HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन

HBSE 11th Class Political Science स्थानीय शासन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारत का संविधान ग्राम पंचायत को स्व-शासन की इकाई के रूप में देखता है। नीचे कुछ स्थितियों का वर्णन किया गया है। इन पर विचार कीजिए और बताइए कि स्व-शासन की इकाई बनने के क्रम में ग्राम पंचायत के लिए ये स्थितियाँ सहायक हैं या बाधक?

(क) प्रदेश की सरकार ने एक बड़ी कंपनी को विशाल इस्पात संयंत्र लगाने की अनुमति दी है। इस्पात संयंत्र लगाने से बहुत-से गाँवों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। दुष्प्रभाव की चपेट में आने वाले गाँवों में से एक की ग्राम सभा ने यह प्रस्ताव पारित किया कि क्षेत्र में कोई भी बड़ा उद्योग लगाने से पहले गाँववासियों की राय ली जानी चाहिए और उनकी शिकायतों की सुनवाई होनी चाहिए।

(ख) सरकार का फैसला है कि उसके कुल खर्चे का 20 प्रतिशत पंचायतों के माध्यम से व्यय होगा।

(ग) ग्राम पंचायत विद्यालय का भवन बनाने के लिए लगातार धन माँग रही है, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने माँग को यह कहकर ठुकरा दिया है कि धन का आबंटन कुछ दूसरी योजनाओं के लिए हुआ है और धन को अलग मद में खर्च नहीं किया जा सकता।

(घ) सरकार ने डुंगरपुर नामक गाँव को दो हिस्सों में बाँट दिया है और गाँव के एक हिस्से को जमुना तथा दूसरे को सोहना नाम दिया है। अब डुंगरपुर नामक गाँव सरकारी खाते में मौजूद नहीं है।

(ङ) एक ग्राम पंचायत ने पाया कि उसके इलाके में पानी के स्रोत तेजी से कम हो रहे हैं। ग्राम पंचायत ने फैसला किया कि गाँव के नौजवान श्रमदान करें और गाँव के पुराने तालाब तथा कुएँ को फिर से काम में आने लायक बनाएँ।
उत्तर:
प्रश्न में कुल पाँच स्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनका उत्तर निम्नलिखित प्रकार से है-
(क) प्रश्न की प्रथम स्थिति ग्राम पंचायत के लिए सहायक सिद्ध होगी,
(ख) द्वितीय स्थिति भी ग्राम पंचायत के लिए सहायक है,
(ग) प्रश्न की तीसरी स्थिति ग्राम पंचायत के लिए बाधक हो सकती है,
(घ) प्रश्न की चौथी स्थिति भी ग्राम पंचायत के लिए बाधक है,
(ङ) पाँचवीं स्थिति ग्राम पंचायत के लिए सहायक है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन

प्रश्न 2.
मान लीजिए कि आपको किसी प्रदेश की तरफ से स्थानीय शासन की कोई योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ग्राम पंचायत स्व-शासन की इकाई के रूप में काम करे, इसके लिए आप उसे कौन-सी शक्तियाँ देना चाहेंगे? ऐसी पाँच शक्तियों का उल्लेख करें और प्रत्येक शक्ति के बारे में दो-दो पंक्तियों में यह भी बताएँ कि ऐसा करना क्यों जरूरी है।
उत्तर:
ग्राम पंचायत स्थानीय स्व-शासन की त्रिस्तरीय ढाँचे में सबसे निम्न स्तर की संस्था है। ग्राम पंचायत स्व-शासन की इकाई के रूप में कार्य करें, इसके लिए उसे निम्नलिखित शक्तियाँ देनी चाहिएँ
1. नागरिक सुविधाएँ-नागरिक सुविधाओं के अधीन ग्राम पंचायत अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती है। उदाहरण के लिए – गाँव के लोगों के लिए स्वच्छ पानी, प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था, चिकित्सालयों की व्यवस्था, दूषित पानी की निकासी आदि।

2. समाज कल्याण का कार्य-ग्राम पंचायतें समाज कल्याण के लिए अनेक कार्य कर सकती हैं; जैसे परिवार नियोजन तथा कल्याण के कार्यों को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न उपाय कर सकती हैं।

3. विकास कार्य-विकास के लिए भी ग्राम पंचायतें बहुत सारे कार्य कर सकती हैं; जैसे गाँव में छोटे-छोटे कुटीर उद्योग लगा सकती हैं। इससे ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा और उनकी आय में वृद्धि होगी तथा जीवन-स्तर भी उन्नत होगा।

4. शिक्षा का प्रबंध ग्राम पंचायत ग्रामीण लोगों के विकास एवं समृद्धि के लिए शिक्षा का प्रबंध करें ताकि ग्रामीण बच्चों की । शिक्षा में रुचि बढ़े और वे आसानी से शिक्षा ग्रहण कर आदर्श नागरिक बन सकें।

5. मनोरंजन कार्य-ग्राम पंचायतें ग्रामीण लोगों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था कर सकती है। इसके लिए वह स्टेडियम में खेल-प्रतियोगिता आदि का आयोजन भी कर सकती है जिससे गाँव के बच्चों का शारीरिक विकास भी होगा।

प्रश्न 3.
सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए संविधान के 73वें संशोधन में आरक्षण के क्या प्रावधान हैं? इन प्रावधानों से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व का खाका किस तरह बदला है?
उत्तर:
24 अप्रैल, 1993 को 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम अर्थात् नए पंचायती राज अधिनियम को लागू कर शक्तिशाली स्थानीय स्वशासी सरकार की दिशा में संसद ने ऐतिहासिक कार्य किया। कमजोर वर्गों के लिए उक्त संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं

(1) कुल स्थानों में से 50% स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करने की घोषणा की गई।

(2) अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों (S.C., S.T.) के सदस्यों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार होगा। इन आरक्षित पदों में से 1/3 स्थान इन्हीं जातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाएंगे। उदाहरण के लिए, यदि गाँव की जनसंख्या 10,000 है और उसमें (S.C., S.T.) की संख्या 2,000 है, तो S.C., S.T. के लिए कुल सीटों का 5वाँ हिस्सा आरक्षित होगा अर्थात् यदि कुल 20 सीटें हैं तो S.C., S.T. के लिए चार सीटें आरक्षित करनी पड़ेंगी,

(3) पिछड़ी जातियों के आरक्षण का निर्णय राज्य की विधानसभा कानून के द्वारा करेगी, (4) पंचायतों के तीनों स्तरों पर अध्यक्षों के पदों का भी आरक्षण किया गया है। इन पदों पर S.C., S.T. और महिलाओं के लिए क्रमवार (Rotation) स्थान आरक्षित किए गए हैं। यह व्यवस्था 24 अप्रैल, 1994 से पूरे देश में लागू हो गई है। इस प्रकार कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान करने से इनकी स्थिति में काफी परिवर्तन आया है। विशेषकर महिलाओं को अपनी कार्यक्षमता सिद्ध करने का अवसर मिला है।

प्रश्न 4.
संविधान के 73वें संशोधन से पहले और संशोधन के बाद के स्थानीय शासन के बीच मुख्य भेद बताएँ।
उत्तर:
भारत में ग्रामीण स्थानीय शासन का इतिहास काफी पुराना है। वैदिक काल में भी इस बात के संकेत मिलते हैं कि लोग मिल-जुलकर अपनी स्थानीय समस्याओं का समाधान निकाल लेते थे। मुगल, मौर्य और ब्रिटिश काल में भी ग्रामीण स्वशासन की इकाइयों के कार्यों एवं शक्तियों में परिवर्तन होते रहे। स्वतंत्र भारत में इन संस्थाओं को राज्य-नीति के निदेशक सिद्धान्तों (धारा 40 के अनुसार राज्य के द्वारा पंचायतों का गठन) में स्थान दिया गया। फिर भी इनके विकास में आशातीत सफलता नहीं मिली। बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के अनुसार 2 अक्तूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में प्रथम पंचायत की स्थापना की गई।

राज्य सरकारों द्वारा पंचायतों को भंग करना, अनियमित चुनाव, वित्त की समस्या व कमजोर वर्गों तथा महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व न मिलना आदि कुछ ऐसी समस्याएँ थीं, जिनका हल निकालने के लिए तथा पंचायती राज संस्थाओं को संविधान में दर्जा देने के लिए 24 अप्रैल, 1993 से 73वाँ संवैधानिक संशोधन लागू किया गया। संविधान के 73वें संशोधन से पूर्व स्थानीय संस्थाओं की शक्ति बहुत कम थी। वह स्थानीय संस्थाओं की देखभाल करने में असमर्थ थी और उसे वित्तीय मदद के लिए केंद्र पर बहुत निर्भर रहना पड़ता था।

परंतु 73वें संशोधन के बाद स्थिति बहुत बदल गई है। अब स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में मतदाता भाग लेते हैं। सीटों के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं। महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण दिया गया है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए भी विशेष आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान किए गए हैं। अतः 73वें संशोधन के पहले और बाद की स्थिति में बहुत अन्तर आया है।

प्रश्न 5.
नीचे लिखी बातचीत पढ़ें। इस बातचीत में जो मुद्दे उठाए गए हैं उसके बारे में अपना मत दो सौ शब्दों में लिखें।
आलोक – हमारे संविधान में स्त्री और पुरुष को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्थानीय निकायों में स्त्रियों को आरक्षण देने से सत्ता में उनकी बराबर की भागीदारी सुनिश्चित हुई है।
नेहा – लेकिन, महिलाओं का सिर्फ सत्ता के पद पर काबिज होना ही काफी नहीं है। यह भी जरूरी है कि स्थानीय निकायों के बजट में महिलाओं के लिए अलग से प्रावधान हो।
जयेश – मुझे आरक्षण का यह गोरखधंधा पसंद नहीं। स्थानीय निकाय को चाहिए कि वह गाँव के सभी लोगों का ख्याल रखे और ऐसा करने पर महिलाओं और उनके हितों की देखभाल अपने आप हो जाएगी।
उत्तर:
उपर्युक्त बातचीत का मुख्य विषय महिलाओं के समानाधिकार से संबंधित है। संविधान में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समानता का अधिकार दिया गया है। इसके के अध्याय चार में उल्लेखित नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में भी महिलाओं के हितों को संरक्षित करने का प्रयास किया गया हैं। अनुच्छेद 39 राज्य को अपनी नीतियाँ इस प्रकार से बनाने का निर्देश देता है कि स्त्री और पुरुष दोनों को समान रूप से आजीविका का साधन जैसे समान कार्य के लिए समान वेतन आदि की व्यवस्था सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

अनुच्छेद 40 में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिए कदम उठाने का प्रयास करे। इसी प्रतिबद्धतता के अधीन संसद ने पंचायती बन्धी 73वाँ और 74वाँ अधिनियम पारित किया है और महिलाओं के लिए पंचायत और नगरपालिकाओं में एक-तिहाई आरक्षण निश्चित किया है। उपर्युक्त प्रश्न में आलोक के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों को संविधान में बराबर का दर्जा दिया गया है।

स्थानीय निकायों में आरक्षण देकर महिलाओं को सत्ता में पुरुषों के बराबर लाने का प्रयास किया गया है। नेहा के अनुसार बजट में भी स्त्रियों के लिए विशेष प्रावधान करना चाहिए और जयेश का मत है कि स्थानीय निकायों को सभी के हित के लिए कार्य करना चाहिए अर्थात् पंचायतें सभी ग्रामवासियों के कल्याण के कार्यक्रम बनाएँ तो स्वतः ही स्त्रियों का कल्याण होगा।

यहाँ यह स्पष्ट है कि उपर्युक्त तीनों विचारों के संदर्भ में यह कहना महत्त्वपूर्ण होगा कि भारत के मतदाताओं में लगभग आधा भाग महिलाओं का है और उस अनुपात में राजनीति में इनका प्रतिनिधित्व नहीं है। संविधान में समानता के सिद्धांत को स्वीकार करने के लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं के लिए आरक्षण आवश्यक है।

प्रश्न 6.
73वें संशोधन के प्रावधानों को पढ़ें। यह संशोधन निम्नलिखित सरोकारों में से किससे ताल्लुक रखता है?
(क) पद से हटा दिये जाने का भय जन-प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
(ख) भूस्वामी सामंत और ताकतवर जातियों का स्थानीय निकायों में दबदबा रहता है।
(ग) ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता बहुत ज़्यादा है। निरक्षर लोग गाँव के विकास के बारे में फैसला नहीं ले सकते हैं।
(घ) प्रभावकारी साबित होने के लिए ग्राम पंचायतों के पास गाँव की विकास योजना बनाने की शक्ति और संसाधन का होना जरूरी है।
उत्तर:
(क) सामान्यत ग्राम पंचायत का कार्यकाल विभिन्न राज्यों में 5 वर्षों का होता है परंतु राज्य सरकार यदि ग्राम पंचायत को निश्चित अवधि से पूर्व भंग करती है तो उसे 6 महीने के भीतर दोबारा चुनाव करवाना आवश्यक है। अतः जन-प्रतिनिधियों में भय की स्थिति बनी रहती है जिसके कारण जनप्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायित्व की स्थापना के आधार पर कार्य करने का प्रयास करते हैं।

(ख) भारतीय संविधान के पंचायती राज सम्बन्धी 73वें संशोधन द्वारा महिलाओं, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया गया है। जहाँ महिलाओं को प्रत्येक वर्ग में एक-तिहाई आरक्षण सुनिश्चित किया गया है, वहाँ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान किया गया है। इस प्रकार इस संशोधन में उन ताकतवर वर्गों को एक तरह से झटका लगा है जिन्होंने अभी तक सत्ता में अपना दबदबा बनाया हुआ था।

(ग) 73वें संशोधन के माध्यम से पंचायत को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं। इन विषयों में तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा का भी उल्लेख किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि गाँव के लोग बहुत निरक्षर होते हैं। उन्हें प्रशिक्षण द्वारा गाँव के उत्थान के विषय में योजना बनाने एवं निर्णय लेने में सक्षम बनाया जा सके और उनकी निरक्षरता कोई बाधा न बने।

(घ) भारतीय संविधान के 73वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार हर वर्ष एक वित्त आयोग गठित करने का प्रावधान किया गया है जो पंचायत के वित्त का पुनरावलोकन करेगा और राज्य सरकारों से पंचायत अनुदान के लिए सिफारिश करेगी। अतः गाँव की विकास योजनाओं के लिए संसाधन के रूप में सरकार आर्थिक सहायता प्रदान करेगी।

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प्रश्न 7.
नीचे स्थानीय शासन के पक्ष में कछ तर्क दिए गए हैं। इन तर्कों को आप अपनी पसंद से वरीयता क्रम में सजायें और बताएँ कि किसी एक तर्क की अपेक्षा दूसरे को आपने ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्यों माना है। आपके जानते वेगवसल गाँव की ग्राम पंचायत का फैसला निम्नलिखित कारणों में से किस पर और कैसे आधारित था?
(क) सरकार स्थानीय समुदाय को शामिल कर अपनी परियोजना कम लागत में पूरी कर सकती है।
(ख) स्थानीय जनता द्वारा बनायी गई विकास योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बनायी गई विकास योजना से ज़्यादा स्वीकृत होती है।
(ग) लोग अपने इलाके की ज़रूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं। सामुदायिक भागीदारी द्वारा उन्हें विचार-विमर्श करके अपने जीवन के बारे में फैसला लेना चाहिए।
(घ) आम जनता के लिए अपने प्रदेश अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जन-प्रतिनिधियों से संपर्क कर पाना मुश्किल होता है।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन के पक्ष में जो तर्क दिए गए हैं, उनका वरीयत-क्रम इस प्रकार है (क) प्रश्न के चौथे (घ) तर्क को प्रथम वरीयता दी जाएगी, क्योंकि आम जनता का राष्ट्रीय विधायिका के जनप्रतिनिधियों से संपर्क कर पाना कठिन होता है और स्थानीय शासन के प्रतिनिधि हर समय अपने क्षेत्र में उपलब्ध रहते हैं इसलिए इनसे संपर्क तुरंत हो जाता है और समस्या का समाधान भी जल्दी हो जाता है, (ख) प्रश्न के तीसरे तर्क (ग) को दूसरे वरीयता-क्रम में रखा जा सकता है, क्योंकि लोग भी स्थानीय होते हैं और समस्याएँ भी स्थानीय होती हैं,

इसलिए निर्णय लेने में कोई मुश्किल नहीं होती, (ग) प्रश्न के दूसरे तर्क (ख) को तीसरी वरीयता में रखा गया है, क्योंकि पंचायती राज में स्थानीय स्तर पर शक्तियों को विकेंद्रित किया गया है। इसलिए उन स्थानीय लोगों की विकास योजनाओं को भी अधिक महत्त्व दिया जाता है, (घ) प्रश्न के प्रथम तर्क (क) को अंतिम वरीयता में रखा गया है। वेगवसल गाँव की ग्राम पंचायत का फैसला उस तर्क पर आधारित था कि स्थानीय जनता द्वारा बनाई गई विकास योजना सरकारी अधिकारी द्वारा बनाई गई विकास योजना से ज्यादा स्वीकृत ही नहीं होती बल्कि स्थानीय लोगों की सहायता से कम लागत में भी पूरा कर सकती है।

प्रश्न 8.
आपके अनुसार निम्नलिखित में कौन-सा विकेंद्रीकरण का साधन है? शेष को विकेंद्रीकरण के साधन के रूप में आप पर्याप्त विकल्प क्यों नहीं मानते?
(क) ग्राम पंचायत का चुनाव कराना।
(ख) गाँव के निवासी खुद तय करें कि कौन-सी नीति और योजना गाँव के लिए उपयोगी है।
(ग) ग्राम सभा की बैठक बुलाने की ताकत।
(घ) प्रदेश सरकार ने ग्रामीण विकास की एक योजना चला रखी है। खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) ग्राम पंचायत के सामने एक रिपोर्ट पेश करता है कि इस योजना में कहाँ तक प्रगति हुई है।
उत्तर:
ग्राम पंचायत स्थानीय स्वशासन का सबसे निम्न स्तर है। प्रश्न में दिए गए कथनों में कथन (ख) विकेंद्रीकरण का साधन है। यद्यपि ग्राम सभा की बैठक बुलाने का अधिकार भी ग्राम पंचायत के कार्यों का हिस्सा है, परन्तु यह विकेंद्रीकरण का साधन होने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह बैठक बुलाने की शक्ति उच्च अधिकारियों को भी होती है।

वास्तव में, जब तक गाँव के निवासी ही इस शक्ति का प्रयोग न करें, तब तक यह विकेंद्रीकरण का साधन नहीं हो सकता। आम नागरिक की समस्या और उसकी दैनिक जीवन की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए ग्रामीण लोग ग्राम पंचायत के द्वारा अपनी समस्याओं का समाधान करें। यही सच्चा लोकतंत्र है। लोकतंत्र में सत्ता का वास्तविक विकेंद्रीकरण स्थानीय लोगों की सत्ता में भागीदारी से ही हो सकता है।

यहाँ यह भी स्पष्ट है कि एक ग्राम पंचायत को खंड विकास पदाधिकारी द्वारा इस आशय की रिपोर्ट प्राप्त होना कि प्रदेश की सरकार द्वारा चालू अमुक परियोजना की प्रगति कहाँ तक हुई है, यह विकेंद्रीकरण का साधन नहीं है क्योंकि अमुक परियोजना ग्राम सभा या ग्राम पंचायत द्वारा नहीं चलायी जा रही। अतः विकेंद्रीकरण का साधन वास्तव में (ख) भाग ही है जिसमें गाँव के निवासी स्वयं ही यह निश्चित करते हैं कि कौन-सी योजना अथवा नीति गाँव के विकास के लिए उपयोगी होगी।

प्रश्न 9.
दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र प्राथमिक शिक्षा के निर्णय लेने में विकेंद्रीकरण की भूमिका का अध्ययन करना चाहता था। उसने गाँववासियों से कुछ सवाल पूछे। ये सवाल नीचे लिखे हैं। यदि गाँववासियों में आप शामिल होते तो निम्नलिखित प्रश्नों के क्या उत्तर देते? गाँव का हर बालक/बालिका विद्यालय जाए, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कौन-से कदम उठाए जाने चाहिएँ इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए ग्राम सभा की बैठक बुलाई जानी है।

(क) बैठक के लिए उचित दिन कौन-सा होगा, इसका फैसला आप कैसे करेंगे? सोचिए कि आपके चुने हुए दिन में कौन बैठक में आ सकता है और कौन नहीं?
(अ) खंड विकास अधिकारी अथवा कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन।
(ब) गाँव का बाज़ार जिस दिन लगता है।
(स) रविवार
(द) नाग पंचमी/संक्रांति

(ख) बैठक के लिए उचित स्थान क्या होगा? कारण भी बताएँ।
(अ) जिला कलेक्टर के परिपत्र में बताई गई जगह।
(ब) गाँव का कोई धार्मिक स्थान।
(स) दलित मोहल्ला।
(द) ऊँची जाति के लोगों का टोला।
(ध) गाँव का स्कूल।
(ग) ग्राम सभा की बैठक में पहले जिला-समाहर्ता (कलेक्टर) द्वारा भेजा गया परिपत्र पढ़ा गया। परिपत्र में बताया गया था कि शैक्षिक रैली को आयोजित करने के लिए क्या कंदम उठाये जाएँ और रैली किस रास्ते होकर गुजरे। बैठक में उन बच्चों के बारे में चर्चा नहीं हुई जो कभी स्कूल नहीं आते।

बैठक में बालिकाओं की शिक्षा के बारे में, विद्यालय भवन की दशा के बारे में और विद्यालय के खुलने-बंद होने के समय के बारे में भी चर्चा नहीं हुई। बैठक रविवार के दिन हुई इसलिए कोई महिला शिक्षक इस बैठक में नहीं आ सकी। लोगों की भागीदारी के लिहाज से इस को आप अच्छा कहेंगे या बुरा? कारण भी बताएँ। (घ) अपनी कक्षा की कल्पना ग्राम सभा के रूप में करें। जिस मुद्दे पर बैठक में चर्चा होनी थी उस पर कक्षा में बातचीत करें और लक्ष्य को पूरा करने के लिए कुछ उपाय सुझायें।
उत्तर:
(क) ग्राम सभा की बैठक के लिए उचित दिन कौन-सा होगा, इसका निर्णय करने से पहले यह सोचना होगा कि अधिक-से-अधिक लोग किस दिन उपस्थित हो सकते हैं। प्रश्न में दिए गए दिन निम्नलिखित हैं (अ) खंड विकास पदाधिकारी अथवा कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन (ब) जिस दिन गाँव का बाज़ार लगता है (स) रविवार (द) नागपंचमी/संक्रांति इन सब दिनों में खंड विकास पदाधिकारी
अथवा
कलेक्टर द्वारा निश्चित किया गया दिन उपयुक्त रहेगा। मैं यहाँ यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जिस दिन गाँव का बाज़ार लगता है, लोग अपनी खरीददारी में व्यस्त रहते हैं। इसके अतिरिक्त रविवार के दिन सम्बन्धित कर्मचारी एवं महिला शिक्षक उपस्थित नहीं हो पाएंगे। नागपंचमी अथवा संक्रांति तो त्योहार का दिन है जिसमें लोग व्यस्त रहते हैं।

(ख) ग्राम सभा की बैठक के लिए कौन-सा स्थान उचित होगा, इसके लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि स्थान का चुनाव करते समय यह देखा जाए कि अधिक-से-अधिक ग्रामीण सभा में उपस्थित हो सकें। प्रश्न में दिए गए स्थान निम्नलिखित हैं

(अ) जिला कलेक्टर के परिपत्र में बताई गई जगह पर बैठक करने अथवा (ब) गाँव का कोई धार्मिक स्थान या (स) दलित मोहल्ला या (द) ऊँची जाति के लोगों का टोला अथवा (ध) गाँव का स्कूल प्रश्न में दिए गए उपर्युक्त सभी स्थानों में से सबसे उपयुक्त स्थान गाँव का स्कूल है जिसे सभी वर्गों, धर्मों एवं जातियों के लोगों द्वारा समान आदर भाव के साथ निष्पक्ष स्थान के रूप में देखा जाता है।

(ग) ग्राम सभा बैठक में पहले जिला कलेक्टर द्वारा भेजा गया परिपत्र पढ़ा गया। परिपत्र में बताया गया था कि शैक्षिक रैली को आयोजित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएँ और रैली किस रास्ते से होकर गुजरे, बैठक में उन बच्चों के विषय में चर्चा नहीं हुई जो कभी विद्यालय नहीं आते। बैठक में बालिकाओं की शिक्षा के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। बैठक रविवार के दिन हुई इसलिए कोई महिला शिक्षक उस बैठक में नहीं आई।

अतः इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि जनता की भागीदारी के लिहाज से बैठक की इस कार्यवाही में कोई कार्य जनता के हित में नहीं किया गया। जिला कलेक्टर द्वारा भेजे गए पत्र में मुख्य समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया है, क्योंकि स्थानीय समस्याएँ तो स्थानीय व्यक्तियों की व्यापक भागीदारी से ही हल हो सकती है।

(घ) अपनी कक्षा की ग्राम सभा के रूप में कल्पना करते हुए सर्वप्रथम हम एक मीटिंग बुलाने की घोषणा करेंगे। बैठक का मुख्य विषय इस प्रकार होगा-

  • उन बच्चों की समस्या पर चर्चा की जाए जो कभी स्कूल नहीं आते,
  • गरीबी उन्मूलन के उपायों पर चर्चा,
  • ग्रामीण विकास हेतु शिक्षा के महत्त्व पर चर्चा,
  • ग्राम प्रधान-द्वारा समापन-भाषण।

इस प्रकार ग्राम सभा द्वारा सर्वसम्मति से प्रत्येक बालक/बालिका को माता-पिता द्वारा विद्यालय में भेजने की अनिवार्यता निश्चित करने के साथ-साथ एक निगरानी समिति भी बनाई जाए जो गाँव में प्रत्येक घर के स्कूल जाने योग्य बच्चों एवं उनके माता-पिता को बराबर प्रेरित करने का कार्य करें।

स्थानीय शासन HBSE 11th Class Political Science Notes

→ आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है और आज प्रजातन्त्र को सर्वोत्तम शासन माना जाता है। यह जन-प्रभुसत्ता पर आधारित होता है। जन-प्रतिनिधि लोक कल्याण की भावना से शासन चलाते हैं।

→ प्रजातन्त्र एक कल्याणकारी राज्य होता है। लोक कल्याण के सभी कार्य अकेली केन्द्रीय सरकार नहीं कर सकती। इसलिए सरकार के कार्य को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए अत्यावश्यक है कि प्रजातान्त्रिक संस्थाओं का निचले स्तर तक प्रसार किया जाए।

→ इससे हमारा अभिप्राय है कि गाँवों एवं शहरों में जन-निर्वाचित संस्थाएँ होनी चाहिएँ। इन संस्थाओं को स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

→ भारत में भी जनता को सक्रिय रूप से भागीदार बनाने के लिए शक्तियों के विकेन्द्रीयकरण के सिद्धान्त को अपनाया गया है। आज ग्रामों व शहरों में स्थानीय संस्थाओं की स्थापना की गई है।

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