HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. बौद्ध संघ में प्रवेश पाने वाली प्रथम महिला थी
(A) बुद्ध की पत्नी यशोधरा
(B) बुद्ध की उपमाता गौतमी
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बुद्ध की उपमाता गौतमी

2. महात्मा बुद्ध का बचपन का नाम था
(A) सिद्धार्थ
(B) शुद्धोधन
(C) वर्धमान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सिद्धार्थ

3. बौद्ध मत में महाभिनिष्क्रिमण से अभिप्राय है
(A) महात्मा बुद्ध द्वारा ज्ञान प्राप्त करना
(B) महात्मा बुद्ध द्वारा तपस्या करना
(C) महात्मा बुद्ध द्वारा गृह त्याग करना
(D) महात्मा बुद्ध द्वारा देह त्याग करना
उत्तर:
(C) महात्मा बुद्ध द्वारा गृह त्याग करना

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4. बौद्ध धर्म के प्रमुख अंग हैं
(A) बुद्ध
(B) संघ
(C) धम्म
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. बौद्ध परंपरा में महापरिनिर्वाण से अभिप्राय है
(A) महात्मा बुद्ध द्वारा सच्चा ज्ञान प्राप्त करना
(B) महात्मा बुद्ध द्वारा गृह त्याग करना
(C) महात्मा बुद्ध द्वारा नगर भ्रमण करना
(D) महात्मा बुद्ध द्वारा देहावसान करना
उत्तर:
(D) महात्मा बुद्ध द्वारा देहावसान करना

6. त्रिपिटक किस धर्म से संबंधित है?
(A) हिन्दू धर्म
(B) जैन धर्म
(C) इस्लाम धर्म
(D) बौद्ध धर्म
उत्तर:
(D) बौद्ध धर्म

7. आबू के जैन मन्दिर प्रसिद्ध हैं
(A) दिलवाड़ा के नाम से
(B) अजंता के नाम से
(C) साँची स्तूप के नाम से
(D) महाबलीपुरम के मन्दिर के नाम से
उत्तर:
(A) दिलवाड़ा के नाम से

8. कालान्तर में जैन धर्म किन सम्प्रदायों में विभाजित हुआ ?
(A) श्वेताम्बर
(B) दिगम्बर
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों

9. जैन धर्म के कुल तीर्थंकर हुए हैं
(A) 22
(B) 25
(C) 24
(D) 1
उत्तर:
(C) 24

10. जैन धर्म के 24वें व अन्तिम तीर्थंकर थे
(A) महावीर स्वामी
(B) ऋषभदेव
(C) पार्श्वनाथ
(D) अजितनाथ
उत्तर:
(A) महावीर स्वामी

11. महात्मा बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था
(A) कपिलवस्तु में
(B) सारनाथ में
(C) गया में
(D) कुशीनगर में
उत्तर:
(B) सारनाथ में

12. बौद्ध धर्म में मुक्ति का मार्ग बताया गया
(A) त्रिरत्न को
(B) अष्ट मार्ग को
(C) तपस्या को
(D) अहिंसा को
उत्तर:
(B) अष्ट मार्ग को

13. मद्रास में गवर्नमेंट म्यूजियम की स्थापना हुई
(A) 1905 ई० में
(B) 1805 ई० में
(C) 1851 ई० में
(D) 1914 ई० में
उत्तर:
(C) 1851 ई० में

14. जैन धर्म में मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया गया
(A) त्रिरत्न को
(B) अष्ट मार्ग को
(C) वेदों के ज्ञान को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) त्रिरत्न को

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15. निम्नलिखित में से कौन-सा बौद्ध ग्रन्थ नहीं है ?
(A) महावंश
(B) दीपवंश
(C) महाभारत
(D) जातक
उत्तर:
(C) महाभारत

16. महायान का सम्बन्ध किस धर्म से है ?
(A) हिन्दू धर्म
(B) शैव धर्म
(C) जैन धर्म
(D) बौद्ध धर्म
उत्तर:
(D) बौद्ध धर्म

17. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय संग्रहालय की नई दिल्ली में नींव रखी
(A) 1905 ई० में
(B) 1955 ई० में
(C) 1989 ई० में
(D) 1960 ई० में
उत्तर:
(B) 1955 ई० में

18. जातकों की भाषा क्या थी?
(A) पालि
(B) हिन्दी
(C) संस्कृत
(D) प्राकृत
उत्तर:
(B) हिन्दी

19. महावीर स्वामी का देहावसान हुआ
(A) पावापुरी में
(B) कुशीनगर में
(C) कुंडग्रीम में
(D) लुम्बिनी में
उत्तर:
(A) पावापुरी में

20. महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ
(A) लुम्बिनी वन में
(B) पावापुरी में
(C) कुशीनगर में
(D) सारनाथ में
उत्तर:
(A) लुम्बिनी वन में

21. महावीर स्वामी का प्रारम्भिक नाम था
(A) सिद्धार्थ
(B) वर्धमान
(C) सिद्धांत
(D) शुद्धोधन.
उत्तर:
(B) वर्धमान

22. बौद्ध साहित्य की रचना किस भाषा में हुई थी?
(A) पालि भाषा में
(B) संस्कृत भाषा में
(C) प्राकृत भाषा में
(D) मगधी भाषा में
उत्तर:
(A) पालि भाषा में

23. महाबलीपुरम् के मंदिर स्थित हैं
(A) केरल राज्य में
(B) आन्ध्र प्रदेश में
(C) तमिलनाडु में
(D) महाराष्ट्र में
उत्तर:
(C) तमिलनाडु में

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24. महावीर का बचपन में नाम था
(A) सिद्धार्थ
(B) वर्धमान
(C) सिद्धान्त
(D) शुद्धोधन
उत्तर:
(B) वर्धमान

25. कैलाशनाथ मंदिर, एलोरा मंदिर निम्नलिखित में से कौन-से राज्य में पड़ता है?
(A) बिहार में
(B) महाराष्ट्र में
(C) राजस्थान में
(D) उड़ीसा में
उत्तर:
(B) महाराष्ट्र में

26. पाँचवीं शताब्दी का देवगढ़ विष्णु मंदिर कौन-से राज्य में है ?
(A) उत्तर प्रदेश में
(B) पश्चिमी बंगाल में
(C) उड़ीसा में
(D) मध्य प्रदेश में
उत्तर:
(A) उत्तर प्रदेश में

27. साँची का स्तूप कहाँ पर स्थित है?
(A) भोपाल के निकट
(B) मथुरा के निकट
(C) आगरा के निकट
(D) दिल्ली के निकट
उत्तर:
(A) भोपाल के निकट

28. अमरावती के स्तूप की खोज हुई
(A) 1854 ई० में
(B) 1850 ई० में
(C) 1796 ई० में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) 1796 ई० में

29. पुन्ना नामक दासी की गाथा (थेरीगाथा) कौन-से बौद्ध ग्रंथ में मिलती है ?
(A) विनयपिटक में
(B) सुत्तपिटक में
(C) अभिधम्मपिटक में
(D) जातक कथाओं में
उत्तर:
(B) सुत्तपिटक में

30. सुल्तान जहाँ बेगम कहाँ की नवाब थी?
(A) दिल्ली
(B) भोपाल
(C) लखनऊ
(D) जयपुर
उत्तर:
(B) भोपाल

31. जातक कथाओं का संबंध किस धर्म से है?
(A) बौद्ध धर्म
(B) शैव धर्म
(C) हिंदू धर्म
(D) जैन धर्म
उत्तर:
(A) बौद्ध धर्म

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वेदोत्तर साहित्य किसे माना गया है?
उत्तर:
वेदोत्तर साहित्य में वेदांग, स्मृतियाँ, महाकाव्य तथा पुराण शामिल हैं।

प्रश्न 2.
वेदांगों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
वेदांगों की संख्या छः (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष) है।

प्रश्न 3.
स्मृतियों की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर:
स्मृतियाँ मुख्य रूप से कानूनी (वैधानिक) ग्रंथ हैं।

प्रश्न 4.
प्रमुख स्मृतियों के नाम बताएँ।
उत्तर:
मनुस्मृति, नारद स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति तथा पाराशर स्मृति प्रमुख वैधानिक स्मृतियाँ हैं।

प्रश्न 5.
पुराण का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
पुराण का शाब्दिक अर्थ ‘प्राचीन’ है। पुराणों की संख्या 18 है। संस्कृत परंपरा में इन्हें ऐतिहासिक ग्रंथ माना जाता है।

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प्रश्न 6.
प्रमुख पुराण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
ब्रह्मा, विष्णु, मत्स्य, भागवत, अग्नि, शिव, मार्कण्डेय, गरुड़ पुराण इत्यादि प्रमुख हैं।

प्रश्न 7.
जातक कथाओं की संख्या कितनी है? ये किस भाषा में लिखी गईं?
उत्तर:
जातक कथाएँ 549 हैं जो पालि भाषा में लिखी गई हैं।

प्रश्न 8.
यूनानी राजा मिनांडर व बौद्ध भिक्ष नागसेन में दार्शनिक वार्तालाप किस ग्रंथ में मिलता है?
उत्तर:
‘मिलिन्दपन्हों’ ग्रंथ में मिनांडर व नागसेन में हुआ- दार्शनिक वार्तालाप मिलता है।

प्रश्न 9.
ऋग्वेद काल में प्राकृतिक देवताओं में सर्वोत्तम किसे माना गया?
उत्तर:
ऋग्वेद काल में प्राकृतिक देवताओं में सर्वोत्तम इंद्र को माना गया जो मुख्यतः आकाश का देवता था।

प्रश्न 10.
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर कौन थे?
उत्तर:
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर स्वामी ऋषभदेव थे।

प्रश्न 11.
महात्मा महावीर को परम ज्ञान की प्राप्ति के बाद क्या कहा गया?
उत्तर:
महात्मा महावीर को परम ज्ञान की प्राप्ति के बाद ‘जिन’ या ‘जैन’ कहा गया।

प्रश्न 12.
जैन धर्म आगे चलकर किन दो मुख्य संप्रदायों में विभाजित हो गया?
उत्तर:
लगभग 300 ई०पू० के काल में जैन धर्म श्वेतांबर और दिगंबर दो मुख्य संप्रदायों में विभाजित हो गया।

प्रश्न 13.
महात्मा बुद्ध द्वारा घर छोड़ने को बौद्ध परंपरा में क्या कहा गया?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध द्वारा घर छोड़ने को बौद्ध परंपरा में महाभिनिष्क्रिमण कहा गया है।

प्रश्न 14.
स्तूप का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
स्तूप का शाब्दिक अर्थ है ढेर अथवा टीला।

प्रश्न 15.
वर्तमान में साँची के स्तूप की देख-रेख किसके पास है?
उत्तर:
वर्तमान में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग साँची के स्तूप की देख-रेख करता है।

प्रश्न 16.
साँची के स्तूप को ‘वर्ल्ड हेरिटेज़ साइट’ कब घोषित किया गया?
उत्तर:
सन 1989 में साँची के स्तुप को ‘वर्ल्ड हेरिटेज साइट’ घोषित किया गया।

प्रश्न 17.
साँची के स्तूप की जानकारी प्राप्त करने के लिए मेजर अलेक्जेंडर ने क्या-क्या कार्य किए ?
उत्तर:
मेजर अलेक्जेंडर ने उस जगह के चित्र बनाए, वहाँ के अभिलेखों को पढ़ा और गुंबदनुमा ढाँचे के बीचों-बीच खुदाई करवाई।

प्रश्न 18.
सुल्तानजहाँ बेगम कहाँ की नवाब थी? उत्तर:सुल्तानजहाँ बेगम भोपाल की नवाब थी। प्रश्न 19. त्रिपिटक किस धर्म से संबंधित हैं? उत्तर:त्रिपिटक बौद्ध धर्म से संबंधित है। प्रश्न 20. प्राचीनतम बौद्ध ग्रन्थ किस भाषा में लिखे गए ?
उत्तर:
प्राचीनतम बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषा में लिखे गए।

प्रश्न 21.
सबसे प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक कौन से हैं ?
उत्तर:
सबसे प्राचीन बौद्ध ग्रंथ सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक हैं।

प्रश्न 22.
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश किस स्थान पर दिया ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ के स्थान पर आषाढ़ की पूर्णिमा को दिया।

प्रश्न 23.
महात्मा बुद्ध के पहले उपदेश को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के पहले उपदेश को धर्म चक्र प्रवर्तन (धर्म के पहिये को घुमाना) के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 24.
बौद्ध धर्म में स्तूप किस बात के प्रतीक माने गए ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म में स्तूप को बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक मान लिया गया।

प्रश्न 25.
शैव धर्म में शिव का चित्रांकन किस रूप में किया गया ?
उत्तर:
शैव धर्म में शिव का चित्रांकनं प्रायः उनके प्रतीक लिंग के रूप में किया गया।

प्रश्न 26.
बोधिसत्त किसे कहा गया?
उत्तर:
बौद्ध धर्म में बोधिसत्तों को परम करुणामय जीव माना गया जो अपने सत्त कार्यों से पुण्य कमाते थे।

प्रश्न 27.
बौद्ध चिंतन की नई परंपरा को किस नाम से जाना गया ?
उत्तर:
बौद्ध चिंतन की नई परंपरा को महायान के नाम से जाना गया।

प्रश्न 28.
हिंदू धर्म में वैष्णव किसे कहा गया ?
उत्तर:
वह हिंदू परंपरा जिसमें विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना गया, वैष्णव परंपरा कहा गया।

प्रश्न 29.
लोग बौद्ध संघ की सदस्यता क्यों प्राप्त करते थे ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन करने और बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए लोग बौद्ध संघ में जाते थे।

प्रश्न 30.
बौद्ध संघ में प्रवेश पाने वाली प्रथम महिला कौन थी ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की उपमाता प्रजापति गौतमी संघ में प्रवेश पाने वाली पहली महिला भिक्षुणी थी।

प्रश्न 31.
जैन धर्म में संन्यासी को क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
जैन धर्म में जैन मुनि और संन्यासी को निर्ग्रन्थ कहा जाता है।

प्रश्न 32.
तीर्थंकर शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
तीर्थंकर शब्द का अर्थ है-‘संसार रूपी सागर से पार उतारने वाला’।

प्रश्न 33.
श्वैन-त्सांग किस देश का रहने वाला था?
उत्तर:
श्वैन-त्सांग चीन देश का रहने वाला था।

प्रश्न 34.
आबू के जैन मन्दिर किस नाम से प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर:
आबू के जैन मंदिर ‘दिलवाड़ा’ नाम से प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 35.
महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति गया (बिहार) में हुई।

प्रश्न 36.
महात्मा बुद्ध के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

प्रश्न 37.
महात्मा बुद्ध का देहावसान किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर:
कुशीनगर अथवा कुशीनारा के स्थान पर महात्मा बुद्ध का देहावसान हुआ।

प्रश्न 38.
बौद्ध परंपरा में महात्मा बुद्ध के देहावसान को क्या कहा गया ?
उत्तर:
बौद्ध परंपरा में महात्मा बुद्ध के देहावसान को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा गया।

प्रश्न 39.
‘सुत्तपिटक’ का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर:
‘सुत्तपिटक’ का सम्बन्ध बौद्ध साहित्य से है।

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प्रश्न 40.
महात्मा बद्ध ने अपना पहला उपदेश कहाँ दिया था?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश ‘सारनाथ’ में दिया था।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इतिहासकार मूर्तियों व प्रतीकों की व्याख्या कैसे करते हैं ?
उत्तर:
मूर्तियों व प्रतीकों को समझने के लिए इतिहासकारों को कलाकृति बनाने वालों की परंपरा का ज्ञान होना चाहिए। उदाहरण के लिए महात्मा बुद्ध से जुड़े प्रतीकों को समझने के लिए बुद्ध के जीवन चरित यानी ‘बौद्ध चरित’ के बारे में ज्ञान होना जरूरी है।

प्रश्न 2.
नियतिवादी सम्प्रदाय का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
नियतिवादी सम्प्रदाय का संस्थापक मक्खलि गोसाल था। इसके अनुसार प्राणी नियति (भाग्य) के अधीन है। उसमें न बल है न पराक्रम । वह भाग्य के अधीन सुख-दुख भोगता है।

प्रश्न 3.
कला इतिहासकारों को साहित्यिक परंपराओं का ज्ञान क्यों जरूरी होता है?
उत्तर:
कला इतिहासकार कलाकृतियों को समझकर इतिहास की कुछ लुप्त कड़ियों को जोड़ने का प्रयास करते हैं। लिए उन्हें साहित्यिक परंपराओं से परिचित होना पड़ता है। इसके अभाव में कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

प्रश्न 4.
‘धर्म-चक्र-प्रवर्तन’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
धर्मचक्र प्रवर्तन से अभिप्राय है धर्म के चक्र को घुमाना। ज्ञान-प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने सारनाथ के स्थान पर अपना पहला धर्म उपदेश दिया, उसे ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 5.
बौद्ध धर्म के निर्वाण अथवा निब्बान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बौद्ध धर्म में निर्वाण की अवधारणा से अभिप्राय है मन की पूर्ण व अमिट शांति। इसे अच्छे आचरण और अष्ट मार्ग का अनुसरण करते हुए प्राप्त किया जा सकता था। वस्तुतः अहंकार और इच्छा पर पूर्ण नियंत्रण करते हुए जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना ही निर्वाण था।

प्रश्न 6.
गांधार कला शैली की मूर्तिकला की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
यह कला शैली भारतीय और यूनानी कला शैली के परस्पर मिलन से पैदा हुई। इसमें विषय-वस्तु महात्मा बुद्ध और बौद्ध परंपराओं से लिए गए, जबकि मूर्ति बनाने का तरीका यूनानी था। मूर्तियों के तीखे नैन-नक्श, घुघराले बाल, झीने और पारदर्शी उत्कीर्ण वस्त्र इस शैली की मुख्य पहचान है।

प्रश्न 7.
मथुरा कला शैली की विशेषता बताइए।
उत्तर:
मथुरा कला-शैली का केन्द्र मथुरा था। यहाँ लाल बलुआ पत्थर से बौद्ध, जैन व हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गईं। प्रारंभिक बौद्ध मूर्तियों में बुद्ध को खड़ी मुद्रा में दिखाया गया है। उनका दायां हाथ अभय मुद्रा में है और बायां कूल्हे पर टिका है। वस्त्र शरीर से बिल्कुल सटे हुए हैं।

प्रश्न 8.
आत्मिक ज्ञान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आत्मिक ज्ञान से अभिप्राय आत्मा और परमात्मा के संबंधों को जानना। परम सत्य ब्रह्म (परमात्मा) है। संपूर्ण जगत उसी से पैदा हुआ। जीवात्मा जो अजर-अमर है ब्रह्म का ही अंश है। जीवात्मा ब्रह्म में लीन होकर मुक्ति को प्राप्त करती है। इसके लिए कर्मकाण्ड नहीं, बल्कि सद्कर्मों की जरूरत है।

प्रश्न 9.
भौतिकवादियों के अनुसार मानव शरीर की रचना कैसे हुई?
उत्तर:
भौतिकवादियों का कहना था कि पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु से मानव शरीर बना है। आत्मा या परमात्मा कोरी कल्पना है। मृत्यु के बाद शरीर में कुछ शेष नहीं बचता।

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प्रश्न 10.
महायान विचारधारा की दो विशेषताएँ बताइए। अथवा महायान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

  • महायान विचारधारा बौद्ध धर्म का एक संशोधित और नवीन रूप था। इसमें बुद्ध और बोधिसत्तों की ईश्वर के रूप में पूजा होने लगी, जबकि पुरातन परंपरा के बौद्ध अनुयायी महात्मा बुद्ध को ईश्वर नहीं, बल्कि अपना पथ-प्रदर्शक गुरु मानते थे।
  • महायान शाखा की पूजा-पद्धति भी अलग थी। पहले पूजा के प्रतीक चिह्न थे; जैसे बुद्ध के पैर के निशान, स्तूप, उजला हाथी, वृक्ष, चक्र इत्यादि, जबकि महायान शाखा में लोग महात्मा बुद्ध की प्रतिमा बनाकर पूजा करने लगे।

प्रश्न 11.
हिंदू धर्म में वैष्णव व शैव परंपरा क्या है ?
उत्तर:
हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा में विष्णु को परमेश्वर माना गया है, जबकि शैव परंपरा में शिव परमेश्वर है अर्थात् दोनों में एक विशेष देवता की आराधना को महत्त्व दिया गया। इस पूजा पद्धति में उपासना और परम देवता के बीच का संबंध समर्पण और प्रेम का स्वीकारा गया इसलिए यह भक्ति कहलाई।

प्रश्न 12.
अवतारवाद क्या है ?
उत्तर:
अवतारवाद वैष्णव धर्म के एक प्रधान अंग के रूप में उभरकर आया। इसके अनुसार विष्णु के 10 अवतारों को स्वीकार किया गया है। ये दस अवतार हैं-मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कल्की। यह माना जाता था कि सांसारिक कष्टों से भक्तों को मुक्त करने के लिए विष्णु भगवान् समय-समय पर अवतार धारण करते हैं।

प्रश्न 13.
शैव किसे कहा गया है ?
उत्तर:
शिव के धर्मानुयायियों और भक्तों को शैव कहा गया। इस मत के अनुयायी शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में पूजते थे। कई बार शिव को मनुष्य के रूप में भी (मूर्तियों में) दिखाया गया। जहाँ विष्णु के उपासक उसे सृष्टि के पालनहार के रूप में देखते थे, वहीं शिव के उपासक उन्हें सृष्टि के कर्ता और संहारक के रूप में स्वीकार करते थे।

प्रश्न 14.
पौराणिक कथाओं की मुख्य विशेषताएँ क्या थी?
उत्तर:
पौराणिक कथाओं में देवी-देवताओं की भी कहानियाँ हैं। पुराणों की बहुत-सी कथाएँ लोक-कथाएँ बन चुकी थीं। सामान्यतया इन्हें संस्कृत श्लोकों में लिखा गया था। इन श्लोकों को ऊँची आवाज़ में उच्चरित किया जाता था ताकि सभी सुन सकें। महिलाएँ व शूद्र, जिन्हें वैदिक साहित्य पढ़ने-सुनने की अनुमति नहीं थी, वे भी पुराणों को सुन सकते थे। इसलिए पौराणिक किस्से लोकधारा के हिस्से थे। पुराणों की कहानियों का विकास और प्रचार-प्रसार लोगों के मेल-मिलाप से हुआ।

प्रश्न 15.
मन्दिर स्थापत्य की दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • मंदिरों का प्रारंभ गर्भ-गृह (देव मूर्ति का स्थान) के साथ हुआ। ये चौकोर कमरे थे। इनमें एक दरवाजा होता था, जिससे उपासक पूजा के लिए भीतर जाते थे।
  • धीरे-धीरे गर्भ-गृह के ऊपर एक ऊँचा ढांचा बनाया जाने लगा, जिसे शिखर कहा जाता था।

प्रश्न 16.
अजन्ता की गुफाओं के चिह्नों की विशेषता बताइए।
उत्तर:
अजन्ता की गुफाओं (महाराष्ट्र) से प्राप्त हुए भित्तिचित्र (दीवारों पर बने चित्र) हैं। छतों और कोनों में सजाने के लिए वृक्ष, पुष्प, नदी व झरने आदि बनाए गए हैं। इनके अलावा सर्वाधिक चित्र दो विषयों पर हैं-

  • बद्ध और बोधिसत्तों के चित्र और
  • जातक गाथाओं के दृश्य। इन चित्रों में हर्ष, उल्लास, प्रेम, भय, करुणा, लज्जा व घृणा जैसी मानवीय भावनाओं का अद्भुत प्रदर्शन हुआ है। कुछ चित्र बिल्कुल स्वाभाविक और सजीव दिखते हैं।

प्रश्न 17.
श्रमण कौन थे ?
उत्तर:
शिक्षक और विचारक जो स्थान-स्थान पर घूमकर अपनी विचारधाराओं के विषय में अन्य लोगों से तर्क-वितर्क करते थे, उन्हें श्रमण कहा जाता था।

प्रश्न 18.
‘जैन’ शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जैन’ शब्द संस्कृत के ‘जिन’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘विजेता’ अर्थात् वह व्यक्ति जिसने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो। जिन अर्थात् जितेन्द्रिय।

प्रश्न 19.
निर्ग्रन्थ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
निर्ग्रन्थ का अर्थ है बिना ग्रन्थि के अर्थात् बंधन मुक्त। वे मनुष्य जो संसार के सभी बन्धनों से मुक्त हो गए हों। जैन ‘मुनि और संन्यासी निर्ग्रन्थ के नाम से जाने जाते हैं।

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प्रश्न 20.
त्रिरत्न से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जैन धर्म के अनुसार मोक्ष-प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। ये त्रिरत्न हैं

  • सम्यक् विश्वास,
  • सम्यक् ज्ञान,
  • सम्यक् चरित्र।

प्रश्न 21.
बौद्ध धर्म में संघ का क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
बौद्ध संघ भिक्षुओं का संगठन था। यह बौद्ध धर्म की शक्ति का प्रमुख आधार था। इसने बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में अत्यधिक योगदान दिया।

प्रश्न 22:
जातक कथाओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जातक ग्रन्थों में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाओं का उल्लेख है। इनकी संख्या लगभग 549 है। ये पालि भाषा में लिखे गए हैं।

प्रश्न 23.
स्तूप क्यों बनाए जाते थे ?
उत्तर:
स्तूप संस्कृत.का शब्द है, जिसका अर्थ है-ढेर। महात्मा बुद्ध या अन्य किसी पवित्र भिक्षु के अवशेषों; जैसे दाँत, भस्म, हड्डियाँ या किसी पवित्र ग्रन्थ पर स्तूप बनाए जाते थे और ये अवशेष स्तूप के केन्द्र में बने एक छोटे कक्ष में एक पेटिका में रखे जाते थे।

प्रश्न 24.
जैन धर्म का विभाजन कौन-से दो उप-संप्रदायों में हुआ?
उत्तर:
300 ई०पू० के आसपास जैन धर्म दो संप्रदायों श्वेतांबर और दिगंबर में विभाजित हो गया। दिगंबर जैन भिक्षु वस्त्र धारण नहीं करते, जबकि श्वेतांबर श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।

प्रश्न 25.
बौद्ध धर्म के पतन के कोई दो कारण लिखें।।
उत्तर:
बौद्ध धर्म के पतन के निम्नलिखित दो प्रमुख कारण थे (i) कालांतर में बौद्ध धर्म में आडंबर व दुर्बलताएँ उत्पन्न हो गईं जिनके चलते यह अपनी लोकप्रियता खो बैठा। (ii) समय बीतने के साथ बौद्ध धर्म में विचार मतभेद उत्पन्न हो गए जिससे यह कई संप्रदायों व उपसंप्रदायों में बँट गया।

प्रश्न 26.
सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची के स्तूप में कैसे योगदान दिया ?
उत्तर:
सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची के स्तूप में विशेष रुचि ली। बेगम ने स्तूप के अवशेषों को यूरोपियनों की गिद्ध दृष्टि से बचाया, संरक्षण के लिए धन उपलब्ध करवाया एवं साथ ही स्तूप-स्थल के पास एक संग्रहालय और अतिथिशाला भी बनवाई।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध धर्म के चार सत्य कौन-से हैं तथा ‘धर्म चक्र प्रवर्तन’ से आप क्या समझते हैं ? अथवा बौद्ध धर्म की किन्हीं दो शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म में निम्नलिखित चार शाश्वत सत्य बताए गए हैं

  • संसार दुःखों का घर है।
  • दुःखों का कारण इच्छाएँ हैं।
  • इच्छाओं को कम करके दुःख कम किए जा सकते हैं।
  • इच्छाओं एवं लालसाओं को अष्ट मार्ग से त्यागा जा सकता है।

धर्म चक्र प्रवर्तन से अभिप्राय है धर्म के चक्र को घुमाना। ज्ञान-प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने सारनाथ के स्थान पर अपना पहला धर्म उपदेश दिया, उसे ‘धर्म चक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
जैन धर्म की मुख्य तीन शिक्षाएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) त्रिरत्न (Three Jewels) महावीर स्वामी ने मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति बताया। इसके लि जीवन में तीन आदर्श वाक्य अपनाने पर बल दिया। ये तीन वाक्य ही त्रिरत्न कहलाए-

  • सत्य विश्वास अर्थात् मनुष्य को अपने । ऊपर तथा तीर्थंकरों पर विश्वास होना चाहिए।
  • सत्य ज्ञान अर्थात् तीर्थंकरों के उपदेशों का सच्चे मन से अनुसरण करना।
  • सत्य चरित्र अर्थात् महाव्रतों पर आधारित अच्छा आचरण अथवा कर्म करना।

(2) पाँच महाव्रत (Five Mahavartas)-इन व्रतों को अणुव्रत भी कहा गया है। मनुष्यों को पापों से बचने के लिए पाँच महाव्रतों के पालन पर जोर दिया गया। ये व्रत थे- अहिंसा यानी हत्या न करना, चोरी न करना, झूठ न बोलना, धन संग्रह न करना तथा ब्रह्मचर्य (अमृषा) का पालन। जैन साधु व साध्वी इन पाँचों व्रतों का पालन करते थे।

(3) अहिंसा (Non-Violence)-जैन दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा यह है कि संपूर्ण विश्व प्राणवान है अर्थात् पेड़-पौधे, मनुष्य, पशु-पक्षियों आदि में ही नहीं, बल्कि पत्थर, चट्टानों, जल इत्यादि सभी में जीवन होता है। जीवों के प्रति अहिंसा अर्थात् मनुष्यों, पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों तथा पेड़-पौधों को क्षति न पहुँचाना जैन धर्म का केन्द्र-बिन्दु है। . जैन दर्शन में अहिंसा के सिद्धान्त का संबंध मन, वचन व क्रम तीनों से है अर्थात् इन तीनों रूपों में किसी भी तरह का हिंसा भाव पैदा नहीं होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के इस सिद्धांत ने संपूर्ण भारतीय चिंतन परंपरा को प्रभावित किया है।

प्रश्न 3.
अमरावती स्तूप की खोज और नियति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अमरावती स्तूप की खोज और उसकी नियति का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
(i) खोज–अमरावती (महाराष्ट्र) के बौद्ध स्तूप की खोज भी अनजाने में ही हुई। सन् 1796 में एक स्थानीय राजा एक मंदिर बनाना चाहता था, तभी उसे अमरावती के स्तूप के प्राचीन अवशेष मिल गए। उसकी रुचि उन्हें खोद निकालने में और भी बढ़ गई, क्योंकि वह सोचने लगा कि संभवतया इस टीले में कोई खजाना ही दबा पड़ा हो। उन्हीं दिनों में कॉलिन मेकेन्जी नामक अंग्रेज पुरातत्त्वविद् यहाँ पहुँचा और उसने इस स्थान का सर्वेक्षण किया। सन् 1854 में एलियट नामक एक अंग्रेज़ अधिकारी ने अमरावती के स्तूप स्थल की यात्रा की, कुछ खुदाई भी करवाई। अंततः … उन्होंने स्तूप का पश्चिमी तोरणद्वार भी ढूँढ निकाला।

(ii) नियति-अमरावती में जिस स्थान पर यह स्तूप था वहाँ आज मिट्टी के ढेर के सिवा कुछ नहीं है, जबकि यह साँची के स्तूप से भी अधिक सुंदर था और सफेद संगमरमर की नक्काशीदार मूर्तियों से बना था। 1796 ई० में इस स्तूप की खोज के साथ ही इन मूर्तियों को उठाकर ले जाने का सिलसिला चल पड़ा था। इन पुरावशेषों को अलग-अलग स्थानों पर ले जाया गया। एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल, इंडिया ऑफिस (मद्रास) और यहाँ तक कि कुछ पत्थर लंदन तक पहुंच गए। ध्यान रहे ये केवल संग्रहालयों की शोभा ही नहीं बने बल्कि बहुत-से ब्रिटिश अधिकारियों के बंगलों और बागों में सुशोभित हुए। अमरावती के स्तूप की यह नियति इसलिए भी हुई क्योंकि इसकी खोज साँची से थोड़ी पहले हुई थी। विद्वान काफी वर्षों तक इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाए कि पुरातात्विक अवशेषों का संरक्षण उनके खोज के स्थानों पर ही होना जरूरी है। संग्रहालयों में उनकी प्लास्टर प्रतिकृतियाँ ही रखी जाएँ।

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प्रश्न 4.
पौराणिक हिंदू धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
वैष्णव व शैव मत के उदय के बारे में एक टिप्पणी लिखें। .
उत्तर:
ब्राह्मण धर्म में भी नई परंपरा पनपी। इस परंपरा को हम पौराणिक हिंदू धर्म के नाम से जानते हैं। इस परंपरा में भी .. महायानों की भाँति ‘मुक्तिदाता’ की कल्पना उभरकर आई। हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा में विष्णु को परमेश्वर माना गया है, जबकि शैव परंपरा में शिव परमेश्वर है अर्थात् दोनों में एक विशेष देवता की आराधना को महत्त्व दिया गया। … वैष्णव व शैव धार्मिक परंपराओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. वैष्णववाद की विशेषताएँ-वैष्णव संप्रदाय के दो मुख्य तत्त्व हैंभक्ति और अहिंसा। भक्ति का अर्थ तो जैसा कि पहले बताया । … गया है कि देवता के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव है। अहिंसा किसी जीव का वध न करने का सिद्धांत है। इन दोनों ही सिद्धांतों के फलस्वरूप वैष्णव संप्रदाय का विस्तार हुआ। लोग विष्णु की प्रतिमा बनाकर पूजा करने लगे, जीव-हत्या से घृणा करने लगे और बहुत-से उपासकों ने शाकाहार को अपनाया। इस नए धर्म का स्वरूप उदार था। अवतारवाद वैष्णव धर्म के एक प्रधान अंग के रूप में उभरकर आया। इसके अनुसार विष्णु के 10 अवतारों को स्वीकार किया गया है। ये दस अवतार हैं-मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कल्की, यहाँ तक कि इसमें बुद्ध को भी विष्णु का अवतार मान लिया गया।

2. शैव मत-शिव के भक्तों को शैव कहा गया। इस मत के अनुयायी शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में पूजते थे। कई बार शिव को मनुष्य के रूप में भी (मूर्तियों में) दिखाया गया। जहाँ विष्णु के उपासक उसे पालनहार के रूप में देखते थे, वहीं शिव के उपासक उन्हें सृष्टि के संहारक के रूप में स्वीकार करते थे। छठी शताब्दी तक शैव मत की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई तथा इसका दक्षिण भारत में भी प्रसार हुआ।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ सरल थीं। उनके उपदेश तर्क पर आधारित थे। उनकी मुख्य शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन इस . प्रकार है
1. चार सत्य–महात्मा बुद्ध ने निम्नलिखित चार सत्यों की पहचान की

  • मनुष्य के लिए संसार दुःखों का घर है।
  • दुःखों का कारण मनुष्य की तष्णा एवं लालसा है।
  • लालसा पर विजय पाकर दुःखों से मुक्ति पाई जा सकती है।
  • अष्टमार्ग (मध्य माग) लालसाओं पर विजय पाने का तरीका है।

2. अष्टमार्ग-इसे मध्य मार्ग (Middle Path) भी कहा गया है क्योंकि यह दोनों अति विलासिता और कठोर तपस्या के बीच का मार्ग है।
संक्षेप में, अष्ट मार्ग की आठ आदर्श बातें इस प्रकार हैं

  • सत्य दृष्टि अर्थात् सत्य व असत्य (बुराई) की पहचान की दृष्टि।
  • सत्य संकल्प अर्थात् बुराई को त्यागने का पवित्र संकल्प।
  • सत्य वचन अर्थात् मृदु वाणी होना तथा झूठ, निंदा व अप्रिय वचन का परित्याग।
  • सत्य कर्म अर्थात् मनुष्य का कर्म अहिंसा, इंद्रिय संयम और दयाभाव पर आधारित हो।
  • सत्य आजीविका अर्थात् जीवनयापन के लिए उचित एवं पवित्र साधनों का उपयोग।
  • सत्य प्रयत्न अर्थात् शारीरिक एवं मानसिक इच्छाओं को त्यागने का प्रयत्न।
  • सत्य स्मृति अर्थात् मनुष्य को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि उसका शरीर भी नश्वर है।
  • सत्य समाधि अर्थात अमिट शांति के लिए चिंतन की समाधि।।

महात्मा बुद्ध का निष्कर्ष था कि मनुष्य इस अष्ट मार्ग का अनुसरण करके पुरोहितों के फेर से व मिथ्या आडंबरों से बच जाएगा तथा मुक्ति भी प्राप्त करेगा।

3. आचरण के नियम-अपने अनुयायियों के लिए बुद्ध ने आचरण के नियम बनाए। उनमें से मुख्य थे

  • अहिंसा का पालन;
  • झूठ का परित्याग;
  • नशे का सेवन न करना;
  • प्रायः धन का लोभ न करना;
  • भोग विलासी न बनना;
  • मन को शुद्ध रखना;
  • किसी से घृणा न करना तथा
  • सबकी भलाई करना और उसके बारे में सोचना।

4. निर्वाण-महात्मा बुद्ध ने मनुष्य के जीवन का मुख्य लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति बताया। निर्वाण से अभिप्राय मन की पूर्ण शांति से था। अहम् एवं इच्छा पर पूर्ण नियंत्रण से ही निर्वाण-प्राप्ति होती है।

प्रश्न 2.
बौद्ध संघ पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
धर्म का प्रचार सुव्यवस्थित तरीके से करने के लिए पहला बौद्ध संघ सारनाथ में और फिर अन्य स्थानों पर संघ बनाए गए। यह धर्म के शिक्षकों का संघ था। ये शिक्षक (श्रमण) सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए बहुत ही जरूरी वस्तुओं को छोड़कर और कुछ नहीं होता था। उदाहरण के लिए उनके पास एक कटोरा होता था जिसमें वो दिन में एक बार उपासकों से भोजन की भीख प्राप्त करते थे, इसलिए इन श्रमणों को भिक्खु (भिक्षु) कहा जाता था। बौद्ध संघ में भिक्षु, भिक्षुणियों को गहन अध्ययन करवाया जाता था। आचरण के नियम पालन करवाए जाते थे। वर्षा काल को छोड़कर वर्ष भर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते हुए धर्म प्रचार करते थे। वर्षा काल के चार महीनों में अध्ययन पर बल दिया जाता था। सभी भिक्षुओं और भिक्षुणियों को संघ के नियमों का सख्ती से पालन करना होता था। इन नियमों का वर्णन ‘विनय पिटक’ नामक ग्रंथ में मिलता है।

1. संघ की सदस्यता-बौद्ध संघ में सभी जाति, वर्ण एवं वर्गों के लोग इसके सदस्य बन सकते थे जिनकी आयु 15 वर्ष से अधिक थी। इसके लिए उन्हें अपने माता-पिता एवं अभिभावकों से अनुमति लेनी जरूरी थी। अपराधी, कुष्ठ रोगी तथा संक्रामक रोग से पीड़ित लोगों के लिए संघ की सदस्यता वर्जित थी। प्रारंभ में महिलाओं को भी संघ की सदस्या नहीं बनाया गया था। परंतु बाद में महिलाओं को भी संघ में शामिल होने की अनुमति दे दी गई थी। बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गौतमी संघ में शामिल होने वाली पहली महिला थी। संघ में प्रवेश पाने वाली कुछ महिलाएँ बौद्ध धर्म का ज्ञान प्राप्त करके इसकी शिक्षक भी बन गईं।

2. संघ की कार्य-प्रणाली-संघ की कार्य-प्रणाली में जनवाद अधिक था। संघ के सदस्य परस्पर बातचीत से सहमति की ओर बढ़ते थे। सभी सदस्यों के अधिकार समान थे। यदि किसी विषय पर सहमति न बन पाती तो मतदान करके बहुमत से निर्णय लिया जाता जो सभी को स्वीकार्य होता। अपराधी अथवा नियमों की उल्लंघना करने वाले भिक्षु को दण्ड मिलता था।

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प्रश्न 3.
भारत में बौद्ध धर्म के प्रसार के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
भारत में इस धर्म के प्रसार के लिए मुख्यतया निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे
1. बुद्ध का व्यक्तित्व-बौद्ध धर्म के प्रसार का एक महत्त्वपूर्ण कारण बुद्ध का व्यक्तित्व था। उनकी करनी और कथनी में भेद नहीं था। वे भलाई करके बुराई को भगाने का तथा प्रेम से घृणा को जीतने का प्रयास करते थे। निंदा और गाली से उन्हें क्रोध नहीं आता था।

2. वैदिक धर्म से मोहभंग-बौद्ध धर्म के उत्थान के समय वैदिक धर्म कर्मकाण्डी बन चुका था। लोग यज्ञ, बलि और आडंबरों से ऊब चुके थे। जब उन्हें सरल धर्म मिला तो वे उसकी ओर आकर्षित हुए। नए धर्म में समानता की भावना भी

3. सरल भाषा का प्रयोग-बौद्ध मत का प्रचार बुद्ध ने जनसामान्य की भाषा पालि में किया जो संस्कृत की तुलना में लोगों को अधिक आकर्षित कर सकी। आम लोग बौद्ध विचारों को सुगमता से समझ पाए।

4. बौद्ध संघ की भूमिका-बौद्ध संघ में प्रचारकों को न केवल बौद्ध धर्म की उच्च शिक्षा दी जाती थी बल्कि उनके चरित्र निर्माण पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था। पुरोहितों की तुलना में इनके आचरण को. लोगों ने अधिक पसंद किया।

5. अनुकूल परिस्थितियाँ-बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियाँ भी अनुकूल थीं। इसे राजकीय संरक्षण मिला। बिम्बिसार, अजातशत्रु व प्रसेनजित जैसे राजाओं ने इसके प्रचार में सहायता की। अशोक व कनिष्क जैसे शासकों के प्रयासों से यह दूसरे देशों में पहुंचा। नई कृषि व्यवस्था भी ऐसे धर्म के अनुकूल थी जो बलि प्रथा का विरोध करे और पशुधन की सुरक्षा करे। बौद्ध धर्म का अहिंसा का सिद्धांत इस दिशा में महत्त्वपूर्ण था।

6. समानता का भाव-बौद्ध धर्म में अच्छे आचरण व मूल्यों को महत्त्व दिया गया, न कि जन्म के आधार पर किसी तरह की श्रेष्ठता को। बौद्ध धर्म स्वीकार करने वालों को अपनी पुरानी पहचान छोड़नी पड़ती थी। यहाँ राजा और रंक सब बराबर थे। इसलिए बड़ी संख्या में महिलाएँ व पुरुष इसकी ओर आकर्षित हुए।

7. करुणा भाव-बौद्ध धर्म की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी-दया और करुणा। इसमें यह विश्वास किया जाता था कि समाज का निर्माण इंसानों ने किया है, न कि भगवान ने। इसलिए इसमें राजाओं और धनी लोगों को कमज़ोरों के प्रति दयावान और आचारवान होने की सलाह दी गई। वस्तुतः दया और करुणा के भाव को महत्त्व देने के आदर्श बहुत-से लोगों को पसंद आए।

प्रश्न 4.
भारत में बौद्ध धर्म के विलुप्त होने के मुख्य कारण लिखें। .
उत्तर:
12वीं शताब्दी तक पहुँचते-पहुँचते भारत में बौद्ध धर्म प्रायः विलुप्त सा हो गया। इसमें निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे
(1) धीरे-धीरे बौद्ध धर्म में भी बुराइयाँ व आडंबर आते गए। अतः इन दुर्बलताओं के चलते यह धर्म अपनी लोकप्रियता खो बैठा।

(2) ब्राह्मण धर्म का पौराणिक हिंदू धर्म के रूप में पुनरुत्थान हुआ। इसकी पूजा पद्धति और महायान धर्म की पूजा पद्धति में कोई विशेष अंतर नहीं था। अवतारवाद की धारणा से हिंदू धर्म जनप्रिय होता गया। यहाँ तक कि महात्मा बुद्ध को भी विष्णु का अवतार मान लिया गया। इससे बौद्ध धर्म अपनी पहचान खोने लगा।

(3) कालान्तर में बौद्ध संघ व विहार (मठ) धन एकत्र करने के केन्द्र बन गए। फलतः बहुत-से भिक्षु भोग-विलासी व दुराचारी हो गए। ऐसी परिस्थितियों में मठ और भिक्षु लोगों के श्रद्धा के केन्द्र नहीं रहे।

(4) धीरे-धीरे राजनीतिक संरक्षण से भी यह धर्म वंचित होता गया। अशोक व कनिष्क जैसे शासकों के संरक्षण में इसका खूब प्रसार हुआ था। गुप्त शासकों से इसे संरक्षण नहीं मिला। हर्षवर्धन ने कुछ संरक्षण दिया, शेष राजपूत शासकों ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई। हूण व तुर्क आक्रमणकारियों से भी इसे क्षति पहुंची।

(5) समय बीतने के साथ-साथ इस धर्म में फूट पड़ती गई। इसके कई संप्रदाय और उप-संप्रदाय बन गए। अतः इस फूट ने भी इसे पतन के मार्ग पर ला खड़ा किया।

प्रश्न 5.
जैन व बौद्ध धर्म के उदय के कारणों को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जैन व बौद्ध धर्मों के उदय के कारणों का वर्णन इस प्रकार है

1. आर्थिक परिवर्तन-बौद्ध व जैन धर्मों के उदय को उत्तर वैदिक काल में हुए आर्थिक परिवर्तनों से जोड़कर देखा जाता है। इस काल में लोहे की कुल्हाड़ियों और हलों से खेती का विस्तार होता जा रहा था जिसमें पशुओं का महत्त्व बढ़ गया था। परंतु प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पशुओं की बलि दी जाती थी। इसलिए नव-उदित धर्मों (जैन व बौद्ध क्योंकि वे बलि प्रथा का विरोध कर रहे थे। कृषि उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप व्यापार-वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला। व्यापारिक वर्ग यानी वैश्य वर्ण का महत्त्व बढ़ने लगा। लेकिन वर्ण व्यवस्था वाले समाज में उनकी सामाजिक स्थिति ब्राह्मण और क्षत्रिय से निम्न थी। अतः वैश्य ऐसे धर्म की आकांक्षा करने लगे जिससे उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची हो सके।

2. नई राजनीतिक परिस्थितियाँ-छठी शताब्दी ईसा पूर्व की राजनीतिक परिस्थितियों ने भी नए धर्मों के उदय के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार किया। विशेषतया मगध क्षेत्र में नए धर्मों को फलने-फूलने का अवसर मिला। यहाँ के स्थानीय लोगों को ‘अनार्य’ कहा गया। आर्य लोगों के इस क्षेत्र में प्रवेश से ब्राह्मणवादी व कट्टर परंपराएँ फैलने लगीं। इसका विरोध यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा किया जा रहा था। इन्हीं परिस्थितियों में यहाँ के लोगों से नए धर्मों को समर्थन मिला। विभिन्न शासकों (बिम्बिसार, अजातशत्रु व अशोक आदि) द्वारा नए धर्मों को संरक्षण दिया और इन धर्मों को स्वयं भी स्वीकार किया। इसका कारण साफ है कि ये शासक ब्राह्मणों के वर्चस्व से मुक्त रहना चाहते थे।

3. वर्ण व्यवस्था में जटिलता-शुरू में यज्ञ सामूहिक तौर पर किए जाते थे। परिवार के सभी सदस्य इसमें शामिल होते थे। परन्तु धीरे-धीरे इसमें बदलाव आता गया। विशेषतः उत्तर वैदिक काल में चतुर्वर्ण व्यवस्था जटिल हो चुकी थी। यह काम पर नहीं बल्कि जन्म पर आधारित हो चुकी थी। शूद्र तो शुरू से ही द्विज वर्ण में नहीं था, वैश्य या क्षत्रिय का प्रतिभाशाली पुत्र भी अब ब्राह्मण नहीं हो सकता था। शूद्रों के प्रति भेदभाव में वृद्धि हो चुकी थी। उनके प्रति उच्च वर्गों में अस्पृश्यता की भावना भी उत्पन्न होने लगी। धर्म में उनके लिए मोक्ष का मार्ग नहीं था। फलतः नए विकल्पों पर विचार की प्रक्रिया शुरू हुई।

4. यज्ञ परंपरा (वैदिक धम) में जटिलता-शुरू में यज्ञ सामूहिक तौर पर किए जाते थे। परिवार के सभी सदस्य इसमें शामिल होते थे। परन्तु धीरे-धीरे इसमें बदलाव आता गया। विशेषतः उत्तर वैदिक काल में इस परंपरा में जटिलता बढ़ती गई। समाज में भी अब पहले जैसी बंधुता नहीं थी। वर्गीय विभाजन होता गया। धर्म पर एक विशेष वर्ग ‘ब्राह्मण’ का प्रभाव स्थापित हो गया। अब खर्चीले यज्ञ, बलि, व्यर्थ के रीति-रिवाजों और आडंबरों को महत्त्व दिया जाने लगा। यज्ञ परंपरा साधारण लोगों की पहुंच से दूर हो गई या उन पर एक भारी बोझ बन गई। फलतः इनके विरुद्ध जन भावनाएँ उत्पन्न होने लगीं। बहुत-से लोग इन पर पुनर्विचार करने लगे।

5. नवीन विचारकों का उदय-उत्तर वैदिक काल के अंतिम दौर में बलि व यज्ञादि कर्मकांडों के खिलाफ जबरदस्त प्रतिक्रिया शुरू हुई। धर्म व दर्शन पर नए प्रश्न खड़े हुए। उपनिषदों में नए सिद्धांतों; जैसे कि कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष इत्यादि का प्रतिपादन हुआ, परंतु यह गूढ़ ज्ञान सामान्य जनता की समझ से बाहर था। इस वैदिक परंपरा को नकारने वाले दार्शनिक सत्य के स्वरूप पर बहस कर रहे थे। वे अपनी-अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत कर रहे थे। विभिन्न संप्रदायों के श्रमण एक-दूसरे से तर्क-वितर्क करते थे। ये वनों, उपवनों में बनी कुटागारशालाओं में ठहरते थे। इनमें ई अपने प्रतिद्वन्द्वी को अपना ज्ञान समझाने में सफल हो जाता था तो वह प्रतिद्वन्द्वी अपने अनुयायियों के साथ उसका शिष्य बन जाता था। महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी इसी परंपरा के थे।

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प्रश्न 6.
साँची की बौद्ध मूर्तिकला में लोक परंपराओं के समावेश पर एक संक्षिप्त लेख लिखें।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में कई चिह्न ऐसे हैं जिनका बौद्ध धर्म से सीधा संबंध नहीं है। इनमें से कुछ बुद्ध से पूर्व की परंपराओं से आए हैं या फिर अन्य लोक विश्वासों से इनका समावेश हुआ है। इन लोक विश्वासों या परंपराओं से बौद्ध धार्मिक परंपरा और भी समृद्ध हुई है। बौद्ध धर्म में कुछ लोक परंपराओं के समावेश होने के उदाहरण उल्लेखनीय हैं

1. शालभंजिका की मूर्ति साँची के तोरणद्वार के किनारे एक पेड़ से झूलती हुई सुंदर स्त्रियाँ दिखाई गई हैं। माना जाता है कि ये शालभंजिका की मूर्तियाँ हैं। लोक परंपराओं में ऐसा विश्वास था कि इन स्त्रियों के छूने से वृक्ष फूल और फलों से भर जाते हैं। इससे ये शुभ का प्रतीक बन गईं। संभवतया इसी कारण स्तूप के अलंकरण में इनका प्रयोग किया गया।

2. जानवरों की मूर्तियाँ-साँची स्तूप की मूर्तियों में हाथी, घोड़े, बंदर व गाय-बैल आदि जानवरों की मूर्तियाँ भी शामिल हैं। इतिहासकारों का विश्वास है कि इन जानवरों का मनुष्यों के गुणों के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता था। उदाहरण के लिए लोक सांस्कृतिक परंपरा में हाथी शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना गया था।

3. माया या गजलक्ष्मी-साँची की एक और मूर्ति बड़ी प्रसिद्ध है जिसमें कमल तथा दो हाथियों के बीच में खड़ी एक महिला है। हाथी उस महिला पर अभिषेक की मुद्रा में जल डाल रहे हैं। यह मूर्ति भी विद्वानों को असमंजस में डालती है। कुछ विद्वान इसे बुद्ध की माता माया मानते हैं जबकि कुछ इसे सौभाग्य की देवी गजलक्ष्मी बताते हैं। कुछ इसका संबंध माता और गजलक्ष्मी दोनों. से जोड़ते हैं। अतः इसमें भी बौद्ध धार्मिक परंपरा का अन्य धार्मिक परंपराओं से मिलन दिखाई पड़ता है।

4. उत्कीर्णित सर्प-साँची के कई स्तंभों पर सर्पो की मूर्तियाँ मिलती हैं। बौद्ध धर्म के साहित्यिक ग्रंथों में सर्प कथाओं का कोई उल्लेख नहीं है। संभवतया इन सौ का प्रतीक भी लोक परंपराओं से लिया गया हो। भारत में ऐसी परंपराएँ रही हैं जिनमें सर्प पूजनीय माने गए हैं।

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