकाश में उड़ान भरना चाहते हैं। पिंजरे में रखने से उनकी आजादी छिनती है। । इसके साथ-साथ पर्यावरण भी प्रभावित है। पर्यावरण को शुद्ध और प्राकृतिक बनाए रखने के लिए पक्षियों को प्रकृति के मध्य रहना आवश्यक है। वे इस प्रकार पर्यावरण को शुद्ध एवं संतुलित बनाते हैं। पर्यावरण में पक्षियों का अपना विशेष महत्त्व होता है।

HBSE 7th Class Hindi हम पंछी उन्मुक्त गगन के Important Questions and Answers

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पक्षी किस प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं?
उत्तर:
पक्षी उन्मुक्त अर्थात् स्वतंत्र बंधनरहित जीवन जीना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
कहाँ रहकर पक्षी ठीक प्रकार से गा नहीं पाते?
उत्तर:
पिंजरे में बंद रहकर पक्षी ठीक प्रकार से गा नहीं पाते।

प्रश्न 3.
पक्षी कहाँ का पानी पीकर खुश रहते हैं?
उत्तर:
पक्षी नदी-झरने का बहता पानी पीकर खुश रहते हैं।

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प्रश्न 4.
पक्षियों का क्या अरमान होता है?
उत्तर:
पक्षियों का अरमान होता है कि वे नीले आसमान में दूर-दूर तक उड़ान भरें।

प्रश्न 5.
यह क्षितिज कैसा है?
उत्तर:
यह क्षितिज सीमाहीन अर्थात् असीम है।

प्रश्न 6.
पक्षियों को क्या पसंद नहीं है?
उत्तर:
पक्षियों को अपनी उड़ान में बाधा डालना पसंद नहीं है।

प्रश्न 7.
“लाल किरण-सी चोंच खोल चुगते तारक-अनार के दाने।” इस पंक्ति में किरण और तारक शब्दों का प्रयोग किसलिए हुआ है?
उत्तर:
‘किरण’ शब्द का प्रयोग ‘तोते की चोंच’ के लिए किया गया है क्योंकि दोनों का रंग लाल होता है। तारों का प्रयोग कवि ने ‘अनार के दानों’ के लिए किया है।

प्रश्न 8.
पिंजरे में बंद पक्षी किस प्रकार के स्वप्न देखते हैं?
उत्तर:
पिंजरे में बंद पक्षी यह स्वप्न देखते हैं कि वे पेड़ की चोटी पर झूला झूलते या आकाश में ऊँचे उड़ते रहते।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पक्षी सोने की कटोरी की मैदा से कड़वी निबौरी को क्यों अच्छा बताता है?
उत्तर:
गुलामी का जीवन अच्छा नहीं होता। ऐसे समय में मन की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। स्वतंत्र जीवन में कठिनाइयाँ भी क्यों न हों, वह बंधन के जीवन से अच्छा होता है। अत: पक्षी भी खुले रहकर सोने की कटोरों की मैदा की अपेक्षा नौम के कड़वे फल खाना अधिक पसंद करते हैं।

प्रश्न 2.
पक्षी हम मनुष्यों से क्या प्रार्थना करते हैं?
उत्तर:
पक्षी हम लोगों से यह प्रार्थना करते हैं कि उन्हें चाहे सलों में न रहने दिया जाए, उनकी टहनियों के सहारे को छीन लिया ॥ए. परंतु भगवान ने जब उन्हें उड़ने के लिए पंख दिए हैं तो उनकी वतंत्र उड़ान में किसी भी प्रकार की रुकावट न डाली जाए।

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प्रश्न 3.
इस कविता की उन पंक्तियों को चुनो जिनमें पक्षी की स्वच्छंद रहने की भावना का वर्णन है।
उत्तर:
पक्षी को स्वच्छंद रहने की भावना का वर्णन कवि की इन पंक्तियों में है:
हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजरबद्ध न गा पाएंगे। कनक-तीलियों से टकरा कर, पुलकित पंख टूट जाएंगे।

प्रश्न 4.
इस कविता से तुम्हें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
इस कविता से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। अर्थात् स्वतंत्रता सबसे अच्छी है। दूसरों के अधीन रहकर सुख का जीवन बिताने में स्वतंत्र रहकर रूखी-सूखी रोटी खाना अधिक अच्छा है

प्रश्न 5.
इस कविता से पक्षियों की किस विशेषता का परिचय मिलता है?
उत्तर:
इस कविता से पता चलता है कि पक्षियों को स्वतंत्रता प्रिय है। वे बंधन के वातावरण में रहना पसंद नहीं करते। वे सोने के पिंजरों में बंद रहकर पकवान आदि खाना नहीं चाहते। वे खुले आकाश में रहना पसंद करते हैं, चाहे उन्हें कड़वे फल ही क्यों न खाने पड़ें।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्थ लिखो
(क) या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।

(ख) लाल किरण सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दान।।
उत्तर:
(क) पक्षी उड़कर या तो क्षितिज के पार तक पहुँच जाते अथवा उड़ते-उड़ते उनकी साँस ही फूल जाती अर्थात् उड़ते ही चले जाते और जब तक क्षितिज के पार न पहुँच पाते तब तक उड़ते चले जाते।

(ख) पक्षियों की लाल-लाल चोंच सूर्य की किरण के समान प्रतीत होती है और तारे अनार के दाने के समान लगते हैं। पक्षी तारों को अनार के दाने समझ कर चुगने का प्रयास करते हैं।

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प्रश्न 7.
तोते की आत्मकथा लिखो।
उत्तर:
पिंजरे में बंद तोते की आत्मकथा:
मैं एक तोता हूँ। तुम मेरे रंग-रूप पर मोहित हो रहे हो। मैं राम-राम पुकारता भी हूँ, पर तुम मेरे मन की व्यथा को नहीं समझते। मैं इस पिंजरे में कैद होकर बड़ा दुःखी रहता हूँ। यह ठीक है कि मुझे खाने की कोई कमी नहीं है, पर बंदी जीवन की यातना तो मुझे झेलनी ही पड़ती है। मेरा मन खुले आकाश में उड़ने को ललचाता रहता है. पर मन मसोस कर रह जाता हूँ। मुझे स्वतंत्र जीवन ही प्रिय है।

हम पंछी उन्मुक्त गगन के काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. हम पंछी ……………………. पंख टूट जाएँगे।

शब्दार्थ: पंछी = पक्षी (Birds)। उन्मुक्त – स्वतंत्र (Free)। पिंजरबद्ध – पिंजरे में बँधकर (In the cage)। कनक – सोना (Gold)। पुलकित – प्रसन्नचित्त (Happy)।

सप्रसंग व्याख्या :
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-2’ में संकलित कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध कवि श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं। इस कविता में कवि ने पक्षियों के जीवन के माध्यम से स्वतंत्रता का महत्त्व दर्शाया है। पक्षी स्वतंत्र उड़ान भरने की इच्छा रखते हैं।

व्याख्या:
पक्षी कहते हैं कि हम तो खुले आकाश में उड़ने वाले पक्षी हैं। हम पिंजरे में बंद रहकर नहीं गा सकते। हमें तो स्वतंत्र जीवन पसंद है। हमें पिंजरे में रहना अच्छा नहीं लगता। यह पिंजरा चाहे सोने का ही क्यों न हो। सोने के पिंजरे की तीलियों से हमारे कोमल पंख टकरा कर टूट जाएंगे। हमें पिंजरा कोई सुख नहीं दे सकता। हमारे लिए स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न :
1. इस कविता का नाम तथा कवि का नाम लिखो।
2 इस काव्यांश में पक्षी अपनी क्या इच्छा प्रकट करते हैं?
3. पक्षी कहाँ रहकर गा नहीं पाएंगे?
4. पक्षियों के पंख कब टूट जाते हैं?
उत्तर:
1. कविता का नाम-‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कवि का नाम-शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
2 इस काव्यांश में पक्षी अपनी यह इच्छा प्रकट करते हैं कि हमें खुले आसमान में उड़ान भरने दी जाए।
3. पक्षी पिंजरे में बंद होकर गा नहीं पाएंगे अर्थात् अपनी स्वाभाविक भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पाएंगे।
4. जब पक्षियों को पिंजरे में कैद कर दिया जाता है, तब उनके पुलकित पंख उस पिंजरे की तीलियों से टकरा-टकरा कर टूट जाते हैं, भले ही यह पिंजरा कितना भी कीमती क्यों न हो।

बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए :

1. कौन सा शब्द ‘गगन’ का पर्यायवाची नहीं है
(क) आसमान
(ख) नभ
(ग) रवि
(घ) व्योम
उत्तर:
(ग) रवि

2. पक्षी किस रूप में रहना चाहते हैं?
(क) उन्मुक्त
(ख) पिंजरबद्ध
(ग) व्याकुल
(घ) पुलकित
उत्तर:
(क) उन्मुक्त

3. ‘पुलकित’ शब्द में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) पुल
(ख) कित
(ग) इत
(घ) त
उत्तर:
(ग) इत

4. ‘कनक’ शब्द का अर्थ है
(क) सोना
(ख) चाँदी
(ग) मिट्टी
(घ) तांबा
उत्तर:
(क) सोना

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2. हम बहता ……………………….. की मैदा से।

शब्दार्थ: कटुक – कड़वी (Bitter)। निबौरी = नीम का फल (Fruit of margase or neem)। कनक – सोना (Gold).

सप्रसंग व्याख्या:
प्रसंग: प्रस्तुत पोक्तयाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-2’ की कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ से अवतरित हैं। इनके लेखक श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं। इन पंक्तियों में पक्षियों की स्वतंत्रता की इच्छा प्रकट की गई है।

व्याख्या:
हम स्वतंत्रता से बहने वाले जल को पीने वाले हैं। पिंजरे में बंद रहकर भूखे-प्यासे मर जाएंगे। हमें पिंजरे में भले ही सोने की कटोरी में मैदे का पकवान मिले परंतु स्वतंत्र रहकर कड़वी निबौरी खाना हमारे लिए उससे कहीं अच्छा है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. पक्षी केसा जल पीना पसंद करते हैं?
2. किस स्थिति में पक्षी भूखे-प्यासे मर जाएँगै?
3. पक्षी कनक कटोरी की मैदा की जगह क्या खाना पसंद करते हैं और क्यों?
उत्तर:
1. पक्षी बहता हुआ जल अर्थात् नदियों–झरनों का जल पीना पसंद करते हैं।
2. जब पक्षियों को पिंजरे में बंद कर दिया जाएगा तब वे भूखे-प्यासे मर जाएंगे। उन्हें बंधन का जीवन पसंद नहीं होता।
3. पिंजरे में रखी सोने की कटोरी से मैदा (अच्छा खाना) पक्षियों को पसंद नहीं होता। वे तो पेड़ की डाली की कड़वी निबौरी खाकर संतुष्ट रह लेते हैं। इसका कारण यह है निबौरी खाने में उनकी स्वतंत्रता बनी रहती है।

बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए:

1. पक्षियों को पीने के लिए कैसा पानी चाहिए?
(क) कटोरी में रखा
(ख) बहता पानी
(ग) ठंडा पानी
(घ) कैसा भी
उत्तर:
(ख) बहता पानी

2. निबौरी का स्वाद कैसा होता है?
(क) कड़वा
(ख) मीठा
(ग) तीखा
(घ) पता नहीं
उत्तर:
(क) कड़वा

3. ‘कनक कटोरी’ में कौन-सा अलंकार है?
(क) यमक
(ख) अनुप्रास
(ग) उपमा
(घ) रूपक
उत्तर:
(ख) अनुप्रास

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3. स्वर्ण-शृंखला ……………………. पर के झूले।

शब्दार्थ: स्वर्ण-शृंखला – सोने की जंजीर (Chain of gold): गति – चाल (Speec)। तरु – वृक्ष (Tree)। फुनगी . वृक्ष का ऊपरी सिरा (Top of tree or branch)।

सप्रसंग व्याख्या:
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन से ली गई हैं। बंधनों में पड़कर पक्षी अपनी स्वतंत्र उड़ान तक भूल बैठते हैं।

व्याख्या:
पक्षी कहते हैं कि सोने की जंजीरों में बंधकर हम अपनी चाल और खुले आकाश में उड़ने की सारी बातें ही भूल गए हैं। अब तो केवल स्वप्न में ही पेड़ की डालियों पर बैठना और उन पर झूला झूलना दिखाई देता है अर्थात् बंदी जीवन में व्यक्ति अपनी स्वाभाविक क्रीड़ाएँ भूल जाता है। स्वतंत्र जीवन की बातें मात्र स्वप्न बनकर रह जाती हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. पक्षी कब अपनी स्वाभाविक उड़ान भूल जाते हैं?
2. पक्षी किस झूले की बात कर रहे हैं?
3. पक्षी सपने में क्या देखते हैं और क्यों?
उत्तर:
1. पक्षी तब अपनी स्वाभाविक उड़ान भूल जाते हैं जब उन्हें पिंजरे में कैद कर दिया जाता है।
2 पक्षी पेड़ की डालियों की फुनगी के झूले की बात कर रहे हैं। उस पर बैठकर उन्हें झूले में झूलने का-सा आनंद आता है।
3. जब पक्षियों को पिंजरे में कैद कर दिया जाता है तब वे पेड़ की डाली की फुनगी के झूले को केवल सपने में ही देख पाते हैं। यह आनंद उनसे छिन जाता है।

बहुविकल्पी प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए

1. बंधन किसका है?
(क) स्वर्ण का
(ख) श्रृंखला का
(ग) स्वर्ण श्रृंखला का
(घ) मनुष्य का
उत्तर:
(ग) स्वर्ण श्रृंखला का

2. पिंजरे में पक्षी क्या-क्या भूल जाते हैं?
(क) अपनी गति
(ख) अपनी उड़ान
(ग) गति-उड़ान दोनों
(घ) कुछ नहीं
उत्तर:
(ग) गति-उड़ान दोनों

3. कौन-सा शब्द ‘तरु’ का पर्यायवाची नहीं है?
(क) वृक्ष
(ख) पेड़
(ग) पुष्प
(घ) पादप
उत्तर:
(ग) पुष्प

4. ‘स्वर्ण’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर:
(क) तत्सम

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4. ऐसे थे …………. के दाने

शब्दार्थ: अरमान – दिल की इच्छा (Ambition)। नभ = आकाश (Sky).तारक = तारे (Stars)। अनार = एक फल का नाम (Pomegranate)।

सप्रसंग व्याख्या:
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-2’ की कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के से लिया गया है। इसमें पक्षियों द्वारा इच्छा प्रकट की गई है।

व्याख्या:
पक्षी कहते हैं कि हमारी यह बड़ी इच्छा थी कि हम नीले आकाश की सीमाओं तक जाकर उन्हें छुएं। हम चाहते थे कि हम सूर्य की लाल किरण के समान अपनी चोंच खोलकर तारों रूपी अनार के लाल-लाल दोनों को चुनें। हमारी यह इच्छा तभी पुरी हो सकती है जब हमें उड़ने की पूरी आजादी मिले।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. किसके, क्या अरमान थे?
2 चोंच को किसके समान बताया गया है?
3. पक्षी क्या चुगना चाहते हैं?
उत्तर:
1, पक्षियों के ये अरमान थे कि वे नीले आसमान में दूर-दूर तक उड़ते। वे आकाश की सीमा तक जाना चाहते थे।
2. पक्षी की चोंच को सूर्य की लाल किरण के समान बताया गया है।
3. पक्षी तारों को अनार के दाने के समान समझकर चुगना चाहते हैं।

बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए

1. पक्षी किसकी सीमा पाना चाहते हैं?
(क) नीले नभ की
(ख) उड़ान की
(ग) अनार की
(घ) तारों की
उत्तर:
(क) नीले नभ की

2. ‘लाल किरण-सी चोंच’ में कौन-सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) रूपक
(घ) यमक
उत्तर:
(ख) उपमा

3. अनार के दाने किन्हें बताया गया है?
(क) तारों को
(ख) चोंच को
(ग) नभ को
(घ) किसी को नहीं
उत्तर:
(क) तारों को

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5. होती सीमाहीन ……………………… की डोरी।

शब्दार्थ: सीमाहीन सीमा न होना (Boundless)। क्षितिज – जहाँ धरती-आकाश मिलते प्रतीत हों (Horizon)।

सप्रसंग व्याख्या:
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-2’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध कवि श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं।

व्याख्या:
पक्षी चाहते हैं कि उनके पंखों का मुकाबला आकाश की सीमा से पार क्षितिज से होता। पक्षी उस स्थल तक पहुँचना चाहते हैं जहाँ धरती और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं। इस प्रकार या तो क्षितिज से हमारा मिलन हो जाता अर्थात् उड़ते-उड़ते हम क्षितिज तक जा पहुँचते अथवा हम थककर चूर हो जाते अर्थात् साँस फूलकर दम ही निकल जाता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. पक्षी किससे होड़ा-होड़ी करना चाहते हैं?
2 ‘क्षितिज मिलन बन जाता’ का क्या अर्थ है?
3. ‘सांसों की डोरी तनने’ का क्या आशय है?
उत्तर:
1. पक्षी इस असीम क्षितिज (आसमान) से होड़ा-होड़ी करना चाहते हैं अर्थात् लंबी उड़ान भरना चाहते हैं।
2. क्षितिज मिलन तब बन जाता जब पक्षी उड़कर वहाँ पहुँचने में सफल हो जाते।
3. ‘साँसों की डोरी तनने’ से आशय है इतना साँस फूल जाता कि दम ही निकल जाता अर्थात् पक्षी उड़ते-उड़ते बेदम हो जाते।

बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए

1. ‘क्षितिज’ को कैसा बताया गया है?
(क) सीमित
(ख) सीमाहीन
(ग) बंद
(घ) बड़ा
उत्तर:
(ख) सीमाहीन

2. लंबी उड़ान में क्या-क्या संभावनाएं हो सकती थी?
(क) क्षितिज की सीमा मिल जाती
(ख) साँसों की डोरी तन जाती
(ग) ये दोनों बातें हो सकती थीं
(घ) कुछ नहीं होता
उत्तर:
(ग) ये दोनों बातें हो सकती थीं

3. ‘होड़ा-होड़ी’ में कौन-सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास
(ख) पुनरुक्ति
(ग) यमक
(घ) रूपक
उत्तर:
(क) अनुप्रास

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6. नीड़ नदो …….. न डालो ।

शब्दार्थ: नीड़ – घोंसला (Nest)। आश्रय = सहारा (Shelter)। छिन्न-भिन्न – तोड़-फोड़ (Destroy)। आकुल = बेचैन (Restless)। विघ्न = रुकावट (Hurdle)।

सप्रसंग व्याख्या:
प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-2’ की कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ से ली गई हैं।

व्याख्या: हे मनुष्यो! हमें भले ही नीड़ (घोंसले) मत दो और बेशक पेड़ की डाली का सहारा तोड़ डालो; परंतु जब ईश्वर ने हमें उड़ने को पर (पंख) दिए हैं तो हमें पिंजरे का कैदी बनाकर हमारी स्वतंत्र उड़ानों में बाधा मत डालो। हमें पिंजरे में रहना पसंद नहीं, स्वतंत्र उड़ानें भरना ही प्रिय है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:
1. पक्षी क्या नहीं चाहते?
2 पंख किसने दिए हैं?
3. पक्षियों को क्या बात पसंद नहीं है?
उत्तर:
1. पक्षी न तो घोंसला चाहते हैं और न टहनी का आश्रय। इन्हें भले ही छीन लिया जाए।
2. पक्षियों को पंख ईश्वर ने दिए हैं।
3. पक्षियों को यह बात कतई पसंद नहीं है कि कोई उनकी उड़ान में बाधा डाले। वे उन्मुक्त उड़ान भरना चाहते हैं।

बहुविकल्पी प्रश्न सही उत्तर चुनकर लिखिए

1. इस कविता के रचयिता हैं
(क) गणेश शंकर
(ख) शिवमंगल सिंह सुमन
(ग) रवि मंगल
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर:
(ख) शिवमंगल सिंह सुमन

2. किसे छिन्न-भिन्न कर डालो?
(क) टहनी को
(ख) नीड़ को
(ग) आश्रय को
(घ) फुनगी को
उत्तर:
(ग) आश्रय को

3. ‘उड़ान’ व्याकरण में क्या है?
(क) क्रिया
(ख) भाववाचक संज्ञा
(ग) विशेषण
(घ) जातिवाचक संज्ञा
उत्तर:
(ख) भाववाचक संज्ञा

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हम पंछी उन्मुक्त गगन के Summary in Hindi

हम पंछी उन्मुक्त गगन के कवि-परिचय

प्रश्न: शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ के जीवन और कवित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जीवन-परिचय:
डॉ. शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ का जन्म 1916 ई. में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर नामक गाँव में हुआ था। ग्वालियर से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। 1940 ई. में काशी विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय से 1950 ई. में डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की। इंदौर और उज्जैन के महाविद्यालयों में प्राध्यापक रहने के पश्चात ये नेपाल में भारतीय दुतावास में सांस्कृतिक सचिव बने। बाद में ये विक्रम विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त हुए।

रचनाएँ: इनके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जैसे-हिल्लोल, जीवन का गान, प्रलय सजन, विंध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरी, विश्वास बढ़ता ही गया, मिट्टी की बारात।

साहित्यिक विशेषताएँ: प्रारंभ इन्होंने प्रेम की रचनाओं से किया, पर आगे चलकर ये क्रांति का आह्वान करने वाले कवि बन गए। क्रांति के इस ओजस्वी स्वर में राष्ट्रीयता भी सम्मिलित है। राष्ट्रीय चेतना आगे चलकर मानवतावाद में परिवर्तित हो जाती है। कवि को जनता के व्यापाक दुःख का मूल सामाजिक विषमता में दिखाई देता है।

हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता का सार

‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ शीर्षक कविता प्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने पक्षियों के माध्यम से मनुष्य के जीवन में स्वतंत्रता का महत्त्व दर्शाया है। पक्षियों को खुले आसमान में विचरण करना पसंद होता है। वे पिंजरे में बंद हो कर गा नहीं पाते अर्थात् अपनी प्रसन्नता प्रकट नहीं पाते, भले ही यह पिंजरा सोने का क्यों न हो और इसमें सोने की कटोरी में मैदा क्यों न रखी हो। पक्षी तो नदी-झरनों का बहता जल पीने वाले होते हैं।

पिंजरे में तो वे भूखे-प्यासे मर जाएँगे। वे कड़वी निबौरी खाकर जी लेते हैं, पर बंधन में रहकर सुख-सुविधाएँ पसंद नहीं करते। सोने का पिंजरा तो बंधन है और इसमें रह कर वे अपनी स्वाभाविक गति और उडान तक को भल जाते हैं। ऐसी स्थिति में तो पेड़ की डालियों के झूले केवल स्वप्न में ही रह जाते हैं। पक्षियों के अरमान तो उड़ कर आकाश की सीमा को छूने के होते हैं। वे तो अपनी लाल चोंच से तारों रूपी अनार के दानों को चुगना चाहते हैं। वे तो सीमाहीन क्षितिज में लंबी उड़ान भरने को उत्सुक रहते हैं। इसमें उन्हें चाहे जितना परिश्रम क्यों न करना पड़े।

पक्षी मनुष्यों से विनती करते हैं कि वे उन्हें भले ही उनका घोंसला नष्ट कर दें. टहनी का आश्रय भी न दें. पर उनकी आकुल उड़ान में बाधा उपस्थित न करें क्योंकि ईश्वर ने उन्हें उड़ने के लिए पंख दिए है। यह उड़ान ही उनका जीवन है, इसे छीनने का प्रयास न करें। पक्षी उड़ान की स्वतंत्रता चाहते हैं।

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