Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें-

1. सौरमण्डल में कितने ग्रह हैं?
(A) 8
(B) 7
(C) 9
(D) 11
उत्तर:
(A) 8

2. सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह कौन-सा है?
(A) बृहस्पति
(B) शनि
(C) मंगल
(D) शुक्र
उत्तर:
(A) बृहस्पति

3. सौरमण्डल का सबसे छोटा ग्रह कौन-सा है?
(A) बुध
(B) शुक्र
(C) शनि
(D) बृहस्पति
उत्तर:
(A) बुध

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

4. निम्नलिखित में से चन्द्रमा एक है
(A) नीहारिका
(B) क्षुद्रग्रह
(C) उपग्रह
(D) ग्रह
उत्तर:
(C) उपग्रह

5. सूर्य का निकटतम ग्रह कौन-सा है?
(A) शुक्र
(B) बुध
(C) मंगल
(D) पृथ्वी
उत्तर:
(B) बुध

6. निम्नलिखित में से पार्थिव ग्रह नहीं है-
(A) बुध
(B) मंगल
(C) शनि
(D) शुक्र
उत्तर:
(C) शनि

7. सूर्य से अधिकतम दूरी पर कौन-सा ग्रह है?
(A) शनि
(B) बुध
(C) नेप्च्यून
(D) यूरेनस
उत्तर:
(C) नेप्च्यून

8. चन्द्रमा किस ग्रह का प्राकृतिक उपग्रह है?
(A) शुक्र
(B) बुध
(C) पृथ्वी
(D) मंगल
उत्तर:
(C) पृथ्वी

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

9. पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित नीहारिका परिकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) लाप्लेस ने
(B) काण्ट ने
(C) प्लूटो ने
(D) जेम्स जीन्स ने
उत्तर:
(A) लाप्लेस ने

10. सौरमण्डल का जनक माना जाता है-
(A) बोने ग्रह को
(B) प्राक्रतिक उपग्रह को
(C) तारों को
(D) नीहारिका को
उत्तर:
(D) नीहारिका को

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत का नाम क्या है?
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धांत।

प्रश्न 2.
बिग बैंग की घटना कब हुई?
उत्तर:
आज से 13.7 अरब वर्षों पहले।

प्रश्न 3.
प्रकाश की गति कितनी है?
उत्तर:
3 लाख कि०मी० प्रति सैकेंड।

प्रश्न 4.
‘प्रकाश वर्ष’ किस इकाई का मापक है?
उत्तर:
खगोलीय दूरी का।

प्रश्न 5.
पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में प्रारंभिक मत किस दार्शनिक ने दिया?
उत्तर:
इमैनुअल कान्ट।

प्रश्न 6.
सूर्य का निकटतम ग्रह कौन-सा है?
उत्तर:
बुध।

प्रश्न 7.
पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी कितनी है?
उत्तर:
14 करोड़, 95 लाख, 98 हजार कि०मी०।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 8.
पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित ‘नीहारिका परिकल्पना’ किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
लाप्लेस ने।

प्रश्न 9.
पृथ्वी की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर:
लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 10.
पृथ्वी पर जीवन लगभग कितने वर्ष पूर्व विकसित हुआ?
उत्तर:
लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 11.
श्रेष्ठ ग्रह किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
बाहरी ग्रहों को श्रेष्ठ ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 12.
पहले पृथ्वी किस अवस्था में थी?
उत्तर:
तरल अवस्था में।

प्रश्न 13.
लाप्लेस ने ‘नीहारिका संकल्पना’ कब प्रस्तुत की?
उत्तर:
लाप्लेस ने ‘नीहारिका संकल्पना’ सन् 1796 में प्रस्तुत की।

प्रश्न 14.
ग्रहों के आकार, रचक सामग्री तथा तापमान में अन्तर क्यों पाया जाता है?
उत्तर:
सूर्य से सापेक्षिक दूरी के कारण।

प्रश्न 15.
पृथ्वी का औसत घनत्व कितना है?
उत्तर:
5.517 ग्राम प्रति घन सें०मी०।

प्रश्न 16.
पृथ्वी के एकमात्र उपग्रह का क्या नाम है?
उत्तर:
चंद्रमा।

प्रश्न 17.
सूर्य केन्द्रित परिकल्पना को प्रस्तुत करने वाले प्राचीन भारतीय विद्वान् का नाम बताइए।
उत्तर:
आर्यभट्ट।

प्रश्न 18.
तुच्छ ग्रह (Inferior Planets) किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
आन्तरिक ग्रहों को तुच्छ ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 19.
उस पौधे का नाम लिखिए जिसके जीवाश्म सभी महाद्वीपों में मिलते हैं।
उत्तर:
ग्लोसोपैट्रिस।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 20.
सौरमण्डल के एक बाहरी ग्रह का नाम लिखें।
उत्तर:
बृहस्पति।

प्रश्न 21.
सौरमण्डल के एक आन्तरिक/भीतरी ग्रह का नाम लिखें।
उत्तर:
पृथ्वी।

प्रश्न 22.
पृथ्वी के कितने उपग्रह हैं?
उत्तर:
पृथ्वी का एक ही उपग्रह है।

प्रश्न 23.
जलीय ग्रह (Watery Planet) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी को।

प्रश्न 24.
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के कौन-से चरण में हुई?
उत्तर:
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के अंतिम चरण में हुई।

प्रश्न 25.
पृथ्वी अथवा चन्द्रमा में से आयु में कौन छोटा है?
उत्तर:
दोनों की आयु बराबर है क्योंकि दोनों की रचना एक ही समय हुई थी।

प्रश्न 26.
चंद्रमा की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर:
लगभग 4.4 अरब वर्षों पहले।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-केन्द्रित (Geo-Centric) परिकल्पना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भू-केन्द्रित परिकल्पना का अर्थ है कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र है और सूर्य, चन्द्रमा तथा ग्रह इत्यादि आकाशीय पिण्ड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।

प्रश्न 2.
सूर्य-केन्द्रित (Helio-Centric) सौरमण्डल का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ यह है कि सौरमण्डल का केन्द्र सूर्य है। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

प्रश्न 3.
सौरमण्डल आंतरिक या पार्थिव ग्रह कितने हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सौरमण्डल आंतरिक या पार्थिव ग्रह चार हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल।

प्रश्न 4.
सौरमण्डल में कुल कितने ग्रह हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
हमारे सौरमण्डल में 8 ग्रह हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण।

प्रश्न 5.
सौरमण्डल के बाहरी या जोवियन ग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बृहस्पति, शनि, अरुण (Uranus) तथा वरुण (Neptune)।

प्रश्न 6.
मन्दाकिनी क्या होती है? हमारी मन्दाकिनी का नाम बताइए।
उत्तर:
लाखों-करोड़ों तारों के कुन्ज को मन्दाकिनी कहा जाता है। हमारी मन्दाकिनी का नाम आकाशगंगा (Milky Way) है।

प्रश्न 7.
‘पोलर वन्डरिंग’ क्या होती है?
उत्तर:
विभिन्न युगों में ध्रुवों की स्थिति का बदलना पोलर वन्डरिंग (Polar Wandering) कहलाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 8.
ग्रहाणु क्या होते हैं?
उत्तर:
एक परिकल्पना (चेम्बरलिन व मोल्टन) के अनुसार सूर्य तथा निकट से गुजरते तारे के टकराव के कारण गैसीय पदार्थ एक फ़िलेमेन्ट के रूप में पूर्व स्थित सूर्य से छिटककर जिहा आकार के पदार्थ छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर गए। ये टुकड़े ठण्डे पिण्डों के रूप में उड़ते हुए सूर्य के चारों ओर कक्षाओं में घूमने लगे, इन्हें ही ग्रहाण (Planetisimols) कहा जाता है।

प्रश्न 9.
आदि तारा (Protostar) क्या है?
उत्तर:
तप्त गैसों के बादल से बनी नीहारिका में जब विस्फोट हुआ तो अभिनव तारे की उत्पत्ति हुई। इस तारे के सघन भाग अपने ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से विखण्डित हो गए। सघन क्रोड विशाल तथा अधिक गरम होता गया। इसे आदि तारा कहते हैं जो अन्त में सूर्य बन गया।

प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के साथ ही हुई थी।
उत्तर:
चन्द्रमा से प्राप्त शैलों के नमूनों के काल निर्धारण (Radiomatric Dating) से ज्ञात होता है कि चन्द्रमा और पृथ्वी का जन्म एक-साथ हुआ था क्योंकि दोनों की रचना एक-जैसी चट्टानों से हुई है।

प्रश्न 11.
पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पार्थिव और जोवियन ग्रहों में निम्नलिखित अंतर हैं-

पार्थिव ग्रहजोवियन ग्रह
1. पार्थिव का अर्थ है-पृथ्वी की तरह। ये ग्रह पृथ्वी की तरह ही शैलों एवं धातुओं से बने हैं।1. जोवियन का अर्थ है-बृहस्पति की तरह। ये ग्रह बृहस्पति की तरह पर्थिव ग्रहों से विशाल हैं।
2. इन ग्रहों को आंतरिक ग्रह कहा जाता है।2. इन ग्रहों को बाहरी ग्रह कहा जाता है।
3. ये ग्रह अधिकतर चट्टानी हैं।3. ये ग्रह अधिकतर गैसीय हैं।

प्रश्न 12.
नेबुला या नीहारिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
धूल तथा गैसों से बने एक विशालकाय बादल को नेबुला कहते हैं।

प्रश्न 13.
पृथ्वी का निर्माण कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
आज से लगभग 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पहले अन्तरिक्ष में यह विशालकाय नेबुला भंवरदार गति से घूम रहा था। यह अपनी ही गुरुत्व शक्ति के कारण धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा तथा इसकी आकृति एक चपटी डिस्क के समान हो गई। एक बहुमान्य परिकल्पना के अनुसार, इस नेबुला के ठण्डे होने तथा सिकुड़ने से ही पृथ्वी का निर्माण हुआ।

प्रश्न 14.
अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी तीव्र गति से घूमती वस्तु के केन्द्र से बाहर की ओर उड़ने था छिटक जाने की प्रवृत्ति को पैदा करने वाला बल अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) कहलाता है। इसके विपरीत अभिकेन्द्री बल (Centripetal force) होता है, जिसमें वस्तु केन्द्र की ओर जाने की प्रवृत्ति रखती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कोणीय संवेग के संरक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक पिण्ड ग्रहों की भंवरदार गति को नापने की इकाई कोणीय संवेग कहलाती है। यह वस्तु के आकार तथा उसकी घूमने की गति पर निर्भर करती है।
कोणीय संवेग = ग्रह का द्रव्यमान x परिक्रमण गति x कक्ष की त्रिज्या।
कोणीय संवेग के संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार, किसी भी पदार्थ के विभिन्न भागों के आपस में टकराने से उसकी परिभ्रमण गति प्रभावित नहीं होती तथा न ही गतिहीन पदार्थ में गति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
सौर परिवार के आन्तरिक ग्रह भारी क्यों हैं?
उत्तर:
जब नीहारिका चपटी तश्तरी (Flat Disc) बनकर घूम रही थी तो उसमें अपकेन्द्री शक्ति बढ़ गई। अपकेन्द्री शक्ति के कारण नीहारिका एक जुट नहीं रह पाई और छोटे-छोटे गैसीय पिण्डों के रूप में बँट गई। नीहारिका का बचा हुआ भाग धीरे-धीरे घूमता हुआ तारा बन गया जिसे हम सूर्य कहते हैं। नीहारिका से अलग हुआ प्रत्येक पिण्ड सूर्य का चक्कर लगाने लगा। विकिरण के कारण इन पिण्डों का ऊपरी भाग ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा लेकिन केन्द्रीय भाग तप्त होता गया।

समय के साथ धूल के भारी कण सूर्य के निकट और हल्के तत्त्व तथा गैसें सूर्य से दूर वितरित हो गए। इन्हीं पदार्थों से 8 ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी कारण सौर-मण्डल के बाहरी ग्रह गैसों से बने विशालकाय पिण्ड हैं; जैसे बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण। जबकि सूर्य के निकट स्थित आन्तरिक ग्रह चट्टानों से निर्मित और भारी हैं; जै तारक ग्रह चट्टाना स रानामत और भारी है; जैसे बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल। इसी कारण सौर परिवार के आन्तरिक ग्रह भारी है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी का विकास अनेक अवस्थाओं में से गुजरने के पश्चात् हुआ है। पृथ्वी गैस और द्रव अवस्था से होती हुई वर्तमान ठोस अवस्था में परिवर्तित हो गई। इसकी ऊपरी सतह पर हल्के पदार्थ ठण्डे होकर ठोस रूप धारण करते गए तथा भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में जमा हो गए। धीरे-धीरे पृथ्वी की ऊपरी सतह ठोस चट्टानों की बन गई। पृथ्वी के आन्तरिक भाग के ठण्डा होने तथा सिकुड़ने से पृथ्वी की बाह्य भू-पर्पटी पर सिलवटें पड़ गईं। इससे पर्वत श्रेणियों तथा द्रोणियों का निर्माण हुआ। उसी समय हल्की गैसों से वायुमण्डल का निर्माण हो गया। वायुमण्डल में गरम गैसीय पदार्थों के ठण्डा होने से बादल बने। इन बादलों से हजारों वर्षों तक वर्षा हुई और द्रोणियों में जल के भर जाने से महासागरों का निर्माण हो गया।

प्रश्न 4.
भू-पृष्ठ (Crust of the Earth) का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी की उत्पत्ति गैस और धूल के एक धधकते हुए गोले के रूप में हुई थी। कुछ समय पश्चात् पृथ्वी ने ठण्डी होकर तरल रूप धारण कर लिया। इस तरल रूपी पृथ्वी के पदार्थों ने अपने घनत्व (Density) के अनुसार स्थिति ग्रहण कर ली। हल्के पदार्थ ऊपर की ओर आ गए और सबसे भारी पदार्थ पृथ्वी के भीतर चले गए। इस प्रकार तरल पृथ्वी भिन्न-भिन्न घनत्व के पदार्थों से बनी कई परतों में बँट गई। पृथ्वी की सबसे ऊपरी पपड़ी ठण्डी होकर कठोर बन गई। ठोस शैलों से बनी इस ऊपरी परत को हम भू-पृष्ठ (Crust of the Earth) कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न 5.
पर्वत श्रेणियाँ, कटकें व द्रोणियाँ किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर:
भू-पृष्ठ के निर्माण के बाद उसका नीचे वाला भाग भी ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा। इससे पृथ्वी की ऊपरी पट्टी अर्थात भू-पृष्ठ पर बल पड़ने लगे। धरती पर जो भाग ऊपर उठ गए वे पर्वत श्रेणियाँ व कटकें कहलाईं और जो भाग द्रोणियों बन गए वे द्रोणियाँ (Basins) कहलाईं।

प्रश्न 6.
पृथ्वी पर जीवन का विकास किस प्रकार आरम्भ हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी अपने जन्म से अब तक के लम्बे इतिहास में लगभग आधी अवधि तक उजाड़ पड़ी रही। इस पर जीवन के किसी भी रूप का अस्तित्व नहीं था। फिर पता नहीं किस प्रकार महासागरों में जीवन शुरू हुआ। कहा जाता है कि जल में किसी बड़े अणु ने किसी प्रकार अपने जैसा दूसरा अणु पैदा कर लिया। इस प्रकार पृथ्वी पर पौधों और प्राणियों के आश्चर्यजनक संसार के रूप में जीवन की शुरुआत हुई। पृथ्वी पर यह जीवन कैसे शुरू हआ- आज भी अस्पष्ट है। यह माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के उच्चतम भाग तथा महासागरों के निम्नतम भाग में कितना अन्तर है?
उत्तर:
पृथ्वी के उच्चतम भाग तथा महासागरों के निम्नतम भाग में लगभग बीस किलोमीटर का अन्तर है। पृथ्वी पर उच्चतम भाग हिमालय पर्वत श्रृंखला में माऊंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महासागरों में निम्नतम भाग प्रशान्त महासागर में मैरियाना च में चैलेंजर गर्त है जिसकी गहराई 11,022 मीटर है। इस तरह माऊंट एवरेस्ट तथा चैलेंजर गर्त की गहराई में अन्तर 8,848 + 11,022 = 19,870 मीटर है जो लगभग बीस किलोमीटर है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर नवीनतम वलित पर्वत हिमालय पर्वत, आल्पस पर्वत श्रृंखला तथा रॉकी-एण्डीज़ पर्वत श्रृंखला का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
कार्बोनिफेरस युग (लगभग 35 करोड़ वर्ष पूर्व) के अन्त में पेन्जिया का विभंजन आरम्भ हुआ। गुरुत्वाकर्षण बल, प्लवनशीलता बल (Force of Buoyancy) तथा ज्वारीय बल के कारण पेन्जिया का कुछ भाग पश्चिम की ओर तथा कुछ भाग भूमध्य रेखा की ओर खिसकने लगा। उत्तर के लारेशिया भू-खण्ड तथा दक्षिण के गोण्डवानालैण्ड के खिसकने से वे एक-दूसरे के निकट आए और उनके बीच जो टेथीज़ सागर था, वह संकरा होता चला गया तथा उसमें जमे अवसाद में बल पड़ने से आल्पस तथा हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम की ओर खिसकने से उनके पश्चिमी किनारों पर वलन पड़ गए। उनसे रॉकीज़ तथा एण्डीज़ पर्वत-शृंखलाओं की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 9.
ग्रहों की सूर्य से दूरी, घनत्व एवं अर्धव्यास की दृष्टि से तुलना करें।
उत्तर:

ग्रहसूर्य से दूरी(gm/cm³)घनत्वअर्धव्यास
बुध0.3875.440.383
शुक्र0.7235.2450.949
पृथ्वी1.0005.5171.000
मंगल1.5243.9450.533
बृहस्पति5.2031.3311.19
शनि9.5390.709.460
अरुण19.1821.174.11
वरुण30.0581.663.88

प्रश्न 10.
चन्द्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रमा की उत्पत्ति के बारे में दो सम्भावनाएँ व्यक्त की गई हैं-
पहली-चन्द्रमा सूर्य से गैसीय रूप में बाहर आया और बहुत ही छोटा होने के कारण पृथ्वी की आकर्षण शक्ति द्वारा अपनी ओर खींच लिया गया।

दूसरी-पृथ्वी पर एक विशाल उल्कापिण्ड गिरा और टक्कर के कारण पथ्वी का पदार्थ टटकर अलग हो गर उल्कापिण्ड गिरा, एक महान गर्त बना जिसमें पानी भर जाने से प्रशान्त महासागर की रचना हुई। वह भूखण्ड जो टूटकर अन्तरिक्ष में फैल गया, चन्द्रमा बन गया।

प्रश्न 11.
सूर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
सौरमण्डल का प्रमुख तथा केन्द्रीय पिण्ड, एक बृहद् दीप्त गोला, जिसका व्यास 13,92,000 किलोमीटर है जो पृथ्वी के व्यास से 109 गुना है। सूर्य में हमारी पृथ्वी जैसे 13 लाख पिण्ड समा सकते हैं। विश्वास किया जाता है कि इसका आन्तरिक भाग तरल अवस्था में एवं बाह्य भाग गैस का आवरण है। सूर्य के धरातल का तापमान 6000°C है व इसके केन्द्र पर 15,000,00°C तापमान पाया जाता है।

प्रश्न 12.
अन्तरिक्ष से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तरिक्ष का न कोई आदि है और न ही अन्त। अन्तरिक्ष में छोटे व बड़े आकार की अरबों मन्दाकिनियाँ अथवा तारकीय समूह (Galaxies) हैं। प्रत्येक तारकीय समूह में लाखों सौरमण्डल हैं। अनुमान है कि अन्तरिक्ष में 2 अरब सौरमण्डल हैं। औसतन एक मन्दाकिनी का व्यास 30,000 प्रकाश वर्षों (Light years) की दूरी जितना होता है। दो मन्दाकिनियों के बीच 10 लाख प्रकाश वर्ष जितनी औसत दूरी होती है। हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा नामक मन्दाकिनी में है, जो अन्तरिक्ष में नगण्य-सा स्थान रखती है, जबकि इसमें सूर्य जैसे तीन खरब तारे होने का अनुमान है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की उत्पत्ति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऐसी मान्यता है कि लगभग 460 करोड़ वर्ष पहले अन्तरिक्ष में धूलकणों और गैसों से बना एक बहुत बड़ा बादल भंवरदार गति से घूम रहा था। भँवरदार गति या घूर्णन को कोणीय संवेग (Angular Momentum) नामक भौतिक राशि द्वारा मापा जाता है। कोणीय संवेग किसी पदार्थ के घूमने की गति और उसके आकार पर निर्भर करता है। आकाश में तेजी से घूमने के कारण इस गरम धधकते वायव्य महापिण्ड या नीहारिका (Nebula) का ऊपरी भाग विकिरण से ठण्डा होने लगा, किन्तु इसका भीतरी भाग गर्मी से धधकता रहा। नीहारिका का ऊपरी ठण्डा हुआ भाग अपने ही गुरुत्व बल से धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा।

सिकुड़ने के साथ ही नीहारिका की आकृति एक चपटी तश्तरी (Flat disc) के समान होती गई। गति विज्ञान (Dynamics) के नियमानुसार, सिकुड़ती हुई वस्तु का परिभ्रमण वेग बढ़ जाता है। अतः जैसे-जैसे नीहारिका सिकुड़कर छोटी होती गई वैसे-वैसे कोणीय संवेग को बनाए रखने के लिए उसके घूर्णन की गति और तेज होती गई। घूमने की गति बढ़ जाने के कारण नीहारिका (Nebula) में अपकेन्द्री शक्ति (Centrifugal force) बढ़ गई।

अपकेन्द्री शक्ति के कारण तेज़ी से घूमते हुए पिण्ड से पदार्थ के केन्द्र से बाहर छिटक जाने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। इससे नीहारिका एकजुट नहीं रह पाई, बल्कि छोटे-छोटे गैसीय पिण्डों के रूप में विभक्त हो गई। नीहारिका का बचा हुआ भाग बहुत धीरे-धीरे घूमता हुआ एक तारे का रूप धारण कर गया, जिसे हम सूर्य कहते हैं। नीहारिका से अलग हुए पिण्डों में मूल नीहारिका के कोणीय संवेग का 98% भाग बचा हुआ था। इन पिण्डों से आठ ग्रहों का निर्माण हुआ। प्रत्येक पिण्ड सूर्य का चक्कर लगाने लगा तथा विकिरण के कारण उनका ऊपरी भाग भी ठण्डा होकर सिकुड़ने लगा। इस प्रक्रिया में उनका केन्द्रीय भाग तप्त होता गया।

समय के साथ धूल के भारी कण सूर्य के निकट और हल्के तत्त्व तथा गैसें सूर्य से दूर वितरित हो गए। इसी कारण सौरमण्डल के बाहरी ग्रह गैसों से बने विशालकाय पिण्ड हैं, जबकि सूर्य के निकट स्थित आन्तरिक ग्रह चट्टानों से निर्मित और भारी हैं। जिस प्रकार नीहारिका से ग्रहों की रचना हुई, उसी प्रकार ग्रहों से उपग्रह भी बने।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Read More »

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. निम्नलिखित में से किसका संबंध जीव-भूगोल से है?
(A) भू-विज्ञान
(B) समाजशास्त्र
(C) जीव-विज्ञान
(D) जलवायु, विज्ञान
उत्तर:
(C) जीव-विज्ञान

2. “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भू-गर्भ विज्ञान है” यह कथन किस विद्वान् का दिया हुआ है?
(A) रिटर
(B) डेविस
(C) हार्टशोर्न
(D) वेगनर
उत्तर:
(B) डेविस

3. क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) का प्रवर्तन किस भूगोलवेत्ता ने किया?
(A) हेट्टनर ने
(B) कार्ल रिटर ने
(C) हार्टशॉर्न ने
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने
उत्तर:
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

4. लंबाई, चौड़ाई और गोलाई भूगोल के तीन आयाम हैं। भूगोल का चौथा आयाम कौन-सा है?
(A) मोटाई
(B) गहराई
(C) ऊँचाई
(D) समय
उत्तर:
(D) समय

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
क्रमबद्ध भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने।

प्रश्न 2.
उस विद्वान का नाम बताएँ जिसने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सर्वप्रथम कारण-सहित वर्णन किया था।
उत्तर:
हेरोडोटस (485-425 ई०पू०)।

प्रश्न 3.
प्राचीनकाल के किस विद्वान् ने मनुष्य पर पर्यावरण के प्रभावों का उल्लेख किया था?
उत्तर:
हिप्पोक्रेट्स (460-377 ई०पू०)।

प्रश्न 4.
सबसे पहले किस विद्वान् ने सूर्य की किरणों के कोण मापकर पृथ्वी की परिधि का आकलन कर लिया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ई०पू०)।

प्रश्न 5.
वह कौन-सा भूगोलवेत्ता था जिसने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में संश्लेषण (Synthesis) का समर्थन किया?
उत्तर:
एच० जे० मैकिण्डर।

प्रश्न 6.
20वीं सदी के आरम्भ में मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर कौन-सी दो विचारधाराएँ विकसित हुई थी?
उत्तर:
नियतिवाद और सम्भववाद।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 7.
भूगोल के कौन-से दो दृष्टिकोण हैं?
उत्तर:

  1. प्राचीन दृष्टिकोण
  2. आधुनिक दृष्टिकोण।

प्रश्न 8.
भूगोल में अध्ययन की दो तकनीकें कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. मानचित्रण विधि
  2. मात्रात्मक विधि।

प्रश्न 9.
सर्वप्रथम ‘भूगोल’ शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ ने।

प्रश्न 10.
भूगोल के अध्ययन की दो विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध विधि
  2. प्रादेशिक विधि।

प्रश्न 11.
भूगोल की दो प्रमुख शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

भौतिक भूगोल
मानव भूगोल।

प्रश्न 12.
प्रादेशिक भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
कार्ल रिटर ने।

प्रश्न 13.
प्रादेशिक भूगोल की कोई दो उपशाखाएँ बताएँ।
उत्तर:

  1. प्रादेशिक अध्ययन
  2. प्रादेशिक विश्लेषण।

प्रश्न 14.
“मनुष्य के कार्य प्रकृति द्वारा निर्धारित होते हैं।” यह कथन किस विद्वान् का है?
उत्तर:
रेटजेल का।

प्रश्न 15.
सम्भववाद के प्रमुख समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
विडाल डी ला ब्लाश तथा एस० फैरो।

प्रश्न 16.
नियतिवाद के दो समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रेटज़ेल व हंटिंगटन।

प्रश्न 17.
वातावरण या पर्यावरण को किन दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक वातावरण
  2. मानवीय अथवा सांस्कृतिक वातावरण।

प्रश्न 18.
किन दो भारतीय वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम पृथ्वी के आकार का वर्णन किया था?
उत्तर:

  1. आर्यभट्ट
  2. भास्कराचार्य।

प्रश्न 19.
234 ई० पू० यूनान के किस विद्वान ने पृथ्वी की परिभाषा देने के लिए ‘Geography’ शब्द का प्रयोग किया?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भौतिक भूगोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है अर्थात् इसमें स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
‘सम्भववाद’ क्या होता है?
उत्तर:
फ्रांस से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति अथवा पर्यावरण द्वारा ही निर्धारित नहीं होते, बल्कि मनुष्य अपनी बुद्धि व श्रम से सम्भावनाओं का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।

प्रश्न 3.
‘नियतिवाद’ क्या होता है?
उत्तर:
जर्मनी से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति निर्धारित करती है। अतः मनुष्य स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता। वह केवल प्रकृति का दास है।

प्रश्न 4.
भूगोल में किन-किन परिमण्डलों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:

  1. स्थलमण्डल
  2. जलमण्डल
  3. वायुमण्डल
  4. जैवमण्डल।

प्रश्न 5.
एक विषय के रूप में भूगोल किन तीन कार्यों का अध्ययन करता है?
उत्तर:

  1. भूगोल की प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र
  2. समय के साथ भूगोल का विकास
  3. भूगोल की मुख्य शाखाओं का अध्ययन।

प्रश्न 6.
भौतिक वातावरण और सांस्कृतिक वातावरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भौतिक वातावरण-मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों; जैसे वर्षा, तापमान, भू-आकार, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जल इत्यादि का सम्मिश्रण। सांस्कृतिक वातावरण मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों; जैसे ग्राम, नगर, यातायात के साधन, कारखाने, व्यापार, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि का सम्मिश्रण।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 7.
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में निम्नलिखित अन्तर हैं-

मात्रात्मक विधिमानचित्रण विधि
1. इस विधि में तथ्यों और आँकड़ों को एकत्रित करके वर्गीकृत किया जाता है।1. इस विधि में आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाए जाते हैं।
2. इस विधि में आँकड़ों के विश्लेषण से कुछ अर्थपूर्ण अनुमान लगाए जाते हैं।2. इस विधि में मानचित्रों से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 8.
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं-

भौतिक भूगोलमानव भूगोल
1. भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है।1. मानव भूगोल पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों का अध्ययन करता है।
2. भौतिक भूगोल में स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल व जैव मण्डल का अध्ययन किया जाता है।2. मानव भूगोल में मनुष्य के सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 9.
क्रमबद्ध भूगोल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। क्रमबद्ध भूगोल में हम भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँट लेते हैं। फिर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘धरातल’ प्रकरण को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या विश्व का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मृदा, वनस्पति, खनिज, फसलें, परिवहन, जनसंख्या आदि तत्त्वों का क्षेत्र विशेष पर पृथक-पृथक अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रादेशिक भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल में हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Region) में बाँट लेते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित अध्ययन करते हैं; जैसे भूमध्य-रेखीय प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा का मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 11.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लगभग अठारहवीं शताब्दी तक भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करने वाला एक विवरणात्मक शास्त्र माना जाता था, तब भूगोल का मानवीय क्रियाओं से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस प्रकार भौगोलिक अध्ययन का प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी (Isolated) था।

प्रश्न 12.
भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिक भूगोल पृथ्वी तल पर मनुष्य और उसके भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन पर बल देता है। भूगोल अब वर्णनात्मक शास्त्र नहीं रहा बल्कि जीन बूंश के शब्दों में, “भूगोल में अब घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसी जिज्ञासाओं के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है।” भगोल के आधनिक दृष्टिकोण में कार effect) सम्बन्धों की विवेचना का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 13.
पुनर्जागरण काल कौन-सा था और उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर:
13वीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल कहलाता है। इस काल में अनेक भौगोलिक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए।

प्रश्न 14.
क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
1. क्रमबद्ध भूगोल की कुछ प्रमख उपशाखाएँ हैं-

  • भू-आकृतिक भूगोल
  • मानव भूगोल
  • जैव भूगोल
  • भौगोलिक विधियाँ एवं तकनीकें।

2. प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाएँ हैं-

  • प्रादेशिक अध्ययन
  • प्रादेशिक विश्लेषण
  • प्रादेशिक विकास तथा
  • प्रादेशिक आयोजन।

प्रश्न 15.
पारिस्थितिकी (Ecology) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह विज्ञान जिसके अन्तर्गत विभिन्न जीवों तथा उनके पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 16.
मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) क्या होती है?
उत्तर:
मनुष्य और स्थान के बीच पाए जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन मानव पारिस्थितिकी कहलाता है।

प्रश्न 17.
परिघटना (Phenomena) क्या होती है?
उत्तर:
ऐसी वस्तु जिसे इन्द्रियाँ; जैसे आँख, कान, नाक आदि से देख, सुन और सूंघ व स्पर्श कर सकें। उदाहरण-पर्वत, पठार, मैदान, मन्दिर, सड़क इत्यादि।

प्रश्न 18.
निश्चयवाद तथा संभववाद में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
निश्चयवाद तथा संभववाद में निम्नलिखित अन्तर हैं-

निश्चयवाद (Determinism)संभववाद (Possibilism)
1. निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य के समस्त कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं।1. संभववाद के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने का सामर्थ्य रखता है।
2. इस विचारधारा के समर्थक रेटज़ेल व हंटिंगटन थे।2. इस विचारधारा के समर्थक विडाल डी ला ब्लाश व फैव्रे थे।
3. यह जर्मन विचारधारा (School of thought) है।3. यह फ्रांसीसी विचारधारा (School of thought) है।

प्रश्न 19.
भूगोल में आधुनिकतम अथवा नवीनतम विकास कौन-सा हुआ है? नवीनतम विधियों का सर्वप्रथम प्रयोग करने वाले प्रमुख भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए।
उत्तर:
भूगोल में नवीनतम विकास मात्राकरण (Quantification) तथा सांख्यिकीय विश्लेषणों के रूप में हुआ है। इसके परिणामस्वरूप भूगोल में गणितीय विधियों, मॉडल निर्माण तथा कम्प्यूटर का प्रयोग बढ़ने लगा है। भूगोल में मात्रात्मक विधियों का सफलतापूर्वक प्रयोग निम्नलिखित भूगोलवेत्ताओं ने किया

  1. एसडब्ल्यू० वूलरिज़ (S.W. Wooldridge)
  2. आरजे० शोरले (R.J. Chorley)
  3. पीव्हैगेट (P. Hagget)

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 20.
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल क्या भूमिका निभाता है?
अथवा
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल पृथ्वी के किन पहलुओं का अध्ययन करता है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल एक सशक्त विषय के रूप में उभरकर सामने आया है। इसमें पृथ्वी के निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन किया जाता है

  • पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले विभिन्न प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों एवं घटनाओं का अध्ययन मानव के सन्दर्भ में करना।
  • स्थानीय, क्षेत्रीय तथा भू-मण्डलीय स्तर पर उभरती मानव-पर्यावरण अन्तःक्रियाओं (Interactions) का अध्ययन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक विषय के रूप में भूगोल का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी प्रमुख परिभाषाएँ बताइए। अथवा भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:
‘भूगोल’ हिन्दी के दो शब्दों भू + गोल की सन्धि से बना है जिसका अर्थ यह है कि पृथ्वी गोल है। भूगोल विषय के लिए अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ‘ज्योग्राफी’ (Geography) को सबसे पहले यूनानी विद्वान् इरेटॉस्थेनीज़ (Eratosthenes) ने 234 ई० पू० अपनाया था। Geography शब्द मूलतः यूनानी भाषा के दो पदों Ge अर्थात् पृथ्वी और Graphien अर्थात् लिखना से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य है-“पृथ्वी तथा इसके ऊपर जो कुछ भी पाया जाता है, उसके बारे में लिखना या वर्णन करना।”

डडले स्टाम्प के अनुसार, “भूगोल वह विज्ञान है जो पृथ्वी तल और उसके निवासियों का वर्णन करता है।” मोंकहाउस के अनुसार, “भूगोल मानव के आवास के रूप में पृथ्वी का विज्ञान है।” फिन्च व ट्रिवार्था की दृष्टि में, “भूगोल भू-पृष्ठ का विज्ञान है। इसमें भूतल पर विभिन्न वस्तुओं के वितरण प्रतिमानों तथा प्रादेशिक सम्बन्धों के वर्णन एवं व्याख्या करने का प्रयास किया जाता है।”

अतः इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि एक विषय के रूप में भूगोल मानव तथा पृथ्वी के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। प्रश्न 2. भूगोल के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर:भूगोल एक प्रगतिशील और सक्रिय क्षेत्रीय विज्ञान है जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि-भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित घटनाओं, प्रदेशों की विशेषताओं और विविधताओं की जानकारी देकर मानव की स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि करता है तथा उसकी सोच व कल्पना को नए आयाम देता है।

2. समग्रता का अध्ययन-भूगोल पृथ्वी के किसी भी भू-भाग का उसकी समग्रता (Totality) मैं सृष्टि के एक जीवन्त पहलू के रूप में अध्ययन करता है।

3. मानवीय संसार का अध्ययन हार्टशॉर्न के अनुसार, “पृथ्वी का मानवीय संसार के रूप में वैज्ञानिक ढंग से वर्णन तथा विकास में योगदान करना ही भूगोल का उद्देश्य है।”

4. संसाधन संरक्षण-भूगोल का उद्देश्य है कि किसी प्रदेश के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों को इस प्रकार विकसित किया जाए कि उनके अनुकूलतम (Optimum) प्रयोग से मानव का कल्याण हो सके।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-भूगोल का उद्देश्य भौतिक संसाधनों के विश्वव्यापी वितरण तथा लोगों के उपभोग प्रारूपों का अध्ययन करके अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और पारस्परिक निर्भरताओं को सार्थक बनाना है।

6. स्वस्थ तथा सन्तुलित दृष्टिकोण का विकास-जेम्स फेयरग्रीव के अनुसार, “भूगोल का उद्देश्य भावी नागरिकों को इस प्रकार प्रशिक्षित करना है कि वे विश्व रूपी महान् रंगमंच पर पाई जाने वाली परिस्थितियों का सही आकलन कर सकें और आस-पड़ोस में पाई जाने वाली राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखने में समर्थ हो जाएँ।”

प्रश्न 3.
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ निम्नलिखित हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान-इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान-भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान-इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean Deposits) का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
अठारहवीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल को लोकप्रियता क्यों मिली?
अथवा
पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance) में भूगोल के लोकप्रिय होने के प्रमुख लक्षण कौन-कौन से थे?
उत्तर:
तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल इसलिए पुनर्जागरण काल कहलाता है क्योंकि इसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में और विशेष रूप से 18वीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल के लोकप्रिय होने के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारणों का हाथ था
(1) इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया।

(2) इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं, जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

(3) अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों हम्बोल्ट तथा रिटर ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ।

(4) उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दूर-दराज़ के भू-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

प्रश्न 5.
भूगोल में समाकलन या संश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है? उन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए जिन्होंने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन किया है।
उत्तर:
समाकलन व संश्लेषण भूगोल के अध्ययन की ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न विज्ञानों, जिनकी अपनी अलग पहचान है, की सहायता से भूगोल में विकसित हुए उपक्षेत्रों या घटकों का आपस में संयुक्त रूप से अध्ययन किया जाता है। इससे भौगोलिक अध्ययन न केवल सरल हो जाता है बल्कि किसी प्रदेश के भौतिक व मानवीय तत्त्वों के अन्तर्सम्बन्धों का भी ज्ञान हो जाता है। इसीलिए भूगोल को समाकलन या संश्लेषण का विज्ञान (A science of Integration or Synthesis) भी कहा जाता है। भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन एच०जे० मैकिण्डर ने किया था। उनके अनुसार भौतिक भूगोल के बिना मानव भूगोल का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 6.
भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर अवतरित होने पर आदि मानव का वास्ता सबसे पहले सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी प्रकृति से पड़ा था। प्रकृति उसके लिए अनेक प्रकार के कौतुहलों का पिटारा था। तार्किक ज्ञान और तकनीकी शक्ति के अभाव के कारण आदि मानव जल-थल और नभ के रहस्यों से भयभीत रहता था। प्रकृति के इन्हीं रहस्यों की वैज्ञानिक व्याख्या का प्रयास करने के कारण भूगोल ज्ञान के प्राचीनतम विषय के रूप में जाना जाता है।

सांस्कृतिक विकास के साथ वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना बलवती होने लगी और विश्व के बारे में अधिकाधिक सूचनाओं के प्रति जिज्ञासा बढ़ने लगी। सूचनाओं के अम्बार ने विशिष्टीकरण को अनिवार्य बना दिया। इससे भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र जैसे विषय उभरकर सामने आए जो कभी भूगोल नामक एकीकृत विषय के अंग हुआ करते थे। इसी आधार पर भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
विशिष्टीकरण, जिसने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया, की जरूरत क्यों महसूस हुई थी?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में अनेक यात्राएँ, खोजें तथा आविष्कार हुए। इससे देशों और लोगों के बारे में जानकारी कई गुना बढ़ गई। साथ ही वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना भी बलवती होने लगी थी। पृथ्वी तल पर पाई जाने वाली मानवीय व प्राकृतिक परिघटनाओं की व्याख्या वैज्ञानिक आधार पर होने लगी। इन दशाओं ने ज्ञान के अम्बार का विशिष्टीकरण अनिवार्य बना दिया ताकि प्रकृति के हर छोटे-बड़े पक्ष की बारीकी से व्याख्या की जा सके। इस विशिष्टीकरण ने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया।

प्रश्न 8.
भूगोल में ऐसे कौन-से दो प्रमुख क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल को सर्वाधिक प्रभावित किया?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल में जो पहली क्रान्ति आई उसका नाम मात्रात्मक क्रान्ति था। 1960 और 1970 कों में आई मात्रात्मक विधियों और तकनीकों की इस क्रान्ति ने मानव व प्राकृतिक परिघटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। भूगोलवेत्ताओं में मात्रात्मक विधियों का प्रयोग उस समय जनन (C कारण यह था कि इन प्रविधियों के सहारे भूगोलवेत्ताओं के लिए बहुत बड़ी संख्या में कारकों और प्रक्रियाओं को साथ लेकर सार्थक परिणाम निकालना आसान हो गया था।

भूगोल में दूसरी क्रान्ति 1990 के दशक में आई। इसे हम सूचना क्रान्ति के नाम से जानते हैं। सूचना क्रान्ति का आधार वास्तव में सुदूर संवेदन (Remote Sensing) है जिसमें अन्तरिक्ष में हज़ारों मीटर की ऊँचाई पर स्थापित कृत्रिम उपग्रह से अथवा वायुयान से फोटोग्राफ लिए जाते हैं जिनके आधार पर अनेक विषयों से जुड़े आँकड़ों व सूचनाओं की रचना की जाती है। भूगोल में आई इन दोनों क्रान्तियों ने भूगोल के स्वरूप को ही बदल दिया है।

प्रश्न 9.
भूगोल में आई नूतन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से भूगोल के दृष्टिकोण में आई परिपक्वता के कारण भूगोल में कुछ नई प्रवृत्तियाँ उभरी हैं जो अग्रलिखित हैं
उत्तर:

  1. भूगोल का विकास एक ऐसे अन्तर-वैज्ञानिक (Inter-disciplinary) विषय के रूप में हो रहा है जो भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
  2. प्रदेशों के समाकलित अध्ययन और संसाधन मूल्यांकन के लिए भूगोल की भूमिका बढ़ रही है।
  3. मानवीय समृद्धि के लिए बनी आर्थिक विकास योजनाओं में भूगोल का अधिकाधिक प्रयोग बढ़ रहा है।
  4. मॉडल निर्माण (Model Building) से प्रस्तावित योजनाओं के परिणामों व स्वरूप का पूर्वानुमान लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  5. कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग से मानचित्र विज्ञान की तकनीकें प्रखर हुई हैं।
  6. भू-क्षेत्रों के अध्ययन में उपग्रह-फोटोग्रामेटरी का प्रयोग बढ़ रहा है।

प्रश्न 10.
नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
नियतिवाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
अथवा
“मानव प्रकृति का दास है।” नियतिवाद के सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटज़ेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटजेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटजेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों . में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव-उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।।

प्रश्न 11.
सम्भावनावाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सम्भावनावाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
उत्तर:
फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है, परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज़ तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे। इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं।

प्रश्न 12.
“भूगोल, प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान दोनों ही है” इस कथन की व्याख्या संक्षेप में करें।
उत्तर:
भूगोल एक समाकलन का विषय है। भूगोल अपनी विषय-सामग्री प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों से प्राप्त करता है। इसका अपना एक अलग दृष्टिकोण है, इसलिए यह अन्य विज्ञानों से भिन्न है। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र का भौगोलिक चित्र प्रस्तुत करने के लिए भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के विभिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता है। किसी क्षेत्र के भौतिक वातावरण के अध्ययन के लिए भौतिकी तथा रसायन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञानों का सहारा लेना पड़ता है।

मानवीय-क्रियाओं का अध्ययन करने के लिए सामाजिक विज्ञान सहायक है। सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन से भौतिक तत्त्वों के कृषि और मानव बस्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी प्राप्त होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भूगोल, प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान दोनों में ही कड़ी का कार्य करता है, इसलिए भूगोल को दोनों वर्गों के विज्ञानों में माना जाता है।

प्रश्न 13.
भूगोल मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
भूगोल अन्य सामाजिक-विज्ञानों; जैसे इतिहास, नागरिक-शास्त्र तथा समाजशास्त्र की तरह मनुष्य को एक अच्छा नागरिक बनाने में निम्नलिखित आधारों पर सहायक है

  • भूगोल से मनुष्य को भौतिक पर्यावरण और मानवीय क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
  • इस विषय के अध्ययन से अन्तर्राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • भूगोल का मूल-मन्त्र स्थान है। इसके अन्तर्गत पृथ्वी का मानव के निवास स्थान के रूप में अध्ययन किया जाता है इसलिए यह विश्व की विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएँ दूर करने में सहायक है।
  • मानव का आदर्श जीवन प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रयोग पर निर्भर करता है। इसलिए यह मानव के कल्याण हेतु विश्व के संसाधनों का उचित प्रयोग करने में सहायक है।
  • भूगोल के अध्ययन से हमें विश्व के विभिन्न देशों के विकास स्तर में अन्तर होने की जानकारी प्राप्त होती है तथा भूगोल विकास स्तर में अन्तर कम करने में सहायक है।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भूगोल भी अन्य विषयों की तरह मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 14.
भूगोल में प्रादेशीकरण (Regionalization) के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल उन कारकों की पहचान करता है जो संयुक्त रूप से किसी प्रदेश को विशिष्ट स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘प्रदेश’ भमि का वह विशिष्ट भाग होता है जो किसी एक से अधिक विशेषताओं के आधार पर अपने निकटवर्ती भू-भागों से भिन्न होता है। ये विशेषताएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती हैं; जैसे भौतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य। यदि किसी प्रदेश को परिभाषित करने का आधार उच्चावच है तो उसे भौतिक प्रदेश और यदि आधार आर्थिक है (जैसे-औद्योगिक संकुल) तो उसे आर्थिक प्रदेश कहा जाएगा।

अतः किसी भू-भाग में भौगोलिक परिघटना की एकरूपता (Uniformity) अथवा समांगता (Homogeneity) के आधार पर प्रदेशों व उप-प्रदेशों के निर्धारण को प्रादेशीकरण कहते हैं। ये प्रदेश संस्पर्शी (Contiguous) भी हो सकते हैं और दूर-दूर स्थित भी हो सकते हैं। विभिन्न भौगोलिक प्रदेशों के विकास-स्तर का तुलनात्मक अध्ययन प्रादेशिक विधि द्वारा ही सम्भव है। इससे क्षेत्रीय आर्थिक विषमताओं के कारणों का पता लगाकर उनके निराकरण की राह निकाली जा सकती है।

प्रश्न 15.
“भूगोल भू-पृष्ठ पर बदलते हुए लक्षणों का अध्ययन है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निरन्तर बदल रहा है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन कहीं मन्द है तो कहीं तीव्र है, कहीं दृश्य है तो कहीं अदृश्य । सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण जैसे स्थलाकृतियाँ; जैसे पर्वत, पठार, मैदान इत्यादि धीरे-धीरे परिवर्तित होते हैं जबकि सांस्कृतिक लक्षण; जैसे भवन, सड़कें, फसलें इत्यादि शीघ्रता से बदलते रहते हैं। भूगोल इन बदलते हुए लक्षणों की उत्पत्ति तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। वह इन लक्षणों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
भौतिक भूगोल के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल अपने आप में एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं है, बल्कि यह अनेक विज्ञानों से ली हुई ऐसी जानकारी का संकलन है जिसकी सहायता से भू-पृष्ठ पर भिन्न-भिन्न स्थानों में भौतिक परिवेश की भिन्नता तथा इस भिन्न जाता है। मानव द्वारा किया गया सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास प्राकृतिक पर्यावरण की पृष्ठभूमि में ही संभव हो पाता है। प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें हम स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल तथा जैवमण्डल का अध्ययन करते हैं ही मनुष्य के सामने प्राकृतिक संसाधनों तथा संभावनाओं का चित्र प्रस्तुत करता है। इन्हीं संसाधनों का उपयोग मनुष्य अपने तकनीकी विकास के स्तर के अनुसार कर पाता है।

भौतिक भूगोल न केवल पेड़-पौधों, पशुओं, सूक्ष्म-जीवों, मनुष्यों, खनिजों, ईंधन के स्रोतों, मृदा, जलवायु, जलीय विस्तारों तथा भू-आकारों का अध्ययन करता है बल्कि अन्तर्जात बलों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है। भौतिक भूगोल वास्तव में वह आधारी चट्टान है जिस पर मनुष्य विकास की मूर्ति को स्थापित करता है। भौतिक भूगोल के ज्ञान के बिना विश्व रंगमंच पर मनुष्य कोई भूमिका नहीं निभा सकता।

प्रश्न 17.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण तथा आधुनिक दृष्टिकोण में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भूगोल के प्राचीन तथा आधुनिक दृष्टिकोण में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भूगोल का प्राचीन दृष्टिकोण (Classical Approach)भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)
1. 18 वीं शताब्दी तक भूगोल द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण को प्राचीन दृष्टिकोण कहा जाता है।1. भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण का विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ।
2. इस दृष्टिकोण के अनुसार भूगोल मात्र आँकड़ों को एकत्रित करने वाला विवरणात्मक शास्त्र है।2. भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण पृथ्वी की घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसे प्रश्नों के उत्तर देता है।
3. प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी था।3. आधुनिक दृष्टिकोण समाकलित है।

प्रश्न 18.
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

आगमन पद्धति (Inductive Method)निगमन पद्धति (Deductive Method)
1. आगमन पद्धति में एकत्रित तथ्यों तथा उनकी समानता के आधार पर नियम बनाए जाते हैं।1. निगमनं पद्धति में बनाए गए नियमों या कहे गए आधार वाक्य से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
2. यह विधि विशेष से सामान्य (From Specific to General) के सिद्धान्त पर आधारित है।2. यह विधि सामान्य से विशेष (From General To Specific) के सिद्धान्त पर आधारित है।
3. आगमन पद्धति में निष्कर्षों और नियमों का अनुभवों पर परीक्षण किया जाता है।3. निगमन पद्धति में कुछ अनुभवों फ्के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 19.
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में निम्नलिखित अन्तर हैं-

क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography)प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)
1. क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्त्व का अध्ययन होता है।1. प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्तों के सन्दर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।
2. क्रमबद्ध भूगोल अध्ययन का एकाकी (Isolated) रूप प्रस्तुत करता है।2. प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का समाकलित (Integrated) रूप प्रस्तुत करता है।
3. क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होता है।3. प्रादेशिक भूगोल में अध्ययन भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है।
4. क्रमबद्ध भूगोल किसी तत्त्व विशेष के क्षेत्रीय वितरण,4. प्रादेशिक भूगोल किसी प्रदेश विशेष के सभी भौगोलिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा करता है।5. प्रादेशिक भूगोल में प्राकृतिक तत्चों के आधार पर प्रदेशों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारण की यह प्रक्रिया प्रादेशीकरण (Regionalisation) कहलाती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूगोल के वैज्ञानिक तथा मानवीय आधार की रचना किस प्रकार हुई? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूगोल में प्राचीन यूनानी तथा भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
एक विषय के रूप में भूगोल के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोल के वैज्ञानिक आधार की रचना-भूगोल को एक ‘विज्ञान’ के रूप में स्थापित करने का श्रेय मुख्यतः यूनान, भारत और अरब के विद्वानों को जाता है। इन्होंने खगोल स्थित पिण्डों का वेध (Astronomical Observations) करके ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की स्थिति को जानने का प्रयत्न किया और साथ ही मानव-जीवन को प्रभावित करने वाले धरती और आकाश के अनेक रहस्यों को भेदने का प्रयास किया।

यूनानी विद्वान् पाइथागोरस (Pythagoras) ने ईसा से कई शताब्दी पहले पृथ्वी को गोलाकार समझते हुए इसे अन्य ग्रहों के साथ एक केन्द्रीय आग’ (यहाँ केन्द्रीय आग से मतलब सूर्य से रहा होगा।) के चारों ओर घूमता हुआ बताया।

हेरोडोटस (484-425 ईसा पूर्व) ने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सकारण वर्णन किया। उन्होंने ही सबसे पहले ‘मिस्र को नील नदी का उपहार’ (Egypt is the Gift of Nile) बताया था।

हिप्पोक्रेट्स (460-377 ईसा पूर्व) नामक यूनानी भूगोलशास्त्री ने सर्वप्रथम वातावरण का मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया। अरस्तु (384-322 ईसा पूर्व) ने पृथ्वी के कटिबन्धों, उसकी गोलीय (Spherical) आकृति के वर्णन तथा ग्रहण लगने की दशाओं (Eclipses) की व्याख्या करके गणितीय भूगोल को संवर्धित किया।

इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ईसा पूर्व) ने मिस्र में साईने व अलेग्जेन्द्रिया नामक स्थानों पर 21 जून को दोपहर में सूर्य की किरणों का कोण मापकर पृथ्वी की परिधि (Circumference) का लगभग सही आकलन कर लिया था।

ईसा की दूसरी शती में टॉल्मी ने अक्षांश-देशान्तरों पर आधारित विश्व का पहला मानचित्र तैयार किया जिससे सैकड़ों वर्षों तक मानचित्र कला प्रभावित रही।

भारत में ईसा की पाँचवीं शताब्दी के आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, आठवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त तथा बारहवीं शताब्दी के भास्कराचार्य जैसे विद्वानों ने न्यूटन से कई शताब्दी पहले ही गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त, सूर्य की स्थिरता, पृथ्वी के अक्ष-भ्रमण (Rotation) तथा कक्ष-भ्रमण (Revolution) से जुड़े सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर लिया था।

ईसा की तीसरी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी के बीच के पूर्व-मध्यकाल में अरब के विद्वान् प्राचीन भौगोलिक ज्ञान का संरक्षण तो करते रहे किन्तु इस दौरान ईसाई विश्व (Christian world) में भूगोल का कोई विशेष विकास नहीं हो पाया। तेरहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance or Fact Finding Age) कहलाया, जिसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया। इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था, क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों एलेक्जैण्डर वान हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) तथा कार्ल रिटर (Karl Ritter) ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ। उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दर-दराज के भ-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

भूगोल के मानवीय आधार की रचना (Human Basis of Geography) सन् 1870 में जर्मनी के भूगोलवेत्ता रेटज़ेल (Ratzel) का ग्रन्थ एन्थ्रोपोज्यॉग्राफी (Anthro-pogeographie) प्रकाशित हुआ। इसमें मानव और प्रकृति के सम्बन्धों को भूगोल से जोड़कर इस विषय को मानवीय आधार प्रदान किया गया। इस प्रकार भूगोल केवल स्थानों का वर्णन मात्र नहीं रहा बल्कि विभिन्न प्राकृतिक परिस्थितियों में मानव के प्रत्युत्तरों (Responses) की भी व्याख्या करने लगा।

प्रश्न 2.
भूगोल के अध्ययन की पद्धतियों एवं तकनीकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भूगोल की पद्धतियाँ (Methods of Geography)-भूगोल अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित पद्धतियों को अपनाता है
1. वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method)-एक क्रमबद्ध ढंग से प्रासंगिक तथ्यों व आँकड़ों को इकट्ठा करना, समानता के आधार पर उनका वर्गीकरण करना तथा तर्क (Logic) के आधार पर कुछ अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकालना ही वैज्ञानिक पद्धति है। अन्य विज्ञानों की भांति भूगोल भी तर्क और वैज्ञानिक पद्धति पर आश्रित है। इस पद्धति में निम्नलिखित चरण सम्मिलित होते हैं
(1) परिकल्पना (Hypothesis) सर्वप्रथम अध्ययन की जाने वाली समस्या या परिस्थिति के बारे में आरम्भिक विचारों का एक ताना-बाना बुना जाता है।

(2) अवलोकन (Observation)-परिकल्पना के बाद चुने हुए क्षेत्र में घटनाओं का निरपेक्ष अवलोकन किया जाता है, ताकि भौगोलिक अध्ययन सही व सच्चा हो सके। इन घटनाओं में पाई जाने वाली समानताओं अथवा ऐक्य (Universality) का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(3) सत्यापन (Verification) तत्पश्चात् किए गए अवलोकनों व पाई गई घटनाओं की सत्यता को परखा जाता है। भौतिक विज्ञानों में तो यह सत्यापन प्रयोगशालाओं में होता है, जबकि सामाजिक विज्ञानों की प्रयोगशाला स्वयं समाज होता है।

(4) परिणामों का वर्गीकरण (Classification of Results) ऐसे परिणाम जो किसी भी देश और काल में सत्य सिद्ध होते रहें, नियम (Rule) कहलाते हैं। जो परिणाम सत्य के आस-पास तो हों परन्तु सभी परिस्थितियों में पूर्ण सत्य सिद्ध न हो सकें, उन्हें सिद्धान्त (Principle) कहा जाता है।

2. आगमन तथा निगमन पद्धतियाँ (Inductive and Deductive Methods)-आगमन पद्धति के अन्तर्गत तथ्यों का एक समुच्चय (Set of facts) इकट्ठा कर लिया जाता है और इन तथ्यों में पाई जाने वाली समानताओं के आधार पर नियम और सिद्धान्त बनाए जाते हैं। इस प्रकार आगमन विधि तथ्यों से सिद्धान्त या विशेष से सामान्य (From specific to general) की विधि है।

निगमन पद्धति में किसी सिद्धान्त या नियम अर्थात् ‘कहे गए आधार वाक्य’ को ध्यान में रखकर तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है। यह विधि सामान्य से विशेष (From general to specific) पर आधारित है।।

भूगोल की तकनीकें (Techniques of Geography) तथ्यों के विश्लेषण (Analysis), प्रक्रम (Processing) और व्याख्या (Interpret) करने के तरीकों को तकनीक कहा जाता है। किसी भी तकनीक का चुनाव और उसका प्रभाव भूगोलवेत्ता के ज्ञान और कुशलता पर निर्भर करता है। भौगोलिक तथ्यों को आसानी से समझाने के लिए भूगोलवेत्ता निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग करता है
(1) मानचित्रण विधि (Cartographic Method) इस विधि में मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है। सूचनाओं व आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाकर सार्थक निष्कर्ष निकाले जाते हैं और उन निष्कर्षों की व्याख्या भी की जाती है।

(2) मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) इस विधि में सांख्यिकी के प्रयोग और गणितीय मॉडल निर्माण (Mathematical Model Building) पर बल दिया जाता है। इसमें आँकड़ों का संकलन, उनका वर्गीकरण, विश्लेषण तथा उनसे महत्त्वपूर्ण सार्थक निष्कर्ष निकालना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 3.
भूगोल के अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भौगोलिक समस्या के अध्ययन की कौन-सी दो विधियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी प्रदेश के भूगोल का अध्ययन निम्नलिखित दो विधियों से किया जा सकता है-

  • क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach)
  • प्रादेशिक विधि (Regional Approach)

1. क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach) इस विधि के अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँटकर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, ‘धरातल’ प्रकरण (Topic) को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या सारे संसार का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मिट्टी, खनिज, कृषि, उद्योग, परिवहन, जनसंख्या, व्यापार, ज्वार-भाटा महासागरीय धाराएँ इत्यादि तत्त्वों का क्षेत्र-विशेष पर पृथक्-पृथक् अध्ययन किया जाता है।

अतः क्रमबद्ध विधि में हमारा ध्यान प्रदेश के किसी एक तत्त्व या तत्त्व सम्मिश्रण (Element Complex) के अध्ययन पर रहता है, उस क्षेत्र की अन्य चीज़ों पर नहीं; इसी कारण इस विधि को प्रकरण विधि (Topical Method) भी कहते हैं। क्रमबद्ध विधि की उपयोगिता यह है कि इसके द्वारा हम समस्त यथार्थता (Total reality) में से कुछ चुनिन्दा (Selective) तत्त्वों के वितरण और विश्लेषण पर ध्यान दे सकते हैं।

2. प्रादेशिक विधि (Regional Approach) भू-तल पर भौगोलिक दशाएँ सर्वत्र एक-जैसी नहीं पाई जातीं। अतः इस विधि के द्वारा भूगोल का अध्ययन करने के लिए हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Regions) में बाँटते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित (Integrated) अध्ययन करते हैं। भू-पृष्ठ पर पाई जाने वाली स्थानिक विभिन्नताओं (Areal differentiations) के कारण कोई भी दो क्षेत्र एक-जैसे नहीं होते परन्तु कई बार हम देखते हैं कि पृथ्वी तल पर आपस में बहुत दूर स्थित कुछ प्रदेशों के भौगोलिक परिवेश में काफ़ी समांगता (Homogeneity) पाई जाती है जिससे इन सभी प्रदेशों में रहने वाले लोगों का जीवन-यापन, रहन-सहन व आर्थिक क्रियाएँ लगभग एक-जैसी होती हैं।

उदाहरणतः, दक्षिणी अमेरिका के ब्राज़ील देश में स्थित अमेजन बेसिन जैसा भौगोलिक वातावरण वहाँ से हज़ारों किलोमीटर दूर अफ्रीका के कांगो और जायरे बेसिन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के मलेशिया, इण्डोनेशिया और फिलीपीन्स द्वीप-समूह में भी पाया जाता है। इन सभी भू-भागों को एक प्राकृतिक प्रदेश (Natural region) में सम्मिलित कर लिया जाता है। इस खण्ड को हम भूमध्य रेखीय प्रदेश कहते हैं। इस एक प्राकृतिक खण्ड के दूर-दूर स्थित सभी भू-भागों में पाई जाने वाली लगभग एक जैसी भौगोलिक और मानवीय दशाओं के अध्ययन को ही प्रादेशिक विधि कहते हैं।

इसी प्रकार भारत को प्राकृतिक खण्डों में बाँट कर किए गए अध्ययन को भारत का प्रादेशिक भूगोल कहा जाएगा। प्रादेशिक भूगोल में समस्त भारत का अध्ययन करना आवश्यक नहीं है। हम गंगा का निम्न मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश, असम घाटी, मालाबार तट व छोटा नागपुर पठार जैसे कुछ या इनमें से एक प्रदेश को लेकर भी वहाँ के धरातल, जलवायु, कृषि, खनिज, व्यापार, उद्योग, जनसंख्या आदि का अध्ययन करें तो यह प्रादेशिक विधि कहलाएगी। अतः स्पष्ट है कि प्रादेशिक विधि में हम विश्व या किसी बड़े भू-भाग को भौगोलिक प्रदेशों में बाँटकर उनका अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 4.
“भूगोल का सम्बन्ध क्रमबद्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों से है।” उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
भूगोल का अन्य विषयों के साथ क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“भौतिक भूगोल अथवा मानव भूगोल के अतिरिक्त कोई भूगोल नहीं हो सकता।” उचित उदाहरण देकर इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
भूगोल भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाले एक पुल (Bridge) का कार्य करता है। इसका कारण यह है कि भूगोल अपनी अन्तर्वस्तु (Contents) या विषय-सामग्री के लिए काफी हद तक अन्य विज्ञानों पर निर्भर करता है और बदले में अपने ज्ञान के द्वारा अनेक विद्वानों के विकास में योगदान देता है। इस प्रकार वर्तमान में भूगोल एक अन्तअनुशासनिक (Interdisciplinary) विषय बनकर उभरा है। भूगोल का जिन विषयों के साथ निकट का सम्बन्ध है, उन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  • भूगोल तथा भौतिक अथवा प्राकृतिक विज्ञान (Geography and Physical or Natural Science)
  • भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)

(क) भूगोल तथा भौतिक विज्ञान (Geography and Physical Science) भौतिक या प्राकृतिक विज्ञानों को क्रमबद्ध विज्ञान (Systematic Science) भी कहा जाता है। इन विज्ञानों के नियमों को प्रयोगशाला के अन्दर और बाहर दोनों जगह सिद्ध किया जा सकता है। भूगोल का सम्बन्ध भौतिक विज्ञानों की निम्नलिखित प्रमुख शाखाओं से है-
1. भूगोल तथा खगोल विज्ञान (Geography and Astronomy) ब्रह्माण्ड (Universe) की उत्पत्ति, इसमें व्याप्त अनेक सौर-मण्डल (Solar System), प्रत्येक सौर-मण्डल में उपस्थित अनेक तारे व अन्य आकाशीय पिण्ड, उनकी गतियाँ, सूर्य की किरणों का उत्तरायण व दक्षिणायन होना, ऋतु परिवर्तन, दिन-रात का होना जैसी अनेक प्राकृतिक घटनाओं के समुचित उत्तर के लिए भूगोल खगोल विज्ञान का सहारा लेता है। खगोल विज्ञान स्वयं गणित और भौतिकी के नियमों का अनुसरण करता है।

2. भूगोल तथा गणित (Geography and Mathematics)-विभिन्न स्थानों पर समय और समय-अन्तराल की गणना, अक्षांश-देशान्तर के निर्धारण, सांख्यिकीय आरेखों, प्रक्षेपों व ग्राफ़ इत्यादि की रचना के लिए गणित का आधारभूत ज्ञान अनिवार्य है। भू-तल पर होने वाली समस्त आर्थिक क्रियाओं व जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन गणित के बिना सम्भव नहीं है।

3. भूगोल तथा भौतिकी (Geography and Physics)-भौतिकी के नियमों का ज्ञान पृथ्वी की गतियों, ज्वालामुखी, भूकम्प, ज्वार-भाटा, अपक्षय और अपरदन जैसी अनेक प्रक्रियाओं को समझने में भूगोल की सहायता करता है।

4. भूगोल तथा भू-गर्भ विज्ञान (Geography and Geology)-भू-गर्भ विज्ञान पृथ्वी की उत्पत्ति, भू-आकृतियों का निर्माण, खनिजों व चट्टानों की उत्पत्ति, भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी घटनाओं का अध्ययन करता है। भूगोल इन तत्त्वों के वितरण और मानव पर इनके प्रभावों का अध्ययन करता है। भूगोल और भू-गर्भ विज्ञान के गहरे सम्बन्धों के बारे में भूगोलवेत्ता डब्ल्यू०एम० डेविस (W.M. Davis) ने कहा था, “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भूगर्भ विज्ञान।”

5. भूगोल तथा रसायन विज्ञान (Geography and Chemistry) वायुमण्डल की विभिन्न गैसों, विभिन्न खनिजों, ऊर्जा के संसाधनों, मृदा व चट्टानों के गुणों के बारे में जानकारी हेतु भूगोल रसायन विज्ञान पर निर्भर रहता है।

6. भूगोल तथा वनस्पति विज्ञान (Geography and Botany)-भूगोल वनस्पति के प्रकार और उसके आर्थिक महत्त्व का अध्ययन करता है। वनस्पति विज्ञान में वृक्षों व पादप-समूह की जीवनी (Plant life) का अध्ययन होता है। वनस्पति जगत (Flora) के आधारभूत ज्ञान के लिए भूगोल वनस्पति विज्ञान से सम्बन्ध रखता है।

7. भूगोल तथा प्राणी विज्ञान (Geography and Zoology)-प्राणी विज्ञान जन्तुओं (Fauna) की विभिन्न प्रजातियों (Species) व उनके जीवन के बारे में अध्ययन करता है। भूगोल स्थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं पर भौगोलिक तत्त्वों के प्रभाव और पर्यावरण के साथ उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। पारिस्थितिकी (Ecology) का अध्ययन करते समय हम जन्तुओं के विश्व-वितरण का भी अध्ययन करते हैं। इस प्रकार भूगोल और प्राणी विज्ञान में सम्बन्ध है।

इसके अतिरिक्त भूगोल का सम्बन्ध मृदा विज्ञान व जल विज्ञान जैसे क्रमबद्ध विज्ञानों से भी है।

(ख) भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)
1. भूगोल तथा अर्थशास्त्र (Geography and Economics) भूगोल के उपविषय आर्थिक भूगोल में हम विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में मानव की आर्थिक क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करते हैं, जबकि अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के साधनों की व्याख्या करता है। आर्थिक भूगोल और अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु बहुत कुछ मिलती है, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है।

2. भूगोल तथा इतिहास (Geography and History)-भूगोल स्थान का और इतिहास समय का ज्ञान है तथा कोई भी सामाजिक विज्ञान देश और काल के सन्दर्भ के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसी कारण वूलरिज़ तथा ईस्ट (Wooldridge and East) ने कहा था, “वास्तव में भूगोल, इतिहास से, जिसने इसे बनाया है, अलग नहीं हो सकता।” भूगोल और इतिहास न केवल एक दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं बल्कि एक-दूसरे के पूरक भी हैं। किसी भी प्रदेश की वर्तमान दशा वहाँ पर अतीत में हो चुके घटना-क्रम की उपज होती है क्योंकि भूगोल वह मंच प्रदान करता है, जिस पर इतिहास का नाटक खेला जाता है।

3. भूगोल तथा समाजशास्त्र (Geography and Sociology)-मानव भूगोल और समाजशास्त्र दोनों विषयों में साम व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक अवस्थाओं का अध्ययन होता है। दोनों ही विषय भू-तल पर पाए जाने वाले मानव समु सामाजिक संगठन, परिवार-प्रणाली, श्रम-विभाजन, रीति-रिवाज, लोकनीति व प्रथाओं का अध्ययन करते हैं।

4. भूगोल तथा सैन्य विज्ञान (Geography and Military Science) युद्ध भूमि की भौगोलिक स्थिति; जैसे पहाड़, दलदल, मरुस्थल, जंगल, समुद्र इत्यादि तथा वहाँ की जलवायु की जानकारी सेना के लिए अनिवार्य है। सैन्य विज्ञान में हम युद्ध क्षेत्रों, युद्ध कलाओं, युद्धों के कारणों व प्रभावों की व्याख्या करते हैं। इस आधार पर भूगोल का सैन्य विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है। दोनों ही विषयों में राष्ट्रों की जनशक्ति, आर्थिक शक्ति, औद्योगिक विकास का अध्ययन किया जाता है। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर बने सीमावर्ती क्षेत्रों के मानचित्र देश की सुरक्षा व युद्ध की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं।

5. भूगोल तथा राजनीतिक विज्ञान (Geography and Political Science) राजनीतिक विज्ञान भिन्न-भिन्न राज्य-व्यवस्थाओं व संगठनों का अध्ययन करता है। प्रत्येक राज्य-व्यवस्था अपनी राजनीतिक सोच के अनुसार ही संसाधनों का विकास करती है। भूगोल संसाधन, उपयोग और संरक्षण से जुड़ा होने के कारण विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था से निरपेक्ष नहीं हो सकता। राज्यों व राष्ट्रों की सीमाओं में होने वाले परिवर्तन से उत्पन्न परिणामों का अध्ययन भी दोनों विषय अपने-अपने दृष्टिकोण से करते हैं। दोनों ही विषय भू-राजनीति (Geo-politics) व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 5.
“वास्तव में न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूर्ण नियन्त्रण है और न ही मनुष्य प्रकृति का विजेता है।” नियतिवाद और सम्भववाद के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
मनुष्य और प्रकृति के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आधुनिक भूगोल का आधार बना। मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर दो पृथक् विचारधाराएँ विकसित हुईं

  • नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism)
  • सम्भववाद (Possibilism)

1. जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटजेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटज़ेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटज़ेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया है। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।

2. फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे।

इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति, अध्यवसाय तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं। फैक्रे के अनुसार, “मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई सम्भावनाओं का स्वामी होता है तथा उसके प्रयोग का निर्णायक होता है।” मानव की सूझ-बूझ के द्वारा विपरीत परिस्थितियों में किए गए परिवर्तनों के अनेक उदाहरण प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान हैं।

थार मरुस्थल में नहर पहुँचाना, नीदरलैण्ड्स में समुद्र को पीछे धकेलक करना, तिब्बत-लेह मार्ग के रूप में विश्व की सबसे ऊँची सड़क का निर्माण, उफनती नदियों पर विशालकाय पुल, बाढ़ को रोकने वाले हजारों बाँध, पहाड़ों की तीव्र ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती तथा वायुमण्डल से नाइट्रोजन खींचने के संयन्त्र और ध्वनि से तेज चलने वाले यान सिद्ध करते हैं कि मनुष्य विकसित तकनीक के सहारे भौतिक वातावरण या नियति को बदलने वाला सर्वश्रेष्ठ कारक है। वास्तव में, न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूरा नियन्त्रण है और न ही मनुष्य ही प्रकृति का विजेता है; दोनों का एक-दूसरे से क्रियात्मक सम्बन्ध है। प्रकृति का सहयोग और मनुष्य की संकल्प शक्ति दोनों ही उन्नति का आधार हैं। बीच के मार्ग की इस विचारधारा को नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism) भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके उप-विषयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल (Physical Geography) भूगोल की वह शाखा जिसमें पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक यन किया जाता है, ‘भौतिक भूगोल’ कहलाती है। भौतिक पर्यावरण के तत्त्व भू-आकार, नदियाँ, जलवाय, प्राकृतिक वनस्पति, मृदा, जीव-जन्तु व खनिज इत्यादि होते हैं। इन प्राकृतिक तत्त्वों का निर्माण प्रकृति करती है। इनकी रचना में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। भौतिक भूगोल में भौतिक पर्यावरण सभी महत्त्वपूर्ण अंगों-स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल का अध्ययन होता है। इसी आधार पर होम्स ने कहा था, “स्वयं भौतिक पर्यावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है।”

भौतिक भूगोल के उप-विषय (Sub-Subjects of Physical Geography)-भौतिक भूगोल के उप-विषय इस प्रकार हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) – इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान (Climatology) – जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान (Hydrology) भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान (Oceanography) इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean deposits) का अध्ययन किया जाता है।

5. मृदा भूगोल (Soil Geography or Pedology) इसमें हम मिट्टी का निर्माण, उसके प्रकार, गुण, मिट्टियों का वितरण, उर्वरता (Fertility) तथा उपयोग इत्यादि का अध्ययन करते हैं।

6. जैव भूगोल (Bio-Geography) यह उप-शाखा पृथ्वी तल पर जीवों और वनस्पति (Fauna and Flora) के विकास, वर्गीकरण और वितरण का मानव के सन्दर्भ में अध्ययन करती है।

प्रश्न 7.
मानव भूगोल क्या होता है? मानव भूगोल के उप-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल (Human Geography) भूगोल की वह शाखा, जो भौतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों या लक्षणों का अध्ययन करती है, उसे ‘मानव भूगोल’ कहा जाता है। इन मानवीय लक्षणों की रचना मनुष्य अपनी सुख-सुविधा और विकास के लिए करता है। गाँव, नगर, कृषि, कारखाने, बाँध, सड़कें, पुल, रेलें, नहरें व संस्थाएँ आदि मानवीय लक्षणों के उदाहरण हैं। मानव-निर्मित परिस्थितियों से ही मानव के सांस्कृतिक विकास की झलक मिलती है।

मानव की सभी विकास क्रियात्मक गतिविधियों पर भौतिक वातावरण का भारी असर पड़ता है। इसीलिए मानव भौतिक परिवेश से व्यापक अनुकूलन करके ही सांस्कृतिक परिवेश की रचना करता है। विडाल डी ला ब्लाश के अनुसार, “मानव भूगोल में पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का संयुक्त ज्ञान शामिल होता है।” एलन चर्चिल सेम्पल (Ellen Churchill Sample) के अनुसार, “मानव भूगोल क्रियाशील मानव और अस्थायी पृथ्वी के आपसी बदलते हुए सम्बन्धों का अध्ययन है।”

मानव भूगोल के उप-क्षेत्र (Sub-Fields of Human Geography) मानव भूगोल के उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-
1. आर्थिक भूगोल (Economic Geography) एन०जी० पाउण्ड्स के अनुसार, “आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करता है।” आर्थिक क्रियाएँ मुख्यतः उत्पादन, वितरण, उपभोग और विनिमय से सम्बन्धित होती हैं।

2. सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) मानव भूगोल की इस उप-शाखा में समय और स्थान के सन्दर्भ में मनुष्य के सांस्कृतिक पक्षों-आवास, भोजन, जीने का ढंग, आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा, शिक्षा, सुरक्षा, धर्म, सामाजिक संस्थाओं और दृष्टिकोणों का अध्ययन किया जाता है।

3. सामाजिक भूगोल (Social Geography)-सामाजिक भूगोल में मानव का एकाकी रूप से अध्ययन न करते हुए विभिन्न मानव समूहों और उनके पर्यावरण के बीच सम्बन्धों की समीक्षा की जाती है।

4. जनसंख्या भूगोल (Population Geography) इस उप-शाखा में कुल जनसंख्या, जनसंख्या का वितरण, घनत्व, जन्म एवं मृत्यु-दर, साक्षरता, । अनुपात इत्यादि जनांकिकीय विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

5. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)-इसके अन्तर्गत हम विभिन्न प्रदेशों में होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों का समय के संदर्भ में अध्ययन करते हैं। हार्टशॉर्न के अनुसार, “ऐतिहासिक भूगोल भूतकाल का भूगोल है।” ऐतिहासिक भूगोल किसी प्रदेश के वर्तमान स्वरूप को समझने में हमारी सहायता करता है।

6. राजनीतिक भूगोल (Political Geography) इस उप-शाखा के अन्तर्गत भू-राजनीति, राजनीतिक व्यवस्था, विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का संसाधनों के उपयोग पर पड़ने वाले प्रभावों, राज्य और राष्ट्रीय सीमाओं, स्थानीय स्वशासन, प्रादेशिक व राष्ट्रीय नियोजन का अध्ययन किया जाता है।

इनके अतिरिक्त मानव भूगोल के अन्य उप-क्षेत्र आवासीय भूगोल, नगरीय भूगोल, चिकित्सा भूगोल, संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल व परिवहन भूगोल इत्यादि हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

HBSE 11th Class Geography जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) जंतु
(B) पौधे
(C) पौधे और प्राणी
(D) सभी जीवधारी
उत्तर:
(D) सभी जीवधारी

2. निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौन सी हैं?
(A) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(B) बाघ व शेर
(C) जिनकी संख्या अत्यधिक हों अधिक हों
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है
उत्तर:
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

3. नेशनल पार्क (National parks) और पशुविहार (Sanctuaries) निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गए है?
(A) मनोरंजन
(B) पालतू जीवों के लिए
(C) शिकार के लिए
(D) संरक्षण के लिए
उत्तर:
(D) संरक्षण के लिए

4. जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं-
(A) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र
(B) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(C) ध्रुवीय क्षेत्र
(D) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर:
(A) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

5. निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन (Earth summit) हुआ था?
(A) यू०के० (U.K.)
(B) ब्राजील
(C) मैक्सिको
(D) चीन
उत्तर:
(B) ब्राजील

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जैव-विविधता क्या है?
उत्तर:
जैव-विविधता (Bio-diversity)-किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहा जाता है। यह विकास के लाखों वर्षों के इतिहास का परिणाम है।

प्रश्न 2.
जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैव-विविधता को निम्नलिखित तीन स्तरों पर समझा जाता है-

  • आनुवांशिक जैव-विविधता
  • प्रजातीय जैव-विविधता
  • पारितन्त्रीय जैव-विविधता।

प्रश्न 3.
हॉट स्पॉट (Hot Spot) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हॉट स्पॉट (Hot Spot)-जिन क्षेत्रों में जैव-विविधता अति समृद्ध एवं संवेदनशील हो और मानवीय गतिविधियों के कारण खतरे में हो ऐसे क्षेत्रों को जैव-विविधता के हॉट स्पॉट कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 4.
मानव जाति के लिए जन्तुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
मानव अपनी मूलभूत आवश्यताएँ; जैसे रोटी, कपड़ा और मकान तथा विकसित सुखी जीवन की अन्य सुविधाएँ भिन्न-भिन्न तरीकों से जैविक विविधता से ही प्राप्त करता है। जीवों की अनेक प्रजातियाँ हमें बहुत-से पदार्थ प्रदान करती हैं जिससे हमारी भौतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि होती है, जो कल्याणकारी जीवन के लिए अति आवश्यक है।

प्रश्न 5.
विदेशज प्रजातियों (Exotic Species) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विदेशज प्रजातियाँ (Exotic Species)-वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं लेकिन उस तन्त्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियाँ कहते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
जैव-विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है, इसी प्रकार, मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है।

दूसरे शब्दों में जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।
1. जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका-

  • सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव-विविधता एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ है, जिसे कृषि जैव विविधता कहा जाता है।
  • जैव-विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य-पदार्थ, औषधियाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में है।

2. जैव-विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका-

  • जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं। प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरी करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।
  • प्रजातियाँ जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती है। ये पारितंत्री क्रियाएँ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं।
  • पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी, प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी।

3. जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका-

  • जैव-विविधता इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत देती है, कि जीवन का आरंभ कैसे हुआ और भविष्य में कैसे विकसित होगा।
  • पारितंत्र में हम भी एक प्रजाति हैं, तथा मानव प्रजाति की क्या भूमिका है, इसे हम जैव-विविधता से समझ सकते हैं।
  • यह समझना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार हैं। अतः कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है।

प्रश्न 2.
जैव-विविधता के हास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर:
जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं
1. जनसंख्या में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों को रहने के लिए एवं कृषि के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति वनों को काटकर की जाती है। इस प्रकार विभिन्न प्रजातियों के आवास स्थल नष्ट हो जाते हैं और बहुत-सी प्रजातियाँ लुप्त हो जाती हैं। इसलिए बढ़ती जनसंख्या जैव-विविधता के लिए बड़ा खतरा है।

2. वन्य जीवों का अवैध शिकार वन्य प्राणियों से बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए उनका अवैध शिकार किया जाता है जिससे बहुत-सी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं जो जैव-विविधता के लिए एक खतरा हैं।

3. प्रदूषण-पर्यावरण प्रदूषण, विशेषकर जलीय पारितन्त्र को खराब कर देता है, इससे जलीय जीवों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।

4. विदेशज प्रजातियों का आगमन किसी भी क्षेत्र में विदेशी प्रजातियों के आगमन से स्थानीय प्रजातियों के आवास एवं भोजन आदि के लिए उनके साथ संघर्ष करना पड़ता है। इस संघर्ष में स्थानीय कमजोर प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं।

जैव-विविधता हास को रोकने के उपाय-जैव-विविधता ह्रास को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-

  • संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिएँ।।
  • प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए उचित योजनाएँ व प्रबन्धन किया जाना चाहिए।
  • वन्य जीवों के आवास के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय पार्क बनाए जाने चाहिएँ।
  • वनस्पति एवं प्राणी प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।

जैव-विविधता एवं संरक्षण HBSE 11th Class Geography Notes

→ जैव-विविधता (Biodiversity)-पृथ्वी अथवा किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्रों के पौधों, प्राणियों व सूक्ष्म जीवों की विविधता को जैव-विविधता कहते हैं।

→ टैक्सोनोमी (Taxonomy)-जीवों के वर्गीकरण के विज्ञान को टैक्सोनोमी कहते हैं।

→ तप्त स्थल (Hot Spots)-संसार के जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें विविधता के ‘तप्त स्थल’ कहा जाता है।

→ आनुवंशिकी (Genetics)-आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी कहते हैं।

→ आनुवंशिकता (Heredity)-जीवधारियों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में विभिन्न लक्षणों के प्रेक्षण या संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

HBSE 11th Class Geography पृथ्वी पर जीवन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन जैवमंडल में सम्मिलित हैं।
(A) केवल पौधे
(B) केवल प्राणी
(C) सभी जैव व अजैव जीव
(D) सभी जीवित जीव
उत्तर:
(C) सभी जैव व अजैव जीव

2. उष्णकटिबंधीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?
(A) प्रेयरी
(B) स्टैपी
(C) सवाना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सवाना

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

3. चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर निम्नलिखित में से क्या बनाती है?
(A) आयरन सल्फेट
(B) आयरन कार्बोनेट
(C) आयरन ऑक्साइड
(D) आयरन नाइट्राइट
उत्तर:
(C) आयरन ऑक्साइड

4. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट्स
(C) एमिनोएसिड
(D) विटामिन
उत्तर:
(B) कार्बोहाइड्रेट्स

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिकी का सीधा सम्बन्ध जैविक तथा अजैविक तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्धों से है। जैव समूहों तथा जीवों और वातावरण के बीच जो सम्बन्ध होते हैं, उनका अध्ययन पारिस्थितिकी कहलाता है अर्थात् वातावरण तथा जीवों के मध्य पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी कहते हैं।

प्रश्न 2.
पारितत्र (Ecological system) क्या है? संसार के प्रमुख पारितंत्र प्रकारों को बताएं।
उत्तर:
पारितन्त्र का अर्थ-पारितन्त्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के एकीकरण का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच की स्वतन्त्र इकाई को पारितन्त्र (Ecosystem) कहा जाता है।
पारितन्त्र के प्रकार-पारितन्त्र दो प्रकार के होते हैं-

  • जलीय पारितन्त्र (Terrestrial Ecosystem)
  • स्थलीय पारितन्त्र (Aquatic Ecosystem)

संसार के कुछ प्रमुख पारितंत्र निम्नलिखित हैं- वन, घास-क्षेत्र, मरुस्थल, झील, नदी, समुद्र इत्यादि।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 3.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य शृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला का अर्थ-भोजन अथवा ऊर्जा के एक पोषण तल से अन्य पोषण तलों तक पहुँचने की प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहा जाता है।

एक पारितन्त्र में अनेक खाद्य शृंखलाएँ बनती हैं जिनमें चराई खाद्य शृंखला भी एक प्रमुख श्रृंखला है। यह शृंखला हरे पौधों (उत्पादक) से आरम्भ होकर माँसाहारी तक जाती है। इस श्रृंखला के विभिन्न स्तर निम्नलिखित हैं
घास → हरा टिड्डा → मेंढ़क → साँप → बाज

प्रश्न 4.
खाद्य जाल (Food web) से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताएं।
उत्तर:
खाद्य जाल का अर्थ-पारितन्त्र में खाद्य शृंखलाएँ स्वतन्त्र इकाइयों के रूप में नहीं चलती हैं। ये आपस में अन्य खाद्य श्रृंखलाओं से अलग स्तर पर जुड़ी रहती हैं और एक जाल-सा बनाती हैं, जिसे खाद्य जाल (Food Web) कहा जाता है।

उदाहरण-किसी चरागाह पारितन्त्र में हिरण, खरगोश, चरने वाले पशु-चूहे और सुनसुनिया आदि घास को अपना भोजन बनाते हैं। चूहों को साँप या शिकारी पक्षी खा सकते हैं तथा शिकारी पक्षी साँपों को भी खा सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं जिस कारण पारितन्त्र में सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 5.
बायोम (Biome) क्या है?
उत्तर:
बायोम-विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्तर्सम्बन्धों के कुल योग को बायोम (Biome) कहते हैं। यह पौधों और प्राणियों का एक समुदाय है जो बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। संसार के प्रमुख बायोम हैं

  • वन बायोम
  • मरुस्थलीय बायोम
  • घास-भूमि बायोम
  • जलीय बायोम
  • उच्च प्रदेशीय बायोम।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
संसार के विभिन्न वन बायोम (Forest Biomes) की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
वन बायोम को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन 1
1. उष्ण कटिबन्धीय वन-ये दो प्रकार के होते हैं-

  • भूमध्य रेखीय वन
  • उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन।

भूमध्य रेखीय वन-

  • भूमध्य रेखीय वन भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित होते हैं।
  • इन वनों में तापमान 20° से 25°C के बीच रहता है।
  • इन क्षेत्रों की मिट्टी अम्लीय होती है जिसमें पोषक तत्त्वों की कमी होती है।
  • इन वनों में असंख्य वृक्षों के झुण्ड लम्बे व घने वृक्ष मिलते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन-

  • उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन 10° से 25° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं।
  • इन वनों का तापमान 25° से 30°C के बीच रहता है।
  • इन वनों में वार्षिक औसत वर्षा 1000 मि०मी० होती है।
  • इन वनों में कम घने तथा मध्यम ऊँचाई के वृक्ष मिलते हैं।
  • इन वनों में कीट, पतंगे, चमगादड़, पक्षी व स्तनधारी जीव पाए जाते हैं।

2. शीतोष्ण कटिबन्धीय वन-

  • इन वनों का तापमान 20° से 30° के बीच पाया जाता है।
  • इन वनों में वर्षा समान रूप से वितरित होती है तथा 750-1500 मि०मी० के बीच होती है।
  • इन वनों में पौधों की प्रजातियों में कम विविधता पाई जाती है। यहाँ ओक, बीच आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
  • प्राणियों में गिलहरी, खरगोश, पक्षी तथा काले भालू आदि जन्तु पाए जाते हैं।

3. बोरियल वन-

  • इन वनों में छोटी आई ऋतु व मध्यम रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु तथा लम्बी शीत ऋतु पाई जाती है।
  • इन वनों में वर्षा मुख्यतः हिमपात के रूप में होती है जो 400-1000 मि०मी० होती है।
  • वनस्पति में पाइन, स्यूस आदि कोणधारी वृक्ष मिलते हैं।
  • प्राणियों में कठफोड़ा, चील, भालू, हिरण, खरगोश, भेड़िया व चमगादड़ आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 2.
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) क्या है? वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (Fixation) कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार से जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिक अन्तर्सम्बन्धों में जीवित हैं। जीवधारी बहुलता व विविधता में ही जीवित रह सकते हैं। जीवित रहने की प्रक्रिया में विविध प्रवाह; जैसे ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 वर्षों में वायुमण्डल व जलमण्डल की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन लगभग एक समान रहा है। रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधों व प्राणी ऊत्तकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच में रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह को जैव भू-रासायनिक चक्र कहा जाता है।

वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण-(Fixation)वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को जीव-जन्तु प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं परन्तु कुछ फलीदार पौधों की जड़ों में उपस्थित जीवाणु तथा नीली-हरी शैवाल (Blue green Algae) वायुमण्डल की नाइट्रोजन को सीधे ही ग्रहण कर सकते हैं और उसे नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन यौगिकीकरण कहते हैं। शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका कुछ भाग उनमें चला जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 3.
पारिस्थितिक संतुलन (Ecological balance) क्या है? इसके असंतुलन को रोकने के महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक सन्तुलन का अर्थ-किसी पारितन्त्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी सम्भव है जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। अतः पारितन्त्र में हर प्रजाति की संख्या में एक स्थायी सन्तुलन को भी पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological Balance) कहा जाता है।

पारिस्थितिक असन्तुलन को रोकने के उपाय-

  • जीव-जन्तुओं के आवास स्थानों को नष्ट नहीं करना चाहिए।
  • वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
  • पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
  • वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
  • पर्यावरणीय कारकों का सही एवं उचित प्रयोग करना चाहिए।
  • जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है अतः जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगानी चाहिए।
  • मानव के अधिक हस्तक्षेप से असंतुलन बढ़ता है, जिससे बाढ़ और कई जलवायु संबंधी परिवर्तन देखने को मिलते है। अतः मानव का पर्यावरण से छेड़छाड़ कम करना भी एक उपाय हो सकता है।

पृथ्वी पर जीवन HBSE 11th Class Geography Notes

→ जैवमण्डल (Biosphere)-जैवमण्डल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी पौधों, जन्तुओं, प्राणियों और इनके चारों ओर के पर्यावरण के पारस्परिक अन्तर्संबंध से बनता है।

→ पारिस्थितिकी (Ecology)-भौतिक पर्यावरण और जीवों के बीच घटित होने वाली पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।

→ पारितंत्र (Ecosystem)-पारितंत्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के समाकलन का परिणाम है।

→ स्वपोषित (Autotroph)- ऐसे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं अकार्बनिक पदार्थों से तैयार करते हैं, स्वपोषित कहलाते हैं।

→ खाद्य शृंखला (Food Chain)-पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह क्रमबद्ध स्तरों की एक श्रृंखला होती है, जिसे खाद्य श्रृंखला कहते हैं।

→ जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle)-पारितंत्र में अजैव तत्त्वों का जैव तत्त्वों में बदलना तथा पुनः जैव तत्त्वों का अजैव तत्त्वों में बदल जाना, जैव भू-रासायनिक चक्र कहलाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

HBSE 11th Class Geography महासागरीय जल संचलन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे की गति किससे संबंधित है?
(A) ज्वार
(B) तरंग
(C) धाराएँ
(D) ऊपर में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ज्वार

2. वृहत ज्वार आने का क्या कारण है?
(A) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
(B) सूर्य और चंद्रमा द्वारा एक दूसरे की विपरीत दिशा से पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल
(C) तटरेखा का दंतुरित होना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

3. पृथ्वी तथा चंद्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है?
(A) अपसौर
(B) उपसौर
(C) उपभू
(D) अपभू
उत्तर:
(C) उपभू

4. पृथ्वी उपसौर की स्थिति कब होती है?
(A) अक्तूबर
(B) जुलाई
(C) सितंबर
(D) जनवरी
उत्तर:
(D) जनवरी

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
तरंगे महासागरीय जल की दोलायमान गति है जिसमें जल स्थिर रहता है और अपने स्थान पर ही ऊपर-नीचे और आगे-पीछे होता रहता है। तरंग एक ऊर्जा है। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
महासागरीय तरंगें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
उत्तर:
वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं, तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। तरंगें वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं। अधिकतर तरंगें वायु के जल के विपरीत दिशा में गतिमान होने से उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा क्या है?
उत्तर:
समुद्रों का जल-स्तर कभी भी स्थित नहीं रह पाता अपितु नियमित रूप से दिन (24 घण्टे की अवधि का सौर्यिक दिवस) में दो बार एकान्तर क्रम से ऊपर चढ़ता और नीचे उतरता रहता है। तटीय किनारों पर समुद्री जल के ऊपर चढ़ने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति होती है।
  2. दूसरा कारक-अपकेंद्रीय बल है, जोकि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है।
  3. गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर महत्त्वपूर्ण ज्वार-भाटाओं को उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 5.
ज्वार-भाटा नौसंचालन से कैसे संबंधित है?
उत्तर:
पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य की स्थिति ज्वार की उत्पत्ति का कारण है और इनकी स्थिति के सही ज्ञान से ज्वारों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य-संबंधी योजनाओं में मदद करता है। नौसंचालन में ज्वारीय प्रवाह का अत्यधिक महत्व है। ज्वार के समय तट के निकट जल की गहराई अधिक हो जाती है जिससे बड़े-बड़े जहाज भी बन्दरगाहों के निकट पहुँच सकते हैं तथा भाटे के समय चले जाते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जल धाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
जल धाराएँ किसी प्रदेश के तापमान और जलवायु को प्रभावित करती हैं। गर्म महासागरीय धाराएँ ठण्डे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ठण्डी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। गल्फ स्ट्रीम एक गर्म महासागरीय धारा है जो उत्तर:पश्चिम यूरोप के तट के पास से बहती है तथा इस क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती है। जल वाले क्षेत्रों से कम तापमान वाले क्षेत्रों की ओर तथा इसके विपरीत कम तापमान वाले क्षेत्रों से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों की ओर बहती हैं। जब ये धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बहती हैं, तो यह उन क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं। किसी भी जलराशि के तापमान का प्रभाव उसके ऊपर की वायु पर पड़ता है। इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशों वाले ठंडे क्षेत्रों की ओर बहने वाली जलधाराएँ उन क्षेत्रों की वायु के तापमान को बढ़ा देती हैं।

तापमान को प्रभावित करना-

  • गर्म उत्तरी अटलांटिक अपवाह जो उत्तर की ओर यूरोप के पश्चिम तट की ओर बहती है।
  • यह ब्रिटेन और नार्वे के तट पर शीत ऋतु में भी बर्फ नहीं जमने देती।
  • जलधाराओं का जलवायु पर प्रभाव और अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब आप समान अक्षांशों पर स्थित ब्रिटिश द्वीप समूह की शीत ऋतु की तुलना कनाड़ा के उत्तरी-पूर्वी तट की शीत ऋतु से करते हैं।
  • कनाडा का उत्तरी-पूर्वी तट लेब्राडोर की ठंडी धारा के प्रभाव में आ जाता है। इसलिए यह शीत ऋतु में बर्फ से ढका रहता है।

प्रश्न 2.
जल धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
जल धाराओं को उत्पन्न करने के निम्नलिखित कारक हैं-
1. ऋतु परिवर्तन-उत्तरी हिंद महासागर में समुद्री धाराओं की दिशा ऋतु परिवर्तन के साथ बदल जाती है। हिंद महासागर में भूमध्य-रेखीय विपरीत धारा केवल शीत ऋतु में ही होती है और भूमध्यरेखीय धारा केवल ग्रीष्म ऋतु में बहती है।

2. भूघूर्णन-पृथ्वी का अपने कक्ष में घूर्णन के कारण कोरिऑलिस बल उत्पन्न होता है। इसी बल के कारण बहता हुआ जल मुड़कर दीर्घ वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करता है, जिसे गायर्स कहते है। “फेरेल” के नियम के अनुसार, उत्तरी गोलार्द्ध में धाराएँ अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इससे नई धाराएँ बनती हैं।

3. लवणता में अंतर-अधिक लवणता वाला जल भारी होता है, जो नीचे बैठ जाता है। उसके स्थान पर कम लवणता व घनत्व वाला जल आ जाता है जो धारा के रूप में बह जाता है।

4. वाष्पीकरण-जिन स्थानों पर वाष्पीकरण अधिक होता है, वहाँ पर जल का तल नीचे हो जाता है फिर वहाँ अन्य क्षेत्रों का जल जमा हो जाता है। इसी प्रकार एक धारा उत्पन्न होती है।

5. तटरेखा की आकृति-उत्तरी हिंद महासागर में पैदा होने वाली धाराएँ भारतीय प्रायद्वीप की तट रेखा का अनुसरण करती हैं।

महासागरीय जल संचलन HBSE 11th Class Geography Notes

→ तरंग शृंग (Crest of the Wave)-तरंग का ऊपर उठा हुआ भाग तरंग शृंग कहलाता है।

→ स्वेल (Swell) महासागर पर तूफान केन्द्र के बाहर की तरफ दूरी पर एक-समान ऊँचाई और आवर्तकाल के साथ समुद्री तरंगें नियमित रूप से चल रही होती हैं, जिन्हें स्वेल कहा जाता है।

→ महासागरीय धारा (Ocean Currents) महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर निश्चित दिशा में बहुत दूरी तक जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।

→ प्रलयकारी तरंगें (Catastrophic Waves)-इन तरंगों की उत्पत्ति ज्वालामुखी, भूकम्प या महासागरों में हुए भूस्खलन के कारण होती है। इन्हें सुनामी भी कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

HBSE 11th Class Geography महासागरीय जल Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन
उत्तर:
(C) जलयोजन

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है।
(A) 2-20 मी०
(B) 20-200 मी०
(C) 200-3,000 मी०
(D) 2,000-20,000 मी०
उत्तर:
(C) 200-3,000 मी०

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सी लघु आकृति महासागरों में नहीं पाई जाती है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर

4. लवणता को प्रति समुद्री मक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है-
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम

5. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिंद महासागर
(B) अटलांटिक महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशांत महासागर
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
जल पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्रकार के जीवों के लिए आवश्यक घटक है। पृथ्वी के जीव सौभाग्यशाली हैं कि यह एक जलीय ग्रह है। पृथ्वी ही सौरमण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसकी सतह पर 71% जल पाया जाता है। जल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी को नीला ग्रह या जलीय ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमांत क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय सीमांत प्रत्येक महादेश का विस्तृत किनारा होता है जोकि अपेक्षाकृत छिछले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा भाग होता है। यह महासागर का सबसे छिछला भाग होता है, जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। इस सीमा का किनारा बहुत ही खड़े ढाल वाला होता है।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइये।
उत्तर:
वर्तमान समय में लगभग 57 गर्मों की खोज हो चुकी है जो निम्नलिखित अनुसार हैं-
32 प्रशांत महासागर
19 अटलांटिक महासागर
6 हिंद महासागर

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 4.
ताप-प्रवणता क्या है?
उत्तर:
यह सीमा समुद्री सतह से लगभग 100 से 400 मीटर नीचे प्रारंभ होती है, एवं कई सौ मीटर नीचे तक जाती है। वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, उसे ताप-प्रवणता (थर्मोक्लाइन) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
समुद्र में नीचे जाने पर हमें तीन परतों से गुजरना पड़ता है
1. पहली परत-

  • यह महासागरीय जल की सबसे उपरी परत होती है
  • यह परत 500 मीटर तक मोटी होती है
  • इसका तापमान 20° सेंटीग्रेड से -25° सेंटीग्रेड के बीच होता है।

2. दूसरी परत-

  • इसे तापप्रवणता परत कहा जाता है
  • यह पहली परत के नीचे स्थित होती है
  • ताप प्रवणता की मोटाई -500 से 1000 मीटर तक होती है।

3. तीसरी परत-

  • यह परत बहुत ठंडी होती है
  • यह परत गम्भीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है
  • आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्तों में सतही जल का तापमान 0° से० के निकट होता है और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन आता है।

प्रश्न 6.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
सागरीय जल की मात्रा और उसमें घुले हुए लवणों की मात्रा के बीच पाए जाने वाले अनुपात को समुद्री जल की लवणता कहा जाता है। लवणता को प्रति हजार भागों में व्यक्त किया जाता है अर्थात् प्रति 1,000 ग्राम समुद्री जल में कितने ग्राम लवण की मात्रा है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्व किस प्रकार अंतर-संबंधित हैं?
उत्तर:
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका प्रयोग एवं पुनः प्रयोग किया जा सकता है। जब समुद्री जल वाष्प बनकर बादल का रूप धारण करता है और वो ही बादल जब वायुमंडलीय अवरोधों से टकराता है तो वर्षा करता है वर्षा का जल प्रवाहित होकर नदी, नालों से होते हुए सागरों में मिल जाता है। फिर सूर्यताप से सागरों के जल वाष्प बन जाते है। इस प्रक्रिया को जल चक्र कहा जाता है। इसी प्रकार जलीय चक्र में एक तत्व दूसरे तत्व से अंतर-संबंधित है।

जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों जैसे-गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचलन है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, स्तल एवं जीवों के बीच सतत् आदान-प्रदान से भी है। पर्यावरण में जल तीनों मण्डलों में तीनों अवस्थाओं (ठोस, तरल तथा गैस) में पाया जाता है। वर्षा होने तथा हिम पिघलने से जल का अधिकतर भाग ढाल के अनुरूप बहकर नदियों के द्वारा समुद्र में चला जाता है। इस जल का कुछ भाग महासागरों, झीलों तथा नदियों से जलवाष्प (Water Vapour) बनकर वायुमण्डल में लौट जाता है व कुछ भाग वनस्पति द्वारा अवशोषित होकर वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) द्वारा वायुमण्डल में जा मिलता है।

वर्षा और हिम के पिघले जल का शेष भाग रिसकर या टपक-टपककर भूमिगत हो जाता है। वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प संघनित (Condense) होकर बादलों का रूप धारण करते हैं। बादलों से वर्षा होती है और वर्षा का जल नदियों के रास्ते फिर से पहुँच जाता है। झरनों के माध्यम से भूमिगत जल भी कहीं-न-कहीं धरातल पर निकलकर नदियों से होता हुआ समुद्रों में जा पहुँचता है। “अतः महासागरों, वायुमण्डल तथा स्थलमण्डल में परस्पर होने वाला जल का समस्त आदान-प्रदान जलीय-चक्र कहलाता है।” इस जलीय चक्र में जल कभी रुकता नहीं और अपनी अवस्था (State) तथा स्थान बदलता रहता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
स्थलमण्डल और वायुमण्डल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों की अपेक्षा जलमण्डल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक अधिक जटिल (Complex) होते हैं। महासागरों पर तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं

1. अक्षाश (Latitude)-भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं। फलस्वरूप भूमध्यरेखीय क्षेत्र में महासागरीय जल का औसत वार्षिक तापमान अधिक रहता है और ध्रुवों की ओर जाने पर समुद्री जल का तापमान घटता जाता है। उदाहरणतः भूमध्य रेखा पर महासागरीय जल का औसत वार्षिक तापमान 26°C, 20° अक्षांश पर 23°C, 40° अक्षांश पर -14°C तथा 60° अक्षांश पर 1°C रह जाता है। 0°C की समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के चारों ओर टेढ़ा-मेढ़ा वृत्त बनाती है और सर्दियों के मौसम में थोड़ा-सा भूमध्य रेखा की ओर खिसक आती है।

2. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-स्थल से जल की ओर बहने वाली प्रचलित पवनें समुद्री जल को तट से परे बहा ले जाती हैं। हटे हुए गर्म जल का स्थान लेने के लिए नीचे से समुद्र का ठण्डा पानी ऊपर आता रहता है। परिणामस्वरूप वहाँ सागरीय का तापमान कम हो जाता है। उदाहरणतः उष्ण कटिबन्ध से पूर्व से आने वाली सन्मार्गी पवनों (Trade Winds) के प्रभाव से महासागरों के पूर्वी तटों पर समुद्री जल का तापमान कम और पश्चिमी तटों पर समुद्री जल का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है। इसके विपरीत शीतोष्ण कटिबन्ध में पछुवा पवनों (Westerlies) के प्रभाव से महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर समुद्री जल का तापमान कम और पूर्वी तटों पर समुद्री जल का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है।

3. महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)-महासागरीय जल के तापमान को वहाँ चलने वाली गर्म अथवा ठण्डी जल धाराएँ भी प्रभावित करती हैं। उदाहरणतः मैक्सिको की खाड़ी से चलने वाली गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) नामक गर्म जल धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के पास तथा उत्तरी-पश्चिमी यूरोप के पास समुद्री जल के तापमान को बढ़ा देती है। इसी कारण नार्वे के तट पर 60° उत्तरी अक्षांश पर भी समुद्री जल जम नहीं पाता। इसके विपरीत लैब्रेडोर की ठण्डी जलधारा के कारण शीत ऋतु में उत्तरी अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी तट पर 50° उत्तर अक्षांश पर ही तापमान हिमांक तक पहुँच जाता है।

4. समीपवर्ती स्थलखण्डों का प्रभाव (Effect ofAdjacent Land Masses) खुले महासागरों के तापमान सारा साल लगभग एक-जैसे रहते हैं, परन्तु पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से स्थल खण्डों से घिरे हुए समुद्रों का तापमान ग्रीष्म ऋतु में अधिक व शीत ऋतु में कम हो जाता है। ऐसे समुद्रों पर निकटवर्ती स्थल खण्डों का प्रभाव पड़ता है जो जल की अपेक्षा शीघ्र गर्म और शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं। उदाहरणतः भूमध्य रेखा पर ग्रीष्म ऋतु में खुले महासागरीय जल का तापमान 26°C होता है जबकि लाल सागर (Red Sea) का तापमान उन्हीं दिनों 30°C तक पहुँचा होता है।

5. लवणता (Salinity)-प्रायः अधिक लवणता वाला महासागरीय जल अधिक ऊष्मा ग्रहण कर लेता है जिससे उसका तापमान भी बढ़ जाता है। इसके विपरीत समुद्र का कम खारा जल कम ऊष्मा ग्रहण करने के कारण अपेक्षाकृत ठण्डा रहता है।

6. प्लावी हिमखण्ड तथा प्लावी हिमशैल (Ice floes and Icebergs)-ध्रुवीय क्षेत्रों से टूटकर आने वाले बहुत अधिक प्लावी हिमखण्ड (Ice floes) और प्लावी हिमशैल (Icebergs) जिन महासागरों में मिलते हैं, वहाँ के जल का तापमान अपेक्षाकृत कम हो जाता है। उत्तरी ध्रुव के पास ग्रीनलैंड से टूटकर आने वाले हिमखण्ड और हिमशैल पर्याप्त दूरी तक अन्धमहासागर के जल का तापमान नीचे कर देते हैं। इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव के पास अंटार्कटिका से टूटकर आने वाले हिमखण्ड व हिमशैल निकटवर्ती दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) के जल का तापमान कम कर देते हैं।

7. वर्षा का प्रभाव (Effect of Rain)-जिन समुद्री भागों में वर्षा अधिक होती है, वहाँ सतह (सागर की सतह) का तापक्रम अपेक्षाकृत कम तथा नीचे के जल का तापमान अधिक होता है। भूमध्य रेखीय महासागरों में अधिक वर्षा के कारण ऊपरी सतह का तापक्रम कम तथा नीचे गहराई में तापक्रम अधिक होता है अर्थात् तापक्रम की विलोमता देखने को मिलती है।

महासागरीय जल HBSE 11th Class Geography Notes

→ महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) महाद्वीपीय मग्नतट महासागर का एक ऐसा निमज्जित प्लेटफॉर्म होता है जिस पर महाद्वीपीय उच्चावच स्थित है।

→ जलमग्न केनियन (Submarine Canyons) महासागरीय नितल पर तीव्र ढालों वाली गहरी व संकरी ‘V’ आकार की घाटियों या गॉর্जो को जलमग्न केनियन कहते हैं। जलमग्न कटक (Submarine Ridges) महासागरों की तली पर स्थित सैंकड़ों कि०मी० चौड़ी तथा हज़ारों कि०मी० लम्बी पर्वत श्रेणियों को जलमग्न कटक कहते हैं।

→ गाईऑट (Guyot)-सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वतों को गाईऑट कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

→ महाद्वीपीय सीमान्त (Continental Margin) यह महाद्वीपों की पर्पटी की अंतः समुद्री सीमा है। इसमें महाद्वीपीय मग्नतट, ढाल और उत्थान शामिल हैं।

→ ग्रांड बैंक्स (Grand Banks)-कनाडा के न्यूफाउंडलैंड द्वीप के दक्षिण-पूर्व में विश्व के सर्वश्रेष्ठ मत्स्य-ग्रहण क्षेत्रों में से एक।

→ अयन वृत्त (Tropics)-कर्क रेखा (23.5° उ०) व मकर रेखा (23.5° द०) को अयन वृत्त कहा जाता है, क्योंकि यहाँ सूर्य का प्रखर प्रकाश पड़ता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

HBSE 11th Class Geography विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन-सी दशा अर्हक हैं?
(A) सभी महीनों में उच्च वर्षा
(B) सबसे ठंडे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिंदु से अधिक
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक
(D) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे
उत्तर:
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक

2. जलवायु के वर्गीकरण से संबंधित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है
(A) अनुप्रयुक्त
(B) व्यवस्थित
(C) जननिक
(D) आनुभविक
उत्तर:
(D) आनुभविक

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

3. भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जायेगा-
(A) “Af”
(B) “BSh”
(C) “Cfb”
(D) “Am”
उत्तर:
(D) “Am”

4. निम्नलिखित में से कौन सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना गया है?
(A) 1990
(B) 1998
(C) 1885
(D) 1950
उत्तर:
(B) 1998

5. नीचे लिखे गए चार जलवायु समूहों में से कौन आर्द्र दशाओं को प्रदर्शित करता हैं?
(A) A-B-C-E
(B) A-C-D-E
(C) B-C-D-E
(D) A-C-D-F
उत्तर:
(D) A-C-D-F

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित जलवायविक चरों का प्रयोग किया है-

  • तापमान
  • वर्षण
  • तापमान और वर्षण का वनस्पति के वितरण से सम्बन्ध।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जननिक प्रणाली में जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास किया जाता है, जबकि आनुभविक प्रणाली में जलवायु तापमान और वर्षण से सम्बन्धित आंकड़ों पर आधारित है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु में तापांतर बहुत कम होता है। यह जलवायु विषुवत् रेखा के निकट पाई जाती है। इन प्रदेशों में तापमान सामान्य रूप से ऊँचा और वार्षिक तापांतर नगण्य होता है। किसी भी दिन अधिकतम तापमान लगभग 30° से० और न्यूनतम तापमान लगभग 20° से होता है। लेकिन वार्षिक ताप में अंतर बहुत कम है।

प्रश्न 4.
सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएँ प्रचलित होंगी?
उत्तर:
सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं, जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं। मौसम वैज्ञानियों के अनुसार सौर कलंकों की संख्या के बढ़ने से मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है तथा तूफानों की संख्या बढ़ जाती है। सौर कलंकों के कम होने से उष्ण एवं शुष्क दशाएँ उत्पन्न होती हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
A एवं B प्रकार की जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।
उत्तर:
A एवं B प्रकार की जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना निम्नलिखित प्रकार से है-

‘A’ प्रकार की जलवायु‘B’ प्रकार की जलवायु.
(1) ये उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु वाले प्रदेश हैं।(1) ये शुष्क जलवायु वाले प्रदेश हैं।
(2) इस प्रकार की जलवायु में वर्षा अधिक होती है।(2) इस प्रकार की जलवायु में वर्षा बहुत कम होती है।
(3) इस प्रकार की जलवायु में वार्षिक तापान्तर कम होता है।(3) इस प्रकार की जलवायु में वार्षिक तापान्तर अधिक होता है।
(4) यह जलवायु 0° अक्षांश के आसपास के क्षेत्रों तथा कर्क रेखा और मकर रेखा के मध्य पाई जाती है।(4) यह जलवायु 15° से 60° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के मध्य विस्तृत है तथा 15° से 30° के निम्न अंक्षाशों में यह उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में पाई जाती है।
(5) इस प्रकार की जलवायु में जैव-विविधता वाले उष्ण कटिबंधीय सदाहरित वन पाए जाते हैं।(5) इस प्रकार की जलवायु में कंटीले बन पाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएँगे?
उत्तर:
‘A’ उष्ण कटिबंधीय जलवायु को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन 1
(1) AF-उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु विषुवत् वृत्त के निकट पाई जाती है। इस जलवायु में सघन वितान तथा व्यापक जैव विविधता वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं।

(2) Am-उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण अमेरिका के उत्तर:पूर्वी तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है। इस जलवायु में पर्णपाती वन पाए जाते हैं जिसमें पेड़ अपनी पत्तियाँ वर्ष में एक बार गिरा देता है।

(3) Aw-उष्ण कटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु AF प्रकार के जलवायु प्रदेशों के उत्तर एवं दक्षिण में पाई जाती है। इस जलवायु में पर्णपाती वन और पेड़ों से ढकी घासभूमियाँ पाई जाती हैं।
‘B’ कोष्ण शीतोष्ण जलवायु को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन 2

  • Cwa-आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में पतझड़ वन पाए जाते हैं।
  • Cs-भूमध्य-सागरीय प्रदेशों में फलों के वृक्ष पाए जाते हैं।
  • Cfa-आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय (Cfa) में पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इस क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों में घासभूमियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
ग्रीनहाऊस गैसों से आप क्या समझते हैं? ग्रीन हाऊस गैसों की एक सूची तैयार करें।
उत्तर:
ग्रीनहाऊस गैसें ऐसी गैसें जो धरती पर एक आवरण बनाकर कम्बल की भाँति काम करती हैं और धरती की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं, ग्रीनहाऊस गैसें कहलाती हैं। ये पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में सहायक हैं।

ग्रीनहाऊस गैसें वर्तमान में प्रमुख ग्रीनहाऊस गैसें कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2), क्लोरो-फ्लोरोकार्बन्स (CFCs), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और ओज़ोन (O3) हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) और कार्बन मोनोक्साइड (CO) कुछ ऐसी अन्य गैसें हैं जो ग्रीनहाऊस गैसों से आसानी से प्रतिक्रिया करती हैं और वायुमण्डल में उनके सान्द्रण को प्रभावित करती हैं।

1. कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) वायुमण्डल में उपस्थित ग्रीनहाऊस गैसों में सबसे अधिक सान्द्रण CO2 का है। वैसे तो कार्बन-चक्र हजारों वर्षों की अवधि में वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा सन्तुलित बनाए रखता है, लेकिन लघु-अवधि में यह सन्तुलन कई बार बिगड़ जाता है। विगत कुछ वर्षों में कोयला, पेट्रोल, डीजल तथा प्राकृतिक गैस; जैसे जीवश्मी ईंधनों के जलने से प्रतिवर्ष 6 अरब टन कार्बन-डाइऑक्साइड वायुमण्डल में मिल रही है। वन तथा महासागर CO2 के कुण्ड माने जाते हैं। वन अपनी वृद्धि के लिए CO2 का उपयोग करते हैं। अतः भूमि उपयोग में परिवर्तनों के कारण की गई जंगलों की कटाई भी CO2 की मात्रा बढ़ाती है।

CO2 लगभग 0.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है। सन् 1750 के बाद वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 30 प्रतिशत बढ़ी है, जिसने ग्रीनहाऊस प्रभाव में 65 प्रतिशत का योगदान दिया है। एक अन्य अनुमान के अनुसार 21वीं शताब्दी के मध्य तक वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा औद्योगिक क्रांति से पूर्व की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाए तो वायुमण्डल का तापमान 3° सेल्सियस बढ़ सकता है। 21वीं सदी के अन्त तक वायुमण्डल का तापमान 1.4° से 5.8° सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

2. क्लोरो फ्लोरो कार्बन (CFCs)-यह गैस मनुष्य का अनुसंधान है, प्रकृति में यह नहीं मिलती। यह वास्तव में संश्लेषित (Synthetic) यौगिकों का समूह है जिसका प्रत्येक अणु कार्बन-डाइऑक्साइड की तुलना में 20 हजार गुना ताप प्रग्रहित करता है। ये यौगिक वातानुकूलन व प्रशीतन की मशीनों, आग बुझाने के उपकरणों में तथा छिड़काव यन्त्रों में प्रणोदक (Propelent) के रूप में प्रयोग होते हैं। वर्तमान में इसकी मात्रा 4 प्रतिशत की दर से वायुमण्डल में बढ़ रही है। CFCs वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर समताप मण्डल में क्लोरीन को मुक्त करती है जो ओज़ोन को तोड़ती है। ओज़ोन परत पैराबैंगनी किरणों (Ultraviolet rays) से पृथ्वी की रक्षा करती है। समताप मण्डल में ओज़ोन के सान्द्रण का ह्रास ओज़ोन छिद्र कहलाता है। यह छिद्र हानिकारक पराबैंगनी किरणों को क्षोभमण्डल से गुजरने देता है। ओज़ोन का सबसे अधिक हास अंटार्कटिका के ऊपर हुआ है।

3. नाइट्रस ऑक्साइड-इसका महत्त्वपूर्ण स्रोत उष्ण कटिबन्धीय मिट्टी है, जहाँ पर जीवाणु नाइट्रोजन के प्राकृतिक यौगिकों से क्रिया करके नाइट्रस ऑक्साइड पैदा करते हैं। कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के प्रयोग, पेड़-पौधों को जलाने, नाइट्रोजन वाले ईंधन को जलाने तथा नाइलोन उद्योग द्वारा छोड़े जाने के कारण वायुमण्डल में इसकी मात्रा में वृद्धि हुई है। इस समय वायुमण्डल में इसकी मात्रा 0.31 भाग प्रति दस लाख भाग (PPM) है। नाइट्रस ऑक्साइड का प्रत्येक अणु कार्बन-डाइऑक्साइड की तुलना में 250 गुना अधिक ताप प्रग्रहित (Trap) करता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

4. मीथेन गैस-तापमान बढ़ाने में मीथेन गैस का प्रत्येक अणु कार्बन-डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक प्रभावी है। मीथेन अपघटकों (Decomposers) की देन है। इसके अधिकांश स्रोत जैविक हैं। मीथेन गैस धान के खेतों, नम भूमि तथा दलदल से निकलती है, इसलिए इसे मार्श गैस (Marsh Gas) भी कहते हैं। यह सागरों, ताज़े जल, खनन कार्य, गैस ड्रिलिंग तथा जैविक पदार्थों के सड़ने से उत्पन्न होती है। पशु और लकड़ी खाने वाले कीड़े; जैसे दीमक को मीथेन छोड़ने का जिम्मेदार पाया गया है।

5. जलवाष्प-अन्य ग्रीनहाऊस गैसों के कारण तापमान बढ़ने से जल की वाष्पन दर भी बढ़ जाती है। वायुमण्डल में जमा हुए ज्यादा जलवाष्प तापमान को और ज्यादा बढ़ाते हैं, क्योंकि जलवाष्प स्वयं एक प्राकृतिक ग्रीनहाऊस गैस है।

6. ओज़ोन-यद्यपि निचले वायुमण्डल में यह गैस कम पाई जाती है पर फिर भी इसका जमाव गर्मी बढ़ाने का काम करता है। ग्रीनहाऊस गैसों के प्रभाव को नियन्त्रित करने वाले कारक-

  • गैस के सान्द्रण में वृद्धि के परिणाम।
  • वायुमण्डल में इसके जीवनकाल अर्थात् ग्रीनहाऊस गैसों के अणु जितने लंबे समय तक बने रहते हैं, इनके द्वारा लाए गए परिवर्तनों से वायुमण्डलीय तंत्र को उबरने में उतना अधिक समय लगता है।
  • इसके द्वारा अवशोषित विकिरण की तरंग लंबाई।

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन HBSE 11th Class Geography Notes

→ समताप रेखाएँ (Isotherms)-ये काल्पनिक रेखाएँ समुद्र तल के अनुसार समान ताप वाले स्थानों को मिलाती हैं।

→ जलवायु प्रदेश (Climatic Region)-पृथ्वी के धरातल पर पाए जाने वाले ऐसे भू-भाग, चाहे वे पास-पास हों या दूर-दूर। जहाँ लगभग एक समान जलवायु पाई जाती है, जलवायु प्रदेश कहलाते हैं।

→ ध्रुवीय ज्योति (Aurora) आयनमण्डल में विद्युत चुम्बकीय घटना का एक प्रकाशमय प्रभाव, जो उच्च अक्षांशों में लाल, हरे तथा सफेद चापों के रूप में दिखाई देता है। रात को आकाश में भू-पृष्ठ से 100 कि०मी० की ऊँचाई पर ध्रुवीय ज्योति किरणों तथा चादरों की तरह दिखाई पड़ती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में यह ज्योति दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Australis) तथा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Borealis) कहलाती है।

→ स्टैपी (Steppe) महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में स्थित शीतोष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों को विभिन्न महाद्वीपों में अलग-अलग नामों से जानते हैं; जैसे-यूरेशिया में स्टैपी, उत्तरी अमेरिका में प्रेयरी, दक्षिणी अमेरिका में पंपास, अफ्रीका में वेल्ड्स तथा ऑस्ट्रेलिया में डाउन्स आदि।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

HBSE 11th Class Geography भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मानव के लिए वायुमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है-
(A) जलवाष्प
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) ऑक्सीजन
उत्तर:
(D) ऑक्सीजन

2. निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल, द्रव से गैस में बदल जाता है-
(A) संघनन
(B) वाष्पीकरण
(C) वाष्पोत्सर्जन
(D) अवक्षेपण
उत्तर:
(B) वाष्पीकरण

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है-
(A) सापेक्ष आर्द्रता
(B) निरपेक्ष आर्द्रता
(C) विशिष्ट आर्द्रता
(D) संतृप्त हवा
उत्तर:
(D) संतृप्त हवा

4. निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊँचा बादल कौन सा है?
(A) पक्षाभ
(B) वर्षा मेघ
(C) स्तरी
(D) कपासी
उत्तर:
(A) पक्षाभ

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. हिमपात-जब तापमान 0° सेंटीग्रेड से कम होता है, तब वर्षण हिमतूलों के रूप में होता है, जिसे हिमपात कहते हैं।
  2. सहिम वृष्टि-सहिम वृष्टि वर्षा की जमी हुई बूंदें हैं या पिघली हुई बर्फ के पानी की जमी हुई बूंदें हैं।
  3. ओला पत्थर कभी-कभी वर्षा की बूंदें बादल से मुक्त होने के बाद बर्फ के छोटे गोलाकार ठोस टुकड़ों में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर पहुँचती हैं, जिसे ओला पत्थर (वृष्टि) कहते हैं।

प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी निश्चित तापमान पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी तापमान पर उसी वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को सापेक्ष (आपेक्षिक) आर्द्रता (Relative Humidity) कहते हैं।

प्रश्न 3.
ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर:
वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा वाष्पीकरण तथा संघनन से क्रमशः घटती-बढ़ती रहती है। हवा द्वारा जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता पूरी तरह से तापमान पर निर्भर होती है। ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है, इसलिए ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटने पर जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है।

प्रश्न 4.
बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
बादल पानी की छोटी बँदों या बर्फ के छोटे रवों की संहति होता है जो कि पर्याप्त ऊँचाई पर स्वतंत्र हवा में जलवाष्प के संघनन के कारण बनते हैं।

बादलों को चार रूपों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • पक्षाभ मेघ (बादल)
  • कपासी मेघ
  • स्तरी मेघ
  • वर्षा मेघ

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षण-

  • भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
  • उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में व्यापारिक पवनों के चलने के कारण महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा अधिक तथा पश्चिमी भागों में वर्षा कम होती है।
  • शीतोष्ण कटिबन्ध में पछ्वा पवनों के कारण महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में वर्षा अधिक तथा पूर्वी भागों में वर्षा कम होती है।
  • महाद्वीपों के तटीय भागों की अपेक्षा आन्तरिक भागों में वर्षा कम होती है।
  • जहाँ समुद्र तटों के सहारे पर्वत श्रेणियाँ फैली होती हैं वहाँ पवनाभिमुखी ढालों तथा तटीय मैदानों में खूब वर्षा होती है, परन्तु पवनविमुखी ढालों पर वर्षा कम होती है।

विश्व में वर्षा के वितरण का निम्नलिखित ढाँचा प्रस्तुत होता है-
1. भूमध्य रेखीय प्रदेश यह संसार में सबसे अधिक वर्षा उपलब्ध क्षेत्र है। वर्षा की क्रिया संवहनिक है। वर्षा वर्ष भर नियमित रूप से होती रहती है। वर्षा का औसत लगभग 80 सें०मी० होता है। इस पेटी में अमेजन बेसिन (दक्षिण अमेरिका), कांगो बेसिन (अफ्रीका), मलाया तथा पूर्वी द्वीप मुख्य हैं।

2. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश-इन प्रदेशों का विस्तार अक्षांश तक है। इनमें सम्मिलित मुख्य देश भारत, दक्षिणी चीन, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्वी ब्राजील और पूर्वी अफ्रीका इत्यादि हैं। मध्यमान वार्षिक वर्षा 50 से 200 सें०मी० तक है। वर्षा व्यापारिक व मानसून हवाओं के द्वारा होती है।

3. शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश-इन प्रदेशों का विस्तार 65° अक्षांश तक है। इनमें पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी कनाडा, चिली व न्यूज़ीलैण्ड इत्यादि देश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा पछुवा पवनों के प्रभाव से पश्चिमी किनारों पर होती है। औसत वार्षिक वर्षा 50 से 100 सें०मी० तक होती है।

4. शीत कटिबन्धीय प्रदेश इस पेटी में ऊँच अक्षांशों वाले प्रदेश सम्मिलित हैं। यह प्रदेश अधिक ठण्डे होने के कारण हिमाच्छादित रहते हैं। इसमें टुण्ड्रा और उत्तरी साइबेरिया सम्मिलित हैं। वार्षिक औसत वर्षा 25 सें०मी० से भी कम है।

औसत वार्षिक वर्षा के आधार पर विश्व के विभिन्न भागों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में बांटा जाता है-

  • 200 सें०मी० से अधिक वर्षा वाले प्रदेश ये भूमध्य रेखीय प्रदेश, शीतोष्ण कटिबन्ध के पश्चिमी तट पर पर्वतों के पवनाभिमुख ढाल तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय मैदान हैं।
  • 100 से 200 सें०मी० वर्षा वाले प्रदेश-इस वर्ग में 200 सें०मी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के निकटवर्ती भाग तथा उष्ण शीतोष्ण कटिबन्ध के तटीय प्रदेश सम्मिलित हैं।
  • 50 से 100 सें०मी० वर्षा वाले प्रदेश-ये उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के भीतरी भागों में तथा शीतोष्ण क्षेत्रों के आन्तरिक भागों में स्थित हैं।
  • 20 से 50 सें०मी० वर्षा वाले प्रदेश इस वर्ग में पर्वत श्रेणियों के वृष्टि छाया प्रदेश, महाद्वीपों के अत्यधिक आन्तरिक भाग तथा उच्च अक्षांशीय प्रदेश सम्मिलित हैं।
  • 20 सें०मी० से कम वर्षा वाले प्रदेश-यह उष्ण एवं शीत मरुस्थलीय प्रदेश हैं।

प्रश्न 2.
संघनन के कौन-कौन से प्रकार हैं? ओस एवं तुषार के बनने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संघनन के निम्नलिखित चार प्रकार हैं-

  • ओस
  • तुषार या पाला
  • कुहासा एवं कोहरा
  • बादल या मेघ।

1. ओस (Dew)-दिन के समय पृथ्वी सूर्य से गर्मी प्राप्त करती है और रात्रि के समय विकिरण द्वारा छोड़ देती है। रात को विकिरण द्वारा गर्मी निकल जाने से जब कभी धरातल का तापमान ओसांक से कम हो जाता है तो वायु में उपस्थित जलवाष्प पौधों की पत्तियों तथा अन्य तनों पर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में जमा हो जाते हैं, इसे ओस कहते हैं।

2. तुषार या पाला (Frost) यदि ओसांक 0° सेल्सियस अर्थात् हिमांक से नीचे हो तो वायु में उपस्थित जलवाष्प बिना द्रवावस्था में आए सीधे हिमकणों के रूप में परिवर्तित होकर धरातल पर जम जाते हैं। इन हिमकणों के विस्तार को पाला (Frost) कहते हैं।

3. कुहासा एवं कोहरा (Mist and Fog)-जब धरातल से कई मीटर की ऊँचाई तक वायु की परत का तापमान ओसांक से नीचे गिर जाए अर्थात् वायु की आपेक्षित आर्द्रता 100 प्रतिशत से अधिक हो जाए तो जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित होकर वायुमण्डल के धूल-कणों पर एकत्रित हो जाते हैं और वायु में ही लटके रहते हैं। इससे धुन्धला-सा दिखाई देने लगता है और दृश्यता (Visibility) कम हो जाती है। इसे ही कुहासा या धुन्ध कहते हैं। जब दृश्यता एक किलोमीटर से भी कम हो जाती है तो इसे कोहरा (Fog) कहते हैं। 200 मीटर से कम दूरी तक ही वस्तुएँ दिखाई देने की स्थिति को सघन कोहरा (Thick Fog) कहते हैं।

4. बादल या मेघ (Clouds)-वायुमण्डल में ऊँचाई पर जलकणों या हिमकणों के जमाव एवं संघनन को बादल कहते हैं। मेघों का निर्माण वायु के ऊपर उठने वाली वायु के ठण्डा होने से होता है। मेघ कोहरे का बड़ा रूप है जो वायुमण्डल में वायु के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा उसका तापमान ओसांक बिन्दु से नीचे आने से बनते हैं। बादलों की आकृति उनकी निर्माण प्रक्रिया पर आधारित है, लेकिन उनकी ऊँचाई, आकृति, रंग, घनत्व तथा प्रकाश के परावर्तन के आधार पर बादलों को निम्नलिखित चार रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है

ओस के बनने की प्रक्रिया-जाड़े की रातों में जब आकाश स्वच्छ होता है तो तीव्र भौमिक विकिरण से धरातल ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल पर ठहरी वायुमण्डल की आर्द्र निचली परतें भी ठण्डी होने लगती हैं। धीरे-धीरे यह वायु ओसांक तक ठण्डी हो जाती है। इससे वायु में विद्यमान जलवाष्प संघनित हो जाता है और नन्हीं-नन्हीं बूंदों के रूप में घास व पौधों की पत्तियों पर जमा हो जाता है। वाष्प से बनी जल की इन बूंदों को ओस कहते हैं।

तुषार के बनने की प्रक्रिया-पाला (तुषार) प्रायः तब बनाता है जब वायु का तापमान तीव्रता से हिमांक से नीचे गिर जाता है। पाला पड़ने के लिए भी उन्हीं परिस्थितियों की आवश्यकता होती है जिनकी ओस के लिए होती है, परन्तु पाला पड़ने के लिए ओसांक का हिमांक से नीचे होना आवश्यक है।

वायुमंडल में जल HBSE 11th Class Geography Notes

→ जलवाष्प (Water Vapours)-जलवाष्प वायुमण्डल की एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन गैस है।

→ निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity)-वायु के प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प के वास्तविक भार को वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।

→ विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity)–वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं।

→ वाष्पीकरण (Evaporation)-जल की तरलावस्था अथवा ठोसावस्था का गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।

→ संघनन या द्रवण (Condensation)-जल की गैसीय अवस्था का तरलावस्था या ठोसावस्था में बदलने की प्रक्रिया को संघनन या द्रवण कहते हैं।

→ वृष्टि (Precipitation)-वायु में उपस्थित जलवाष्पों का संघनन द्वारा द्रवावस्था या ठोसावस्था में बदलकर पृथ्वी पर गिरने की घटना को वृष्टि कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

HBSE 11th Class Geography वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. यदि धरातल पर वायुदाब 1,000 मिलीबार है तो धरातल से 1 कि०मी० की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(A) 700 मिलीबार
(B) 900 मिलीबार
(C) 1,100 मिलीबार
(D) 1,300 मिलीबार
उत्तर:
(B) 900 मिलीबार

2. अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है?
(A) विषुवत् वृत्त के निकट
(B) कर्क रेखा के निकट
(C) मकर रेखा के निकट
(D) आर्कटिक वृत्त के निकट
उत्तर:
(A) विषुवत् वृत्त के निकट

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

3. उत्तरी गोलार्ध में निम्नवायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(A) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(C) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(D) समदाब रेखाओं के समानांतर
उत्तर:
(B) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत

4. वायुराशियों के निर्माण के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-सा है-
(A) विषुवतीय वन
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग
(C) हिमालय पर्वत
(D) दक्कन पठार
उत्तर:
(B) साइबेरिया का मैदानी भाग

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर:
वायदाब मापने की इकाई ‘मिलीबार’ है जिसे किलो पास्कल (hpa) लिखा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अंतराल पर खींची समदाब रेखाओं द्वारा किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ है जो समुद्रतल से एक समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलती है। दाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने और तुलनात्मक बनाने के लिए, वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्रतल के स्तर पर घटाया जाता है।

प्रश्न 2.
जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात् उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्णकटिबंध में पवनें उत्तरी पूर्वी क्यों होती हैं?
उत्तर:
जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण कटिबंध में पवनें उत्तर-पूर्वी होती हैं क्योंकि पवनों की दिशा कॉरिआलिस बल से प्रभावित होती है।

प्रश्न 3.
भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर:
जब समदाब रेखाएँ सीधी हों तथा घर्षण का प्रभाव न हो तो दाब प्रणवता बल कॉरिआलिस बल से सन्तुलित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं, जिन्हें ‘भू-विक्षेपी पवनें’ कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 4.
समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थलीय समीर-रात्रि को जब सूर्य का प्रभाव नहीं होता तो स्थल और समुद्र दोनों ही ठण्डे होने लगते हैं। परन्तु स्थल, समुद्र की अपेक्षा अधिक ठण्डा हो जाता है। इस प्रकार स्थल पर जल की अपेक्षा तापमान कम तथा वायुभार अधिक होता है। इसलिए रात्रि के समय स्थल से समुद्र की ओर ठण्डी वायु चलती है जिसे स्थलीय समीर (Land Breeze) कहते हैं।

समुद्री समीर-दिन के समय सूर्य से ऊष्मा प्राप्त करके स्थल तथा जल दोनों ही गरम होना शुरू कर देते हैं, परन्तु स्थल, जल की अपेक्षा शीघ्र एवं अधिक गरम हो जाता है। फलस्वरूप स्थलीय भाग का तापमान अधिक तथा जलीय भाग का तापमान कम होता है। अतः समुद्र पर स्थल की अपेक्षा वायु का भार अधिक है। इससे ठण्डी हवा समुद्र से स्थल की ओर चलना आरम्भ कर देती है जिसे जलीय या समुद्री समीर (Sea Breeze) कहते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारण बताएँ।
उत्तर:
पवन की उत्पत्ति, दिशा और वेग को नियन्त्रित करने वाले कारक (Factors Affecting the Velocity, Direction and Origin of Wind)
1. दाब प्रवणता बल (Pressure Gradient Force)-दो बिन्दुओं के बीच वायुदाब में परिवर्तन की दर को दाब प्रवणता कहा जाता है। अतः दो स्थानों के बीच दाब प्रवणता जितनी अधिक होगी, वायु की गति उतनी ही तीव्र होगी। दाब प्रवणता से प्रेरित होकर ही वायु उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है।

2. विक्षेपण बल (Deflection Force)-शुरू में तो पवनें दाब प्रवणता के अनुसार बहती हैं। लेकिन जैसे ही बहने लगती हैं उनकी दिशा पृथ्वी के घूर्णन तथा उसके साथ सापेक्ष वायुमंडल के घूर्णन के प्रभाव से विक्षेपित होने लगती हैं। इसे कॉरिआलिस प्रभाव (Coriolis Effect) कहते हैं जिसके प्रभावाधीन उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपने दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं। कॉरिआलिस प्रभाव भूमध्य रेखा पर शून्य होता है और ध्रुवों की ओर उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है।

3. भू-घर्षण (Land Friction)-महाद्वीपों पर पाई जाने वाली धरातलीय विषमताओं; जैसे पर्वत, पठार और मैदान के कारण पवनों के मार्ग में अवरोध और घर्षण पैदा हो जाते हैं जिससे पवनों की गति और दिशा दोनों प्रभावित होते हैं। महासागरों पर किसी प्रकार का अवरोध न होने के कारण वहाँ पवनें तेज़ी से बहती हैं और उनकी दिशा भी स्पष्ट होती है।

4. अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force)-इस बल के प्रभावाधीन किसी भी वक्राकार पथ पर चलती हुई पवनें, धाराएँ या कोई भी गतिमान वस्तु वक्र के केन्द्र से बाहर की ओर छूटने या जाने की प्रवृत्ति रखती है। पवन मार्ग के वक्र के छोटा होने तथा पवन की गति बढ़ने पर अपकेन्द्री बल भी बढ़ने लगता है अर्थात् पवनें और अधिक तेजी से वक्र मार्ग से बाहर की ओर जाने का प्रयास करती हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी पर वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब के संभव कारण बताएँ।
उत्तर:
वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण-वायुमंडलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को ही वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण कहा जाता है। यह वायुमंडलीय परिसंचरण महासागरीय जल को गतिमान करता है जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। भूमंडलीय पवनों का प्रारूप मुख्यतः निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है

  • वायुमंडलीय तापन में अक्षांशीय भिन्नता
  • वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति
  • वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन
  • महासागरों व महाद्वीपों का वितरण
  • पृथ्वी का घूर्णन।

उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब के कारण भू-मंडलीय वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्ण कटिबंधों से आने वाली पवनें इस निम्न-दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। यह वाय क्षोभमंडल के ऊपर 14 कि०मी० की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती है। फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती है। इसके परिणामस्वरूप 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है। इस एकत्रित वायु का अवतलन होता है जिसके कारण उपोष्ण कटिबंधीय उच्च-दाब क्षेत्र बनता है।

वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण महासागरों को भी प्रभावित करता है। वायुमंडल में वृहत पैमाने पर चलने वाली पवनें धीमी तथा अधिक गति की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करती हैं।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं और क्यों?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है। क्योंकि इनका जन्म प्रायः अधिक गर्मी पड़ने से ही होता है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। ये चक्रवात आक्रामक पवनों के कारण विस्तृत विनाश, अत्यधिक वर्षा और तूफान लाते हैं।

हिन्द महासागर में ‘चक्रवात’ अटलांटिक महासागर में ‘हरीकेन’, पश्चिम प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफन’ तथा पश्चिमी आस्ट्रेलिया में ‘विली-विलीज’ के नाम से जाने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति व विकास के लिए अनुकूल स्थितियाँ हैं।

  • बृहत् समुद्री सतह; जहाँ तापमान 27° से० अधिक हो
  • कोरिऑलिस बल
  • ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर कम होना
  • कमजोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण का होना
  • समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।

वे चक्रवात जो प्रायः 20° उत्तरी अक्षांश से गुजरते हैं, उनकी दिशा अनिश्चित होती है और ये अधिक विध्वंसक होते हैं। एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केंद्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण है, जिसे इसकी आँख कहा जाता है। इस परिसंचरण प्रणाली का व्यास 150 से 250 कि०मी० होता है। इसके केंद्र में वायु शान्त होती है। अक्षु के चारों तरफ अक्षुभिति होती है जहाँ वायु का प्रबल व वृत्ताकार रूप से आरोहण होता है, यह आरोहण क्षोभसीमा की ऊँचाई तक पहुँचता है। इसी क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है, जो 250 कि०मी० प्रति घंटा तक होता है। इन चक्रवातों से मूसलाधार वर्षा होती है।

वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ वायुदाब (Air Pressure)-किसी स्थान पर ऊपर स्थित वायु के सम्पूर्ण स्तंभ का भार वायुदाब कहलाता है।

→ पछुवा पवनें (Westerlies) उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न-दाब कटिबंधों की तरफ वर्ष-भर चलने वाली पवनें पछुवा पवनें कहलाती हैं।

→ ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)-ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर वर्ष भर चलने वाली पवनों को ध्रुवीय पवनें कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

→ मिस्ट्रल (Mistral)-शीत ऋतु में आल्प्स पर्वत से भूमध्य-सागर की तरफ फ्रांस और स्पेन के तटों पर बहने वाली तेज, शुष्क व ठण्डी पवन को मिस्ट्रल कहते हैं।

→ चक्रवात (Cyclones) चक्रवात वायु की वह राशि है जिसके मध्य में न्यून वायुदाब होता है तथा बाहर की तरफ वायुदाब बढ़ता जाता है।

→ वाताग्र जनन (Frontogenesis)-वातारों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Read More »

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

HBSE 11th Class Geography सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से किस अक्षांश पर 21 जून की दोपहर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं?
(A) विषुवत् वृत्त पर
(B) 23.5° उ०
(C) 66.5° द०
(D) 66.5° उ०
उत्तर:
(B) 23.5° उ०

2. निम्न में से किन शहरों में दिन ज्यादा लंबा होता है?
(A) तिरुवनंतपुरम
(B) हैदराबाद
(C) चंडीगढ़
(D) नागपुर
उत्तर:
(A) तिरुवनंतपुरम

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

3. निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल मुख्यतः गर्म होता है?
(A) लघु तरंगदैर्ध्य वाले सौर विकिरण से
(B) लंबी तरंगदैर्ध्य वाले स्थलीय विकिरण से
(C) परावर्तित सौर विकिरण से
(D) प्रकीर्णित सौर विकिरण से
उत्तर:
(B) लंबी तरंगदैर्ध्य वाले स्थलीय विकिरण से

4. निम्न पदों को उसके उचित विवरण के साथ मिलाएँ।

1. सूर्यातप(अ) सबसे कोष्ण और सबसे शीत महीनों के मध्य तापमान का अंतर
2. एल्बिडो(ब) समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा
3. समताप रेखा(स) आनेवाला सौर विकिरण
4. वार्षिक तापांतर(द) किसी वस्तु के द्वारा परावर्तित दृश्य प्रकाश का प्रतिशत

उत्तर:
1. (स)
2. (द)
3. (ब)
4. (अ)

5. पृथ्वी के विषुवत् वृत्तीय क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों का तापमान अधिकतम होता है, इसका मुख्य कारण है-
(A) विषवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कम बादल होते हैं।
(B) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।
(C) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ‘ग्रीन हाऊस प्रभाव’ विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
(D) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र विषुवतीय क्षेत्रों की अपेक्षा महासागरीय क्षेत्र के ज्यादा करीब है।
उत्तर:
(B) उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों की लंबाई विषुवतीय क्षेत्रों से ज्यादा होती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण किस प्रकार जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है?
उत्तर:
तापमान जलवायु और मौसम का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। तापमान का वायुमण्डल के दाब से सीधा सम्बन्ध है। यदि तापमान कम होगा तो वायुदाब अधिक होगा और यदि तापमान अधिक होगा तो वायुदाब कम होगा। वायुदाब किसी स्थान के मौसम और जलवायु को प्रभावित करता है। अतः पृथ्वी पर तापमान का असमान वितरण जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है।

प्रश्न 2.
वे कौन से कारक हैं, जो पृथ्वी पर तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. स्थल व जल-जलीय भागों की अपेक्षा स्थलीय भागों में सूर्य का ताप अधिक देखने को मिलता है।
  2. ऊँचाई-165 मी० की ऊँचाई पर 1° सेंटीग्रेड तापमान घटता है। इसलिए पर्वतीय भागों में मैदानी भागों से कम तापमान मिलता है।
  3. अक्षांश-अप्रैल से जून तक उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्यातप अधिक रहता है तथा सितंबर से मार्च में विषुवत् रेखा पर सूर्यातप क्रम होता है।

प्रश्न 3.
भारत में मई में तापमान सर्वाधिक होता है, लेकिन उत्तर अयनांत के बाद तापमान अधिकतम नहीं होता। क्यों?
उत्तर:
भारत में मई में दिन की लम्बाई अधिक होने से सूर्यातप अधिक प्राप्त होता है लेकिन उत्तर अयनान्त के बाद सूर्य की किरणें तिरछी होना आरम्भ करती है जिससे तापमान अधिकतम नहीं हो पाता।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 4.
साइबेरिया के मैदान में वार्षिक तापांतर सर्वाधिक होता है। क्यों?
उत्तर:
साइबेरिया उत्तरी गोलार्द्ध के स्थलीय भाग का अत्यधिक ठण्डा प्रदेश है। सर्दियों में वहाँ सबसे ठण्डे महीने का तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है जबकि गर्मियों में कोष्ण महासागरीय धाराएँ बहती हैं, इससे सबसे गर्म महीने का औसत तापमान काफी बढ़ जाता है। इसलिए साइबेरिया में वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक होता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
अक्षांश और पृथ्वी के अक्ष का झुकाव किस प्रकार पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाली विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
सूर्य की किरणें 0° अक्षांश या विषुवत् रेखा पर सालों भर लंबवत् पड़ती हैं। 0° अक्षांश से 2372° उत्तरी और 23% दक्षिणी अक्षांशों के बीच सूर्य ऊपर-नीचे होता रहता है। 21 मार्च से 21 जून तक सूर्य उत्तरायन होता है, कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत् होती हैं तथा उस वक्त ग्रीष्म ऋतु होती है तथा मकर रेखा पर शीत ऋतु होती है। 23 सितंबर से 22 दिसंबर तक सूर्य दक्षिणायन होता है तथा मकर पर सूर्य की किरणें लंबवत् पड़ती हैं तथा उस वक्त कर्क रेखा पर शीत ऋतु होती है।

कर्क रेखा के उत्तर में तथा मकर रेखा के दक्षिण में जैसे-जैसे हम बढ़ते हैं, वहाँ का तापमान घटता जाता है। इसी कारण 66° उत्तरी अक्षांश तथा 66° दक्षिण अक्षांश के ऊपरी भाग में शीत कटिबंध पाया जाता है जहाँ वर्ष-भर निम्न ता है तथा बर्फ जमी रहती है। इसका मख्य कारण है कि यहाँ सर्य की किरणें तिरछी पडती हैं जो विकिरण की मात्रा को प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 2.
उन प्रक्रियाओं की व्याख्या करें जिनके द्वारा पृथ्वी तथा इसका वायुमंडल ऊष्मा संतुलन बनाए रखते हैं।
उत्तर:
पृथ्वी पर सूर्यातप का असमान वितरण है। सूर्य पृथ्वी को गर्म करता है और पृथ्वी वायुमंडल को गर्म करती है। परिणामस्वरूप पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठंडी। अतः हम यह पाते हैं कि पृथ्वी के अलग-अलग भागों में प्राप्त ताप की मात्रा समान नहीं होती।

इसी भिन्नता के कारण वायुमंडल के दाब में भिन्नता होती है एवं इसी कारण पवनों के द्वारा ताप का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अधिक गर्मी पड़ने के कारण वहाँ की वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और उस स्थान को भरने के लिए उपोष्ण कटिबंध से हवाएँ उष्ण कटिबंध की ओर चलती हैं, जिससे उष्ण कटिबंध के तापमान में ज्यादा वृद्धि नहीं हो पाती।

इसी तरह से उपोष्ण कटिबंध क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंध से हवाएँ चलकर इन क्षेत्रों के तापमान में संतुलन बनाती हैं। इसी तरह वायुमंडल एक क्षेत्र के तापमान को ज्यादा बढ़ने नहीं देता तथा शीत कटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म महासागरीय धाराएँ चलती हैं। ये धाराएँ इन क्षेत्रों के तापमान को बढ़ा देती हैं। उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में ठंडी धाराएँ चलती हैं और उन क्षेत्रों के तापमान को कम कर देती हैं। इसी तरह पृथ्वी की महासागरीय धाराएँ और वायुमंडल संतुलन में बने रहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 3.
जनवरी में पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के बीच तापमान के विश्वव्यापी वितरण की तुलना करें।
उत्तर:
उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता है और तापमान स्थलीय भागों में कम रहता है। इसलिए समताप रेखाएँ जैसे ही स्थलों से महासागरों में पहुँचती हैं तो भूमध्य रेखा की ओर मुड़ जाती हैं क्योंकि सागरीय भागों में तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में ताप प्रवणता अधिक रहती है (समताप रेखाओं के बीच की दूरी कम रहती है) दक्षिणी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ महासागरीय प्रभाव के कारण दूर-दूर रहती हैं और महाद्वीपों से गुजरते समय दक्षिणी ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं। समताप रेखाएँ उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में अधिक नियमित होती हैं।

जनवरी में उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी और दक्षिणी गोलार्द्ध ग्रीष्म ऋतु होती है जिसका मुख्य कारण सूर्य का दक्षिणायन में होता है। जिस कारण सूर्य की किरणें दक्षिणी गोलार्द्ध में लंबवत् पड़ती है। जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं।

विषुवत रेखा के समीपवर्ती क्षेत्रों में तापमान 27° सेंटीग्रेड तथा कर्क रेखा पर 15° सेंटीग्रेड और शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में तापमान 10° सेंटीग्रेड होता है। उदाहरण के लिए साइबेरिया के वोयान्सक में -32 सेंटीग्रेड, दक्षिणी गोलार्द्ध में आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीकी देशों और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के अर्जेन्टाइना में जनवरी में तापमान औसतन 30° सेंटीग्रेड होता है।

दक्षिणी भाग जैसे चिली और अर्जेन्टाइना में तापमान 15 से 20° सेंटीग्रेड होता है। इस तरह से जनवरी में उत्तरी गोलार्द्ध में कम तापमान और दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक तापमान देखने को मिलता है।

सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान HBSE 11th Class Geography Notes

→ सौर विकिरण (Solar Radiation)-सूर्य ऊष्मा को अंतरिक्ष में चारों तरफ निरन्तर प्रसारित करता रहता है। सूर्य द्वारा ऊष्मा की प्रसारण क्रिया को सौर विकिरण कहा जाता है।

→ कैलोरी (Calorie)-समुद्रतल पर उपस्थित वायुदाब की दशा में एक ग्राम जल का तापमान 1° सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊर्जा को कैलोरी कहा जाता है।

→ एल्बिडो (Albedo)-किसी पदार्थ की परिवर्तनशीलता या परावर्तन गुणांक। इसे दशमलव या प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

→ संचालन (Conduction) आण्विक सक्रियता के द्वारा पदार्थ के माध्यम से ऊष्मा का संचार संचालन कहलाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Read More »