Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Important Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
भाग-I : सही विकल्प का चयन करें
1. पृथ्वी पर कितने परिमंडल हैं?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(C) 4
2. तटीय मरुस्थलों में प्रायः तापमान रहता है
(A) 21° – 38°C
(B) 2° – 25°C
(C) 15° – 35°C
(D) 29° – 37°C
उत्तर:
(C) 15° – 35°C
3. निम्नलिखित में से उच्च प्रदेशीय जीवोम कहाँ पाया जाता है?
(A) एंडीज
(B) स्टैपी
(C) प्रवालभित्ति
(D) रूब-एल-खाली
उत्तर:
(A) एंडीज
4. वायुमंडल में जीवमंडल का विस्तार कितनी ऊँचाई तक है?
(A) 2000 मी०
(B) 3000 मी०
(C) 4000 मी०
(D) 5000 मी०
उत्तर:
(D) 5000 मी०
5. वनस्पति जगत और प्राणी जगत किसके वर्ग हैं?
(A) स्थलमंडल
(B) वायुमंडल
(C) जलमंडल
(D) जैवमंडल
उत्तर:
(D) जैवमंडल
6. कौन-सी गैस ‘हरित गृह प्रभाव’ उत्पन्न करती है?
(A) कार्बन-डाइऑक्साइड
(B) ओजोन
(C) हाइड्रोजन
(D) क्लोरो-फ्लोरो कार्बन
उत्तर:
(A) कार्बन-डाइऑक्साइड
7. Ecology’ शब्द यूनानी शब्दों Oikos तथा logos से मिलकर बना है। इनमें ‘आइकोस’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) जीव के प्रजनन का स्थान
(B) वनस्पति
(C) पर्यावरण
(D) रहने का स्थान
उत्तर:
(D) रहने का स्थान
8. ‘Ecology’ शब्द जर्मनी भाषा के किस शब्द से बना है?
(A) Oekology
(B) Oekologie
(C) Ekology
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) Oekologie
9. Ecosystem’ (पारिस्थितिक तंत्र) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया था?
(A) ए०जी०टांसली
(B) लिंडमैन
(C) मोंकहाऊस
(D) सेंट हिलेयर आइसोडॉट ज्योफ्री
उत्तर:
(A) ए०जी०टांसली
10. जैवमंडल की सर्वप्रथम संकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) ए०जी०टांसली
(B) लिंडमैन
(C) मोंकहाऊस
(D) एडवर्ड सुवेस
उत्तर:
(D) एडवर्ड सुवेस
11. निम्नलिखित में से अपघटक वर्ग में किसको रखा जा सकता है?
(A) पेड़-पौधे
(B) बकरी
(C) बैक्टीरिया
(D) सौर विकिरण
उत्तर:
(C) बैक्टीरिया
12. निम्नलिखित में से जैवमंडल का सदस्य नहीं है-
(A) शैवाल
(B) कवक
(C) जल
(D) पादप
उत्तर:
(C) जल
13. निम्नलिखित में से कौन-सा उदाहरण स्वपोषित घटक का है?
(A) घास
(B) मनुष्य
(C) हिरण
(D) गिद्ध
उत्तर:
(A) घास
14. पारिस्थितिक तंत्र में उपभोक्ता उन्हें कहा जाता है जो-
(A) अपना आहार स्वयं बनाते हैं।
(B) स्वपोषित प्राथमिक उत्पादक (पौधों) से भोजन प्राप्त करते हैं
(C) मृत जंतुओं और पौधों को गलाते-सड़ाते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) स्वपोषित प्राथमिक उत्पादक (पौधों) से भोजन प्राप्त करते हैं
15. निम्नलिखित में से किसको सर्वाहारी वर्ग में रखा जा सकता है?
(A) कीट, चूहे
(B) गाय, भैंस
(C) मनुष्य
(D) उल्लू, शेर, चीता
उत्तर:
(C) मनुष्य
16. जमीन पर कोई भी शाकाहारी, मांसाहारी और सर्वाहारी नहीं बचेगा, यदि-
(A) सारे पौधे हटा दिए जाएँ
(B) सारे खरगोश और हिरण हटा दिए जाएँ
(C) सारे शेर हटा दिए जाएँ
(D) सारे सूक्ष्म जीव व जीवाणु हटा दिए जाएँ
उत्तर:
(A) सारे पौधे हटा दिए जाएँ
17. निम्नलिखित में से मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा नहीं है-
(A) जनजातीय पारिस्थितिक तंत्र
(B) वनीय पारिस्थितिक तंत्र
(C) कृषि पारिस्थितिक तंत्र
(D) ग्रामीण पारिस्थितिक तंत्र
उत्तर:
(B) वनीय पारिस्थितिक तंत्र
18. खाद्य शृंखला के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) आद्य श्रृंखला में एक प्राणी दूसरे को खाकर ऊर्जा का स्थानान्तरण करता है
(B) इसमें केवल 50% ऊर्जा अगले पोषण तल को प्राप्त होती है
(C) इसके तीसरे स्तर पर मांसाहारी जानवर आ जाते हैं
(D) अधिकतर खाद्य शृंखलाएँ चार या पाँच स्तरों तक ही सीमित हो जाती हैं
उत्तर:
(B) इसमें केवल 50% ऊर्जा अगले पोषण तल को प्राप्त होती है
19. गिद्ध इसलिए समाप्त हो चुके हैं क्योंकि-
(A) वर्तमान जलवायु उनके अनुकूल नहीं रही
(B) भोजन व पानी की कमी ने उनका सफाया कर दिया
(C) पोषण तल के उच्चतम स्तर पर होने के कारण उनमें घातक रसायन एकत्रित हो गए
(D) गिद्ध को अन्य मांसाहारी जीव खा गए
उत्तर:
(C) पोषण तल के उच्चतम स्तर पर होने के कारण उनमें घातक रसायन एकत्रित हो गए
भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें-
प्रश्न 1.
खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण दें।
उत्तर:
घास।
प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सवाना।
प्रश्न 3.
शैलों में उपस्थित लोहांश से ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया होने पर क्या बनता है?
उत्तर:
आयरन ऑक्साइड।
प्रश्न 4.
वनस्पति जगत और प्राणी जगत किसके वर्ग हैं?
उत्तर:
जैवमंडल के।
प्रश्न 5.
कौन-सी गैस ‘हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करती है?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।
प्रश्न 6.
‘Ecosystem’ (पारिस्थितिक तंत्र) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया था?
उत्तर:
ए०जी० टांसली ने।
प्रश्न 7.
जैवमंडल की सर्वप्रथम संकल्पना किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
एडवर्ड सुवेस ने।
प्रश्न 8.
जैवमण्डल के दो वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
- वनस्पति जगत और
- प्राणी जगत।
प्रश्न 9.
होमोसेपियन्स (Homo Sapiens) क्या है?
उत्तर:
एक प्रजाति के रूप में आधुनिक मानव।
प्रश्न 10.
पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत क्या है?
उत्तर:
सूर्यातप।
प्रश्न 11.
पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) के घटकों के दो वर्ग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- जैव
- अजैव।
प्रश्न 12.
सभी प्राकृतिक चक्रों को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
सौर विकिरण।
प्रश्न 13.
एक प्रमुख पारितंत्र का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वन एक प्रमुख पारितंत्र है।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पृथ्वी के परिमण्डलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- स्थलमण्डल
- वायुमण्डल
- जलमण्डल और
- जैवमण्डल।
प्रश्न 2.
उपभोक्ताओं के तीन मुख्य वर्ग बताइए। अथवा जीवों के मुख्य वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
- शाकाहारी (Herbivores)
- मांसाहारी (Carnivores)
- सर्वाहारी (Omnivores)।
प्रश्न 3.
अपघटक (Decomposers) क्या होते हैं?
उत्तर:
अपघटक वे सूक्ष्म जीव व जीवाणु होते हैं जो खाद्य श्रृंखला के सभी स्तरों से गले-सड़े जैव पदार्थ को अपना भोजन बनाते हैं।
प्रश्न 4.
पारिस्थितिक तन्त्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र या प्रदेश के भौतिक वातावरण तथा जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों के व्यवस्थित अध्ययन को पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं। यह एक जटिल तन्त्र है, जिसमें दोनों के आपसी सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन सम्मिलित है। पारिस्थितिक तन्त्र में जैविक तथा अजैविक जगत की पारस्परिक प्रक्रियाओं तथा सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाता है।
प्रश्न 5.
पारितन्त्र क्या है?
उत्तर:
पारितन्त्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के एकीकरण का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच की स्वतन्त्र इकाई को पारितन्त्र (Ecosystem) कहा जाता है।
प्रश्न 6.
जैवमण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर:
जैवमण्डल से अभिप्राय पृथ्वी के उस अंग से है, जहाँ जीवन सम्भव है। सभी जीवित प्राणी जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे इसी मण्डल में पनपते हैं।
प्रश्न 7.
पारितंत्रीय विविधता क्या है?
उत्तर:
पारितंत्रीय विविधता पारितंत्र के प्रकारों की व्यापक भिन्नता, पर्यावासों की विविधता और प्रत्येक पारितंत्र में घटित हो. रही पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं से नजर आती है। पारितंत्रीय सीमाओं का निर्धारण न केवल जटिल है, बल्कि कठिन भी है।
प्रश्न 8.
शाकाहारी और माँसाहारी में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शाकाहारी और माँसाहारी में निम्नलिखित अन्तर हैं-
शाकाहारी | माँसाहारी |
1. शाकाहारी जीव अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं। | 1. माँसाहारी जीव अपना भोजन शाकाहारी जीवों के माँस से प्राप्त करते हैं। |
2. ये पहले स्तर पर प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। | 2. ये गौण उपभोक्ता कहलाते हैं। |
3. कीट, चूहे, बकरियाँ, गाय, भैंस आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं। | 3. शेर, चीता, उल्लू, गिद्ध आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं। |
प्रश्न 9.
खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में क्या अन्तर है?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में निम्नलिखित अन्तर हैं-
खाद्य शृंखला | खाद्य जाल |
1. किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक स्रोत से दूसरे स्रोत में ऊर्जा स्थानान्तरण की प्रक्रिया को खाद्य शृंखला कहते हैं। | 1. जब बहुत-सी खाद्य शृंखलाएँ एक-दूसरे से घुल-मिलकर एक जटिल स्प धारण करती हैं, तो उसे खाद्य जाल कहते हैं। |
2. खाद्य शृंखला ऊर्जा का प्रवाह चक्र है। | 2. खाद्य जाल अनेक स्रोतों से ऊर्जा के अन्तरण की एक जटिल प्रक्रिया है। |
लातुरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जैवमण्डल का पर्यावरण में क्या स्थान है?
उत्तर:
जैवमण्डल प्राकृतिक पर्यावरण का एक विशिष्ट अंग है। इस मण्डल में सभी जीवित प्राणियों, मानव तथा जीव जन्तुओं की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। जैवमण्डल के कारण भू-तल पर जीवन है। पर्यावरण के अन्य सभी अंग जैवमण्डल के प्राणियों को उत्पन्न करने तथा उनके क्रियाशील रहने में सहायक हैं। जैवमण्डल वायुमण्डल की ऊपरी परतों से महासागरों की गहराइयों तक विस्तृत रूप से फैला हुआ है। मनुष्य इस जैवमण्डल में पर्यावरण की समग्रता लाने में क्रियाशील है। मनुष्य भू-तल की सम्पदाओं का बुद्धिमत्ता से उपयोग करके इसका संरक्षण कर सकता है, इसलिए जैवमण्डल को प्राकृतिक पर्यावरण का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा विशिष्ट मण्डल कहा जाता है।
प्रश्न 2.
उत्पादक तथा उपभोक्ता में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्पादक तथा उपभोक्ता में निम्नलिखित अन्तर हैं-
उत्पादक | उपभोक्ता |
1. उत्पादक सौर ऊर्जा का प्रयोग करके अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। | 1. उपभोक्ता अपना भोजन स्वयं उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं। ये अन्य जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। |
2. ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट उत्पन्न करते हैं तथा खाद्य शृंखला के दूसरे उपभोक्ताओं को भोजन प्रदान करते हैं। | 2. उपभोक्ता प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाने में अमसर्थ हैं, इन्हें शाकाहारी, माँसाहारी तथा सर्वाहारी इन वर्गों में बाँटा जाता है । |
3. पेड़-पौधे, नीली-हरी शैवाल तथा कुछ जीवाणु इनके प्रमुख उदाहरण हैं। | 3. भेड़, बकरियाँ, उल्लू, मनुष्य आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं। |
प्रश्न 3.
जैवमण्डल हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैवमण्डल से अभिप्राय पृथ्वी के उस अंग से है, जहाँ सभी प्रकार का जीवन पाया जाता है। स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल जहाँ मिलते हैं, वहीं जैवमण्डल स्थित है। इस मण्डल में सभी प्रकार का जीवन सम्भव है। सभी जीवित प्राणी जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे इसी मण्डल में पनपते हैं, इसलिए जैवमण्डल हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 4.
जैवमण्डल का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैवमण्डल क्षैतिज रूप से सारे भूमण्डल पर और लम्बवत् रूप से सागरों की गहराई से वायुमण्डल की ऊँचाई तक, जहाँ-जहाँ जीवन सम्भव है, तक फैला हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जैवमण्डल का विस्तार महासागरों में 9,000 मीटर की गहराई तक, स्थल के नीचे 300 मीटर की गहराई तक तथा वायुमण्डल में 5,000 मीटर की ऊँचाई तक है। जैवमण्डल की परत पतली किन्तु अत्यन्त जटिल है और किसी भी प्रकार का जीवन इसी परत में सम्भव है।
प्रश्न 5.
ऊर्जा प्रवाह में 10 प्रतिशत ऊर्जा स्थानान्तरण के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवविज्ञानी किन्डलमान (Kindlemann) ने सन् 1942 में एक सामान्यीकरण (Generalisation) प्रस्तुत किया जिसके अनुसार खाद्य श्रृंखला में एक पोषण तल के निकटतम उच्च पोषण तल (Trophic Level) में जब ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है तो ऊर्जा का अधिकांश भाग (90%) विभिन्न शारीरिक क्रियाओं में ताप के रूप में नष्ट हो जाता है। केवल 10 प्रतिशत ऊर्जा अगले पोषण तल को प्राप्त होती है। स्पष्ट है कि जैसे-जैसे हम खाद्य के प्राथमिक स्रोत से दूर होते जाते हैं वैसे-वैसे जन्तुओं द्वारा प्राप्त ऊर्जा की मात्रा न्यून होती चली जाती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि ज्यों-ज्यों हम खाद्य श्रृंखला में ऊपर की ओर जाते हैं तो जन्तुओं की संख्या और उनकी विविधता कम होती जाती है। उदाहरणतः एक जंगल में हज़ारों पेड़-पौधे हो सकते हैं जिनमें सौ हिरण हो सकते हैं, दो चार लक्कड़बग्घे परन्तु शेर एक ही रह सकता है।
प्रश्न 6.
पारिस्थितिक सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र की प्राकृतिक अवस्था में विविध चक्रों और ऊर्जा प्रवाहों में पूरा सामंजस्य होता है, जिससे एक गतिशील सन्तुलन स्थापित हो जाता है। इसे पारिस्थितिक सन्तुलन कहते हैं। सन्तुलन की इस दशा में विभिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं (जीव-जन्तुओं) की सापेक्षिक संख्या इस प्रकार निश्चित होती है कि किसी भी जीव के लिए खाद्य पदार्थ की कमी नहीं है।
छोटे और कमज़ोर जीवों अर्थात् प्राथमिक उपभोक्ताओं की कम जरूरत के कारण उनकी संख्या अधिक तथा उनकी प्रजनन दर भी तीव्र होती है। बड़े अर्थात् द्वितीय तथा तृतीय स्तर के उपभोक्ता संख्या में कम होते हैं और उनकी प्रजनन दर भी कम होती है। जब कभी किसी पारिस्थितिक तन्त्र में विभिन्न प्रकार के प्राणियों की सापेक्ष संख्या में अन्तर आ जाता है तो विविध चक्रों और ऊर्जा प्रवाहों का सामंजस्य भंग हो जाता है, परिणामस्वरूप पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तन्त्र पर मनुष्य के प्रभाव की विवेचना करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र एक स्वचालित प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य अथवा किसी भी प्राणी की भूमिका गड़बड़ाने पर इस जटिल किन्तु संवेदनशील तन्त्र की प्रक्रिया में बाधा आ जाती है जिसके कुप्रभाव और दुष्परिणाम समस्त जीव-जगत् को भुगतने पड़ते हैं। इस जैवमण्डल के असंख्य जीवों में से एक होते हुए भी अपनी बुद्धि विज्ञान तथा तकनीकी विकास के सहारे मनुष्य पारिस्थितिक तन्त्र को अधिकाधिक प्रभावित करने की क्षमता धारण करता जा रहा है। मनुष्य द्वारा किए गए जानवरों के वर्णात्मक (Selective) शिकार से वह खाद्य शृंखला भंग हो गई है जिसमें वे जानवर प्रतियोगिता करते थे। एक खाद्य श्रृंखला भंग होने पर खाद्य जाल में कार्यरत अनेक खाद्य शृंखलाएँ बाधित होती हैं।
मनुष्य ने अपने आर्थिक लाभ और उपयोग के लिए अनेक पौधों और पशुओं को पालतू बना लिया है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक चयन का स्थान मानवीय चयन ने ले लिया है। हमारी फसलें और गाय, भैंस, भेड़-बकरी तथा मुर्गी जैसे पालतू पशु-पक्षी इसी पर्यावरणीय नियन्त्रण का परिणाम हैं। इस प्रक्रिया में मानव ने पौधों और प्राणियों की आनुवंशिकी (Genetics) में भी परिवर्तन कर दिए हैं ताकि नई वांछनीय विशेषताएँ आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाई जा सकें। कई बार मनुष्य द्वारा जानबूझ कर अथवा आकस्मिक ढंग से अनेक पौधों और प्राणियों को उनके मूल स्थान से हटा कर नए क्षेत्रों में बसाया गया है। इस पराए वातावरण में कई बार पौधों और प्राणियों को प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता। परिणामस्वरूप उनकी संख्या अन्य जीवों से अधिक हो जाती है और वे पारिस्थितिक तन्त्र को भंग कर देते हैं।
प्रश्न 2.
पारिस्थितिक तन्त्र की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न अंगों में पदार्थ चक्रण और ऊर्जा प्रवाह को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र की अवधारणा-किसी क्षेत्र के भौतिक पर्यावरण तथा उसमें रहने वाले जीवों के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं की जटिल व्यवस्था को पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) कहते हैं। पारिस्थितिक तन्त्र छोटा या बड़ा किसी भी आकार का हो सकता है। उदाहरणतः गाँव का छोटा-सा तालाब, अमेज़न का वर्षा-वन (Rain forest) जो कई देशों पर विस्तृत है, एक महासागर अथवा सारा संसार एक पारिस्थितिक तन्त्र हो सकता है। पारिस्थितिक तन्त्र के निर्माण, पुनरुत्थान और उसके जीवन-निर्वाह के लिए ऊर्जा का प्रवाह तथा पदार्थ का चक्रण अनिवार्य है।
पारिस्थितिक तन्त्र छोटा हो या बड़ा, उसकी मुख्य विशेषता होती है उसके विभिन्न अंगों में ऊर्जा का प्रवाह और पदार्थ का चक्रण (Circulation)। ऊर्जा तथा पदार्थ का उपयोग पारिस्थितिक तन्त्र के निर्माण, पुनरुत्थान और उसके जीवन निर्वाह के लिए किया जाता है।
1. पदार्थ चक्रण-सभी जीवों का निर्माण मुख्यतः तीन तत्त्वों से मिलकर हुआ है। ये तत्त्व हैं-(1) कार्बन, (2) हाइड्रोजन तथा (3) ऑक्सीजन। थोड़ी मात्रा में अन्य तत्त्वों; जैसे नाइट्रोजन, लोहा, फॉस्फोरस और मैंगनीज़ की भी आवश्यकता पड़ती है। इन सभी तत्त्वों को पोषक कहते हैं। जैवमण्डल में ये तत्त्व पौधों के द्वारा पहुँचते हैं।
पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न अंगों के बीच पदार्थ चक्रीय ढंग से घूमते हैं। इन पदार्थों में तत्त्व (Elements) और यौ (Compounds) दोनों होते हैं। पदार्थ चक्रण के मार्ग स्पष्ट एवं सुसंगत होते हैं। उदाहरणतः कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और जल वायुमण्डल, स्थलमण्डल, जलमण्डल और जैवमण्डल के बीच एक प्राकृतिक व्यवस्था के तहत स्थानान्तरित होते रहते हैं। कुछ पदार्थों का चक्रण थोड़े समय में ही पूरा हो जाता है जबकि अन्य कुछ पदार्थ किसी एक रूप में लम्बे समय तक संचित पड़े रहते हैं और उनका चक्रण हज़ारों, लाखों अथवा करोड़ों वर्षों में पूरा होता है। परन्तु ये पदार्थ कभी भी पृथ्वी के बाहर नहीं जा पाते।
2. ऊर्जा प्रवाह जैसे किसी भी कार्य के लिए ऊर्जा (Energy) की आवश्यकता होती है वैसे ही पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न अंग ऊर्जा के संचरण द्वारा ही कार्य करते हैं।
पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवाह क्रमबद्ध स्तरों की एक श्रृंखला में होता है जिसे खाद्य शृंखला (Food Chain) कहते हैं। खाद्य शृंखला वास्तव में एक समुदाय में जीवित प्राणियों का ऐसा अनुक्रम (Sequence) होता है जिसमें एक प्राणी दूसरे प्राणी को खाकर खाद्य ऊर्जा का स्थानान्तरण करता है। सरल शब्दों में, खाद्य श्रृंखला “कौन किसको खाता है” (Who eats whom) की एंक सूची होती है। आइए! निम्नलिखित खाद्य शृंखला के माध्यम से ऊर्जा प्रवाह को क्रमिक ढंग से समझें-
(1) खाद्य श्रृंखला में पहले स्तर पर हरे पौधे आते हैं जिन्हें उत्पादक कहते हैं। ये पौधे प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन-डाइऑक्साइड तथा जल को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं जो पौधों में कार्बोहाइड्रेट के रूप में संचित हो जाती है। ऊर्जा रूपान्तरण की यह प्रक्रिया प्रकाश-संश्लेषण (Photo-synthesis) कहलाती है जिसके अन्तर्गत जीवनदायक जैव रासायनिक अणुओं की उत्पत्ति होती है। ऐसे पौधे जो प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं अकार्बनिक पदार्थों से तैयार करते हैं, स्वपोषित (Autotroph) कहलाते हैं।
(2) इन पौधों अथवा उत्पादकों को शाकाहारी (Herbivores) प्राणी खा जाते हैं। ये प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। कीट, चूहे, भेड़, बकरियाँ, गाय-भैंस आदि प्राथमिक उपभोक्ताओं के उदाहरण हैं।
(3) खाद्य शृंखला के तीसरे स्तर पर माँसाहारी (Carnivores) जानवर आते हैं जो प्राथमिक उपभोक्ताओं अर्थात् शाकाहारी जानवरों को खाकर जीवित रहते हैं। इन्हें गौण अथवा द्वितीयक उपभोक्ता कहते हैं। उल्ल, शेर, चीता आदि इसके उदाहरण हैं।
(4) कुछ जातियों को सर्वाहारी (Omnivores) कहते हैं क्योंकि वे शाकाहारी और माँसाहारी दोनों होते हैं। मनुष्य सर्वाहारी श्रेणी में आता है।
(5) कुछ सूक्ष्म जीव तथा जीवाणु जिन्हें अपघटक (Decomposers) कहते हैं, खाद्य श्रृंखला के सभी स्तरों से प्राप्त अवशेष या गले-सड़े जैव पदार्थ को अपना भोजना बना कर जीवित रहते हैं। ये अपघटक पारिस्थितिक तन्त्र में खनिज पोषकों के पुनर्चक्रण में सहायता करके खाद्य-शृंखला को पूरा करते हैं।
प्रश्न 3.
पारिस्थितिकी तथा पारिस्थितिक तन्त्र के बारे में विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर:
पारिस्थितिकी (Ecology)-पारिस्थितिकी का सीधा सम्बन्ध जैविक तथा अजैविक तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्धों से है अर्थात् जैव समूहों एवं जीवों तथा भौतिक वातावरण के बीच जो सम्बन्ध होते हैं, उनका अध्ययन पारिस्थितिकी में किया जाता है। प्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक एरंट हैकल के अनुसार, “पारिस्थितिकी ज्ञान, जिसमें जैविक तत्त्वों का अपने चारों ओर के संसार के साथ सम्बन्धों के योगफल का अध्ययन किया जाता है।”
सन् 1860 में Ernt Haeckel ने सर्वप्रथम (Ecology) पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग किया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में इसका व्यापक प्रयोग पर्यावरण के सन्दर्भ में किया जाने लगा। किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव वहाँ की वनस्पति तथा जीव-जन्तओं पर पड़ता है, ये आपस में एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं तथा प्रभावित करते हैं। इसलिए Kerbs ने सन 1972 में लिखा है, “पारिस्थितिकी वातावरण की उन पारस्परिक प्रतिक्रियाओं के अध्ययन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण है जो जीव-समूहों के कल्याण, उनके वितरण को विनियमित करने, प्रचुरता पुनरुत्यति तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं।”
पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-System)-किसी भी क्षेत्र या प्रदेश के भौतिक वातावरण एवं जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन पारिस्थितिकी तन्त्र कहलाता है। यह एक जटिल व्यवस्था (तन्त्र) है, जिसमें दोनों के आपसी सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन सम्मिलित है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पारिस्थितिकी तन्त्र में जैविक जगत् तथा अजैविक जगत् (Biotic and Abiotic World) की पारस्परिक प्रक्रियाओं एवं सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाता है। जैव जगत् (Biotic World) में पशु-पक्षी, मानव, पेड़-पौधों आदि तथा अजैविक जगत् (Abiotic World) में भूमि, मिट्टी, जलवायु आदि तत्त्व सम्मिलित हैं। पारिस्थितिकी तन्त्र के विभिन्न अंग होते हैं जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ किसी वन प्रदेश में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, घास, झाड़ी, लताएँ, फफूंदी, जीवाणु, पशु-पक्षी तथा बड़े-बड़े जंगली जीव होते हैं। इन सभी का आपसी सम्बन्ध होता है। पेड़-पौधे तथा घास अपने लिए मिट्टी से पोषक तत्त्व पानी, हवा आदि ग्रहण करते हैं। कुछ पौधे परजीवी होते हैं।
जंगल में रहने वाले जीव-जन्तु कुछ तो वनस्पति से भोजन प्राप्त करते हैं तथा जो माँसाहारी होते हैं, वे छोटे जीवों का शिकार करके अपना भोजन जुटाते हैं। जीव-जन्तुओं के मरने के बाद उसके अवशेषों से मिट्टी का निर्माण अथवा मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि होती है। यही पोषक तत्त्व वनस्पति के विकास में सहायक होते हैं और फिर जीवों का भोजन बनाते हैं अर्थात् भौतिक वातावरण तथा जैविक वातावरण का पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध है और इन सम्बन्धों का वैज्ञानिक और व्यवस्थित अध्ययन पारिस्थितिकी तन्त्र है। यह महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि इन्हीं दोनों तत्त्वों में पोषक चक्र (Nutrient Cycle) गतिज ऊर्जा (Energy Flow) के माध्यम से विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा जीवन-संचार करते हैं।
प्रश्न 4.
जैव भू-रासायनिक चक्र के सम्पन्न होने के क्रमों को समझाइए।
उत्तर:
जैव भू-रासायनिक चक्र के सम्पन्न होने के क्रम-जैव भू-रासायनिक चक्र निम्नलिखित क्रम में सम्पन्न होता है-
1. पौधों के उगने-बढ़ने के लिए कुछ अजैव तत्त्व आवश्यक होते हैं। वे अजैव तत्त्व हैं कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन। थोड़ी मात्रा में अन्य तत्त्वों यथा-नाइट्रोजन, लोहा, गंधक, फॉस्फोरस और मैंगनीज की भी आवश्यकता होती है। इन सभी तत्त्वों को पोषक (Nutrients) कहा जाता है।
2. चट्टानों के अपघटन से प्राप्त अवसादों से मिट्टी बनती है जिसमें लोहा, तांबा, सोडियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज (पोषक) तत्त्व स्वतः उपलब्ध होते हैं। वर्षा जल के साथ कुछ रासायनिक पोषक-कार्बन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन वायुमण्डल से निकलकर मिट्टी में मिल जाते हैं।
3. मृदा और वायु से प्राप्त इन पोषक तत्त्वों को पौधे अपनी जड़ों के द्वारा घोल के रूप में प्राप्त करते हैं। सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति से हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड को ऑक्सीजन और कार्बनिक यौगिक (जैव पदार्थ) में परिवर्तित कर देते हैं।
4. पृथ्वी पर पहुँचने वाले सूर्यातप का मात्र 0.1 प्रतिशत भाग ही प्रकाश संश्लेषण में काम आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधों की श्वसन क्रिया में व्यय होता है और शेष ऊर्जा अस्थायी रूप से पौधों के अन्य भागों में संचित हो जाती है।
5. चट्टानों से मिट्टियों में आए कुछ रासायनिक तत्त्वों को वर्षा के जल के माध्यम से नदियाँ समुद्रों में पहुँचा देती हैं और .. वे अजैव तत्त्व जलमण्डल का अंग बन जाते हैं।
6. पौधे जिन पोषक तत्त्वों को मिट्टी से ग्रहण करते हैं वे आहार-शृंखला के माध्यम से विभिन्न पोषक तत्त्वों में स्थानांतरित होते रहते हैं। उदाहरणतः पौधों को शाकाहारी प्राणी खाते हैं। शाकाहारी प्राणियों को माँसाहारी प्राणी खाते हैं और इन दोनों को सर्वाहारी खाते हैं।
7. पौधों के सूखने और प्राणियों के मर जाने के बाद अपघटक जीव इन्हें फिर से अजैव रासायनिक तत्त्वों में बदल देते हैं अर्थात् इनका कुछ भाग गैसों के रूप में वायुमण्डल में जा मिलता है और अधिकांश भाग ह्यूमस तथा रसायनों के रूप में मिट्टी में मिल जाता है।
8. यही तत्त्व पौधों में पुनः उपयोग में आते हैं और यह जैव भू-रसायनिक चक्र अनवरत चलता रहता है। पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमण्डल और जलवाष्प की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन बिगड़ा नहीं है। रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधों व प्राणी ऊतकों में होने वाले चक्रीय प्रवाह से बना हुआ है।